15 September, 2023
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🚩कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। मुस्लिम आतंकी संगठन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।
🚩मुस्लिम आतंकवादियों ने 14 सितंबर के दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिंदुओं की रक्षा करने वाले भाजपा नेता श्री टिकालाल की हत्या की थी। उसके बाद 19 जनवरी 1990 को लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सदा के लिए अपनी धरती, अपना घर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा। वे आज भी शरणार्थी हैं। उन्हें वहां से भागने के लिए बाध्य करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं।
कितनी दुःखद बात है कि , उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिन्दू शरणार्थियों को वो भी नहीं !
🚩वर्ष 1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी। हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया, जिसे कश्मीर के उर्दू समाचार पत्रों आफताब’ और अल सफा’ ने छापा । प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था । कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएं आरंभ हो गयी थी । कश्मीर की मस्जिदों के ध्वनि प्रक्षेपक जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर’के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कर कहने लगे कि,
‘कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ !
कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है !
असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन’ (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदु स्त्रियों के साथ, किंतु पुरुष नहीं’),
...ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे ।
🚩दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि कश्मीर में सभी इस्लामी वेशभूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया । कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिह्नित कर दिए गए । यहां तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने के लिए उन्हें बाध्य किया गया ।
24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ –
🚩कश्मीर में काफिरों का कत्ल करो’ का सन्देश गूंज रहा था । इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भूल चुका था, वह एक बार पुन: अपने सामने था !
🚩आज कश्मीर घाटी में हिन्दू नहीं हैं। जम्मू और दिल्ली में आज भी उनके शरणार्थी शिविर हैं। 33 साल से वे वहां जीने को बाध्य हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 3 से 7 लाख के लगभग मानी जाती है, जो भागने पर मजबूर किए गए और उनकी एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो गयी। कभी धनवान रहे ये हिन्दू, आज सामान्य आवश्यकताओं के लिए भी पराश्रित हो गए हैं। उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे। उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आ कर, कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरुंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं।
🚩कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहां कभी पांडवों की 28 पीढ़ियों ने राज्य किया था । वो कश्मीर जिसे आज भी भारत मां का मुकुट कहा जाता है । 500 साल पूर्व तक यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था। औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह कश्मीर के विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गये थे। किंतु कुछ समय पश्चात उन्हें भी औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित कर भरे दरबार में उनका क़त्ल कर दिया था। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है।
"हिंदु घटा तो भारत बंटा" के तर्क की कोई काट उपलब्ध नहीं है। कश्मीर उसी का एक उदाहरण है।
🚩मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेक्युलर पार्टियों और हिंदु संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजी के पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती ! गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेक्युलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर कत्ल किए गए दसों सहस्र कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता ! सरकार कहती है, कि कश्मीरी हिंदु स्वेच्छा से’ कश्मीर छोड़ कर भागे । इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड्यंत्र भी रचा गया है ।
🚩.....जरा सोचिए आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं , जो आज भी विस्थापित हैं !?
भोगने वाले भोग रहे हैं । जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है और याद करके आंखें आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है ।
रामायण की देवी सीता को शरण देने वाले भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पडा ! कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है –
" मन करता है फूल चढा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी ही धरती पर ! "
स्त्रोत : IBTL
🚩कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सके !
🚩अब भाजपा की सरकार द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाने से कश्मीरी हिन्दुओं के मन में पुनः घाटी में बसने की उम्मीदें जागी हैं । अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिन्दुओं के घाटी में पुनर्वसन की व्यवस्था करेगी , ऐसी ही आशा है।
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