4 दिसंबर 2018
आजकल डॉक्टरों द्वारा जरा-जरा सी बात में ऑपरेशन की सलाह दे दी जाती है । वाहन का मैकेनिक भी अगर कहे कि क्या पता, यह पार्ट बदलने पर भी आपका वाहन ठीक होगा कि नहीं ? तो हम लोग उसके गैरेज में वाहन रिपेयर नहीं करवाते लेकिन आश्चर्य है कि सर्जन-डॉक्टर के द्वारा गारंटी न देने पर भी हम ऑपरेशन करवा लेते हैं ! जबकि उस ऑपरेशन की कोई आवश्यकता भी नहीं होती है डॉक्टरों ने तो बस पैसे कमाने के लिए एक बिजनेस चला दिया है उससे आप सावधान रहना ।
हमारे देश के डॉक्टर पैसे कमाने के लिए मरीजों को नोच डालते हैं वे ये भी नहीं देखते हैं कि मरीज कितना गरीब है, कितना मजबूर है, कितना असहाय है और इलाज करना जरूरी है कि नहीं । बस कोई मरीज व्यक्ति उनके पास आया नहीं की लूट शुरू कर देते हैं जबरन कई टेस्ट करवाये जाते हैं, उसमें उनका कमीशन होता है, फिर हॉस्पिटल में भर्ती भी कर देते हैं, ये दवाई लो वे दवाई लो ऐसे करके व्यक्ति को पूरा मरीज बना देते हैं और जिंदगी भर दवाई खाने को मजरबुर करे देते हैं, इन डॉक्टरों को लूट मचाने की आदत पड़ गई है उसपर लोग लगनी चाहिए ।
Report: 9 lakh cesarean delivery by hospitals for money |
आजकल डॉक्टरों द्वारा जरा-जरा सी बात में ऑपरेशन की सलाह दे दी जाती है । वाहन का मैकेनिक भी अगर कहे कि क्या पता, यह पार्ट बदलने पर भी आपका वाहन ठीक होगा कि नहीं ? तो हम लोग उसके गैरेज में वाहन रिपेयर नहीं करवाते लेकिन आश्चर्य है कि सर्जन-डॉक्टर के द्वारा गारंटी न देने पर भी हम ऑपरेशन करवा लेते हैं ! जबकि उस ऑपरेशन की कोई आवश्यकता भी नहीं होती है डॉक्टरों ने तो बस पैसे कमाने के लिए एक बिजनेस चला दिया है उससे आप सावधान रहना ।
एक ताजा रिपोर्ट ने देश के प्राइवेट अस्पतालों की पोल खोल कर रख दी है । अस्पतालों ने पैसे के लिए धड़ल्ले से नॉर्मल प्रसव को भी सिजेरियन सेक्शन (ऑपरेशन के जरिये) कर डाले । दरअसल, पिछले एक साल के दौरान निजी अस्पतालों में हुए 70 लाख प्रसवों में से 9 लाख प्रसव बगैर पूर्व योजना के सिजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) के जरिए हुए, जिन्हें रोका जा सकता था और ये ऑपरेशन केवल पैसे कमाने के लिए किए गए ।
भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) ने एक अध्ययन में यह कहा है । रिपोर्ट की मानें तो शिशुओं के चिकित्सीय रूप से अनुचित ऐसे जन्म से ना केवल लोगों की जेब पर बोझ पड़ता बल्कि इससे स्तनपान कराने में देरी हुई, शिशु का वजन कम हुआ, सांस लेने में तकलीफ हुई ।
इसके अलावा नवजातों को अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ा । आईआईएम-ए के फैकल्टी सदस्य अंबरीश डोंगरे और छात्र मितुल सुराना ने यह अध्ययन किया । अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएं प्रसव के लिए निजी अस्पतालों का चयन करती हैं, उनमें सरकारी अस्पतालों के मुकाबले बगैर पूर्व योजना के सी-सेक्शन से बच्चे को जन्म देने की आशंका 13.5 से 14 फीसदी अधिक होती है ।
ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2015-16 में हुए चौथे चरण पर आधारित हैं जिसमें पाया गया कि भारत में निजी अस्पतालों में 40.9 फीसदी प्रसव सी-सेक्शन के जरिए हुए जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर 11.9 प्रतिशत रही ।
अध्ययन में कहा गया है कि सी-सेक्शन के जरिए नवजातों का जन्म कराने के पीछे मुख्य वजह वित्तीय लाभ कमाना रहा । एनएफएचएस का हवाला देते हुए आईआईएम-ए के अध्ययन में कहा गया है कि किसी निजी अस्पताल में प्राकृतिक तरीके से प्रसव पर औसत खर्च 10,814 रुपये होता है जबकि सी-सेक्शन से खर्च 23,978 रुपये होता है ।
अध्ययन में कहा गया है, 'चिकित्सीय तौर पर स्पष्ट किया जाए तो सी-सेक्शन से प्रसव से मातृ और शिशु मृत्यु दर और बीमारी से बचाव होता है । लेकिन जब जरूरत ना हो तब सी-सेक्शन से प्रसव कराया जाए तो इससे मां और बच्चे दोनों पर काफी बोझ पड़ता है जो कि जेब पर पड़ने वाले बोझ से भी अधिक होता है ।
इसमें कहा गया है कि सी-सेक्शन से प्रसव की संख्या कम करने के लिए सरकार को ना केवल उपकरणों और कर्मचारियों के लिहाज से बल्कि अस्पताल के समय, सेवा प्रदाताओं की अनुपस्थिति और बर्ताव के लिहाज से भी सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं को मजबूत करना होगा । स्त्रोत : आजतक
गर्भवती महिला को प्रसव नहीं हो रहा है तो 10 ग्राम देशी गाय के ताजा गोबर का रस पिला दीजिये तुरंत प्रसव हो जाएगा, डॉक्टरों के पास जाने की जरूरत नही पड़ेगी।
अस्पतालों में डॉक्टरों खुल्लेआम लूट चला रहे हैं पैसे कमाने के लिए व्यक्ति का बिनजरूरी अनेक टेस्ट करवा देते हैं फिर भर्ती करवाते हैं और ऑपरेशन करके हमेशा के लिए मरीज बना देते हैं । सभी को ध्यान रखना चाहिए ऐसे लुटरे डॉक्टरों के चक्कर में न आएं ।
अंग्रेजी दवाइयों की गुलामी कब तक ?
सच्चा स्वास्थ्य यदि दवाइयों से मिलता तो कोई भी डॉक्टर, कैमिस्ट या उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता । स्वास्थ्य खरीदने से मिलता तो संसार में कोई भी धनवान रोगी नहीं रहता । स्वास्थ्य इंजेक्शनों, यंत्रों, चिकित्सालयों के विशाल भवनों और डॉक्टर की डिग्रियों से नहीं मिलता अपितु स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने से एवं संयमी जीवन जीने से मिलता है ।
अशुद्ध और अखाद्य भोजन, अनियमित रहन-सहन, संकुचित विचार तथा छल-कपट से भरा व्यवहार – ये विविध रोगों के स्रोत हैं । कोई भी दवाई इन बीमारियों का स्थायी इलाज नहीं कर सकती । थोड़े समय के लिए दवाई एक रोग को दबाकर, कुछ ही समय में दूसरा रोग उभार देती है । अतः अगर सर्वसाधारण जन इन दवाइयों की गुलामी से बचकर, अपना आहार शुद्ध, रहन-सहन नियमित, विचार उदार तथा व्यवहार प्रेममय बनायें रखें तो वे सदा स्वस्थ, सुखी, संतुष्ट एवं प्रसन्न बने रहेंगे । आदर्श आहार-विहार और विचार-व्यवहार ये चहुँमुखी सुख-समृद्धि की कुंजियाँ हैं ।
सर्दी-गर्मी सहन करने की शक्ति, काम एवं क्रोध को नियंत्रण में रखने की शक्ति, कठिन परिश्रम करने की योग्यता, स्फूर्ति, सहनशीलता, हँसमुखता, भूख बराबर लगना, शौच साफ आना और गहरी नींद – ये सच्चे स्वास्थ्य के प्रमुख लक्षण हैं ।
डॉक्टरी इलाज के जन्मदाता हेपोक्रेटस ने स्वस्थ जीवन के संबंध में एक सुन्दर बात कही है :-
पेट नरम, पैर गरम, सिर को रखो ठण्डा।
घर में आये रोग तो मारो उसको डण्डा।।
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