Saturday, December 21, 2019

25 दिसंबर और ईसा मसीह का सच जानकर आप छोड़ देंगे क्रिसमस मनाना

21 दिसंबर 2019

🚩 *यूरोप, अमेरिका आदि ईसाई देशों में इस समय क्रिसमस डे की धूम है, लेकिन अधिकांश लोगों को तो ये पता ही नहीं है कि यह क्यों मनाया जाता है !*

🚩 *भारत में भी कुछ भोले-भाले हिन्दू आदि लोग क्रिसमस की बधाई देते हैं और उनके साथ क्रिसमस मनाते हैं पर उनको भी नहीं पता है कि क्रिसमस क्यों मनाई जाती है ?*

🚩 *कुछ लोगों का भ्रम है कि इस दिन यीशु मसीह का जन्मदिन होता है। पर सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है । एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ई.पू. से 2 ई.पू. के बीच 4 ई.पू. में हुआ था । जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान, सभी बातें अज्ञात है। इसका बाईबल में भी कोई उल्लेख नहीं है। यदि वह इतने प्रसिद्द संत, महात्मा या अवतारी व्यक्ति होते तो सारा ब्यौरा तत्कालीन जनता जानने का यत्न करती ।*
reality of christmas

🚩 *विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है । यह कितनी असंगत बात है? भला ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? कालगणना अगर यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, जन्म से पूर्व ई.पू. और बाद में ई. में की जाती है तो यीशु मसीह का जन्म 4 ई.पू. में कैसे हुआ?*

🚩 *और एक असंगति देखें । ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है एक जनवरी । तो क्या ईसा का जन्म ईसवीं सन से एक सप्ताह पहले हुआ ? और यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई ?*

🚩 *हाल ही में बीबीसी पर एक रिपोर्ट छपी थी उसके अनुसार यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुनकाल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाईबल में यीशु मसीह के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है।*

🚩 *वास्तव में पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रांति' (शीतकालीन संक्रांति) पर्व मनाया जाता था और यूरोप-अमेरिका आदि देश धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना करते थे । सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।*

🚩 *सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है । सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है । जिसके अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है । यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है, यूरोप उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है तो यहां से सर्दी कम होने की शुरुआत होती है, इसलिए 25 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाते थे।*

🚩 *विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया ।* 

🚩 *आपको बता दे कि सबसे पहले 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट  (First Christian Roman Emperor) के समय में  336 ईसवी में मनाया गया था। इसके कुछ साल बाद पोप जुलियस (Pop Julius) ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया, तब से दुनियाभर में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है।*

🚩 *आपको बता दें बाईबल में भी जिक्र नहीं है कि यीशु मसीह 13 साल से 29 साल की उम्र के बीच कहाँ रहे? यीशु ने भारत के कश्मीर में ऋषि मुनियों से साधना सीखकर 17 साल तक योग किया था, बाद में वे रोम देश में गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इत्र से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे ।*

🚩 *बाद में यीशु के अधिक लोक संपर्क से योगबल खत्म हो गया और उनको सूली पर चढ़ा दिया गया तब पूरा रोम शहर उनके खिलाफ था । रोम शहर में से केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ने से दुःखी थे ।*

🚩 *एक नए शोध के अनुसार यीशु ने उनकी शिष्या मेरी मेग्दलीन से विवाह किया था, जिनसे उनको दो बच्चे भी हुए थे। ब्रिटिश दैनिक 'द इंडिपेंडेंट में प्रकाशित रिपोर्ट में 'द संडे टाइम्स' के हवाले से बताया गया है कि ब्रिटिश लाइब्रेरी में 1500 साल पुराना एक दस्तावेज मिला है, जिसमें एक दावा किया गया है कि ईसा मसीह ने ना सिर्फ मेरी से शादी की थी बल्कि उनके दो बच्चे भी थे।*

🚩 *साहित्यकार और वकील लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक 'द बाइबिल इन इंडिया' (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। 'जीसस' शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को 'जीसस' नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है। इसका संस्कृत में अर्थ होता है 'मूल तत्व'।*
🚩 *इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि 'क्राइस्ट' शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह 'क्रिसना' शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही यूरोप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक 'द लाइफ ऑफ संत ईसा' पर आधारित फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट' नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है।*

🚩 *मॉनेस्ट्री के एक अनुभवी लामा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था कि ईसा मसीह ने भारत में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और वह बुद्ध के विचार और नियमों से बहुत प्रभावित थे। यह भी कहा जाता है कि जीसस ने कई पवित्र शहरों जैसे जगन्नाथ, राजगृह और बनारस में दीक्षा दी और इसकी वजह से ब्राह्मण नाराज हो गए और उन्हें बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद जीसस हिमालय भाग गए और बौद्ध धर्म की दीक्षा लेना जारी रखा। जर्मन विद्वान होल्गर केर्सटन ने जीसस के शुरुआती जीवन के बारे में लिखा था और दावा किया था कि जीसस सिंध प्रांत में आर्यों के साथ जाकर बस गए थे।*

🚩 *"फिफ्त गॉस्पल" फिदा हसनैन और देहन लैबी द्वारा लिखी गई एक किताब है जिसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी किताब 'अक्षरों की रासलीला' में विस्तार से किया है। ये किताब जीसस की जिन्दगी के उन पहलुओं की खोज करती है जिसको ईसाई जगत मानने से इन्कार कर सकता है। जैसे मसलन कुँवारी माँ से जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे।*

🚩 *बीबीसी ने “Jesus Was A Buddhist Monk” नाम से एक डॉक्युमेंट्री बनाई थी जिसमें बताया गया था कि यीशु मसीह को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था। जब वह 30 वर्ष के थे तो वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। डॉक्युमेंट्री के मुताबिक यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि यीशु मसीह ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। अगर यीशु मसीह ने 16 वर्ष किशोरावस्था में और जिंदगी के आखिरी 45 साल व्यतीत किए तो इस हिसाब से वह भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में करीब 61 साल रहे। कई स्थानीय लोगों का मानना है कि कश्मीर के श्रीनगर में रोजा बल श्राइन में जीसस की समाधि बनी हुई है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। अगर इस बात को सत्य माना जाए तो इसका मतलब है कि यीशु मसीह को कील ठोककर क्रॉस पर लटकाना आदि बातें झूठ है। ईसाई मिशनरियों इसी बात को बोलकर यीशु मसीह को भगवान का बेटा बताती है। इसका मतलब ईसाई मिशनरियां केवल धर्मांतरण के लिए ये सफेद झूठ बोलती है।*

🚩 *यदि यीशु मसीह ने धार्मिक प्रवचन करते अपना जीवन बिताया होता तो उसके प्रवचनों की कोई बड़ी पुस्तक जरूर होती या कम से कम बाइबिल में ही उसके प्रवचन होते । पर बाईबल में तो उनके किसी प्रवचन का जिक्र ही नहीं है? अब प्रश्न ये है कि वे सारे भाषण कहाँ हैं? इसका उत्तर आज तक किसी के पास नहीं है।*

🚩 *25 दिसंबर न यीशु का क्रिसमस से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । फिर भी भारत में पढ़े लिखे लोग बिना कारण का पर्व मनाते हैं। ये सब भारतीय संस्कृति को खत्म करने और ईसाईकरण के लिए भारत में क्रिसमस डे मनाया जाता है, इसलिये आप सावधान रहें ।*

🚩 *ध्यान रहे हिन्दुओं का नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है । हिन्दू महान भारतीय संस्कृति के महान ऋषि -मुनियों की संतानें हैं इसलिये दारू पीने वाला, मांस खाने वाला अंग्रेजो का नववर्ष मनाये ये भारतीयों को शोभा नहीं देता है ।*

🚩 *आपको बता दे कि वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य व् शांति से जन मानस का जीवन मंगलमय हो, इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिदू संत आशाराम बापूजी ने 25 दिसम्बर "तुलसी पूजन दिवस" के रूप में मनाना शुरू करवाया, समस्त भारतवासी भी 25 दिसम्बर तुलसी पूजन करके ही मनाये ।*

🚩 *तुलसी के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल व् आरोग्य बल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है। तुलसी माता पर्यावरण शुद्ध करती है, हवा को साफ करती है और तुलसी के घर में होने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।*

🚩 *उत्तर प्रदेश सरकार ने आगरा में ताजमहल के चारों ओर हजारों तुलसी के पौधा लगाये ताकि ताजमहल को पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।*

🚩 *मरने के बाद भी मोक्ष देनेवाली तुलसी पूजन की महत्ता बताकर जन-मानस को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि विज्ञान से परिचित कराया हिन्दू संतों ने ।*

🚩 *धन्य है ऐसे संत जो अपने साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार को ना देखकर संस्कृति की सेवा में आज भी सेवारत हैं ।*

🚩 *सभी भारतीय 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें ।*

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Friday, December 20, 2019

नागरिकता संशोधन एक्ट का मामला उतना सीधा भी नहीं जितना बताया जा रहा है

20 दिसंबर 2019

*🚩नागरिकता संशोधन कानून की असल बात दोनों पक्षों ने छिपा ली। सरकार ने अपना दूरगामी लक्ष्य छिपा लिया और विपक्ष ने अपनी हार की तिलमिलाहट छिपाने के लिए संविधान की आड़ ले ली। कुछ बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं।*
*🚩क्या हैं इसके दूरगामी परिणाम:*

*●CAA के माध्यम से सरकार ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के वृषण भाग (अंडकोष) पर ऐसा घुटना मारा है जिससे ये तिलमिला तो गए हैं, लेकिन अपना दर्द नहीं बयां कर पा रहे हैं। सरकार ने ये बिल लाकर बिना इनका नाम लिए बिना पूरी दुनिया को बता दिया कि इन देशों में अल्पसंख्यकों (खासकर हिंदुओ) का उत्पीड़न हो रहा है।*
नागरिकता संशोधन कानून

*🚩◆बिल पास होते ही बांग्लादेश को दुनिया के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए कहना पड़ा कि वह अपने सभी नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और उन्होंने स्वीकार भी किया कि उनके यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हुआ है।*

*🚩●कश्मीर में उत्पीड़न का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने ऊल-जुलूल बयान दिया, लेकिन यूएन की रिपोर्ट ने उसकी पोल खोल दी।*

*🚩●इस बिल के आने से पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ हो रहा था वह अब एक दस्तावेजी रिकॉर्ड बन गया है, जुबानी जमा खर्च नहीं है। भारत में जितने लोगों को यहां नागरिकता दी जाएगी ये दोनों देश उतने ही एक्सपोज होते जायेंगे।*

*🚩●इस बिल के पास होने के बाद ही बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिए म्यांमार पर दबाव बना शुरू कर दिया है।*

*🚩●इस बिल के आने के बाद भारत में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक पीड़ित खुलकर बता सकेंगे कि वे किस देश से आए हैं, इससे इन देशों की और पोल खुलेगी। इसके चलते इनको अपने यहां उन कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, जिनका उपयोग ये दोनों देश  भारत को ब्लैकमेल करने के लिए करते हैं।*

*🚩विपक्ष ने क्या छिपाया अपना दर्द?*

*●विपक्ष को पता है कि इसका भारत के नागरिकों पर असर नहीं पड़ने वाला लेकिन 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर प्रतिरोध न होना, सबकुछ शांति से निपट जाने पर विपक्ष काफी चकित था, उसे इस तरह का निष्कंटक राज पसंद नहीं आ रहा था। इसलिए उसने एनआरसी का डर दिखाकर लोगों को भड़काया, लेकिन देश में इतनी हिंसा हो गई इससे विपक्ष का ये पांसा भी उल्टा ही पड़ता दिखाई दे रहा है।*

*🚩● गृहमंत्री अमित शाह का ये कहना कि रोहिंग्या को हम रहने नहीं देंगे, एनआरसी तो हम लेकर ही आएंगे। भारत में पिछले 70 साल में इतनी स्पष्टता से संसद में किसी नेता ने भाषण नहीं दिया था। इस भाषण से देश के बहुत से स्वयंभू लोगों ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया, उनकी अकड़ को ठेस पहुंची।*

*🚩●मौलाना, पर्सनल लॉ बोर्ड, फतवेबाजों के फफोले भी इस बिल के माध्यम से फूट पड़े जो पिछले कई महीनों से इस सरकार की कारगुजारियों से कलेजे में पड़े हुए थे। इन्हें अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया।*

*🚩अब आगे क्या?*

*●मौलानाओं, धर्म के ठेकेदारों, पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी अवैध संस्थाओं को डर है कि ये सरकार कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून, एनआरसी पर बहुत तेजी से काम कर सकती है, इसलिए इसका एक ही उपाय है हिंसा। हिंसा फैलाकर देश-दुनिया का ध्यान खींचो, सरकार अपने आप कदम पीछे खींच लेगी।*

*🚩●सरकार इसको लिटमस टेस्ट भी मान सकती है क्योंकि 370, राम मंदिर, तीन तलाक पर जिस तरह से शांति रही थी, उससे सरकार मुगालते में आ गई थी, अब सरकार आगे की चीजों को करने से पहले अपनी जरूरी तैयारी करके रखेगी।*

*🚩●अब शायद हिन्दू बोलते ही चीखने, हिंसा करने वालों को शायद समझ में आ जाए कि एक तो चीखने का कोई फायदा नहीं, दूसरा आप लोग एक्सपोज हो चुके हो और तीसरा इस देश के नागरिक हिन्दू भी हैं, उनके लिए भी कुछ करने की जिम्मेदारी सरकार की है, सिर्फ एक ही समुदाय का तुष्टिकरण नहीं किया जा सकता।*

*🚩●इस सख्ती का तात्कालिक फायदा ये होता दिख रहा है कि फिलहाल बाकी देशों से घुसपैठिए थोड़ा ठिठकेंगे, जो खिसक सकते हैं वे तुरंत यहां से खिसकेंगे।*

*🚩●भारत को सराय समझने वाले यहां आने से पहले दस बार सोचेंगे। पड़ोसी सरकारें भी शायद हमारी सरकारों को गंभीरता से लेने लगेंगी, क्योंकि अब चीजें रिकॉर्ड पर आएंगी, हवाई किले बनाने के दिन लद गए।*

*कुछ लोग बोलते है की मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर करना..*

*🚩लेकिन इन आंकड़ों को भी देखिए:*

*➡️ पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या 22% से घट के 1.7% क्यों हुई?*

*➡️बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या 31% से घट के 8% क्यों हुई?*

*➡️कश्मीर में हिंदुओं की संख्या 50% से घट के 0% क्यों हुई?*

*🚩हिंदुओं पर दशकों से अत्याचार हो रहा था, घुसपैठियों के कारण देश की सुरक्षा पर भी खतरा था, अब कोई सरकार सबको समान हक देने की बात करने लगी, देश की सुरक्षा के बारे में सोचने लगी तो सेक्युलर, वामपंथी, विपक्ष, कुछ मीडिया को पेट मे दर्द होने लगा हिंसा करवाने लगे कुछ लोग करने भी लगे ओर देश को ही नुकसान पहुँचाने लगे।*

*🚩हर हिंदुस्तान ऐसे देश व हिंदू विरोधी लोगो को पहचान ले और उनका संपूर्ण बहिष्कार करें और सरकार का समर्थन कर जिससे सरकार देश व संस्कृति के अच्छे कार्य कर सके।*

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भारत में CAA लागू करना क्यों जरूरी था?, नहीं होता तो क्या होता ?

19 दिसंबर 2019
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*🚩दुनिया भारत को "हिंदू देश" जानती है। अनुच्छेद 370 हटाने को सामान्य बताते हुए सऊदी प्रिंस ने कहा था कि "वह तो हिंदू देश है", लेकिन यही देश यानी भारत जब पड़ोस के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शरण दे रहा है तो आपत्ति हो रही है। आपत्ति करने वालों में अग्रणी हिंदू परिवारों में जन्मे नेता और बुद्धिजीवी भी हैं। उन्हें बांग्लादेश और पाकिस्तान में प्रताड़ित हो रहे हिंदू धर्म-समाज के सिवा सबकी चिंता है। उन्हें हिंदू समाज के अतिरिक्त कहीं कोई अंधविश्वास, क्रूरता, गंदगी नहीं दिखती। यह विचित्र संवेदनहीनता है। विडंबना यह है कि यह संवेदनहीनता स्वतंत्र भारत में विकसित हुई।*
bharat-me-caa-laagu-karana-kyu-zaruri-tha

*🚩भारतीय अर्थव्यवस्था में धीमेपन को ’हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ कहकर कोसा गया, जबकि कारण नेहरूवादी कम्युनिस्ट नीतियां थीं। हालांकि गत सात सौ साल से भारत हिंदू शासकों द्वारा नहीं, वरन विदेशियों से शासित रहा, फिर भी सारी गड़बड़ी का कारण हिंदू समाज को बताया जाता है। वस्तुत: लंबी विदेशी दासता और विजातीय शिक्षा ने एक वर्ग को आत्महीन बना दिया है। वे हिंदुओं पर होने वाले अन्याय, भेदभाव से निर्विकार रहते हैं, जबकि बाकी देश-विदेश के किसी भी समूह के लिए भरपूर परेशान होते हैं। इसी का नया उदाहरण सामने है।*
*🚩सत्तर वर्षों से उपेक्षित, अनाथ हिंदुओं, बौद्धों और अन्य ऐसे ही अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलने के निर्णय से वे तनिक भी प्रसन्न नहीं हुए। वे मुस्लिम आव्रजकों के लिए चिंतित हैं और इस पर संविधान की दुहाई दे रहे हैैं। यह भूलकर कि संविधान देश के नागरिकों पर लागू होता है, विदेशी लोगों पर नहीं। अन्य देशों, लोगों, घटनाओं आदि पर नीति आवश्यकतानुसार बनती है। जैसे यह तर्क मूर्खतापूर्ण है कि किसी देश के साथ संधि की तो दूसरे के साथ क्यों नहीं की? वैसे ही कहा जा रहा है कि एक शरणार्थी को लिया तो दूसरे को क्यों नहीं लिया?*
*🚩जो लोग अभी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के मुस्लिम ‘उत्पीड़ितों’ के लिए आहें भर रहे हैं, उन्होंने कभी भी देश के अंदर ही चार लाख कश्मीरी पंडितों के अपमान, विस्थापन और सामूहिक संहार पर एक बयान तक नहीं दिया, जुलूस और विरोध तो दूर की बात है। इसी तरह पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिजी, मलेशिया आदि में हिंदुओं और अन्य अल्ससंख्यकों के साथ होते दुर्व्यवहार, जुल्म पर कभी एक शब्द नहीं कहा।*
*🚩अरब देशों में काम करने वाले लाखों हिंदू अपने धर्म-त्योहार नहीं मना सकते, मगर इस पर हमारे बौद्धिकों ने कभी औपचारिक प्रतिवाद नहीं किया। नागरिकता कानून पर सारे शोर-शराबे के पीछे भारतीय हितों के विरोध की राजनीति है। यह अन्य धर्मों के दुखियारों की चिंता हरगिज नहीं है। यह हिंदू धर्म-समाज पर चोट करने, लज्जित, अपमानित करने का नया बहाना है। इन निंदकों ने कभी जेहादियों या धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने वाले मिशनरियों की भी आलोचना नहीं की। माओवादियों, उग्रवादियों की क्रूर हिंसा पर भी उन्हें कुछ महसूस नहीं होता, किंतु कोई हिंदू संगठन अपने मंदिरों पर इस्लामी या सरकारी कब्जा हटाने की मांग करे तो इन्हें नागवार लगता है। वे अयातुल्ला खुमैनी और यासीर अराफात जैसे शासकों के लिए शोकमग्न होते हैं। यही भावना औपचारिक शिक्षा तक में घुसा दी गई है। पाठ्य पुस्तकों में महानतम हिंदू ज्ञान-ग्रंथों के प्रति भी तिरस्कार मिलता है, जबकि हिंसा और अंधविश्वास से भरी सामग्री के प्रति आदर भरे लंबे-लंबे अध्याय हैं।*
*🚩रोज घटने वाले ऐसे विचित्र कारनामों की सूची अंतहीन है। उनमें केवल एक समान तत्व है। हर हिंदू पीड़ा और चाह की निंदा, खिल्ली उड़ाना तथा हर मुस्लिम, ईसाई गतिविधि को समर्थन या उनका बचाव, चाहे वह गैर-कानूनी, हिंसक और अमानवीय ही क्यों न हो। नियमित ऐसे समाचार आते रहते हैं, लेकिन नागरिकता का मुद्दा जनसांख्यिकी समस्या से भी जुड़ा है, इसलिए यह अधिक गंभीर है। आज यूरोप और अमेरिका में भी जनसांख्यिकी एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि यह जेहादी हथियार के रूप में भी प्रयोग हो रहा है।*
*🚩ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की हालिया जीत में यह एक प्रमुख कारण है, जहां लोगों ने यूरोपीय संघ से अलग होने का निश्चय दोहराया। वे अरब से आने वाले शरणार्थियों को रोकना चाहते हैं, क्योंकि कई इस्लामी संगठनों की रणनीति मुस्लिम आबादी बढ़ाकर प्रभुत्व कायम करना है। बहुत पहले लाहौर में इस्लामी देशों की एक बैठक में यूरोप में मुस्लिम आव्रजन बढ़ाकर ‘जनसांख्यिकी प्रभुत्व’ की योजना घोषित की गई थी। कुछ भारतीय मुस्लिम नेता भी ऐसी बातें कहते रहते हैं। वे कश्मीर पर मुंह सिले रखते हैैं, पर बोस्निया, अफगानिस्तान, इराक जैसे देशों के लिए नियमित बयान जारी करते रहते हैं। यह पूरा परिदृश्य मामले की गंभीरता दिखाता है।*
*🚩पूर्वी यूरोप ने तो मुस्लिम आव्रजन पर पूरी पांबदी लगा दी है। आरके ओहरी की पुस्तक ‘लांग मार्च ऑफ इस्लाम’ में दुनिया के जेहादी आंदोलनों का लेखा-जोखा है। जब दुनिया में मुस्लिम आबादी 18 प्रतिशत थी तो केवल सात देशों में जेहाद चल रहा था। आज यह आबादी बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई है तो तीस देश जेहाद की मार झेल रहे हैं। सीरिया, लेबनान, बोस्निया, कोसोवो इसके उदाहरण हैं।*
*🚩याद रहे कि भारत विभाजन भी जेहादी सिद्धांत पर हुआ था। मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव में भी जेहाद का उल्लेख था। फिर भारत में कश्मीर या बंगाल को भारत से अलग करने की बात भी केवल मुस्लिम संख्या बल के आधार पर ही की जाती रही है। तब क्या दुनिया के एकमात्र हिंदू देश भारत को फिक्र नहीं करनी चाहिए कि यहां जनसांख्यिकी और न बिगड़े? यहां के मुसलमान पहले ही अपने लिए एक अलग देश तक ले चुके हैं। ये बातें कोई सांप्रदायिकता, असहिष्णुता नहीं, बल्कि अपना धर्म और देश बचाने की चिंता है। इससे आंख चुराने को प्रगतिशीलता कहा जा रहा है। वास्तव में इसी कारण बंगाल और दिल्ली की हिंसा पर चुप्पी साधी जा रही है। यह एक सुनियोजित साजिश ही है कि पहले लोगों को उकसाया गया, फिर जब वे हिंसा पर उतरे तो अराजकता फैलाने वालों के बजाय पुलिस और सरकार को कोसा जा रहा है।*
*🚩यह दुखद है कि सेक्युलर-वामपंथी बौद्धिक जिस पीड़ा, अन्याय और भेदभाव की चिंता सारी दुनिया के लोगों के लिए करते हैं, वह सौ वर्षों से हिंदू भी झेल रहे हैं, किंतु हमारे विचित्र बौद्धिक इन्हें अपने हाल पर छोड़ अपना आक्रोश और दुख बाकी हरेक के लिए व्यक्त करते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि व्यक्ति की तरह हर देश की भी अपनी आत्मा और नियति होती है। भारत की आत्मा और नियति हिंदू धर्म से जुड़ी है। इसकी रक्षा और चिंता करना किसी सच्चे भारतीय का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। यह हमारे देश ही नहीं, विश्व के हित के लिए भी जरूरी है, लेकिन उसकी अनदेखी करने को ही बौद्धिकता का पर्याय बना दिया गया है। - डॉ. शंकर शरण*
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