कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता की पोल खुल चुकी है । चर्च कुकर्मों की पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी ।
कन्फेशन यानी अपनी गलतियों को खुलकर किसी से कहना । जिससे मन से बोझ तो उतरता है, साथ ही कन्फेस ये भी बताता है कि वो गलती दोबारा नहीं होगी । कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स चर्च में कन्फेशन आम है । लोग अक्सर पादरी के सामने अपने सिन यानी पापों को कन्फेस करते हैं, लेकिन ये यौन उत्पीड़न का जरिया बनने लगा है । केरल के कोट्टायम में एक महिला ने एक के बाद एक चार पादरियों पर उसे ब्लैकमेल करके यौन शोषण का आरोप लगाया ।
इसी से मिलता-जुलता मामला पंजाब के जालंधर से आया, जहां पीड़िता का आरोप था कि कन्फ़ेशन के दौरान अपने राज बांटने पर पहले एक पादरी ने उसका यौन शोषण किया । इसके बाद से कन्फेशन की प्रक्रिया सवालों के घेरे में है । यहां तक कि राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने चर्च में कन्फेशन पर रोक लगाने की सिफारिश भी की । अपनी सिफारिश में आयोग ने लिखा कि ये महिलाओं की सुरक्षा में रोड़ा हैं ।
Disclosure: In the Pastor Church, due to the Confession tradition, sexually exploited |
जानिए, क्या है ये कन्फेशन और कैसे बन गया यौन शौषण का जरिया :-
चर्च में कन्फेशन की प्रक्रिया का बाइबिल में जिक्र मिलता है । इसे ऑग्सबर्ग कन्फेशन कहा जाता है, जिसके दो स्टेप हैं । पहला पाप की समझ से पैदा होने वाला डर और दूसरा चरण है जिसमें किसी को अपनी गलती का अहसास हो जाए और साथ ही ये यकीन भी हो जाए कि ईश्वर ने उसे पाप की माफी दे दी है । बाइबिल के दूसरे चैप्टर में माना गया है कि रोजमर्रा के कामों के दौरान सबसे कोई न कोई गलती हो जाती है, जिनका प्रायश्चित्त होना जरूरी है तभी मन शुद्ध होता है । चर्च के पादरी को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हुए उसके सामने पापों का कन्फेशन किया जाता है ।
ये है प्रक्रिया :-
चर्च में कन्फेशन के लिए एक जगह तय होती है । वहां कन्फेस करने वाले व्यक्ति और पादरी के सामने आमतौर पर एक परदा होता है । इन दोनों के अलावा और कोई भी वहां मौजूद नहीं होता है । पादरी के सामने कन्फेशन बॉक्स में खड़ा होकर कोई भी अपनी गलतीं बता सकता है और यकीन करता है कि पादरी उस राज को अपने और ईश्वर तक ही सीमित रखेगा ।
कौन नहीं कर सकता है कन्फेस :-
10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कन्फेशन की प्रक्रिया नहीं है क्योंकि माना जाता है कि उन्हें सहीं-गलत का कोई अहसास नहीं होता है और वे जो भी करते हैं, भूल हो सकती है लेकिन अपराध नहीं । इसी तरह से मानसिक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर लोगों के लिए इस प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं है, यानी उन्हें भी इसकी इजाजत नहीं ।
पूरी दुनिया में यौन शोषण :-
कन्फेशन बॉक्स को आजकल डार्क बॉक्स कहा जा रहा है क्योंकि इसके साथ ही महिलाओं के यौन शोषण का लंबा सिलसिला सुनाई पड़ रहा है । भारत के अलावा यूरोप, अमेरिका और दूसरे देशों में भी कैथोलिक चर्चों में पादरियों द्वारा यौन शोषण की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं । अमेरिका के पेनसिल्वेनिया में पादरियों द्वारा हजार से भी ज्यादा बच्चों के यौन शोषण की एक खबर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया । यहां तक कि रोमन कैथोलिक चर्च के पोप को दुनियाभर के पादरियों के इन अपराधों के लिए माफी मांगनी पड़ी है । पादरियों द्वारा यौन शोषण की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए वैटिकन सिटी ने कई सख्त फैसले लिए, जिसमें पादरियों का निलंबन भी शामिल रहा ।
महिलाओं के साथ यौन शोषण के अधिकतर मामलों की वजह कन्फेशन रहा, जिसके बूते पादरी उन्हें ब्लैकमेल करने लगे । इसी को देखते हुए महिला आयोग ने कन्फेशन की प्रक्रिया बंद करने की सिफारिश की । आयोग ने कहा कि चर्च में यौन शोषण की पारदर्शी जांच केंद्रीय एजेंसी के जरिए होनी चाहिए ।
स्त्रोत : न्यूज 18
स्त्रोत : न्यूज 18
कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी । एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी । मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी । ’ यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है । सान डियेगो चर्च के अधिकारियों ने पादरियों के द्वारा किये गये बलात्कार, यौन-शोषण आदि के 140 से अधिक अपराधों के मामलों को निपटाने के लिए 9.5 करोड़ डॉलर चुकाने का ऑफर किया था ।
देश-विदेशों में इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं घटित हो रही हैं लेकिन मीडिया को इसपर चर्चा करने की या न्यूज दिखाने की फुर्सत नहीं है, उसे तो केवल हिन्दू संस्कृति मिटानी है इसलिए पवित्र हिन्दू साधु-संतों को ही बदनाम करना है ।
गांधी जी ने बताया था कि धर्म परिवर्तन वह जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है । हमें गौमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देनेवाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए ।
फिलॉसफर नित्शे लिखते हैं कि मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है ।
हिंदुस्तानी ऐसे धर्म, पादरी और चर्च से बचके रहें । धर्मपरिवर्तन करके अपना जीवन बर्बाद न करें । याद रहे श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण ने भी कहा है कि "स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" अर्थात स्वधर्ममें मरना भी कल्याणकारक है, पर परधर्म तो भय उपजानेवाला है । अतः धर्मान्तरण की आंधी से बचकर रहें ।
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