Sunday, January 7, 2018

राजस्थान पुलिस किसके इशारे पर कर रही है हिन्दुओं पर अत्याचार?


January 7, 2018

राजस्थान में हिन्दुओं ने कोंग्रेस से तंग आकर भाजपा को बहुतम से जिताया और वसुधंरा राजे मुख्यमंत्री बनी, भापजा सरकार आते ही हिन्दू संगठन एवं हिंदुत्वनिष्ठों ने खूब जश्न मनाया कि अब हम पर अत्यचार बंद होगा और अपराधियों को सजा होगी।
Rajasthan police is doing it at the behest of Hindus?

लेकिन राजस्थान में कुछ समय से देख रहे है कि उससे उल्टा हो रहा है, हिन्दुओं का दमन किया जा रहा है और उपद्रवियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

जयपुर में दंगे पर पुलिस चुप

कुछ दिन पहले की घटना है जयपुर में रामगंज में एकतरफा यातायात था। जाम होने के कारण पुलिसकर्मियों ने लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान एक पुलिसकर्मी ने डंडे से हटाना शुरू किया तो साइकिल पर सवार मुस्लिम की पत्नी को भीड़ के कारण पीछे से डंडा लग गया, फिर वहीं हंगामा शुरू हो गया, बाद में वहाँ से पुलिस थाने गये और मुस्लिम पति ने कई मुसलमानों को बुलाकर बेरहमी से घायल होने तक पुलिस वाले को पीटा, फिर पुलिस थाने में आग लगा दी और जुलूस निकालकर पत्थरबाजी की, जिसमें कई पुलिस कर्मी घायल हो गये, कर्फ्यू लग गया।

बाद में उन उपद्रवियों के ऊपर किया गया केस भी वापिस ले लिया गया।

उदयपुर में हिंदुत्वनिष्ठों को भेजा जेल

दूसरी घटना है उदयपुर के पास राजमंद की, वहाँ की एक बेटी को जिहादी उठाकर ले गया तो उसकी शंभूलाल ने हत्या कर दी, उसके बाद उदयपुर में भारी मात्रा में मुसलमानों ने जुलूस निकाला जिसमें नारे लगाये कि हिन्दुस्तान में रहना होगा तो अल्लाहु अकबर कहना होगा। भारत ख्वाजा का देश है आदि आदि, देश विरोधी नारे लगाये गए । उसके बाद उपदेश राणा एवं हिन्दू संगठनों ने इन देशद्रोहियों के खिलाफ आवाज उठाई तो उनको जेल में डाल दिया गया।

जोधपुर में हिन्दू महासभा पर लाठीचार्ज

तीसरी घटना है जोधपुर की है मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शहर में खुलेआम नारे लगाए कि हिंदुस्तान में रहना होगा तो अल्ला हो अकबर कहना होगा इस पर प्रशासन द्वारा कार्यवाही न करने पर इसका विरोध शिवसेना के जिला प्रमुख सम्पत जी पुनिया और हिन्दू महासभा ने किया और जय श्री राम के नारे लगाये इसपर पुलिस ने अंधाधुंध लाठीचार्ज कर दिया। दूसरी ओर मुस्लिमों की गुस्ताखी का उनके पास कोई जवाब नहीं था।

बापू आसारामजी के भक्तों पर हुआ भयंकर लाठीचार्ज

हिन्दू संत बापू आसारामजी बापू जोधपुर जेल में 4 साल और 5 महीने से बिना सबूत बंद है उनकी जोधपुर सेंशन कोर्ट में सुनवाई चल रही है। बापू आसाराम के भक्त उनके दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में वहाँ पहुँचते है, वे शांतिपूर्ण दर्शन करते है लेकिन पुलिस उन पर बर्बरता से लाठीचार्ज करती है, शनिवार ( 6 जनवरी 2017) को बापू आसारामजी जब कोर्ट परिसर से निकल गये तो वहाँ उनकी भक्त महिलाओं एवं बच्चों पर भयंकर लाठीचार्ज किया गया, जिसका वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा ने बचाव किया तो उनको ही
उदयमंदिर थानाधिकारी मदन बेनीवाल ने धक्का लगा दिया और बहसबाजी करने लगा ।

राजस्थान के जोधपुर और उदयपुर में खुलेआम नारे लगे कि "हिंदुस्तान में रहना होगा तो अल्ला हो अकबर कहना होगा" । जिसने देश के करोड़ो हिन्दुओ के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंचाई। लेकिन पुलिस को ये गैर क़ानूनी नहीं लगा और प्रशासन आँख बंद करके देखता रहा। जैसे ही हिन्दू संगठनों ने विरोध किया तो पुलिस ने उनपर अंधाधुंध लाठीचार्ज कर दिया।

मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही करने की पुलिस में  हिम्म्मत नही थी। राज्य में हिन्दुओं की सरकार होने के बावजूद भी हिन्दू संगठन के लोगों के साथ हो रहे अन्याय पर वसुंधरा सरकार क्यों चुप्पी साधे हैं ??


क्यों बार-बार माहौल खराब करने वाले कट्टर मजहबियों के खिलाफ करवाई नहीं कर रही है..??

क्या राजस्थान सरकार भी बंगाल की ममता सरकार की तरह हिंदुओं को दबाने की कोशिश कर रही है ??
क्या अब हिन्दू अपने ही राष्ट्र में सुरक्षित नहीं ??
आखिर क्यों राजस्थान सरकार जगह-जगह हिंदुओं पर हो रहे लाठीचार्ज पर चुप है ??

 जिस देश में हिंदुओं ने अपनी रक्षा के लिए और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए हिन्दूवादी सरकार चुनने में दिन-रात मेहनत की, उन #हिंदुत्वनिष्ठों को आज अपने ही देश में सुरक्षा नही मिल रही है  ।

क्या BJP सरकार सिर्फ नाम की हिंदुत्ववादी है ???

आज हिन्दुत्वनिष्ठों का एक ही कहना है कि अगर राजस्थान सरकार को अगली बार भी जीत हासिल करनी है तो हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार बन्द करें और देशद्रोहियों पर कड़ी कार्यवाही करें।

Saturday, January 6, 2018

जानिए भीमा कोरेगांव की घटना की वास्तविकता क्या है? उसके पीछे कौन षडयंत्र कर रहा है

January 5, 2018

महाराष्ट्र पुणे के समीप भीमा कोरेगांव में एक स्मारक बना हुआ है। कहते हैं कि आज से 200 वर्ष पहले इसी स्थान पर बाजीराव पेशवा द्वितीय की फौज को अंग्रेजों की फौज ने हराया था। महाराष्ट्र में दलित कहलाने वाली महार जाति के सैनिकों ने अंग्रेजों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। हम इस लेख में यह विश्लेषण करेंगे कि युद्ध का परिणाम क्या था और कौन इसका राजनीतिक लाभ उठा रहा हैं।
Know what is the reality of the incident of Bhima Koregaon? Who is conspiring behind him

इतिहास में लड़ी गई अनेक लड़ाईयों के समान ही यह युद्ध भी एक सामान्य युद्ध के रूप में दर्ज किया गया था। डॉ अम्बेडकर ने 1927 में कोरेगांव जाकर 200 वर्ष पहले हुए युद्ध को महार दलितों की ब्राह्मण पेशवा पर जीत के समान चर्चित करने का प्रयास किया था। जबकि यह युद्ध था विदेशी अंग्रेजों और भारतीय पेशवा के मध्य। इसे जातिगत युद्ध के रूप में प्रचलित करना किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता। अंग्रेजों की सेना में सभी वर्गों के सिपाही थे। उसमें महार रेजिमेंट के सिपाही भी शामिल थे। पेशवा की फौज में भी उसी प्रकार से सभी वर्गों के सिपाही थे। जिसमें अनेक मुस्लिम भी शामिल थे। युद्ध केवल व्यक्तियों के मध्य नहीं लड़ा जाता। युद्ध तो एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा से होता है। फिर इस युद्ध को अत्याचारी ब्राह्मणों से पीड़ित महारों के संघर्ष गाथा के रूप में चित्रित करना सरासर गलत हैं। क्यूंकि इस आधार पर तो 1857 की क्रांति को भी आप सिख बनाम ब्राह्मण (मंगल पांडेय जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश के सिपाही) के रूप में चित्रित करेंगे।  इस आधार पर तो आप दोनों विश्वयुद्धों को भी अंग्रेजों की विजय नहीं अपितु भारतीयों की विजय कहेंगे। क्यूंकि दोनों विश्वयुद्ध में पैदल चलने वाली टुकड़ियों में भारतीय सैनिक बहुत बड़ी संख्या में शामिल थे।

इससे यही सिद्ध होता हैं कि यह एक प्रकार से पेशवाओं को ब्राह्मण होने के नाते अत्याचारी और महार को दलित होने के नाते पीड़ित दिखाने का एक असफल प्रयास मात्र था।

अब हम यह विश्लेषण करेंगे कि वास्तव में कोरेगांव के युद्ध में क्या हुआ था। सत्य यह है कि कोरेगांव के युद्ध में अंग्रेजों को विजय नहीं मिली थी। जेम्स ग्रैंड डफ़ नामक अंग्रेज अधिकारी एवं इतिहासकार लिखते है कि "शाम को अँधेरा होने के बाद जितने भी घायल सैनिक थे उनको लेकर कप्तान स्टैंटन गांव से किसी प्रकार निकले और पूना की ओर चल पड़े। रास्ते में राह बदल कर वो सिरोर की ओर मुड़ गए। अगले दिन सुबह 175 मृत और घायल सैनिकों के साथ वो अपने गंतव्य पहुंचे। अंग्रेजी सेना के एक तिहाई घोड़े या तो मारे जा चुके थे अथवा लापता थे। "

(सन्दर्भ-A History of the Mahrattas, Volume 3,By James Grant Duff page 437 )

क्या आप अंग्रेज इतिहासकार की बात भी नहीं मानेगे जो अपनी कौम को सदा विजयी और श्रेष्ठ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते? चलो हम मान भी लें कि अंग्रेजों को विजय मिली। तो भी इस युद्ध को हम 'दलित बनाम ब्राह्मण' किस आधार पर मानेंगे? कोरेगांव युद्ध में एक भी महार सिपाही का नाम किसी सेना के बड़े पद पर लिखा नहीं मिलता। यह यही दर्शाता है कि महार सैनिक केवल पैदल सेना के सदस्य थे। आपको यह जानकर भी अचरज होगा कि कोरेगांव युद्ध को अंग्रेजों ने कभी अपनी विजय तक नहीं माना। महार सैनिकों ने युद्ध में अंग्रेजों की ओर से भाग लिया। इसका ईनाम उन्हें आगे चल कर कैसे मिला। यह आगे जानेगे। 

बहुत कम लोग इतिहास के इस तथ्य को जानते हैं कि महार सैनिक मराठा सेना के अभिन्न अंग थे। छत्रपति शिवाजी की सेना में महार बड़ी संख्या में ऊँचें पदों पर कार्यरत थे। शिवांक महार को उनकी वीरता से प्रभावित होकर शिवाजी के पुत्र राजाराम ने एक गांव तक भेंट किया था। शिवांक महार के पोते जिसका नाम भी शिवांक महार था ने 1797 में परशुराम भाऊ की निज़ाम के साथ हुए युद्ध में प्राणरक्षा की थी। नागनक महार ने मराठों के मुसलमानों के साथ हुए युद्ध में विराटगढ़ का किला जीता था जिसके ईनाम स्वरुप उसे सतारा का पाटिल बनाया गया था।  बाजीराव पेशवा प्रथम की फौज में भी अनेक महार सैनिक कार्य करते थे। इससे यही सिद्ध हुआ कि अंग्रेजों की सेना के महार सैनिकों ने पेशवा की सेना के दलित/महार सैनिकों के साथ युद्ध किया था। पेशवा माधवराव ने अपने राज्य में बेगार प्रथा पर 1770 में ही प्रतिबन्ध लगा दिया था। आप सभी जानते है कि बहुत काल तक अंग्रेज हमारे देश के दलितों को बेगार बनाकर उन पर अत्याचार करते रहते थे। एक बार पेशवा के राज्य में किसी विवाद को लेकर ब्राह्मणों ने महारों के विवाह करवाने से मना कर दिया था। इस पर महारों ने पेशवा से ब्राह्मणों की शिकायत की थी। पेशवा ने ब्राह्मणों को महार समाज के विवाह आदि संस्कार करवाने का आदेश दिया था। न मानने वाले ब्राह्मण के लिए दंड और जुर्माने का प्रावधान पेशवा ने रखा था। यह ऐतिहासिक तथ्य आपको किसी पुस्तक में नहीं मिलते।

1857 के विपल्व में भी 100-200 महार सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था। 1894 तक आते आते अंग्रेजों ने महार सैनिकों को अपनी सेना में लेना बंद कर दिया था। अंग्रेजों ने महारों को अछूत घोषित कर सेना में लेने से मना कर दिया।  बाबा वलंगकर (जो स्वयं महार सैनिक थे) ने अंग्रेजों को पत्र लिखकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया था कि महार क्षत्रिय है और शिवाजी के समय से ही क्षत्रिय के रूप में सेना में कार्य करते आये हैं। जबकि अंग्रेज महारों को क्षत्रिय न मानकर अछूत मानते थे।  प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने कुछ महारों को सेना में स्थान दिया। मगर युद्ध के पश्चात फिर से बंद कर दिया। बेरोजगार महारों से बेगार कार्य करवाकर बिना सेवा शुल्क दिए अंग्रेजों के अदने से अदने अफसर उन्हें धमकी देकर भगा देते थे। डॉ अम्बेडकर ने महारों को सरकारी सेना में लेने और महार रेजिमेंट बनाने के लिए अंग्रेजों से नियम बनाने का प्रस्ताव भेजा था। बहुत कम लोग जानते है कि डॉ अम्बेडकर को इस कार्य में हिन्दू महासभा के वीर सावरकर और बैरिस्टर जयकर एवं डॉ मुंजे का साथ मिला था। वीर सावरकर ने तो रत्नागिरी में महार सम्मलेन की अध्यक्षता तक की थी। अंग्रेजों का लक्ष्य तो महारों का विकास करना नहीं अपितु उनका शोषण करना था।आगे 1947 के बाद ही डॉ अम्बेडकर द्वारा स्वतंत्र भारत में महार रेजिमेंट की स्थापना हुई। इससे अंग्रेज महारों के विकास के लिए कितने गंभीर थे। यह पता चलता है।

अभी तक यह सिद्ध हो चुका है कि न तो पेशवा की कोरेगांव में हार हुई थी।  न ही अंग्रेज कोई महारों के हितैषी न्यायप्रिय शासक थे। न ही पेशवा कोई अत्याचारी शासक थे। अब इस षड़यंत्र को कौन और क्यों बढ़ावा दे रहा हैं?  इस विषय पर चर्चा करेंगे। हमारे देश में एक देशविरोधी गिरोह सक्रिय हैं।  जो कभी जाति के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर, कभी इतिहास के नाम पर, कभी परम्परा के नाम पर देश को तोड़ने की साज़िश रचता रहता हैं।  इसके अनेक चेहरे हैं। नेता, चिंतक, लेखक, मीडिया, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक, शोधकर्ता, मानवअधिकार कार्यकर्ता, NGO, सेक्युलर, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आदि आदि।  इस जमात का केवल एक ही कार्य होता है। इस देश की एकता ,अखंडता और सम्प्रभुता को कैसे बर्बाद किया जाये। इस विषय में षड़यंत्र करना।  यह जमात हर देशहित और देश को उन्नत करने वाले विचार का पुरजोर विरोध करती हैं। इस जमात की जड़े बहुत गहरी है। आज़ादी से पहले यह अंगेजों द्वारा पोषित थी। आज यह विदेशी ताकतों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा पोषित हैं। संघ विचारक वैद्य जी द्वारा इसका नामकरण ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड यथार्थ रूप में किया गया है। जो अक्षरत: सत्य है। अब आप देखिये कोरेगांव को लेकर हुए दंगों को मीडिया दलित बनाम हिन्दू के रूप में चित्रित कर रहा हैं।  क्या दलित समाज हिन्दुओं से कोई भिन्न समाज है? दलित समाज तो हिन्दू समाज का अभिन्न अंग हैं। दलितों को हिन्दू समाज से अलग करने के लिए ऐसा दर्शाया जाता हैं।

यह कोई आज से नहीं हो रहा। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा 1924 में कांग्रेस के कोकानाडा सेशन में मुहम्मद अली (अली बंधू) ने मंच पर सार्वजानिक रूप से उस समय वास कर रहे 6 करोड़ दलित हिन्दुओं को आधा-आधा हिन्दुओं और मुसलमानों में विभाजित करने की मांग की थी। महात्मा गाँधी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। जबकि उस काल के सबसे प्रभावशाली समाज सुधारक एवं नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने मंच से ही दलित हिन्दुओं को विभाजित करने की उनकी सोच का मुंहतोड़ उत्तर दिया था। स्वामी श्रद्धानन्द ने उद्घोषणा की थी कि हिन्दू समाज जातिवाद रूपी समस्या का निराकरण कर रहा हैं और अपने प्रयासों से दलित हिन्दुओं को उनका अधिकार दिलाकर रहेगा।

1947 के पश्चात जातिवाद को मिटाने के स्थान पर उसे और अधिक बढ़ावा दिया गया। यह बढ़ावा इसी जमात ने दिया। जब दो भाइयों का आपस में विवाद होता है  तो तीसरा पंच बनकर लाभ उठाता है। यह प्रसिद्द लोकोक्ति है। आज भी यही हो रहा है। पहले जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है फिर दलितों को हिन्दुओं से अलग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।  आप स्वयं बताये आज देश में कहीं कोई दलित गले में मटकी लटकाएं और पीछे झाड़ू बांध कर चलता है। नहीं!
 क्या कोई दलित मुग़लों की देन मैला ढोहता है, नहीं!
आज आपको प्राय: सभी हिन्दू बिना जातिगत भेदभाव के एक साथ बैठ कर शिक्षा ग्रहण करते, भोजन करते, व्यवसाय करते दिखेंगे। बड़े शहरों में तो जातिवाद लगभग समाप्त ही हो चूका है। एक आध अपवाद अगर है भी, तो उसका निराकरण समाज में जातिवाद उन्मूलन का सन्देश देकर किया जा सकता हैं।

मगर दलित और सवर्ण के रूप में विभाजित कर जातिवाद का कभी निराकरण नहीं हो सकता। यह अटल सत्य है। दलित हिन्दू अगर हिन्दू समाज से अलग होगा तो उसको ये विदेशी ताकतें चने के समान चबा जाएगी। एकता में शक्ति है। यह सर्वकालिक और व्यावहारिक सत्य है। दलित हिन्दुओं को यह समझना होगा कि अपने निहित स्वार्थों के लिए भड़काया जा रहा हैं। जिससे हिन्दू समाज की एकता भंग हो और विदेशी ताकतों को देश को अस्थिर करने का मौका मिल जाये। 

आज हर हिन्दू अगर ईमानदारी से जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प ले, तो यह देशविरोधी जमात कभी अपने षड़यंत्र में सफल नहीं हो पायेगी। यही समय की मांग है और यही एकमात्र विकल्प भी हैं। अन्यथा भीमा कोरेगांव को लेकर हुई घटनाएं अगर अलग रूप में ऐसे ही सामने आती रहेगी। -डॉ विवेक आर्य

Friday, January 5, 2018

मीडिया देशहित में है या देश विरोधी? पढ़िए ताजा रिपोर्ट

January 5, 2018

 सभी भारतवासी जानते है कि अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक राज किया, देश को लूटने के साथ साथ भारतवासियों पर अनगिनत अत्याचार किये, बहन-बेटियों की इज्जत लूटी, मासूमों को सूली पर चढ़ाया । देश को गुलामी की इन जंजीरों से छुड़ाने के लिये भारत के असंख्य वीरों ने बलिदान दिया । जिसके फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ ।

पर आगे जाकर धीरे-धीरे लोग पश्चिमी संस्कृति की ओर आकर्षित होने लगे । शरीर से तो नहीं पर मानसिक रूप से उनके गुलाम बनते गये, भारत में कान्वेंट स्कूल के माध्यम से हिन्दू संस्कृति को नीचा और पाश्चात्य कल्चर को ऊंचा दिखाकर हमारी भावी पीढ़ी को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का जो उनका एजेंडा था इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली ।
Media is in the countryside or anti-national? Read the latest report

आज हम देख रहे हैं कि आज की भावी पीढ़ी अपनी संस्कृति से विमुख पाश्चात्य कल्चर की चकाचौंध से आकर्षित है, ऐसे कान्वेंट स्कूलों से पढ़कर निकलने वाले विद्यार्थियों में से कुछ आज भारत में पत्रकार बन चुके हैं । जिनका एक ही एजेंडा है किसी भी तरह हिन्दू संस्कृति, हिन्दू संतों, हिन्दू कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाना । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 80% से ऊपर मीडिया हाउस को फंडिग विदेश से होती है  ।


भारत को जितना नुकसान अंगेज नहीं पहुँचा पाए उससे भी ज्यादा नुकसान आज की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पहुँचा रही है अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ।

अगर आप गौर करेंगे तो आपको देखने को मिलेगा कि जो मीडिया होली पर पानी बचाने, दिवाली पर पटाखे, जन्माष्टमी पर दही-हांडी, शिवरात्रि पर दूध चढ़ाने के विरुद्ध campaign चलाती है  वो मीडिया ईसाईयों के त्यौहार 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक को खूब कवरेज देती है । जबकि इन दिनों में शराब पीना, मांस खाना, डांस पार्टियां करना, महिलाओं से छेड़खानी करना, बलात्कार के किस्से आदि और दिनों की अपेक्षा ज्यादा देखने को मिलते हैं ।भारत में 25 दिसम्बर से 1 जनवरी  के दौरान शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन, आत्महत्या जैसी घटनाएँ, किशोर-किशोरियों व युवक युवतियों की तबाही एवं अवांछनीय कृत्य खूब होते हैं। इस साल केवल दिल्ली में 31 दिसम्बर की रात को शराब की 30 करोड़ की खपत हुई ।

 दूसरी ओर हमारी भारतीय संस्कृति जहां 22 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों से भारत को मुक्त कराने के लिए अपने चार बेटों की कुर्बानी दी थी, दूसरा सबसे पहले क्रूर औरंगजेब के खिलाफ लड़ने वाले, उसकी तीन लाख सेना को धूल चटाने वाले वीर गोकुल सिंह 1 जनवरी को शहीद हो गये थे । ऐसी प्रेरणास्त्रोत खबरों को मीडिया कवरेज कभी नहीं मिला ।

हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिये हिन्दू संत आसाराम बापू ने देशभर में 2014 से  उनके करोड़ो अनुयायियों द्वारा "25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक तुलसी पूजन, जप माला पूजन, गौ पूजन, हवन, गौ गीता गंगा जागृति यात्रा, बच्चों व महिला जागृति शिविर, नशामुक्ति अभियान, योगा,  सत्संग अभियान चलाया । देशभर में इन सब कार्यक्रमों को व्यापक स्तर पर देखा गया जिसमें कई हिन्दू संगठनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया पर इन खबरों को कोई मीडिया कवरेज नहीं मिला ।

बापू आशारामजी की प्रेरणा से आयोजित हुए इन कार्यक्रमों से देशवासियों की रक्षा हुई, क्राइम कम हुए, व्यसनियों के व्यसन छूटे, विदेशी वस्तुओं का उपयोग नही हुआ । बलात्कार की घटनाओं में रुकावट आई, आत्महत्यायें कम हुई, देश के अरबो-खबरों रुपये बच गए । इससे भटके देशवासी अपनी संस्कृति की तरफ लौट रहे है और पश्चिमी संस्कृति को छोड़ रहे है ।

उपरोक्त सभी बातों पर गौर करें तो ये सिद्ध होता है कि मीडिया हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध है जो देश हित में नहीं है । इसलिए आप भी मीडिया के बहकावे में आकर अपनी भारतीय संस्कृति को न भूले और पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण से बचे ।

Thursday, January 4, 2018

जातिवाद, छुआछूत नहीं है हिन्दू धर्म का हिस्सा, यह देश को तोड़ने का भयंकर षडयंत्र

January 4, 2018

आज देश में जातिवाद को लेकर भयंकर राजनीति चल रही है जो देश के लिए बहुत खतरनाक है, अंग्रेजो की नीति "फूट डालो, राज करो" आज फिर से प्रत्यक्ष देखने को मिल रही है । आज भी जिस तरह से देश में माहौल बनाया जा रहा है उससे तो लग रहा है कि देश विरोधी ताकतों द्वारा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई है और उनके द्वारा बड़ी फंडिग हो रही है जिसके जरिये कुछ लोगों को मोहरा बनाकर जैसे कि उमर खालिद, जिग्नेश मेवाणी आदि लोग नेता रूप में खड़े हो गये और देश में जातिवाद फैलाकर एक दूसरे में जहर भर रहे हैं ।
Racism is not untouchable, part of Hindu religion; This is a terrible conspiracy to break the country.

पहले हरियाणा में जाट लोगों को भड़काया और पूरा हरियाणा जलाया  फिर गुजरात में पटेलों को भड़काया और दंगे करवाये, अभी महाराष्ट्र में भी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों के बीच फूट डलवा कर महाराष्ट्र में आग लगा रहे हैं ।

हिन्दू धर्म में जातिवाद नही है, वर्ण व्यवस्था है न कि छोटी जाति बड़ी जाति ।
सबको अपना अपना काम दिया हुआ है जैसे कि ब्राह्मणों को वेद-पाठ कर्मकांड आदि का, क्षत्रियों को देश की रक्षा का, वैश्यों को व्यापक करने का और शूद्रों को पशुपालन एवं चमड़े और मांस का  कारोबार और बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

आजादी के बाद से राजनैतिक स्वार्थों के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत शूद्रों को दलित नाम दिया गया और उनके उत्थान के नाम पर जो खेल खेला गया, उससे सबसे ज्यादा दलित प्रभावित हुए। दलितों से उनका पारंपरिक आय का स्रोत छीना गया।

प्राचीन भारत जो वर्ण व्यवस्था थी उसमें हर जाति के पास रोजगार के साधन उपलब्ध थे। कुम्हार बर्तन बनाता, लुहार लोहे का काम करता, हजाम हजामत का काम करता, अहीर पशुपालन करते, तेली तेल का धंधा करता, वगैरह... कोई भी जाति दूसरी जाति का काम छीनने का प्रयास नही करती थी।

इस व्यवस्था के अनुसार दलितों ( शुद्र) का जो मुख्य पेशा था वह था- पशुपालन, मांस व्यवसाय , चमड़ा व्यवसाय और सबसे बड़ा बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत दलितों को यह एहसास दिलाया गया कि आप जो काम कर रहे हैं वह गन्दा है, घृणित है। फलस्वरूप वे अपने पेशे से दूर होते गए और उनसे ये सारे धंधे छीन लिए गए। पर दलितों के छोड़ देने से क्या ये काम बन्द हो गए?

आज तनिक नजर उठा कर देखिये, चमड़ा उद्योग और मांस उद्योग का वार्षिक टर्न ओवर लाखों करोड़ों का नहीं बल्कि अरबों-खबरों का है। आज यह व्यवसाय किस जाति के हाथ में है?

आपकी हमारी आँखों के सामने दलितों से उनकी आमदनी का स्रोत छीन कर एक अन्य समुदाय के झोले में डाल दिया गया और हम यह चाल समझ नही पाये।

उत्तर प्रदेश में जय भीम जय मीम के धोखेबाज नारे और महाराष्ट्र में दलितों को फंसाकर उन्हें अन्य हिन्दुओ के विरुद्ध भड़काने वालों की मंशा साफ है, वे आपको सौ टुकड़े में तोड़ कर दलितों के सारे हक लूटना चाहते हैं। तनिक ध्यान से देखिये, दलितवाद का झूठा खेल अधिकांश वे ही लोग क्यों खेल रहे हैं जिन्होंने दलितों के पेशे पर डकैती डाली है।

विदेशी पैसे से पेट भर कर समाज में आग लगाने का प्रयास करने वाले इन चाइना परस्त लोगों के धोखे में न आइये। ये देश जितना चन्द्रगुप्त का है उतना ही चन्द्रगुप्त मौर्य का। जितना महाराणा उदयसिंह का है उतना ही पन्ना धाय का। जितना बाबू कुंवर सिंह का है उतना ही बिरसा भगवान का।

भारतीय इतिहास का पहला सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" जाति से शूद्र था, और उसे एक सामान्य बालक से सत्ता का शिखर पुरुष बनाने वाला चाणक्य एक ब्राम्हण। सदियाँ गवाह हैं, भारत का इतिहास मौर्य वंश के बिना बिल्कुल अधूरा है।

धर्म की गलत व्याखाओं का दौर प्राचीन समय से ही जारी है। ऋषि वेद व्यास ब्राह्मण नहीं थे, जिन्होंने पुराणों की रचना की। तब से ही वेद हाशिये पर धकेले जाने लगे और समाज में जातियों की शुरुआत होने लगी। क्या हम शिव को ब्राह्मण कहें? विष्णु कौन से समाज से थे और ब्रह्मा की कौन सी जाति थी? क्या हम कालीका माता और भैरव को दलित समाज का मानकर पूजना छोड़ दें?

आज के शब्दों का इस्तेमाल करें तो ये लोग दलित थे-ऋषि कवास इलूसू, ऋषि वत्स, ऋषि काकसिवत, महर्षि वेद व्यास, महर्षि महिदास अत्रैय, महर्षि वाल्मीकि, हनुमानजी के गुरु मातंग ऋषि आदि ऐसे महान वेदज्ञ हुए हैं जिन्हें आज की जातिवादी व्यवस्था दलित वर्ग का मान सकती है। ऐसे हजारों नाम गिनाएं जा सकते हैं जो सभी आज के दृष्टिकोण से दलित थे। वेद को रचने वाले, स्मृतियों को लिखने वाले और पुराणों को गढ़ने वाले ब्राह्मण नहीं थे।

अक्सर जातिवाद, छुआछूत और स्वर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराया जाता है, लेकिन यह बिल्कुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शस्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है और किया जा रहा है।

पहली बात यह कि जातिवाद प्रत्येक धर्म, समाज और देश में है। हर धर्म का व्यक्ति अपने ही धर्म के लोगों को ऊंचा या नीचा मानता है। क्यों? यही जानना जरूरी है। लोगों की टिप्पणियां, बहस या गुस्सा उनकी अधूरी जानकारी पर आधारित होता है। कुछ लोग जातिवाद की राजनीति करना चाहते हैं इसलिए वह जातिवाद और छुआछूत को और बढ़ावा देकर समाज में दीवार खड़ी करते हैं और ऐसा भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी होता रहा है।

दलितों को 'दलित' नाम हिन्दू धर्म ने नहीं दिया, इससे पहले 'हरिजन' नाम भी हिन्दू धर्म के किसी शास्त्र ने नहीं दिया। इसी तरह इससे पूर्व के जो भी नाम थे वह हिन्दू धर्म ने नहीं दिए। आज जो नाम दिए गए हैं वह पिछले 70 वर्ष की राजनीति की उपज है और इससे पहले जो नाम दिए गए थे वह पिछले 900 साल की गुलामी की उपज है।

बहुत से ऐसे ब्राह्मण हैं जो आज दलित हैं, मुसलमान है, ईसाई हैं या अब वह बौद्ध हैं। बहुत से ऐसे दलित हैं जो आज ब्राह्मण समाज का हिस्सा हैं। यहां ऊंची जाति के लोगों को स्वर्ण कहा जाने लगा हैं। यह स्वर्ण नाम भी हिन्दू धर्म ने नहीं दिया।

भारत ने 900 साल मुगल और अंग्रेजों की गुलामी में बहुत कुछ खोया है खासकर उसने अपना मूल धर्म और संस्कृति खो दी है। खो दिए हैं देश के कई हिस्से। यह जो भ्रांतियां फैली है और यह जो समाज में कुरीतियों का जन्म हो चला है इसमें गुलाम जिंदगी का योगदान है। जिन लोगों के अधीन भारतीय थे उन लोगों ने भारतीयों में फूट डालने के हर संभव प्रयास किए और इसमें वह सफल भी हुए।

अब यह भी जानना जरूरी है कि हिन्दू धर्म के शास्त्र कौन से हैं। क्योंकि कुछ लोग उन शास्त्रों का हवाला देते हैं जो असल में हिन्दू शास्त्र है ही नहीं। हिन्दुओं का धर्मग्रंथ मात्र वेद है, वेदों का सार उपनिषद है जिसे वेदांत कहते हैं और उपनिषदों का सार गीता है। इसके अलावा जिस भी ग्रंथ का नाम लिया जाता है वह हिन्दू धर्मग्रंथ नहीं है।

मनुस्मृति, पुराण, रामायण और महाभारत यह हिन्दुओं के धर्म ग्रंथ नहीं है। ये ग्रन्थ सभी मनुष्यों के लिए बनाये गए हैं । इन ग्रंथों में हिन्दुओं का इतिहास दर्ज है, लेकिन कुछ लोग इन ग्रंथों में से संस्कृत के कुछ श्लोक निकालकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि ऊंच-नीच की बातें तो इन धर्मग्रंथों में ही लिखी है। असल में यह काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते समाज का चित्रण है। दूसरी बात कि इस बात की क्या गारंटी कि उक्त ग्रंथों में जानबूझकर संशोधन नहीं किया गया होगा। हमारे अंग्रेज भाई और बाद के कम्युनिस्ट भाइयों के हाथ में ही तो था भारत के सभी तरह के साहित्य को समाज के सामने प्रस्तुत करना तब स्वाभाविक रूप से तोड़ मरोड़कर बर्बाद कर दिया।

कर्म का विभाजन-वेद या स्मृति में श्रमिकों को चार वर्गो- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र-में विभक्त किया गया है, जो मनुष्यों की स्वाभाविक प्रकृति पर आधारित है। यह विभक्तिकरण कतई जन्म पर आधारित नहीं है। आज बहुत से ब्राह्मण व्यापार कर रहे हैं उन्हें ब्राह्मण कहना गलत हैं। ऐसे कई क्षत्रिय और दलित हैं जो आज धर्म-कर्म का कार्य करते हैं तब उन्हें कैसे क्षत्रिय या दलित मान लें? लेकिन पूर्व में हमारे देश में परंपरागत कार्य करने वालों का एक समाज विकसित होता गया, जिसने स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट मानने की भूल की है तो उसमें हिन्दू धर्म का कोई दोष नहीं है। यदि आप धर्म की गलत व्याख्या कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं तो उसमें धर्म का दोष नहीं है।

प्राचीन काल में ब्राह्मणत्व या क्षत्रियत्व को वैसे ही अपने प्रयास से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं। जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि वह आईएएस की परीक्षा नहीं दे देता। ऐसा ही उस काल में गुरुकुल से जो जैसी भी शिक्षा लेकर निकलता था उसे उस तरह की पदवी दी जाती थी।

इस तरह मिला जाति को बढ़ावा-दो तरह के लोग होते हैं- अगड़े और पिछड़े। यह मामला उसी तरह है जिस तरह की दो तरह के क्षेत्र होते हैं विकसित और अविकसित। पिछड़े क्षेत्रों में ब्राह्मण भी उतना ही पिछड़ा था जितना की दलित या अन्य वर्ग, धर्म या समाज का व्यक्ति। पिछड़ों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में प्रारंभ में 10 वर्ष के लिए आरक्षण देने का कानून बनाया गया, लेकिन 10 वर्ष में भारत की राजनीति बदल गई। सेवा पर आधारित राजनीति पूर्णत: वोट पर आधारित राजनीति बन गई।

आज लगता है राष्ट्र विरोधी ताकतें भारत को फिर से तोड़ने का सपना देख रही है उसके लिए भारत में कुछ देश विरोधी लोगों को भारी फंडिग दी जा रही है जिसमें मीडिया भी शामिल है अतः आप जातिवाद में न उलझिए, दलित शब्द हिन्दुओं में था ही नही बल्कि जो वर्णव्यवस्था है उसमें सभी को अपने अपने काम दिए है वो पूर्ण रूप से करे बाकि देशविरोधी और मीडिया के बहकाने में आकर देश को खंड-खंड करने का पाप न करें ।

Wednesday, January 3, 2018

हिन्दू अपना सामान पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाए :उर्दू अखबार

 अखबार(4/1/1990)

January 3, 2018

कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा था ! कश्मीर के मूल निवासी सारे हिन्दू थे ! कश्मीरी पंडितों की संस्कृति 5000 साल पुरानी है और वो कश्मीर के मूल निवासी हैं, इसलिए अगर कोई कहता है कि भारत ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया है यह सरासर गलत है ! 
Hindus pack their bags and leave Kashmir: Urdu Newspaper

अत्याचार की यह दास्ताँ शुरू होती है 14वीं शताब्दी से, जब तुर्किस्तान से आये एक क्रूर आतंकी मुस्लिम दुलुचा ने 60,000 लोगो की सेना के साथ कश्मीर पर आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की ! दुलुचा ने नगरों और गाँव को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंहार किया ! बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया ! बहुत सारे हिन्दू जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थे, उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली और बाकी भाग गए या क़त्ल कर दिए गए या इस्लाम कबूल कर मुसलमान बन गए ! आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम है उन सभी के पूर्वजो को अत्याचार पूर्वक जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था !

1947 में ब्रिटिश संसद के "इंडियन इंडीपेनडेंस एक्ट" के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया कि तत्कालीन राजा महाराजा जैसा चाहे निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं | वे चाहे तो पाकिस्तान के साथ विलय करें अथवा भारत के साथ रहें ! 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 450 राजाओ ने भारत, केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे ! किन्तु जब पाकिस्तान ने कवायली फौज भेजकर कश्मीर पर आक्रमण किया तो कश्मीर के राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए दस्तख़त कर दिए ! अंग्रेजों ने उस समय यही कहा था कि राजा ने अगर एक बार दस्तखत कर दिया तो उसके बाद जनमत संग्रह की जरुरत नहीं है ! तो जिन कानूनों के आधार पर भारत और पाकिस्तान बने थे उन नियमो के अनुसार कश्मीर पूरी तरह से भारत का अंग बन गया था, अतः पाकिस्तान का यह कहना कि कश्मीर पर भारत ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रहे है वो बिलकुल झूठ है !

फिर शुरू हुआ कश्मीर घाटी को हिदू विहीन बनाने का षड्यंत्र !
 सितम्बर 14, 1989 बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य और जाने माने वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू का JKLF ने क़त्ल कर दिया ! उसके बाद जस्टिस नील कान्त गंजू को गोली मार दी गई ! एक के बाद एक अनेक कश्मीरी हिन्दू नेताओ की हत्या कर दी गयी ! उसके बाद 300 से ज्यादा हिन्दू महिलाओ और पुरुषो की नृशंस हत्या की गयी ! श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करने वाली एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी ! यह खूनी खेल चलता रहा और हैरत की बात यह है कि तत्कालीन राज्य एवं केंद्र सरकारों ने इस गंभीर विषय पर कुछ नहीं किया ! 

जनवरी 4, 1990 आफताब, एक स्थानीय उर्दू अखबार ने हिज्ब -उल -मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की - "सभी हिन्दू अपना सामान पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाए।" 

एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा ने भी इस निष्कासन आदेश को दोहराया ! मस्जिदों में भारत और हिन्दू विरोधी भाषण दिए जाने लगे ! सभी कश्मीरी हिन्दू/मुस्लिमो को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाये ! सिनेमा और विडियो पार्लर वगैरह बंद कर दिए गए ! लोगो को मजबूर किया गया कि वो अपनी घड़ी पाकिस्तान के समय के अनुसार कर लें !

जनवरी 19, 1990 सारे कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजो पर नोट लगा दिया गया, जिसमे लिखा था "या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ कर भाग जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ" ! 

पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमो को भारत से आजादी के लिए भड़काना शुरू कर दिया ! सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया ! जिसमे मुस्लिमो को कहा गया कि वो हिन्दुओ को कश्मीर से निकाल बाहर करें ! 

उसके बाद सारे कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये ! उन्होंने कश्मीरी पंडितो के घरो को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया ! कुछ महिलाओ को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया ! बच्चो को स्टील के तार से गला घोटकर मार दिया गया ! कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतो से कूद कूद कर जान देने लगी ! और देखते ही देखते कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई और कश्मीरी पंडित अपने ही देश में विस्थापित होकर दरदर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए |

कितनी हैरत की बात है कि कश्मीरी मुस्लिम, एक ओर तो कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या करते रहे और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोते भी रहे कि उन पर अत्याचार हुआ है और इसलिए उनको भारत से आजादी चाहिए ! 

कश्मीरी पंडितो के पलायन की कहानी 

3,50,000 कश्मीरी पंडित अपनी जान बचा कर कश्मीर से भाग गए ! कश्मीरी पंडित जो कश्मीर के मूल निवासी है उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ा और अब कश्मीरी मुस्लिम कहते है कि उन्हें आजादी चाहिए ! यह सब कुछ चलता रहा लेकिन सेकुलर मीडिया चुप रही ! देश- विदेश के लेखक चुप रहे, भारत का संसद चुप रहा, सारे सेकुलर चुप रहे ! किसी ने भी 3,50,000 कश्मीरी पंडितो के बारे में कुछ नहीं कहा ! आज भी अपने देश के मीडिया 2002 के दंगो के रिपोर्टिंग में व्यस्त है ! वो कहते है की गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए थे लेकिन यह कभी नहीं बताते की 750 मुस्लिमों के साथ साथ 310 हिन्दू भी मरे थे और यह भी कभी नहीं बताते कि दंगो की शुरुआत आखिर की किसने, आखिर 59 हिन्दुओं को भी तो गोधरा में ट्रेन में जिन्दा जला दिया था ! हिन्दुओं पर अत्याचार के बात की रिपोर्टिंग से कहते है की अशांति फैलेगी, लेकिन मुस्लिमो पर हुए अत्याचार की रिपोर्टिंग से अशांति नहीं फैलती ! क्या यही है सेकुलर (धर्मनिरपेक्ष) पत्रकारिता ! 

कश्मीरी पंडितो की आज की स्थिति

आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही शरणार्थी की तरह रह रहे है ! पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला ! उनके लिए तो मीडिया भी नहीं है जो उनके साथ हुए अत्याचार को बताये ! कोई भी सरकार या पार्टी या संस्था नहीं है जो कि विस्थापित कश्मीरियों को उनके पूर्वजों के भूमि में वापस ले जाने की बात करे ! कोई भी नहीं इस इस दुनिया में जो कश्मीरी पंडितो के लिए "न्याय" की मांग करे ! पढ़े लिखे कश्मीरी पंडित आज भिखारियों की तरह पिछले 24 सालो से टेंट में रह रहे है ! उन्हें मूलभुत सुविधाए भी नहीं मिल पा रही है, पीने के लिए पानी तक की समस्या है ! भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमो (310 मारे गए हिन्दुओ को भूलकर) की बात करते है, लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितो की बात करने वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू है ! 20,000 कश्मीरी हिन्दू तो केवल धुप की गर्मी सहन न कर पाने के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदी थे !

अभी तो उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर में 27 वर्ष पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की दोबारा जांच के निर्देश देने से इनकार कर दिया है । अब तो कश्मीरी पंडितों के लिये कोई चारा बचा ही नही है।

कश्मीरी पंडितो और भारतीय सेना के खिलाफ भारतीय मीडिया का षड्यंत्र -

आज देश के लोगो को कश्मीरी पंडितो के मानवाधिकारों के बारे में भारतीय मीडिया नहीं बताती है लेकिन आंतकवादियों के मानवाधिकारों के बारे में जरुर बताती है ! आज सभी को यह बताया जा रहा था है की ASFA नामक कानून का भारतीय सेना द्वारा काफी ज्यादा दुरूपयोग किया जाता है ! कश्मीर में अलगावादी संगठन मासूम लोगो की हत्या करते है और भारतीय सेना के जवान जब उन आतंकियों के खिलाफ कोई करवाई करते है, तो यह अलगावादी नेता अपने खरीदी हुई मीडिया की सहायता से चीखना चिल्लाना शुरू कर देते है, कि देखो हमारे ऊपर कितना अत्याचार हो रहा है !

हिंदुस्तान में #सेक्युलर राजनीति #सेक्युलर नेता, #सेक्युलर लोकतंत्र, #सेक्युलर संविधान, #सेक्युलर न्यायापालिका हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को किसी से भी उम्मीद रखने की जरूरत नही है।

हिन्दुस्तान में #हिंदुओं को सरकार, #न्यायालय द्वारा इसलिए कोई सहायता या न्याय नही मिल रहा है क्योंकि हिंदुओं में एकता नही है, जिस दिन #एकता हो जायेगी उस दिन हर जगह से न्याय मिलने लगेगा ।

Tuesday, January 2, 2018

मदरसे में अंग्रेजी पढ़ते हैं तो संस्कृत में क्या दिक्कत है? पढ़ाई जाएगी संस्कृत : सिब्ते नबी


January 2, 2018

संस्कृत भाषा ही एक मात्र साधन हैं, जो क्रमशः उंगलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।  इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएं ग्रहण करने में सहायता मिलती है। वैदिक ग्रंथों की बात छोड़ भी दी जाए, तो भी संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरंतर होती आ रही है। संस्कृत केवल एक भाषा मात्र नहीं है, अपितु एक विचार भी है। संस्कृत एक भाषा मात्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति है और संस्कार भी है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है और वसुधैव कुटुंबकम की भावना भी है ।
If you study English in madarsas then what is the problem in Sanskrit? Sanskrit will be taught: Sibte nabi

एक तरफ विदेशों में भी संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी गई है दूसरी ओर भारतीय संस्कृति की पहचान संस्कृत से है और संस्कृत को देवभाषा भी कहा जाता है पर आज के समय में संस्कृत को लोग भूलते जा रहे हैं और इसी का परिणाम है संस्कृत भाषा आज हमें समझने में दिक्कत आ रही है पर अब संस्कृत को बचाने की कवायद देव भूमि उत्तराखंड से शुरू हुई है। 

उत्तराखंड में मुस्लिम लोग मदरसों और इस्लामिक स्कूलों में संस्कृत पढ़ाने की योजना बना रहे हैं।  इस योजना को अगले एकेडमिक सेशन में शुरू किया जा सकता है। मुस्लिम लोग मदरसों और इस्लामिक स्कूलों में संस्कृत पढ़ाने के पीछे की वजह बताई जा रही है कि इस उद्देश्य से योग और आयुर्वेद से जुड़ी जानकारी हासिल की जा सकेगी। 

मदरसा वेलफेयर सोसाइटी उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले के करीब 207 मदरसों का संचालन करती है। इन मदरसों में करीब 25 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। 

इन 207 मदरसों के लिए मदरसा वेलफेयर सोसाइटी ने संस्कृत भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ाए जाने की पेशकश की है। 

आपको बता दें कि इस सोसाइटी के चेयरमैन सिब्ते नबी हैं। उन्होंने कहा है कि मदरसों में पहले से ही मॉडर्न एजुकेशन के तहत हिंदी, अंग्रेजी, साइंस और गणित पढ़ाया जा रहा है, अब संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जायेगी ।

अंग्रेजी पढ़ते हैं तो संस्कृत में क्या दिक्कत है?

संस्कृत को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर सिब्ते नबी का कहना है कि हम अंग्रेजी अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, जो कि एक विदेशी जुबान है तो फिर पुरानी भारतीय भाषा को क्यों ना पढ़ाया जाए। 

उन्होंने कहा कि एक और भाषा को सीखने से बच्चों की नॉलेज में इजाफा होगा और उन्हें भविष्य में भी इसका फायदा होगा। सिब्ते नबी का कहना है कि हम आयुर्वेद की पढ़ाई भी बच्चों के लिए चाहते हैं और आयुर्वेद संस्कृत की जानकारी के बिना मुश्किल है। ऐसे में संस्कृत की जानकारी के बाद बच्चे मेडिकल में अच्छी तरह कैसे परिपक्व हो सकते हैं ।

संस्कृत मुसलमानों के लिए कोई एलियन जुबान नहीं

उधमसिंग नगर के खिच्चा स्थित मदरसे के मैनेजर मौलाना अख्तर रजा ने कहा कि इसे इस तरह से नहीं देखना चाहिए कि मुसलमान भला संस्कृत कैसे पढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत मुसलमानों के लिए कोई दूसरे ग्रह से आई एलियन जुबान नहीं है। कई मुसलमान संस्कृत के अच्छे विद्वान हैं और इसे धर्म के खांचे में फिट करना ठीक नही होगा।

संस्कृत भाषा का उद्भव ध्वनि से

सूर्य के एक ओर से 9 रश्मिया निकलती हैं और सूर्य के चारो ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने और इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के आठ वसुओ से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं । जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल #108 ध्वनियों पर #संस्कृत की #वर्णमाला आधारित है। ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः #प्राचीनतम #आर्य भाषा जो ब्रह्मांडीय संगीत थी उसका नाम “#संस्कृत” पड़ा। संस्कृत – संस् + कृत् अर्थात श्वासों से निर्मित अथवा साँसो से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर-संप्रक से अभिव्यक्त हुयी। 

कालांतर में पाणिनी ने नियमित व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान किया।

संस्कृत की सर्वोत्तम शब्द-विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुये इसका अध्ययन आरंभ कराया है और भविष्य में भाषा-क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है। 

अतः अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाने वाले कुछ महाशय जो संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें कुँए से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता का एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए।
काफी शर्म की बात है कि भारत की भूमि पर ऐसे खरपतवार पैदा हो रहे हैं जिन्हें अमृतमयी वाणी संस्कृत में दोष व विदेशी भाषाओं में गुण ही गुण नजर आते हैं वो भी तब जब विदेशी भाषा वाले संस्कृत को सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं ।

अतः जब हम अपने बच्चों को कई विषय पढ़ा सकते हैं तो संस्कृत पढ़ाने में संकोच नहीं करना चाहिए। देश विदेश में हुए कई शोधो के अनुसार संस्कृत मस्तिष्क को काफी तीव्र करती है जिससे अन्य भाषाओं व विषयों को समझने में काफी सरलता होती है , साथ ही यह सत्वगुण में वृद्धि करते हुये नैतिक बल व चरित्र को भी सात्विक बनाती है। अतः सभी को यथायोग्य संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।

Monday, January 1, 2018

देशभर में युवा सेवा संघ ने किया व्यसन मुक्त भारत अभियान, मीडिया ने गायब कर दी खबर


January 1, 2018

हमारे देश का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है किन्तु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह आज गुमराह हो रही है । देश की रीढ़ की हड्डी युवा माना जाता है, अगर देश के युवाओं को कमजोर कर दिया तो देश का पतन निश्चित ही है । युवा वर्ग है जो अपने देश के सुदृढ़ भविष्य का आधार है ।

आज पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करके युवा अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा है, भारत का यही युवावर्ग जो पहले देशोत्थान एवं आध्यात्मिक रहस्यों की खोज में लगा रहता था, वही अब व्यसन और कामिनियों के रंग-रूप के पीछे पागल होकर अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ में खोता जा रहा है।
Youth Service Association made a nationwide addiction-free campaign, disappeared news from the media

विदेशी चैनल, चलचित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा पश्चिमी संस्कृति की तरफ जो युवाओं का रुझान हो रहा है यह देश के लिए खतरे की घंटी है, इसमें भी वेलेंटाइन डे और क्रिसमस डे से 1 जनवरी तक जो पश्चिमी संस्कृति के त्यौहार है वो तो युवाओं को पूरी तबाही की ओर ले जाने वाले हैं । उसमें 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक तो जमकर शराब पीते हैं, मादक पदार्थों का सेवन, सिगरेट, चाय आदि व्यसनों में डूबे रहते हैं जिससे युवाओं का जीवन निस्तेज हो जाता है फिर धीरे-धीरे उनका पतन होता जाता है फिर वे देश-समाज के लिए कुछ करने लायक नही रहते है।

अंग्रेजी नूतन वर्ष को मनाने हेतु शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार में गर्क होने से अपने देशवासी बच जायें इस उद्देश्य से राष्ट्र जागृति लाने के लिए तथा विधर्मियों द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्रों के प्रति देशवासियों को जागरूक कर भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए युवासेवा संघ ने 31 दिसम्बर को देश-भर में व्यसन मुक्ति अभियान चलाया जिसमें व्यसन जागृति अभियान, व्यसन मुक्ति प्रदर्शनी लगाई एवं साहित्य, पेम्पलेट आदि बांटकर एवं नुक्कड़ नाटक आदि के द्वारा युवाओं को नशे से होने वाले कुप्रभाव से बचने के लिए जागृत किया।

देशभर में अहमदाबाद, दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, कानपुर, आगरा, हैदराबाद, नागपुर, पटना, मथुरा, रायपुर, बेंगलोर, अंबाला आदि अनेक जगहों पर युवाओं को व्यसन छोड़ने का संकल्प भी दिलवाया । http://yss.ashram.org

आपको बता दें कि ट्वीटर पर भी 31 दिसम्बर को #व्यसन_मुक्त_भारत हैश टेग ट्वीटर पर टॉप में ट्रेंड भी कर रहा था ।

युवा सेवा संघ ने इतना बड़ा भव्य कार्यक्रम देश-भर में किया लेकिन हमारी भारत की मीडिया इसको दिखाने के लिए राजी नही है, वो तो केवल पश्चिमी जगत का त्यौहार दिखाने में व्यस्त थी जिससे युवकों का और भी पतन हो।

आपको बता दें कि युवा सेवा संघ की स्थापना हिन्दू संत आसाराम बापू की प्रेरणा से की गई है, बापू आशारामजी ने युवाओं को पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण से बचने के लिए युवा सेवा संघ की स्थापना की । इनका युवा सेवा संघ देशभर में फैला हुआ है और संस्कार सभाओं, व्यसन मुक्त अभियान एवं बह्मचर्य आदि की महिमा बताकर युवाओं को जगाकर भारतीय संस्कृति की ओर लाने का भरपूर प्रयास कर रहा है। इसके अलावा भूकम्प, सुनामी आदि आपदाओं में भी हमेशा आगे आकर सेवाकार्य करता है। 

पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आदि बढ़ रहे हैं उससे दिनोंदिन उनका पतन होता जा रहा है |
इन सबसे बचाने के लिए युवा सेवा संघ मुख्य भूमिका निभा रहा है ।

नशे का वैश्विक बाजार युवा शक्ति को निर्बल करने का अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। देश कमजोर करने के लिए भारत में नशा वृद्धि की जा रही है ।

हंड की एक रिपोर्ट के अनुसार 76 फीसदी फिल्मों में तंबाकू और 72 फीसदी फिल्मों में सिगरेट/ शराब का सेवन धड़ल्ले से दिखाया जाता है। 

नशे का प्रभाव केवल देश की अर्थव्यवस्था पर नहीं, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार, विवाह संबंधों, रोजगार, व्यक्तित्व विकास, नियम-कानून का उल्लंघन, अनुशासनहीनता आादि पर भी पड़ता है। 

देश में प्रतिवर्ष धूम्रपान करने से दस लाख लोगों की मौत होती है, जो कुल मौतों का दस फीसदी है। 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों में धूम्रपान की लत बढ़ी है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में यह वृद्धि छब्बीस फीसदी है, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह अड़सठ फीसदी है।

एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में भारत नशाखोरी में दुनिया में दूसरे स्थान पर रहा । जो एक भयावय आंकड़ा है। 

इन सबसे बचने के लिए हिन्दू संत आसाराम बापू प्रेरणा से चल रहे युवा सेवा संघ द्वारा सराहनीय कार्य किये जा रहा हैं पर मीडिया इन सब चीजों को नहीं बताकर समाज में केवल नकारात्मक झूठी बाते फैला रही है वो भी देश के लिए चिंताजनक स्थिति है।