*समाज को गुमराह करने वाले लोग संतों का ओज, प्रभाव, यश देखकर जलते रहते हैं*
इस संसार में सज्जनों, सत्पुरुषों और संतों को जितना सहन करना पड़ता है उतना दुष्टों को नहीं। ऐसा मालूम होता है कि इस संसार ने सत्य और सत्त्व को संघर्ष में लाने का मानो ठेका ले रखा है। यदि ऐसा न होता तो #मीरा बाई को #विष नही दिया जाता, #गुरु नानक देव को #जेल नही भेजा जाता, #स्वामी दयानंद सरस्वती को #जहर नही दिया जाता और #लक्ष्मणानन्द महाराज की #हत्या नही होती ।
#jUSTICE FOR ASARAM BAPUJI |
#स्वामी विवेकानन्द की तेजस्वी और अद्वितिय प्रतिभा के कारण कुछ लोग #ईर्ष्या से जलने लगे। कुछ दुष्टों ने उनके कमरे में एक वेश्या को भेजा। #श्री रामकृष्ण परमहंस को भी #बदनाम करने के लिए ऐसा ही #घृणित प्रयोग किया गया, किन्तु उन वेश्याओं ने तुरन्त ही बाहर निकल कर दुष्टों की बुरी तरह खबर ली और दोनों संत विकास के पथ पर आगे बढ़े। शिर्डीवाले #साँईबाबा, जिन्हें आज भी लाखों लोग नवाजते हैं, उनके हयातिकाल में उन पर भी दुष्टों ने कम जुल्म न किये। उन्हें भी अनेकानेक #षडयन्त्रों का #शिकार बनाया गया लेकिन वे निर्दोष संत निश्चिंत ही रहे।
पैठण के #एकनाथ जी महाराज पर भी दुनिया वालों ने बहुत #आरोप-प्रत्यारोप गढ़े लेकिन उनकी विलक्षण मानसिकता को तनिक भी आघात न पहुँचा अपितु प्रभुभक्ति में मस्त रहने वाले इन संत ने हँसते-खेलते सब कुछ सह लिया। #संत तुकाराम महाराज को तो बाल मुंडन करवाकर गधे पर उल्टा बिठाकर जूते और चप्पल का हार पहनाकर पूरे गाँव में घुमाया, #बेइज्जती की एवं न कहने योग्य कार्य किया। #ऋषि दयानन्द के ओज-तेज को न सहने वालों ने बाईस बार उनको जहर देने का #बीभत्स कृत्य किया और अन्ततः वे नराधम इस घोर पातक कर्म में सफल तो हुए लेकिन अपनी सातों पीढ़ियों को नरकगामी बनाने वाले हुए।
हरि गुरु निन्दक दादुर होई।
जन्म सहस्र पाव तन सोई।।
ऐसे #दुष्ट #दुर्जनों को हजारों जन्म #मेंढक की योनि में लेने पड़ते हैं। ऋषि दयानन्द का तो आज भी आदर के साथ स्मरण किया जाता है लेकिन संतजन के वे हत्यारे व पापी निन्दक किन-किन नरकों की पीड़ा सह रहे होंगे यह तो ईश्वर ही जाने।
#समाज को #गुमराह करने वाले #संतद्रोही लोग संतों का ओज, प्रभाव, यश देखकर अकारण #जलते पचते रहते हैं क्योंकि उनका स्वभाव ही ऐसा है। जिन्होंने संतों को सुधारने का ठेका ले रखा है उनके जीवन की गहराई में देखोगे तो कितनी दुष्टता भरी हुई है!अन्यथा #सुकरात, #जीसस, #ज्ञानेश्वर, #रामकृष्ण, #रमण महर्षि, #नानक और #कबीर जैसे संतों को कलंकित करने का पाप ही वे क्यों मोल लेते? ऐसे लोग उस समय में ही थे ऐसी बात नहीं, आज भी मिला करेंगे।
कदाचित् इसीलिए विवेकानन्द ने कहा थाः "जो अंधकार से टकराता है वह खुद तो टकराता ही रहता है, अपने साथ वह दूसरों को भी अँधेरे कुएँ में ढकेलने का प्रयत्न करता है। उसमें जो जागता है वह बच जाता है, दूसरे सभी गड्डे में गिर पड़ते हैं।
इस संसार का कोई विचित्र रवैया है, रिवाज प्रतीत होता है कि इसका अज्ञान-अँधकार मिटाने के लिए जो अपने आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं। टीका, टिप्पणी, निन्दा, गलच चर्चाएँ और अन्यायी व्यवहार की आँधी चारों ओर से उस पर टूट पड़ती है।
सत्पुरुषों की स्वस्थता ऐसी विलक्षण होती है कि इन सभी बवंडरों (चक्रवातों) का प्रभाव उन पर नहीं पड़ता। जिस प्रकार सच्चे सोने को किसी भी आग की भट्ठी का डर नहीं होता उसी प्रकार संतजन भी संसार के ऐसे कुव्यवहारों से नहीं डरते। लेकिन उन संतों के प्रशंसकों, स्वजनों, मित्रों, भक्तों और सेवकों को इन अधम व्यवहारों से बहुत दुःख होता है।
#आज के युग मे सबसे अधिक #गुमराह करने का काम करी है तो वे है #मीडिया, मीडिया #कलोकल्पित #कहानियां बनाकर जनता में इस तरह की पिरोस रही है कि सज्जन लोग भी उसकी बातों में आकर संतों-महापुरुषों को गलत बोल देते है, अतः उनके भक्त दुःखी, चिंतित नही होकर समाज तक सच्चाई पहुँचाये, एक न एक दिन #सच सामने आयेगा और #झूठी खबरों की #पोल खुल जायेगी ।
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