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Friday, January 15, 2021

हलाल का आर्थिक चक्रव्यूह, राष्ट्र पर संकट?

15 जनवरी 2021


मुसलमानों द्वारा प्रत्‍येक पदार्थ अथवा वस्‍तु इस्‍लाम के अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ होने की मांग की जा रही है । उसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र)’ लेना अनिवार्य किया गया । इसके द्वारा इस्‍लामी अर्थव्‍यवस्‍था अर्थात ‘हलाल इकॉनॉमी’ को धर्म का आधार होते हुए भी बहुत ही चतुराई के साथ निधर्मी भारत में लागू किया गया। अब तो यह हलाल प्रमाणपत्र केवल मांसाहार तक सीमित न रहकर खाद्यपदार्थ, सौंदर्य प्रसाधन, औषधियां, चिकित्‍सालय, गृह से संबंधित आस्‍थापन और मॉल के लिए भी आरंभ हो गया है । भविष्‍य में स्‍थानीय व्‍यापारी, पारंपरिक उद्यमी, साथ ही अंततः राष्‍ट्र के लिए क्‍या संकट खडा हो सकता है, इस पर विचार करना आवश्‍यक है ।




■ हलाल और हराम क्या है ?

हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'अनुमेय या वैध'। दूसरी ओर, हराम एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'निषिद्ध या अवैध'।

■ कुरान में वर्णित हलाल प्रक्रिया...

केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही जानवर को मार सकता है। कई जगहों पर यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर यहूदी और ईसाई हलाल प्रक्रिया का पालन कर जानवरों को मारते हैं, तो यह मांस इस्लामिक नियमों के अनुसार हलाल है। तेज चाकू की मदद से जानवर की नस, गर्दन और सांस की नली इस तरह से काटें कि जानवर का सर धड़ से अलग न हो। जानवर को मारते समय कुरान की आयत अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। भारत में, लगभग दर्जन भर कंपनियाँ हलाल सर्टिफिकेशन देती हैं जो इस्लाम के अनुयायियों के लिए खाद्य या उत्पादों के इस्तेमाल की अनुमति देता है। 

भारत में महत्वपूर्ण हलाल सर्टिफिकेशन कंपनियां हैं:

1- हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड।

2- हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड।

3- जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र- जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई।

4- जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट।

हलाल सर्टिफिकेशन के बाद उत्पादों की कीमत बढ़ जाती है क्योंकि पूरी प्रक्रिया में पैसे लगते हैं जो कंपनियां ग्राहकों से वसूलती हैं। हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कई प्रक्रियाओं में गैर-मुस्लिमों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं, जैसे हलाल स्लॉटरहाउस।
भारत सरकार के ‘कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority)’ या APEDA ने अपने रेड मीट मैन्युअल में से ‘हलाल’ शब्द को ही हटा दिया है और इसके बिना ही दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर ली गई राशि को जमीअत उलेमा-इ-हिन्द कहाँ खर्च करती है, इसके बारे में बताते हैं स्वराज्य के वरिष्ठ संपादक अरिहंत पवरिया जी। 19 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित हुए अपने लेख में वो बताते हैं कि किस प्रकार जमीअत उलेमा-इ-हिन्द आतंकवाद के मामलों में आरोपी एक समुदाय विशेष के लोगों को लगातार कानूनी समर्थन प्रदान करता है और इस बात की पुष्टि वह स्वयं अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की गई सूची से करते हैं। 


जिन कंपनियों के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इस्लामिक कन्ट्रीज में मौजूद हैं, उन्हें हलाल सर्टफिकेशन लेने के लिए एक निश्चित राशि दान करनी पड़ती है । किसी चैरिटेबल संगठन को, लेकिन अपनी पसंद की नहीं। यहाँ भी हलाल समितियों द्वारा दी गई चैरिटेबल संगठनों की सूची को ही इस्तेमाल में लाया जाता है। मज़े की बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र ने इनमें से कुछ चैरिटेबल संगठनों को आतंकवादी समूह घोषित किया हुआ है।

जनता द्वारा हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए।

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Monday, June 8, 2020

हलाल प्रमाणन प्रोडक्ट लेते है तो सावधान, पहले सच्चाई जान लीजिए

08 मई 2020 

🚩 हाल ही में हलाल प्रमाणन के मामले पर बहुत कुछ कहा गया है। एक कथित विज्ञापन को लेकर हुए बवाल के बाद जिसमें ये क्लेम था कि जैन बेकरी में किसी भी मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया है। जिसके बाद चेन्नई में जैन बेकरी के मालिक की गिरफ्तारी भी हुई। इस गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वो विज्ञापन ही फोटोशॉप करके दुर्भावना के कारण वायरल किया गया था। गूगल पर सर्च करने पर दुकान बंद करने की भी नौबत आ गई। इसी की प्रतिक्रिया परिणाम स्वरूप सोशल मीडिया पर हलाल उत्पादों का बहिष्कार करने की माँग बढ़ गई है। 

 इस्लामिक मीडिया पोर्टल मिल्ली गज़ेट ने दावा किया कि इस तरह की माँगें ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘कट्टरपन’ को दर्शाती हैं, हालाँकि इस की निंदा का कोई असर इस बहिष्कार की माँग पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। 

🚩 ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कट्टरता है? क्या इस तरह की माँगें इस्लामोफोबिया हैं? क्या चेन्नई पुलिस द्वारा जैन बेकरी के मालिक को गिरफ्तार करना ठीक था? क्या इस तरह कथित विज्ञापन निकालना अवैध या असंवैधानिक है? क्या हलाल प्रमाणीकरण का बहिष्कार करना अनैतिक है? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बात होनी चाहिए। 

🚩 जैसा कि हम पहले भी कई बार बता चुके हैं कि हलाल प्रमाणन एक तरह का भेदभाव है। यह मांस उद्योग पर मुसलमानों के लिए एकाधिकार स्थापित करता है। जब मुसलमान इस बात पर जोर देते हैं कि हलाल मीट ही खाना चाहिए, इसके साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जहाँ से आप मांस खरीद रहे हैं। उस प्रतिष्ठान पर केवल मुस्लिम कर्मचारी ही कार्य करते हैं, क्यों कि उनका मानना है कि हलाल केवल मुसलमान ही इसे तैयार कर सकता है। इस तरह हलाल मीट सिर्फ भोजन सामग्री ही नहीं रह जाता बल्कि यह एक ही समुदाय के लोगों को रोजगार सुनिश्चित करने का तरीका भी है। 

🚩 जो जानवर इस्लामी नियमों के अनुसार कत्ल किए जाते हैं सिर्फ उन्ही को हलाल माना जा सकता है, क्योंकि उसे कत्ल करने से पहले कुरान की आयत पढ़ी जाती है और हलाल का मतलब होता है "गला रेतकर तड़पा तड़पा कर मारना" वहीं गैर-मुस्लिम द्वारा किया गया कोई भी कत्ल इसकी परिभाषा के अनुसार हलाल नहीं माना जाता। इस तरह हलाल मीट को ही खाने योग्य बताना दुर्भावनापूर्ण और गुमराह करने वाली मानसिकता को दर्शाता है। हलाल प्रमाणन मीट उद्योग में मुसलमानों के लिए एकाधिकार भी स्थापित करता है। 

🚩 हालाँकि, शाकाहारी उत्पादों के प्रमाणन प्रक्रिया हलाल प्रमाणन से थोड़ी सी भिन्न है, जबकि मूल प्रक्रिया समान है। प्रमाणन के लिए एक प्रतिष्ठान को हलाल प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए एक इस्लामी प्रमाणन प्राधिकरण को एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार यदि कोई व्यावसायिक संस्थान मुस्लिमों के साथ व्यापार करना चाहता है, तो उन्हें पहले मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ को ‘हफ्ता’ देना होगा। 

🚩 वास्तव में इस तरह के प्रमाण पत्र प्राप्त करने की लागत को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों तरह के ग्राहकों से वसूल किया जाता है। इस प्रकार गैर-मुस्लिम ग्राहक मुस्लिम समुदाय के ‘ठेकेदारों’ की आजीविका का माध्यम हैं। 

🚩 इन स्थितियों को देखते हुए यह समझना आसान है कि गैर-मुस्लिम इस तरह की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं होंगे। गैर मुस्लिम मुसलमानों की मजहबी मान्यताओं के कारण भुगतान के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि हलाल प्रमाणीकरण साफ तौर पर एक आर्थिक गतिविधि है, इसलिए विरोध भी आर्थिक क्षेत्र में होगा। इस प्रकार, हमारे तीन सवालों का जवाब दिया जा चुका है। 

🚩 अब आगे बात करे तो, अगले सवाल का जवाब है कि हलाल उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करना कोई गलत बात नहीं है और यह निश्चित रूप से ‘इस्लामोफोबिया’ नहीं है और ये अनैतिक भी नहीं है। इसलिए हर एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सभी प्रकार के भेदभावों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए। 

🚩 अब हम अन्य दो प्रश्नों की ओर आते हैं जो मुस्लिम कर्मचारियों को न रखने वाले कथित विज्ञापन की संवैधानिकता व वैधता की बात करते हैं और चेन्नई पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी पर सवाल खड़ा करते हैं। हलाल मीट पर जोर देना आर्थिक बहिष्कार का ही एक रूप है। मुस्लिम उपभोक्ता मीट उद्योग में केवल मुसलमानों की भर्ती के लिए मुसलमानों को ही प्रोत्साहित करते हैं। 

🚩 इससे यह प्रभाव पड़ेगा कि मीट इंडस्ट्री हलाल मीट का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देगी, क्योंकि ज्यादातर उपभोक्ताओं को हलाल मीट खाने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन मुसलमान कभी गैर-हलाल मीट नहीं खाएगा। इस प्रकार हलाल मीट कारोबार का दायरा ज्यादा बढ़ जाता है। इसी प्रकार की व्यवस्था को नसीम निकोलस तालेब के शब्दों में ‘अल्पसंख्यकों की तानाशाही’ कहा गया है। 

🚩 इस प्रकार, मुसलमानों की हलाल मीट की माँग के कारण मीट इंडस्ट्री का झुकाव सिर्फ हलाल मीट के उत्पादन की तरफ है। इस तरह मुस्लिम समुदाय को मांसाहार में गैर-मुस्लिमों के साथ भारी भेदभाव करके रोजगार में एकाधिकार देता है। जितनी कि यह व्यवस्था खतरनाक है उनता ही देश का संविधान इस पर मौन है। 

🚩 इस तरह के मामलों में आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि तथ्य यह है कि मीट उत्पादों पर हलाल प्रमाणीकरण का नियम यह घोषणा करता है कि मीट उत्पाद बनाने में किसी गैर-मुस्लिम को काम पर नहीं रखा गया था। इसलिए यदि व्यावसायिक प्रतिष्ठान बिना किसी कानूनी भय और संविधान की सहमति से गैर-मुस्लिमों को रोजगार से वंचित करने की खुली घोषणा कर सकते हैं, तो किसी गैर मुस्लिम प्रतिष्ठान के द्वारा इसी तरह की घोषणा करने पर कार्रवाई क्यों की जानी चाहिए? 

🚩 अगर हलाल प्रमाणीकरण कानूनी है, तो अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी यह अधिकार है कि वह भी अपने प्रतिष्ठान में धर्म के आधार पर मुसलमानों को रोजगार देने से इनकार कर सकता है। यदि मुस्लिम समुदाय मीट उद्योग में मुसलमानों के रोजगार को प्रोत्साहित कर सकता है, जो हलाल मीट अनिवार्य रूप से जोर देता है, तो गैर-मुस्लिमों को भी अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में विशेष धर्म के लोगों को नौकरी पर रखने के लिए प्रोत्साहित करने का अधिकार है। 

🚩 यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है तो, उदाहरण के तौर पर अगर कोई हिंदू ज़ोमैटो या अमेज़ॅन या किसी ई-कॉमर्स सेवा पर मुस्लिम डिलीवरी वाले व्यक्ति से डिलीवरी नहीं लेता है, तो ऐसा करना एक ग्राहक के रूप में उनका अधिकार है। 

🚩 गैर-मुस्लिम अन्य मोर्चों पर भी इस तरह विचार कर सकता है, यदि वे अपने स्वयं के धर्म वाले विक्रेताओं से किराने का सामान और सब्जी खरीदना चाहते हैं, तो ऐसा करना उनका अधिकार है। यदि हलाल कानूनी और संवैधानिक है, तो ऐसा व्यवहार कानूनी रूप से या नैतिक रूप से गलत नहीं है। जब तक हलाल की भेदभावपूर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित है, तब तक यह पूरी तरह से उचित है। 

🚩 भारतीय संविधान में समानता को परिभाषित किया गया है और समानता के सिद्धांत निर्धारित करते हैं कि प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समान होना चाहिए। हालाँकि, पुलिस कभी-कभी यह भूल जाती है कि जैन बेकर्स के मालिक की गिरफ्तारी और झारखंड में हिंदू विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कहीं न कहीं एकतरफा प्रतिक्रिया है। 

🚩 यह उल्लेख करना भी उचित है कि इन दोनों अवसरों पर कुछ मुसलमानों द्वारा सोशल मीडिया पर आपत्ति दर्ज कराने पर पुलिस ने कार्रवाई की है। मुस्लिम समुदाय को यह अहसास होना चाहिए कि यदि वे आर्थिक मोर्चे पर गैर-मुस्लिमों के खिलाफ सक्रिय रूप से भेदभाव करते हैं, तो दूसरा पक्ष भी समान रूप से जवाबी कार्रवाई का अधिकार रखता है। 

🚩 यह इस्लामोफोबिया नहीं है, यह प्रतिक्रिया का स्वाभाविक नियम है। मुस्लिम समुदाय को यह भी अहसास होना चाहिए कि गैर-मुस्लिम उनके धार्मिक विश्वासों को सब्सिडी देने के लिए बाध्य नहीं हैं और उन्हें उम्मीद करना भी बंद कर देना चाहिए। 

🚩 दुर्भाग्यवश मुस्लिम समुदाय ने पीड़ितों की तरह रोने की आदत बना ली है, जबकि वो हर तरफ हावी हैं। भारतीय कानून एजेंसियों को इस तरह की आपत्तियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, क्योंकि इस तरह की कार्रवाई निश्चित रूप से समुदायों के बीच भेदभाव व कड़वाहट पैदा करती है।

🚩 मुस्लिम समुदाय यदि तर्क में यकीन रखता है तो उम्मीद है कि मुस्लिम समुदाय को अपने भेदभाव पूर्ण व्यवहार एहसास होगा और वे भेदभावपूर्ण प्रथाओं को या तो छोड़ देंगे या दूसरे को भी वैसा ही अधिकार देने पर सहमत होंगे। अंत में इतना ही कि इन सभी बातों पर विचार किया जाना चाहिए, जिसमें कि पूरे देश की भलाई है।

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