Monday, September 16, 2019

जिन मठों को मुगल, अंग्रेज तोड़ नहीं पाए उन्हें स्वयं सरकार तोड़ रही है

16 सितंबर 2019

🚩जगन्नाथ पुरी  में 12 वीं शताब्दी से अविरत धर्म कार्य की धुरी बने कई महत्वपूर्ण मठ-मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। इसे कुछ भी कर के तत्काल रोका जाना चाहिए।  भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर की सुरक्षा के बहाने  उन्हीं मठों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर को औरंगज़ेब और कई आतताइयों से बचाया था। उसके लिए यही मठ मंदिर ढाल बने। उसमें रहने वाले साधु और भक्तों ने बलिदान दिए। उनकी उपस्थिति का अर्थ मंदिर की चिर काल तक सुरक्षा थी । परंतु जिन्होंने शताब्दियों तक जगन्नाथ मंदिर को बचाया, आज दुर्भाग्य से उन्हीं मठों को बचाने वाला कोई नहीं है !
🚩उसे तोड़ने वाली स्वयं उड़ीसा सरकार है। जिन मठों को दर्जनों देशों से आए आक्रमणकारी तोड़ नहीं पाए,  जिसे शतकों तक यहाँ राज करने वाले मुग़ल और ब्रिटिश तोड़ नहीं पाए, उन्हें आज स्वयं सरकार तोड़ रही है। वह भी क़ानून के डंडे से; विकास के नाम पर और सुरक्षा का बहाना बना कर। बाक़ायदा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी दास की समिति  बना कर, उसकी सिफारिशों के आधार पर। वास्तव में, क़ानूनी दिखाने वाला यह अभियान क़ानूनी नहीं बल्कि सुल्तानी है। दुश्मनों के हमलों से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। क्रूर, निष्ठुर और अन्यायी है। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था पर सरकारी हमला है।

🚩जगन्नाथ पुरी हिंदुस्थान के उन चुनिंदा धर्म स्थलों में से एक है जहाँ विदेशी पर्यटक सबसे अधिक आते हैं।

देशी पर्यटक भी ज़्यादा आते हैं।  जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करें , यही हर हिंदू की श्रद्धा और अपेक्षा होती है। कई सुविधाओं के अभाव के प्रभाव के बग़ैर शताब्दियों से करोड़ों भक्त पुरी में जाते रहे हैं।  आज भी जा रहे हैं।  ओडिशा की पर्यटन आय के साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आय का यह बड़ा केंद्र है। भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है। संपूर्ण भारत वर्ष और संसार के कोने-कोने में रहने वाले श्रद्धालु इस यात्रा को पर्व की तरह मनाते हैं। लाखों-करोड़ों श्रद्धालु इस पुनीत भव्य रथयात्रा में भागीदारी करते हैं। श्रद्धालुओं के अतिरिक्त  बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यह यात्रा 100 से अधिक देशों में भी निकली जाती है।

🚩इस धर्म नगरी में जब सरकारें भी नहीं थी, तब भी और जब सत्तायें धर्म विरोधी थी तब भी; इन्हीं मठों ने करोड़ों भक्तों को सेवा, सुरक्षा और आश्वस्ति दी है। इसमें कई शताब्दी पुराने ऐसे मठ हैं, जिन्हें स्वयं सरकार को धरोहर संपत्ति के तौर पर विकसित करना चाहिए। परंतु आज वही मठ अज्ञान और षड्यंत्रों की बलि चढ़ रहे हैं , जिनके चौखट पर कई देशी-विदेशी महात्माओं ने माथा टेका है, उसे ख़ाली करने और तोड़ने के लिए जूते पहने सिपाहियों की फ़ौज रौंद रही है, जिसके दीवारों से हाथी आश्रय लेते थे, उन्हीं दीवारों को बुलडोज़र से तोड़ा जा रहा है।

🚩इन मठों के विराट गौरवशाली और प्रेरणादायी अतीत है। इसमें ऐसे मठ हैं, जिसकी स्थापना 900 वर्ष पूर्व परम पूजनीय रामानुजाचार्य जी ने की थी। 1866 की बाढ़ में इसी मठ ने पूरे ओडिशा को खाना खिलाया था, जिसमें सम्पूर्ण ओडिशा को तीन दिनों तक राशन देने की क्षमता आज भी है। कई आपदाओं में सैकड़ों बार यही मठ सहायता के लिए आगे आए हैं।

🚩इसी मठ से कई विद्यालय और महाविद्यालय चलाए जाते हैं।  आज भी लाखों लोगों के लिए यहाँ अन्न क्षेत्र चलाते हैं।  1921 में ओड़िया संस्कृति को बचाने के लिए बनायी गयी रघुनन्दन पुस्तकालय को भी तोड़ा गया है। चौदहवीं शताब्दी में बना लिंगुली मठ, दसनामी नागा सम्प्रदाय मठ को भी तोड़ा गया है।

🚩धर्म और अध्यात्म में पुरातन मान्यताओं को ही परम्परा मान कर उसे संजोया जाता है। उसके संरक्षण की ज़िम्मेवारी सरकार और सत्ता की होती है, परंतु वही उसे तोड़ने पर उतारू हो जाए तो कौन बचाए?
इन्हीं मठों ने ईसाई मिशनरियों के चंगुल से ओडिशा के ग़रीब अशिक्षित आदिवासियों को बचाया। उनकी सेवा और सहायता के मोह जाल में फंसने नहीं दिया। उनके विदेशी धन पर इनका स्वदेशी धन लगाया गया। परंतु  उन्हीं के षड्यंत्र के सामने वही मंदिर-मठ धराशयी हो गए हैं।

🚩यह सब करने के लिए जो कारण बताए गए वह भ्रामक है। 500 करोड़ का विकास करने के लिए खुली-खुली जगह ही क्यों चाहिए? विश्व भर के पुराने स्थान छोटे गलियों में हैं।  उतनी छोटी गालियाँ यह पहले से नहीं है। 75 मीटर तक का परिसर ख़ाली करना, वहां तक वीआईपी वाहन जाना मठ से ज़्यादा जरूरी नहीं है। आख़िर विकास की परिभाषा क्या है? अन्य देश अपने ऐसे क्षेत्र को संरक्षित-सुरक्षित करने के लिए उसे तोड़ते नहीं।  अमेरिका ने वाशिंगटन ग्राम को एक इंच भी तोड़े बिना वहां वाशिंगटन डीसी शहर बसाया। विश्व के सबसे आधुनिक और प्रगतिशील समझे जाने वाले पेरिस की पुरातन गलियां संकरी है, तो उन्होंने गाड़ियों को अंदर जाने से पाबंदी लगायी, परंतु तोड़ा नहीं।

🚩सुरक्षा के नाम पर तोड़-फोड़ तो सबसे बड़ा बहाना है, पाखंड है। हमलावर जब सबसे सुरक्षित संसद भवन, या सेना के बेस पठानकोट पर हमला कर सकते हैं, तो कही पर भी कर सकते हैं ! यह कोई पुराना ज़माना नहीं कि क़िले के पहले गहरे खंडहर बनाए जाए। अक्षरधाम मंदिर पर हमले के बाद उसकी सुरक्षा के लिए क्या-क्या तोड़ा गया? संसद के पास के राष्ट्रपति भवन को तोड़ा? प्रधानमंत्री का घर भी खुले में नहीं है। उसके लिए तो एक साधारण मज़ार नहीं हटायी गयी। 75 मीटर खुले क्षेत्र का उलटा सुरक्षा के लिए छल है। परंतु अपने देश में सुरक्षा के बहाने कुछ भी करने का खेल खेला जाता है।

🚩इसमें एक और बहुत बड़ा दुःखद पहलु है। जो मठ मंदिर तोड़े जा रहे हैं, वह अधिकतर दक्षिण भारत के हैं । कुछ लोगों को विशेषकर ओड़िया दल बीजू जनता दल को प्रादेशिक अस्मिता का सुरक्षा कवच भी मिला है, तोड़ फोड़ में! परंतु धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में इस प्रकार का तुच्छ खेल भगवान या भक्त को कभी स्वीकार्य नहीं होगा। इसी मंदिर कि रक्षा के लिए सुदूर पश्चिम से छत्रपति शिवाजी ने व्यवस्था की, इंदौर की महारानी आहिल्या बाई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मैं आशा करता हूँ, स्थानीय लोग इस प्रादेशिक षड्यंत्र को समझ कर इसके विरुद्ध खड़े होंगे।

🚩कुछ मठ मंदिरों को पुरुषार्थी मुखिया नहीं मिले हैं , तो कइयों पर राजनीति सवार है। कइयों पर पैसे के लालची विश्वस्त हैं जो मुंहमांगी राशि लेकर कहीं पर भी जाने को तैयार है।

🚩इस परिस्थिति में अखंड हिंदू समाज को आगे आकर इस तथाकथित विकास के आतंकवाद का विरोध करना चाहिए। मैं तो इसके लिए खुल कर साम- दाम- दंड- भेद के लिए तैयार  हूँ ही , जो आएगा उसके साथ, जो नहीं आएगा।  उसके सिवा और जो विरोध करेगा उसके विरोध को तोड़ कर हमें इन प्राचीनतम मठों और मंदिरों को बचाना है - सुरेश चव्हाणके

🚩इस प्रकरण में पुरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्‍चलानंद सरस्वतीजी ने कहा है कि ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.पी. दास के नेतृत्व में समिति ने मंदिर की चारों ओर 75 मीटर क्षेत्र को खाली करने का परामर्श दिया था; परंतु श्री. दास ने मेरे साथ इस संदर्भ में कभी चर्चा नहीं की । श्री जगन्नाथ मंदिर के साथ इन मठों की परंपरा जुड़ी है । इन मठों का संचालन स्वतंत्ररूप से होना चाहिए । सरकार ने जो बड़ी संख्या में मठों को तोड़ने का निर्णय लिया, उनका विस्थापन कैसे किया जाए इसका नियोजन करना चाहिए था । विकास के नामपर प्राचीन मठों को तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।

🚩श्री जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित मठ और मंदिरों को अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराने की अयोग्य कार्यवाही तुरंत रोकनी चाहिए ।

🚩अबतक जिन प्राचीन मठों को तोड़ा गया है, उनका ओडिशा सरकार द्वारा पुनर्निर्माण किया जाए और इससे हुई हानि की भरपाई की जाए, साथ ही प्राचीन मूर्तियां और परंपराआें के संवर्धन हेतु प्रयास किए जाए ।

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Sunday, September 15, 2019

इन बड़ी खबरें को मीडिया ने नहीं बताया, मीडिया आपको सच्चाई से दूर रखती है

15 सितंबर 2019
http://azaadbharat.org
🚩जब कोई हिंदू साधु संत पर झूठे आरोप लगते हैं तब मीडिया कई दिनों तक खूब हल्ला करती है और जब वे निर्दोष बरी हो जाते हैं तब चुप हो जाती है और ठीक उससे उलट जब ईसाई पादरी पर सबूत के साथ दुष्कर्म के आरोप लगते हैं या सजा हो जाती तब मीडिया चुप रहती है, ऐसे दोगलेपन से लगता है कि कुछ मीडिया को हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मगुरुओं से नफ़रत है या उनके खिलाफ खबरें चलाने के पैसे मिलते हैं ।
🚩ऑस्ट्रेलिया की अदालत से बरी हुए आनंद गिरी जी-
विश्व प्रसिद्ध संगत तट के बड़े हनुमान जी मंदिर के व्यवस्थापक व अंतर्राष्ट्रीय योग गुरु आनंद गिरि कई देशों में योग प्रशिक्षण देने के लिए जाया करते हैं । जून में वे आस्ट्रेलिया गए हुए थे और सिडनी शहर में योग प्रशिक्षण के लिए एक शिविर में मौजूद थे। ऑस्ट्रेलिया में दो महिलाओं ने उनपर यौन शोषण का आरोप लगाया। उसके बाद उनको ऑस्ट्रेलिया की जेल में रखा गया और 4 महीने जेल में रहने के बाद स्वामी आनंद गिरि जी को डनी की कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया । अदालत ने योग गुरू का पासपोर्ट तत्काल रिलीज करने और भारत जाने की अनुमति दे दी है।
http://sudarshannews.in/samachar/international/austrelia-court-decision-about-yog-guru-anand-giri/
🚩झारखंड में फादर गिरफ्तार:
झारखंड के कैथोलिक स्कूल में काम करने वाले एक फादर और एक नर्स को 9 साल की बच्ची के साथ यौन शोषण के आरोप में हिरासत में रखा गया है।
🚩जिला पुलिस प्रमुख अमन कुमार ने कहा कि कोराडीह में जेसुइट द्वारा संचालित डी नोबिली स्कूल के वाइस प्रिंसिपल जूलियन एक्का और नर्स, एमर्सनिया लोमगा को गिरफ्तार किया गया।
🚩Ucanews.com ने बताया कि दोनों कोर्ट  में पेश हुए और उन्हें आगे की पूछताछ के लिए हिरासत में भेज दिया गया।  उन पर बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े कड़े कानून के कई धाराओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।
🚩पुलिस के अनुसार, मध्य अगस्त में चौथी कक्षा की लड़की को पेट दर्द की शिकायत के बाद बीमार कमरे में ले जाया गया। फादर और नर्स कमरे में मौजूद थे, और पुलिस का कहना है कि एक चिकित्सा परीक्षा ने साबित किया कि बच्चे का यौन उत्पीड़न किया गया था।  कुमार ने कहा, "परिस्थितिजन्य साक्ष्य" के आधार पर, दोनों को कुछ हफ्तों बाद अधिकारियों के साक्षात्कार के बाद गिरफ्तार किया गया।
https://www.ncronline.org/news/accountability/indian-church-leaders-child-rape-charges-concocted-against-priest-nurse
🚩यूएस में ईसाई पादरी ने कई बच्चों का रेप किया:
यूए, डिस्ट्रीक जज मार्था ने रेप आरोपी पादरी आर्थर पेराल्ट के बारे में कहा कि उसे सिर्फ अपनी सेक्शुएल जरुरतों से मतलब है। जज ने आगे कहा कि तुमने एक पादरी का जीवन चुना, उम्मीद थी कि तुम लोगों की मदद करोगे ना कि उन्हें बर्बाद करोगे । जज ने कहा कि तुमने जो अपराध किया है वह अक्षम्य है।
🚩जानकारी के मुताबिक़, बच्चों का बलात्कारी यह ईसाई पादरी यूएस में कई दिनों तक बच्चों को अपना शिकार बनाता रहा, लेकिन बाद में मोरक्को भाग गया। साल 1960,1970 और 1980 में इस पादरी ने कई बच्चों का रेप किया। न्यू मैक्सिको में भी एक बच्चे के यौन शोषण के मामले में दोषी पाया गया था। जब उसके यह अपराध सार्वजनिक किये गये तब वो देश छोड़ कर भाग गया। घटना के 25 साल बाद उसे मोरक्को से पकड़ा गया और फिर यूएस लाया गया। 81 साल के इस पादरी को अब अपनी सारी जिंदगी जेल में गुजारनी होगी।  उसने इस बच्चे के साथ साल 1991 और 1992 में किर्टलैंड एयर फोर्स बेस समेत कई जगहों पर यौन शोषण किया था।
http://sudarshannews.in/samachar/international/30-years-imprisonment-to-rapist-padri/
🚩ईसाई पादरी हजारों बच्चों-बच्चियों के रेप करते है, दोषी भी पाए जाते है पर मीडिया इसपर मौन रहती है जबकि षड्यंत्र के तहत कई हिन्दू साधु-संतों पर झूठे आरोप लगते है फिर वे निर्दोष बरी हो जाते है फिर भी मीडिया केवल आरोप लगने पर ही खबरे दिखाकर जनता को गुमराह करती है पर जब निर्दोष बरी हो जाते है तब चुप रहती है।
🚩हिंदू साधु-संत भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करके हमारी संस्कृति को मजबूत बनाते हैं और जनता को जागरूक करते हैं । वे राष्ट्र विरोधी ताकतों को रास नहीं आता है इसलिए उनको बदनाम करते हैं, झूठे आरोप लगाते हैं पर उन बिचारे निर्दोष मासूम बच्चों का रेप करते हैं पादरी उन पर सब ख़ामोश रहते ।
🚩हिंदू धर्म व धर्मगुरुओं पर हो रहे षड्यंत्र को समझें और उसका डटकर विरोध करें ।
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Saturday, September 14, 2019

कश्मीरी हिन्दूओं का 14 सितंबर को शुरू हुआ था संहार

14 सितंबर 2019
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🚩आतंकवादियों ने इसी दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में भाजपा नेता श्री टिकालाल की हत्या की थी ।
🚩उसके बाद 19 जनवरी 1990 लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सदैव के लिए अपनी धरती, अपना घर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा । वे आज भी शरणार्थी हैं । उन्हें वहां से भागने के लिए बाध्य करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं । उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिन्दू शरणार्थियों को वो भी नहीं !

🚩वर्ष 1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी । हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया, जिसे कश्मीर के उर्दू समाचारपत्रों `आफताब’ और `अल सफा’ ने छापा । प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था । कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएं आरंभ हो गयी थीं  । कश्मीर की मस्जिदों के ध्वनि प्रक्षेपक जो अब तक केवल `अल्लाह-ओ-अकबर’ के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि, ‘कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ ! `कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है’, `असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन’ (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदु स्त्रियों के साथ, किंतु पुरुष नहीं’), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे ।
🚩दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि कश्मीर में सभी इस्लामी वेशभूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।  कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिह्नित कर दिए गए । यहां तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करनेके लिए उन्हें बाध्य किया गया । 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – कश्मीरमें `काफिरों का कत्ल करो’ का सन्देश गूंज रहा था । इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भूल चुका था, वह एक बार पुन: अपने सामने था !
🚩आज कश्मीर घाटी में हिन्दू नहीं हैं । जम्मू और दिल्ली में आज भी उनके शरणार्थी शिविर हैं । 22 साल से वे वहां जीने को बाध्य हैं ।  कश्मीरी पंडितों की संख्या 3 से 7 लाख के लगभग मानी जाती है, जो भागने पर प्रेरित हुए । एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो गयी । कभी धनवान रहे ये हिन्दू, आज सामान्य आवश्यकताओं के लिए भी पराश्रित हो गए हैं ।  उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे । उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरुंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं ।
🚩कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहां कभी पांडवों की 28 पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत मां का मुकुट कहा जाता है, वहां भारत का ध्वज लेकर जाने पर सांसदों को पुलिस पकड़ लेती है और आम लोगों पर डंडे बरसाती है । 500 साल पूर्व तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था ।  औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था । किंतु कुछ समय पश्चात उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित कर भरे दरबार में उसका क़त्ल कर दिया था । भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है । ‘हिंदु घटा तो भारत बंटा’ के `तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है ! कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है ।
🚩मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदु संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजी के पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती ! गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर कत्ल किए गए दसों सहस्र कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता ! सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदु `स्वेच्छा से’ कश्मीर छोड़ कर भागे । इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड्यंत्र भी रचा गया है । आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं ।  भोगने वाले भोग रहे हैं । जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और याद करके आंखें आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है ।  रामायण की देवी सीता को शरण देने वाले भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पडा ! कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है – `मन करता है फूल चढा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी ही धरती पर’ ! स्त्रोत : IBTL
🚩कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सकें !
🚩अब मोदीजी की सरकार ने कश्मीर से 370 हटाने से कश्मीरी हिंदुओंको पुनः घाटी में बसने की उम्मीदे जागृत हुई है । अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिंदुओं का पुनर्वसन करें, ऐसी हिंदुओं की मांग है ।
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Friday, September 13, 2019

हिंदी दुनिया के सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है

13 सितंबर 2019
🚩 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा ।
🚩इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
🚩अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
🚩हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है । लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं ।
🚩हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है । वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है । हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है ।
🚩हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है । हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है।
🚩आज उन मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए ।
🚩मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया ।

🚩लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।
वे कहते थे : ‘‘अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’
🚩जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है ।
🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।
🚩एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए ।
🚩 राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए ।
🚩 जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है  ?
🚩आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है । इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है ।
🚩 राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है । इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है । आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें ।
🚩स्वभाषा की महत्ता बताते हुए हिन्दू संत आसाराम बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को धन्यवाद दूँगा । वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी ।’’
(लोक कल्याण सेतु : नवम्बर 2012)
🚩अंग्रेजी भाषा के दुष्परिणाम
🚩 लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे, मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे, माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!
🚩विदेशी शासन के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया विदेशी भाषा के माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनका और जनता का लाभ होगा।
🚩अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी विकास में सहभागी बनें।
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