14 दिसंबर 2018
Influence of Fake and Paid News in India |
भारत में दिखाई जाने वाली झूठी ख़बरों के चर्चे तो दूर-दूर तक फैले हैं । जो मीडिया देश के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, एक ऐसा स्तंभ जो चाहे तो हमारे देश की नींव को मजबूती प्रदान कर सकती है, लेकिन आज वही मीडिया देश की दुश्मन बन बैठी है, अपनी संस्कृति को नष्ट करने वाली बन गयी है, लोगों के मन में सच्चे और ईमानदार हिन्दू नेताओं और पवित्र हिन्दू संतों के प्रति जहर घोलने वाली बन गयी है ।
मीडिया में दिखाई जाने वाली खबरें पहले तो सिर्फ फेक हुआ करती थीं, लेकिन अब फेक होने के साथ-साथ पेड भी हो गयी हैं, मीडिया अपने स्वार्थ में अंधी हो, TRP की दौड़ में इतनी अंधी हो चुकी है कि सच से उसका कुछ वास्ता ही नहीं रह गया है ।
दुनिया के दूसरे हिस्सों के साथ-साथ भारत में फ़ेक न्यूज़ का प्रसार कितनी तेज़ी और किस तरह बढ़ रहा है, इसका तो अंदाजा आम इन्सान लगा ही नहीं सकता, लेकिन ख़बरों की दुनिया में फ़ेक न्यूज़ कोई अकेली बीमारी नहीं है । एक ऐसी ही बीमारी है पेड न्यूज़, जिसने मीडिया जगत को अपनी चपेट में ले रखा है । कई बार दोनों का रूप एक भी हो सकता है और कई बार अलग-अलग भी । वैसे पेड न्यूज़ की बीमारी को आप थोड़ा गंभीर इसलिए मान लें क्योंकि इसमें बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों से लेकर दूर दराज़ के क़स्बाई मीडिया घराने भी शामिल हैं ।
पेड न्यूज़, जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है वैसी ख़बर जिसके लिए किसी ने भुगतान किया हो । ऐसी ख़बरों की तादाद हिन्दू निष्ठ नेताओं, हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि खासकर हिन्दू संतों के मामले बढ़ जाती है ।
कितनी गंभीर है पेड न्यूज़ की बीमारी :-
बीते दिनों कोबरा पोस्ट के स्टिंग में भी ये दावा किया गया कि कुछ मीडिया संस्थान पैसों की लालच में कंटेंट के साथ फेरबदल करने को तैयार दिखते हैं ।
प्रभात ख़बर के बिहार संपादक अजेय कुमार कहते हैं, "दरअसल अब पेड न्यूज़ केवल कुछ मसलों तक ही सीमित नहीं रह गया है । आए दिन सामान्य ख़बरों में भी इस तरह के मामलों से हमें जूझना होता है । ये स्थानीय संवाद सूत्र से शुरू होकर हर स्तर तक पहुंचता है ।"
एक वरिष्ठ टीवी पत्रकार कहते हैं, "चैनल और अख़बार निस्संदेह एक प्रॉडक्ट हो गए हैं, लेकिन प्रॉडक्ट में पेड न्यूज़ की धोखाधड़ी तो नहीं होनी चाहिए। अगर आप पैसा लेते हैं तो उसे साफ़ और स्पष्ट तौर पर विज्ञापन घोषित करना चाहिए ।" :- स्रोत्र बी.बी.सी. न्यूज़
मीडिया की ख़बरों को देखकर एक बात तो स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि जो दिखता है तो बिकता है, मतलब कि मीडिया में दिखाई गयी अधिकतर बातें बिकी हुई ही होती हैं । आज देश में मीडिया की स्थिति कुछ इस प्रकार है कि यदि इन्हें पैसे दिए जाएं और ये कहने को बोला जाए कि रात में सूर्य को देखा गया है, तो इस बात को भी बढ़ा-चढ़ा कर तथा झूठे साक्ष्य, जी हाँ मीडिया अपनी बात को सच साबित करने के लिए झूठे साक्ष्य बनाने से भी पीछे नहीं हटती है, बनाकर भी मीडिया आपको ये यकीन करने पर मजबूर कर देगी कि रात्रि में सूर्योदय भी हो सकता है ।
हिन्दू संतों की बात करें तो मीडिया तो जैसे उनसे अपनी कोई दुश्मनी निकालती है, विधर्मियों के पैसे खाकर आए दिन झूठी ख़बरें बनाकर दिखाती है । शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, नित्यानंद स्वामी, साध्वी प्रज्ञा आदि कुछ इसके प्रमुख उदहारण हैं ।
हम ये नहीं कहते कि देश में मीडिया होनी ही नहीं चाहिए, मीडिया की भूमिका भी देश के विकास में महत्वपूर्ण है, लेकिन यदि वो ईमानदारी पूर्वक अपना कार्य करे तो.. अन्यथा मीडिया देश के लिए सिर्फ एक धीमे जहर का काम कर रही है ।
अब यदि मीडिया नहीं सुधरी तो हम सबको संगठित होकर पेड मीडिया का बहिष्कार करना चाहिए, ताकि हम तक सहीं खबर पहुँच पाए और झूठी खरबों पर लगाम लग जाए ।।
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