Monday, August 3, 2020

हिंदुओं के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन के इतिहास में भी घोटाला कर दिया, जानिए कैसे!

03 अगस्त 2020

🚩बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहनें अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदाहरण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब  चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।

🚩अब सेक्युलर घोटाला पढ़िए-

🚩हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।

🚩रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।

🚩मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-

🚩सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह ग्वालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, "सुल्तान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा।" यह विचार कर हुमायूँ ग्वालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।

🚩इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

🚩बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया। परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।
🚩इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठ्यक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।

🚩इस लेख को आज रक्षाबंधन के दिन इतना फैलाये कि इन सेक्युलर घोटालेबाजों तक यह अवश्य पहुंच जाये। -  डॉ विवेक आर्य

🚩रक्षा बंधन का इतिहास

🚩रक्षाबंधन का उल्लेख महाभारत के समय से ही मिलना शुरू हो गया था। यह उल्लेख मिलता है द्रौपदी और कृष्ण के बीच। श्री कृष्ण की ऊँगली से खून निकल रहा था। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का छोटा सा हिस्सा निकाल कर कृष्ण की कलाई में बाँध दिया। बदले में कृष्ण ने भी वादा किया कि वह हमेशा द्रौपदी की रक्षा करेंगे। यही कारण था कि जब कौरवों और पांडवों की भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी की मदद की।

🚩रक्षाबंधन का दूसरा बड़ा उल्लेख मिलता है भविष्य पुराण में। जिसके मुताबिक़ इंद्र देव को शुचि (इंद्राणी) ने राखी बाँधी थी। इसके अलावा विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि राजा बाली को लक्ष्मी ने राखी बाँधी थी। इस त्योहार से जुड़ी यमराज और यमुना की कहानी भी काफी प्रचलित है। इस तरह की न जाने कितनी और कहानियाँ हैं जो रक्षाबंधन का प्राचीन इतिहास साबित करती हैं।

🚩True Indology नाम के ट्विटर एकाउंट ने साफ़वी के इस दावे को खारिज करते हुए ट्वीट किया है। कुछ इस तरह रक्षाबंधन मनाया जाता है-

🚩श्रावण/ सावन माह की पूर्णिमा के दिन “श्रावणी उपाक्रम” किया जाता है। इस दिन सनातन धर्म के लोग अपना यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं। श्रावणी, शरीर को शुद्ध करने की प्रक्रिया भी कही जाती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षिका (रक्षा सूत्र) बांधती हैं। यहाँ तक कि आम लोग अपने प्रियजनों को भी सूत्र बाँधते हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करते हैं।

🚩इन बातों के अलावा रक्षा बंधन से संबंधित एक संस्कृत का श्लोक है-

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल।।

🚩इसका अर्थ यह है कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान से कहता है-

🚩जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बँधन में बाँधे गए थे अर्थात धर्म में प्रयुक्त किए गए थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बाँधता हूँ, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूँ। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

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Sunday, August 2, 2020

संस्कृत भाषा किसने खोजी?, हमारे जीवन में कितना उपयोगी है ?

02 अगस्त 2020

🚩संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि; महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है। इस वर्ष 03 अगस्त को संस्कृत भाषा दिवस भी है।


■ संस्कृत भाषा की खोज

🚩ब्रह्मांड में सर्वत्र गति है। गति के होने से ध्वनि प्रकट होती है । ध्वनि से शब्द परिलक्षित होते हैं और शब्दों से भाषा का निर्माण होता है। आज अनेकों भाषायें प्रचलित हैं । किन्तु इनका काल निश्चित है कोई सौ वर्ष, कोई पाँच सौ तो कोई हजार वर्ष पहले जन्मी। साथ ही इन भिन्न भिन्न भाषाओं का जब भी जन्म हुआ, उस समय अन्य भाषाओं का अस्तित्व था। अतः पूर्व से ही भाषा का ज्ञान होने के कारण एक नयी भाषा को जन्म देना अधिक कठिन कार्य नहीं है। किन्तु फिर भी साधारण मनुष्यों द्वारा साधारण रीति से बिना किसी वैज्ञानिक आधार के निर्माण की गयी सभी भाषाओं मे भाषागत दोष दिखते हैं । ये सभी भाषाएं पूर्ण शुद्धता,स्पष्टता एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। क्योंकि ये सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे की बातों को समझने के साधन मात्र के उद्देश्य से बिना किसी सूक्ष्म वैज्ञानिकीय चिंतन के बनाई गयी। किन्तु मनुष्य उत्पत्ति के आरंभिक काल में, धरती पर किसी भी भाषा का अस्तित्व न था। तो सोचिए किस प्रकार भाषा का निर्माण संभव हुआ होगा?

🚩शब्दों का आधार ध्वनि है, तब ध्वनि थी तो स्वाभाविक है शब्द भी थे। किन्तु व्यक्त नहीं हुये थे, अर्थात उनका ज्ञान नहीं था । उदाहरणार्थ कुछ लोग कहते है कि अग्नि का आविष्कार फलाने समय में हुआ। तो क्या उससे पहले अग्नि न थी महानुभावों? अग्नि तो धरती के जन्म से ही है किन्तु उसका ज्ञान निश्चित समय पर हुआ। इसी प्रकार शब्द व ध्वनि थे किन्तु उनका ज्ञान न था । तब उन प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य जीवन की आत्मिक एवं लौकिक उन्नति व विकास में शब्दो के महत्व और शब्दों की अमरता का गंभीर आकलन किया । उन्होंने एकाग्रचित्त हो ध्वानपूर्वक, बार बार मुख से अलग प्रकार की ध्वनियाँ उच्चारित की और ये जानने में प्रयासरत रहे कि मुख-विवर के किस सूक्ष्म अंग से ,कैसे और कहाँ से ध्वनि जन्म ले रही है। तत्पश्चात निरंतर अथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होने परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध,स्पष्ट एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही भाषा के रूप में चुना ।


🚩सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और सूर्य के चारों ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने और इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के आठ वसुओं से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं । जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है। ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः प्राचीनतम आर्य भाषा जो ब्रह्मांडीय संगीत थी उसका नाम “संस्कृत” पड़ा। संस्कृत – संस्+कृत् अर्थात श्वासों से निर्मित अथवा साँसों से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर-संप्रक से अभिव्यक्त हुई।

🚩कालांतर में पाणिनी ने नियमित व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान किया। पाणिनीय व्याकरण ही संस्कृत का प्राचीनतम व सर्वश्रेष्ठ व्याकरण है। दिव्य व दैवीय गुणों से युक्त, अतिपरिष्कृत, परमार्जित, सर्वाधिक व्यवस्थित, अलंकृत सौन्दर्य से युक्त , पूर्ण समृद्ध व सम्पन्न , पूर्णवैज्ञानिक देववाणी संस्कृत – मनुष्य की आत्मचेतना को जागृत करने वाली, सात्विकता में वृद्धि , बुद्धि व आत्मबलप्रदान करने वाली सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है। अन्य सभी भाषाओ में त्रुटि होती है पर इस भाषा में कोई त्रुटि नहीं है। इसके उच्चारण की शुद्धता को इतना सुरक्षित रखा गया कि सहस्त्रों वर्षों से लेकर आज तक वैदिक मन्त्रों की ध्वनियों व मात्राओं में कोई पाठभेद नहीं हुआ और ऐसा सिर्फ हम ही नहीं कह रहे बल्कि विश्व के आधुनिक विद्वानों और भाषाविदों ने भी एक स्वर में संस्कृत को पूर्णवैज्ञानिक एवं सर्वश्रेष्ठ माना है।

🚩संस्कृत की सर्वोत्तम शब्द-विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुये इसका अध्ययन आरंभ कराया है और भविष्य में भाषा-क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है। अतः अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाने वाले कुछ महाशय जो संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें कुँए से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता का एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए। नासा की वेबसाईट पर जाकर संस्कृत का महत्व क्या है वे पढ़ सकते है ।

🚩काफी शर्म की बात है कि भारत की भूमि पर ऐसे खरपतवार पैदा हो रहे हैं जिन्हें अमृतमयी वाणी संस्कृत में दोष व विदेशी भाषाओं में गुण ही गुण नजर आते हैं वो भी तब जब विदेशी भाषा वाले संस्कृत को सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं ।

🚩अतः जब हम अपने बच्चों को कई विषय पढ़ा सकते हैं तो संस्कृत पढ़ाने में संकोच नहीं करना चाहिए। देश विदेश में हुये कई शोधो के अनुसार संस्कृत मस्तिष्क को काफी तीव्र करती है जिससे अन्य भाषाओं व विषयों को समझने में काफी सरलता होती है , साथ ही यह सत्वगुण में वृद्धि करते हुये नैतिक बल व चरित्र को भी सात्विक बनाती है। अतः सभी को यथायोग्य संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।

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Saturday, August 1, 2020

रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाया जाता है? वैदिक राखी के अनेक फायदे हैं, जानिए घर पर कैसे बनाएं ?

01 अगस्त 2020

🚩भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन पर्व की बड़ी भारी महिमा है । इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा  लाभान्वित हुए हैं फिर चाहे वह वीर योद्धा अभिमन्यु हो या स्वयं देवराज इंद्र हो । इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है । रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है ।

🚩रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है । इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है । रक्षा बंधन का पर्व भाई और बहन का प्रेम प्रकट करने का दिव्य पर्व हैं।


🚩भविष्य पुराण में लिखा है कि
सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।'

🚩वैदिक राखी का महत्व :

🚩वैदिक राखी का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है । साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है ।

🚩कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र :

🚩दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा । इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है । रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें । आपकी राखी तैयार हो जाएगी ।
‘रक्षाबंधन के दिन वैदिक रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे'- ऐसा एक-दूसरे के प्रति सत्संकल्प करते हैं ।

🚩राखी महंगी है या सस्ती, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है लेकिन इस धागे के पीछे जितना निर्दोष प्रेम होता है, जितनी अधिक शुद्ध भावना होती है, जितना पवित्र संकल्प होता है, उतनी रक्षा होती है तथा उतना ही लाभ होता है। जो रक्षा की भावनाएँ धागे के साथ जुड़ी होती हैं, वे अवश्य फलदायी होती हैं, रक्षा करती हैं  इसलिए भी इसे रक्षाबंधन कहते होंगे।

🚩राखी का धागा तो 25-50 पैसे का भी हो सकता है किंतु धागे के साथ जो संकल्प किये जाते हैं वे अंतःकरण को तेजस्वी व पावन बनाते हैं। जैसे इन्द्र जब तेजहीन हो गये थे तो शचि ने उनमें प्राणबल मनोबल भरने के भाव का आरोपण कर दिया कि ʹʹजब तक मेरे द्वारा बँधा हुआ धागा आपके हाथ पर रहेगा, आपकी ही विजय होगी, आपकी रक्षा होगी तथा भगवान करेंगे कि आपका बाल तक बाँका न होगा।”

🚩शचि ने इन्द्र को राखी बाँधी तो इन्द्र में प्राणबल का विकास हुआ और इन्द्र ने युद्ध में विजय प्राप्त की। धागा तो छोटा सा होता है लेकिन बाँधने वाले का शुभ संकल्प और बँधवाने वाले का विश्वास काम कर जाता है।

🚩रक्षाबंधन पर बहन का भाई के प्रति ऐसा हो शुभ संकल्प ।

🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘जैसे शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये' ।  ‘मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें ।'
'मेरे भाई का मन अक्षय ज्ञान में, अक्षय शांति में, अक्षय आनंद में प्रवेश पाये । मेरे भाई को अक्षय सुख मिले, उसे अक्षय उपलब्धि प्राप्त हो । वर्षभर का प्रत्येक दिवस मेरे भाई के लिए सुमधुर हो । उसे प्रत्येक कार्य में सफलता मिले ।

🚩‘हमारे भाई भगवत्प्रेमी बनें ।' और भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बने ।' अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई व पड़ोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें । आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है । संकल्प में बड़ी शक्ति होती है । अतः आप ऐसा संकल्प करें कि हमारा चरित्र उज्ज्वल हो, आत्मस्वभाव प्रकटे ।

🚩राखी बांधने का मंत्र...
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे ।

🚩उपाकर्म संस्कार : इस दिन गृहस्थ ब्राह्मण व ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र को मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे शरीर पर छिड़कते, मर्दन करते व पान करते हैं, फिर जनेऊ बदलकर शास्त्रोक्त विधि से हवन करते हैं । इसे उपाकर्म कहा जाता है । इस दिन ऋषि उपाकर्म कराकर शिष्य को विद्याध्ययन कराना आरम्भ करते थे ।

🚩उत्सर्जन क्रिया : श्रावणी पूर्णिमा को सूर्य को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति तथा अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है और दही-सत्तू की आहुतियाँ दी जाती हैं । इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं ।

🚩आप भी इस पर्व को वैदिक रीति से मनाकर, शुभ संकल्प करके ओजस्वी तेजस्वी और चरित्रवान बन सकते हैं।

🚩स्त्रोत : https://rishiprasad.org/

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