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Sunday, September 27, 2020

श्रीराम मंदिर के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि खाली कराने की उठी मांग।

27 सितंबर 2020


भारत का प्राचीन इतिहास केवल सनातन धर्म का ही रहा है लेकिन इस्लामी आक्रमणकारियों ने जिस प्रकार से अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि को बलपूर्वक ले लिया था वैसे ही मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को भी बलपूर्वक ले लिया था, यह तो महत्वपूर्ण मंदिर की ही केवल बात कर रहे है बाकी तो हजारों-लाखों हिन्दू मंदिर तोड़कर मस्जिदें बना दी गई हैं।




राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय को 1 वर्ष होने को आया हैं। अब यूपी के मथुरा की अदालत में 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर सिविल सूट याचिका दायर की गई है। इसमें शाही ईदगाह मस्जिद को हटा कर श्रीकृष्ण जन्मभूमि की मथुरा में स्थित पूरी भूमि को खाली कराने की माँग की गई है। इस याचिका को ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ की तरफ से विनीत जैन ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि कटरा केशव देव की पूरी भूमि के प्रति हिन्दुओं की आस्था है।

याचिका में कहा गया है कि कटरा केशव देव वही क्षेत्र है, जहाँ राजा कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और मस्जिद के नीचे ही वो पवित्र स्थल स्थित है। साथ ही मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त करने के लिए मुग़ल बादशाह औरंगजेब को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें लिखा है कि औरंगजेब कट्टर इस्लामी था और उसने ही सन 1669-70 में इस मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकीलद्वय हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने TOI को बताया कि इस याचिका में माँग की गई है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाया जाए और वहाँ स्थित ढाँचे को भी हटाया जाए। बता दें कि अयोध्या जजमेंट के बाद से ही काशी विश्वनाथ और मथुरा को रिक्लेम करने के लिए अभियान शुरू हो गया है। काशी में भी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुँचा कर औरंगजेब ने ही मस्जिद बनवायी थी।

अगस्त में ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास’ का गठन करके इसे मुक्त कराने की दिशा में प्रयास तेज कर दिया गया था। 14 राज्यों से 80 संतों ने साथ आकर इस अभियान के लिए एकता जताई थी, जिनमें 11 वृन्दावन के संत थे। हालाँकि, इस्लामी आक्रांताओं द्वारा किए गए ऐसे अतिक्रमण की राह में ‘प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991’ की बाधा है। इसके तहत धार्मिक स्थलों पर यथास्थिति बरक़रार रखी गई है।

सितम्बर के पहले सप्ताह में ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में माँग की गई थी कि अब जब अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन हो गया है तो काशी में बाबा विश्वनाथ और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर को मुक्त कराने की ओर प्रयास किया जाए। काशी-मथुरा को मुक्त कराने के लिए प्रस्ताव पारित करते हुए अखाड़ा परिषद ने इस कार्य में विश्व हिन्दू परिषद का भी सहयोग माँगा था।

पिछले दिनों ‘हिंदू आर्मी’ नामक एक संगठन ने भी मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति के लिए सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ रखी थी। वे लोगों से मथुरा पहुँचने की अपील कर रहे थे। लेकिन 20 सितंबर की रात इस संगठन से जुड़े 22 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। हिन्दू आर्मी का कहना है कि वह कृष्ण जन्मभूमि के पास से इस्लामी ढाँचे को हटवाकर वह जमीन कृष्ण जन्मभूमि के नाम पर सौंपना चाहते हैं।

आक्रमणकारी मुग़लों ने भारत मे आकर अनेकों मंदिर तोड़ दिए, अनेक जगह तो मंदिर की जगह मस्जिदें खड़ी कर दी गई, हिंदुस्तानियों को तलवार की धार पर इस्लाम कबूलने पर मजबूर किया, जो डर गए उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल कर लिया और जो निडर रहें वे आज भी हिंदू बन रहें हैं और वे सनातन धर्म की रक्षा कर रहे हैं। भारत मे जो भी आक्रमणकारियों ने मंदिर तोड़े हैं उनका जीर्णोद्धार होना चाहिए और जिन मदिरों की जगह मस्जिदें बना दी गई है उनको वह जगह वापिस हिंदुओं को देनी चाहिए ऐसी जनता की मांग है।

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Sunday, September 6, 2020

श्रीकृष्ण के मंदिर में पाकिस्तान ने गिराए थे 156 बम, कर न सकें बाल भी बांका।

06 सितंबर 2020


भारत का गौरवशाली इतिहास तो हमें पढ़ाया ही नहीं जाता है बस केवल मुग़लों और अंग्रेजों के इतिहास पढ़ाकर भारतवासियों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। गलत इतिहास पढ़ाने के कारण आज आईपीएस और आईएएस जैसे बुद्धिमान अधिकारी भी उसको ही सच मानने लगते हैं पर भारत का गौरवशाली इतिहास भूल गए। हमारा भारत सोने की चिड़िया था, आज के वैज्ञानिक जो खोज कर रहे हैं वो हमारे ऋषि मुनि पहले से ही कर चुके हैं।




भारत के राजा विक्रमादित्य का राज अरब देश तक फैला था और उसके पहले भी ऐसे कई राजा थे जिनका पूरी दुनिया में राज था, उनको एकछत्र सम्राट बोलते थे और सनातन धर्म जब से सृष्टि का उद्गम हुआ तब से है यह सब बाते हमें नही पढ़ाई जा रही हैं जिसके कारण हम लोग वास्तविक इतिहास नहीं जानते हैं जिसके कारण अंग्रेजों और मुग़लो को महान समझने लगते हैं।

एक आपको ऐसा इतिहास बता रहे हैं जिसमे पाकिस्तान की सारी हेकड़ी निकल गई थी।

आपको बता दें कि पश्चिम भारत के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और चार धामों में से एक द्वारकाधीश (गुजरात) मंदिर पर 7 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान की नेवी ने जमकर बम बरसाए थे। मंदिर पर 156 बम फेंके गए थे, लेकिन फिर भी ये बम मंदिर का बाल-बांका न कर सकें। मंदिर पर 156 बम फेंके जाने की बात खुद पाकिस्तान के रेडियो में प्रसारित की गई थी। रेडियो में पाक नेवी के सैनिकों ने हर्षोल्लास के साथ कहा था... ‘मिशन द्वारका कामयाब, हमने द्वारका का नाश कर दिया। हमने कुछ ही मिनटों के अंदर मंदिर पर 156 बम फेंक कर मंदिर को तबाह कर दिया’। हालांकि यह पाक नैवी की गलतफहमी मात्र थी। दरअसल, जब नैवी ने सब-मरीन से मंदिर पर बम बरसाने शुरू किए, उस समय भगवान श्री कृष्ण की कृपा से समुद्र किनारे विशाल पत्थरों की ओट थी। हमले के समय ओट और ऊंची हो चुकी थी, जिसके चलते बम मंदिर तक पहुंच ही नहीं सकें और पानी में डिफ्यूज हो गए थे।

बंटवारे के बाद सन् 1965 में भारत-पाक के बीच हुआ यह दूसरा युद्ध था। इस जंग में पाकिस्तान ने तीनों मोर्चों पर जंग लड़ी थी, जिसमें तीनों जगह उसे मुंह की खानी पड़ी थी। द्वारका मंदिर पर हमला कमोडोर एस एम अनवर के नेतृत्व में पाकिस्तानी नेवी के एक बेड़े ने किया था।

इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय एयरबेस पर घुसपैठ और इन्हें तबाह करने के लिए कई गोपनीय ऑपरेशन भी चलाए थे। 7 सितंबर 1965 को स्पेशल सर्विसेज ग्रुप के कमांडो पैराशूट के जरिए भारतीय इलाकों में भी घुस आए थे। पाकिस्तानी आर्मी के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मुहम्मद मुसा के मुताबिक करीब 135 कमांडो भारत के तीन एयरबेस (हलवारा, पठानकोट और आदमपुर) पर उतारे गए। हालांकि पाकिस्तानी सेना को इस दुस्साहस की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और उसके केवल 22 कमांडो ही अपने देश लौट सके थे। 93 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनमें एक ऑपरेशन के कमांडर मेजर खालिद बट्ट भी शामिल थे।

ऐसे कई मंदिरों का इतिहास था कि मुगल नष्ट नहीं कर सकें थे और मुग़लो व अंग्रेजो ने भारत को 2000 साल तक गुलाम रखा, मार काट की, धर्मपरिवर्तन करवाया, बंटवारा करवाया, संपत्ति लूटकर ले गए फिर भी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सुख शांति भारत में है और आज भी सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति जगमगा रही है यही असली भारत की पहचान है।

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Tuesday, August 11, 2020

माता देवकीजी के गर्भ में जाने से पूर्व श्री विष्णु ने ये कहा था? किस तरह जन्में थे श्रीकृष्ण?

 11 अगस्त 2020


साधारण जीव जब जन्म लेता है तो कर्मों के परिणामस्वरूप माता-पिता के रज-वीर्य के मिश्रण से जन्मता है परंतु भगवान जब अवतार लेते है तो चतुर्भुजी रूप में दर्शन देते हैं। फिर माँ और पिता को तपस्याकाल में संतुष्ट करने के लिए जो वरदान दिया था, उस वरदान के फलस्वरूप नन्हें से हो जाते हैं।

सुतपा प्रजापति और पृश्नि ने पूर्वकाल में वरदान में भगवान जैसा पुत्र माँगा था तब भगवान ने कहा थाः "मेरे जैसा तो मैं ही हूँ। तुम जैसा पुत्र माँगते हो वैसा मैं दे नहीं सकता। अतः एक बार नही वरन् तीन बार मैं तुम्हारा पुत्र होकर आऊँगा।"



भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात की बारह बजे जन्म लिया था। गर्भ में प्रवेश के दौरान भगवान विष्णु ने प्रकट होकर देवकी और वसुदेवजी को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन कराकर रहस्य की बातें बताई थीं।

कारागार में वसुदेव-देवकीजी के सामने जब श्रीभगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, हे माता! आपके पुत्र रूप में मेरे प्रकट होने का समय आ गया है। तीन जन्म पूर्व जब मैंने आपके पुत्र रूप में प्रकट होने के लिए वरदान दिया था।

तब श्रीकृष्ण भगवान वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और कहते हैं कि आप दोनों ने स्वायम्भुव मन्वन्तर में प्रजापति सुतपा और देवी वृष्णी के रूप में किस तरह मुझे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। फिर मैंने तीन बार तथास्तु कहा था इसलिए मैं आपके तीन जन्म में आपके पुत्र के रूप में प्रकट हुआ। पहले जन्म में वृष्णीगर्भ के नाम से आपका पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में जब आप देव माता अदिति थी तो मैं आपका पुत्र उपेंद्र था। मैं ही वामन बना और राजा बलि का उद्धार किया।

अब इस तीसरे जन्म में मैं आपके पुत्र रूप में प्रकट होकर अपना वचन पूरा कर रहा हूं। यदि आपको मुझे पुत्र रूप में पाने का पूर्ण लाभ उठाना है तो पुत्र मोह त्यागकर मेरे प्रति आप ब्रह्मभाव में ही रहना। इससे आपको इस जन्म में मोक्ष मिलेगा।

यह सुनकर माता देवकी कहती हैं कि हे जगदीश्वर यदि मुझमें मोक्ष की लालसा होती तो उसी दिन में मोक्ष न मांग लेती! नहीं प्रभु, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मुझे तो आपके साथ मां बेटे का संबंध चाहिए। यह सुनकर प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। फिर माता देवकी कहती हैं कि इस चतुर्भुज रूप को हटाकर आप मेरे सामने नन्हें बालक के रूप में प्रकट हों। मुझे तो केवल मां और पुत्र का संबंध ही याद रहे बस। तब श्रीकृष्ण कहते हैं तथास्तु।

फिर माता योगमाया प्रकट होती है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी माया के प्रभाव से आपको ये सब बातें याद नहीं रहेंगे। आप पुत्र मोह, वात्सल्य और पीड़ा का अनुभव करेंगी। फिर देवकी और वसुदेव माया के प्रभाव से पुन: सो जाते हैं तब प्रभु श्रीकृष्ण बाल रूप में देवकी के पास प्रकट हो जाते हैं। योगमाया उन्हें नमस्कार करती हैं।

शेषनाग ने जब किया गर्भ धारण, कंस पहुंचा वध करने कुछ देर बाद योगमाया वसुदेव को जगाती है। वसुदेव जागते हैं तो वह कहती हैं कि कंस के आने के पहले तुम इस बालक को लेकर गोकुल चले जाओ। वसुदेव बालक को प्रणाम करते हैं और फिर योगमाया से कहते हैं कि परंतु देवी माता मैं जाऊंगा कैसे? मेरे हाथ में तो बेड़ियां पड़ी हैं और चारों और कंस के पहरेदार भी खड़े हैं। तब देवी माता कहती हैं कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे। गोकुल जाकर तुम यशोदा के यहां इस बालक को रख आओ और वहां से अभी-अभी जन्मी बालिका को उठाकर यहां लेकर आ जाओ।

पहरेदारों को नींद आ जाती है, वसुदेवजी की बेड़ियां खुल जाती हैं और फिर वे बालक को उठाकर कारागार से बाहर निकल जाते हैं। बाहर आंधी और बारिश हो रही होती है। चलते-चलते वे यमुना नदी के पास पहुंच जाते हैं। तट पर उन्हें एक सुपड़ा पड़ा नजर आता है जिसमें बालक रूप श्रीकृष्ण को रखकर पैदल ही नदी पार करने लगते हैं। तेज बारिश और नदी की धार के बीच वे गले गले तक नदी में डूब जाते हैं तभी शेषनाग बालकृष्ण के सहयोग के लिए प्रकट हो जाते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने आगे की 7 तिथियाँ और पीछे की 7 तिथियाँ छोड़कर बीच की अष्टमी तिथि को पसंद किया, वह भी भाद्रपद मास (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण मास) के रोहिणी नक्षत्र में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी। शोषकों ने समाज में अंधेरा मचा रखा था और समाज के लोग भी उस अंधकार से भयभीत थे, अविद्या में उलझे हुए थे।अतः जैसे, कीचड़ में गिरे व्यक्ति को निकालने के लिए निकालने वाले को स्वयं भी कीचड़ में जाना पड़ता है, वैसे ही अंधकार में उलझे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए भगवान ने भी अंधकार में अवतार ले लिया।

भगवान के जन्म और कर्म तो दिव्य हैं ही परंतु उनकी प्रेम शक्ति, माधुर्य शक्ति तथा आह्लादिनी शक्ति भी दिव्य है। जिसने एक बार भी भगवान के माधुर्य का अनुभव किया या सुना वह भगवान का ही हो जाता है। 

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