Thursday, October 10, 2024

दुर्गा सप्तशती और कुंजिका स्तोत्र: पौराणिक संदर्भ और महत्त्व

 11 October 2024

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🚩दुर्गा सप्तशती और कुंजिका स्तोत्र: पौराणिक संदर्भ और महत्त्व


🚩हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में दुर्गा सप्तशती और कुंजिका स्तोत्र का विशेष स्थान है। ये दोनों पाठ देवी दुर्गा की महिमा, उनकी शक्ति, और उपासकों के जीवन में देवी की कृपा को प्रदर्शित करते हैं। इनमें देवी के विभिन्न रूपों, लीलाओं, और असुरों के संहार का विस्तृत वर्णन है, जो धार्मिक और तांत्रिक दोनों ही दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण हैं।


🚩दुर्गा सप्तशती: पौराणिक संदर्भ और महत्व


दुर्गा सप्तशती, जिसे चंडी पाठ के नाम से भी जाना जाता है, देवी दुर्गा की तीन प्रमुख लीलाओं (महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती) पर आधारित है। इसमें कुल 700 श्लोक हैं, जो मार्कण्डेय पुराण में “देवी महात्म्य” के रूप में संकलित हैं। इसके माध्यम से देवी दुर्गा के शत्रुओं पर विजय और उनकी अनंत शक्ति का गुणगान किया गया है।


🚩पौराणिक कथाएं:


🔸1. महिषासुर का वध: दुर्गा सप्तशती का एक प्रमुख प्रसंग महिषासुर के वध का है। यह कथा दर्शाती है कि कैसे देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर को पराजित कर ब्रह्मांड की रक्षा की। महिषासुर, जो एक दुष्ट राक्षस था, उसे कोई देवता हरा नहीं सका। तब त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु, और महेश—ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा को प्रकट किया। देवी ने महिषासुर का विनाश कर धर्म और सत्य की स्थापना की।

🔸 2. रक्तबीज का संहार: रक्तबीज नामक असुर का वध एक और प्रमुख कथा है। रक्तबीज की विशेषता यह थी कि जब भी उसका रक्त धरती पर गिरता, उससे और अधिक रक्तबीज उत्पन्न हो जाते। तब देवी ने काली का रूप धारण किया और रक्तबीज को इस तरह से मारा कि उसका रक्त धरती पर न गिरे। इससे उसकी पुनः उत्पत्ति नहीं हो सकी, और देवी ने उसे समाप्त कर दिया।

🔸 3. शुंभ-निशुंभ का नाश: दुर्गा सप्तशती में शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों की कथा भी आती है। ये दोनों राक्षस देवी को वश में करना चाहते थे, लेकिन देवी ने अपने विविध रूपों से उनका विनाश किया। यह कथा यह दर्शाती है कि देवी के भीतर समस्त शक्तियाँ निहित हैं और वे सभी प्रकार के दुष्टों का विनाश करने में सक्षम हैं।


🚩पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख:


🔸 मार्कण्डेय पुराण: दुर्गा सप्तशती का मूल “मार्कण्डेय पुराण” में है। यहाँ यह बताया गया है कि कैसे राजा सुरथ और वैश्य समाधि ने देवी की उपासना कर अपनी खोई हुई शक्तियों और राज्य को पुनः प्राप्त किया। मार्कण्डेय ऋषि ने दोनों को देवी महात्म्य का उपदेश दिया, जिससे उन्हें जीवन में मार्गदर्शन और शक्ति प्राप्त हुई।

🔸 महाभारत: महाभारत में भी दुर्गा सप्तशती का एक उल्लेख मिलता है, जहाँ अर्जुन ने कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले देवी दुर्गा की आराधना की थी। अर्जुन ने देवी से आशीर्वाद मांगा, ताकि वे युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें। इस प्रसंग को विजयार्चन कहा जाता है, जिसमें यह सिद्ध होता है कि देवी की कृपा से असंभव भी संभव हो सकता है।

🔸 शिव पुराण: शिव पुराण में देवी दुर्गा को भगवान शिव की शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें आद्याशक्ति के रूप में जाना जाता है, जो सृष्टि, पालन और संहार की तीनों शक्तियों की धारक हैं। शिव और शक्ति की अर्धनारीश्वर रूप की अवधारणा भी यहीं से आती है, जो यह दर्शाती है कि शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।


🚩कुंजिका स्तोत्र: पौराणिक और तांत्रिक संदर्भ


कुंजिका स्तोत्र को दुर्गा सप्तशती का सार माना जाता है। यह स्तोत्र छोटा होते हुए भी अत्यधिक प्रभावशाली है और तांत्रिक साधना में इसका विशेष महत्त्व है। इसके पाठ से संपूर्ण दुर्गा सप्तशती के फल की प्राप्ति होती है। इसे तंत्र शास्त्र में अत्यंत गोपनीय और प्रभावी साधना के रूप में बताया गया है।


🚩पौराणिक और तांत्रिक महत्त्व:


🔸 तंत्र शास्त्र में स्थान: तंत्र शास्त्र में कुंजिका स्तोत्र को दुर्गा सप्तशती के विकल्प के रूप में माना जाता है। साधक इसके माध्यम से तांत्रिक शक्तियों को प्राप्त कर सकते हैं और यह एक सरल और प्रभावशाली साधना के रूप में प्रतिष्ठित है।

🔸 ऋषि दुर्वासा का योगदान: कुंजिका स्तोत्र की उत्पत्ति का संदर्भ ऋषि दुर्वासा से जुड़ा है। दुर्वासा मुनि, जो अपनी तपस्या और तांत्रिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे, ने इस स्तोत्र का उपदेश दिया था। उन्होंने इसे भक्तों के लिए एक सरल मार्ग बताया, जिससे वे देवी की कृपा को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

🔸 रक्षात्मक कवच: कुंजिका स्तोत्र को एक रक्षात्मक कवच माना जाता है, जो भक्तों को जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकटों और बाधाओं से रक्षा करता है। इसे पढ़ने से बुरी शक्तियों का नाश होता है और साधक को देवी दुर्गा की शक्ति से अभय प्राप्त होता है।


🚩अन्य वैदिक और पुराणिक संदर्भ में देवी शक्ति:

वेदों और उपनिषदों में भी देवी शक्ति का महत्त्व बताया गया है। ऋग्वेद में कई स्थानों पर देवी के विभिन्न रूपों का उल्लेख मिलता है। देवी को सृजन, पालन, और संहार की शक्ति के रूप में पूजा जाता है।


🔸 ऋग्वेद: ऋग्वेद में देवी अदिति, उषा, और रात्रि के रूपों का वर्णन किया गया है। देवी सूक्त विशेष रूप से महालक्ष्मी और दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है, जहाँ उन्हें ब्रह्मांड की रचनात्मक शक्ति और पालनहार के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।

🔸 कन्या उपनिषद: इस उपनिषद में देवी को सभी प्रकार की ऊर्जाओं और शक्तियों का स्रोत माना गया है। यह बताता है कि सृष्टि की सभी क्रियाएँ देवी की शक्ति से संचालित होती हैं। उपनिषदों में देवी की उपासना से आत्मबल और मोक्ष की प्राप्ति की व्याख्या की गई है।

🔸भागवत पुराण: भागवत पुराण में देवी महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के रूप में त्रिदेवियों की महिमा का वर्णन किया गया है। यह दर्शाता है कि देवी की कृपा से ही संसार की सभी गतिविधियाँ संभव हैं, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से भक्तों के जीवन में सफलता और समृद्धि आती है।


🚩निष्कर्ष:


दुर्गा सप्तशती और कुंजिका स्तोत्र न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि देवी दुर्गा की शक्ति और अनुग्रह को प्राप्त करने के प्रभावशाली माध्यम हैं। पौराणिक कथाओं और ऋषियों के उपदेशों में देवी की महिमा को बार-बार दर्शाया गया है, जो यह सिद्ध करता है कि देवी दुर्गा की उपासना से भक्तों को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और वे जीवन में शांति, सुरक्षा, और शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इन पाठों का महत्व वैदिक, पौराणिक और तांत्रिक दृष्टिकोण से बहुत गहरा है, और यह दर्शाते हैं कि देवी की कृपा से ही जीवन के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।


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