14 जनवरी 2017
मकर संक्रान्ति पर बना दुर्लभ योग..!!
क्या करें..?
क्या महत्व है..?
आइये जाने...
पंचाग की गणना के अनुसार इस बार विशिष्ट संयोगों में बृहस्पति का #सूर्य से पंचम दृष्टि संबंध तथा सूर्य का बृहस्पति से नवम दृष्टि संबंध बन रहा है। बारह वर्ष में आने वाले इस प्रकार के दृष्टि संबंध का विशेष #लाभ लोगों को प्राप्त होता है।
इस योग में सूर्य के साथ #भगवान नारायण का भी ध्यान कर आराधना करनी चाहिए। इस दिन #आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्य स्त्रोत, सूर्याष्टक आदि का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है। इनके #पाठ से वंशवृद्धि पराक्रम में वृद्धि तथा #परिवार का उत्कर्ष होता है।
महाकाल पर्व रहेगा शुभप्रद..!!
इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर #शनिवार के दिन 14 जनवरी को प्रात: 7 बजकर 38 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र प्रीति योग एवं कर्क राशि के चंद्रमा के साक्षी में मकर लग्न में भगवान सूर्य नारायण का #मकर राशि में प्रवेश होगा, चूंकि उदयकाल की साक्षी में होने वाले इस प्रवेशकाल का #धर्म शास्त्रीय महत्त्व है। इस दृष्टि से #मकर #संक्रान्ति का #महापर्वकाल विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व #पुण्यकाल की दृष्टि से दिनभर रहेगा।
ज्योतिष के अनुसार शनि देव को मकर और कुंभ राशि का स्वामी कहा गया है। ऐसे में शनि देव के प्रिय वार शनिवार को उनकी राशि में पिता सूर्य का आना शनि महाराज को मेहरबान और कृपालु बनाने के लिए उत्तम रहेगा। #लंबे अर्से के बाद ये शुभ संयोग बना है। शनिवार को मकर संक्रांति का पड़ना एक दुर्लभ संयोग माना जाता है।
संक्रान्ति का नक्षत्र राक्षसी नाम से है। जो कमजोर वर्ग पशु पालक आदि के लिए #शुभ प्रद रहेगी। यही नहीं रक्त वस्त्र, धनुष आयुध, लौहपात्र, पय भक्षण, गौरोचन, मृगवर्णी, कंचूकी, प्रथम यान, व्यापिनी उत्तर की ओर गमन करनेवाली ईशानदृष्ट के साथ पन्द्रह मुहूर्त में बैठेगी। देखा जाए तो जियोलॉजिकल, बॉयोलॉजिकल एवं अर्थ मेट्रिक सिद्धांत शास्त्र के अनुसार रेडियो कार्बन विधि में सूर्य जब-जब मकर राशि में प्रवेश होता है, तो वह अगले मकर वर्ष के लिए प्राकृतिक नियम से जोड़कर संतुलन की स्थिति में लाता है।
12 राशि धारकों के लिए दस गुना फलदायक होगा। #मकर संक्रान्ति यानी 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगें। पिता-पुत्र के मिलन का लाभ लगभग दो महीने तक रहेगा ।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही मलमास समाप्त हो जाएगा। इसके साथ ही #शुभ कार्यो की शुरुवात भी 14 जनवरी से ही हो जाएगी। इसबार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
मकर प्रवेश के साथ ही #सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग व चंद्रमा कर्क राशि में और अश्लेषा नक्षत्र के अलावा प्रीति तथा मानस योग भी रहेगा।
इन नक्षत्रों का योग बेहद शुभ दुर्लभ और श्रेष्ठ है। #इस योग से संक्रान्ति पर 12 राशियों के धारकों को दस गुना फलदायी हो सकता है।
क्या करे मकर संक्रांति को..???
14 जनवरी - मकर संक्रांति ( पुण्यकालः सूर्योदय से सूर्यास्त)
मकर संक्रांति या #उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया #दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।
मकर संक्रांति के दिन साल का पहला #पुष्य नक्षत्र है मतलब खरीदारी के लिए बेहद शुभ दिन।
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के
इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।
ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः ।
ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः । ॐ भास्कराय नमः ।
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।
यदि नदी तट पर जाना संभव नही है, तो अपने घर के स्नान घर में #पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित जल से स्नान करें। साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें। साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु #क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें।
तिल का महत्व..!!
विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन #तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है।
तिल के तेल से स्नान करना। #तिल का उबटन लगाना। पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना। तिल की आहूति देना। तिल का दान करना। तिल का सेंवन करना।
मकर संक्रांति का महत्व क्यों..???
हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन #संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं ।
इसमें से एक है मकर संक्रांति..!!
हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। #पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है।
मकर संक्रांति के दिन #सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।
सूर्य पर आधारित #हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व माना गया है। वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं #मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। मकर संक्रांति का महत्व #हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय।
सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे #भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।
इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो #नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। #इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और #गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नही माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र #गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में #पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि #उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।
दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है। #पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है। इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है। क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं?
क्या ये हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है?
स्वयं भगवान #श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए #गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग #ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक-24-25)