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Thursday, December 31, 2020

अंग्रेजों वाला 1 जनवरी नववर्ष मना रहे हैं तो पढ़ लीजिये सच्चाई क्या है?

31 दिसंबर 2020


देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा।




आपको बता दें कि सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ था उस दिन ही चैत्री शुक्लपक्ष प्रतिपदा थी और सनातन हिंदू धर्म में इसी दिन को नूतन वर्ष मनाया जाता है लेकिन 700 साल मुग़लों और 200 साल अंग्रेजों के गुलाम रहे जिसके कारण हम अपना नूतन वर्ष भूल गए और अंग्रेजों के नूतन वर्ष मनाने लगे, अंग्रेज गये 70 साल से ऊपर हो गए लेकिन उनकी शिक्षा की पढ़ाई करने के कारण मानसिक गुलामी अभी नहीं गई जिसके कारण अपना नूतन वर्ष हमें याद भी नहीं आता है।

जो भारतीय नूतन वर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजों वाला नया वर्ष मना रहे हैं उनके लिए कवि ने अपनी व्यथा प्रकट करते हुए एक कविता लिखी है आप भी पढ़ लीजिये...।

ना सुंदर फूल खिलते हैं, ना वातावरण में महकते हैं।
प्रकृति भी निस्तेज सी लगती, ना ही पक्षी चकहते हैं।।

01 जनवरी नववर्ष से हमें क्या मतलब, क्यों मनाये हम हर्ष।
हम हैं सनातन संस्कृति परंपरा से, हम क्यों मनाएं ईसाई नववर्ष।।

सबसे पहले ईसाई नववर्ष, जूलियस सीजर ने मनवाया।
अंग्रेज़ों ने भारत में आकर, इस परंपरा को और चमकाया।।

सनातन संस्कृति से ईसाई नववर्ष का, कोई सरोकार नहीं है।
क्यों हो पाश्चात्य संस्कृति के पीछे अंधे, ये हमारे संस्कार नहीं हैं।।

क्यों हो व्यसनों की तरफ आकर्षित, क्यों पीएं शराब, बियर।
क्यों करें अपना नैतिक पतन, क्यों बोलें हैप्पी न्यू ईयर।।

ईसाई देशों में खूब बम पटाखे फोड़ेंगे, मीडिया वाले कुछ नहीं कहेंगे।
होली दीवाली में प्रदूषण देखने वाले, देखना इस पर मौन रहेंगे।।

वास्तव में ये नववर्ष नहीं है, ये है सनातन संस्कृति पर प्रहार।
समय की मांग है एकत्र हो, करो ईसाई नववर्ष का बहिष्कार।।

चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को, चलो हम नववर्ष मनाएं।
रंगोली बनाएं, दीप जलाएं, घर घर भगवा पताका फहराए।। - कवि सुरेन्द्र भाई

इस कविता के माध्यम से हमें समझना चाहिए कि अंग्रेजो के द्वारा थोपा गया नूतन वर्ष हमारा सांस्कृतिक, शारिरिक, मानसिक और सामाजिक पतन करता है जो राष्ट्र के लिए भी हानि करता है इसलिए हमें ऐसे त्यौहार से बचना चाहिए और अपने आसपास ऐसा कोई गलती से नया साल मना रहा हो तो उसको भी समझाइये कि भाई ये हमारा त्यौहार नहीं है हमारी संस्कृति सबसे महान है और वे नूतन वर्ष चैत्री शुक्लपक्ष प्रतिपदा को आएगा उस दिन हम सभी मिलकर धूमधाम से मनायेंगे।

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Monday, September 21, 2020

खालिस्तान की मांग करने वालें सिखों की जान लीजिए सच्चाई क्या है?

21 सितंबर 2020


पिछले कुछ समय से खालिस्तान मुद्दे पर बहस दोबारा ज़ोर पकड़ चुकी है। सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसी वीडियो और तस्वीरें सामने आती हैं, जिसमें खालिस्तानी समर्थक नज़र आ जाते हैं। खालिस्तान का पाकिस्तान से संबंध भी छुपा नहीं रह गया है। इसका सबसे पुख्ता सबूत है “Khalistan: A Project of Pakistan” (खालिस्तान: पाकिस्तान का एक प्रोजेक्ट) नाम की रिपोर्ट। मैकडोनाल्ड लौरियर इंस्टिट्यूट (MLI) द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में पाकिस्तान और खालिस्तानी समर्थकों के बीच संबंधों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए 18 सितंबर 2020 को एक वेबिनार आयोजित कराया गया था। इसका शीर्षक था – “Khalistani Terrorism & Canada” यानी कनाडा में बढ़ते खालिस्तानी आतंकवाद पर चर्चा।




इसका आयोजन नई दिल्ली की थिंक टैंक लॉ एंड सोसाइटी अलायन्स ने कराया था। वेबिनार में शामिल होने वाले मुख्य 4 लोगों ने सिलसिलेवार तरीके से इस मुद्दे पर अपना विचार रखा। इसमें शामिल होने वाले 4 लोग टेरी मिलेव्सकी, रमी रेंजर, सुखी चहल और मेजर गौरव आर्य थे। सबसे पहले MIL की रिपोर्ट के लेखक टेरी मिलेव्सकी ने कहा:

“मैंने 15 अगस्त को ऐसे कई इवेंट देखें, जिसमें खालिस्तान का समर्थन किया जा रहा था। इस बात में कोई संदेह नहीं है ऐसे आयोजनों के पीछे कोई और नहीं बल्कि मिशन पाकिस्तान का हाथ है। कुछ ही सिख ऐसे हैं, जो पाकिस्तान का साथ दे रहे हैं बाकी असली सिखों के साथ पाकिस्तान में अत्याचार किया जा रहा है। उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, उनके गुरुद्वारों पर हमले होते हैं, उनकी बेटियों के साथ बलात्कार किया जाता है। यही मूल कारण है कि पाकिस्तान में सिखों की आबादी घट रही है।”

इसके बाद उन्होंने कहा कि वो हाल ही में खालिस्तानियों द्वारा तैयार किया गया एक नक्शा देखे। इसमें भारत के कई हिस्सों को शामिल किया गया था, यहाँ तक की दिल्ली के एक बड़े हिस्से पर भी दावा किया गया था।

सच यही है कि भारत कनाडा के खालिस्तानी समर्थकों पर कार्रवाई नहीं कर सकता है। इसका पहला कारण है कि वह कनाडा के नागरिक हैं। दूसरा भारत के पास केवल इस बात के सबूत हैं कि वह आतंकवाद का समर्थन करते हैं न कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। भारत के लिए यह स्थिति वॉर ऑफ़ इनफॉर्मेशन जैसी है।

इसके बाद लार्ड रमी रेंजर ने भी इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह की बात का उल्लेख करके अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा, “गुरु गोबिंद सिंह ने कहा था कि विविधता को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसका सम्मान होना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर इसकी रक्षा भी करनी चाहिए।”

खालसा पंथ को किसी एक क्षेत्र के लिए नहीं बनाया गया था बल्कि भारत की धार्मिक विविधता को बरकरार रखने के लिए इसका गठन हुआ था। सिखों के धर्म गुरु पूरे भारत देश को अपनी माता की तरह मानते थे। गुरु गोविंद सिंह खुद पटना में पैदा हुए थे और महाराष्ट्र में आगामी कुछ साल बिताए।

उन्होंने बताया कि पंज प्यारे भी भारत के अलग-अलग इलाकों से आते हैं। असल मायनों में खालिस्तानी समर्थक उस देश को ही नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिन्होंने उनको शरण दी।

खालिस्तानी समर्थकों को अगर अलग क्षेत्र चाहिए तो उन्हें सबसे पहले पाकिस्तान स्थित गुरु ननकाना साहिब के जन्मस्थल से शुरुआत करनी चाहिए। उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह का लाहौर स्थित साम्राज्य अलग शामिल करना चाहिए। पाकिस्तान के 350 गुरुद्वारे आज़ाद कराए जाएँ। भारत तो ऐसा देश है, जिसने हाल ही में गुरु गोविंद सिंह का 350वाँ जन्मदिन मनाया और गुरुनानक का 550वाँ जन्मदिन मनाया।

इसके बाद खालसा टुडे के संस्थापक सुखी चहल ने भी कई अहम बातें कहीं। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह के कथन का ज़िक्र करते हुए अपनी बात शुरू की – “देह शिवा वर मोहे एहे।” उन्होंने कहा कि खालिस्तानी समर्थक आतंकवादियों की तस्वीरें सिखों के धर्म गुरुओं के साथ लगाते हैं।

सिखों को यह समझना चाहिए कि पंजाब का सबसे ज़्यादा नुकसान पाकिस्तान ने किया है और खालिस्तानी सिख उनका ही समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में पाकिस्तान में एक ग्रंथी की बेटी का अपहरण किया गया था। इसके बाद उसे जबरन इस्लाम कबूल कराया गया और निकाह भी हुआ। उनका कहना था कि हैरानी की बात यह थी कि किसी भी खालिस्तानी समर्थक ने इस घटना का विरोध नहीं किया। खालिस्तानियों को अगर अपना क्षेत्र चाहिए तो उन्हें इसकी शुरुआत पाकिस्तान से करनी चाहिए। इसके बाद उन्हें चीन और अफग़ानिस्तान के इलाकों को भी शामिल करना चाहिए।

अभी सबसे बड़ी माँग यही है कि विदेशों में रहने वाले मॉडरेट सिख खालिस्तानी समर्थकों का विरोध करें। जब किसी दूसरे देश में रहने वाला सिख भारत आता है तो सबसे पहले इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरता है। जिन्होंने सिख पर इतना अत्याचार किया, उसके नाम पर हवाई अड्डे! नाम तो गुरु तेगबहादुर के नाम पर होना चाहिए, जो दिल्ली में शहीद हुए थे। अंत में पूर्व मेजर गौरव आर्या ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा अगर मैं आज हिन्दू हूँ तो सिखों की वजह से हूँ। हमारे अस्तित्व में एक अहम भूमिका सिख धर्म गुरुओं की है। उन्होंने हमारी सुरक्षा के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर दिया। हम विदेशों में भारतीय सीईओ को देख कर खुश होते हैं लेकिन पाकिस्तान के लोगों के साथ ऐसा कुछ नहीं है। वह ऐसे किसी शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को देख कर कहते हैं कि उसमें इतनी योग्यता ही नहीं है कि वह उस मुकाम तक पहुँचे।
उनके मुताबिक़ अमेरिका सिर्फ और सिर्फ इसलिए सुरक्षित है क्योंकि अमेरिका की सेना देश के बाहर लड़ाई लड़ती है उसे देश के भीतर नहीं लड़ना पड़ता है। - स्त्रोत : ऑप इंडिया

हम रामायण के सिद्धांतों पर चल महाभारत की लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं। भारत सरकार को कुछ मुद्दों पर अपना मत स्पष्ट करके कठोर बनना पड़ेगा। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह सब कठिन हो सकता हैं लेकिन भारत के पास क्षमता है और भारत यह सब कुछ नियंत्रित कर सकता है।

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Tuesday, July 14, 2020

लव जिहाद की इस सच्चाई को जान लिया तो कोई भी लड़की लव जिहाद में नहीं फसेगी।

13 जुलाई 2020

🚩मंसूर अली खान पटौदी से शादी करने से पहले शर्मिला टैगोर ने इस्लाम कबूल किया था, जिसके बाद शर्मिला का नाम रखा गया आएशा बेगम! प्यार सच्चा था तो इस्लाम कबूल करवाने की जिद किसलिए? और अगर इस्लाम कुबूल कर ही लिया है तो खुद को शर्मिला टैगोर कहने की जिद किसलिए? अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और सेकुलर विद्वान यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है। क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर हिन्दू क्यों नहीं बन गये? सैफ़ अली खान को अमृता सिंह से इतना ही प्यार था तो सैफ़ हिन्दू क्यों नहीं बन गया? अब अमृता सिंह को बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से विवाह किया और बेटे का नाम रखा तैमूर। इससे अनुमान लगा लें इनका आदर्श वही खुनी तैमूर लंग है जिसने भारत में कत्लेआम मचाया था।

🚩आँख बंद कर लेने से रात नहीं होती:-

🚩प्रेम अन्धा होता है, सभी धर्म समान हैं, शादी ब्याह में धर्म नहीं दिल देखा जाता है, मुसलमान भी तो इंसान हैं, यह कहने वाले एक बार विचार करें, जो हिन्दू लड़कियां सोचती हैं कि लव जेहाद जैसा कुछ नहीं होता तो उन्हें सोचना चाहिए की क्या कोई मुस्लिम लड़की लव मैरिज करके हिन्दू लड़के की पत्नी बन सकती है? इस्लाम के तथाकथित विद्वान ज़ाकिर नाइक खुद फ़रमा चुके हैं कि इस्लाम “वन-वे ट्रेफ़िक” है, कोई इसमें आ तो सकता है, लेकिन इसमें से जा नहीं सकता… क्या दोनो एक ही घर में अपने-अपने धर्म का पालन नहीं कर सकते? मुस्लिम बनना क्यों जरूरी है? और यही बात उनकी नीयत पर शक पैदा करती है।

🚩अंकित सक्सेना का सडक पर उसे माँ बाप के सामने क़त्ल कर दिया गया क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से शादी करने वाला था। उस लड़की के माँ बाप और चाचा ने सडक पर अंकित सक्सेना का गला काट कर हत्या कर दी।

🚩जेमिमा मार्सेल गोल्डस्मिथ और इमरान खान – ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21), पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी, उससे 1995 में शादी की, इस्लाम अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये… नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक-तलाक। वापस ब्रिटेन। फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक नहीं थे?

🚩24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003 दिनांक 2.12.03) को तलाक भी हो गया। अब पाठक खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर सकती थी…

🚩प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना? अज़हरुद्दीन भी अपनी मुस्लिम बीबी नौरीन को चार बच्चे पैदा करके छोड़ चुके। बाद में संगीता बिजलानी से निकाह कर लिया, कुछ साल बाद उसे भी तलाक दे दिया। उन्हें कोई अफ़सोस नहीं, कोई शिकन नहीं। ऊपर दिये गये उदाहरणों में अपनी बीवियों और बच्चों को छोड़कर दूसरी शादियाँ करने वालों में से कितने लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं? तब इसमें शिक्षा-दीक्षा का कोई रोल कहाँ रहा? यह तो विशुद्ध लव-जेहाद है।

🚩वहीदा रहमान ने कमलजीत से शादी की, वह मुस्लिम बने, अरुण गोविल के भाई ने तबस्सुम से शादी की, मुस्लिम बने, डॉ ज़ाकिर हुसैन (पूर्व राष्ट्रपति) की लड़की ने एक हिन्दू से शादी की, वह भी मुस्लिम बना, एक अल्पख्यात अभिनेत्री किरण वैराले ने दिलीप कुमार के एक रिश्तेदार से शादी की और गायब हो गई।

🚩इस कड़ी में सबसे आश्चर्यजनक नाम है भाकपा के वरिष्ठ नेता इन्द्रजीत गुप्त का। मेदिनीपुर से 37 वर्षों तक सांसद रहने वाले कम्युनिस्ट (जो धर्म को अफ़ीम मानते हैं), जिनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज दिल्ली तथा किंग्स कॉलेज केम्ब्रिज में हुई, 62 वर्ष की आयु में एक मुस्लिम महिला सुरैया से शादी करने के लिये मुसलमान (इफ़्तियार गनी) बन गये। सुरैया से इन्द्रजीत गुप्त काफ़ी लम्बे समय से प्रेम करते थे और उन्होंने उसके पति अहमद अली (सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली के पिता) से उसके तलाक होने तक उसका इन्तज़ार किया। लेकिन इस समर्पणयुक्त प्यार का नतीजा वही रहा जो हमेशा होता है, जी हाँ, “वन-वे-ट्रेफ़िक”। सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार गनी” जरूर बन गये।

🚩इसी प्रकार अच्छे खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने अपने निकाह के 50 साल बाद अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5 बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक कमजोरी हैं)। इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-खासी बहस छेड़ी थी। शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया, मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया… तात्पर्य यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है, देश-समाज आदि सब बाद में…।

🚩शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद, यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और अंग्रेज बन जाते…? और तो और आधुनिक जमाने में पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की, लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया, तात्पर्य यह कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-ढकोसला है।

🚩एक बात और है कि धर्म परिवर्तन के लिये आसान निशाना हमेशा होते हैं “हिन्दू”, जबकि ईसाईयों के मामले में ऐसा नहीं होता, एक उदाहरण और देखिये –

🚩पश्चिम बंगाल के एक गवर्नर थे ए एल डायस (अगस्त 1971 से नवम्बर 1979), उनकी लड़की लैला डायस, एक लव जेहादी ज़ाहिद अली के प्रेमपाश में फ़ँस गई, लैला डायस ने जाहिद से शादी करने की इच्छा जताई। गवर्नर साहब डायस ने लव जेहादी को राजभवन बुलाकर 16 मई 1974 को उसे इस्लाम छोड़कर ईसाई बनने को राजी कर लिया। यह सारी कार्रवाई तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय की देखरेख में हुई। ईसाई बनने के तीन सप्ताह बाद लैला डायस की शादी कोलकाता के मिडलटन स्थित सेंट थॉमस चर्च में ईसाई बन चुके जाहिद अली के साथ सम्पन्न हुई। इस उदाहरण का तात्पर्य यह है कि पश्चिमी माहौल में पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले डायस साहब भी, एक मुस्लिम लव जेहादी की “नीयत” समझकर उसे ईसाई बनाने पर तुल गये। लेकिन हिन्दू माँ-बाप अब भी “सहिष्णुता” और “सेकुलरिज़्म” का राग अलापते रहते हैं, और यदि कोई इस “नीयत” की पोल खोलना चाहता है तो उसे “साम्प्रदायिक” कहते हैं। यहाँ तक कि कई लड़कियाँ भी अपनी धोखा खाई हुई सहेलियों से सीखने को तैयार नहीं, हिन्दू लड़के की सौ कमियाँ निकाल लेंगी, लेकिन दो कौड़ी की औकात रखने वाले मुस्लिम जेहादी के बारे में पूछताछ करना उन्हें “साम्प्रदायिकता” लगती है…

🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से ५० मील की दूरी पर एक तहसील है। 200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कुटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।

🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरे खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़को कभी लव जिहाद का शिकार न बने।

🚩सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये कैसा प्रेम है? यदि वाकई “प्रेम” ही है तो यह वन-वे ट्रैफ़िक क्यों है? इसीलिये सभी सेकुलरों, प्यार-मुहब्बत-भाईचारे, धर्म की दीवारों से ऊपर उठने आदि की हवाई-किताबी बातें करने वालों से मेरा सिर्फ़ एक ही सवाल है, “कितनी मुस्लिम लड़कियों (अथवा लड़कों) ने “प्रेम” की खातिर हिन्दू बनना स्वीकार किया है?”

🚩मां-बाप का भी कर्तव्य है कि अपने बेटी-बेटियों को धर्म की शिक्षा जरूर दे जिससे वे लव जिहाद में न फसे सेक्युलर बनकर अपने धर्म की हानि न करे और एक बात ध्यान रखना धर्म है तभी सबकुछ ठीक है नही तो पाकिस्तान में जाकर देखो हिंदुओं का क्या हाल हैं।

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Monday, June 8, 2020

हलाल प्रमाणन प्रोडक्ट लेते है तो सावधान, पहले सच्चाई जान लीजिए

08 मई 2020 

🚩 हाल ही में हलाल प्रमाणन के मामले पर बहुत कुछ कहा गया है। एक कथित विज्ञापन को लेकर हुए बवाल के बाद जिसमें ये क्लेम था कि जैन बेकरी में किसी भी मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया है। जिसके बाद चेन्नई में जैन बेकरी के मालिक की गिरफ्तारी भी हुई। इस गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वो विज्ञापन ही फोटोशॉप करके दुर्भावना के कारण वायरल किया गया था। गूगल पर सर्च करने पर दुकान बंद करने की भी नौबत आ गई। इसी की प्रतिक्रिया परिणाम स्वरूप सोशल मीडिया पर हलाल उत्पादों का बहिष्कार करने की माँग बढ़ गई है। 

 इस्लामिक मीडिया पोर्टल मिल्ली गज़ेट ने दावा किया कि इस तरह की माँगें ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘कट्टरपन’ को दर्शाती हैं, हालाँकि इस की निंदा का कोई असर इस बहिष्कार की माँग पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। 

🚩 ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कट्टरता है? क्या इस तरह की माँगें इस्लामोफोबिया हैं? क्या चेन्नई पुलिस द्वारा जैन बेकरी के मालिक को गिरफ्तार करना ठीक था? क्या इस तरह कथित विज्ञापन निकालना अवैध या असंवैधानिक है? क्या हलाल प्रमाणीकरण का बहिष्कार करना अनैतिक है? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बात होनी चाहिए। 

🚩 जैसा कि हम पहले भी कई बार बता चुके हैं कि हलाल प्रमाणन एक तरह का भेदभाव है। यह मांस उद्योग पर मुसलमानों के लिए एकाधिकार स्थापित करता है। जब मुसलमान इस बात पर जोर देते हैं कि हलाल मीट ही खाना चाहिए, इसके साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जहाँ से आप मांस खरीद रहे हैं। उस प्रतिष्ठान पर केवल मुस्लिम कर्मचारी ही कार्य करते हैं, क्यों कि उनका मानना है कि हलाल केवल मुसलमान ही इसे तैयार कर सकता है। इस तरह हलाल मीट सिर्फ भोजन सामग्री ही नहीं रह जाता बल्कि यह एक ही समुदाय के लोगों को रोजगार सुनिश्चित करने का तरीका भी है। 

🚩 जो जानवर इस्लामी नियमों के अनुसार कत्ल किए जाते हैं सिर्फ उन्ही को हलाल माना जा सकता है, क्योंकि उसे कत्ल करने से पहले कुरान की आयत पढ़ी जाती है और हलाल का मतलब होता है "गला रेतकर तड़पा तड़पा कर मारना" वहीं गैर-मुस्लिम द्वारा किया गया कोई भी कत्ल इसकी परिभाषा के अनुसार हलाल नहीं माना जाता। इस तरह हलाल मीट को ही खाने योग्य बताना दुर्भावनापूर्ण और गुमराह करने वाली मानसिकता को दर्शाता है। हलाल प्रमाणन मीट उद्योग में मुसलमानों के लिए एकाधिकार भी स्थापित करता है। 

🚩 हालाँकि, शाकाहारी उत्पादों के प्रमाणन प्रक्रिया हलाल प्रमाणन से थोड़ी सी भिन्न है, जबकि मूल प्रक्रिया समान है। प्रमाणन के लिए एक प्रतिष्ठान को हलाल प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए एक इस्लामी प्रमाणन प्राधिकरण को एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार यदि कोई व्यावसायिक संस्थान मुस्लिमों के साथ व्यापार करना चाहता है, तो उन्हें पहले मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ को ‘हफ्ता’ देना होगा। 

🚩 वास्तव में इस तरह के प्रमाण पत्र प्राप्त करने की लागत को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों तरह के ग्राहकों से वसूल किया जाता है। इस प्रकार गैर-मुस्लिम ग्राहक मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ की आजीविका का माध्यम हैं। 

🚩 इन स्थितियों को देखते हुए यह समझना आसान है कि गैर-मुस्लिम इस तरह की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होंगे। गैर मुस्लिम मुसलमानों की मजहबी मान्यताओं के कारण भुगतान के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हलाल प्रमाणीकरण साफ तौर पर एक आर्थिक गतिविधि है, इसलिए विरोध भी आर्थिक क्षेत्र में होगा। इस प्रकार, हमारे तीन सवालों का जवाब दिया जा चुका है। 

🚩 अब आगे बात करे तो, अगले सवाल का जवाब है कि हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। 

🚩 अब हम अन्य दो प्रश्नों की ओर आते हैं जो मुस्लिम कर्मचारियों को न रखने वाले कथित विज्ञापन की संवैधानिकता व वैधता की बात करते हैं और चेन्नई पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी पर सवाल खड़ा करते हैं। हलाल मीट पर जोर देना आर्थिक बहिष्कार का ही एक रूप है। मुस्लिम उपभोक्ता मीट उद्योग में केवल मुसलमानों की भर्ती के लिए मुसलमानों को ही प्रोत्साहित करते हैं। 

🚩 इससे यह प्रभाव पड़ेगा कि मीट इंडस्ट्री हलाल मीट का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देगी, क्योंकि ज्यादातर उपभोक्ताओं को हलाल मीट खाने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन मुसलमान कभी गैर-हलाल मीट नहीं खाएगा। इस प्रकार हलाल मीट कारोबार का दायरा ज्यादा बढ़ जाता है। इसी प्रकार की व्यवस्था को नसीम निकोलस तालेब के शब्दों में ‘अल्पसंख्यकों की तानाशाही’ कहा गया है। 

🚩 इस प्रकार, मुसलमानों की हलाल मीट की माँग के कारण मीट इंडस्ट्री का झुकाव सिर्फ हलाल मीट के उत्पादन की तरफ है। इस तरह मुस्लिम समुदाय को मांसाहार में गैर-मुस्लिमों के साथ भारी भेदभाव करके रोजगार में एकाधिकार देता है। जितनी कि यह व्यवस्था खतरनाक है उनता ही देश का संविधान इस पर मौन है। 

🚩 इस तरह के मामलों में आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि तथ्य यह है कि मीट उत्पादों पर हलाल प्रमाणीकरण का नियम यह घोषणा करता है कि मीट उत्पाद बनाने में किसी गैर-मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया था। इसलिए यदि व्यावसायिक प्रतिष्ठान बिना किसी कानूनी भय और संविधान की सहमति से गैर-मुस्लिमों को रोजगार से वंचित करने की खुली घोषणा कर सकते हैं, तो किसी गैर मुस्लिम प्रतिष्ठान के द्वारा इसी तरह की घोषणा करने पर कार्रवाई क्यों की जानी चाहिए? 

🚩 अगर हलाल प्रमाणीकरण कानूनी है, तो अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी यह अधिकार है कि वह भी अपने प्रतिष्ठान में धर्म के आधार पर मुसलमानों को रोजगार देने से इनकार कर सकता है। यदि मुस्लिम समुदाय मीट उद्योग में मुसलमानों के रोजगार को प्रोत्साहित कर सकता है, जो हलाल मीट अनिवार्य रूप से जोर देता है, तो गैर-मुस्लिमों को भी अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में विशेष धर्म के लोगों को नौकरी पर रखने के लिए प्रोत्साहित करने का अधिकार है। 

🚩 यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है तो, उदाहरण के तौर पर अगर कोई हिंदू ज़ोमैटो या अमेज़ॅन या किसी ई-कॉमर्स सेवा पर मुस्लिम डिलीवरी वाले व्यक्ति से डिलीवरी नहीं लेता है, तो ऐसा करना एक ग्राहक के रूप में उनका अधिकार है। 

🚩 गैर-मुस्लिम अन्य मोर्चों पर भी इस तरह विचार कर सकता है, यदि वे अपने स्वयं के धर्म वाले विक्रेताओं से किराने का सामान और सब्जी खरीदना चाहते हैं, तो ऐसा करना उनका अधिकार है। यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है, तो ऐसा व्यवहार कानूनी रूप से या नैतिक रूप से गलत नहीं है। जब तक हलाल की भेदभावपूर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित है, तब तक यह पूरी तरह से उचित है। 

🚩 भारतीय संविधान में समानता को परिभाषित किया गया है और समानता के सिद्धांत निर्धारित करते हैं कि प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समान होना चाहिए। हालाँकि, पुलिस कभी-कभी यह भूल जाती है कि जैन बेकर्स के मालिक की गिरफ्तारी और झारखंड में हिंदू विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कहीं न कहीं एकतरफा प्रतिक्रिया है। 

🚩 यह उल्लेख करना भी उचित है कि इन दोनों अवसरों पर कुछ मुसलमानों द्वारा सोशल मीडिया पर आपत्ति दर्ज कराने पर पुलिस ने कार्रवाई की है। मुस्लिम समुदाय को यह अहसास होना चाहिए कि यदि वे आर्थिक मोर्चे पर गैर-मुस्लिमों के खिलाफ सक्रिय रूप से भेदभाव करते हैं, तो दूसरा पक्ष भी समान रूप से जवाबी कार्रवाई का अधिकार रखता है। 

🚩 यह इस्लामोफोबिया नहीं है, यह प्रतिक्रिया का स्वाभाविक नियम है। मुस्लिम समुदाय को यह भी अहसास होना चाहिए कि गैर-मुस्लिम उनके धार्मिक विश्वासों को सब्सिडी देने के लिए बाध्य नहीं हैं और उन्हें उम्मीद करना भी बंद कर देना चाहिए। 

🚩 दुर्भाग्यवश मुस्लिम समुदाय ने पीड़ितों की तरह रोने की आदत बना ली है, जबकि वो हर तरफ हावी हैं। भारतीय कानून एजेंसियों को इस तरह की आपत्तियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, क्योंकि इस तरह की कार्रवाई निश्चित रूप से समुदायों के बीच भेदभाव व कड़वाहट पैदा करती है।

🚩 मुस्लिम समुदाय यदि तर्क में यकीन रखता है तो उम्मीद है कि मुस्लिम समुदाय को अपने भेदभाव पूर्ण व्यवहार एहसास होगा और वे भेदभावपूर्ण प्रथाओं को या तो छोड़ देंगे या दूसरे को भी वैसा ही अधिकार देने पर सहमत होंगे। अंत में इतना ही कि इन सभी बातों पर विचार किया जाना चाहिए, जिसमें कि पूरे देश की भलाई है।

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Friday, April 24, 2020

साधुओं की हत्या के बाद एक सच्चाई तो सभी मान रहे है पर एक बात पर सब चुप है

24 अप्रैल 2020

🚩पालघर में दो साधुओं की नृशंस हत्या के बाद आज मीडिया और बुद्धिजीवी ये बात बोलने लगे गए है कि साधुओं की हत्या के पीछे बड़ा हाथ ईसाई मिशनरियों का लग रहा है क्योंकि वे लोग धर्मान्तरण करवाते है और लोगों में हिंदू धर्म के देवी-देवताओं और साधु-संतों के खिलाफ जहर भरते है, उसका परिणाम आज देखने को मिल रहा है।

🚩धर्मान्तरण करते समय ईसाई मिशनरियां लोगों में हिंदू धर्म के प्रति ऐसा जहर भर देते है कि वे लोग अपने ही हिंदू धर्म के खिलाफ हो जाते है और हत्या तक का अंजाम दे सकते है जैसे अभी पालघर में हुआ और स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को 2008 में कुल्हाड़े से काट डाला था ।

🚩अभी बड़ी विंडबना ये है कि जो साधु-संत धर्मान्तरण रोकने में आगे आते है उनको ईसाई मिशनरी निशाना बनाती है। जिनकी हत्या कर सके उनकी हत्या कर देते है या जिनकी हत्या नही कर सकते उनके खिलाफ झूठा मुकदमा बनाकर, मीडिया में बदनाम करवाकर जेल भिजवाया जाता है और कुछ हिंदू तो मीडिया की बात को सच मानकर उन संतों को भी गलत बोल देते हैं। उनको पता नही की उनके खिलाफ बड़ी साजिश चल रही है।

🚩आपको बता दे कि स्वामी असीमानन्द जी आवहा-डांग (गुजरात) मे धर्मान्तरण रोक रहे थे तो उनको बम धमाके के में फसाकर 9 साल जेल में रखा फिर निर्दोष बरी हुए।

🚩ऐसा ही मामला हिंदू संत आशारामजी बापू के साथ है। उन्होंने देश-विदेश में ऐसा अभियान छेड़ा की करोड़ो लोग सनातन धर्म के दीवाने होते गए और जो हिन्दू धर्मपरिवर्तन करने लगे थे उनकी घर वापसी करवा दी। एक तरफ हजारों NGO's धर्मान्तरण करवाने के लिए लगे थे और दूसरी तरफ अकेले बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने में लगे थे और आदिवासियों में जाकर धर्म के ज्ञान के साथ मकान, अनाज, रुपये, जीवनोपयोगी सामग्री आदि देकर उनकी घर वापसी करवाते थे तथा जो आगे धर्मान्तरित होने जा रहे थे उनको रोक रहे थे। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा आदि मुख्य राज्य थे जिसमें उनका यह मिशन चलता था। उनके करोड़ो अनुयायियों को भी उन्होंने इसी में लगाकर रखा था।

🚩आपको बता दे कि यहां तक वे सफल हुए थे कि इंडोनेशिया से पादरी डॉ. सोलोमन धर्मान्तरण करने के लिए भारत आया था उसने एक दिन बापू आशारामजी का झारखंड में प्रवचन सुन लिया जिसमे हिंदू धर्म के बारे में बापू आशारामजी बता रहे थे, अचानक उसके जीवन मे परिवर्तन हुआ, वो बापू आशारामजी से मिला और उनको गुरु माना और खुद हिन्दू धर्म अपना लिया तथा नाम रख लिया डॉ. सुमन। अब वे खुद पादरियों की पोल खोलते है और धर्मपरिवर्तन की जगह घरवापसी करवाते है।

🚩एक मुसलमान भी भुट्टो खान से हरी शंकर बन गये।

🚩बता दे कि आशारामजी बापू ने वेलेंटाइन डे की जगह पर मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू किया जिसके कारण करोड़ो लोग उस दिन वेलेंटाइन डे की जगह माता-पिता की पूजा करने लगे। उसके कारण विदेशी कम्पनियों के गर्भनिरोधक सामान, दवाइयां, गिफ्ट, नशीले पदार्थ आदि बिकना बंद हो गये जिसके कारण उनको अरबो रूपये का घाटा आ रहा था।

🚩आपको बता दे कि हिंदू संत आशारामजी बापू एक दिन में चार-चार जगह पर प्रवचन के कार्यक्रम करते थे और हर जगह लोगों की भारी भीड़ होती थी। वे जाती-पाती छोड़कर सबको सनातन धर्म मे जोड़ते थे इससे भारतवासी अपने को सनातनी मानकर गर्व महसूस करने लगे। उनके प्रवचन सुनकर करोड़ो लोगों ने शराब, बीड़ी, सिगरेट, चाय आदि व्यसन छोड़ दियें, उनके बताए अनुसार आसान-प्राणायम करके लोग स्वस्थ होने लगे। कुछ बीमारी होती थी तो उनके प्रवचन में बताएं घरेलू नुस्खे सीखकर स्वस्थ होने लगे जिसके कारण लोगो ने दवाइयां लेना बंद कर दी और टीवी, फिल्में आदि देखना छोड़ दिया, क्लब में जाना छोड़ दिया, व्यभिचार छोड़कर सदाचार अपना लिया, ये अभियान सिर्फ भारत नही बल्कि विश्व के कई देशों में भी होने लगा इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खरबो रुपयों का नुकसान होने लगा और धर्मान्तरण करने वालो की दुकानें बंद होने लगी इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां और वेटिकन सिटी बुरी तरह बोखला गए थे।

🚩बता दे कि हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने वर्ल्ड रिलीजियस पार्लियामेंट (विश्व धर्मपरिषद) शिकागों में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 में स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 में हिंदू संत आशारामजी बापू ने किया था।

🚩आपको बता दे कि 2004 में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को झूठे केस में गिरफ्तार किया तो उनके ही लोग बोलने लगे थे कि शंकराचार्य जी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए लेकिन बापू आशारामजी ने जंतर-मंतर पर धरना दिया जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कई बड़े-बड़े नेता उनके साथ आये और आखिर शंकराचार्य जी को निर्दोष बरी करना पड़ा उस समय उन्होंने भविष्यवाणी की थी की अब हमारे ऊपर भी ये लोग षड्यंत्र करेंगे।

🚩बता दे कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जब गिरफ्तार करके जेल में प्रताड़ित किया जा रहा था, उनको केंसर हो गया था और चला भी नही जा रहा था तथा जब उनसे किसी को भी मिलने नही जाने दे रहे थे तब बापू आशारामजी को भी प्रशासन ने मिलने से मना किया था तब उन्होंने नही मिलने पर धरना देने का आह्वान किया था फिर डर के मारे उनको तुरंत मुलाकत करवाई थी और बापू आशारामजी ने साध्वी प्रज्ञा को कहा था कि आप इसी पेर से चलोगी और निर्दोष बरी होंगी, यही आज सच निकला। इसलिए आज साध्वी बापू को निर्दोष मानती है।


🚩रामलीला मैदान में जब बाबा रामदेव और उनके भक्तों पर लाठीचार्ज किया था तब बापू आशारामजी ने सबसे पहला नारा लगया था कि "सोनिया मैडम भारत छोड़ो"

🚩बापू आशारामजी ने बच्चों के लिए देशभर में 17000 हजार बाल संस्कार केंद्र और 35 वैदिक गुरुकुल खुलवा दिएं, युवाओं के लिए करोड़ो युवाधन सुरक्षा का साहित्य बंटवा दिया, युवा सेवा संघ की स्थापना की, महिलाओं के उत्थान के लिए महिला उत्थान मंडल खोल दिया, उनके 450 आश्रम और 1400 समितियां देशभर में समाज, राष्ट्र और संस्कृति की सेवा में लग गई।

🚩बापू आशारामजी जोर-शोर से देश-विदेश में सनातन हिंदू धर्म का परचम लहरा रहे रहे थे जिससे लोग राष्ट्रवादी ओर उद्यमी बन रहे थे। राष्ट्रविरोधी ताकतों को ये रास नही आया। वे सबके सब 2008 से उनके पीछे लग गए और उनकी खूब बदनामी शुरू कर दी।


🚩वे एकबार हवाई जहाज से आ रहे थे तब उसी में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी भी थे। उन्होंने बताया कि बापू आप जो इतना जोरो से धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे है उसके कारण वेटिकन सिटी आपसे नराज है और सोनिया गांधी से मिलकर आपको जेल भेजने की तैयारी कर रही है। स्वामी ने आगे बताया कि उनको कोई परवाह नही थी भगवान में विश्वास था। आखिर यही हुआ कि सोनिया गांधी ने वेटिकन सिटी के इशारे पर जेल भिजवाया और विदेशी फंड से मीडिया द्वारा खूब बदनाम करवाया।

🚩सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि पूरा केस बोगस है क्योंकि जिस समय की घटना लड़की बता रही है उस समय तो वह फोन पर अपने मित्र से बात कर रही थी और आशारामजी बापू अपने एक कार्यक्रम में व्यस्त थे उसके फोटोज भी है और 50 लोग गवाह भी है फिर भी उनको षड्यंत्र के तहत 25 अप्रैल 2018 में उम्रकैद की सजा दे दी। ये वेटिकन सिटी की जीत थी और इतिहास का काला दिवस था जो सनातन धर्म के प्रचार रथ को रुकवा दिया। बापूजी 7 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद है लेकिन एक दिन भी जमानत नही दी गई जबकि बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत दे दी जाती है।

🚩आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नही दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और कभी बाहर नहीं आ पाओगे पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।

🚩इन सब तथ्यों से साबित होता है कि बापू आशारामजी को षड्यंत्र के तरह फ़साया गया है और इसमें मुख्यरूप से धर्मान्तरण पर रोक लगाने पर ये सब हुआ, ये सभी टीवी चैनल के मालिक जानते है पर उनको उनके खिलाफ खबर चलाने की भारी फंडिग मिलती है इसलिए उनके एंकरों को जैसे बोलते है वैसे वे करते है उनको तो नोकरी करनी है परिवार पालना है देश-धर्म से कोई लेना देना है नही इसलिए वे बापू आशारामजी को बदनाम करते है और भोले-भाले हिंदू उनकी बातों में आकर उनकी बात सच मानकर अपने धर्मगुरुओं को गलत मानने लग जाते है।

🚩अभी भी समय है हिंदू साधु-संतों पर हो रहे अत्याचार को मिलकर रोकना होगा तभी सनातन धर्म बचेगा। और धर्म होगा तभी मानवता जीवित रहेगी और राष्ट्र सुरक्षित रहेगा।

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