Friday, January 26, 2024

डॉक्टर से जानिए डार्क चॉकलेट्स खाने से नुकसान होता है या फायदा ?

27 January 2024

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🚩चॉकलेट्स खाना बहुत से लोगों को पसंद  होता है। कुछ लोग तो मूड स्विंग होने पर, तो कुछ लोग गुस्सा शांत करने के लिए भी चॉकलेट्स खाते हैं। मिल्क चॉकलेट्स की जगह आजकल इसके हेल्दी विकल्प के रूप में डार्क चॉकलेट्स मार्केट में आ गई हैं। ऐसा माना जाता है कि इन चॉकलेट्स का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है, इसलिए कुछ लोग डार्क चॉकलेट्स को बहुत ज्यादा खाने लगते हैं। लेकिन क्या सच में डार्क चॉकलेट्स हेल्दी होती हैं? इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए पुणे स्थित आदित्य बिड़ला मेमोरियल हॉस्पिटल चिंचवड़ के क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ तेजस लिमये ने बताया  कि डार्क चॉकलेट में किसी भी अन्य चॉकलेट की तुलना में कैफीन की मात्रा बहुत अधिक होती है , जो कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का कारण बन सकती है । इसके अलावा डार्क चॉकलेट के अधिक सेवन से डिहाइड्रेशन और अनिद्रा की परेशानी भी होती है। यही नहीं डार्क चॉकलेट्स में ऑक्सलेट भी काफी मात्रा में पायी जाती है, जिससे किडनी में पथरी का खतरा भी बढ़ता है । इसके अलावा डार्क चॉकलेट में कैलोरी भी बहुत ज्यादा मात्रा में पाई जाती है, जिससे वजन बढ़ने और डायबिटीज का खतरा बढ़ता है। इसलिए यह मानना कि डार्क चॉकलेट्स का सेवन बहुत हेल्दी होता है, एकदम गलत है। आइए जानते हैं इससे होने वाली समस्याओं के बारे में विस्तार से।


🚩1. अनिद्रा और ब्लड प्रेशर की समस्या

🚩यदि आप डार्क चॉकलेट का अधिक सेवन करते हैं तो सावधान हो जाएं क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। दरअसल डार्क चॉकलेट में मौजूद उच्च कैफीन ब्लड प्रेशर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है। इसके अलावा कैफीन का ज्यादा सेवन करने से अनिद्रा की शिकायत भी होती है। अगर आपको भी सोते समय डार्क चॉकलेट खाने की आदत है तो अभी अपनी इस आदत को बदल दीजिए। साथ ही इसके अधिक सेवन से हृदय गति बढ़ जाती है , चिड़चिड़ापन और डिहाइड्रेशन की समस्या भी हो सकती है। इससे एकाग्रता में भी कमी आती है।


🚩2. किडनी स्टोन की समस्या

 🚩डार्क चॉकलेट में ऑक्सलेट की अधिक मात्रा पाई जाती है। ये ऑक्सलेट शरीर में इकट्ठा होकर पथरी का कारण बन सकता है यदि आप पहले भी पथरी या स्टोन के शिकार हो चुके हैं तो आपको डार्क चॉकलेट खाने से परहेज बरतना चाहिए। यह पथरी के खतरे को बढ़ा सकता है।


🚩3.  माइग्रेन का खतरा बढ़ सकता है

डार्क चॉकलेट में टाइरामाइन नामक एक प्राकृतिक रसायन होता है,जो माइग्रेन का कारण बन सकता है। यह माइग्रेन के लक्षणों को ट्रिगर कर सकता है इसलिए अगर आपको माइग्रेन की समस्या है तो डार्क चॉकलेट से परहेज करना जरूरी है।


🚩4.  ब्लड शुगर का स्तर बढ़ सकता है

🚩डार्क चॉकलेट में शुगर की मात्रा भी अधिक होती है और यह आपके ब्लड शुगर के स्तर को काफी बढ़ा सकता है। उच्च रक्त शर्करा या हाइपरग्लेसेमिया भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है।


🚩5. उच्च वसा

डार्क चॉकलेट में बड़ी मात्रा में सैचुरेटेड फैट और शुगर होता है। डार्क चॉकलेट के एक औंस में लगभग 150 कैलोरीज होती हैं, जिसमें अधिक मात्रा में वसा और चीनी पाई जाती है। अतिरिक्त वसा और चीनी के सेवन से आपका वजन भी बढ़ सकता है और हृदय रोग का खतरा भी बढ़ सकता है।


🚩इन आदतों से पहचाने आपको है चॉकलेट खाने की लत

डॉ तेजस लिमये के अनुसार, लगातार डार्क चॉकलेट खाने का मन करना,अत्यधिक तनाव और चिंता में चॉकलेट खाने का खयाल आना,प्रतिदिन अधिक मात्रा में डार्क चॉकलेट का सेवन करना आदि आदतें बताती हैं कि आपको चॉकलेट की लत लग चुकी है। इसके अलावा अगर आप अपने खाने का नियंत्रण खो रहे हैं और आपके लिए ये बेहद नुकसानदायक हो सकता है। इसके कारण गंभीर बीमारियां हो सकती है। डॉक्टर के अनुसार दिनभर में केवल 15-20 ग्राम चॉकलेट ही खाई जा सकती है।


🚩अपनी आदतों को कैसे सुधारें?


🚩डॉ. तेजस के अनुसार यदि आप अपनी चॉकलेट खाने की आदत सुधारना चाहते हैं तो अपने आपको हमेशा हाइड्रेट रखें और रोजाना कम से कम 8 गिलास पानी पिएं। साथ ही अपने आहार में तेल,नट्स और एवोकाडो जैसे हेल्दी फैट शामिल करें। इसके अलावा अतिरिक्त आर्टिफिशियल शुगर (चीनी, गुड़, स्टीविया आदि) उत्पाद को ज्यादा खाने से बचें। कुछ मीठा खाने की इच्छा हो तो फल , दूध या लस्सी का सेवन करें।


🚩डार्क चॉकलेट की जगह खाएं हेल्दी चीजें


🚩1. कोको पाउडर

कोको पाउडर कई पदार्थों का मिश्रण है। कोको पाउडर के एक चम्मच में लगभग 10 कैलोरी होती है। हालांकि इसमें कोई वसा,कोलेस्ट्रॉल या चीनी नहीं होती है क्योंकि यह 100 प्रतिशत कोको होता है। यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसकी मदद से आप होममेड हॉट चॉकलेट बना सकते हैं। इसके लिए आप बादाम या नारियल का भी प्रयोग कर सकते हैं।


🚩2. कोको बीन

 कोको बीन्स है को भुनकर छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। कोको बीन्स कुरकुरे होते हैं और बिना चीनी वाली चॉकलेट की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इससे दही या स्मूदी के साथ मिक्स करके खाया जाता है। कोको बीन्स में कैलोरी स्वाभाविक रूप से कम होती है, जो आपके लिए एक स्वस्थ विकल्प हो सकता है।


🚩3. फल

खाने के लिए फल से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है। फलों में बहुत सारे पोषक तत्व जैसे विटामिन्स ,पोटेशियम,एंटीऑक्सीडेंट्स, फाइबर्स और फाइटोन्यूट्रिएंट्स पपाए जाते हैं। डार्क चॉकलेट की जगह आप स्ट्रॉबेरी,व्हीप्ड नारियल,चेरी,रसभरी,ब्लूबेरी या अनार जैसे फलों के मिश्रण का सेवन कर सकते हैं।

                       - स्त्रोत: ओनली माय हेल्थ 


🚩चॉकलेट के अधिक प्रयोग से दाँतों में कीड़ा लगना, पायरिया, दाँतों का टेढ़ा होना, मुख में छाले होना, स्वरभंग, गले में सूजन व जलन, पेट में कीड़े होना, मूत्र में जलन आदि अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।


🚩वैसे भी शरीर स्वास्थ्य एवं आहार के नियमों के आधार पर किसी व्यक्ति को चॉकलेट की कोई आवश्यकता नहीं होती ।


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Thursday, January 25, 2024

गणतंत्र मतलब क्या और 26जनवरी को गणतन्त्र दिवस क्यों मनाते हैं...!?

26 January 2024

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🚩गण अर्थात् -- जनता और तंत्र मतलब होता है – शासन।

गणतंत्र या लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ हुआ, जनता का शासन। ऐसा देश या राज्य जहाँ जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है। ऐसे राष्ट्र को लोकतांत्रिक गणराज्य की संज्ञा दी गयी है। ऐसी व्यवस्था हमारे देश में है। इसीलिए हमारा देश एक लोकतांत्रिक गणराज्य कहलाता है।


🚩गणतंत्र अर्थात ऐसा देश जहां सत्ताधारी सरकार को चुनने और हटाने का अधिकार आम जनता के पास होता है।


🚩गणतन्त्र दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है । 26 जनवरी और 15 अगस्त दो ऐसे राष्ट्रीय पर्व हैं जिन्हें हर भारतीय खुशी और उत्साह के साथ मनाता है ।


🚩भारतीयों की मातृभूमि भारत लंबे समय तक ब्रिटिश शासन की गुलाम रही जिसके दौरान भारतीय लोग ब्रिटिश शासन द्वारा बनाये गये कानूनों को मानने के लिये मजबूर थे। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा 300 वर्षों के संघर्ष के बाद अंतत: 15 अगस्त, 1947 को भारत को आज़ादी मिली ।


🚩सन् 1929 के दिसंबर में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। उसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को स्वायत्त उपनिवेश (डोमीनियन) का पद नहीं प्रदान करेगी, जिसके तहत भारत ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित इकाई बन जाता, तो भारत अपने को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा ।


🚩26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया । उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा । तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकारा गया ।


🚩26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा लगभग ढाई साल बाद भारत ने अपना संविधान लागू किया और ख़ुद को लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में घोषित किया । कुल 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद द्वारा भारतीय संविधान को पास किया गया । खुद को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी “गणतंत्र दिवस” के रूप में मनाया जाने लगा ।


🚩देश को स्वतंत्र कराने और गौरवशाली गणतंत्र राष्ट्र बनाने में जिन देशभक्तों ने अपना बलिदान दिया उन्हें 26 जनवरी को याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धाजंलि दी जाती है ।


🚩गणतंत्र दिवस से जुड़े कुछ तथ्य:


🚩1)  पूर्ण स्वराज दिवस (26 जनवरी 1930) को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान 26 जनवरी को लागू किया गया था ।


🚩2)  26 जनवरी 1950 को 10:18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था।


🚩3)  गणतंत्र दिवस की पहली परेड 1955 में दिल्ली के राजपथ पर हुई थी ।


🚩4)  भारतीय संविधान की दो प्रतियां हैं, जो हिन्दी और अंग्रेजी में हाथ से लिखी गई थी ।


🚩5)  भारतीय संविधान की हाथ से लिखी मूल प्रतियां संसद भवन के पुस्तकालय में सुरक्षित रखी हुई हैं ।


🚩6)  भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाऊस में 26 जनवरी 1950 को शपथ ली थी ।


🚩7)  गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं ।


🚩8)  26 जनवरी को हर साल देश के स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रध्वज के सम्मान में 21 तोपों की सलामी दी जाती है ।


🚩9)  29 जनवरी को विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन किया जाता है। जिसमें भारतीय थलसेना, वायुसेना और नौसेना के बैंड हिस्सा लेते हैं । यह दिन 'गणतंत्र दिवस समारोह' के समापन के रूप में मनाया जाता है ।


🚩राष्ट्र-प्रतीकों राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगीत का सम्मान करें, राष्ट्राभिमान बढाएं !


🚩1. राष्ट्रध्वज को ऊंचे स्थान पर फहराएं ।


🚩2. प्लास्टिक के राष्ट्रध्वजों का उपयोग न करें ।


🚩3. ध्यान रखें कि राष्ट्रध्वज नीचे अथवा कूड़े में न गिरे ।


🚩4. राष्ट्रध्वज का उपयोग शोभावस्तु के रूप में अथवा पटाखे एवं खिलौने के रूप में न करें ।


🚩5. जिन वस्त्रों पर राष्ट्रध्वज छपा हुआ है, ऐसे वस्त्र न पहनें अथवा अपने मुख पर भी ध्वज चित्रित न करवाएं ।


🚩6. राष्ट्रगीत के समय बातें न करें, सावधान मुद्रा में खड़े रहें ।


🚩जय हिंद !

जय माँ भारती !!


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Wednesday, January 24, 2024

रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा से तिलमिलाए मुस्लिम कट्टरपंथी

अयोध्या मन्दिर में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा से तिलमिलाए मुस्लिम कट्टरपंथियों की नापाक हरकतें आयी सामने...

कहीं पथराव तो कहीं भगवा फाड़ा गया...

25 January 2024

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🚩राम जन्मभूमि पर रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई है। अयोध्या राम मंदिर को लेकर जहाँ चारों ओर हर्षोल्लास देखने को मिल रहा है, वहीं हिंदू और राम नाम से घृणा करने वाले भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। गाजियाबाद में शादाब नामक व्यक्ति ने अपने कुत्ते को रामनामी पट्टा पहना कर पूरे मोहल्ले में घुमाया!

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया में बाबरी के नारे लगाए गए!

गुजरात के वड़ोदरा में शोभा यात्रा को निशाना बनाया गया।

राजस्थान के बाड़मेर में भगवा झंडे को फाड़े गये!

बिहार के दरभंगा में भी शोभा यात्रा पर पथराव हुआ।


🚩गाजियाबाद में शादाब ने कुत्ते को रामनामी पहनाया

दिल्ली से सटे जिले गाजियाबाद में शादाब ने अपने कुत्ते के गले में भगवान राम के नाम का पट्टा डाला और उसे पूरे मोहल्ले में घुमाया। इस घटना पर स्थानीय लोगों ने तीखा विरोध किया तो पुलिस हरकत में आई। पुलिस ने शादाब को गिरफ्तार कर लिया है। सहायक पुलिस आयुक्त (इंदिरापुरम) स्वतंत्र कुमार सिंह ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि वैशाली सेक्टर तीन में मजहब विशेष के युवक ने ऐसा काम किया। कौशांबी पुलिस ने जाँच के बाद आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने उसके खिलाफ धार्मिक भावनाएँ भड़काने समेत अन्य कई धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की है।



🚩बिहार के दरभंगा में शोभा यात्रा पर पथराव

बिहार के दरभंगा में रामलला की शोभा यात्रा पर पथराव किया गया। ये मामला सिंहवाड़ा थाने के भपुरा गाँव का है। सोमवार (22 जनवरी 2024) को श्रीराम शोभा यात्रा के दौरान पथराव किया गया। उपद्रवियों ने दो बाइक सहित डीजे वाहन को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया। अचानक हुए हमले से शोभायात्रा में शामिल रामभक्तों में अफरातफरी की स्थिति हो गई। पुलिस ने मौके पर पहुँचकर स्थिति को नियंत्रित किया। उपद्रवियों की पहचान की जा रही है।


🚩राजस्थान में फाड़ा गया भगवा झंडा

राजस्थान के बाड़मेर में एक पोल पर लगे भगवा झंडे को फाड़ दिया गया, जिसके बाद लोग गुस्से में आ गए। गुस्साए लोगों ने हाईवे को जाम कर दिया और आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की। मामला बाड़मेर के ग्रामीण कोतवाली क्षेत्र का है। पुलिस ने आरोपित को भाडखा कस्बे से गिरफ्तार कर लिया है। घटना 22 जनवरी के शाम की है।



🚩जामिया में बाबरी की गूँज, पुलिस बल की तैनाती

दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बाबरी मस्जिद के समर्थन में नारे लगाए गए। इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी के बाहर पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी प्रशासन के एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि नारेबाजी में कुछेक छात्र शामिल थे। इन्होंने ‘स्ट्राइक फॉर बाबरी’ जैसे नारे लगाए। हालाँकि शैक्षणिक गतिविधि पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।


🚩वडोदरा में शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी

गुजरात के वडोदरा में भी शोभायात्रा निकाल रही टोली पर पत्थरों से हमला किया गया। वडोदरा के पडरा में जब शोभा यात्रा चल रही थी तो अचानक पत्थरों की बारिश होने लगी। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो भी सामने आए हैं, जिनमें अफरातफरी का माहौल दिख रहा है। पास ही एक मस्जिद भी नजर आ रही है। फिलहाल हालात काबू में हैं।



🚩बता दें कि राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले भी कई जगहों से हिंसा की खबरें सामने आई थी। कहीं मुस्लिम भीड़ ने छतों से पत्थरबाजी की, तो कहीं पर चलती सड़क पर हिंदुओं को निशाना बनाया। एक जगह तो तिलमिलाहट में इस्लामी कट्टरपंथी ने अयोध्या के राम मंदिर को ही उड़ा डालने की धमकी दी है। गुजरात के मेहसाना में प्राण प्रतिष्ठा से पहले निकाली गई शोभा यात्रा पर छतों से पत्थरबाजी हुई। पुलिस को स्थिति काबू करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। इलाके में पुलिस बल तैनात है और पत्थरबाजों पर कार्रवाई करते हुए 15 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें महिलाएँ भी शामिल हैं। इसी तरह मुंबई के मीरा रोड में भी सनातन यात्रा पर भीड़ ने हमला किया है।


🚩मुंबई में मीरा रोड हिंसा मामले में पीड़ित विनोद जायसवाल ने दर्ज करवाई FIR है। FIR से पता चला है कि 21 जनवरी की रात को 10:30 बजे यह घटना हुई। जायसवाल ने बताया है कि उनकी गाड़ी को 50-60 लोगों ने घेर लिया और हमला किया जबकि वह मीरा रोड पर जा रहे थे। उनकी गाड़ी पर लाठी-डंडों से हमला किया गया और उस पर लगा झंडा भी उखाड़ दिया।


🚩आगे उन्होंने बताया, “यहाँ सड़क जाम थी इसलिए हमने इसके बाद नयानगर की शिवार गार्डन रोड से जाने का फैसला किया। यहीं पर एक लड़के ने अचानक कार रोकी और धमकी देने लगा! धमकी देते कहा ‘हम तुम्हें दिखाएँगे कि हम कौन हैं।’  देखेंगे तुम्हारे राम तुम्हें बचाने आते हैं या नहीं। इसके तुरंत बाद लगभग 50-60 लोग यहाँ पर आ गए और रॉड व लाठियों से हमला करना शुरू कर दिया।”


🚩आगे उन्होंने FIR में लिखवाया, " उन दहशतगर्दों ने कार के बोनट पर भगवान हनुमान का पोस्टर देखा और उस पर उल्टी कर दी। उन्होंने अल्लाह-ओ-अकबर के नारे लगाए, मेरे सिर पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया और मेरी हत्या करने की कोशिश की। इससे हमारी हिंदू भावनाओं को ठेस पहुँची है। उन्होंने मेरे साथ आई महिलाओं और बच्चों पर भी पत्थर फेंके।”


🚩यह बात किसी से छुपी नहीं है कि हमारे देश में बहुसंख्यक हिन्दुओं पर अल्पसंख्यक समुदाय (तथाकथित डरे हुए ) के लोगों द्वारा कितने अत्याचार होते रहते हैं।

अब भले ही सुरक्षा इंतजामों के चलते इन गतिविधियों को बढ़ने से पहले ही रोक लिया गया।

पर ऐसी घृणा से प्रेरित खतरनाक और हिंसक वारदातें भविष्य में भी घटित होंगी ही , इसलिए इन्हें नज़रअंदाज बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता..!


https://www.youtube.com/live/hPtJaabcsXU?si=zi3jiFcNdWKDsxVT



🚩मोदी जैसे लोग जो सिर्फ राम का चोला तो ओढ़ रहे है किंतु हिन्दुओ पर खुले आम अति, संत समाज को टारगेट और मुस्लिमो का पोषण यह क्या संदेश आता है समाज अनभिज्ञ नही इससे...


🚩अयोध्या महोत्सव में

मुस्लिमों द्वारा  देशभर में कई जगह हिंदुओं को मारा पीटा गया,हिंसात्मक घटनाएं हुई।


🚩आखिर हिन्दुओ पर ही अत्याचार कब तक होता रहेगा ???


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Tuesday, January 23, 2024

"आजाद हिंद फ़ौज" ने स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को धधकते ज्वालामुखी में बदल दिया

नेताजी द्वारा गठित "आजाद हिंद फ़ौज" ने स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को धधकते ज्वालामुखी में बदल दिया... फलतः अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना ही पड़ा !

24 January 2024

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🚩अंग्रेजों को परास्त करने के लिए भारत की स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण का नेतृत्व नियती ने नेताजी के हाथों सौंपा था । नेताजी ने यह पवित्र और महत्त्वपूर्ण कार्य असीम साहस एवं तन, मन, धन तथा प्राण का त्याग करने में तत्पर रहने वाले सडातनी सैनिकों की ‘आजाद हिंद सेना’ संगठन द्वारा पूर्ण किया ।


🚩ब्रिटिश सेना के हिंदी सैनिकों का नेताजी ने बनाया संगठन

अंग्रेजों की स्थान बद्धता से भाग जाने पर नेताजी ने फरवरी 1943 तक जर्मनी में ही वास्तव्य किया । वे जर्मन सर्वसत्ताधीश हिटलर से अनेक बार मिले और उसे हिंदुस्तान की स्वतंत्रता के लिए सहायता का आवाहन भी किया ।


🚩दूसरे विश्वयुद्ध में विजय की ओर मार्गक्रमण करने वाले हिटलर ने नेताजी को सर्व सहकार्य देना स्वीकार किया । उस अनुसार उन्होंने जर्मनी की शरण में आए अंग्रेजों की सेना के हिंदी सैनिकों का अपने भाषणों द्वारा प्रबोधन करके उनका संगठन बनाया । नेताजी के वहां के भाषणों से हिंदी सैनिक देशप्रेम से भाव विभोर होकर स्वतंत्रता के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो जाते थे ।


🚩आजाद हिंदी फ़ौज की स्थापना और ‘चलो दिल्ली’का नारा


🚩पूर्व एशियाई देशों में जर्मनी के मित्रराष्ट्र जापान की सेना ब्रिटिश सेना को धूल चटा रही थी । जापान में भी शरणार्थी बनकर आए हुए, ब्रिटिश सेना के हिंदी सैनिक थे । नेताजी के मार्गदर्शन में , वहां पहले से ही रह रहे ' रास बिहारी बोस ' ने हिंदी सेना का गठन किया ।


🚩इस हिंदी सेना से मिलने नेताजी 90 दिन पनडुब्बी से यात्रा करते समय मृत्यु से जूझते हुए जुलाई, वर्ष 1943 में जापान की राजधानी टोकियो पहुंचे। रास बिहारी बोस जी ने इस सेना का नेतृत्व नेताजी के हाथों सौंप दिया । 5 जुलाई ,1943 को सिंगापुर में नेताजी ने ‘आजाद हिंद फ़ौज ’ की स्थापना की ।


🚩उस समय सहस्रों सैनिकों के सामने ऐतिहासिक भाषण करते हुए वे बोले,

‘‘सैनिक मित्रों ! आपकी युद्ध घोषणा एक ही रहे ! चलो दिल्ली ! आपमें से कितने लोग इस स्वतंत्रता युद्ध में जीवित रहेंगे, यह तो मैं नहीं जानता,परन्तु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि अंतिम विजय अपनी ही है। इसलिए उठो और अपने अपने शस्त्रास्त्र लेकर सुसज्ज हो जाओ । हमारे भारत में आपके आने से पहले ही क्रांतिकारियो ने हमारे लिए मार्ग बना रखा है और वही मार्ग हमें दिल्ली तक ले जाएगा । ….चलो दिल्ली ।”


🚩भारत के अस्थायी शासन की प्रमुख सेना सहस्रों सशस्त्र हिंदी सैनिकों की सेना सिद्ध होने पर और पूर्व एशियाई देशों की लाखों हिंदी जनता का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन मिलने पर नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्थान का दूसरा अस्थायी शासन स्थापित किया । इस अस्थायी शासन को जापान, जर्मनी, चीन, इटली, ब्रह्मदेश आदि देशों ने उनकी मान्यता घोषित की ।


🚩इस अस्थायी शासन की आजाद हिंद सेना एक प्रमुख सेना बन गई ! आजाद हिंद सेना में सर्व जाति-जनजाति, अलग-अलग प्रांत, भाषाओं के सैनिक थे । सेना में एकात्मता की भावना थी । ‘कदम कदम बढाए जा’, इस गीत से समरस होकर नेताजी ने तथा उनकी सेना ने आजाद हिंदुस्थान का स्वप्न साकार करने के लिए विजय यात्रा आरंभ की ।


🚩 नेताजी ने झांसी की रानी के पदचिन्हों का अनुसरण कर महिलाओं के लिए ‘रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट’ की स्थापना की । पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर महिलाओं को भी सैनिक प्रशिक्षण लेना चाहिए, इस भूमिका पर वे दृढ़ रहे । नेताजी कहते थे , हिंदुस्तान में 1857 के स्वतंत्रता युद्ध में लड़ने वाली झांसी की रानी का आदर्श सामने रखकर महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए ।


🚩आजाद हिंद फ़ौज द्वारा ब्रिटिशों को धक्का


🚩आजाद हिंद सेना का ब्रिटिश सत्ता के विरोध में सैनिकी आक्रमण आरंभ होते ही जापान के सत्ताधीश जनरल टोजो ने इंग्लैंड से जीते हुए अंदमान एवं निकोबार ये दो द्वीप समूह आजाद हिंद सेना के हाथों सौंप दिए । 29 दिसंबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्तान के प्रमुख होने के नाते नेताजी अंदमान गए और अपना स्वतंत्र ध्वज वहां लहराकर सेल्युलर कारागृह में दंड भोग चुके क्रांतिकारियो को श्रद्धांजलि अर्पित की । जनवरी 1944 में नेताजी ने अपनी सशस्त्र सेना ब्रह्मदेश में स्थानांतरित की ।


🚩19 मार्च, 1944 के ऐतिहासिक दिन आजाद हिंद सेना ने भारत की भूमि पर कदम रखा । इंफाल, कोहिमा आदि स्थानों पर इस सेना ने ब्रिटिश सेना पर विजय प्राप्त की । इस विजय निमित्त 22 सितंबर, 1944 को दिए गए भाषण में नेताजी ने गर्जना की... कि, ‘‘अपनी मातृभूमि स्वतंत्रता की मांग कर रही है ! इसलिए मैं आज आपसे आपका रक्त मांग रहा हूं । केवल रक्त से ही हमें स्वतंत्रता मिलेगी । तुम मुझे अपना रक्त दो । मैं तुमको स्वतंत्रता दूंगा !” (‘‘दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा लहराने के लिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”) यह भाषण इतिहास में अजर अमर हुआ । उनके इन हृदय झकझोर देनेवाले उद्गारों से उपस्थित हिंदी युवाओं का मन रोमांचित हुआ और उन्होंने अपने रक्त से प्रतिज्ञा लिखी ।


🚩‘चलो दिल्ली’का स्वप्न अधूरा; परंतु ब्रिटिशों को झटका


🚩मार्च 1945 से दोस्त राष्ट्रों के सामने जापान की पराजय होने लगी । 7 मई 1945 को जर्मनी ने बिना किसी शर्त के शरणागति स्वीकार ली, जापान ने 15 अगस्त को शरणागति की अधिकृत घोषणा की । जापान-जर्मनी के इस अनपेक्षित पराजय से नेताजी की सर्व आकांक्षाएं धूमिल हो गईं । ऐसे में अगले रणक्षेत्र की ओर अर्थात् सयाम जाते समय 18 अगस्त, 1945 को फार्मोसा द्वीप पर उनका बॉम्बर विमान गिरकर उनका हदयद्रावक अंत हुआ ।


🚩आजाद हिंद सेना दिल्ली तक नहीं पहुंच पाई; परंतु उस सेना ने जो प्रचंड आवाहन् बलाढ्य ब्रिटिश साम्राज्य के सामने खड़ा किया, इतिहास में वैसा अन्य उदाहरण नहीं । इससे ब्रिटिश सत्ता को भयंकर झटका लगा । हिंदी सैनिकों के विद्रोह से आगे चलकर भारत की सत्ता अपने अधिकार में रखना बहुत ही कठिन होगा, इसकी आशंका अंग्रेजों को आई । चतुर और धूर्त अंग्रेज शासन ने भावी संकट ताड़ लिया । उन्होंने निर्णय लिया कि पराजित होकर जाने से अच्छा है हम स्वयं ही यह देश छोड़कर चले जाएं । तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने अपनी स्वीकृति दे दी ।


🚩ब्रिटिश भयभीत हो गए और नेहरू भी झुके 


🚩स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाली नेताजी की आजाद हिंद सेना को संपूर्ण भारत वासियों का उत्स्फूर्त समर्थन प्राप्त था । नेताजी ने ब्रिटिश-भारत पर सशस्त्र आक्रमण करने की घोषणा की, तब पंडित नेहरू ने उनका विरोध किया; परंतु नेताजी की एकाएक मृत्यु के उपरांत आजाद हिंद सेना के सेनाधिकारियों पर अभियोग चलते ही, संपूर्ण देश से सेना की ओर से लोकमत प्रकट हुआ ।


🚩सेना की यह लोकप्रियता देखकर अंत में नेहरू को झुकना पडा, इतना ही नहीं उन्होंने स्वयं सेना के अधिकारियों का अधिवक्तापत्र (वकीलपत्र) लिया । अंततः आरोप लगाए गए सेना के 3 सेनाधिकारी सैनिक न्यायालय के सामने दोषी ठहराए गए; परंतु उनका दंड क्षमा कर दिया; क्योंकि अंग्रेज सत्ताधीशों की ध्यान में आया कि, नेताजी के सहयोगियों को दंड दिया, तो 90 वर्षों में लोक क्षोभ उफन कर आएगा । आजाद हिंद सेना के सैनिकों की निस्वार्थ देश सेवा की ज्योति से ही स्वतंत्रता की ज्वाला देशवासियों के हृदयों में निर्माण हुई ।


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Monday, January 22, 2024

राम जन्मभूमि ट्रस्ट के प्रमुख महंत नृत्यगोपालदासजी ने आशारामजी बापू के लिए क्या कहा ?

23 January 2024

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🚩अयोध्या के सबसे बड़े मंदिर, मणि राम दास की छावनी के प्रमुख और राम जन्मभूमि न्यास और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख महंत नृत्यगोपालदासजी हैं। वे श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के भी प्रमुख हैं।


🚩महंत नृत्यगोपालदासजी ने साफ तौर पर कहा हैं कि ‘‘संत आशारामजी बापू के प्रति जनता में बहुत भारी श्रद्धा है अतः दोष लगाने के लिए षड्यंत्रकारियों को कोई-न-कोई सहारा चाहिए। इसलिए इस प्रकार से सहारा लेकर उन्होंने चारित्रिक दोष की कल्पना की है लेकिन आशारामजी बापू महात्मा हैं।

https://youtu.be/YcVm0G-sMzA?si=E-TrNYpEMF2qk-_U


🚩जगदगुरु श्री रामभद्राचार्य महाराज ने भी कहा की आशाराम बापू के साथ अति हो गया है अब उनको रिहा करना चाहिए, यह बात में भारत के प्रधान मंत्री को भी बताऊंगा।

https://youtu.be/hMdDNkyLpHo?si=TJTjXpoejuQQ4_At


🚩आपको बात दे की केवल महंत नृत्यगोपालदासजी और रामभद्राचार्य महाराज ही नही अयोध्या के अन्य संत भी आशाराम बापू की रिहाई के लिए आवाज उठाई है।

 

🚩भारतीय जनक्रांति दल, अयोध्या के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. श्री राकेश शरणजी महाराज ने अशोक सिंघलजी के जीवन को याद करते हुए बताया कि ‘‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रणेता अशोक सिंघलजी के दो लक्ष्य थे। एक था श्रीराम मंदिर निर्माण और दूसरा हमारे निर्दोष संत आशाराम बापू की रिहाई। एक लक्ष्य तो पूरा हुआ, दूसरा सरकार कब पूरा करेगी ?’’ 

महाराज जी ने बापू आशाराम जी को महान संत बताया और कहा कि उनका तो समाज के प्रति ऐसा योगदान है कि उन्हें तो श्रीराम मंदिर के कार्यक्रम में होना चाहिए था।


🚩राम मंदिर की तरह बापू की रिहाई के लिए भी हो सामूहिक प्रयास

अयोध्या के स्वामी अवधकिशोर शरणजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘‘बापू आशारामजी को मिशनरियों ने जबरदस्ती फँसाया है। सभी धर्मप्रेमियों, भक्तों, समाज व सभी संत-महापुरुषों से अनुरोध करूँगा कि जैसे राम मंदिर के लिए सभी ने इतना किया इसी तरह बापूजी के लिए भी आवाज उठानी चाहिए।’’

https://youtu.be/p5OaWwkyTX4

 

🚩अयोध्या संत समिति के महामंत्री महंत पवन कुमारदास शास्त्रीजी, राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद के सम्पूर्ण दक्षिण भारत प्रभारी डॉ. श्रीकृष्ण पुरीजी, अयोध्या के महंत चिन्मयदासजी एवं श्री सतेन्द्रदासजी वेदांती ने भी संत आशाराम बापू की रिहाई के लिए यही बातें कही हैं।


🚩निश्चित ही श्री अशोक सिंघल, वी.एच.पी. व संस्कृतिप्रेमियों का राम मंदिर निर्माण का एक सपना तो साकार हो ही गया है और अब उनका संत आशाराम बापू की निर्दोष रिहाई का दूसरा सपना भी जल्द ही साकार होगा ऐसा जनता का मानना है। संतों और जनता की मांग है कि हिंदूवादी सरकार को बापू आशारामजी की शीघ्र रिहाई करवानी चाहिए।


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Sunday, January 21, 2024

भगवान श्री राम जी के अवतरण को आज लाखों वर्ष हुए , पर आज भी इतनी लोकप्रियता क्यों है ?

22 January 2024

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🚩भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,144 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय 11,000 वर्ष से भी अधिक माना गया है। अतः श्री राम राज्य के 11,000 से अधिक वर्ष + द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अब तक बीते 5,144 वर्ष = कुल लगभग 8,80,144 वर्ष हुए। अतएव भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,144 वर्ष पहले माना जाता है।


🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी ज़ुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।


🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।


🚩भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या पहले वह ही मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।


🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।


🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।


🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया :

क्रोधं आवाह्यामि ।

‘क्रोध! अब आ जा।’


🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।


🚩श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। “शुक्रनीति” और “मनुस्मृति” में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।


🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण से रस ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर( टैक्स ) लेते थे।


🚩प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थ-सुख और राज्य-वैभव का त्याग करने में भी कभी संकोच नहीं किया। जिसका उदाहरण है राम वनवास और राम जी द्वारा माता सीता को वन भेजना। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।


🚩राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय,सोक न रोग।।


🚩अर्थात्...

‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।’


🚩राम-राज्य में किसी को आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते थे। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते थे और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते थे ।


🚩उस काल में धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा था, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं था। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण थे और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हुए थे।

स्रोत : संत श्री आशारामजी बापू के प्रवचन से


🚩देश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक उनका यश भी फैला रहेगा।


🚩सभी देशवासी रामराज्य की स्थापना का संकल्प करें…


🚩रामराज्य में प्रजा धर्माचारिणी थी इसलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राजा मिले और वे प्रजाजन आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्मनिष्ठ और ईश्‍वर भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी होगा ही, इसमें रंच मात्र संशय नहीं है।


🚩नित्य धर्माचरण में रत रह कर और परहित परायण भाव से राज्य कार्य करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम को बारम्बार प्रणाम।

उस काल में प्रजा का जीवन सुखमय व संपन्न करने और सभी को परमार्थ ( ईश्‍वर प्राप्ति )हेतु प्रेरित करने वालेे रामराज्य की ख्याति थी , जिसमें अपराध , भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान ही नहीं था।


🚩यहाँ सर्वोपरि ध्यान देने योग्य बात यह है कि राम-राज्य में साधु-संतों और आत्मज्ञानी महापुरुष को खूब खूब आदर-सम्मान होता था।श्रीराम जी स्वयं "महर्षि वशिष्ट जी" के श्रीचरणों में नित्य शीश नवाते थे और प्रत्येक कार्य व धर्मानुष्ठान अपने गुरुदेव के मार्गदर्शन में ही करते थे। यहाँ तक कि अयोध्या लौटकर रावण पर विजय का संपूर्ण श्रेय भी उन्होंने अपने सद्गुरुदेव को ही दिया था।

ऐसे आदर्श राज्य “हिन्दूराष्ट्र” की स्थापना का निश्‍चय हम सभी देशवासी करें... !!


🚩 जय श्रीराम 🚩


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भगवान श्री राम के पूर्वज कौन थे और आज कौनसी पीढ़ी चल रही है ?

20 January 2024

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🚩रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है:- ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के विवस्वान् और विवस्वान् के वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।


🚩इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।


🚩भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। इसी कारण से राम जी के कुल को रघुकुल भी कहते हैं।


🚩रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। वाल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।


🚩श्री राम जी के दो पुत्रों लव और कुश में से कुश की निम्नलिखित वंशावली भी मिलती है।

फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है अबतक , क्योंकि अलग अलग ग्रंथों में यह अलग अलग मिलती है। कारण यह कि कुश से लेकर राजा सवाई भवानी सिंह के बीच जिन राजाओं का उल्लेख मिलता है उनके अन्य भाई भी थे, जिनके अन्य वंश चले हैं। इस तरह संपूर्ण भारत देश में राम के वंशजों का एक ऐसा नेटवर्क फैला है जिसकी संपूर्ण वंशावली को यहां देना संभव नहीं है।


🚩 कुश की एक यह वंशावली-


🚩राम के जुड़वा पुत्र लव और कुश हुए। कुश के अतिथि हुए, अतिधि के निषध हुए, निषध के नल हुए, नल के नभस, नभस के पुण्डरीक, पुण्डरीक के क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वा के देवानीक, देवानीक के अहीनर, अहीनर के रुरु, रुरु के पारियात्र, पारियात्र के दल, दल के शल , शल के उक्थ, उक्थ के वज्रनाभ, वज्रनाभ के शंखनाभ, शंखनाभ के व्यथिताश्व, व्यथिताश्व से विश्वसह, विश्वसह से हिरण्यनाभ, हिरण्यनाभ से पुष्य, पुष्य से ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि से सुदर्शन, सुदर्शन से अग्निवर्णा, अग्निवर्णा से शीघ्र, शीघ्र से मरु, मरु से प्रसुश्रुत, प्रसुश्रुत से सुगवि, सुगवि से अमर्ष, अमर्ष से महास्वन, महास्वन से बृहदबल, बृहदबल से बृहत्क्षण (अभिमन्यु द्वारा मारा गया था), वृहत्क्षण से गुरुक्षेप, गुरक्षेप से वत्स, वत्स से वत्सव्यूह, वत्सव्यूह से प्रतिव्योम, प्रतिव्योम से दिवाकर, दिवाकर से सहदेव, सहदेव से बृहदश्व, वृहदश्व से भानुरथ, भानुरथ से सुप्रतीक, सुप्रतीक से मरुदेव, मरुदेव से सुनक्षत्र, सुनक्षत्र से किन्नर, किन्नर से अंतरिक्ष, अंतरिक्ष से सुवर्ण, सुवर्ण से अमित्रजित्, अमित्रजित् से वृहद्राज, वृहद्राज से धर्मी, धर्मी से कृतन्जय, कृतन्जय से रणन्जय, रणन्जय से संजय, संजय से शुद्धोदन, शुद्धोदन से शाक्य, शाक्य (गौतम बुद्ध) से राहुल, राहुल से प्रसेनजित, प्रसेनजित् से क्षुद्रक, क्षुद्रक से कुंडक, कुंडक से सुरथ, सुरथ से सुमित्र और कुरुम , कुरुम से कच्छ, कच्छ से बुधसेन।


 🚩बुधसेन से क्रमश: धर्मसेन, भजसेन, लोकसेन, लक्ष्मीसेन, रजसेन, रविसेन, करमसेन, कीर्तिसेन, महासेन, धर्मसेन, अमरसेन, अजसेन, अमृतसेन, इंद्रसेन, रजसेन, बिजयमई, स्योमई, देवमई, रिधिमई, रेवमई, सिद्धिमई, त्रिशंकुमई, श्याममई, महीमई, धर्ममई, कर्ममई, राममई, सूरतमई, शीशमई, सुरमई, शंकरमई, किशनमई, जसमई, गौतम, नल, ढोली, लछमनराम, राजाभाण, वजधाम (वज्रदानम), मधुब्रह्म, मंगलराम, क्रिमराम, मूलदेव, अनंगपाल, श्रीपाल (सूर्यपाल), सावन्तपाल, भीमपाल, गंगपाल, महंतपाल, महेंद्रपाल, राजपाल, पद्मपाल, आनन्दपाल, वंशपाल, विजयपाल, कामपाल, दीर्घपाल (ब्रह्मपाल), विशनपाल, धुंधपाल, किशनपाल, निहंगपाल, भीमपाल, अजयपाल, स्वपाल (अश्वपाल), श्यामपाल, अंगपाल, पुहूपपाल, वसन्तपाल, हस्तिपाल, कामपाल, चंद्रपाल, गोविन्दपाल, उदयपाल, चंगपाल, रंगपाल, पुष्पपाल, हरिपाल, अमरपाल, छत्रपाल, महीपाल, धोरपाल, मुंगवपाल, पद्मपाल, रुद्रपाल, विशनपाल, विनयपाल, अच्छपाल (अक्षयपाल), भैंरूपाल, सहजपाल, देवपाल, त्रिलोचनपाल (बिलोचनपाल), विरोचनपाल, रसिकपाल, श्रीपाल (सरसपाल), सुरतपाल, सगुणपाल, अतिपाल, गजपाल (जनपाल), जोगेंद्रपाल, भौजपाल (मजुपाल), रतनपाल, श्यामपाल, हरिचंदपाल, किशनपाल, बीरचन्दपाल, त्रिलोकपाल, धनपाल, मुनिकपाल, नखपाल (नयपाल), प्रतापपाल, धर्मपाल, भूपाल, देशपाल (पृथ्वीपाल), परमपाल, इंद्रपाल, गिरिपाल, रेवन्तपाल, मेहपाल (महिपाल), करणपाल, सुरंगपाल (श्रंगपाल), उग्रपाल, स्योपाल (शिवपाल), मानपाल, परशुपाल (विष्णुपाल), विरचिपाल (रतनपाल), गुणपाल, किशोरपाल (बुद्धपाल), सुरपाल, गंभीरपाल, तेजपाल, सिद्धिपाल (सिंहपाल), गुणपाल, ज्ञानपाल (तक गढ़ ग्वालियर में राज किया), काहिनदेव, देवानीक, इसैसिंह (तक बांस बरेली में राज फिर ढूंढाड़ में आए), सोढ़देव, दूलहराय, काकिल, हणू ( आमेर में राज्य किया ), जान्हड़देव, पंजबन, मलेसी, बीजलदेव, राजदेव, कील्हणदेव, कुंतल, जीणसी (बाद में जोड़े गए), उदयकरण, नरसिंह, वणबीर, उद्धरण, चंद्रसेन, पृथ्वीराज सिंह (इस बीच पूणमल, भीम, आसकरण और राजसिंह भी गद्दी पर बैठे), भारमल, भगवन्तदास, मानसिंह, जगतसिंह (कंवर), महासिंह (आमेर में राजा नहीं हुए), भावसिंह गद्दी पर बैठे, महासिंह (मिर्जा राजा), रामसिंह प्रथम, किशनसिंह (कंवर, राजा नहीं हुए), कुंअर, विशनसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई ईश्वरसिंह, सवाई मोधोसिंह, सवाई पृथ्वीसिंह, सवाई प्रतापसिंह, सवाई जगतसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई जयसिंह तृतीय, सवाई रामसिंह द्वितीय, सवाई माधोसिंह द्वितीय, सवाई मानसिंह द्वितीय, सवाई भवानी सिंह (वर्तमान में गद्दी पर विराजमान हैं)


🚩अन्य तथ्य:

राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुर्जर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।


🚩राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, शल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।


🚩कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यदि इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारत काल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।


 🚩इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणंजय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं।


🚩तो यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसोदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है। जयपुर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग भी राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए वक्तव्य में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे।


 🚩इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त, 1921 को जन्में महाराजा मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और मानसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ। लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।

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🚩क्या भारतीय मुसलमान भी राम के वंशज हैं?


🚩हालांकि ऐसे कई राजा और महाराजा हैं जिनके पूर्वज श्रीराम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाह वंश से ताल्लुक रखते हैं। मुगल काल में इन सभी को जबरन धर्म परिवर्तन करना पड़ा था, लेकिन ये सभी आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं।


 🚩इसी तरह मेवात में दहंगल गोत्र के लोग भगवान राम के वंशज हैं ( और छिरकलोत गोत्र के मुस्लिम यदुवंशी माने जाते हैं )। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि जगहों पर ऐसे कई मुस्लिम गांव या समूह हैं जो राम के वंश से संबंध रखते हैं। डीएनए शोधाधुसार उत्तर प्रदेश के 65 प्रतिशत मुस्लिम ब्राह्मण , बाकी राजपूत, कायस्थ, खत्री, वैश्य और दलित वंश से ताल्लुक रखते हैं।

      - संकलक व लेखक : राजेश पंडित


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