Saturday, July 22, 2023

सुभाष चन्द्र बोस ने अपने मित्र को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी के बारे में जो लिखा,वो हर नागरिक को पढ़ना चाहिए...

22 July 2023

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🚩नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जब बरहमपुर जेल से मांडले जेल के लिए स्थानांतरित करने का आदेश मिला तब उन्होंने अपने मित्र केलकर को माँ भारती के सपूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी बारे में पत्र लिखकर जो कुछ बताया...वो प्रत्येक भारतीय नागरिक को पढ़ना चाहिए । आज जो हम आजादी की,चैन की सांसे ले रहे हैं, उसके पीछे महापुरुषों ने कितने बलिदान दिए हैं...इसकी भी हमें जानकारी होना जरूरी है।


🚩 तिलक जी के बारे में उक्त पत्र में लिखे गए नेता जी के विचार पढ़े...


🚩प्रिय श्री केलकर


🚩मैं पिछले कई महीनों से आपको पत्र लिखने की सोच रहा था। जिसका कारण केवल यह रहा हैं, कि आप तक ऐसी जानकारी पहुंचा दूँ, जिसमें आपको रुचि होगी। मैं नहीं जानता आपको मालूम हैं या नहीं कि मैं यहाँ गत जनवरी से कारावास में हूँ। जब बरहमपुर जेल से मुझे मांडले जेल के लिए स्थानांतरित करने का आदेश मिला , तब मुझे यह स्मरण नहीं आया कि लोकमान्य तिलक ने अपने कारावास का अधिकतर समय मांडले जेल में ही गुजारा था। इस चार- दीवारी में, यहाँ के बहुत हतोत्साहित कर देने वाले परिवेश में, स्वर्गीय लोकमान्य तिलक ने सुप्रसिद्ध ‘गीता भाष्य ग्रन्थ’ लिखा था। जिसने मेरी नम्र राय में उन्हें शंकर और रामानुजन जैसे प्रकांड भाष्यकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। 


🚩जेल के जिस वार्ड में लोकमान्य तिलक रहते थे, वह आज तक सुरक्षित है। यद्यपि उसमें फेरबदल किया गया है और उसे बड़ा बनाया गया है। हमारे अपने जेल वार्ड की तरह, वह लकड़ी के तख्तों से बना हुआ है।  जिससे गर्मी में लूँ और धुप से, वर्षा में पानी से, शीत में सर्दी तथा सभी मौसम में धूल-भरी आंधियों से बचाव नहीं हो पाता था। मेरे यहाँ पहुँचने के कुछ ही क्षण बाद मुझे वार्ड का परिचय दिया गया।  मुझे यह बात बहुत अच्छी नहीं लग रही थी कि मुझे भारत से निष्कासित किया था। लेकिन मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि मांडले में अपनी मातृभूमि और स्वदेश से बलात अनुपस्थिति के बावजूद मुझे तिलक जी की वह पवित्र स्मृतियाँ राहत व प्रेरणा देगी। मथुरा की जेल की तरह यह भी एक ऐसा तीर्थ स्थल हैं, क्योकि वहां श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे और यहां भारत का एक महानतम सपूत छ: वर्षों तक रहा था। 


🚩हम सिर्फ इतना ही जानते हैं, कि लोकमान्य ने कारावास में छ वर्ष बिताए हैं।  मुझे विश्वास है, कि बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि उस अवधि में उन्हें किस हद तक शारीरिक और मानसिक यातनाओं से गुजरना पड़ा था।  वे वहां एकदम अकेले रहे उन्हें उनके बौद्धिक स्तर का कोई साथी नहीं मिला था।  मुझे विश्वास हैं, कि उनको किसी अन्य बंदी से भी मिलने-जुलने नहीं दिया जाता था।  उनको सांत्वना देने वाली एकमात्र वस्तु किताबें थी।  और वे एक कमरे में बिलकुल एकांकी रहते थे।  यहाँ रहते हुए उन्हें दो या तीन से अधिक मुलाकात का भी अवसर नहीं दिया गया था।  ये भेट भी जेल और पुलिस अधिकारियों के साथ हुआ करती थी। जिससे वे कभी खुलकर हार्दिकता से बात नहीं कर पाए होंगे।  उन तक कोई भी अख़बार नहीं पहुँचने दिया जाता था। उनकी जैसे प्रतिष्ठित नेता को बाहरी दुनिया के घटनाचक्र से एकदम अलग कर देना ,एक तरह की घोर यातना ही है और इस यंत्रणा को जिसने भुगता है,  वही जान सकता है। इसके अलावा उनके कारावास की अधिकांश अवधि में देश का राजनैतिक जीवन मंद गति से खिसक रहा था और इस विचार ने उन्हें कोई संतोष नहीं दिया होगा कि जिस उद्देश्य को उन्होंने अपनाया था ,वह उनकी अनुपस्थिति में किस गति से आगे बढ़ रहा है। उनकी शारीरिक यंत्रणा के बारे में जितना ही कम कहा जाए, बेहतर होगा। 


🚩वे दंड संहिता के अंतर्गत बंदी थे और इस प्रकार आज के राजबंदियो की अपेक्षा कुछ मायनों में उनकी दिनचर्या कही अधिक कठोर रही होगी| इसके अलावा उन्हें मधुमेह की बीमारी थी | जब लोकमान्य यहाँ थे ,मांडले का मौसम तब भी प्रायः ऐसा रहा होगा जैसा वह आजकल है और अगर आज नौजवानों को शिकायत है कि वहां की जलवायु शिथिल कर देने वाली और मन्दाग्नि तथा गठिया को जन्म देने वाली है और धीरे -धीरे वह व्यक्ति की जीवनी शक्ति को सोख लेती है । तो लोकमान्य ने ,जो वयोवृद्ध थे ,कितना कष्ट झोला होगा...!!

लेकिन इस कारागार की चहारदीवारियों में उन्होंने क्या यातनाएँ सही ,इसके विषय में लोगों को बहुत कम जानकारी है ।


🚩कितने लोगों को पता होता है, उन अनेक छोटी -छोटी बातों का ,जो किसी बंदी के जीवन में सुइयों की-सी चुभन बन जाती है और जीवन को दुर्भर बना देती है। वे गीता की भावना में मग्न रहते थे और शायद इसलिए दुःख और यंत्रणाओं से ऊपर रहते थे । यहीं कारण है , कि उन्होंने उन यंत्रणाओं के बारे में किसी से कभी एक शब्द भी नहीं कहा । समय -समय पर मैं इस सोच में डूबता रहा हूँ, कि कैसे लोकमान्य को अपनेबहुमूल्य जीवन के छह लंबे वर्ष इन परिस्थितियों में बिताने के लिए विवश होना पड़ा होगा।


🚩हर बार मैंने अपने आपसे पूछा ‘अगर नौजवानों को इतना कष्ट महसूस होता है, तो महान लोकमान्य को अपने समय में कितनी पीड़ा सहनी पड़ी होगी । जिसके विषय में उनके देशवासियों को कुछ भी पता नहीं !?

यह विश्व भगवान की कृति है , लेकिन जेलें मानव के कृतित्व की निशानी हैं। उनकी अपनी एक अलग दुनिया है और सभ्य समाज ने जिन विचारो और संस्कारों को प्रतिबद्ध होकर स्वीकार किया है। वे जेलों पर लागू नहीं होते हैं। अपनी आत्मा के हास्य के बिना, बंदी जीवन के प्रति अपने आपको अनुकूल बना पाना आसान नहीं है। इसके लिए हमें पिछली आदतें छोड़नी होती हैं और फिर भी स्वास्थ्य और स्फूर्ति बनाए रखनी पड़ती है। सभी नियमों के आगे नत होना होता है और फिर भी आंतरिक प्रफुल्लता अक्षुण्ण रखनी होती है। केवल लोकमान्य जैसा दार्शनिक ही, उस यन्त्रणा और दासता के बीच मानसिक संतुलन बनाए रख सकता था और भाष्य जैसे विशाल एवं युग निर्माणकारी ग्रन्थ का प्रणयन कर सकता था। मैं जितना ही इस विषय पर चिन्तन करता हूँ। उतना ही उनके प्रति आस्था और श्रद्धा में डूब जाता हूँ। आशा करता हूँ, कि मेरे देशवासी लोकमान्य की महत्ता को आंकते हुए इन सभी तथ्यों को भी दृष्टि पथ में रखेंगे...💐🙏 


🚩जो महापुरुष मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद इतने सुदीर्घ कारावास को झेलता गया और जिसने उन अन्धकारमय दिनों में अपनी मातृभूमि के लिए ऐसी अमूल्य भेंट तैयार की, उसे विश्व के महापुरुषों की श्रेणी में प्रथम पंक्ति में स्थान मिलना चाहिए...


🚩लोकमान्य ने प्रकृति के जिन अटल नियमों से अपने बंदी जीवन के दौरान टक्कर ली थी।  उनको अपना बदला लेना ही था। अगर मैं कहूँ तो मेरा विश्वास है,कि लोकमान्य ने जब मांडले को अंतिम नमस्कार किया था। तो उनके जीवन के दिन गिने चुने ही रह गये थे। निःसंदेह यह एक गंभीर दुःख का विषय है,कि हम अपने महानतम पुरुषों को इस प्रकार खोते रहे। लेकिन मैं यह भी सोचता हूँ,कि क्या वह दुखद दुर्भाग्य किसी न किसी प्रकार टाला नहीं जा सकता था !?


🚩आपको बता दें, कि लोकमान्य तिलक जी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।

वे कहते थे : ‘‘ अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’


🚩जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसी को तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवां बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है ।


🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अर्थात् हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए । राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए ।


🚩बात दें, कि सन् 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। 


🚩तिलकजी ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा...!!


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Friday, July 21, 2023

रामभक्तों को ज़िंदा जलाने वालों को न्यायलय ने दी पैरोल, राष्ट्र व सनातन धर्म की सेवा करने वाले जेल में....

21 July 2023

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🚩उड़ीसा में धर्मान्तरण का विरोध करने वाले और गौ तस्करों को सबक सिखाने वाले दारा सिंह को 22 साल जेल में रखा गया है। अपनी मां की अंतेष्टि करने के लिए भी पैरोल नही दी गई । वही दूसरी ओर गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा में ट्रेन में हिन्दुओं को जिन्दा जलाने के दोषी एक शख्स को पैरोल देते हुए कहा , कि इसे सज़ा की अवधि के भीतर गिना जाना चाहिए। पेरोल देने का ये अर्थ नहीं है कि सज़ा को निलंबित कर दी गई है। जस्टिस निशा एम ठाकोर ने हसन अहमद चरखा को 15 दिनों की पैरोल देते हुए ये टिप्पणी की। वो फ़िलहाल साबरमती एक्सप्रेस में महिलाओं-बच्चों समेत 59 रामभक्तों को ज़िंदा जलाए जाने के मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है।


🚩मार्च 2011 में सेशन कोर्ट द्वारा उसे सज़ा सुनाए जाते समय इसकी पुष्टि की गई थी, कि वो एक पूर्व-नियोजित आपराधिक साजिश का हिस्सा था।जिसके तहत खतरनाक हथियारों और विस्फोटक रसायनों से लैस भीड़ ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’, ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ और ‘हिन्दू काफिरों को जला दो’ जैसे नारे लगाते सांप्रदायिक दुर्भावना से भरकर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन पर पत्थरबाजी की और पेट्रोल डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया।


🚩59 मौतों के आल्वा 48 लोग इस घटना में घायल भी हुए थे। गुजरात सरकार ने कहा , कि दोषी की जमानत याचिका पेंडिंग है।ऐसे में उसे पैरोल नहीं दी जा सकती। लेकिन, हाईकोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया। उसने अपनी बीवी के जरिए 60 दिनों की पैरोल की माँग की थी। उसने दावा किया, कि उसकी बहनों के बेटे और बेटी की शादी है, ऐसे में मामा के रूप में उसका इसमें मौजूद रहा ज़रूरी है। उसकी जमानत याचिका फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।


🚩हालाँकि, गुजरात हाईकोर्ट ने कहा , कि पैरोल की अवधि भी सज़ा के तहत ही गिनी जाएगी। 2011 में स्पेशल SIT कोर्ट ने हसन के अलावा 19 अन्य को भी इस मामले में सज़ा सुनाई थी। साथ ही 11 अन्य को भी इस मामले में फाँसी की सज़ा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सज़ा को बरक़रार रखा था, जिसके खिलाफ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। गोधरा में रामभक्तों को जलाए जाने के बाद गुजरात भर में हिंसा भड़क गई थी।


🚩राम भक्तों को जलाने वाले को आसानी से पेरोल मिल गई, लेकिन कोई व्यक्ति देशभक्ति, भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म की बात करे और राष्ट्र विरोधी लोगों का विरोध करे... तो उसे बहुत कुछ सहना पड़ता है, यहाँ तक की उसकी हत्या भी हो सकती है !!


🚩आपको बता दे की जिन आदिवासियों को ईसाई बना दिया गया था, उन लाखों हिंदुओं की घर वापसी हिन्दू संत आशारामजी बापू ने करवा दी थी। करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बना दिया। सैंकड़ों गुरुकुल और 17000 से अधिक बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीने की कला बताई। कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशालाएं खोल दी। विदेशियों की देन वेलेंटाइन डे के बदले मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू करवा दिया। क्रिसमस ट्री के बदले तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया।


🚩विदेशों में भी बापू आशारामजी के लाखों अनुयायी बन चुके हैं और वे भारतीय संस्कृति का वहाँ प्रचार करने लगे हैं। करोड़ो लोगों को व्यभिचारी से सदाचारी बना दिया,उसके बाद उन करोडों लोगो ने व्यसन छोड़ दिये। सिनेमा में जाना छोड़ दिया, क्लबों में जाना छोड़ दिया, ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे, स्वदेशी अपनाने लगें। इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अरबो-खरबों रुपये का घाटा हुआ और ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण की दुकानें बंद होने लगीं।


🚩फिर तो षड़यंत्रकारियों के पास यही एक रास्ता था , उन्हें रास्ते से हटाने का ... उनको सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र रचकर जेल भेज दिया गया और अभी भी वे 10 साल से जेल में बंद है। 86 वर्ष की उम्र है ,लेकिन पिछले 10 सालों में बापूजी को 1 दिन की भी जमानत नही दी गई।


🚩भारत में दोगला न्याय कब तक चलेगा?


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Thursday, July 20, 2023

मासूम बच्चे ने थाने में जाकर बताया : मौलाना 2 महीने से मेरे साथ कर रहा दुष्कर्म

20 July 2023

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🚩भारत में जब-जब भी किन्हीं निर्दोष, निर्मल व पवित्र हिन्दू साधु-संतों पर षडयंत्र के तहत कोई झूठे आरोप लगते हैं , तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया कैसे 24 घण्टे उसी खबर को बार-बार...लगातार, तोड़-मरोड़ कर ,मिर्च-मसाले के साथ चलाने में कितनी ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं । तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं...


🚩वहीं दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध भी हो जाये, तो भी न तो मीडिया ही खबर दिखाने में रुचि रखती है और ना ही तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी कुछ बोलने की उत्सुकता,आतुरता दिखाते हैं। बल्कि तब तो इन दोनों ही वर्गों को जैसे सांप सूंघ जाता है।


🚩आपको बता दें , कि दीनी तालीम लेने आए 8साल के बच्चे से कुकर्म करने के आरोप में एक मदरसे के मौलाना और उसके भतीजे को गिरफ्तार किया गया है। घटना उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की है। आरोपितों की पहचान 40 वर्षीय मौलाना अफज़ाल और उसके भतीजे सलमान के तौर पर हुई है। पीड़ित जिस मदरसे का छात्र है, मौलाना अफज़ाल भी वहीं का हाफ़िज़ है।


🚩आरोप है कि , बच्चे के साथ दो महीने से अप्राकृतिक दुष्कर्म हो रहा था। 17जुलाई 2023 को पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। खबर मिली है , कि बुलंदशहर के जहांगीराबाद थाना क्षेत्र स्थित उक्त मदरसे का पीड़ित छात्र ख़ुद 16 जुलाई को पुलिस चौकी पहुँचा और पुलिस को अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में बताया। दोनों आरोपी बुलंदशहर के डिबाई थानाक्षेत्र के गाँव दानपुर के रहने वाले हैं।


🚩पीड़ित छात्र ने पुलिस को बताया कि , शनिवार (15 जुलाई 2023) को भी हाफ़िज़ और उसके रिश्तेदार ने कुकर्म किया था। पुलिस ने 16जुलाई को FIR दर्ज करने के बाद बच्चे का मेडिकल परीक्षण करवाया। इसके बाद से ही दोनों आरोपी फरार हो गए थे। 17 जुलाई 2023 को दोनों पकड़े गए।


🚩यहां विचार करने वाली बात यह है , कि अगर यही खबर किसी भी हिन्दू धर्म गुरु से जुड़ी होती.....तो मीडिया में इतनी खबरें दिखाई जाती...इतनी खबरें दिखाई जाती... कि भारत के अलावा अन्य देशों तक भी तेजी से खबर फैल जाती । अब भले ही वह खबर आधारहीन, झूठी,कल्पित और बोगस होती , पर उसे कवरेज खूब मिलता ।


🚩यह पहली बार की बात नहीं है...आए दिन मौलवियों और पादरियों के ऐसे सैकडों कुकर्म के खुलासे होते ही रहते हैं । ....और हमारे कर्मनिष्ठ भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के मीडियाकर्मी कान में तेल डालकर कर मज़े से सोए रहते हैं।



🚩मीडिया को पवित्र , निर्दोष हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने हाइलाइट करने ... और इसाई पादरियों एवं मौलवियों के दुष्कर्म की खबरों को छुपाने के लिए भारी भरकम फंडिग जो मिलती रहती है ।


🚩हमारी भारतीय संस्कृति इतनी महान है और आज भी हमारा प्यारा भारतदेश इतना समृद्ध है , कि भारत को लूटने और उसकी सांस्कृतिक विरासत को छिन्न-भिन्न करके हमारी हमारे देश व सनातन धर्म के प्रति अपार और सुदृढ़ आस्था को तोड़ने के प्रयास हजारों सालों से चलते चले आ रहे हैं। पर...

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।

यूँ तो रहा है दुश्मन... अहले-जहाँ  हमारा ।।


🚩मुगल से लेकर अंग्रेज तक देश को लूटते ही रहे और अभी भी उनकी ललचाई नज़रें भारत देश पर टिकी हुई हैं ।


🚩अब एक तो भारत में 96.63 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं, जो कुल आबादी का 79.8% है। अब उनमें से लगभग 50% हिन्दुओ की श्रद्धा टिकी है अपने धर्मगुरुओं पर , साधु-संतों पर। ये श्रद्धालु हिन्दू उनके गुरुओं के बताये हुए मार्ग पर चलते हैं और ये महापुरुष,  संतजन उनके भीतर सत्य सनातन हिन्दू संस्कृति की महिमा भरते हैं ।साथ ही स्वदेशी खान-पान व रहन-सहन अपनाने को कहते हैं । उनको दारू , सिगरेट-बीड़ी, तम्बाकू , चाय-कॉफ़ी आदि दुर्व्यसनों को छुड़ा देते हैं और आसान-प्राणायाम आदि सिखाकर साथ ही घरेलू , सरल व सस्ती स्वास्थ्य की कुंजियां बता कर हिन्दू संस्कृति के अनुसार जीवन जीना सिखाते हैं । जिससे विदेशी कम्पनियों को अरबों-खरबों का नुकसान होता है ।



🚩दूसरा , कि इसाई मिशनरियां और मुस्लिम संघटन भारत में हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन इन्हीं हिन्दू साधु-संतों के कारण नहीं करा पाते ।

...इसीलिए तो हिन्दुओ की अपने धर्म गुरुओं , साधु-संतों पर जो आस्था टिकी हुई है उसको खत्म करने के लिए मीडिया में ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम संस्थाएं पैसा डालकर यह सब करवा रहे हैं ।


🚩हिंदुस्तानियों को एक महत्वपूर्ण बात खूब भली-भांति समझ लेनी चाहिए, कि जब भी कीसी इसाई पादरी या मौलवी पर आरोप सिद्ध होते हैं तो उनके धर्म के लोग, उनके अनुयाई उनके खिलाफ कभी भी नहीं बोलते हैं। लेकिन जब षडयंत्र के तहत किसी हिन्दू साधु-संत पर कोई आरोप लगते हैं तो सबसे पहले हम मूर्ख हिन्दू ही उनके खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं , वहभी बिना सच जाने , चाहे वह आरोप बोगस ही क्यो ना हो।

और यही हिन्दू समुदाय की सबसे बड़ी कमी रही है ।


🚩जिन संतों ने अपना पूरा जीवन देश और सनातन संस्कृति की रक्षा एवं समाज कल्याण के लिए लगा दिया , ऐसे संत पर कोई झूठा आरोप लगा दे और मीडिया विदेशी ताकतों के इशारे पर उनको बदनाम करने लग जाए , तो यही हिन्दू समाज उनको गलत समझ लेता है ।


🚩अतः हिंदुस्तानी सावधान रहें, विदेशी ताकतों के इशारे पर चलने वाली मीडिया से... !!!

मीडिया में अधिकतर खबरें सत्य तथ्यों पर आधारित नहीं होती हैं, बल्कि बनाई जाती हैं । इसलिए आंख बंद करके मीडिया पर भरोसा करने से पहले एक बार सच को जानने की चेष्टा अवश्य करें ।


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Wednesday, July 19, 2023

हिंदू परम्पराओं में विज्ञान कैसे जुड़ा है ??? जानिए


19 July 2023

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🚩एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम चल रहा था। उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस".. मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ..क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है।


🚩फिर उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया कि आखिर हिन्दूधर्म में हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है?


🚩हिंदुत्व में कुल सात गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की हिन्दूधर्म ही विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" है !


🚩हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:


🚩1- कान छिदवाने की परम्परा:


🚩भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क-

दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।


🚩2-: माथे पर कुमकुम/तिलक


🚩महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता


🚩3- : जमीन पर बैठकर भोजन


🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पाल्थी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।


🚩4- : हाथ जोड़कर नमस्ते करना


🚩जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।


🚩5-: भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से


🚩जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।


🚩6-: पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।


🚩7-: दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना


🚩दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।


🚩8-सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।


🚩9-सिर पर चोटी


🚩हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।


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Tuesday, July 18, 2023

परमाणु बम के जनक को अंततः हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण..

18 July 2023

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🚩क्या आपने 'रॉबर्ट ओपेनहाइमर' का नाम सुना है? वही रॉबर्ट ओपेनहाइमर,जिन पर हॉलीवुड के दिग्गज 'निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन' फिल्म लेकर आए हैं। ‘Oppenheimer’ नाम की ये फिल्म रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर ही आधारित है।असल में ये वही शख्स थे, जिन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। अमेरिका के फिजिसिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम बनाने के लिए बनाई गई ‘लॉस एलामोस लेबोरेटरी’ के डायरेक्टर थे। उन्होंने हारवर्ड, कैम्ब्रिज, गोटेंगेन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी।


🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उक्त लैब को ‘मैनहटन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किया गया था। पहले न्यूक्लियर टेस्ट को ‘ट्रिनिटी’ नाम दिया गया था। वो 16 जुलाई, 1945 का दिन था जब ये कराया गया था।

बताया जाता है कि इस परियोजना, जिसे ‘Project Y’ नाम दिया गया था, पर काम करने के दौरान रॉबर्ट का वजन काफी घट गया था और वो पतले हो गए थे।इस प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने 3 साल लगातार जो मेहनत की थी, उस कारण ऐसा हुआ था। टेस्ट वाले दिन वो ठीक से सो भी नहीं पाए थे।



🚩J. Robert Oppenheimer, परमाणु परीक्षण और भगवद्गीता का एक श्लोक


🚩 जब ये टेस्ट हुआ, उस समय रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक बंकर में बैठे हुए थे। जबकि वहाँ से 10 किलोमीटर दूर न्यू मैक्सिको स्थित जोर्नाडा डेल मुर्टो के रेगिस्तान में ये परीक्षण हुआ था।

बताया जाता है कि जब पहला परमाणु ब्लास्ट हुआ, तब उसने सूरज की रोशनी को भी फीका कर दिया। 21 किलोटन TNT के साथ किया गया ये ब्लास्ट उस समय तक कहीं देखा-सुना नहीं गया था।ब्लास्ट के बाद मशरूम के आकर का घना धुआँ आकाश में उठा । 160 किलोमीटर दूर तक ब्लास्ट का कंपन सुनाई दिया। रॉबर्ट ने इसकी तुलना दोपहर के सूर्य से की थी ।


🚩इस परिक्षण के बाद उनके एक दोस्त इसीडोर रबी ने बताया था, कि उसके बाद उन्होंने कुछ दूरी से रॉबर्ट ओपेनहाइमर को देखा था, उनके शब्दों में कहें , तो "वो जब कार से निकले तो उनकी चाल कुछ अकड़ वाली थी, उसमें एक एहसास था...कि उन्होंने कर दिखाया।"

"हालांकि बाद में वो अपने इसी आविष्कार को लेकर गहन अवसाद में डूब गए थे।"



🚩 क्या आपको पता है , कि इस पहले परमाणु बम ब्लास्ट के बाद रॉबर्ट ओपेनहाइमर के दिमाग में क्या गूँजा था। 1960 के दशक में उन्होंने इसका खुलासा किया था। वो भगवद्गीता से प्रेरित थे। उन्हें इस हिन्दू धर्मग्रन्थ से प्रेम था।  उन्होंने कहा था , कि जब दुनिया का पहला परमाणु ब्लास्ट सफल रहा, तब उनके मन में "भगवान श्रीकृष्ण" के ये शब्द गूँजे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का विध्वंस करने वाला।” 



🚩भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्त अर्जुन की शंकाओं का समाधान करके , उन्हें धर्म रक्षार्थ युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा देते हैं । वो अपना विराट रूप प्रकट करते हैं और विश्वरूप में प्रकट होकर बताते हैं , कि वो कौन हैं।

उक्त श्लोक इस प्रकार है:


🚩कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥॥ (11.32)


🚩इसका हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा,

“मैं प्रलय का मूल कारण और महाकाल हूँ , जो इस क्षण में जगत का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। तुम्हारे युद्ध में भाग लिए बिना भी युद्ध की व्यूह रचना में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जाएँगे।”

और इसी अर्थ को रॉबर्ट ने गलत अर्थ घटन कर लिया था।


🚩श्रीकृष्ण ने इसमें खुद को काल बताया है। साधारणतया तो जो गीताजी के इन ज्ञान सम्पन्न वचनों से अनभिज्ञ हैं , वो लोग इस श्लोक का मर्म नहीं समझ सकते और भ्रमित हो जाएंगे। असल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इसके माध्यम से समझाते हैं, कि नष्ट हुआ सा दिखता हुआ भी कुछ नष्ट नहीं होता ... क्योंकि सबकुछ मुझमें और मैं सबमें भरपूर हूँ। इसलिए तू शोक न कर , युद्ध कर... धर्म के लिए युद्ध कर...


🚩यहाँ श्रीकृष्ण ने परमेश्वर का वो रूप दिखाया है, जो सज्जनों की रक्षा हेतु दुष्टों का संहार करने वाला है और... जो हर एक जीव और वस्तु को नष्ट करने में सक्षम है,क्योंकि अंततः प्रकृति में बनी हुई सभी रचनाएं उसी में (परमात्मा ) में ही विलीन हो जाती हैं।


🚩भगवद्गीता का यही श्लोक रॉबर्ट ओपेनहाइमर को याद आया था, जब उनका परमाणु परीक्षण सफल रहा। बड़ी बात ये , कि इस परीक्षण के बाद काफी दिनों तक वो अवसादग्रस्त रहे थे। उन्हें पता था , कि आगे इस परमाणु बम का क्या इस्तेमाल होने वाला है। एक दिन तो वो जापानी लोगों को लेकर चिंतित भी थे। उन्होंने कहा था, “ये बेचारे लोग…”🚩आपके मन में एक सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि रॉबर्ट ओपेनहाइमर को भगवद्गीता से इतना लगाव क्यों था। ये सब शुरू हुआ 1930 के दशक में, जब वो Humanities के क्षेत्र में भी थोड़ा-बहुत अलग से काम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों से लगाव हुआ और इनसे वो खासे प्रभावित हुए।


🚩परमाणु बम से होती तबाही देख बदला मन ! हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण...


🚩इस दौरान उन्होंने निश्चय किया कि वो भगवद्गीता को उनके मूल स्वरूप में मतलब अनुवाद किए बिना इसे पढ़ेंगे। चूँकि मूल स्वरूप में ये ग्रन्थ संस्कृत में है, इसलिए उन्होंने संस्कृत सीखनी शुरू कर दी। रॉबर्ट ओपेनहाइमर के भीतर मनोविज्ञान की समझ भगवद्गीता पढ़ने के बाद ही अच्छी तरह से विकसित हुई। यही कारण है कि ‘प्रोजेक्ट वाई’ के दौरान वो नैतिकता को सोच-विचार कर जिस कश्मकश में रहे, उससे उन्हें बहुत अधिक आत्मग्लानि हुई।



🚩उनकी आत्मग्लानि का कारण था ,कि उन्होंने गीताजी के इस श्लोक को पहली बार में पूरी तरह समझा नहीं और गलत अर्थ घटन किया , कि... कर्तव्य, नियति और फल की परवाह किए बिना कर्म करना ... यहां तक तो ठीक था पर उन्हों दुष्परिणामों के बारे में सोचना बंद कर दिया। हालाँकि, भगवद्गीता का ये सन्देश बिलकुल भी नहीं है कि निर्दोषों की हत्या की जाए या इतने बड़े-बड़े नरसंहार किये जाएं ।


🚩 रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने उस दौरान कहा था , कि युद्ध ऐसी परिस्थिति है, जिसमें इस दर्शन को लागू किया जा सकता है। लेकिन, युद्ध के बाद उनमें बदलाव आया और वो परमाणु हथियारों को आक्रामकता, अप्रत्याशित आक्रमण और आतंक के औजार बताने लगे। उन्होंने हथियारों की इंडस्ट्री को ही शैतानी करार दिया। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से कहा , कि मेरे हाथ पर खून लगे हैं।


🚩उन्हें ढाँढस बँधाने के लिए ट्रूमैन ने कह दिया कि खून आपके नहीं, मेरे हाथों में लगे हैं।

एक बार इस कश्मकश से पल्ला झाड़ते हुए रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने वैज्ञानिकों से कहा था , वैज्ञानिक तो सिर्फ अपना कर्तव्य कर रहे हैं, हत्याओं की जिम्मेदारी तो राजनेताओं की होगी।

एक तरह से ऐसा भी हो सकता है कि परमाणु बम बनाने और इसके दुष्परिणामों के बारे में सोच कर उन्होंने भगवद्गीता की शरण ली और अपने काम को सही ठहराने का प्रयास किया, लेकिन अंत में उन्हें समझ आया कि उन्होंने क्या कर दिया है।


🚩वो सन् 1933 का समय था, जब प्रत्येक गुरुवार को रॉबर्ट ओपेनहाइमर भगवद्गीता पढ़ने जाते थे। बर्कली में उन दिनों आर्थर राइडर नाम के एक संस्कृत शिक्षक हुआ करते थे, जिनसे वो पढ़ने जाते थे। उनका कहना था , कि राइडर से ही उन्हें नीतिशास्त्र का ज्ञान मिला । उन्होंने सीखा कि जो लोग कठिन कार्य करते हैं , उन्हें सम्मान प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म से उन्होंने दुनियादारी से खुद को अलग कर के देखने की भावना सीखी। एक बार उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था, “मैंने ग्रीक को भी पढ़ा है। लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थों में गहराई है। ”


             - अनुपम कुमार सिंह


🚩इंग्लैंड के एफ.एच.मोलेम ने लिखा कि बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन गई हैं। यह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अनमोल खजाना है।


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Monday, July 17, 2023

हिंदू अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में क्यों भेजते है ? जहाँ बिंदी लगाने पर करनी पड़ती है, आत्महत्या

17 July 2023

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🚩भारत में जितने भी मिशनरी स्कूल मैकाले की शिक्षा पद्धति से चल रहे हैं, उन स्कूलों में बच्चे न तो तिलक और न ही मेंहदी लगा सकते हैं, हिन्दू त्यौहार नहीं मना सकते और यहां तक कि हिंदी भी नहीं बोल सकते- मतलब कि बच्चो को कोई स्वतंत्रता नहीं है। ऊपर से धर्मपरिवर्तन करने का दबाव बनाया जाता है।


🚩बिंदी लगाकर सेंट जेवियर्स में पढ़ने गई छात्रा को टॉर्चर करने पर ,छात्रा ने की आत्महत्या 


🚩झारखंड के धनबाद के तेतुलमारी का सेंट जेवियर्स स्कूल विवादों में घिर गया है। बिंदी लगाकर आने पर एक छात्रा को शिक्षिका ने सरेआम थप्पड़ मारे। कथित तौर पर उसकी माँ को भी बेइज्जत कर स्कूल से निकाल दिया। इससे आहत छात्रा ने 10 जुलाई 2023 को घर लौटने के बाद फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके पास से सुसाइड नोट भी मिला है।


🚩आत्महत्या करने वाली दलित छात्रा की पहचान उषा कुमारी के तौर पर हुई है। वह 10वीं की छात्रा थी। घटना से नाराज लोगों ने स्कूल के बाहर धरना दिया। इसके बाद 11 जुलाई को स्कूल के प्रिंसिपल और महिला टीचर को गिरफ्तार कर लिया गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी मामले का संज्ञान लिया है।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मृत छात्र के पिता की काफी समय पहले मौत हो गई थी। 3 भाई-बहनों को उनकी माँ पढ़ा रही थी। मृतका की माँ ने बताया कि उनकी बेटी को सिर्फ बिंदी लगाने के चलते सबके सामने पीटा गया, जबकि उसने मिस (टीचर सिंधु) को देख कर बिंदी उतार भी दी थी। जब छात्रा ने इसकी शिकायत प्रिंसिपल से की तो उन्होंने भी इसे अनदेखा कर दिया। आरोप है कि प्रिंसिपल ने छात्रा को डाँटते हुए कहा, “तुम स्कूल का बैग लो और निकलो यहाँ से।”


🚩मृतका की माँ ने बताया कि उनकी बेटी रोते हुए घर आई तो वह उसके साथ स्कूल गई। प्रिंसिपल से माफी माँगी। लेकिन प्रिंसिपल पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने माँ-बेटी को बाहर निकाल दिया। इसके बाद छात्रा घर लौटी और फाँसी लगा ली। पीड़ित माँ के मुताबिक उनकी बेटी ने सुसाइड नोट लिखकर छोड़ा है, जिसके आधार पर थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई है। छात्रा के सुसाइड की खबर मिलते ही स्कूल बंद कर दिया गया। आरोपितों पर कार्रवाई और पीड़ितों को मुआवजा की माँग करते अन्य स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया।


🚩प्रिंसिपल और महिला टीचर गिरफ्तार


🚩पुलिस ने आरोपित प्रिंसिपल आर के सिंह और महिला टीचर सिंधु को गिरफ्तार कर लिया है। मामले में आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है।


🚩स्कूल की मान्यता रद्द करने की माँग


🚩झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने स्कूल की मान्यता रद्द करने की माँग की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, “पता नहीं ऐसे विद्यालयों को सनातन प्रतीकों से चिढ़ क्यों है? मुख्यमंत्री जी, इस मामले पर संज्ञान लीजिए और स्कूल की मान्यता रद्द करने हेतु संबंधित विभाग को पत्र लिखिए।”


🚩छात्रों को तिलक लगाने पर एंट्री नहीं: चेहरा धुलवाया


🚩मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में स्थित एक स्कूल में तिलक लगा कर आने वाले छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इन छात्रों को कहा गया कि उन्हें स्कूल में एंट्री तभी मिलेगी, जब वो अपना चेहरा धो कर आएँगे। इसकी जानकारी मिलते ही कई छात्र-छात्राओं के अभिभावक और हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने वहाँ पहुँच कर विरोध जताया। बड़ी बात ये है कि ये स्कूल सुसनेर के पूर्व विधायक एवं कांग्रेस  नेता वल्लभ भाई अंबावतिया का है।


🚩बताया जा रहा है कि सुबह जब 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्रों की प्रार्थना सभा चल रही थी, उस समय शिक्षकों ने तिलक लगाए छात्रों को कक्षा में जाने से रोक दिया। कहा गया कि चेहरा धो कर आओ। जिन्होंने तिलक मिटाया, उन्हें ही प्रवेश दिया गया। एक छात्र ने बताया कि उसने जब ऐसा करने से मना कर दिया तो उसे अंदर नहीं जाने दिया गया, फिर घर आकर उसने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया। एक अन्य लड़के ने भी बताया कि खुद प्रिंसिपल मैडम ने तिलक मिटा दिया।


🚩घटनास्थल पर विहिप और ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग गया। स्कूल प्रबंधन से उन्होंने बातचीत की। अंत में लिखित में मिलने के बाद वो माने। किसी पक्ष ने कोई शिकायत अभी दर्ज नहीं कराई है। राहुल गाँधी इसी स्कूल में सभा करने के लिए राजस्थान के लिए रवाना हुए थे। मध्य प्रदेश के इंदौर से भी हाल ही में ऐसा मामला सामने आया है। धार रोड स्थित ‘बाल विज्ञान शिशु विहार हायर सेकेंडरी स्कूल’ में तिलक लगाने पर छात्र को पीट-पीट कर भगा दिया गया।


🚩गौरतलब है कि इसी तरह की घटना 2019 में त्रिपुरा में हुई थी जब ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरण का विरोध करने के लिए एक हॉस्टल वार्डन द्वारा बेरहमी से प्रताड़ित किए जाने के बाद एक 15 वर्षीय छात्र की मौत हो गई थी।🚩इस तरह की सैंकड़ों घटनाएं होगी जो खबरे बाहर नही आ रही है।


🚩भारत में आजकल बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का प्रचलन बहुत चल रहा है; सभी का कहना है कि बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में भेजो, लेकिन वास्तव में उनके माता-पिता कॉन्वेंट स्कूल का सच नहीं जानते है, इसलिए अपने बच्चों को भेजते हैं। कान्वेंट स्कूलों के मामले में एक बात तो साफ तौर पर कही जा सकती है कि “दूर के ढोल सुहावने”।


🚩सभी हिन्दू अभिभावकों से नम्र निवेदन है कि कॉन्वेंट स्कूल में छात्रों पर पड़ने वाले गलत संस्कारों तथा उनके साथ हो रही प्रताड़ना को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए। वैदिक गुरुकुलों में अपने बच्चों को भेजना चाहिए।


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Sunday, July 16, 2023

कांवड़ यात्रा से अरबों रुपए का होगा फायदा, समझिए इकोनोमिक्स

16 July 2023

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🚩भगवान शिव की भक्ति का श्रावण महीना चल रहा है, रिमझिम बारिश के साथ ही सावन ने दस्तक दे दी है। सावन आने के साथ ही काँवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है। गंगा सहित विभिन्न पवित्र नदियों से जल लेकर लोग भगवान भोलेनाथ को अर्पित करने निकल पड़े हैं। झारखंड स्थित वैद्यनाथ धाम हो या फिर हरिद्वार, काँवड़ यात्रा की चहल-पहल से आध्यात्मिक स्थल व्यस्त हो गए हैं। लेकिन, इसके साथ ही शुरू हो गया है हिन्दू विरोधियों द्वारा अलग-अलग तरह का प्रोपेगंडा कर के काँवड़ यात्रा को बदनाम करने का प्रयास।



🚩आपके सामने कई ऐसे लोग आएँगे जो कहेंगे कि भगवान शिव को जल चढ़ाना पानी की बर्बादी है। कोई ट्वीट कर के कह रहा है कि बच्चों के हाथों में काँवड़ की जगह किताब देनी चाहिए तो कोई काँवड़ियों पर गुंडागर्दी का आरोप लगा रहा है। अब कोई काँवड़ यात्रा की वैज्ञानिकता पर सवाल उठाएगा तो कोई पूछेगा कि इससे क्या फायदा होता है? कुछ इसे अंधविश्वास भी बताएँगे। हर साल ऐसा होता है, इस साल भी होगा, लेकिन इस बार हिन्दुओं को जवाबों से लैस रहना चाहिए।


🚩सबसे पहले समझिए कि काँवड़ यात्रा से ये चिढ़ने क्यों? चिढ़ने वाले हैं वामपंथी, इस्लामी कट्टरपंथी और खुद को दलितों के ठेकेदार बताने वाले। असल में ये लोग काँवड़ यात्रा की भीड़ देख कर डरते हैं कि हिन्दुओं में भक्ति भावना आखिर बढ़ क्यों रही है। काँवड़ यात्रा में सभी जातियों के लोग साथ में कदम मिला कर चलते हैं, ये उन्हें बर्दाश्त नहीं होता। साथ ही काँवड़ यात्रियों को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा जो सुविधाएँ मिलती हैं, उसने जले पर नमक का काम किया है।


🚩काँवड़ बनाने वाले बढ़ई समाज को मिलता है रोजगार, करोड़ों काँवड़ बनते हैं हर साल


🚩इस पर तो बात होती ही है कि कैसे काँवड़ यात्रा में जल चढ़ाने के लिए किसी गाँव या क़स्बा से पूरा समूह निकलता है तो उसमें सभी जाति के लोग शामिल होते हैं और सभी एक-दूसरे को ‘भोले’ (बिहार-झारखंड में ‘बम’) कह कर पुकारते हैं। कोई ‘बच्चा बम’ होता है तो कोई ‘महिला बम’। ध्यान दीजिए, ये Bomb वाला बम नहीं है, वो तो जिहादी बनते हैं। ये ‘बम-बम भोले’ वाला बम है। कोई ‘डॉक्टर बम’ होता है तो कोई ‘इंजीनियर बम’। ‘चाचा बम’ और ‘बाबा बम’ भी मिल जाएँगे आपको।


🚩अब थोड़ा इस यात्रा की जड़ में चलते हैं। यात्रा के लिए सबसे पहली ज़रूरत क्या है – काँवड़। दूसरी ज़रूरत – भगवा कपड़े। तीसरी ज़रूरत – गंगाजल या अन्य पवित्र नदियों का जल। सबसे पहले काँवड़ पर आते हैं। ये काँवड़ बनती किस चीज से है? लकड़ी से। लकड़ियों का काम कौन करता है? बढ़ई, जिसे अंग्रेजी में Carpenter भी कहते हैं। यानी, सावन के एक महीने में (इस बार 2 महीना, क्योंकि ये ‘दोमास है’) बढ़ई समाज की इतनी आमदनी हो जाती है कि साल भर उनकी रोजी-रोटी चल सकती है।


🚩एक नजर आँकड़ों पर डालते हैं। अगर आप मेरठ का उदाहरण लेंगे तो अकेले इस शहर में काँवड़ यात्रा से 500 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इस बार 5 करोड़ तीर्थयात्री काँवड़ लेकर हरिद्वार आ सकते हैं। सोचिए, 5 करोड़ लोगों के पास 5 करोड़ काँवड़ भी तो होंगे। यानी, 5 करोड़ काँवड़ किसी न किसी ने बनाए होंगे? है न? किसी एक आदमी के बस का तो ये है नहीं। यानी, हजारों बढ़इयों को काँवड़ यात्रा में काम मिलता है, रोजगार मिलता है।


🚩अगर हम कम से कम 300 रुपए भी रखें तो 5 करोड़ काँवड़ का दाम 1500 करोड़ रुपए बैठ जाता है। कई काँवड़ तो बहुत महँगे भी होते हैं, ऐसे में ये संख्या 2000 करोड़ रुपए के पार भी जा सकती है। ये भी हो सकता है कि कई काँवड़िए पिछले साल वाला काँवड़ ही इस्तेमाल करें, लेकिन आधे भी नए काँवड़ खरीदते हैं तो केवल काँवड़ का बिजनेस हजार करोड़ रुपए का बैठता है। ध्यान दीजिए, ये तो सिर्फ हरिद्वार जाने वाले काँवड़ियों का आँकड़ा है। कई अन्य भी धाम हैं, जहाँ ये यात्रा चलती है।


🚩उदाहरण के लिए, अब झारखंड में स्थित वैद्यनाथ धाम को ले लीजिए। बिहार-झारखंड के अधिकतर लोग यहीं जल चढ़ाने आते हैं, कई तो हर साल। सामान्यतः भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी से जल लिया जाता है और से शुरू होती है काँवड़ यात्रा। बिहार से हर साल 40 लाख के करीब लोग काँवड़ लेकर जाते हैं। दिल्ली NCR में ये आँकड़ा 30 लाख का है। सोचिए, वैद्यनाथ धाम में सावन में पहुँचने वाले इन 30 लाख काँवड़ियों से अर्थव्यवस्था को कितना लाभ पहुँचता होगा?


🚩काँवड़ यात्रा की अर्थव्यवस्था फाइव स्टार होटलों या फिर विमानों वाली नहीं है। ये पैसा आम लोगों की जेब से निकलता है और आम लोगों की जेब में जाता है, खासकर गरीब तबके की, व्यापारियों की। जैसे, सड़क पर स्थित ढाबों, छोटे होटलों, धर्मशालाओं और रेस्टॉरेंट्स में कारोबार बढ़ जाता है। बिहार जैसे गरीब राज्य में भी केवल भागलपुर में इस साल इससे 500 करोड़ रुपयों का कारोबार अनुमानित है। मधेपुरा और कटिहार

🚩अगर पूरे बिहार की बात करें तो वहाँ 2000 करोड़ रुपए का कारोबार अपेक्षित है। सोचिए, एक राज्य की अर्थव्यवस्था में इस तरह के कारोबार से फायदा होगा या नहीं होगा? जमुई और मुंगेर जैसे जिलों में भी 30-35 करोड़ रुपए के कारोबार की संभावना है इस काँवड़ यात्रा के दौरान। फलाहार बेचने वाले कौन लोग होते हैं? फुटकर दुकानदार ही होते हैं न? पूजा सामग्रियाँ बेचने वाला सामान्य कारोबारी ही होते हैं न? सावन के अंत में रक्षाबंधन और फिर उसके बाद दशहरा, दीवाली और छठ के बारे में तो पता ही है।


🚩अकेले अलीगढ़ में घुँघरू-घंटी की 1000 फैक्ट्रियाँ, मजदूरों को मिलता है काम


🚩हम बात कर रहे थे काँवड़ की। काँवड़ बनाने के लिए चाहिए बाँस, लकड़ी, रंगीन कागज, कपड़ा और घंटी या घुँघरू। अगर आप उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ या एटा में जाएँगे तो पाएँगे वहाँ सैकड़ों परिवारों की आमदनी केवल घंटी और घुँघरू बनाने पर ही निर्भर होती है और वो इस सीजन में अच्छी कमाई करते हैं। अलीगढ़ को ताला उद्योग के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन ये घुँघरू-घंटी उद्योग के लिए भी लोकप्रिय है। काँवड़िए पाँवों में घुँघरू बाँधते हैं, घंटी काँवड़ में लगा दी जाती है।


🚩इनका अपना एक महत्व है, क्योंकि कहा जाता है कि ये तीर्थयात्रियों को साँप-बिच्छू जैसे खतरनाक जीवों से बचाए रखते हैं। सोचिए, अकेले अलीगढ़ में ऐसे 1000 कारखाने हैं जहाँ हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता है काँवड़ यात्रा के मौसम में और इससे पहले। सामान्यतः घंटी-घुँघरू पीतल के होते हैं। कच्चे माल की गलाई के बाद ढलाई, घिसाई, पॉलिश, पैकिंग इत्यादि का काम किया जाता है। बड़ी बात तो ये है कि यहाँ कई मुस्लिम मजदूर भी हैं, अर्थात काँवड़ यात्रा मुस्लिमों को भी रोजगार देती है।


🚩जिस तरह काँवड़ बनाने वाले बढ़ई लोगों और घुँघरू-घंटी बनाने वाले मजदूरों को रोजगार मिलता है, ठीक उसी तरह से कपड़ों का कारोबार भी सावन के महीने में खूब परवान चढ़ता है। टेंट हाउस, डीजे संचालक, हलवाइयों और जेनेरेटर मालिकों की बुकिंग बढ़ जाती है। ये बहुत अमीर लोग नहीं होते, बल्कि गाँव-समाज और शहर के ही लोग होते हैं जिनका स्थानीय कारोबार होता है। शिवभक्त भंडारा करते हैं, ऐसे में प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री भी बढ़ जाती है।


🚩टीशर्ट, निक्कर, पटका, तौलिया या फिर बटुआ – ये सब की बिक्री भी छोटे दुकानदार ही करते हैं। ‘महाकाल’ लिखे टीशर्ट्स हों या फिर भगवान शिव की तस्वीर वाले, इनकी माँग बढ़ जाती है और बिक्री भी। सबसे बड़ी बात, मंदिर के आसपास फल और बेलपत्र बेचने वाले बहस ही गरीब लोग होते हैं और केवल इन दोनों का कारोबार करोड़ों का होता है। सावन के महीने में जल के साथ बेलपत्र चढ़ाया ही चढ़ाया जाता है। प्रसाद में फल लोग लेते ही हैं। महिलाओं की श्रृंगार की वस्तुएँ भी खूब बिकती हैं।


🚩इनमें सिंदूर सबसे प्रमुख होता है, क्योंकि सुहागिनें इसे एक-दूसरे को लगाती हैं और माँ पार्वती को भी अर्पित करती हैं। कोरोना काल में काँवड़ यात्रा नहीं निकल पाई थी तो कई कारोबारी और ऐसे फुटकर दुकानदार मायूस हो गए थे, उन पर आर्थिक संकट आ गया था। दिल्ली-मेरठ रोड से हरिद्वार जाने वाले काँवड़िए जाते हैं, ऐसे में सबसे ज्यादा कमाई यहीं होती है। इसीलिए, अगर कोई काँवड़ यात्रा का विरोध कर रहा है तो वो अप्रत्यक्ष रूप से गरीबों का विरोध कर रहा है।


🚩काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब महीने भर फूल-बेलपत्र बेचने वाली मंदिर के पास बैठी गरीब महिलाओं का विरोध। काँवड़ मतलब हर साल 5 करोड़ से भी अधिक काँवड़ियों के लिए काँवड़ बनाने वाली बढ़इयों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब भगवा कपड़े बेचने वाले छोटे कारोबारियों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब प्रसाद सामग्री या पूजा सामग्री बेचने वाले फुटकर दुकानदारों का विरोध। काँवड़ यात्रा का विरोध मतलब घुँघरू-घंटी की हजारों फ़ैक्ट्रियों में काम करने वाले गरीबों का विरोध।


🚩ऐसे समय में, जब हमारे देश के अधिकतर मंदिरों पर सरकार का कब्ज़ा है और उनसे प्राप्त हुए पैसों का इस्तेमाल सरकार विभिन्न कार्यों में करती है, इसके बावजूद ये मंदिर विपत्ति के काल में स्वेच्छा से गरीबों की मदद करने का निर्णय लेते हैं – तब भी हिन्दू धर्म के खिलाफ इस तरह की अपमानजनक बातें करना अपराध नहीं तो और क्या है? काँवड़ यात्रा श्रद्धा का प्रतीक है, हिन्दू परंपरा है – विरोध न करने के लिए एक यही वजह काफी होनी चाहिए थी, अर्थव्यवस्था वगैरह की बात तो बाद में आती है।


🚩भारत की भूमि पर भारतीय संस्कृति की परंपरा का इतना विरोध क्यों?🚩आप सोचिए, इस भारत भूमि पर भारत में उपजी संस्कृति की परंपरा का विरोध होता है। भगवान परशुराम या भगवान श्रीराम को प्रथम काँवड़ियों के रूप में मान्यता मिली है, साधु-संत सदियों से काँवड़ यात्रा निकालते रहे हैं, ऐसे में भला कैसे किसी को अधिकार मिल जाता है कि प्राचीन भारतीय इतिहास में जिस परंपरा की जड़ हो उस पर बिना सिर-पैर की बातें कर के कुठाराघात करने का? भगवान के दरबार में सभी भक्त एक होते हैं, जात-पात या धन मायने नहीं रखता – हिन्दू विरोधियों को काँवड़ यात्रा से इसीलिए चिढ़ होती है।


🚩जो लोग सड़क पर नमाज के विरोध में चूँ तै नहीं करते, वही काँवड़ यात्रा के विरोध में शिक्षा और विज्ञान जैसी बातें करने लगते हैं। नमाजियों द्वारा तो सड़क घेर कर घंटों ट्रैफिक रोक लिया जाता है, इससे तो कोई कारोबार भी जेनरेट नहीं होता, फिर क्यों ऐसा किया जाता है? कई बार मस्जिदों से निकली भीड़ दंगे करती है, पत्थरबाजी करती है – इसके विरोध में क्यों कोई कुछ नहीं बोलता? जुमे के दिन सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी पड़ती है, इसके कारण पर चर्चा हुई आज तक कभी?


🚩जहाँ तक शिक्षा की बात है, सनातन में अध्यात्म और विज्ञान तो एक-दूसरे के पूरक हैं, दुश्मन नहीं। यहाँ धरती को चपटी नहीं बताया गया है, बल्कि हजारों वर्ष पूर्व ग्रहों-नक्षत्रों के बारे में सटीक जानकारी दी गई है। यहाँ दिन-मास-पहर सभी की गणना के तौर-तरीके वैदिक युग से ही उपलब्ध हैं। गणित और खगोल के सिद्धांत हिन्दू धर्म के प्राचीन साहित्य में मिलते हैं। फिर हिन्दू धर्म के सामने विज्ञान कैसे खड़ा हो गया? दोनों तो साथ में चलते हैं न। योग या ध्यान प्रक्रिया विज्ञान नहीं तो क्या है। - स्त्रोत: ओप इंडिया


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