Saturday, January 5, 2019

जानिए आसाराम बापू ने देश में ऐसा क्या किया जिसके कारण जाना पड़ा जेल?

5 जनवरी  2019

🚩"भारत" नाम सुनते ही दो चीजें आंखों के सामने आती हैं एक तो भारत की सभ्यता और दूसरी भारत की सभ्यता बचाने वाले साधु-संत ।

🚩बात भी सहीं ही है भारत कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए अपने मूल से ही जाना जाएगा । पर क्या भारत पर हुए कई शासकीय अत्याचारों को भुलाया जा सकता है ? नहीं ना ! विभिन्न धर्मों के लोगों ने भारत को अपने रंग में, अपने मजहब में ढालने का पूरा प्रयत्न किया परंतु भारत के सनातन धर्म को आहत ना कर पाए, कितने-कितने देश-भक्त, धर्म-प्रेमी विधर्मियों के अत्याचार की बली चढ़ गए, पर भारत और भारत की वैदिक संस्कृति के परचम को हानि नहीं पहुंचाने दी बल्कि और भी बुलंद कर दिया ।
Know what Asaram Bapu did in the country due to which jail had to go?

🚩आज भी आधुनिकता की अंधी दौड़ में भारत में अगर स्थिरता बनी हुई है तो उसका सिर्फ एकमात्र कारण हैं वंदनीय साधु-संतों की उपस्थिति, इनके लोक-मांगल्य कार्यों और सांस्कृतिक आयोजनों की वजह से ही भारत में भारत की नींव "सनातन-संस्कृति और परोपकार" जीवित है । https://youtu.be/3r4Qn7NJwHY

🚩21वीं सदी के हिन्दू संत आसारामजी बापू, इनका नाम सुनते ही करोड़ों लोगों के चेहरे पर प्रसन्नता और आंखों में नमी आ जाती है । प्यार से देश-विदेश के वासी इन्हें बापू कहते हैं । भारत के अस्तित्व को बचाने के लिए जितना कार्य  इन्होंने किया है उतना शायद कोई सोच भी नहीं सकता । देश-विदेश के लोगों को हिन्दू धर्म से न सिर्फ अवगत कराया बल्कि इसकी महानता से भी ओत-प्रोत किया और देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा किया ।  https://youtu.be/wmswegtRqus

🚩प्राणिमात्र के हितैषी नाम से जाने जानेवाले बापू आसारामजी का ह्रदय विशाल होने के साथ-साथ देश के कल्याण और मंगल के लिए द्रवीभूत भी रहता है । जब बापू आसारामजी ने देखा कि कई अत्याचारों से जूझ रहा भारत देश धीरे-धीरे अप्रत्यक्ष रूप से फिर से गुलाम बनाया जा रहा है और देशवासियों को भ्रष्ट कर अपनी संस्कृति से, अपनी प्रगति से दूर किया जा रहा है तब बापूजी ने ठाना कि देश से पतन-कारक विदेशी सभ्यता को निकाल फेंकना होगा और फिर भारत-वासियों को मिली सहीं राह ।

🚩बापू आसारामजी ने 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस, 25 दिसंबर को क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस और 31 दिसंबर और 1 जनवरी को अंग्रेजी न्यू-ईयर की जगह भारत-विश्व-गुरु अभियान आयोजित किया । कई आदिवासी क्षेत्र, जिन तक सरकार भी नहीं पहुंच पाती है उन्हें समय-समय पर सहारा दिया और धर्म परिवर्तन से बचाया । हिंदुओं के पर्व पर विदेशी असर न हो इसलिए होली में केमिकल्स के कलर नहीं, नैसर्गिक रंग, पलाश के रंग से वैदिक होली और दीवाली पर प्रदूषण न हो इसीलिए अपने घर के साथ सभी स्थानों पर दीप-दान के महत्व को बताया ।https://youtu.be/xo1H7M3mkq8

🚩संत का अर्थ ही है परम हितैषी और बापू आसारामजी ने न सिर्फ खुद का जीवन सेवा में लगाया है बल्कि सभी देशवासियों को प्रेरित किया है सेवा के लिए लोक-हित के लिए, अपने मूल मंत्र "सबका मंगल सबका भला" के साथ ।

🚩14 फरवरी को वैलेंटाइन्स डे मनाकर जहां देश की युवा पीढ़ी अपना संयम और सदाचार खो रही थी और दुर्बल बन रही थी, अब वही युवा मना रहे हैं सच्चा और पवित्र-प्रेम दिवस अपने माता-पिता के साथ "मातृ-पितृ पूजन दिवस" के रूप में । जिससे युवानों को मिला उनके बड़े-बुजुर्गों के स्नेह के साथ-साथ संयम और सदाचार पालन करने का आशीष । साथ ही आधुनकिता की आड़ में बिखर रहे परिवार के लोगों को मिला एक दूसरे का साथ । कई परिवारों ने अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम के हवाले कर दिया था उन्होंने भी इस आयोजन से प्रभावित हो अपनी गलतीं सुधारी । युवानो का संयम और परिवार का साथ देश के लिए बहुत जरूरी है ये बात सिर्फ बापू आसारामजी ने आगे लाई । https://youtu.be/LrMcg10aWuk

🚩25 दिसंबर को जो लोग क्रिसमस मनाते हुए शराब पीकर रात्रि को हानिकारक धुनों पर थिरकते थे और न खाने जैसे पदार्थों सेवन कर पतन-कारक वातावरण में अपनी हानि करते थे ऐसे लोगों को जब बापू आसारामजी के सत्संगों से जागरूकता मिली तो सभी क्रिसमस की जगह "तुलसी पूजन दिवस" मनाने लगे । अगर कोई पौधा सबसे ज्यादा पूज्यनीय है इस धारा पर तो वो हैं हमारी तुलसी माँ, तो क्यों न इस दिन तुलसी माँ का ही श्रृंगार कर उनका पूजन करें । आखिर तुलसी जी को माँ यूँ ही नहीं कहा जाता, उनमें रोगप्रतिकारक शक्ति है । जैसे एक माँ अपने बच्चों को सभी हानियों से बचाती है वैसे ही माँ तुलसी हमारी रक्षक और पोषक हैं ये बात वैज्ञानिक तौर पर भी सिद्ध हो चुकी है । इस दिन बापू आसारामजी के कारण विश्व को मिला एक और उन्नति-कारक पर्व ! https://youtu.be/fLyjdDWm7E0

🚩31 दिसंबर और 1 जनवरी को विदेशी अंधानुकरण करते लोग जब अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे थे तब लोक-हितैषी बापू आसारामजी ने "भारत विश्वगुरु अभियान" को फैलाया ताकि देशवासियों की रक्षा हो सके और सभी को पतन से बचाया जा सके । 25 दिसंबर से 1 जनवरी विदेशी सभ्यता का अनुकरण करने से से बहुत हानि हुई है भारतीयों की, पर यही 8 दिन अगर वैदिक संस्कृति से मनाएं जाएं तो अवश्य न केवल पतन से बचाव होगा अपितु सर्वांगीण उन्नति और मंगल होगा ।

🚩इन 8 दिनों में :

तुलसी पूजन दिवस
गौ-गंगा-गायत्री जागृति यात्रा
सहज स्वस्थ व योग प्रशिक्षण
गीता-पाठ हवन कार्यक्रम
मंत्र-अनुष्ठान
सामूहिक सेवा
सत्संग आयोजन

आदि आयोजन होते हैं ताकि मानव, प्रकृति, प्राणी सभी का मंगल हो ! तन तंदरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रसाद प्रगट हो ! और न आत्महत्या हो न गौ-हत्या हो और न ही यौवन-हत्या हो बल्कि आत्मविकास हो ! तुलसी, गौ, गंगा, देश की वैदिक संस्कृति, और सच्चे संतों को पूजा जाए और इनकी रक्षा की जाए, सेवा की जाए ! लोग ओजस्वी-तेजस्वी बनें और गीता-ज्ञान से मुक्तात्मा, महानात्मा बन अपने स्वरूप को जानें !https://www.facebook.com/SantShriAsharamJiBapu/videos/10153460984402669/

🚩आज बापू आसारामजी कारागृह में हैं तो सिर्फ इसी वजह से क्योंकि उन्होंने 50 वर्षों से भी अधिक समय देश और समाज के उत्थान और रक्षा में लगा दिए । बापू आसारामजी की वजह से भारत बार-बार विदेशी षड्यंत्रों से बचा और कई देशवासियों की धर्म-परिवर्तन से रक्षा हुई, कई विदेशी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की दाल नहीं गली और भटकते हुए देशवासियों को सहीं दिशा मिली । बापूजी के द्वारा किये जाने वाले ये सारे देश मांगल्य के कार्य देश को फिर से गुलाम बनने से रोक रहे हैं इसलिए राष्ट्र-विरोधी ताकतों के इशारे पर कुछ स्वार्थी नेताओं ने बापू आसारामजी के खिलाफ षड्यंत्र रच झूठे केस के जरिए देश और समाज से दूर किया । https://youtu.be/j1cCIdlT50c

🚩लेकिन वे स्वार्थी नेता समझते हैं कि बापू आसारामजी केवल एक शरीर हैं अब उन्हें कौन बताए कि जो करोड़ों हृदयों में वास करते हैं और जो सत्य के प्रतीक हैं वे सर्वव्याप्त हैं । जब इतने कुप्रचार के बाद भी सेवाएं और मंगल कार्य आदि आयोजन रुकने के बजाय और भी व्यापक हुए तब इन षड्यंत्रकारियों को मुंह की खानी पड़ी और इनके दलाल मीडिया की भी कई गलत और विरोधी खबरों के बावजूद, बापू आसारामजी के द्वारा हो रहे सेवाकार्यों पर आंच भी नहीं आयी । आखिर साँच को आंच नहीं और झूठ को पैर नहीं ! बापू आसारामजी का निर्मल पवित्र हृदय पहले भी सभी को लोकहित सेवा और आत्मज्ञान के प्रति प्रेरित कर रहा था और आज भी कर रहा है और वर्षों-वर्ष आगे भी प्रेरित करता रहेगा । 

🚩भारत का स्वर्णीम इतिहास था उसका "विश्वगुरु" होना । हम सभी ने भारत देश का इतिहास पढ़ा है और भारत माता की महिमा की गाथाएं सुनी हुई हैं । इतिहास के पन्नो में भारत को विश्व गुरु यानी की विश्व को पढ़ाने वाला अथवा पूरी दुनिया का शिक्षक कहा जाता था क्योंकि भारत देश के ऋषि-मुनि संत आदि ज्ञानीजन और उनका विज्ञान और अर्थव्यवस्था, राजनीति और यहाँ के लोगों का ज्ञान इतना समृद्ध था कि पूरब से लेकर पश्चिम तक सभी देश भारत के कायल थे । अब बापू आसारामजी की दूरदृष्टि के कारण और उनके अद्भुत अद्वैत अभियान के कारण भारत वास्तव में भीतर से बाहर तक विश्वगुरु बन कर रहेगा । 

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Friday, January 4, 2019

खुलासा : पादरी चर्च में कन्फेशन परंपरा के चलते कर हैं यौनशोषण

4 जनवरी  2019
www.azaadbharat.org
🚩कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता की पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मों की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी ।
🚩कन्फेशन यानी अपनी गलतियों को खुलकर किसी से कहना । जिससे मन से बोझ तो उतरता है, साथ ही कन्फेस ये भी बताता है कि वो गलती दोबारा नहीं होगी । कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स चर्च में कन्फेशन आम है । लोग अक्सर पादरी के सामने अपने सिन यानी पापों को कन्फेस करते हैं, लेकिन ये यौन उत्पीड़न का जरिया बनने लगा है । केरल के कोट्टायम में एक महिला ने एक के बाद एक चार पादरियों पर उसे ब्लैकमेल करके यौन शोषण का आरोप लगाया ।
🚩इसी से मिलता-जुलता मामला पंजाब के जालंधर से आया, जहां पीड़िता का आरोप था कि कन्फ़ेशन के दौरान अपने राज बांटने पर पहले एक पादरी ने उसका यौन शोषण किया । इसके बाद से कन्फेशन की प्रक्रिया सवालों के घेरे में है । यहां तक कि राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने चर्च में कन्फेशन पर रोक लगाने की सिफारिश भी की । अपनी सिफारिश में आयोग ने लिखा कि ये महिलाओं की सुरक्षा में रोड़ा हैं ।
Disclosure: In the Pastor Church, due to the Confession tradition, sexually exploited

🚩जानिए, क्या है ये कन्फेशन और कैसे बन गया यौन शौषण का जरिया :-
चर्च में कन्फेशन की प्रक्रिया का बाइबिल में जिक्र मिलता है । इसे ऑग्सबर्ग कन्फेशन कहा जाता है, जिसके दो स्टेप हैं । पहला पाप की समझ से पैदा होने वाला डर और दूसरा चरण है जिसमें किसी को अपनी गलती का अहसास हो जाए और साथ ही ये यकीन भी हो जाए कि ईश्वर ने उसे पाप की माफी दे दी है । बाइबिल के दूसरे चैप्टर में माना गया है कि रोजमर्रा के कामों के दौरान सबसे कोई न कोई गलती हो जाती है, जिनका प्रायश्चित्त होना जरूरी है तभी मन शुद्ध होता है । चर्च के पादरी को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हुए उसके सामने पापों का कन्फेशन किया जाता है ।
🚩ये है प्रक्रिया :-
चर्च में कन्फेशन के लिए एक जगह तय होती है । वहां कन्फेस करने वाले व्यक्ति और पादरी के सामने आमतौर पर एक परदा होता है । इन दोनों के अलावा और कोई भी वहां मौजूद नहीं होता है । पादरी के सामने कन्फेशन बॉक्स में खड़ा होकर कोई भी अपनी गलतीं बता सकता है और यकीन करता है कि पादरी उस राज को अपने और ईश्वर तक ही सीमित रखेगा ।
🚩कौन नहीं कर सकता है कन्फेस :-
10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कन्फेशन की प्रक्रिया नहीं है क्योंकि माना जाता है कि उन्हें सहीं-गलत का कोई अहसास नहीं होता है और वे जो भी करते हैं, भूल हो सकती है लेकिन अपराध नहीं । इसी तरह से मानसिक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर लोगों के लिए इस प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं है, यानी उन्हें भी इसकी इजाजत नहीं ।
🚩पूरी दुनिया में यौन शोषण :-
कन्फेशन बॉक्स को आजकल डार्क बॉक्स कहा जा रहा है क्योंकि इसके साथ ही महिलाओं के यौन शोषण का लंबा सिलसिला सुनाई पड़ रहा है । भारत के अलावा यूरोप, अमेरिका और दूसरे देशों में भी कैथोलिक चर्चों में पादरियों द्वारा यौन शोषण की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं । अमेरिका के पेनसिल्वेनिया में पादरियों द्वारा हजार से भी ज्यादा बच्चों के यौन शोषण की एक खबर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया । यहां तक कि रोमन कैथोलिक चर्च के पोप को दुनियाभर के पादरियों के इन अपराधों के लिए माफी मांगनी पड़ी है । पादरियों द्वारा यौन शोषण की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए वैटिकन सिटी ने कई सख्त फैसले लिए, जिसमें पादरियों का निलंबन भी शामिल रहा ।
🚩महिलाओं के साथ यौन शोषण के अधिकतर मामलों की वजह कन्फेशन रहा, जिसके बूते पादरी उन्हें ब्लैकमेल करने लगे । इसी को देखते हुए महिला आयोग ने कन्फेशन की प्रक्रिया बंद करने की सिफारिश की । आयोग ने कहा कि चर्च में यौन शोषण की पारदर्शी जांच केंद्रीय एजेंसी के जरिए होनी चाहिए ।
स्त्रोत : न्यूज 18
🚩कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक  नन सिस्टर मैरी चांडी  ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी । एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी । मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी । ’ यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है । सान डियेगो चर्च के अधिकारियों ने पादरियों के द्वारा किये गये बलात्कार, यौन-शोषण आदि के 140 से अधिक अपराधों के मामलों को निपटाने के लिए 9.5 करोड़ डॉलर चुकाने का ऑफर किया था ।
🚩देश-विदेशों में इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं घटित हो रही हैं लेकिन मीडिया को इसपर चर्चा करने की या न्यूज दिखाने की फुर्सत नहीं है, उसे तो केवल हिन्दू संस्कृति मिटानी है इसलिए पवित्र हिन्दू साधु-संतों को ही बदनाम करना है ।
🚩गांधी जी ने बताया था कि धर्म परिवर्तन वह जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है । हमें गौमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देनेवाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए ।
🚩फिलॉसफर नित्शे लिखते हैं कि मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है ।
🚩हिंदुस्तानी ऐसे धर्म, पादरी और चर्च से बचके रहें । धर्मपरिवर्तन करके अपना जीवन बर्बाद न करें । याद रहे श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण ने भी कहा है कि "स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" अर्थात स्वधर्ममें मरना भी कल्याणकारक है, पर परधर्म तो भय उपजानेवाला है । अतः धर्मान्तरण की आंधी से बचकर रहें ।
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Thursday, January 3, 2019

जानिये कुंभ की उत्पत्ति कैसे हुई और कहाँ-कहां कुंभ मेला लगता है ?

3 जनवरी  2019


🚩कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं । इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है । 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था । 2019 में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होगा ।

🚩खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं । मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है । यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है ।
Know how Kumbh originated and where
 and where does Kumbh Mela occur?

🚩प्रयागराज में कुंभ पर्व का लाभ उठाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु एकत्रित हो रहे हैं । इस निमित्त से कुंभ मेले की महिमा का वर्णन करनेवाले सूत्र पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।

🚩कुंभ पर्व का अर्थ

प्रत्येक 12 वर्ष के उपरांत प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में आनेवाला पुण्ययोग ।

🚩कुंभपर्व की उत्पत्ति की कथा:-

अमृतकुंभ प्राप्ति हेतु देवों एवं दानवों ने (राक्षसोंने) एकत्र होकर क्षीरसागरका मंथन करने का निश्चय किया । समुद्रमंथन हेतु मेरु (मंदार) पर्वत को बिलोने के लिए सर्पराज वासुकी को रस्सी बनने की विनती की गई । वासुकी नाग ने रस्सी बनकर मेरु पर्वत को लपेटा । उसके मुख की ओर दानव एवं पूंछ की ओर देवता थे । इस प्रकार समुद्रमंथन किया गया । इस समय समुद्रमंथनसे क्रमशः हलाहल विष, कामधेनु (गाय), उच्चैःश्रवा (श्वेत घोडा), ऐरावत (चार दांतवाला हाथी), कौस्तुभमणि, पारिजात कल्पवृक्ष, रंभा आदि देवांगना (अप्सरा), श्री लक्ष्मीदेवी (श्रीविष्णुपत्नी), सुरा (मद्य), सोम (चंद्र), हरिधनु (धनुष), शंख, धन्वंतरि (देवताओंके वैद्य) एवं अमृतकलश (कुंभ) आदि चौदह रत्न बाहर आए । धन्वंतरि देवता हाथ में अमृतकुंभ लेकर जिस क्षण समुद्रसे बाहर आए, उसी क्षण देवताओं के मनमें आया कि दानव अमृत पीकर अमर हो गए तो वे उत्पात मचाएंगे । इसलिए उन्होंने इंद्रपुत्र जयंतको संकेत दिया तथा वे उसी समय धन्वंतरि के हाथोंसे वह अमृतकुंभ लेकर स्वर्गकी दिशा में चले गए । इस अमृतकुंभ को प्राप्त करनेके लिए देव-दानवोंमें 12 दिन एवं 12 रातोंतक युद्ध हुआ । इस युद्ध में 12 बार अमृतकुंभ नीचे गिरा । इस समय सूर्यदेवने अमृतकलश की रक्षा की एवं चंद्र ने कलश का अमृत न उड़े इस हेतु सावधानी रखी एवं गुरु ने राक्षसों का प्रतिकार कर कलश की रक्षा की । उस समय जिन 12 स्थानों पर अमृतकुंभ से बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर उपरोक्त ग्रहों के विशिष्ट योग से कुंभपर्व मनाया जाता है । इन 12 स्थानोंमें से भूलोक में प्रयाग (इलाहाबाद), हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक समाविष्ट हैं ।


🚩3. कुंभपर्वका विविध धर्मग्रंथोंमें वर्णित माहात्म्य:-

3 अ. ऋग्वेद

        ऋग्वेदके खिलसूक्तमें कहा गया है –

🚩सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति ।

ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।

– ऋग्वेद, खिलसूक्त

अर्थ : जहां गंगा-यमुना दोनों नदियां एक होती हैं, वहां स्नान करनेवालों को स्वर्ग मिलता है एवं जो धीर पुरुष इस संगम में तनुत्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष-प्राप्ति होती है ।

🚩3 आ. पद्मपुराण

प्रयागराज तीर्थक्षेत्र के विषय में पद्मपुराण में कहा गया है –

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी ।

तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।।

अर्थ : जिस प्रकार ग्रहोंमें सूर्य एवं नक्षत्रोंमें चंद्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सर्व तीर्थोंमें प्रयागराज सर्वोत्तम हैं ।

🚩3 इ. कूर्मपुराण

कूर्मपुराण में कहा गया है कि प्रयाग तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है ।

🚩3 ई. महाभारत

प्रयागः सर्वतीर्थेभ्यः प्रभवत्यधिकं विभो ।।

श्रवणात् तस्य तीर्थस्य नामसंकीर्तनादपि ।।

मृत्तिकालम्भनाद्वापि नरः पापात् प्रमुच्यते।।

– महाभारत, पर्व ३, अध्याय ८३, श्लोक ७४, ७५

अर्थ : हे राजन्, प्रयाग सर्व तीर्थों में श्रेष्ठ है । उसका माहात्म्य श्रवण करनेसे, नामसंकीर्तन करनेसे अथवा वहां की मिट्टी का शरीर पर लेप करने से मनुष्य पापमुक्त होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – कुंभमेलेकी महिमा एवं पवित्रताकी रक्षा )

🚩इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को 10,000 ईसापूर्व (ईपू) स्वसिद्ध किया । जब इतिहासकार मानते है कि यीशु से 10, 000 साल पहले से कुंभ है तो सनातन संस्कृति तो जब से सृष्टि उत्पन्न हुई है तबसे है, फिर भी कुछ मुर्ख लोगों द्वारा 2018 साल पुराना धर्म को लेकर नया साल मनाने लगे ।

🚩ज्योतिषीय महत्व:-

ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेषराशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है । ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है । यही कारण है ‍कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है । हालाँकि सभी हिंदू त्यौहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है ।

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Wednesday, January 2, 2019

केवल मासिक धर्म ही नहीं और भी कारण हैं सबरीमाला प्रवेश के, चल रही है साजिश

2 जनवरी  2019

🚩दुनिया में सबसे ज्यादा हिंदू अगर कहीं बचे हैं तो वे हैं भारत देश में, दुनिया में किसी भी देश में हिंदु सुरक्षित नहीं है, पाकिस्तान, बांगलादेश , अफगानिस्तान आदि देशों में तो हिंदू नर्क जैसा जीवन जी रहे हैं । 

🚩भारत में भले ही हिंदू बहुसंख्यक हो लेकिन उनको सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जाती है, यहाँ तक ही अपने ही धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए टैक्स देना पड़ता है । हिन्दू देवी-देवताओं को गालियां दी जा रही है, मंदिरों से टैक्स वसूला जा रहा है, हिंदूओं का इतिहास गायब कर दिया गया, हिंदूओं का धर्मांतरण किया जा रहा है और उनके खिलाफ जो आवाज उठाते हैं, उन हिंदू कार्यकर्त्ताओं और हिंदू साधू-संतों की या तो हत्या कर दी जाती है या उन्हें झूठे केस में जेल भिजवाया जाता है ।

🚩अभी हाल ही में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जो विवाद चल रहा है, उसमें कोई भी हिंदू महिला प्रवेश के लिए तैयार नहीं है पर कुछ वामपंथी, मिशनरियां आदि विदेशी शक्तियां मंदिर की पवित्रता को खत्म करने के लिए एक षड्यंत्र कर रही हैं, मंदिर के कारण वहाँ के हिंदूओ में संयम बढ़ रहा है, ब्राह्मण, दलित सभी एकजुट हैं, जिसके कारण धर्मान्तरण का धंधा नहीं चल रहा था इन सभी कारणों को लेकर मंदिर में प्रवेश करवाने की साजिश चल रही है, नहीं तो किसी मुस्लिम महिला को मस्जिद में प्रवेश नहीं मिलता है तो उसके लिए किसी की आवाज नहीं उठ रही है ।
Not only menstruation, but also the reasons
 for entry into Sabarimala, the ongoing conspiracy

🚩पवित्र सबरीमाला के पावन इतिहास से जो लोग अभी अंजान हैं उनके लिए ही वहां की परम्पराओं पर सवाल उठाना अभिव्यक्ति की वो आज़ादी है जिसके पीछे कुछ लोग भारत में न जाने क्या-क्या बोल जाते हैं, लेकिन सनातन परम्परा में विश्वास करने वाले तमाम धार्मिक लोगों के लिए सबरीमाला का पावन इतिहास और उसका पौराणिक महत्व उनके पूर्वजों द्वारा दिया गया वो आशीर्वाद है जिसे वो सदियों से सहेज कर आये थे ।

🚩ज्ञात हो कि दक्षिण में जहाँ हिन्दुओं का श्रृंखलाबद्ध नरसंहार PFI जैसे समूहों पर करने का आरोप लग रहा है तो वहीं चौराहे पर गौ मांस काट कर खाना भी कुछ लोगों ने अपनी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति बना ली है .. लेकिन हद तो तब हो गयी जब लोग उसके आगे बढ़ गये और पावन धाम सबरीमाला की उस परम्परा पर वार कर रहे हैं जो वहां के हिन्दुओं की एक प्रकार से अमिट निशानी के रूप में सदियों से स्थापित रहा है । ध्यान देने योग्य है कि दक्षिण के सबसे प्रसिद्ध हिन्दू शक्तिपीठों में से एक सबरीमाला भारत के प्रमुख हिंदू मंदिरों में एक है । पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर परिसर में आते हैं ।

🚩सबरीमाला मंदिर में दर्शन को लेकर कई मान्यताएं हैं । कुछ के मुताबिक महिलाओं के पीरियड्स होने को अशुभ माना जाता है तो कई मान्यताओं के मुताबिक भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए बहुत ही पवित्र और कठिन पूजा करनी होती है । इस मन्दिर से जुड़ी पुरानी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, भगवान अयप्पा अविवाहित हैं । वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं । उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते ।” महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक की बात का पीरियड्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है ।

🚩एक कथा यहाँ के हिन्दू समाज के हर घर में आज भी कही और सुनी जाती है । उसी धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया । इस दौरान राजा राजशेखर ने उन्हें 12 सालों तक पाला । बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया । पुराणों के अनुसार अयप्पा विष्णु और शिव के पुत्र हैं । यह किस्सा उनके अंदर की शक्तियों के मिलन को दिखाता है न कि दोनों के शारीरिक मिलन को । देवता अयप्पा में दोनों ही देवताओं का अंश है, जिसकी वजह से भक्तों के बीच उनका महत्व और बढ़ जाता है ।

🚩मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं । मंदिर की वेबसाइट के मुताबिक, इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया इतनी पवित्र है कि कोई भी तीर्थयात्री 41 दिनों का कठिन व्रत रखे बिना ऐसा नहीं कर सकता । श्रद्धालुओं को मंदिर जाने से पहले कुछ रस्में भी निभानी पड़ती हैं । सबरीमाला के तीर्थयात्री काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं और जब तक यात्रा पूरी न हो जाए, उन्हें शेविंग की इजाजत भी नहीं होती । इस तीर्थयात्रा के दौरान वे अपने माथे पर चंदन का लेप भी लगाते हैं । माना जाता था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और जो महिलाएं रजस्वला होती हैं उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए । - स्त्रोत्र : सुदर्शन न्यूज़

🚩दुनिया के नक्शे से सनातन हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए सदियों से षड्यंत्र चल रहा है जिसे रोकना बेहद जरूरी है । 

🚩भारत में 700 साल मुगलों ने राज किया और 200 साल अंग्रेजों ने राज किया तब से तो काफी हिंदू सेकुलर बन गए हैं, मानसिक गुलाम बन गए हैं अपने धर्म के प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं, भले अभी इनको यह बात समझ में न आये, लेकिन अभी नहीं समझे तो जब अल्पसंख्यक बन जायेंगे और उनपर कश्मीरी पंडितों की तरह भयंकर अत्यचार होंगे  तब समझ में आयेगा, बस इतना ही कहना है कि आग लगने से पहले कुआँ तैयार रखना चाहिए ।

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