Monday, July 15, 2024
हिन्दू सभ्यता को बचाए रखने के लिए आखिर हम क्या कर सकते है ?
हिन्दू सभ्यता को बचाए रखने के लिए आखिर हम क्या कर सकते है ?
16 July 2024
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🚩सदियों से ब्रिटिश शासकों एवं इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा आक्रमण और दमन का दौर झेलने के बाद कुछ दशक पहले ही हिन्दू सभ्यता ने राजनैतिक स्वतंत्रता हासिल करके दोबारा साँस भरनी शुरू की थी,लेकिन अब लगता है शायद फिर से यह अंधकार की ओर जाने की कगार पर है।
🚩इस पीढ़ी के अधिकांश लोगों के लिए उस संघर्ष,कठिनाई और उत्पीड़न की कल्पना भी कर पाना असंभव है जो हमारे पूर्वजों ने असहिष्णु और शत्रुतायुक्त राजनीतिक शासन के अधीन रहकर झेला है।
यह एक विडम्बना है कि हमारी वर्तमान ‘सेक्युलर’ शिक्षा न केवल हमारे सच्चे इतिहास पर लीपापोती कर बनी है,बल्कि वास्तविक अतीत तक जाने में भी हमारे सामने सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ी है।
अगर,ऐसा नहीं होता तो आज हम सामाजिक, राजनैतिक और सभ्यागत मोर्चों पर इस्लामिक प्रभुत्व के फिर से उभरने के संकेतों को स्पष्टरुप से देख पाते। खुद सोचिए, हमारे मंदिर पूर्व काल में भी तोड़े जाते थे और आज भी तोड़े जा रहें हैं; हमारी स्त्रियां तब भी अत्याचार का शिकार होती थी और आज भी हो रहीं है; हिन्दू तब भी संकट में थे और आज भी हैं। उस समय भी हमारे पूर्वज जजिया कर देते थे, वह भी दूसरे-तीसरे दर्जे के नागरिक बनकर जीने के लिए और अब भी देश की बहुसंख्यक आबादी जजिया-2.0 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए विशिष्ट स्कीमों को वित्तपोषित करती है। आज हिन्दूओं के खिलाफ, छोटे स्तर पर होने वाली जिहाद की घटनाओं में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है।
हाल ही में हिंदुस्तान के ‘दिल’ नई दिल्ली में दुर्गा मंदिर पर हुए हमले,इस बात का पुख्ता सबूत है कि हमलावर दिन-ब-दिन कितने बेख़ौफ़ होते जा रहे हैं।
🚩इन सीधे-सीधे हमलों में अगर ईसाईयों द्वारा अपने पंथ का आक्रामक प्रचार,आदिवासी इलाकों का तेजी से ईसाइकरण, भारत को तोड़ने और हिन्दूवादी ताकतों को उखाड़ने के लिए हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति पर हुए हमलों को जोड़ दिया जाए तो पता चलेगा कि सनातन सभ्यता के दोबारा अंधकार में जाने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है- अगर, हिन्दू अपनी सभ्यता पर मँडराते इस खतरे को भांपकर, इसके खिलाफ उचित कदम नहीं उठाते हैं तो!
🚩मुझ से अक्सर पूछा जाता है कि हम हिंदू व्यक्तिगत रूप से इस स्थिति के बारे में क्या कर सकते हैं? हम सबके पास अपनी नौकरी की चिंता है, अपना परिवार है। इसके अलावा हमारे पास एकता नहीं है, न ही धन है, और न ही कुछ करने की राजनीतिक शक्ति है।
🚩हालाँकि, यह सच है कि व्यक्तिगत रूप में हमारे साधन सीमित हैं और यह भी सच है कि इन ज्वलंत मुद्दों को दूर करना सरकार की जिम्मेदारी है जो दुर्भाग्य से वर्तमान सरकार हिन्दू जनादेश पर सत्ता में आने के बावजूद कर नहीं रही है बल्कि उसकी जगह ‘सबका साथ सबका विश्वास’ के नाम पर तुष्टिकरण की नीतियों की घोषणा कर उसे कार्यन्वित कर रही है। मगर उतना ही सत्य ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का लोकतांत्रिक उलट ‘यथा प्रजा, तथा राजा’ है। इसलिए इस महान हिन्दू सभ्यता के व्यक्तिगत उत्तराधिकारियों के रूप में हमारी हर एक व्यक्ती की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने-अपने स्तर पर सनातन संस्कृति का उत्कर्ष करें।
🚩‘कौरवों’ की पहचान
किसी भी काम को करने में पहला कदम उसमें निहित चुनौतियों को पहचानना है। इन चुनौतियों को हम भिन्न-भिन्न प्रकार के ‘कौरवों’ के रूप में सोच सकते हैं। हिन्दू संरचना में हम जीवन और समाज को समझने के लिए धर्म-अधर्म की श्रेणियों का प्रयोग करते हैं। महाभारत में हम ऐसे चित्रणों को पाएँगे जिन में कई प्रकार की अधर्मी ताकतें स्पष्ट होती है।
🚩सबसे पहले दुर्योधन, जो अधर्म का अवतार था- धर्मराज युद्धिष्ठिर का प्रतिद्वंद्वी।
दूसरा कर्ण, जो दुर्योधन (अधर्म) की कुचालों में सक्रिय रूप से सहायक था;
तीसरे भीष्म, जो न चाहते हुए भी दुर्योधन की तरफ से लड़कर अधर्म का साथ दे रहे थे;
चौथे धृतराष्ट्र, जो बिना कुछ किए आँख बंद करके निष्क्रिय रूप से दुर्योधन के साथ खड़े होकर अधर्म के साथी थे।
🚩हम इन सभी प्रकार के अधर्मियों को आज के समाज में देख सकते हैं। आज इस्लाम और ईसाईकरण जैसी धर्म-विरोधी ताकतें भारत और हिंदुत्व/हिन्दू-धर्म को तोड़ना चाहतीं हैं। मीडिया, एनजीओ, नौकरशाहों का गठजोड़ इन अधार्मिक ताकतों के लिए सक्रिय सहयोगियों का काम कर रहे हैं। फिर कुछ अनचाहे सहयोगी हैं, जिन्हें बल,धोखाधड़ी और अन्य साधनों का प्रयोग करके सहयोग करने के लिए ब्लैकमेल किया जाता है।अंत में हमारे पास बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो खुद को धोखे में रखकर, ‘धिम्मी, बने रहकर ‘सर्वधर्म समभाव’ का प्रपोगंडा आगे बढ़ाते हैं और अंततः धृतराष्ट्र की भाँति अधर्म का प्रतिरोध न कर उसके सहयोगी ही बन जाते हैं।
🚩संक्षेप में कहूँ तो ‘कुछ नहीं करना’ बहुत लंबे समय तक विकल्प नहीं रहने वाला है। क्योंकि, कुछ नहीं करना आपको हिंदू सभ्यता के विरोधियों का अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी बनाता है।
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