Monday, August 26, 2019

धर्म व शील की रक्षा के लिए रानी पद्मावती ने 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया

26 अगस्त 2019
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🚩भारत की नारियों का स्वरूप और पवित्रता ही वो पराकाष्ठा है जो संसार में हर सर को भारत की नारियों के सम्मान में झुका गया था। वो सर आज भी झुका है भले ही अपना ईमान और कलम एक ही परिवार में बेच चुके चाटुकार इतिहासकार कुछ भी लिख लें और कुछ भी कह लें पर क्रूरतम इस्लामिक आतंक से लड़ कर तन और धन के भूखे भेड़ियों से अंत समय में अपनी जान दे कर अपनी रक्षा करते हुए जो जौहर भारत की नारियों ने दिखाया था वो इतिहास सृष्टि के अनंत काल तक अमर हो चुका है जो अमिट भी रहेगा।

🚩जौहर की गाथाओं से भरे पृष्ठ भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। ऐसे अवसर एक नहीं, कई बार आये हैं, जब हिन्दू ललनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए ‘जय हर-जय हर’ कहते हुए हजारों की संख्या में सामूहिक अग्नि प्रवेश किया था। यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया। जौहर की गाथाओं में सर्वाधिक चर्चित प्रसंग चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने 26 अगस्त, 1303 को 16,000 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था तथा मलेक्ष खिलजी की परछाईं तक तो अपने शरीर पर नहीं पड़ने दिया था।

🚩माँ पद्मिनी(पद्मावती) सिंहलद्वीप के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री तथा चित्तौड़ ने राजा महारावल रतन सिंह की रानी थी। एक बार चित्तौड़ के चित्रकार चेतन राघव ने सिंहलद्वीप से लौटकर राजा रतनसिंह को माँ पद्मिनी एक सुंदर चित्र बनाकर दिया। इससे प्रेरित होकर राजा रतनसिंह सिंहलद्वीप गया और वहां स्वयंवर में विजयी होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाकर ले आया। इस प्रकार माँ पद्मिनी चित्तौड़ की रानी बन गयी। वो रानी जिनके चरित्र और शौर्य के आस पास भी सोचने की क्षमता ना रखने वाले तथाकथित फिल्मकारों ने उनके जीवन पर मनगढ़ंत कहानियां गढ़कर फिल्म बनाने का कुत्सित प्रयास किया था, जिसके विरोध में पूरा देश सड़कों पर आ गया था, जिसके कारण फिल्मकार को फिल्म में वास्तविक इतिहास दिखाना पड़ा था।

🚩माँ पद्मिनी की सुंदरता की ख्याति अलाउद्दीन खिलजी ने भी सुनी थी। वह उन्हें किसी भी तरह अपने हरम में डालना चाहता था। उसने इसके लिए चित्तौड़ के राजा के पास धमकी भरा संदेश भेजा, पर राव रतनसिंह ने उसे ठुकरा दिया। अब वह धोखे पर उतर आया। कहा जाता उसने रतनसिंह को कहा कि वह तो बस पद्मिनी को केवल एक बार देखना चाहता है, उन्हें बहन मानता है। रतनसिंह ने खून-खराबा टालने के लिए यह बात मान ली। एक दर्पण में रानी पद्मिनी का चेहरा अलाउद्दीन को दिखाया गया। वापसी पर रतनसिंह उसे छोड़ने द्वार पर आये। इसी समय उसके सैनिकों ने धोखे से रतनसिंह को बंदी बनाया और अपने शिविर में ले गये। अब यह शर्त रखी गयी कि यदि पद्मिनी अलाउद्दीन के पास आ जाए, तो रतनसिंह को छोड़ दिया जाएगा।

🚩यह समाचार पाते ही चित्तौड़ में हाहाकार मच गया; पर पद्मिनी ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कांटे से ही कांटा निकालने की योजना बनाई। अलाउद्दीन के पास समाचार भेजा गया कि पद्मिनी रानी हैं। अतः वह अकेले नहीं आएंगी। उनके साथ पालकियों में 800 सखियां और सेविकाएं भी आएंगी। अलाउद्दीन और उसके साथी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें पद्मिनी के साथ 800 हिन्दू युवतियां अपने आप ही मिल रही थीं। पर उधर पालकियों में पद्मिनी और उसकी सखियों के बदले महाबली गोरा तथा बादल के नेतृत्व में सशस्त्र हिन्दू वीर बैठाये गये। हर पालकी को चार कहारों ने उठा रखा था। वे भी सैनिक ही थे। पहली पालकी के मुगल शिविर में पहुंचते ही रतनसिंह को उसमें बैठाकर वापस भेज दिया गया और फिर सब योद्धा अपने शस्त्र निकालकर शत्रुओं पर टूट पड़े।

🚩कुछ ही देर में शत्रु शिविर में हजारों सैनिकों की लाशें बिछ गयीं। इससे बौखलाकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में राव रतनसिंह ने अनगिनत मुगलों को मार गिराया तथा अंत में बलिदान दे दिया। जब रानी पद्मिनी ने देखा कि राजा रतन सिंह ने बलिदान दे दिया तथा अब हिन्दुओं के जीतने की आशा नहीं है, तो उसने जौहर का निर्णय किया। रानी पद्मिनी ने संकल्प लिया कि वह जीते जी तो क्या मरने के बाद मलेक्ष खिलजी की परछाईं तक को अपने शरीर पर नहीं पड़ने देंगी। रानी और किले में उपस्थित सभी नारियों ने सम्पूर्ण श्रृंगार किया। हजारों बड़ी चिताएं सजाई गयीं।

🚩‘जय हर-जय हर’ का उद्घोष करते हुए सर्वप्रथम वीरांगना महारानी पद्मिनी ने चिता में छलांग लगाई और फिर क्रमशः सभी हिन्दू वीरांगनाएं यहां तक बच्चियां भी अग्नि प्रवेश कर गयीं। माँ पद्मिनी के अनेकानेक भारतीय वीरांगनाओं ने धर्मरक्षा के लिए हँसते हँसते अपना बलिदान दे दिया था। इसके बाद चित्तौड़ के सभी पुरुषों ने साका प्रदर्शन करने का निश्चय किया, जिसमें प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र तथा पगड़ी पहनकर तब तक लड़े जब तक वो सभी ख़त्म नहीं हो गये। इसके बाद खिलजी तथा उसकी सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उसको राख तथा जली हुई हड्डियों कला ढेर ही दिखाई दिया। इससे खिलजी दांत भींचकर रह गया।

🚩पवित्रता की उस चरम पराकाष्ठा, त्याग की उस सर्वोच्च प्रतिमूर्ति महारानी पद्मावती को आज उनके बलिदान अर्थात जौहर दिवस पर नमन  वन्दन और अभिनन्दन है।
🚩भारत की नारी महान है,धर्म और शील की रक्षा के लिए प्राण दे सकती है। पर आज की नारियां पाश्चात्य संस्कृति के पीछे अंधी दौड़ में अपनी महानता भूल गई है। लव जिहाद आदि में फस जाती है। भारत की नारियों को फिर से अपनी महानता को पहचानना चाहिए।
🚩लज्जावासो भूषणं शुद्धशीलं पादक्षेपो धर्ममार्गे च यस्या।
नित्यं पत्युः सेवनं मिष्टवाणी धन्या सा स्त्री पूतयत्येव पृथ्वीम्।।
🚩'जिस स्त्री का लज्जा ही वस्त्र तथा विशुद्ध भाव ही भूषण हो, धर्ममार्ग में जिसका प्रवेश हो, मधुर वाणी बोलने का जिसमें गुण हो वह पतिसेवा-परायण श्रेष्ठ नारी इस पृथ्वी को पवित्र करती है।' भगवान शंकर महर्षि गर्ग से कहते हैः 'जिस घर में सर्वगुणसंपन्ना नारी सुखपूर्वक निवास करती है, उस घर में लक्ष्मी निवास करती है। हे वत्स ! कोटि देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।'
🚩भारतीय नारी को ऐसी महानता अपनाकर समाज-देश और धर्म का नाम रोशन करना चाहिए।
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Friday, August 23, 2019

अनेक देशों मनाई जाती है जन्माष्टमी,मुस्लिम देश में होता है नेशनल हॉलीडे

🚩श्रीमद् भगवदगीता के चौथे अध्याय के सातवें एवं आठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने श्रीमुख से कहते हैं-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
🚩'हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधुजनों (भक्तों) की रक्षा करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भली भाँति स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।'

🚩श्रीमद् भागवत में भी आता है कि दुष्ट राक्षस जब राजाओं के रूप में पैदा होने लगे, प्रजा का शोषण करने लगे, भोगवासना-विषयवासना से ग्रस्त होकर दूसरों का शोषण करके भी इन्द्रिय-सुख और अहंकार के पोषण में जब उन राक्षसों का चित्त रम गया, तब उन आसुरी प्रकृति के अमानुषों को हटाने के लिए तथा सात्त्विक भक्तों को आनंद देने के लिए भगवान का अवतार हुआ।
🚩जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं।
🚩भारत समेत विश्व के कई कोनों में कृष्ण भक्त भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं। हालांकि आपको बता दें कि एक ऐसा भी मुस्लिम बहुल देश है जहां जन्माष्टमी के दिन देश में अधिकारिक छुट्टी होती है। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जन्माष्टमी के दिन नेशनल हॉलीडे होता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पुराने ढाका शहर के ढाकेश्वरी मंदिर में जन्माष्टमी बड़े धूम धाम से मनायी जाती है।
🚩ढाका में इस उत्सव की शुरुआत साल 1902 में हुई थी, लेकिन 1948 में ढाका पाकिस्तान का हिस्सा बनने के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि जब बांग्लादेश पाकिस्तान से आजाद हुआ तो साल 1989 से एक बार फिर यह उत्सव मनाया जाने लगा।
🚩आपको जानकर ये हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में ही 400 से अधिक भगवान कृष्ण के मंदिर हैं। वहीं भगवान कृष्ण को 108 अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।
🚩कैरेबियाई देशों में भी रहती है धूम । भारत के बाद जन्माष्टमी का सबसे बड़ा उत्सव कैरेबियाई राष्ट्रों में होता है। कैरेबियाई देश गुयाना, त्रिनानद एंड टोबागो, जमैका और सुरीनाम में जन्माष्टमी का बड़े पैमाने पर जश्न होता है।।।
🚩ऑस्ट्रेलिया में भी धूम-धाम से जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है ।
🚩निर्गुण, निराकार,  माया को वश करनेवाले, जीवमात्र के परम सुहृद प्रकट हुए, वह पावन दिन ‘जन्माष्टमी है ।
🚩भगवान श्री कृष्ण का साधु पुरुषों का उद्धार तथा दुष्कृत करनेवालों का विनाश करने के लिए अवतार होता है । तमाम परेशानियों के बीच रहकर भी श्रीकृष्ण जैसी मधुरता और चित्त की समता को  बनाये रखने का संदेश जन्माष्टमी देती है ।
🚩श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तब पूर्ण माना जायेगा जब हम उनके सिद्धांतों को जीवन में उतारेगें ।
🚩आज संकल्प करें कि ‘गीता के संदेश आत्मज्ञान के अमृत को हम जीवन मे लायेंगे और जगत में भी इस का प्रचार करेंगे ।
🚩जन्माष्टमी का व्रत करने से 1000 एकादशी व्रत करने का फल मिलता है और 100 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है ।
🚩जन्माष्टमी की रात्रि को जप करने से मंत्र सिद्धि मिलती है ।
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Thursday, August 22, 2019

जानिए भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर जन्माष्टमी के दिन क्यो अवतार लिया ?

22 अगस्त 2019
🚩पृथ्वी आक्रान्त होकर श्रीहरि से अपने त्राण के लिए प्रार्थना करती है । जो पृथ्वी इन आँखों से दिखती है वह पृथ्वी का आधिभौतिक स्वरूप है, किंतु कभी-कभी पृथ्वी नारी या गाय का रूप लेकर आती है वह पृथ्वी का आधिदैविक स्वरूप है ।
🚩पृथ्वी से कहा गयाः "इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें तुम पर बन गयी हैं, इससे तुम पर कितना सारा बोझ बढ़ गया ।"तब पृथ्वी ने कहाः "इन इमारतों का कोई बोझा नहीं लगता किंतु जब साधु-संतों और भगवान को भूलकर, सत्कर्मों को भूलकर, सज्जनों को तंग करने वाले विषय-विलासी लोग बढ़ जाते हैं, तब मुझ पर बोझ बढ़ जाता है।"

🚩जब-जब पृथ्वी पर इस प्रकार का बोझ बढ़ जाता है, तब-तब पृथ्वी अपना बोझ उतारने के लिए भगवान की शरण में जाती है । कंस आदि दुष्टों के पापकर्म बढ़ जाने पर भी, पापकर्मों के भार से बोझिल पृथ्वी देवताओं के साथ भगवान के पास गई और उसने श्रीहरि से प्रार्थना की, तब भगवान ने कहाः "हे देवताओं ! पृथ्वी के साथ तुम भी आये हो, धरती के भार को हल्का करने की तुम्हारी भी इच्छा है, अतः जाओ, तुम भी वृन्दावन में जाकर गोप-ग्वालों के रूप में अवतरित हो मेरी लीला में सहयोगी बनो । मैं भी समय पाकर #वसुदेव-देवकी के यहाँ अवतार लूँगा ।"
🚩वसुदेव-देवकी कोई साधारण मनुष्य नहीं थे । स्वायम्भुव मन्वंतर में वसुदे 'सुतपा' नाम के #प्रजापति और देवकी उनकी पत्नी 'पृश्नि' थीं । सृष्टि के विस्तार के लिए ब्रह्माजी की आज्ञा मिलने पर उन्होंने भगवान को पाने के लिये बड़ा तप किया था ।
🚩#समाज में जब शोषक लोग बढ़ गए, दीन-दुखियों को सताने वाले व चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों और दुर्जनों का पोषण करने वाले क्रूर राजा बढ़ गए, समाज त्राहिमाम पुकार उठा, सर्वत्र भय व आशंका का घोर अंधकार छा गया तब भाद्रपद मास (गुजरात-महाराष्ट्र में श्रावण मास) में कृष्ण पक्ष की उस अंधकारमयी अष्टमी, #रोहिणी_नक्षत्र को #कृष्णावतार हुआ । जिस दिन वह निर्गुण, निराकार, अच्युत, माया को वश करने वाले जीवमात्र के परम सुहृद प्रकट हुए वह आज का पावन दिन जन्माष्टमी कहलाता है।
🚩#श्रीमद्_भागवत में भी आता है कि दुष्ट राक्षस जब राजाओं के रूप में पैदा होने लगे, प्रजा का शोषण करने लगे, भोगवासना-विषयवासना से ग्रस्त होकर दूसरों का शोषण करके भी इन्द्रिय-सुख और अहंकार के पोषण में जब उन राक्षसों का चित्त रम गया, तब उन आसुरी प्रकृति के अमानुषों को हटाने के लिए तथा सात्त्विक भक्तों को आनंद देने के लिए भगवान का अवतार हुआ ।
🚩जब समाज में अव्यवस्था फैलने लगती है, सज्जन लोग पेट भरने में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं और दुष्ट लोग शराब-कबाब उड़ाते हैं, कंस, चाणूर, मुष्टिक जैसे दुष्ट बढ़ जाते है और निर्दोष गोप-बाल जैसे लोग अधिक सताए जाते हैं, तब उन सताए जाने वालों की संकल्प शक्ति और भावना शक्ति उत्कट होती है और सताने वालों के दुष्कर्मों का फल देने के लिए भगवान का अवतार होता है ।
🚩भगवान अवतरित हुए तब जेल के दरवाजे खुल गए । पहरेदारों को नींद आ गयी । रोकने-टोकने और विघ्न डालने वाले सब निद्राधीन हो गए । जन्म हुआ है जेल में, एकान्त में, वसुदेव-देवकी के यहाँ और लालन-पालन होता है नंद-यशोदा के यहाँ ।  श्रीकृष्ण का प्राकट्य देवकी के यहाँ हुआ है, परंतु पोषण यशोदा माँ के वहाँ होता है ।
🚩#श्रीकृष्ण के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण बात झलकती है कि बुझे दीयों को प्रकाश देने का कार्य और उलझे हुए दिलों को सुलझाने का काम तो वे करते ही हैं, साथ ही साथ इन कार्यों में आने वाले विघ्नों को, फिर चाहे वह मामा कंस हो या पूतना या शकटासुर-धेनकासुर-अघासुर-बकासुर हो फिर केशि हो, सबको श्रीकृष्ण किनारे लगा देते हैं ।
🚩श्रीमद् भगवदगीता के चौथे अध्याय के सातवें एवं आठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने श्रीमुख से कहते हैं-
🚩यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
🚩परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
1.परित्राणय साधुनाः साधु स्वभाव के लोगों का, सज्जन स्वभाववाले लोगों का रक्षण करना ।
2. विनाशाय च दुष्कृताम् जब समाज में बहुत स्वार्थी, तामसी, आसुरी प्रकृति के कुकर्मी लोग बढ़ जाते हैं तब उनकी लगाम खींचना।
3.धर्मसंस्थापनार्थायः धर्म की स्थापना करने के लिए अर्थात् अपने स्वजनों को, अपने भक्तों को तथा अपनी ओर आने वालों को अपने स्वरूप का साक्षात्कार हो सके इसका मार्गदर्शन करना।
🚩भगवान के अवतार के समय तो लोग लाभान्वित होते ही हैं किंतु भगवान का दिव्य विग्रह जब अन्तर्धान हो जाता है, उसके बाद भी भगवान के गुण, कर्म और लीलाओं का स्मरण करते-करते हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी मानव समाज लाभ उठाता रहता है ।
🚩व्रत से लाभ:-
जन्माष्टमी का व्रत करने से 1000 एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग, शोक, दूर हो जाते हैं।” धर्मराज सावित्री देवी को कहते हैं किः “जन्माष्टमी का व्रत सौ जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाने वाला है ।”
(ब्रह्मवैवर्त पुराण)
🚩अकाल मृत्यु व गर्भपात से करे रक्षा:-
ʹभविष्य पुराणʹ में लिखा है कि ʹजन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है । जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता । बच्चा ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय पर बालक का जन्म होता है।ʹ ( स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा साहित्य से )
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🚩व्रत-जागरण किस दिन करें?
निशीथकाल – 23 व 24 अगस्त, रात्रि 12-19 से 1-05 तक
इस बार 23 व 24 अगस्त दोनों ही दिन श्रीकृष्ण जयंती का पावन योग है । दोनों ही दिन उपवास मान्य है ।

लेकिन शास्त्रों में आता है कि ‘‘जन्माष्टमी में यदि एक कला (एक मिनट के आस-पास का समय) भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको श्रीकृष्ण जयंती नाम से कहा जाता है । उसमें प्रयत्नपूर्वक उपवास करना चाहिए ।’’
शास्त्रों में यह बात भी आती है कि ‘‘मुहूर्तमात्र (48 मिनट) भी रोहिणी नक्षत्र संयुक्त अष्टमी हो और फिर नवमी से युक्त हो, ऐसी जन्माष्टमी का व्रत कुल के करोड़ों लोगों को मुक्ति देनेवाला होता है ।’’
24 अगस्त को ऐसा योग होने से व्रत एवं जागरण 24 को करना ज्यादा लाभदायक है।
भगवान के मुख्य मंदिरों - द्वारका, मथुरा, नाथद्वारा, डाकोर आदि में भी जन्माष्टमी 24 को ही मनाया जायेगा ।
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