Wednesday, February 23, 2022

आशाराम बापू के साथ जो हो रहा है वह किसी आतंकवादी के साथ भी नहीं हुआ है...

24 जून 2021

azaadbharat.org


हिंदू धर्मगुरु आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है। वे 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। जोधपुर सेंट्रल जेल में काफी लोग कोरोना पोजिटिव पाये गए उसके कारण आशाराम बापू पिछले महीने कोरोना संक्रमित हो गए, उनका स्वास्थ्य इतना गिर गया कि उन्हें जोधपुर AIIMS अस्पताल के AICU में भर्ती किया गया। उनको एलोपैथी दवाई दी गई जिसके कारण उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया और हीमोग्लोबिन 3.7 तक आ गया जिससे किसी सामान्य इंसान की मौत भी हो सकती थी। उनको खून की 7 बोतलें चढ़ाई गईं। कुछ दिन के बाद उनका थोड़ा स्वास्थ्य सुधार हुआ और उन्हें वापिस सेंट्रल जेल ले जाया गया जिसके कुछ दिन के बाद फिर से उनका स्वास्थ्य खराब हुआ और उन्हें वापिस जोधपुर के AIIMS अस्पताल के AICU में भर्ती किया गया। आज फिर उनको वापिस जेल भेज दिया गया जबकि उनका स्वास्थ्य अभी भी पूर्णरूप से ठीक नहीं हुआ है।



उनके करोड़ों भक्त न्यायालय और सरकार से निवेदन कर रहे हैं कि बापू आशारामजी को अभी जेल नहीं भेजा जाए, उनकी आयुर्वेदिक चिकित्सा कराई जाए और पूर्णरूप से स्वस्थ होने के बाद जेल भेजा जाए लेकिन उनकी आवाज सरकार और न्यायपालिका को सुनाई नहीं दे रही है।

दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम बुखारी पर 65 वारंट हैं, उसमें कई गैरजमानती वांरट भी हैं लेकिन उसे गिरफ्तार करने से भी सरकार डर रही है कि कहीं दंगे न हो जायें।

आशारामजी बापू के करोड़ों भक्त केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा की मांग कर रहे हैं परन्तु उस बात को भी सरकार सुन नहीं रही है।


🚩कितने बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत मिल गई, आतंकवादी को भी जमानत मिल गई लेकिन एक हिंदू संत आशाराम बापू को अपना उपचार आयुर्वेदिक चिकित्सा से कराने के लिए भी न्यायालय और सरकार की परमिशन नहीं है- इससे ज्यादा देश में क्या अन्याय हो सकता है?


आपको बता देते हैं कि जिस समय लड़की ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय तो वो अपने मित्र से कॉल पर बात कर रही थी और बापू आशारामजी किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे, वहाँ पर 50-60 लोग भी थे, उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी है, लड़की का कॉल डिटेल भी दिया गया है।


बता दें कि आरोप लगानेवाली लड़की ने रेप का आरोप नहीं लगाया है, बल्कि लिखाया है कि मेरे साथ छेड़छाड़ हुई है लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि लड़की को टच भी नहीं किया गया है। इससे साफ होता है कि लड़की के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।

वीडियो में यह देख सकते हैं।

https://youtu.be/V0sr9yHj1Go


इन सब पुख्ता सबूतों के होते हुए भी उनको आजीवन कारावास की सजा देना और आजतक जमानत नहीं देना- ये हिंदू धर्मगुरु को खत्म करने का कोई बड़ा षड्यंत्र तो नहीं है?


बापू आशारामजी की तरफ से निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका डाली गई है। कल को अगर हाईकोर्ट में आशारामजी बापू निर्दोष साबित होते हैं तो सरकार, मीडिया और न्यायालय अपनी गलती मानेंगे?? और मान भी लें तो इंसानियत का तो गला आपने घोंट ही दिया, बाद में माफी मांगने से क्या फायदा? इतना उनका समय, पैसा, इज्जत और स्वास्थ्य गया उसका जिम्मेदार कौन होगा?


संत आशाराम बापू ने करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया। लाखों लोगो की घर वापसी करवाई, आदिवासियों को धर्मांतरित होने से बचाया। विदेशों में भी सनातन धर्म का परचम लहराया।


करोड़ों लोगो के व्यसन छुड़वाए, एलोपैथी से देशवासियों को आयुर्वेद पर लेकर आये।


वैदिक गुरुकुल और बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को सनातन संस्कृति के दिव्य संस्कार दिए।


कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर गौशालाएं खोल दी।


वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन और क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया।


क्या राष्ट्र और सनातन धर्म की सेवा करने के परिणामस्वरूप उनको षड्यंत्र करके जेल भिजवाया? अब हिंदुओं को सोचना होगा कि अगर कोई अन्य धर्म के गुरु होते तो आज देश में आग लग जाती लेकिन हिन्दू सहिष्णुता के नाम पलायनवादी हो गए हैं जिसके कारण आज हिन्दू धर्मगुरु जेल में हैं।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 

facebook.com/ojaswihindustan 

youtube.com/AzaadBharatOrg 

twitter.com/AzaadBharatOrg 

.instagram.com/AzaadBharatOrg 

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

जानिए- वटसावित्री व्रत क्यों किया जाता है? कैसे करें व्रत?

23 जून 2021

azaadbharat.org


वट सावित्री व्रत ‘स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराणाें के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा पर और ‘निर्णयामृत’ ग्रंथ के अनुसार अमावस्या पर किया जाता है। उत्तर भारत में प्रायः अमावस्या को यह व्रत किया जाता है। अतः महाराष्ट्र में इसे ‘वटपूर्णिमा’ एवं उत्तर भारत में इसे ‘वटसावित्री’ के नामसे जाना जाता है।



पति के सुख-दुःख में सहभागी होना, उसे संकट से बचाने के लिए प्रत्यक्ष ‘काल’ को भी चुनौती देने की सिद्धता रखना, उसका साथ न छोडना एवं दोनोंका जीवन सफल बनाना- ये स्त्री के महत्त्वपूर्ण गुण हैं। 


सावित्री में ये सभी गुण थे। सावित्री अत्यंत तेजस्वी तथा दृढनिश्चयी थीं। आत्मविश्वास एवं उचित निर्णयक्षमता भी उनमें थी। राजकन्या होते हुए भी सावित्री ने दरिद्र एवं अल्पायु सत्यवान को पति के रूप में अपनाया था; तथा उनकी मृत्यु होने पर यमराज से शास्त्रचर्चा कर उन्होंने अपने पति के लिए जीवनदान प्राप्त किया था। जीवन में यशस्वी होने के लिए सावित्री के समान सभी सद्गुणों को आत्मसात करना ही वास्तविक अर्थों में वटसावित्री व्रत का पालन करना है।


वक्षों में भी भगवदीय चेतना का वास है, ऐसा दिव्य ज्ञान वृक्षोपासना का आधार है। इस उपासना ने स्वास्थ्य, प्रसन्नता, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति एवं पर्यावरण संरक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।


वातावरण में विद्यमान हानिकारक तत्त्वों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्त्व है। वटवृक्ष के नीचे का छायादार स्थल एकाग्र मन से जप, ध्यान व उपासना के लिए प्राचीन काल से साधकों एवं महापुरुषों का प्रिय स्थल रहा है। यह दीर्घकाल तक अक्षय भी बना रहता है। इसी कारण दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य, जीवन में स्थिरता तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए इसकी आराधना की जाती है।


वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से पाप दूर होते हैं; दुःख, समस्याएँ तथा रोग जाते रहते हैं। अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य-संचय होता है। वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की जड़ में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती है। 


इसी वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था। तबसे ‘वट-सावित्री’ नामक व्रत मनाया जाने लगा। इस दिन महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए व्रत करती हैं। 


वरत-कथा :-


सावित्री मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से उसका विवाह हुआ था। विवाह से पहले देवर्षि नारदजी ने कहा था कि सत्यवान केवल वर्षभर जीयेगा। किंतु सत्यवान को एक बार मन से पति स्वीकार कर लेने के बाद दृढ़व्रता सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला और एक वर्ष तक पातिव्रत्य धर्म में पूर्णतया तत्पर रहकर अंधेे सास-ससुर और अल्पायु पति की प्रेम के साथ सेवा की। वर्ष-समाप्ति के दिन सत्यवान और  सावित्री समिधा लेने के लिए वन में गये थे। वहाँ एक विषधर सर्प ने सत्यवान को डँस लिया। वह बेहोश होकर गिर गया। यमराज आये और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे। तब सावित्री भी अपने पातिव्रत्य के बल से उनके पीछे-पीछे जाने लगी। 


यमराज द्वारा उसे वापस जाने के लिए कहने पर सावित्री बोली:

‘‘जहाँ जो मेरे पति को ले जाए या जहाँ मेरा पति स्वयं जाए, मैं भी वहाँ जाऊँ यह सनातन धर्म है। तप, गुरुभक्ति, पतिप्रेम और आपकी कृपा से मैं कहीं रुक नहीं सकती। तत्त्व को जाननेवाले विद्वानों ने सात स्थानों पर मित्रता कही है। मैं उस मैत्री को दृष्टि में रखकर कुछ कहती हूँ, सुनिये। लोलुप व्यक्ति वन में रहकर धर्म का आचरण नहीं कर सकते और न ब्रह्मचारी या संन्यासी ही हो सकते हैं। 


विज्ञान (आत्मज्ञान के अनुभव) के लिए धर्म को कारण कहा करते हैं, इस कारण संतजन धर्म को ही प्रधान मानते हैं। संतजनों के माने हुए एक ही धर्म से हम दोनों श्रेय मार्ग को पा गये हैं।’’


सावित्री के वचनों से प्रसन्न हुए यमराज से सावित्री ने अपने ससुर के अंधत्व-निवारण व बल-तेज की प्राप्ति का वर पाया। 


सावित्री बोली: ‘‘संतजनों के सान्निध्य की सभी इच्छा किया करते हैं। संतजनों का साथ निष्फल नहीं होता, इस कारण सदैव संतजनों का संग करना चाहिए।’’


यमराज : ‘‘तुम्हारा वचन मेरे मन के अनुकूल, बुद्धि और बलवर्द्धक तथा हितकारी है। पति के जीवन के सिवा कोई वर माँग ले।’’


सावित्री ने श्वशुर के छीने हुए राज्य को वापस पाने का वर पा लिया।


सावित्री: ‘‘आपने प्रजा को नियम में बाँध रखा है, इस कारण आपको यम कहते हैं। आप मेरी बात सुनें।मन-वाणी-अन्तःकरण से किसीके साथ वैर न करना, दान देना, आग्रह का त्याग करना - यह संतजनों का सनातन धर्म है। संतजन वैरियों पर भी दया करते देखे जाते हैं।’’


यमराज बोले: प्यासे को पानी, उसी तरह तुम्हारे वचन मुझे लगते हैं। पति के जीवन के सिवाय दूसरा कुछ माँग ले।’’


सावित्री ने अपने निपूत पिता के सौ औरस कुलवर्द्धक पुत्र हों ऐसा वर पा लिया।


सावित्री बोली: ‘‘चलते-चलते मुझे कुछ बात याद आ गयी है, उसे भी सुन लीजिये। आप आदित्य के प्रतापी पुत्र हैं, इस कारण आपको विद्वान पुरुष ‘वैवस्वत’ कहते हैं । आपका बर्ताव प्रजा के साथ समान भाव से है, इस कारण आपको ‘धर्मराज’ कहते हैं। मनुष्य को अपने पर भी उतना विश्वास नहीं होता जितना संतजनों पर हुआ करता है। इस कारण संतजनों पर सबका प्रेम होता है।’’ 


यमराज बोले: ‘‘जो तुमने सुनाया है ऐसा मैंने कभी नहीं सुना।’’


परसन्न यमराज से सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान से ही बल-वीर्यशाली सौ औरस पुत्रों की प्राप्ति का वर प्राप्त किया। फिर बोली: ‘‘संतजनों की वृत्ति सदा धर्म में ही रहती है। संत ही सत्य से सूर्य को चला रहे हैं, तप से पृथ्वी को धारण कर रहे हैं। संत ही भूत-भविष्य की गति हैं। संतजन दूसरे पर उपकार करते हुए प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं रखते। उनकी कृपा कभी व्यर्थ नहीं जाती, न उनके साथ में धन ही नष्ट होता है, न मान ही जाता है। ये बातें संतजनों में सदा रहती हैं, इस कारण वे रक्षक होते हैं।’’


यमराज बोले: ‘‘ज्यों-ज्यों तू मेरे मन को अच्छे लगनेवाले अर्थयुक्त सुन्दर धर्मानुकूल वचन बोलती है, त्यों-त्यों मेरी तुझमें अधिकाधिक भक्ति होती जाती है। अतः हे पतिव्रते और वर माँग।’’ 


सावित्री बोली: ‘‘मैंने आपसे पुत्र दाम्पत्य योग के बिना नहीं माँगे हैं, न मैंने यही माँगा है कि किसी दूसरी रीति से पुत्र हो जायें। इस कारण आप मुझे यही वरदान दें कि मेरा पति जीवित हो जाय क्योंकि पति के बिना मैं मरी हुई हूँ। पति के बिना मैं सुख, स्वर्ग, श्री और जीवन कुछ भी नहीं चाहती। आपने मुझे सौ पुत्रों का वर दिया है व आप ही मेरे पति का हरण कर रहे हैं, तब आपके वचन कैसे सत्य होंगे? मैं वर माँगती हूँ कि सत्यवान जीवित हो जायें। इनके जीवित होने पर आपके ही वचन सत्य होंगे।’’


यमराज ने परम प्रसन्न होकर ‘ऐसा ही हो’ यह कह के सत्यवान को मृत्युपाश से  मुक्त कर दिया।


वरत-विधि:-


इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है। विशेषकर सौभाग्यवती महिलाएँ श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक अथवा कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीनों दिन अथवा मात्र अंतिम दिन व्रत-उपवास रखती हैं। यह कल्याणकारक  व्रत विधवा, सधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को करना चाहिए- ऐसा ‘स्कंद पुराण’ में आता है। 


परथम दिन संकल्प करें- ‘मैं मेरे पति और पुत्रों की आयु, आरोग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए एवं जन्म-जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट-सावित्री व्रत करती हूँ।’


वट के समीप भगवान ब्रह्माजी, उनकी अर्धांगिनी सावित्री देवी तथा सत्यवान व सती सावित्री के साथ यमराज का पूजन कर ‘नमो वैवस्वताय’ इस मंत्र को जपते हुए वट की परिक्रमा करें। इस समय वट को 108 बार या यथाशक्ति सूत का धागा लपेटें। फिर निम्न मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दें-

अवैधव्यं च  सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।


निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना कर गंध, फूल, अक्षत से उसका पूजन करें-

वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।। 


भारतीय संस्कृति वृक्षों में भी छुपी हुई भगवद्सत्ता का ज्ञान करानेवाली, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति- मानव के जीवन में आनन्द, उल्लास एवं चैतन्यता भरनेवाली है। (स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

भामाशाह जैसे ही एक ओर सेठ थे पर इतिहास से गायब कर दिया...

22 जून 2021

azaadbharat.org


अमर बलिदानी सेठ अमरचन्द की जिसने यकीनन भामाशाह की तरह ही देश के लिए त्याग किया लेकिन उनके बलिदान की कहीं से कोई भी चर्चा नहीं की गयी। स्वाधीनता समर के अमर सेनानी सेठ अमरचन्द मूलतः बीकानेर (राजस्थान) के निवासी थे। वे अपने पिता श्री अबीर चन्द बाँठिया के साथ व्यापार के लिए ग्वालियर आकर बस गये थे। जैन मत के अनुयायी अमरचन्द जी ने अपने व्यापार में परिश्रम, ईमानदारी एवं सज्जनता के कारण इतनी प्रतिष्ठा पायी कि ग्वालियर राजघराने ने उन्हें नगर सेठ की उपाधि देकर राजघराने के सदस्यों की भाँति पैर में सोने के कड़े पहनने का अधिकार दिया।



आगे चलकर उन्हें ग्वालियर के राजकोष का प्रभारी नियुक्त किया। अमरचन्द जी बड़े धर्मप्रेमी व्यक्ति थे। 1855 में उन्होंने चातुर्मास के दौरान ग्वालियर पधारे सन्त बुद्धि विजय जी के प्रवचन सुने। इससे पूर्व वे 1854 में अजमेर में भी उनके प्रवचन सुन चुके थे। उनसे प्रभावित होकर वे विदेशी और विधर्मी राज्य के विरुद्ध हो गये। 1857 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय सेना और क्रान्तिकारी ग्वालियर में सक्रिय हुए, तो सेठ जी ने राजकोष के समस्त धन के साथ अपनी पैतृक सम्पत्ति भी उन्हें सौंप दी। उनका मत था कि राजकोष जनता से ही एकत्र किया गया है। इसे जनहित में स्वाधीनता सेनानियों को देना अपराध नहीं है और निजी सम्पत्ति वे चाहे जिसे दें। इस पर अंग्रेजों ने राजद्रोही घोषित कर उनके विरुद्ध वारण्ट जारी कर दिया।


अमरचन्द जी भूमिगत होकर क्रान्तिकारियों का सहयोग करते रहे; पर एक दिन वे शासन के हत्थे चढ़ गये और मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। सुख-सुविधाओं में पले सेठ जी को वहाँ भीषण यातनाएँ दी गयीं। मुर्गा बनाना, पेड़ से उल्टा लटका कर चाबुकों से मारना, हाथ पैर बाँधकर चारों ओर से खींचना, लोहे के जूतों से मारना, अण्डकोषों पर वजन बाँधकर दौड़ाना, मूत्र पिलाना आदि अमानवीय अत्याचार उन पर किये गये। अंग्रेज चाहते थे कि वे क्षमा मांग लें, पर सेठ जी तैयार नहीं हुए। इस पर अंग्रेजों ने उनके आठ वर्षीय निरपराध पुत्र को भी पकड़ लिया। अब अंग्रेजों ने धमकी दी कि यदि तुमने क्षमा नहीं मांगी, तो तुम्हारे पुत्र की हत्या कर दी जाएगी ।


यह बहुत कठिन घड़ी थी लेकिन सेठ जी विचलित नहीं हुए। इस पर उनके पुत्र को तोप के मुँह पर बाँधकर गोला दाग दिया गया। बच्चे का शरीर चिथड़े-चिथड़े हो गया। इसके बाद सेठ जी के लिए 22 जून, 1858 को फांसी की तिथि निश्चित कर दी गयी। इतना ही नहीं, नगर और ग्रामीण क्षेत्र की जनता में आतंक फैलाने के लिए अंग्रेजों ने यह भी तय किया गया कि सेठ जी को 'सर्राफा बाजार' में ही फाँसी दी जाएगी। अन्ततः 22 जून भी आ गया। सेठ जी तो अपने शरीर का मोह छोड़ चुके थे। अन्तिम इच्छा पूछने पर उन्होंने नवकार मन्त्र जपने की इच्छा व्यक्त की। उन्हें इसकी अनुमति दी गयी। धर्मप्रेमी सेठ जी को फाँसी देते समय दो बार ईश्वरीय व्यवधान आ गया। एक बार तो रस्सी और दूसरी बार पेड़ की वह डाल ही टूट गयी, जिस पर उन्हें फाँसी दी जा रही थी।


तीसरी बार उन्हें एक मजबूत नीम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दी गयी और शव को तीन दिन वहीं लटके रहने दिया गया। सर्राफा बाजार स्थित जिस नीम के पेड़ पर सेठ अमरचन्द बाँठिया को फांसी दी गयी थी, उसके निकट ही सेठ जी की प्रतिमा स्थापित है। हर साल 22 जून को वहाँ बड़ी संख्या में लोग आकर देश की स्वतन्त्रता के लिए प्राण देने वाले उस अमर हुतात्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आज आज़ादी के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर उन्हें बारम्बार नमन और वन्दन।


इतिहास में लुटेरे, बलात्कारी, आक्रमणकारी अंग्रेजों, मुगलों का इतिहास पढ़ाया जाता है पर धर्मात्मा, राष्ट्रप्रेमी उदारता के धनी देश के लिए सर्वस्व न्योछावर कराने वाले देशभक्तों का इतिहास पढ़ाया नही जाता है ये बहुत शर्मनाक बात हैं।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

हिंदू से मुस्लिम में धर्मांतरण जोरों पर, ATS ने पकड़े मौलाना, विदेश से फंडिग

21 जून 2021

azaadbharat.org


भारत में हिंदुओं की जनसंख्या कम करने का षड्यंत्र बड़े पैमाने पर चल रहा है, इसमें लालच देकर ब्रेनवॉश करके धर्मांतरण कराने का कार्य पुरजोर से चल रहा है; सालों से ईसाई मिशनरी तो इसमें लगी हुई है, अब मुस्लिम समुदाय के मौलाना भी धर्मांतरण करते पकड़े गए। इसके पीछे का मुख्य कारण है- वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना, इसलिए सभी देशवासी इनसे सावधान रहना। अगर आपके आसपास ऐसा कोई करता है तो कानून के जरिये उनको रोकें।



यपी ATS ने किया भांडाफोड़


यूपी ATS ने मूकबधिर छात्रों व कमजोर आय वर्ग के गरीबों-असहायों को धन, नौकरी व शादी करवाने का प्रलोभन देकर धर्मांतरण करानेवाले एक बड़े गिरोह के दो मौलानाओं को गिरफ्तार किया है। इन दोनों पर अब तक करीब 1000 मूकबधिर महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाकर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप है। यही नहीं, इस मामले में यूपी पुलिस ने आईएसआई से जुड़े होने और विदेशी फंडिंग होने का शक भी जताया है।


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये इस्लामी गिरोह ब्रेनवाश के जरिए हिंदुओं का धर्मांतरण कराते थे। एडीजी (लॉ एंड आर्डर) प्रशांत कुमार के मुताबिक मजहबी धर्मांतरण करके लोगों को रेडिकलाइज कराया जा रहा था।


रिपोर्ट के अनुसार, गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपित मौलानाओं की पहचान मुफ्ती काजी जहाँगीर आलम कासमी पुत्र ताहिर अख्तर निवासी ग्राम जोगाबाई, जामिया नगर, नई दिल्ली व मोहम्मद उमर गौतम पुत्र धनराज सिंह गौतम निवासी बाटला हाउस, जामिया नगर, नई दिल्ली के रूप में हुई है। मोहम्मद उमर गौतम का खुद इस्लामीकरण हुआ था।


गौरतलब है कि पुलिस महानिदेशक यूपी के निर्देशन में अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) द्वारा चलाए जा रहे एक बड़े अभियान के दौरान यूपी एटीएस को पिछले काफी समय से यह सूचना प्राप्त हो रही थी कि कुछ देशविरोधी व असामाजिक तत्व, मजहबी इस्लामी संगठन या सिंडिकेट पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी, आईएसआई व विदेशी संस्थाओं के निर्देश व उनसे प्राप्त फंडिंग के आधार पर गरीब असहाय हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं।


इतना ही नहीं ये लोग उनके मूल हिन्दू धर्म के प्रति नफरत फैलाकर उन्हें संगठित अपराध के लिए भड़का रहे थे। इस सूचना पर यूपी एटीएस ने कार्रवाई करते हुए दोनों मौलानाओं को गिरफ्तार किया है। 


फिलहाल यूपी एटीएस की टीम करीब चार दिन से इनसे पूछताछ करके सबूत जुटा रही थी। पकड़े गए मौलाना जहाँगीर और उमर गौतम के लखनऊ के बड़े मुस्लिम संस्थानों से जुड़े होने की बात भी सामने आई है। 


इस मामले में एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कई अहम खुलासे किए हैं। एडीजी ने बताया कि पहले विपुल विजयवर्गीय और कासिफ की गिरफ्तारी हुई थी जिनसे पूछताछ में सूचना मिली कि एक बड़ा गैंग है जो प्रलोभन देकर लोगों का धर्म परिवर्तन कराता है। पूछताछ में उमर गौतम का नाम आया, जो बाटला हाउस, जामियानगर का रहने वाला है। इसने भी अपना धर्म परिवर्तन किया है। इन्हें तीसरी बार पूछताछ के बाद रविवार को गिरफ्तार किया गया।


उन्होंने बताया कि पूछताछ में लगभग 1000 लोगों की लिस्ट सामने आई है जिनको प्रलोभन और पैसे देकर धर्मांतरित किया गया। एडीजी ने कहा कि विदेशी फंडिंग के जरिए देश के सौहार्द को बिगाड़ने का काम किया जा रहा है। इन्होंने नोएडा, कानपुर, मथुरा, वाराणसी वगैरह जिलों के गरीबों को निशाना बनाया।


एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार के अनुसार, उमर गौतम खुद धर्मान्तरण कर हिंदू से मुस्लिम बना है जिसने यूपी के अन्य जनपदों के गैर मुस्लिम मूकबधिर महिलाओं और बच्चों का सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन कराया है। उमर और उसके सहयोगी जामियानगर से एक संस्था चलाते हैं जिसका मुख्य उद्देश्य गैर मुस्लिमों का धर्म परिवर्तन कराना है। इस कार्य के लिए बैंक खातों और अन्य माध्यमों से भारी पैसे उपलब्ध कराए जाते हैं।


मकबधिर बच्चों को निशाना बनाने पर एडीजी ने बताया, “डेफ सोसाइटी नोएडा सेंटर 117, मूक बधिर का रेजिडेंशियल स्कूल है। यहाँ छात्रों को नौकरी व शादी का प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है। छात्र के परिजनों को इसकी जानकारी नहीं होती है। ऐसे ही एक बच्चे आदित्य गुप्ता के माता-पिता से हमने पूछताछ की तो कई खुलासे हुए हैं।


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे के परिजनों ने यूपी पुलिस को बताया कि पहले उन्होंने अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट कराई थी जिसे बाद में 364 में परिवर्तित कर दिया गया था। यह भी बताया कि उनका बेटा मूकबधिर है। धर्म परिवर्तन कराकर साउथ के किसी राज्य में ले जाया गया है। इसके बारे में उनके मूकबधिर बच्चे ने वीडियो कॉल से बताया। इसी तरह गुड़गाँव का भी एक केस सामने आया। जिन बच्चों ने धर्म परिवर्तन किया वो इतने डरे हुए हैं कि आगे आकर कुछ बता नहीं पा रहे हैं।


https://r.com/OpIndia_in/status/1406903259403534338?s=19


समय रहते जग जाना चाहिए और आपस में संगठित होकर धर्मांतरण करनेवालों पर रोक लगानी चाहिए। अपने बच्चों एवं आसपास के लोगों को सनातन धर्म की महिमा बताकर जागरूक करना चाहिए, तभी देश व आनेवाली पीढ़ी की सुरक्षा होगी।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

मोदीजी से टी राजा सिंह ने की अपील- छोड़ दीजिये आशाराम बापू को

20 जून 2021

azaadbharat.org


गौरक्षा के प्रति एवं धर्मसेवा के प्रति कई वर्षों से मेरी रुचि रही है, कई वर्षों से मैं लगातार कार्य करता आ रहा हूँ। हमारी जो हिन्दू संस्कृति है उसका सर्वनाश करने के लिए एक तरफ से इस्लामी लोग व एक तरफ से ईसाई लोग प्रयास कर रहे हैं- इन दोनों ओर से हमारी संस्कृति का सर्वनाश किया जा रहा है और उसके ज्यादातर जिम्मेदार हम लोग भी हैं क्योंकि अगर हम हमारी संस्कृति को बचाने के लिए कार्य करेंगे तो ही हमारी संस्कृति बचेगी।- यह बात तेलंगाना राज्य के गोशामहल निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा विधायक श्री टी. राजासिंह ने कही।



https://youtu.be/ey9TN4UYwvk


उन्होंने आगे कहा कि मैं तो संत आशारामजी बापू के चरणों को प्रणाम करता हूँ  क्योंकि बापूजी ने हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए कई गुरुकुलों व स्कूलों का निर्माण किया है। मैं तो मेरे सारे हिन्दू भाई-बंधुओं को यही प्रार्थना करूँगा कि अगर आप चाहते हो- धर्म की रक्षा हो, अगर आप चाहते हो- संस्कृति की रक्षा हो तो कोई अपने बच्चों को क्रिश्चियन स्कूल में ना डाले, किसी कान्वेंट स्कूल में न डाले। जहाँ पर हमारी हिन्दू संस्कृति के विषय में बताया जाता है वहाँ अपने बच्चों को डाले।

ये मैं सबसे प्रार्थना करना चाहता हूँ और साथ ही आज बड़े दु:ख के साथ मुझे ये कहना पड़ रहा है कि धर्म की रक्षा के लिए एवं धर्मातरण को रोकने के लिए संत आशाराम बापूजी ने कार्य किये हैं। कांग्रेस की सरकार के समय पर सोनिया गांधी एवं उनके सभी सहयोगी गणों ने एक षड्यंत्र रचा क्योंकि लोग हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना रहे थे पर जहाँ-जहाँ संत आशारामजी बापू गए वहाँ लाखों की संख्या में ईसाई बने हिंदुओं की पूर्ण रूप से  घरवापसी कराई और हिन्दू धर्म की महिमा बताई।


उन्होंने आगे बताया कि यह सब सोनिया गांधी से देखा न गया कि जो हिन्दु पूरी तरह से कन्वर्ट हो चुके थे, धर्मांतरित हो चुके थे, उन्होंने संत आशारामजी बापू के सत्संग से फिर से हिन्दू धर्म अपना लिया। इससे उसकी सीट खतरे में आ गई और कांग्रेस की मिलीभगत ने संत आशारामजी बापू को इस गंदे केस में फंसाया। जिससे उन्हें कुछ लेना देना नहीं, ऐसे केस में आशारामजी बापू को फंसाया गया।


टी राजा सिंहजी ने आगे बताया कि  आशारामजी बापू जेल में हैं। ठीक है, उस समय कांग्रेस की सरकार थी। सोनिया गांधी की सरकार थी। उन्होंने षड्यंत्र करके फंसाया। लेकिन अभी तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। और मैं भारतीय जनता पार्टी का विधायक होने से पहले एक हिन्दू हूँ। मेरा संकल्प है- साधु संतों की रक्षा करना, हिन्दू संतों का मान सम्मान करना; अगर साधु संतों को किसी प्रकार की कठिनाई आये तो यथाशक्ति मैं उनके साथ खड़ा रहूंगा। सबसे पहले हमारा यही कर्तव्य है।


टी राजा सिंहजी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- मैं हमारे नरेन्द्र मोदीजी से यही निवेदन करना चाहता हूँ कि संत आशारामजी बापू और उनके बेटे, जो उस केस में इंवॉल्व नहीं हैं वो आज जेल में हैं। हमारे साधु संत जेल में हैं। केस में कुछ दम नहीं है, सिर्फ केस को लंबा खीचना, बापूजी का मनोबल तोड़ना- ऐसा षड्यंत्र रचा जा रहा है। मुझे विश्वास है कि निर्दोष आएंगे हमारे आशारामजी बापू।


🚩राजा सिंह जी का अनुयायियों को संदेश :-


संत आशारामजी बापू के भक्तों को मैं एक निवेदन करना चाहता हूँ, प्रणाम करना चाहता हूँ उनके चरणों को, आप बस संतुलन न खोइये, संगठित रहिये, बुरा समय बस खत्म हो चुका है, अच्छा समय अब आने वाला है।


जिस प्रकार से साध्वी प्रज्ञा सिंह बिना किसी केस के, बिना किसी आरोप के, 9.5 साल बाद जेल से रिहा हो चुकी हैं उसी प्रकार से हमारे आशारामजी बापू निर्दोष साबित होंगे और फिर से वो हमारे बीच आएंगे, सबको आशीर्वाद देंगे।


भगवान से प्रार्थना कीजिए। भक्ति में बहुत शक्ति होती है, साधना में बहुत शक्ति होती है, भगवान से बस प्रार्थना कीजिए कि संत आशारामजी बापू जल्द से जल्द जेल से छूट जाएं।


https://youtu.be/2M-_SKDpB4U


गौरतलब है कि इससे पहले मीडिया से बातचीत करते समय राजा सिंह ने कहा था कि आज हमारे नरेन्द्र मोदीजी की हिंदुत्ववादी सरकार है, लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारी सरकार आने के बाद भी आज संत आसारामजी बापू अंदर हैं। अब बहुत हो चुका संत आसारामजी बापू को जेल से बाहर लाने की आवश्यकता है। देश को ऐसे संत के मार्गदर्शन की आवश्यकता है।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

भारत के इतिहास में 21वीं सदी का सबसे बड़ा अन्याय इससे बढ़कर नहीं होगा

19 जून 2021

azaadbharat.org


इस देश में न्यायपालिकाएं बिकती हैं, प्रभावित होती हैं- यह मैं पहले भी कह चुका हूँ, आगे भी कहता हूँ, कैमरे पे कहता हूँ; क्योंकि मुझे ये कहने में डर नहीं है। खुद न्यायपालिका के अंदर के ही सिस्टम के अंदर के जज से लेकर मजिस्ट्रेट, वकील इस बात को दोहरा चुके हैं इसलिए इन व्यवस्थाओं से बहुत ज्यादा भरोसा करने की जरूरत नहीं है- यह बात किसी साधारण व्यक्ति ने नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी चैनल सुदर्शन न्यूज़ के मुख्य संपादक ने ये बात कही है।



भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने बताया था कि आशाराम बापू का केस बोगस है, उनकी जमानत लगातार खारिज करना न्यायपालिका की 21वीं सदी की सबसे बड़ी चूक है।


https://twitter.com/Swamy39/status/766258483054321664?s=19


आपको बता दें कि हिंदू धर्मगुरु आशाराम बापू 8 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं। उनकी उम्र 85 वर्ष की है। जोधपुर जेल में कई कैदी कोरोना संक्रमित हुए थे, इसके कारण वे भी संक्रमित हुए और अस्पताल में भर्ती किये गए, उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता जा रहा है, उन्होंने जीवनभर आयुर्वेद का प्रचार किया और उसीका उपचार लिया है पर आज उनकी उम्र इतनी होते हुए भी एलोपैथी दवाई दी जा रही है, आयुर्वेदिक चिकित्सा करने की अनुमति नहीं दी जा रही है, वे न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं, जोधपुर कोर्ट बोलती है- सुप्रीम कोर्ट जाओ और सुप्रीम कोर्ट बोलती है- हाईकोर्ट जाओ और कोर्ट में गहलोत सरकार विरोध करती है कि इलाज जोधपुर में ही करवाया जाएगा हम दूसरी जगह आयुर्वेदिक इलाज के लिए नहीं भेजेगें।


कया आशारामजी बापू कोई आतंकवादी हैं, जो उनको अपना इलाज करने के लिए भी अनुमति नहीं दी जा रही है? जबकि एक आतंकवादी को बचाने के लिए आधी रात को कोर्ट खोली जाती है, आतंकवादी को उसका मनपसंद भोजन बिरयानी दी जा रही थी लेकिन राष्ट्र व धर्म की सेवा करनेवाले हिंदू संत आशाराम बापू को भारतीय पद्धति से इलाज कराने के लिए अनुमति नहीं दी जा रही है? वे अपने घर नहीं जाना चाहते हैं, अपने परिवार से नहीं मिलना चाहते हैं, अपने आश्रमों में नहीं जाना चाहते, अपने शिष्यों को नहीं मिलना चाहते, वे सत्संग नहीं करना चाहते, वे केवल बस इतनी उम्र में स्वास्थ्य खराब होने पर केवल अपना आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज कराना चाहते हैं उसमें भी तारीख पर तारीख दी जा रही है। ये कहां तक उचित है? क्या कोर्ट किसीके दबाव में कार्य कर रही है कि उनका हीमोग्लोबिन 3.7 होने पर भी जमानत नहीं दे रही है?


आपको बता दें कि जिस लड़की ने आशाराम बापू पर आरोप लगाया है उस लड़की ने ये भी बताया था कि आशाराम बापू के सेवक शिवा ने उसे जोधपुर बुलाया था और प्रकाश सेवक अंदर ले गया था, पर जब कोर्ट का फैसला आता है उसमें साफ लिखा है कि शिवा ने बुलाया ही नहीं था और वो जोधपुर में नहीं था, ट्रेन में था उस समय उसकी टिकट भी मिली थी, दूसरी ओर प्रकाश सेवक को भी बरी कर दिया कि ये लड़की को अंदर कुटिया में लेकर गया ही नहीं था। अब इतना बड़ा सच सामने है फिर भी बापू आशारामजी को सजा देना ये कोई साजिश तो नहीं है?


आपको बता देते हैं कि जिस समय लड़की ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय तो वो अपने मित्र से कॉल पर बात कर रही थी और बापू आशारामजी किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे, वहाँ पर 50-60 लोग भी थे, उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी है, लड़की का कॉल डिटेल भी दिया गया है।


आपको बता दें कि आरोप लगानेवाली लड़की ने रेप का आरोप नहीं लगाया है, बल्कि लिखाया है कि मेरे साथ छेड़छाड़ हुई है लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि लड़की को टच भी नहीं किया गया है। इससे साफ होता है कि लड़की के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।

वीडियो में यह देख सकते हैं।

https://youtu.be/V0sr9yHj1Go


इन सब पुख्ता सबूतों के होते हुए भी उनको आजीवन कारावास की सजा देना और आजतक जमानत नहीं देना- ये हिंदू धर्मगुरु को खत्म करने का कोई बड़ा षड्यंत्र तो नहीं है? 


बापू आशारामजी की तरफ से निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका डाली गई है। कल को अगर हाईकोर्ट में आशारामजी बापू निर्दोष साबित होते हैं तो सरकार, मीडिया और न्यायालय अपनी गलती मानेंगे?? और मान भी लें तो इंसानियत का तो गला आपने घोंट ही दिया, बाद में माफी मांगने से क्या फायदा? इतना उनका समय, पैसा, इज्जत और स्वास्थ्य गया उसका जिम्मेदार कौन होगा?


सत आशाराम बापू ने करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया। लाखों लोगो की घर वापसी करवाई,  आदिवासियों को धर्मांतरित होने से बचाया। विदेशों में भी सनातन धर्म का परचम लहराया।


करोड़ों लोगो के व्यसन छुड़वाए, एलोपैथी से देशवासियों को आयुर्वेद पर लेकर आये।


वदिक गुरुकुल और बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को सनातन संस्कृति के दिव्य संस्कार दिए।ाने जाती हजारों गायों को बचाकर गौशालाएं खोल दी।


वलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन और क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया।


कया राष्ट्र और सनातन धर्म की सेवा करने का परिणामस्वरूप उनको षड्यंत्र करके जेल भिजवाया? अब हिंदुओं को सोचना होगा कि अगर कोई अन्य धर्म के गुरु होते तो आज देश में आग लग जाती लेकिन हिन्दू सहिष्णुता के नाम पलायनवादी हो गए हैं जिसके कारण आज हिन्दू धर्मगुरु जेल में हैं।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 

facebook.com/ojaswihindustan 

youtube.com/AzaadBharatOrg 

twitter.com/AzaadBharatOrg 

.instagram.com/AzaadBharatOrg 

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

अंग्रेज भी जिनके नाम से पसीने छोड़ देते थे उन महारानी लक्ष्मीबाई का जानिए इतिहास

18 जून 2021

azaadbharat.org


भारतीय नारी ने समग्र विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनायी है । अपने श्रेष्ठ चरित्र, वीरता तथा बुद्धिमत्ता के बल पर उसने मात्र भारत ही नहीं अपितु समस्त नारी जाति को गौरवान्वित किया है । उनका संयम, साहस व वीरता आज भी प्रशंसनीय है । भारत के इतिहास में ऐसी अनेक नारियों का वर्णन पढ़ने-सुनने को मिलता है ।



झाँसी कि रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी ऐसी ही महान नारियों में आता है । रानी लक्ष्मीबाई का जीवन बड़े-बड़े विघ्नों में भी अपने धर्म को बनाये रखने तथा परोपकार के लिए बड़ी-से-बड़ी सुविधाओं को भी तृण कि भाँति त्याग देने की प्रेरणा देता है ।


सन् 1835 में महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण कुल में जन्मी "मनुबाई" जिसे लोग प्यार से ‘छबीली’ भी कहते थे अपनी वीरता एवं बुद्धिमत्ता के प्रभाव से झाँसी की रानी बनी । झाँसी के राजा गंगाधर राव से विवाह के पश्चात् वे ‘रानी लक्ष्मीबाई’ के नाम से पुकारी जाने लगीं ।


गगाधर राव वृद्ध तथा निःसन्तान थे । उनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी । राज्य का उत्तराधिकारी न होने के कारण उन्होंने वृद्धावस्था में भी विवाह किया । अपने धर्म को निभाते हुए लक्ष्मीबाई ने पति कि सेवा के साथ-साथ राजनीति में भी रुचि दिखाना प्रारम्भ कर दिया ।

समय पाकर गंगाधर राव को पुत्ररत्न कि प्राप्ति हुई परंतु एक गंभीर बीमारी ने राजकुमार के प्राण ले लिए । गंगाधर राव पर मानो वज्रपात हो गया और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । श्वास फूलने लगा । रोगाधीन हो गए । उस समय देश में ब्रिटिश शासन था । सभी राज्य अंग्रेजी सरकार के नियमों के अनुसार ही चलते थे । राजा नाममात्र का शासक होता था । महाराज गंगाधर राव ने ब्रिटिश सरकार को इस आशय का एक पत्र लिखा : ‘‘रानी को अपने परिवार से किसी पुत्र को गोद लेने कि अनुमति दी जाय तथा भविष्य में उसी दत्तक पुत्र को झाँसी का शासक बनाया जाय ।’’


बरिटिश सरकार ने गंगाधर राव के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । उसने आदेश पारित किया कि : ‘‘यदि रानी को कोई संतान नहीं है तो झाँसी राज्य को सरकार के आधीन कर लिया जाय ।’’ फिर झाँसी को अंग्रेजों ने हस्तगत कर लिया । गंगाधर राव को एक और चोट लगी और उनकी मृत्यु हो गई । एकलौते पुत्र के बाद अपने पति की मृत्यु तथा अंग्रेजों के प्रतिबन्धों के बावजूद भी भारत की इस वीरांगना ने अपना धैर्य नहीं खोया । उसने राज्य के शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली तथा अपने पति की अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए दामोदर राव को अपना दत्तक पुत्र बना लिया ।


रानी का यह साहसिक कदम अंग्रेजों कि चिंता का विषय बन गया । उन्हें लक्ष्मीबाई के रूप में सुलगती क्रांति कि चिंगारी साफ-साफ दिखाई देने लगी । अंग्रेजी सरकार ने झाँसी के राज्य को तुरंत अपने अधीन कर लिया तथा गंगाधर राव के नाम पर रानी को मिलनेवाली पेन्शन भी बन्द कर दी । इसके साथ ही सरकार ने झाँसी में गोवध को बंद करने के रानी के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया । चारों ओर से विपरीत परिस्थितियों से घिरे होने तथा सैन्य-शक्ति न होने के बावजूद भी रानी लक्ष्मीबाई के मन मेे झाँसी को स्वतंत्र कराने के ही विचार आते थे ।

इसी समय भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा कारतूस में गाय तथा सूअर कि चर्बी मिलाये जाने कि घटना के कारण अनेक स्थानों पर विद्रोह कर दिया । वीर मंगल पाण्डेय के बलिदान ने देशभर में क्रांति की आग फैला दी तथा 10 मई, सन् 1857 को इस विद्रोह ने भयंकर रूप ले लिया । देशभर में विद्रोह कि आँधी चल पड़ी जिससे अंग्रेजों को अपने प्राण बचाने भारी पड़ गये ।


झाँसी में क्रांति कि आग न लगे इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने अपनी कूटनीति का सहारा लिया । सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई से प्रार्थना की कि : ‘‘जगह-जगह युद्ध छिड़ रहे हैं और इसके पहले कि झाँसी भी इसकी चपेट में आये, आप राज्य कि रक्षा का दायित्व अपने हाथ में ले लें और हम सबकी रक्षा करें । झाँसी कि जनता आपसे अत्यधिक प्रेम करती है अतः आपकी इच्छा के विपरीत वह विद्रोह नहीं करेगी ।’’


रानी के लिए राज्य-प्राप्ति का यह एक सुंदर अवसर था जब अंग्रेज स्वयं उन्हें झाँसी राज्य का शासन सौंप रहे थे । रानी के एक ओर झाँसी का सिंहासन था तथा दूसरी ओर स्वतंत्रता कि वह क्रांति जो देशभर में फैल रही थी । रानी चाहती तो सरकार कि सहायता करके तथा झाँसी की क्रांति को रोककर अपने खोये हुए राज्य को प्राप्त कर सकती थी । परंतु धन्य है भारत की यह निर्भीक वीरांगना जिसने देश कि स्वतंत्रता के लिए सिंहासन को भी ठुकरा दिया । रानी ने स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे देशभक्तों कि सहायता करने का निश्चय किया । उन्होंने सरकार को जवाब देते हुए कहा : ‘‘जब मेरे सामने राज्य-प्राप्ति कि समस्या थी तब तो मुझे राज्य नहीं दिया गया । आज आप लोगों के हाथों से वही राज्य छिन जाने का समय आ गया तो राज्य की रक्षा का दायित्व मुझे दे रहे हैं ।’’


रानी के ये शब्द अंग्रेजी सरकार को तीर की भाँति चुभे । रानी ने अंग्रेजी सेना को अपने यहाँ शरण नहीं दी अतः उन्हें निराश होकर जाना पड़ा । सैनिक विद्रोह ने जोर पकड़ा तथा झाँसी में भी क्रांति की लहर चल पड़ी । अंग्रेजों की छावनियाँ तहस-नहस कर दी गईं तथा अंग्रेजों को झाँसी छोड़कर भागना पड़ा । झाँसी का राज्य क्रांतिकारियों के हाथों में आ गया । वहाँ उन्होंने लक्ष्मीबाई को रानी के रूप में स्वीकार कर लिया ।


रानी ने झाँसी में लगभग एक वर्ष तक शांतिपूर्वक शासन किया परंतु कुछ समय बाद झाँसी के राज्य पर फिर से अंग्रेजों कि काली दृष्टि पड़ी । जनरल ह्यू रोज के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया ।


रानी लक्ष्मीबाई के पास सैन्य-शक्ति अधिक नहीं थी । उधर उनकी सहायता के लिए आ रहे नाना साहब तथा तात्या टोपे की सेना को अंग्रेजों कि विशाल सेना ने रास्ते में ही रोक लिया । रानी के कई वफादार एवं वीर सिपाही युद्ध में शहीद हो गये । ऐसी परिस्थिति में भी लक्ष्मीबाई के साहस में कोई कमी नहीं आयी तथा परतंत्रता के जीवन कि अपेक्षा स्वतंत्रता के लिए मर-मिट जाना उन्हें अधिक अच्छा लगा । उन्होंने मर्दों की पोशाक पहनी तथा अपने दत्तक पुत्र को अपनी पीठ पर बाँध लिया । महलों में पलनेवाली रानी लक्ष्मीबाई हाथ में चमकती हुई तलवार लिये घोड़े पर सवार होकर रण के मैदान में उतर पड़ीं ।


मशर नदी के किनारे रानी लक्ष्मीबाई एवं जनरल ह्यू रोज कि सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ तथा रानी कि लपलपाती तलवार अंग्रेजी सेना को गाजर-मूली कि तरह काटने लगी । रानी कि छोटी-सी सेना अंग्रेजों कि विशाल सेना के आगे अधिक देर तक नहीं टिक सकी । दुर्भाग्यवश रानी के मार्ग में एक नाला आ गया जिसे उनका घोड़ा पार नहीं कर सका । फलतः चारों ओर से ब्रिटिश सेना ने उन्हें घेर लिया । अंततः अपने देश कि स्वतंत्रता के लिए लड़ते-लड़ते रानी वीरगति को प्राप्त हुईं जिसकी गाथा सुनकर आज भी उनके प्रति मन में अहोभाव उभर आता है । छोटे-से ब्राह्मण कुल में जन्मी इस बालिका ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ