Thursday, February 10, 2022

जिहाद फैलाने वाली कुरान की आयतें हटाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर

02 अप्रैल 2021

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शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी द्वारा उच्चतम न्यायालय में दी गई याचिका चर्चा में है। इसमें कुरान से 26 आयतें हटाने का निवेदन है। रिजवी के अनुसार इनका इस्तेमाल ‘आतंकवाद, हिंसा और जिहाद फैलाने में होता है।’ रिजवी के अनुसार, प्रोफेट मुहम्मद की मृत्यु के बाद पहले तीन खलीफा ने कुरान संकलित करने में कई आयतें जोड़ दीं, ताकि उन्हें ‘युद्ध द्वारा इस्लाम के विस्तार में सहूलियत हो।’ यह चिंता पहली बार या भारत में ही नहीं है। गत वर्षों में तुर्की, सऊदी अरब और इराक में भी कुरान को लेकर संशोधन-सुधार की मांगें उठी थीं। तुर्की के अधिकारियों को सूचना मिली कि सामान्य स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र कुरान पढ़कर इस्लाम से उदासीन होने लगते हैं। सऊदी अरब में सुझाव आया कि कुरान की कुछ बातों की जांच-परख कर समयानुकूल संशोधन किया जाए।



●•• कुरान का ‘मानवीय हस्तक्षेप’

सऊदी लेखक अहमद हाशिम के अनुसार प्रचलित कुरान खलीफा उस्मान द्वारा तैयार कराए जाने के कारण उसके निर्माण में ‘मानवीय हस्तक्षेप’ हो चुका है, अत: उसे अपरिवर्तनीय मानना अनुपयुक्त है। यह भी तथ्य है कि कुछ वर्ष पहले ऑस्ट्रिया में कुरान का सार्वजनिक रूप से वितरण प्रतिबंधित कर दिया गया था। स्विट्जरलैंड के सुरक्षा विभाग ने भी यही अनुशंसा की थी। चीन में मुसलमानों को कुरान से विमुख करने की कोशिश होती है। रूस की एक अदालत ने कुरान के एक विशेष अनुवाद को प्रतिबंधित किया था। अनेक जाने-माने मुस्लिम लेखक-लेखिकाओं ने भी वैसी चिंता जताई है, जैसी रिजवी ने प्रकट की है। यही काम अतीत में यूरोपीय नेताओं और विद्वानों द्वारा भी किया जा चुका है।

●•• इस्लामिक स्टेट के झंडे पर लिखे शब्द कुरान से लिए गए 

इराक में अमेरिकी कर्मचारी निक बर्ग का कत्ल करने वालों ने भी कुरान का हवाला दिया था। यूरोप में जिहादी प्रदर्शन करने वाले कुरान की आयतों का उल्लेख करते हैं। जुलाई 2016 में बांग्लादेश में जिहादियों ने 20 विदेशियों का गला रेत कर कत्ल किया था, यह कहते हुए कि जो कुरान नहीं जानते, वे कत्ल होने लायक हैं। इस्लामिक स्टेट के झंडे पर लिखे शब्द कुरान से लिए गए हैं। वह कुरान और सुन्ना के ही हिसाब से चलने का दावा करता है।

●•• भारत में कुरान को लेकर दो मुकदमे चल चुके हैं; पहला 1985 में, दूसरा 1986 में

भारत में कुरान को लेकर दो मुकदमे चल चुके हैं। 1985 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में चांदमल चोपड़ा ने एक याचिका दायर की थी। इसमें कुरान से कुछ उदाहरण का हवाला देकर हिंसा और सामाजिक विद्वेष फैलने की शिकायत की गई थी। उस याचिका को न्यायमूर्ति बिमल चंद्र बसाक ने यह कहकर खारिज किया था कि किसी समुदाय द्वारा पवित्र मानी जाने वाली किताब पर न्यायालय फैसला नहीं दे सकता। इस मुकदमे का विवरण सीताराम गोयल की पुस्तक ‘कलकत्ता कुरान पिटीशन’ में है। दूसरी बार, कुरान का मामला 1986 में दिल्ली में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जेड एस लोहाट की अदालत में आया। इंद्रसेन शर्मा नामक एक व्यक्ति ने कुरान की 24 आयतें उद्धृत करते हुए पोस्टर प्रकाशित किया। उसमें लिखा था कि ‘ऐसी अनेक आयतें कुरान में हैं जो दुश्मनी, विद्वेष, हिंसा और घृणा आदि को बढ़ावा देती हैं। अदालत से ऐसी आयतों को हटाने की मांग की गई। इस पोस्टर के प्रकाशन के बाद दिल्ली पुलिस ने इंद्रसेन को गिरफ्तार कर लिया। दंड संहिता की धारा 153 ए और 295 ए के तहत उनकी पेशी हुई। मजिस्ट्रेट ने पाया कि पोस्टर वाली आयतें एक बड़े इस्लामी प्रकाशन से हू-ब-हू उद्धृत थीं। मजिस्ट्रेट ने पोस्टर लगाने को सामान्य विचार माना, जिसे व्यक्त करना अपराधिक मामला नहीं। यह फैसला 31 जुलाई 1986 को दिया गया था। नोट करने की बात है कि इस फैसले के विरुद्ध कोई अपील नहीं हुई।

●•• तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में कुरान पर याचिका मुस्लिम नेता ने की दायर

अब तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में कुरान पर याचिका आई है। इस बार एक मुस्लिम नेता ने इसे दायर किया है। शिकायत वही है कि कुरान की कई आयतें सामाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाती हैं। पिछले दोनों मामलों में न्यायाधीशों ने कुरान के प्रति सम्मान दिखाते हुए भी ऐसे आरोप खारिज करने से इन्कार किया था। बीते तीन दशकों में दुनिया भर का भरपूर व्यावहारिक अनुभव भी जुड़ गया है। अनेक मुस्लिम देशों में भी वह चिंता व्यक्त हो रही है, जो रिजवी ने जताई है। इस वैश्विक अनुभव के मद्देनजर रिजवी के आरोप की पक्की परख हो सकती है।

●•• सदियों पुरानी किसी किताब को यथावत रहने का अधिकार है

हालांकि प्रसिद्ध पुस्तकों को संशोधित या प्रतिबंधित करना अनुचित है। जाने-माने चिंतक रामस्वरूप के अनुसार, ‘सदियों पुरानी किसी किताब को यथावत रहने का अधिकार है। जो किसी किताब से असहमत हैं, वे अपनी बात लिखें। नए नियम और प्रस्ताव दें, वह उपयुक्त होगा।’ अत: पुस्तकों की खुली समालोचना होनी चाहिए, ताकि अंधविश्वास और सत्य का अंतर साफ रहे। कुरान से कुछ आयतों को हटा या संशोधित कर देना जरूरी नहीं है। केवल यह मान लिया जाए कि ऐसी चीजें उसमें हैं, जो हानिकारक संदेश देती हैं। मुस्लिम समाज द्वारा यह स्वीकार कर लेना वही बड़ा कार्य होगा, जो अपनी पवित्र पुस्तकों के बारे में यहूदी, ईसाई लोग पहले कर चुके हैं।


●•• बाइबल में कई बातें हिंसात्मक हैं

इस पर अमेरिकी बिशप और हार्वर्ड में व्याख्याता रहे जॉन शेल्बी स्पॉन्ग ने ‘द सिंस ऑफ स्क्रिप्चर’ (पवित्र पुस्तक के पाप) नामक पुस्तक ही लिखी है। उन्होंने विश्लेषण किया कि बाइबल विशेषकर ओल्ड टेस्टामेंट में कई बातें हिंसात्मक हैं। यदि मुस्लिम भी ऐसी ही कोई पहल करें तो यह एक बड़ा रचनात्मक कदम होगा। इससे दुनिया समझेगी कि मुसलमान भी विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार कर सकते हैं। इससे उनका दूसरे समुदायों के साथ विश्वास का पुल बनना शुरू हो सकेगा।

- शंकर शरण साभार -दैनिक जागरण

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जानिये क्या शराब अधिक बिकने से देश की आय बढ़ती है या नुकसान होता है?

01 अप्रैल 2021

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दिल्ली सरकार ने शराब पीने की आयु आधिकारिक रूप से घटाकर 25 से 21 करने का निर्णय लिया है। देश के किसी भी प्रान्त में चाहे किसी की भी सरकार हो। शराब पीने को प्रोत्साहन देना गलत है। सरकार के लिए यह आय का प्रमुख साधन है परन्तु निष्पक्षता से अगर सोचा जाये तो यह आय नहीं बर्बादी का साधन है।  कुछ लोग कुतर्क करेंगे कि थोड़ी सी पीने में क्या हानि है। लेकिन आज जो थोड़ी सी पी रहा है। वही कल दिन-रात पीने वाला शराबी बनेगा। आरम्भ में चोर छोटी चोरी ही करता है, अपराधी छोटा अपराध ही करता है, अधिकारी छोटी रिश्वत ही लेता है। क्या इन सभी को आप प्रोत्साहन देते हैं? नहीं। तो फिर एक युवा को शराबी बनाने के लिए प्रोत्साहित क्यों किया जा रहा है?



शराब पीने से कितनी हानि?

1★ स्वास्थ्य हानि - शराब पीने से होने शारीरिक हानियों के विषय में सब परिचित है। अनेक लोग अपने जवानी में अस्पतालों के चक्कर शराब पीने से लीवर ख़राब होने के कारण लगाते देखे जाते हैं। अगर शराब जैसा नशा नहीं होता तो इन शराबियों के परिवार कितने सुखी होते। 

2★ सामाजिक हानि- जिस परिवार में शराबी आदमी होता है। उस परिवार का नाश हो जाता है। उसकी पत्नी अपना सम्मान खो देती है। उसकी संतान अनपढ़ या अशिक्षित रह जाती है। घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण आदि आम बात है। शराबी खुद तो बर्बाद होता ही है। उसकी संतान भी बर्बाद हो जाती है। इससे समाज की कितनी हानि होती है। अपराध कितने बढ़ते हैं। राष्ट्र के लिए उत्तम नागरिक बनने के स्थान पर अपराधी जन्म लेते हैं।  इस पर कोई चिंतन नहीं होता। शासक के लिए प्रजा संतान के समान होती है। क्या कोई अपनी संतान को ऐसे गर्त में केवल टैक्स के लिए धकेलता है? 

3★ सरकार की आय बढ़ाने का दावा सदा खोखला दिखता है। यह कुछ ऐसा है आप पहले गड्डा खोदते है। फिर उसमें लोगों को गिरने देते है। फिर उसे बचाने के लिए रस्सी, सीढ़ी और क्रेन खरीदते है। ताकि निकाल सके। शराबी व्यक्ति के कारण अपराध बढ़ते हैं। उसके लिए आपको पुलिस, कोर्ट, जेल आदि को विस्तार देना पड़ता है।  स्वास्थ्य सेवाओं की अतिरिक्त आवश्यकता पढ़ती है। उसके लिए आपको अस्पताल, डॉक्टर आदि रखने पड़ते है। सड़कों पर दुर्घटना अधिक होती है। उससे हानि होती है वो अलग।  इस सबसे क्या सरकार की आय बढ़ती हैं? नहीं अपितु खर्च बढ़ता है। यह साधारण सा तर्क किसी को क्यों समझ नहीं आता।  

4★ भ्रष्टाचार को बढ़ावा। इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता ही नहीं है। सरकारी या गैर सरकारी क्षेत्र में यह प्रचलित हो चला है कि जो काम विनती से नहीं बनता।  वह बोतल से बन जाता है। यह गिरावट का लक्षण है। क्या पहले शराबी बनाने और फिर भ्रष्टाचारी बनाने में परोक्ष रूप से यह सरकार का समर्थन नहीं हैं। 

5★ धार्मिक कारण। धर्म सदाचार रूपी आचरण का नाम है। शराबी आदमी सदाचारी नहीं अपितु दुराचारी हो जाता है। इसीलिए वेदों में किसी के नशे का निषेध है। 

वद मन्त्रों के उदाहरण देखिये-

1★ ऋग्वेद 10/5/6 के अनुसार वेद में मनुष्य को सात प्रकार की मर्यादा का पालन करने का निर्देश दिया गया हैं।   यह सात अमर्यादा  हैं- चोरी, व्यभिचार, ब्रह्म हत्या, गर्भपात, असत्य भाषण, बार बार बुरा कर्म करना और शराब पीना।

2★ ऋग्वेद 8/2/12  सुरापान से दुर्मद उत्पन्न होते हैं। सुरापान बल नाशक तथा बुद्धि कुण्ठित करने वाला है। 

3★ ऋग्वेद 7/86/6 के अनुसार सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता है। 

4★ अथर्ववेद 6/70/1 के अनुसार मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं।

5★ मनुस्मृति का सन्दर्भ देकर स्वामी दयानंद किसी भी प्रकार के नशे से बुद्धि का नाश होना लिखते हैं।

वर्जयेन्मधु मानसं च – मनु जैसे अनेक प्रकार के मद्य, गांजा, भांग, अफीम आदि – बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यम मद्कारी तदुच्यते।। जो-जो बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ हैं। उनका सेवन कभी न करें।

इस विषय में बहुत विस्तार से न लिखकर यही है कि शराब पर रोक की तुरंत आवश्यकता है। शराबबंदी पूरे देश में लागु होनी चाहिये। ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य बचाया जा सके। -डॉ. विवेक आर्य


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भारतवासी भूल गए खुद का नववर्ष,आ रहा है 13 अप्रैल को, ऐसे करें तैयारी

31 मार्च 2021

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हिन्दू धर्म पृथ्वी के उद्गम से ही है और सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है; परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दू ही इसे समझ नहीं पाते । पाश्चात्य कल्चर को योग्य और अधर्मी कृत्यों का अंधानुकरण करने में ही अपने आप को धन्य समझते हैं । 31 दिसंबर की रात में नववर्ष का स्वागत और 1 जनवरी को नववर्षारंभ दिन मनाने लगे हैं ।



अग्रेजी कालगणना ने इस वर्ष अपने 2021 वें वर्ष में पदार्पण किया है, जबकि हिन्दू कालगणना के अनुसार इस चैत्र शुक्ल 1 खर्व 15 निखर्व, 55 खर्व, 21 पद्म (अरब) 93 करोड़ 8 लाख 53 सहस्र 123 वां वर्ष आरंभ हो रहा है ।

(टिप्पणी : 1 खर्व अर्थात 10,00,00,00,000 वर्ष (हजार करोड़ या वर्ष) और 1 निखर्व अर्थात 1,00,00,00,00,000 वर्ष (दस हजार करोड़ वर्ष)

नव संवत्सर 2078 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , 13 अप्रैल 2021 से प्रारंभ हो रहा है यही हिन्दुओं का नया वर्ष है, इसे धूमधाम से जरूर मनाएं ।

चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा ही हिन्दुओं का वर्षारंभ दिवस है; क्योंकि यह सृष्टि की उत्पत्ति का पहला दिन है । इस दिन प्रजापति देवता की तरंगें पृथ्वी पर अधिक आती हैं ।

भारतीय नववर्ष की विशेषता   -

पराणों में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र सुदी प्रतिपदा रविवार था ।

चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है । इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है । हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है ।

पड़-पौधों में फूल, मंजरी ,कली इसी समय आना शुरू होते हैं , वातावरण में एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। जीवों में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है । इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था । भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है । जिसमें हिन्दू उपवास एवं पवित्र रहकर नववर्ष की शुरूआत करते हैं।

परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है । इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है । वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है । चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया ।

न शीत न ग्रीष्म । पूरा पावन काल । ऐसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं  श्रीराम रूप धारण कर उतर आए,  श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवें दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था । आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी । यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है । संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हिन्दुओं का नया साल विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है ।

कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता । पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत्र में ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी ।

चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास । मधु मास अर्थात आनंद बांटता वसंत का मास । यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में । सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है ,पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में ।

चारों ओर पकी फसल का दर्शन ,  आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है । खेतों में हलचल, फसलों की कटाई , हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई।

नई फसल घर में आने का समय भी यही है । इस समय प्रकृति में उष्णता बढ़ने लगती है , जिससे पेड़ -पौधे , जीव-जन्तु में नवजीवन आ जाता है । लोग इतने मदमस्त हो जाते हैं कि आनंद में मंगलमय गीत गुनगुनाने लगते हैं । गौरी और गणेश की पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान में की जाती है । चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है ,  मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि में होता है ।

सभी हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने का संकल्पं | इस वर्ष 13 अप्रैल 2021 को हिन्दू नववर्ष आ रहा है । सभी हिन्दू तैयारी शुरू कर दें ।

आज से ही अपने सभी सगे-संबंधी, परिचित और मित्रों को पत्र एवं सोशल मीडिया आदि द्वारा शुभ संदेश भेजना शुरू करें ।

सस्कृति रक्षा के लिए गांव-शहरों में नववर्ष निमित्त प्रभात फेरियां, झांकिया की सजावट वाली यात्राएं, पोस्टर लगाकर, स्थानिक केबल पर प्रसारण करवाकर नववर्ष का प्रचार-प्रसार जरूर करें ।


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हिंदुस्तानी इतिहास से सबक कब लेंगे? कही देरी न हो जाये...

30 मार्च 2021

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बगाल में तृणमूल कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता ने बयान दिया कि "हम जब 30 प्रतिश हो जायेंगे तो देश के चार पाकिस्तान बना देंगे।" कुछ लोग इसे मज़ाक समझ कर इस पर ध्यान नहीं देंगे। पर आज से ठीक 100 वर्ष पहले जब ऐसे बयान दिए जाते थे तब भी सेक्युलर नेता ऐसे ही ध्यान नहीं देते थे। परिणाम देश का 1947 में विभाजन। लाखों हिन्दुओं की हत्या, बलात्कार, जबरन धर्मान्तरण, नग्न कर हिन्दू नारियों के जुलूस और न जाने क्या क्या। पर हम भी कितने बड़े कुम्भकरण हैं कि अपने इतिहास से कुछ सीख नहीं लेते। बंगाल के हिन्दुओं को देखिये।  नोआखाली, डायरेक्ट एक्शन डे, 1947 और 1971 के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं सीखा। इन बयानों को सुनकर अनुसना करने वालों को डॉ पीटर हैमंड के लेखन को पढ़ना चाहिये।


 

2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।

जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।

जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।

जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी 'आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।

जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्यवाहियां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बतातें कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।

किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी के 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

                             

अत में एक ही सन्देश के साथ बात को विराम देते हैं..। इतिहास से सबक सीखने वाला समझदार कहलाता है।


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रेप केस में स्वामी चिन्मयानंद बरी, समय, पैसे, इज्जत वापिस कौन करेगा?

29 मार्च 2021

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जसे ही किसी हिन्दू साधु-संत अथवा हिंदुनिष्ठ पर कोई साजिश के तहत आरोप लगता है तो मीडिया उनकी तुंरत बदनामी शुरू कर देती है, अनेक झूठी कहानियां बनाई जाती है लेकिन जैसे ही वे निर्दोष बरी होते हैं तो मीडिया चुप हो जाती है।



दसरी ओर महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये गए कड़े कानून का पैसे ऐठने अथवा  बदला लेने की भावना अथवा साजिश के तहत कई बार झूठे केस निर्दोष पुरुषों पर लगाये जाते हैं, उसमे भी साधु-संतों की बदनामी करने के लिए ऐसी साजिशें बहुत चल रही हैं फिर मीडिया तुरन्त सक्रिय होकर झूठी कहानियां बनाकर उनको बदनाम करते हैं,पुलिस भी सक्रिय होकर तुंरत गिरफ्तार करती है और न्यायालय जेल भेज देती हैं पर समय पाकर वे निर्दोष बरी होते हैं तब जो उनके पैसे, इज्जत, समय जाता है उसकी भरपाई कौन करेगा?

आपको बता दें कि शाहजहांपुर लॉ कालेज की छात्रा से रेप मामले में फंसे पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद एमपी-एमएलए कोर्ट से बरी हो गए।

यपी के शाहजहांपुर स्थित लॉ कालेज की छात्रा ने चिन्मयानंदजी पर रेप का आरोप लगाया था। इस केस में शुक्रवार को एमपी-एमएलए कोर्ट ने फैसला सुना दिया। रेप मामले में फंसे चिन्मयानंद को एमपी-एमएलए कोर्ट से बरी कर दिया गया। वहीं, दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली छात्रा और उसके साथियों को भी कोर्ट ने बरी कर दिया।

आपको बता दें कि 2019 में शाहजहांपुर के स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय में पढ़ने वाली एलएलएम की छात्रा ने एक वीडियो में स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। इस कॉलेज को स्वामी चिन्मयानंदजी का ट्रस्ट चलाते है।

इस मामले में आरोपी स्वामी चिन्मयानंद की मुमुक्ष आश्रम से गिरफ्तारी हुई थी। एसआईटी ने यूपी पुलिस के साथ मिलकर सितंबर में चिन्मयानंदजी को आश्रम से गिरफ्तार किया था। स्त्रोत : आजतक

जब स्वामी चिन्मयानंदजी पर आरोप लगे थे तब मीडिया ने दिन-रात खबरे उनके खिलाफ दिखाई लेकिन जैसे ही वे निर्दोष बरी हो गए तो मीडिया ने किस कोने में छोटी सी खबर दिखाई बस, ये पहली बार ऐसा नहीं है इससे पहले भी ऐसा होता रहा हैं।

छात्रा से रेप मामले में चिन्मयानंदजी को कोर्ट ने निर्दोष बरी किया।

लकिन मीडिया ने उनको इतना बदनाम किया, उनको जेल भेजा गया, उनकी इज्जत, पैसे और समय की बर्बादी हुई उसकी भरपाई कौन करेगा?

बात दें कि जैसे स्वामी चिन्मयानंद निर्दोष बरी हुए वैसे ही राष्ट्र व सनातन धर्म के लिए कार्य करने व धर्मांतरण पर रोक लगाने वाले 85 वर्षीय संत आशारामजी बापू को साजिश के तहत फसाने के कई प्रमाण भी है फिर भी उनको 8 साल से जमानत नहीं मिलना कितना बड़ा अन्याय है जब वे ऊपरी कोर्ट से निर्दोष बरी होंगे तब उनका कीमती समय कौन लौटाएगा?

आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नही दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और कभी बाहर नहीं आ पाओगे पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।

https://youtu.be/YegncME19aU


डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कई बार खुलासा किया है कि बापू आशारामजी को धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने और लाखों हिन्दुओं की घरवापसी कराने के कारण षडयंत्र के तहत जेल भिजवाया गया है ।


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कमिकल रंग से होती है भयंकर हानि, घर में प्राकृतिक रंग ऐसे बनायें

28 मार्च 2021

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होली रंगों का त्यौहार है, हँसी-खुशी का त्यौहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन.... इस आधुनिक रूप से होली मनाने से बहुत नुकसान होता है ।



आपको हम रासायनिक रंगों से होने वाली हानियां और अपने घर में ही सस्ते में प्राकृतिक रंग किस प्रकार बना सकते हैं, उसके बारे में बताते है।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले रंग में लेड ऑक्साइड

पड़ता है जो गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में एल्युमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर का कारक होता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्लू (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) होता है जिससे भयंकर त्वचारोग होता है ।

5 - लाल रंग में मरक्युरी सल्फाइड होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है जिससे दमा, एलर्जी होती है ।

अब आपको घर में ही प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ बता रहे हैं जो आसानी से बनाकर उपयोग कर सकते हैं और मना सकते हैं एक स्वस्थ होली ।

https://youtu.be/2cvVkK5Lspc

कसरिया रंग - पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लाएं अथवा उबालकर होली का आनंद उठायें ।

यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है । इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है ।

सखा हरा रंग - मेंहदी का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें । आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है ।

सखा पीला रंग - हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छांव में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।

गीला पीला रंग - एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं । अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें ।

लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं । यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है । दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें ।

पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें ।

पीला रंग : (1) 2 चम्मच हल्दी चूर्ण 2 लीटर पानी में उबालें | (2) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें ।

जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें।

काला रंग : आँवले के चूर्ण को लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें ।

लाल रंग : (1) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना  मिलाकर 10 लीटर पानी में डाल दें | (2) 2 चम्मच लाल चंदन चूर्ण 1 लीटर पानी में उबालें ।

लाल गुलाल : सूखे लाल गुड़हल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें ।

हरा रंग : (1) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें । (2) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें ।

हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें ।

भरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें ।  स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद

आपको बता दें कि यदि पलाश का रंग आपको कहीं न मिलता हो तो अपने नजदीकी संत श्री आशारामजी आश्रम में संपर्क कर सकते हैं, उनके आश्रम में ये रंग  मात्र 05 रुपये में ही मिल जाता है। 079 61210730 पर संपर्क भी कर सकते हैं। यहाँ से ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं । http://www.ashramestore.com/single.php?id=767

रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। चंदन, गुलाबजल, टेसू (पलाश) के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए है । आप भी केमिकल रंगों को त्यागकर घर में ही प्राकृतिक रंग बनाकर होली खेले और स्वथ्य रहें ।

सभी देशवासियों से अनुरोध है कि आप

रंगों से होली न खेलें और न ही जानवरों जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैस आदि पर कोई रंग डाले क्योंकि रंग में केमिकल होता है। वो अपने आप को साफ़ करने के लिए अपने को जीभ से चाटते हैं और वो केमिकल उनके पेट में जाता है और बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं ।

होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी, वैदिक गानों से ही करनी चाहिए । फिल्मो के गानों से करने से हानि होती है । उससे भी बचें ।


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जानिए होली का प्राचीन इतिहास और साल भर स्वथ्य रहने के उपाय

27 मार्च 2021

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होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा गया है। इस साल 28 मार्च को होली है और 29 मार्च को धुलेंडी है ।



वदिक, प्राचीन एवं विश्वप्रिय उत्सव

यह होलिकोत्सव प्राकृतिक, प्राचीन व वैदिक उत्सव है । साथ ही यह आरोग्य, आनंद और आह्लाद प्रदायक उत्सव भी है, जो प्राणिमात्र के राग-द्वेष मिटाकर, दूरी मिटाकर हमें संदेश देता है कि हो... ली... अर्थात् जो हो गया सो हो गया ।

यह वैदिक उत्सव है । लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये । उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा... रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था ।

होली का प्राचीन इतिहास...

पृथ्वी, अप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वों की सहायतावल से देवता के तत्त्व को पृथ्वी पर प्रकट करने के लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वी पर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समय के प्रथम त्रेतायुग में पंचतत्त्वों में विष्णुतत्त्व प्रकट होने का समय आया । तब परमेश्वर द्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियोंको स्वप्नदृष्टांत में यज्ञ के बारे में ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञ की सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनि के मार्गदर्शनानुसार यज्ञ का आरंभ हुआ । मंत्रघोष के साथ सबने विष्णुतत्त्व का आवाहन किया । यज्ञ की ज्वालाओं के साथ यज्ञकुंड में विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होने लगा । उनमें भगदड़ मच गई । उन्हें अपने कष्ट का कारण समझ में नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूप से प्रकट हुए । ऋषि-मुनियों के साथ वहां उपस्थित सभी भक्तों को श्रीविष्णुजीके दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुग के प्रथम यज्ञ के स्मरणमें होली मनाई जाती है । होली के संदर्भ में शास्त्रों एवं पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।

परह्लाद की भक्ति के कारण होली परम्परा शुरू हुई:

पराचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यपु ने तपस्या करके भगवान ब्रह्माजीसे वरदान पा लिया कि, संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके । न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर । यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए ।

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा । हिरण्यकश्यपु के यहां प्रह्लाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ । प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी ।

हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे । प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपु ने उसे जान से मारने का निश्चय किया । उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन प्रभु-कृपा से वह बचता रहा ।

हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था । हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई ।

होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी । लेकिन परिणाम उल्टा ही हुआ । होलिका ही अग्नि में जलकर वहीं भस्म हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया । तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा ।

तत्पश्चात् हिरण्यकश्यपु को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से प्रगटे और संधिकाल में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यपु को मार डाला ।

रासायनिक रंगों से बचें...

पलाश के फूलों का रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लासित करना । सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है । लेकिन पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है । पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है ।

पलाश के रंग नहीं मिले तो अपने घर पर भी प्राकृतिक रंग बना सकते है नीचे लिंक पर देखें  https://youtu.be/fK9axxRpXWA


https://goo.gl/A5jYna

होली पर गौशालाओं को बनायें स्वावलंबी...

होली को लकड़ी से जलाने पर कार्बनडाई आक्साईड निकलता है जो वातावरण को अशुद्ध करता है और जनता का स्वास्थ्य खराब होता है लेकिन गाय के गोबर के कंडे जलाने पर ऑक्सीजन निकलता है जो वातावरण में शुद्धि लाता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है । वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के एक कंडे में 2 बूंद गाय का घी डालकर करे तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के कंडे से होली जलाने से वातावरण की शुद्धि होगी, जनता का स्वास्थ्य सुधरेगा, साथ-साथ में गाय माता और कंडे बनाने वाले गरीबों का भी पालन-पोषण होगा, पेड़ भी बच जायेंगे इसलिए आप अपने गांव शहरों में होली गाय के कंडे से ही जलाएं ।


परे साल स्वस्थ्य रहने के लिए क्या करें होली पर..??

1- होली के बाद 15-20 दिन तक बिना नमक का अथवा कम नमकवाला भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ।

2- इन दिनों में भुने हुए चने - ‘होला का सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है ।

3- एक महीना इन दिनों सुबह नीम के 20-25 कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खाने से व्यक्ति वर्षभर निरोग रहता है ।

4- होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए । नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले पाएं और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । होली पर नाचने, कूदने-फाँदने से मनुष्य स्वस्थ रहता है।

5 - लट्ठी-खेंच कार्यक्रम करना चाहिए, यह बलवर्धक है ।

6 - होली जले उसकी गर्मी का भी थोड़ा फायदा लेना, लावा का फायदा लेना ।

7 - मंत्र सिद्धि के लिए होली की रात्रि को (इसबार 28 मार्च की रात्रि को) भगवान नाम का जप अवश्य करें ।

हमारे ऋषि-मुनियों ने विविध त्यौहारों द्वारा ऐसी सुंदर व्यवस्था की जिससे हमारे जीवन में आनंद व उत्साह बना रहे । ( स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)


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