Thursday, November 14, 2024

तुलसी विवाह: पौराणिक कथा, पूजा विधि और महत्त्व

 14  November 2024

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🚩 तुलसी विवाह: पौराणिक कथा, पूजा विधि और महत्त्व


🚩तुलसी विवाह हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्त्व रखता है। यह पर्व भक्तों के लिए भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का रूप) का विवाह तुलसी के पौधे से धूमधाम से मनाया जाता है। इसे देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है, जब भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा से जागते हैं। मान्यता है कि तुलसी विवाह से सुख, समृद्धि, और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


🚩 पौराणिक कथा का विस्तृत विवरण:

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा का संबंध राक्षसराज जालंधर और उनकी पत्नी वृंदा से है। कथा के अनुसार, जालंधर एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था और उसका उत्पात तीनों लोकों में फैला हुआ था। उसकी पत्नी वृंदा एक महान पतिव्रता नारी और भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा के पतिव्रता धर्म के प्रभाव से जालंधर अजेय बना हुआ था, और उसके कारण देवता भी उसे पराजित नहीं कर पा रहे थे। देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी, और तब भगवान शिव ने भगवान विष्णु से इस समस्या का हल ढूंढने की प्रार्थना की।


भगवान विष्णु ने वृंदा के पातिव्रत्य को तोड़ने का निर्णय लिया, ताकि जालंधर को हराया जा सके। उन्होंने रूप धारण किया और वृंदा के सामने प्रकट हुए। वृंदा ने अपने पति समझकर भगवान विष्णु की पूजा की, जिससे उसका पातिव्रत्य टूट गया। उसी समय भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के इस छल का पता चला, तो उन्होंने उन्हें श्राप दिया कि वे पत्थर के शालिग्राम में परिवर्तित हो जाएं। भगवान विष्णु ने वृंदा के इस श्राप को स्वीकार कर लिया। वृंदा ने भी अपने शरीर को त्याग कर अग्नि में समर्पित कर दिया, और उनके भक्ति भाव के कारण भगवान विष्णु ने उन्हें तुलसी के पौधे के रूप में अमर कर दिया।


🚩 अन्य पौराणिक मान्यताएं और तुलसी विवाह का महत्त्व:


🌿 शालिग्राम और तुलसी विवाह: भगवान विष्णु का शालिग्राम स्वरूप और तुलसी का विवाह एक पवित्र संबंध का प्रतीक है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह मान्यता है कि शालिग्राम और तुलसी के विवाह के बिना घर में मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं किया जाता है।


🌿 तुलसी के औषधीय और धार्मिक गुण: तुलसी को आयुर्वेद में अमृत तुल्य माना गया है। यह न केवल औषधीय गुणों से भरपूर है बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष स्थान है। मान्यता है कि तुलसी माता के आशीर्वाद से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं कर पाती हैं और वातावरण पवित्र रहता है।


🌿व्रत और उपवास की परंपरा: तुलसी विवाह के दिन व्रत रखने और तुलसी की पूजा करने से जीवन में आने वाले संकटों का नाश होता है। जो भक्त अपने जीवन में सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति चाहते हैं, उनके लिए तुलसी विवाह का व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना गया है।


🌿 विवाह में आने वाली बाधाओं का निवारण: धार्मिक मान्यता है कि जिन युवक-युवतियों के विवाह में देरी हो रही होती है या जिनके विवाह में बाधाएं आ रही होती हैं, उन्हें तुलसी विवाह जरूर कराना चाहिए। इससे विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।


🌿सामाजिक समरसता का प्रतीक: तुलसी विवाह का आयोजन न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी इसे सामूहिक रूप से मनाने की परंपरा है। लोग मिलजुलकर इस पर्व को उत्साहपूर्वक मनाते हैं, जिससे समाज में एकता और सौहार्द का भाव उत्पन्न होता है।


🚩 तुलसी विवाह का पूजा विधि:


तुलसी विवाह के आयोजन के लिए विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है। इस दिन लोग तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाते हैं और विधिपूर्वक उनका विवाह भगवान शालिग्राम से कराते हैं।


🌿सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और पूजा की तैयारी करें।


  🌿 फूलों, पत्तियों, और रंगोली से एक मंडप सजाएं और तुलसी माता और शालिग्राम को मंडप में स्थापित करें।


🌿 तुलसी माता को विशेष रूप से सजाकर उनके पास दीपक जलाएं और तुलसी जी की तीन या सात बार परिक्रमा करें।


🌿गंगाजल से तुलसी जी और शालिग्राम का अभिषेक करें। उन्हें पीले वस्त्र, फूल, और फल अर्पित करें।


🌿 तुलसी माता को सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करें, जैसे चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, चुनरी, आदि।


🌿 विवाह की रस्मों में मंगलाष्टक का पाठ करें और तुलसी माता को शालिग्राम की माला पहनाएं। फेरों के बाद तुलसी जी और शालिग्राम की आरती उतारें और प्रसाद वितरण करें।


🚩 तुलसी विवाह का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व:


तुलसी विवाह का धार्मिक महत्त्व केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना का एक अद्भुत माध्यम है। यह पर्व व्यक्ति को भक्ति, प्रेम, और त्याग का संदेश देता है। 

🚩 तुलसी का पौधा न केवल विष्णु प्रिय है बल्कि यह शांति, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक है और ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह से घर में सुख-शांति का वास होता है, और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


🚩 निष्कर्ष:

तुलसी विवाह हमारे सनातन धर्म की महान परंपरा का एक हिस्सा है, जो भक्तों को भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम की शिक्षा देता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि भगवान और भक्त का संबंध कितना पवित्र और अनन्य होता है। तुलसी विवाह के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मकता, सौभाग्य और शांति का संचार कर सकते हैं। सनातन धर्म की इस परंपरा को सहेजना और आगे बढ़ाना हम सभी का कर्तव्य है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी महिमा को समझें और अपनी संस्कृति का सम्मान करें।


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Wednesday, November 13, 2024

मिट्टी चिकित्सा: प्राकृतिक चिकित्सा का अद्भुत ब्रह्मास्त्र

 13 November 2024

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🚩मिट्टी चिकित्सा: प्राकृतिक चिकित्सा का अद्भुत ब्रह्मास्त्र


🚩मिट्टी चिकित्सा, जिसे मड थेरेपी भी कहा जाता है, एक प्राचीन प्राकृतिक उपचार पद्धति है, जो नेचुरोपैथी (प्राकृतिक चिकित्सा) का हिस्सा है। भारत में इस चिकित्सा का उपयोग हजारों वर्षों से विभिन्न शारीरिक और मानसिक बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। 


🚩आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इस चिकित्सा के लाभों को मान्यता देते हैं, जो कि मिट्टी में पाए जाने वाले विभिन्न खनिजों के कारण होते हैं। हमारे शरीर का निर्माण जिन पांच तत्वों से हुआ है, उनमें पृथ्वी तत्व अर्थात् मिट्टी की प्रधानता है, इसलिए इसे “माटी का पुतला” कहा गया है।

 🚩आयुर्वेद और वैदिक ग्रंथों में भी मिट्टी के अद्वितीय रोगनाशक और स्वस्थ्यवर्धक गुणों का वर्णन मिलता है।


🚩अर्थववेद में कई सूक्त हैं, जिनमें मिट्टी को रोग नाशक, शीतलता प्रदान करने वाला और संतुलन बनाए रखने वाला तत्व बताया गया है। 

🚩प्राचीन लोक कथाओं में भी कहते हैं, “सब रोगों की एक दवाई, हवा, पानी, मिट्टी मेरे भाई।” वास्तव में, कैंसर, टीबी, सिरदर्द, पेट के रोग, उच्च रक्तचाप, और कब्ज जैसी बीमारियाँ मिट्टी चिकित्सा से ठीक हो सकती हैं।


🚩मिट्टी के अद्भुत गुण और आयुर्विज्ञान सम्मत लाभ


▪️बचपन में यदि चोट लगती थी, तो तुरंत मिट्टी का लेप लगाकर घाव भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। किसान खेत में चोटिल हो जाते थे, तो मिट्टी की पट्टी बांध लेते थे, क्योंकि मिट्टी में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। इसमें घावों को भरने की अद्वितीय क्षमता होती है, जिसे “हीलिंग पावर” कहते हैं।


▪️डॉ. वॉक्समैंन, एक जर्मन वैज्ञानिक, मिट्टी के गुणों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मिट्टी पर अनुसंधान किया। उन्हें इसके लिए 1952 में मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने मिट्टी में पाए जाने वाले एंटीबायोटिक तत्व “स्ट्रेप्टोमाइसिन” की खोज की, जो टीबी के बैक्टीरिया को नष्ट करने में सहायक है। यह अनुसंधान मिट्टी के अद्भुत रोगनाशक गुणों का प्रमाण है।


🚩मिट्टी चिकित्सा की परंपरागत विधियाँ और लाभ


▪️ मिट्टी पर नंगे पैर चलना - यह सरल प्रक्रिया शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार करती है और मानसिक शांति देती है।

▪️ सूर्य तप्त रेत में स्नान - यह न केवल मांसपेशियों की थकान को दूर करता है, बल्कि त्वचा में प्राकृतिक चमक लाता है और रक्तसंचार को सुधारता है।

▪️नाभि पर मिट्टी की पट्टी लगाना - पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए इसे नाभि पर लगाने की सलाह दी जाती है। इसे नियमित 15 मिनट तक सुबह-शाम लगाने से पाचन क्रिया में सुधार होता है और शरीर से विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं।

▪️ मिट्टी का लेप - प्राचीन काल से पहलवान मिट्टी का लेप लगाते थे। इससे मांसपेशियाँ मजबूत होती थीं और शरीर की थकान दूर होती थी।


🚩आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से मिट्टी के गुण


▪️ वात, पित्त और कफ का संतुलन: आयुर्वेद में मिट्टी को शरीर के तीन दोषों – वात, पित्त और कफ को संतुलित करने वाला माना गया है, जिससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है।

▪️हीलिंग और एंटीसेप्टिक गुण: मिट्टी में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक तत्व होते हैं जो घावों को भरने में सहायक होते हैं। यह त्वचा के रोगाणुओं को नष्ट कर संक्रमण को रोकता है।

▪️ डिटॉक्सिफिकेशन: मिट्टी का उपयोग शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक होता है, जिससे रक्त शुद्ध होता है और त्वचा स्वस्थ रहती है।


🚩मिट्टी चिकित्सा का वैश्विक प्रचार और भविष्य


सबसे आश्चर्य की बात यह है कि जिस भारत में मिट्टी चिकित्सा का आविष्कार हुआ, वहीं यह आज बहुत कम प्रचलन में है। जबकि जापान, अमेरिका, यूरोप और थाईलैंड जैसे देशों में इसे प्रमुखता से अपनाया जा रहा है। भारत में भी दक्षिण भारत के कुछ संस्थान इस दिशा में अच्छा कार्य कर रहे हैं।


🚩आज के समय में जब महंगी और रासायनिक दवाओं का उपयोग बढ़ता जा रहा है, तो यह आवश्यक है कि हम मिट्टी चिकित्सा को पुनः अपनाएँ। मिट्टी न केवल हमें शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी प्रदान करती है। यह भारत के ऋषियों द्वारा विश्व को दी गई एक अनुपम देन है, जिसे अपनाकर हम अपने शरीर, मन और आत्मा को संतुलित और स्वस्थ रख सकते हैं।


🚩मिट्टी चिकित्सा को अपना कर हम न केवल अपनी संस्कृति को संजो सकते हैं, बल्कि अपनी जीवनशैली को भी प्रकृति के अनुकूल बना सकते हैं।


🚩 निष्कर्ष


मिट्टी चिकित्सा न केवल एक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है, बल्कि आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान भी इसके फायदों को मान्यता देते हैं। इसके प्राकृतिक गुण न केवल शारीरिक बीमारियों को ठीक करते हैं, बल्कि मन को भी शांति प्रदान करते हैं। अगर आप भी प्राकृतिक चिकित्सा का अनुभव करना चाहते हैं, तो मिट्टी चिकित्सा अपनाकर अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।



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Tuesday, November 12, 2024

चूना के अमृत गुण : स्वास्थ्य के लिए अनेक लाभकारी तथ्य

 12 November 2024

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🚩 चूना के अमृत गुण :  स्वास्थ्य के लिए अनेक लाभकारी तथ्य


🚩  चूना, जिसे अक्सर पान में इस्तेमाल किया जाता है, केवल स्वाद बढ़ाने का साधन नहीं है। इसके अद्भुत स्वास्थ्य लाभ इसे अमृत के समान बनाते हैं। यहां हम चूना के स्वास्थ्य लाभों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं:


🚩 कैल्शियम का प्राकृतिक स्रोत


🔘 चूना शरीर के लिए कैल्शियम का बेहतरीन स्रोत है। 50 वर्ष की उम्र के बाद हमारे शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है, जिसे चूना प्रभावी रूप से पूरा कर सकता है। इसका सेवन शरीर में तेजी से कैल्शियम का स्तर बढ़ाता है।


🚩 पीलिया (जॉन्डिस) का उपचार


 🔘 पीलिया के उपचार में चूना बेहद प्रभावी है। यदि गन्ने के रस में गेहूं के दाने के बराबर चूना मिलाकर पिलाया जाए तो यह पीलिया को तेजी से ठीक कर सकता है। यह प्राकृतिक उपचार सुरक्षित और कारगर माना गया है।


🚩 लंबाई और स्मरण शक्ति में वृद्धि


 🔘 चूना बच्चों की लंबाई बढ़ाने और उनकी स्मरण शक्ति को मजबूत बनाने में भी सहायक है। बच्चों के विकास में यह बेहद फायदेमंद साबित होता है। एक चुटकी चूना दही, दाल, या पानी में मिलाकर देने से लंबाई बढ़ती है और याददाश्त में सुधार होता है।


 🚩 बुद्धि का विकास


  🔘 चूना मानसिक विकास के लिए लाभकारी है। जिन बच्चों की मानसिक क्षमता कमजोर होती है या जिनकी बुद्धि और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता धीमी होती है, उनके लिए यह विशेष रूप से सहायक है।


🚩 मासिक धर्म की समस्याओं में राहत


 🔘 मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अगर कोई भी समस्या होती है, तो चूना उनके लिए लाभकारी होता है। यह मासिक धर्म के दौरान होने वाली असुविधाओं को कम करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है।


🚩  गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष लाभकारी


 🔘 गर्भावस्था के दौरान चूना का सेवन गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद है। अगर अनार के रस में गेहूं के दाने के बराबर चूना मिलाकर रोज़ दिया जाए तो:

प्रसव के समय कठिनाई कम होती है।

बच्चा स्वस्थ और तंदुरुस्त होता है।

बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है।

बच्चा जन्म से ही तेज बुद्धि का होता है।


🚩 हड्डियों और जोड़ों के दर्द में राहत


 🔘 चूना घुटनों, कमर और कंधों के दर्द को कम करने में सहायक है। 

 🔘 स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याओं में भी चूना उपयोगी है। हड्डियों के टूटने की स्थिति में चूना उनके जुड़ने में मदद करता है।


🚩 मुँह के छालों और खून की कमी का समाधान


 🔘 अगर मुँह में छाले हो जाएं, तो चूना का पानी पीने से तुरंत आराम मिलता है। चूना शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को भी दूर करने में सहायक है। संतरे या अनार के रस में चूना मिलाकर पीने से शरीर में खून तेजी से बढ़ता है।


🚩  घुटनों के घिसाव में लाभकारी


🔘 अगर घुटनों में घिसाव की समस्या हो और डॉक्टर घुटना बदलने की सलाह दें, तो नियमित रूप से चूना खाने से लाभ हो सकता है। हरसिंगार के पत्तों के काढ़े के साथ चूना लेना घुटनों की समस्याओं को कम करता है।


🚩 निष्कर्ष


चूना के ये गुण इसे एक अनमोल औषधि बनाते हैं। इसके नियमित और सीमित सेवन से अनेक स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं। हालांकि, इसका सेवन हमेशा सही मात्रा में करना चाहिए और विशेषज्ञ की सलाह से ही इसका उपयोग करना बेहतर है।


*नोट: यह जानकारी घरेलू नुस्खों पर आधारित है, चिकित्सीय सलाह के बिना इसका उपयोग न करें*।

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Monday, November 11, 2024

दीप जलाओ , आरोग्य लाओ

 10  नवंबर 2024

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🚩 दीप जलाओ  🪔 , आरोग्य लाओ !


🚩सरसों के तेल से जलाए गए दीपक 🪔 की रासायनिक क्रिया स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी और तापमान के कारण हानिकारक बैक्टीरिया और फफूंद तेजी से बढ़ते हैं। ब्लैक फंगस, जिसके बीजाणु हवा में तैरते रहते हैं, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले हजारों लोगों की आँखों को निशाना बना चुका है।


🚩सनातन वैदिक संस्कृति का प्रत्येक पर्व गहरी वैज्ञानिकता और सार्थक उद्देश्य को समाहित किए हुए है। 

🚩वर्षा ऋतु के बाद कार्तिक मास की अमावस्या पर दीपावली मनाई जाती है। शरद ऋतु में हानिकारक कीट, जीवाणु और फंगस का आतंक अपने चरम पर होता है, जिससे घर की दीवारें, वस्त्र, और फर्नीचर संक्रमित रहते हैं।

🚩सरसों का दीपक 🪔 जलाकर आप अपने घर और आसपास के वातावरण को इन हानिकारक बैक्टीरिया और फंगस से मुक्त कर सकते हैं। 🚩🚩सरसों के तेल में ‘एलाइल आइसोथायोसाइनेट’ नामक विशेष रसायन होता है, जो फफूंदी और बैक्टीरिया का नाश करता है। यही कारण है कि सरसों, मूली, ब्रोकली, चुकंदर जैसी सब्जियों में तीखापन और दाहकारी गुण होते हैं।


🚩नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध में पाया गया कि ‘एशेरिकिया कोलाइ’ बैक्टीरिया, जो मानव आतों को संक्रमित कर गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न करता है, सरसों के तेल में मौजूद एलाइल आइसोथायोसाइनेट के संपर्क में आते ही नष्ट हो जाता है। सरसों के तेल की मालिश भी इसी वजह से की जाती है।


🚩हमारे पूर्वजों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अद्भुत था। सरसों के तेल का दीपक 🪔 जलाने से हवा में एलाइल आइसोथायोसाइनेट का धुआं उत्पन्न होता है, जो वातावरण में उपस्थित हानिकारक बैक्टीरिया और फफूंद को नष्ट करता है।


🚩कार्तिक मास में संध्या के समय हवन और दीप प्रज्वलन 🪔 की परंपरा से स्वस्थ वातावरण का लाभ लिया जा सकता है। हवन सामग्री में देशी पीली या काली सरसों मिलाकर हवन करने से वातावरण शुद्ध और सुरभित होता है। 

🚩घर को सजाने के लिए इलेक्ट्रिक लाइट्स का उपयोग करने के बजाय देशी सरसों के तेल के दीपक 🪔 अवश्य जलाएँ। इलेक्ट्रिक लाइट्स से केवल मानसिक संतुष्टि मिलती है, लेकिन यह जीवों के स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित नहीं है।


‘सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः’ का विचार दीप प्रज्वलन 🪔  और हवन की परंपरा से ही वास्तविकता में साकार हो सकता है।


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Sunday, November 10, 2024

यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए



11 November 2024  

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यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए


🚩 भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।


🚩 इस साल यह व्रत 11 नवम्बर 2024 से 15 नवम्बर 2024 तक रहेगा।


🚩 इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता है।


🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।


🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे। अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।


🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्म पंचक व्रत’ कहलाता है। जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है। यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है। निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है।


🚩 भीष्म पंचक व्रत कथा: 


🚩 कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी। तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी। उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए। इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी। 


🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है…


🚩 महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे, तब भगवान कृष्ण पाँचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्मजी ने पाँच दिनों तक राज धर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, “पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ। जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।”


🚩 भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए? 


🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए:


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।  

भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे।।


🚩 ‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ।’ (स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)


🚩 अर्घ्य के जल में थोड़ा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें। ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ़ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ…’ – ऐसी प्रार्थना करें।


🚩 इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें। कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें।


🚩 इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है।


🚩 पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है।


🚩 इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।


🚩 जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है:


वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च।  

अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।।  

वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।  

अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे।।


🚩 जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ। वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।


🚩 इस व्रत के दिनों में इस बार देवउठी एकादशी 12 नवम्बर 2024 को है। इस दिन भगवान नारायण जागते हैं। इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:


उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।  

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु॥


🚩 ‘हे गोविन्द! उठिए, उठिए, हे गरुड़ध्वज! उठिए, हे कमलाकांत! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये।’ (साभार: संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)


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Saturday, November 9, 2024

आंवला नवमी (अक्षय नवमी): सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि का पर्व

 9 November 2024

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🚩  आंवला नवमी (अक्षय नवमी): सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि का पर्व



🚩आंवला नवमी जिसे अक्षय नवमी भी कहते हैं, हिंदू धर्म में विशेष रूप से पूजनीय पर्व है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे अमृत के समान गुणकारी और अक्षय पुण्य देने वाला माना गया है। आंवला नवमी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी छिपे हैं।


🚩आंवला नवमी का पौराणिक महत्व


🔸 प्राचीन कथाओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु का निवास आंवला वृक्ष में होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। स्कंद पुराण के अनुसार, आंवला नवमी पर इस वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।


🔸 एक अन्य कथा के अनुसार, आंवला नवमी पर सत्ययुग की शुरुआत हुई थी, और इसी दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि के पालन का कार्य संभाला था। इस कारण आंवला वृक्ष को अक्षय पुण्य और शुभता का प्रतीक माना गया है।


🚩आंवला नवमी का धार्मिक महत्व


🔸 वृक्ष की पूजा का महत्त्व: हिंदू धर्म में आंवला वृक्ष को अत्यधिक पवित्र माना गया है। इस वृक्ष के नीचे पूजा करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

🔸अक्षय पुण्य का प्रतीक: अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा और उसके फल का सेवन करने से व्यक्ति को असीमित पुण्य प्राप्त होता है।

🔸 सौभाग्य और समृद्धि का वरदान: मान्यता है कि आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा से सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन विशेष रूप से माता लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है।


🚩 आंवला नवमी पूजा विधि


🔸 व्रत और स्नान: आंवला नवमी के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

🔸 आंवला वृक्ष का चयन: पास के किसी आंवला वृक्ष का चयन करें, जहां जाकर पूजा कर सकें। यदि आंवला वृक्ष उपलब्ध न हो तो घर पर आंवला फल का प्रयोग भी किया जा सकता है।

🔸 वृक्ष के नीचे पूजा: आंवला वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं, अक्षत, पुष्प, और कुमकुम अर्पित करें। वृक्ष के तने को हल्दी और कुमकुम से तिलक करें।

🔸 परिक्रमा और कथा: आंवला वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और आंवला नवमी की कथा सुनें या पढ़ें। मान्यता है कि इस दिन कथा सुनने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

🔸 भोजन: इस दिन आंवला का सेवन करना विशेष लाभकारी माना गया है। पूजा के पश्चात आंवला से बने पकवान या आंवला फल का सेवन करें। कुछ लोग इस दिन वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन भी करते हैं, जिससे उन्हें दैवीय आशीर्वाद प्राप्त होता है।


🚩आंवला नवमी के लाभ


🔸सभी कष्टों का नाश: आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के कष्ट और समस्याएं दूर होती हैं।

🔸 स्वास्थ्य में सुधार: आंवला आयुर्वेद में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, क्योंकि इसमें विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

🔸आध्यात्मिक उन्नति: आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा से मन में शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इससे व्यक्ति की आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है।

🔸 धन, संपत्ति और सौभाग्य: इस दिन पूजा करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे धन, संपत्ति, और सौभाग्य में वृद्धि होती है।


🚩आंवला नवमी के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ


आंवला को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह विटामिन सी से भरपूर होता है और इसके नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। इसके सेवन से त्वचा, बाल, और पाचन तंत्र को भी फायदा मिलता है।


🔸 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: आंवला के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे सर्दी, जुकाम और अन्य बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।

🔸 त्वचा और बालों के लिए लाभकारी: आंवला त्वचा में निखार लाने और बालों को मजबूत बनाने में सहायक होता है। यह एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर है जो त्वचा को जवां बनाए रखने में मदद करता है।

🔸पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है: आंवला का सेवन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है और कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव करता है।

🔸 एंटीऑक्सीडेंट गुण: आंवला में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर से विषैले तत्वों को निकालकर कोशिकाओं को स्वस्थ बनाते हैं।


🚩 गौ सेवा के साथ आंवला नवमी

कुछ परंपराओं में आंवला नवमी के दिन गौ माता की सेवा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन गौ माता को आंवला और गुड़ खिलाने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। संत श्री आशारामजी बापू के अनुयायी भी इस दिन गौ सेवा और आंवला वृक्ष की पूजा को महत्व देते हैं।


🚩 निष्कर्ष


आंवला नवमी एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा और उसके सेवन से जहां एक ओर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं दूसरी ओर यह हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत को भी सुदृढ़ करता है। इस आंवला नवमी पर हम सभी प्रण लें कि प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए इन आशीर्वादों का आदर करेंगे, आंवला का नियमित सेवन करेंगे और अपने जीवन को स्वस्थ, खुशहाल और समृद्ध बनाएंगे।


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Friday, November 8, 2024

गोपाष्टमी : गायों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का पर्व

 09 November 2024

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🚩गोपाष्टमी : गायों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का पर्व



🚩गोपाष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। यह दिन गौ माता की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है और इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा करने से सुख, समृद्धि और जीवन में शांति का आशीर्वाद मिलता है। गोपाष्टमी का संबंध श्रीकृष्ण के जीवन से है, जब वे गोचारण के लिए पहली बार व्रजभूमि पर गए थे। इसे विशेष रूप से गोकुल, मथुरा और वृंदावन जैसे स्थानों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


🚩गोपाष्टमी का इतिहास :

गोपाष्टमी का पर्व प्राचीन काल से ही गौ माता के महत्व को दर्शाता आया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने जब बाल्यकाल में अपने मित्रों के साथ गायों को चराने का कार्य किया, तभी से गोपाष्टमी का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन व्रज के निवासियों ने श्रीकृष्ण को गोपाल (गायों के रक्षक) के रूप में सम्मानित किया। इस अवसर पर श्रीकृष्ण ने बताया कि गायों की सेवा करना मानव जीवन का परम कर्तव्य है क्योंकि गौ माता हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था में योगदान देती है।


🚩गोपाष्टमी का महत्व : 

🔸धार्मिक महत्व : गौ माता हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखती है। वे जीवनदायिनी है और उन्हें ‘कामधेनु’ का रूप माना गया है, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है। गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

🔸आध्यात्मिक महत्व : गायों की सेवा से मन में शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।कहा जाता है कि गाय की सेवा करने वाले पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है

🔸पर्यावरणीय महत्व : गौ माता हमारे पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि  गौ माता का गोबर और मूत्र जैविक खेती के लिए लाभकारी है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और विषैले रसायनों के उपयोग से बचा जा सकता है।


🚩गोपाष्टमी पूजा विधि : 

🔸स्नान और पवित्रता - गोपाष्टमी के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें।

🔸गौ माता की सजावट : गायों को अच्छे से स्नान कराएं उनके सींगों और पूंछ को रंगीन कपड़ों या फूलों से सजाएं। उन्हें तिलक करें और सुंदर वस्त्र पहनाएं।

🔸गौ पूजा : गायों के सामने दीपक जलाएं और अक्षत, फूल, और धूप-दीप चढ़ाकर उनकी पूजा करें। गायों को हरी घास, गुड़ और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ अर्पित करें।

🔸परिक्रमा : गौ माता की सात बार परिक्रमा करें और उनसे अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करें।

🔸गोदान : इस दिन गोदान का विशेष महत्व होता है। अगर संभव हो तो किसी गरीब या जरूरतमंद को गौदान करें, या गौशाला में दान करें।


🚩गोपाष्टमी के लाभ :

🔸 सुख - समृद्धि : गौ माता की पूजा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। यह माना जाता है कि गौ माता की कृपा से घर में लक्ष्मी जी का वास होता है।

🔸आरोग्य : गाय के पास रहना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। गोमूत्र और गोबर से बने उत्पाद रोगों से लड़ने में सहायक होते है और इनका उपयोग आयुर्वेद में भी होता है।

🔸परिवार की शांति : गौ माता की सेवा करने से परिवार में शांति और सौहार्द बना रहता है। उनका आशीर्वाद परिवार की सुरक्षा और कल्याण के लिए लाभकारी होता है।

🔸धन और समृद्धि का आशीर्वाद : गोदान करने से जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है और धन की कोई कमी नहीं रहती। यह भी मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन किए गए दान का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।


🚩गोपाष्टमी : एक समर्पण का पर्व - गोपाष्टमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि गौमाता का हमारे जीवन में कितना महत्व है। उनके प्रति श्रद्धा और सेवा का भाव रखना हमारा कर्तव्य है। संत श्री आशारामजी बापू ने भी गौसेवा के महत्व को कई बार अपने सत्संगों में बताया है और समाज को गौरक्षा के प्रति जागरूक किया है। उनका मानना है कि गौ माता की सेवा से जीवन में सुख, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति होती है।


🚩इस गोपाष्टमी पर हम सभी प्रण लें कि हम गौ माता का सम्मान करेंगे, उनकी रक्षा करेंगे और अपने जीवन में उनकी सेवा को प्रमुखता देंगे। गोपाष्टमी न केवल एक पर्व है बल्कि यह हमें गौ माता के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का भी बोध कराता है।


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