Friday, February 11, 2022

वायरस का महासंकट क्यों आया और इससे निपटने के क्या उपाय हैं?

28 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में चेचक, हैजा, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उनपर टीका, दवाईयां खोज कर निकालीं। इससे इन महामारियों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की ये कहानियां सुनने के पश्‍चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमें देवता-धर्म जैसी संकल्पना पिछड़ी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।



अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे हैं, अन्यथा आगामी काल में नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-19) नामक एक वायरस के कारण मानव द्वारा की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथड़े उड़ गए हैं।


मानव अपने द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण में जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई उपाय भी तो नहीं है।


यह प्रकृति ईश्‍वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्‍वर, विश्‍व का चालक है। यद्यपि हम ईश्‍वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्‍वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्‍व का यह संकट दूर करने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की शरण तो निश्‍चितरूप से जा सकते हैं। ईश्‍वर के सूक्ष्म अर्थात आखों से दिखाई न पड़नेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त करने के लिए प्रयास करें।


मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !


आज विश्‍व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार ही हैं। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वे प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने सामाजिक ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।


समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वे धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है। 


कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।


https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually


कोरोना महामारी से हम बच जाएं और आगे ऐसी आपदाएं न आयें इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नहीं तो आने वाले समय में भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


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कोरोना महामारी से भयभीत नहीं होना है, बल्कि ये उपाय करने होंगे...

27 अप्रैल 2021

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भारत में एक कालखंड में आयुर्वेद के साथ ही भारतीय ज्ञान-परंपरा की बहुत उपेक्षा की गई; परंतु भारतीय समाज में आज भी धर्माचरण से जुड़ीं कुछ पारंपरिक आदतें और पद्धतियां देखने को मिलती हैं। यदि सनातन हिन्दू धर्म द्वारा निर्देशित पद्धतियों के अनुसार तनिक भी आचरण करने से लाभ मिलता हो, तो संपूर्ण जीवनशैली को ही धर्माधिष्ठित बनाने का प्रयास किया जाए, तो उससे कितना लाभ मिलेगा?



हिन्दू धर्म में वातावरण शुद्धि हेतु अग्निहोत्र बताया गया है। इस अग्निहोत्र में परमाणु विकिरण के संकट को भी टालने का सामर्थ्य है। हिन्दू धर्म द्वारा बताई गई सभी बातें अनुभवजन्य हैं। उनका श्रद्धापूर्वक आचरण करनेवालों को उसका फल तो मिलता ही है। आजतक करोड़ों लोगों ने इसकी अनुभूति की है। भारतीय संस्कृति का प्रसार करने की, साथ ही विश्‍व को उसका महत्त्व विशद करने का यह एक अवसर भर है। कोरोना को एक हितकारी संकट मानकर भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए।


विकट स्थिति में क्या करें?


ऐसी स्थिति में साधना ही तारणहार 


अनेक भविष्यदृष्टा संतों ने आगामी काल में अनेक प्राकृतिक, साथ ही मनुष्यनिर्मित आपत्तियों का पहाड़ टूटने की भविष्यवाणी की है। ‘कोरोना’ का संक्रमण इसीकी एक झलक है। इस संकटकाल का आरंभ होते ही सभी उपलब्ध तंत्रों के वेंटिलेटर पर जाने की स्थिति बनी है। इसलिए आगे भी जब इससे अधिक संकट आएंगे, तब क्या स्थिति होगी- इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। किसे स्वीकार हो अथवा न हो; परंतु इस संकटकाल से पार होने हेतु केवल साधना ही तारणहार सिद्ध होगी, यह निश्‍चित है ! आजकल समाज में दिखाई देनेवाले संक्रामक रोग, महंगाई, युद्धजन्य स्थिति, बढ़ता अपराधीकरण- इनके तात्कालिक कारण प्रत्येक बार मिलेंगे ही; परंतु ‘कालचक्र’ ही इन सभी समस्याओं का वास्तविक मूल और उत्तर भी है ! स्थिर रहकर स्थिति का सामना करना संभव कर पाने हेतु, साथ ही मन की स्थिरता को अखंडित बनाए रखने हेतु साधना ही महत्त्वपूर्ण होती है। साधना का बल हो, तो उससे व्यक्ति का आत्मिक बल तो बढ़ता ही है; किंतु उसके साथ-साथ ईश्‍वर अथवा गुरु के प्रति श्रद्धा किसी भी संकट का सामना करने का बल प्रदान कर व्यक्ति को निर्भय बनाती है। हिन्दुओं के पुराणों में दी गई कथाएं भी यही संदेश देती हैं। हिरण्यकशिपु द्वारा भक्त प्रह्लाद को बिना किसी कारण उबलते तेल में डाला जाना, ऊंची पहाड़ी से फेंका जाना तो प्रह्लाद के लिए भयावह स्थिति ही थी; परंतु भक्त प्रह्लाद के ईश्‍वरस्मरण में संलिप्त रहने से उन्हें इस संकट का दंश नहीं झेलना पड़ा। अतः इसी प्रकार से हमारे लिए भी ईश्‍वरभक्ति बढ़ाना ही सभी समस्याओं का समाधान है।


कोरोना काल में अपनी इम्युनिटी कैसे स्ट्रॉंग करें?


1. साइट्रिक एसिड का लेवल maintain रखें। इसके लिए मौसमी, संतरा, नींबू, आंवला, कच्चे टमाटर का सेवन प्रतिदिन करें। प्वॉइंट 2 ग्राम साइट्रिक एसिड आपके शरीर में प्रतिदिन जाना चाहिए।


2.) घर से बाहर जाने से पहले और घर पर वापिस आने के बाद गर्म पानी में हल्दी, अजवाइन डालकर 8 से 10 मिनट तक भाप (स्टीम) लें।


3.) बाजारू ठंडे पेय पदार्थों का सेवन न करें। फ्रिज का पानी न पिएं। room temperature के अनुकूल पानी पियें। गर्म पानी में नींबू, अदरक व कच्ची हल्दी कूटकर डालें (अगर कच्ची हल्दी न हो तो आधा चम्मच हल्दी पाउडर लें)- ये पानी दिन में 2 बार सुबह-शाम पियें।


4.) दो से तीन दिन तक 2 कली लहसुन, छोटा अदरक का टुकड़ा दिन में 2 बार चबाचबा कर उसका रस लें।


5.) कच्ची हल्दी का टुकड़ा दिन में दो बार चबाचबा कर खाएं।


6.)  दिन में एक बार नींबू का रस नाक में 4 से 5 बूंद जरूर डालें।


7.) अगर साँस लेने में दिक्कत आ रही है तो हल्दी, अजवाइन और कपूर गर्म पानी में डालकर दिन में 1 से सवा घण्टे के अंतराल से भाप (स्टीम) लेते रहें।


आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें...


देशी गाय के गोबर के कंडे पर घी, कपूर आदि डालकर धूप करें जिससे वातावरण की शुद्धि होगी और हानिकारक बैक्टीरिया पनप नहीं पाएंगे।


तुलसी, नीम और गिलोय आदि का काढा भी जरूर पियें जिससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और कोरोना जैसे वायरस आप पर जल्दी से हमला नहीं कर पाएंगे।


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जानिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार क्यों लिया था ?

26 अप्रैल 2021

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हनुमानजी का अवतार त्रेतायुग में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6:03 बजे हुआ था। हनुमानजी भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान हैं।



इस दिन हनुमानजी का तारक एवं मारक तत्त्व अत्यधिक मात्रा में अर्थात अन्य दिनों की तुलना में एक हजार गुना अधिक कार्यरत होता है। इससे वातावरण की सात्त्विकता बढती है एवं रज-तम कणों का विघटन होता है। विघटन का अर्थ है- 'रज-तम की मात्रा अल्प होना।' इस दिन हनुमानजी की उपासना करनेवाले भक्तों को हनुमानजी के तत्त्व का अधिक लाभ होता है।


हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी तथा माता अंजना हैं। हनुमान जी को पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पवन देवता ने हनुमानजी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


हनुमानजी को बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि हनुमानजी का शरीर वज्र की तरह है।


पथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व (चिरंजीवी होने) का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।


हनुमानजी नाम कैसे रखा गया?


एक दिन हनुमानजी को आश्रम में छोड़कर अंजनी माता फल लाने के लिये  चली गईं। जब शिशु हनुमानजी को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवनदेव भी बहुत तेजी से चले। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से जलने नहीं दिया। जिस समय हनुमानजी सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की, "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"


राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई।


हनुमानजी की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दी। जिससे संसार का कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर,असुर, यक्ष,  किन्नर आदि ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्माजी उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छित हनुमानजी को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने भी वरदान दिया कि इनका  शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा कि मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।


इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी, जो पुनः जोड़ी गई। इसलिये उनको "हनुमान" नाम दिया गया। 


इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं, जैसे- बजरंगबली, मारुति, अंजनीसुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, बालाजी महाराज आदि। इस प्रकार हनुमानजी के 108 नाम हैं और हर नाम का मतलब उनके जीवन के अध्यायों का सार बताता है ।



हनुमानजी के ध्यान का मंत्र:

मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।


‘मन और वायु के समान जिनकी गति है, जो जितेन्द्रिय हैं, बुद्धिमानों में जो अग्रगण्य हैं, पवनपुत्र हैं, वानरों के नायक हैं, ऐसे श्रीरामभक्त हनुमान की शरण में मैं हूँ।


जिसको घर में कलह, क्लेश मिटाना हो, रोग या शारीरिक दुर्बलता मिटानी हो, वह नीचे की चौपाई की पुनरावृत्ति किया करे...

 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ||


चौपाई - अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।  (31)


यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई है जिसमें तुलसीदासजी लिखते हैं कि हनुमानजी अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं- ऐसा सीता माता ने उन्हें वरदान दिया है।

ये अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती हैं जिनकी बदौलत हनुमानजी ने असंभव से लगनेवाले काम आसानी से सम्पन्न ये थे।


आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों व नौ निधियों के बारे में विस्तार से बताते हैं।


आठ सिद्धियाँ :

हनुमानजी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-


1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।


इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।


2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।


जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।


इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।


3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।


गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया। पवनपुत्र हनुमानजी के भाई थे भीम क्योंक‍ि वह भी पवनपुत्र के बेटे थे ।


4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।


जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।


5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।


रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी की गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।


इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल तक प्राप्त कर लिया है।


7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।


ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।


8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।


वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।


नौ निधियां  :

हनुमानजी प्रसन्न होने पर जो नौ निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार हैं :-


1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।


2. महापद्म निधि : महापद्म निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।


3. नील निधि : नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेज से संयुक्त होता है। उसकी संपत्ति तीन पीढ़ी तक रहती है।


4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है और वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।


5. नन्द निधि : नन्द निधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है और वही कुल का आधार होता है।


6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।


7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है; वह अपनी संपत्तिा स्वयं उपभोग करता है ।


8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।


9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।



हनुमानजी का पराक्रम अवर्णनीय है। आज के आधुनिक युग में ईसाई मिशनरियां अपने स्कूलों में पढ़ाती हैं कि हनुमानजी भगवान नहीं थे, एक बंदर थे। बन्दर कहनेवाले पहले अपनी बुद्धि का इलाज कराएं। हनुुमानजी शिवजी का अवतार हैं। भगवान श्रीराम के कार्य में साथ देने (राक्षसों का नाश और धर्म की स्थापना करने) के लिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार धारण किया था।


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आशारामजी बापू जेल में क्यों हैं? सवाल आपका- जवाब हमारा...

25 अप्रैल 2021

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पिछले 8 साल से 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। आजतक उनको 1 दिन की भी जमानत नहीं दी गई, जबकि बड़े बड़े अपराधियों व आतंकवादियों को भी जमानत मिल जाती है; फिर आशारामजी बापू को क्यों नहीं मिली- आज आपको सच्चाई बताते हैं।



आइये सबसे पहले नजर डालते हैं- उन सेवाकार्यों पर जिनकी शुरूआत  आशारामजी बापू द्वारा हुई:


1.) स्वदेशी अभियान आंदोलन-

इसके अंतर्गत आशारामजी बापू आयुर्वेद विज्ञान को लोगों की जीवनशैली में वापस लाए और उन्होंने गरीबों को उच्च गुणवत्तावाली और सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाई।


2.) 50 से भी ज्यादा सनातन धर्म शैली के गुरुकुलों की शुरूआत की जिससे छोटी उम्र में ही बच्चे वैदिक संस्कृति से जुड़ने लगे। इनके गुरुकुल इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि सभी स्थानीय कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश में गिरावट आने लगी ।


3.) 10,000 से ज्यादा गायों को कत्लखाने जाने से बचाकर स्व-निर्भर गौशालाओं की शुरूआत की, जो बिना किसी बाहरी दान के चलाये जाते हैं; जहाँ गौ सेवा अंतरराष्ट्रीय मानकों पर की जा रही है। इनके गौमूत्र से बने अर्क, गौवटी और गोधूप इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि अन्य बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे 100 से ज्यादा स्थानीय आदिवासी परिवारों को रोजगार मिलने लगा।


4.) जो लोग उनके सत्संग को सुनते और उनके संपर्क में आने लगे, वे गर्व से कहने लगे कि हिंदू होने पर वे अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानते हैं।


5.) आशारामजी बापू ने कई संस्थाओं का मार्गदर्शक बनकर उन्हें भी प्रेरित किया और खुद भी जनजातीय क्षेत्रों में बहुत-से सेवा और रोजगार के अवसरों का नेतृत्व किया और सनातन धर्म के मार्ग को खोनेवाले लाखों धर्मान्तरित हिंदुओं की घरवापसी करवाई । 


6.) आशारामजी बापू के प्रत्येक आश्रम (कुल 450 आश्रम) को एक आत्मनिर्भर ईकाई के रूप में बनाया गया ताकि उन्हें किसीके सामने धनराशि के लिए प्रार्थना न करनी पड़े और वे आसानी से व्यसनमुक्ति अभियान, मातृपितृ पूजन दिवस, संस्कार सिंचन अभियान, वैदिक मंत्र विज्ञान प्रचार, संस्कृति रक्षक सम्मेलन, संकीर्तन यात्राएं और सत्संग जैसे सेवाकार्यों द्वारा समाज में जागृति लायें।


7.) किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी युवा होते हैं। आशारामजी बापू ने युवाधन सुरक्षा अभियान (दिव्य प्रेरणा प्रकाश) द्वारा युवाओं को संयमित जीवन का महत्व समझाया। आज आशारामजी बापू के कारण आधुनिक अश्लीलता भरे वातावरण में भी करोड़ों युवा ब्रह्मचर्य का महत्व समझ रहे हैं और अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने लगे हैं।


8.) आशारामजी बापू ने देश विदेश में 17,000 से भी अधिक बाल संस्कार केंद्र शुरू करवाये जहां बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करने, स्मृति क्षमता में वृद्धि करने और जीवन को ऊर्जावान बनाये जाने की शिक्षा दी जाने लगी; उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम जैसे सद्गुणों से बच्चे विद्यार्थी जीवन से ही उन्नत, विचारवान और संस्कृति प्रेमी बनने लगे।


9.) हमारी खोई हुई गरिमा और संस्कृति की महिमा को जनमानस के हृदय में पुनः स्थापित करने के लिए समाज में वैश्विक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया गया, जैसे- 14 फरवरी वेलेंटाइन डे को "मातृपितृ पूजन दिवस" और  25 दिसंबर क्रिसमस डे को "तुलसी पूजन दिवस"।


आपको बता दें कि आशारामजी बापू द्वारा 50 सालों से समाज उत्थान के कार्य किए जा रहे हैं। उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़नेवाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। लाखों लोगों को धर्मान्तरण से बचाया व लाखों धर्मान्तरित  हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई। गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो, दक्षिणा पाओ" अभियान चलाया जाता है; गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवनोपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है।

 

पराकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ आशारामजी बापू के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन भंडार, कम्बल, कपड़े का वितरण व स्वास्थ्य शिविर के आयोजन) होते हैं। इसके अलावा आशारामजी बापू ने महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनियों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।


World's Religions' Parliament, शिकागो अमेरिका में 1993 में स्वामी विवेकानन्दजी के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे आशारामजी बापू हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का परचम लहराया। 


इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म- जाति - पंथ -सम्प्रदाय-राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं ।


इन सभी गतिविधियों को आम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा शुरू नहीं किया जा सकता है। यह केवल महान संत द्वारा किया जा सकता है जो आत्मनिर्भर और दिव्य हैं। ऐसे संतों से लाभान्वित होना, न होना- ये समाज पर निर्भर करता है। विकल्प आपका है क्योंकि आत्मरामी संतों को आपसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है और न ही उनको कोई घाटा है पर उनकी उपेक्षा करने से समाज को आनेवाले समय में बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।


तो अब सवाल यह है कि पिछले पचास सालों से देश और संस्कृति की सेवा करनेवाले आशारामजी बापू को जेल क्यों भेजा गया?


सब जानते हैं कि भारत को 1947 में आजादी मिली पर पर्दे के पीछे का सत्य कोई नहीं जानता। केजीबी जासूस के मुताबिक़ अंतर्राष्ट्रीय मिशनरियों के पास भारत की संस्कृति को ध्वस्त करने का लक्ष्य है। असल में वे दुनिया पर शासन करना चाहते हैं पर किसी भी देश को नष्ट करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को नष्ट करना होता है और इसलिए वे उस देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए देश के प्रति वफादार नेताओं और संतों पर हमला करते हैं।


जसे सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव दीक्षित और संत लक्ष्मणानंदजी आदि-आदि की कैसे मृत्यु हुई, आजतक पता नहीं चला।


अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि आशारामजी बापू अभी भी जेल में क्यों हैं?

कुछ लोग कहते हैं- कांग्रेस (विशेष रूप से सोनिया गांधी का षड्यंत्र) आशारामजी बापू पर बनाये गये मामले के पीछे छिपी हुई है लेकिन अब जब मोदी सत्ता में हैं, तब भी आशारामजी बापू जेल में हैं।


वास्तविक सत्य यह है: यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश है। बड़े शक्तिशाली लोग जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों और मिशनरियों से जुड़े हुए हैं, उन्होंने पूरी भारतीय मीडिया को खरीद रखा है। यहां भारतीय मीडिया पूरी तरह से दूषित है और खरीदने में मुश्किल नहीं है, वे भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता को खरीदते हैं। वे हमेशा किसी भी चेहरे के पीछे काम करते हैं, जैसे उन्होंने सोनिया गांधी के चेहरे के पीछे किया था। भारतीय लोगों को मीडिया द्वारा आसानी से बेवकूफ़ बना दिया जाता है और बाकि भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी केस को लंबा बनाते हैं।

जब हम आशारामजी बापू पर की गई FIR पढ़ते हैं तो सबकुछ स्पष्ट होता है। 

5 दिन पहले जोधपुर मामले की दिल्ली में FIR ! 

और लडकी शाहजहांपुर (यूपी ) से है। बाकि FIR में कोई बलात्कार का जिक्र नहीं है, लेकिन मीडिया ब्रेकिंग न्यूज 24X7 में "रेप" शब्द बोलता है। क्यूं ???


अगर देश को बचाना चाहते हैं तो भारतीयों को एकजुट होना चाहिए। निर्दोष संत की रिहाई के लिए आगे आना चाहिए।


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अप्रैल 25, जिस दिन सत्य और मानवता ने न्यायालय में दम तोड़ा

24 अप्रैल 2021

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परम सत्य है कि कानून का दुरुपयोग चरम सीमा पर है। हिन्दू सन्तों को झूठे मुकदमों में फंसाना और मीडिया द्वारा बदनाम करवाना फैशन बन गया है।



25 अप्रैल 2018 को जोधपुर सेशन कोर्ट का एक फैसला आया जिससे सारी मानवता शर्मसार हुई। एक लड़की की झूठी गवाही के चलते देशहित, समाजहित और प्राणिमात्र के हित में जिन्होंने अपने जीवन के 55 साल दे दिए, जिनके आश्रम में आज भी सैकड़ों महिलाएं संयमी जीवन व्यतीत कर रही हैं और करोड़ों महिला समर्थक जिनके लिए सड़कों पर उतरीं, ऐसे संत आशाराम बापूजी को उम्रकैद और शरद व शिल्पी को 20-20 साल की सजा सुनाई गई। 


अगर ऐसे ही हिन्दू संस्कृतिरक्षक संतों पर अत्याचार होता रहा और हिन्दू मूकदर्शक बन सब देखता रहा तो आनेवाले समय में हिन्दू संस्कृति का नामोनिशान नहीं रहेगा।


अब आईये, आपको इस झूठे केस के मुख्य पहलुओं से अवगत करायें। आप सबसे अनुरोध है कि इस केस को समझने के लिए आप अपनी बुद्धि का उपयोग जरूर कीजियेगा तभी आपके सामने सारी परतें खुलती नजर आएंगी।


19 अगस्त 2013 की मध्यरात्रि 2:45 को दिल्ली के कमला मार्किट पुलिस थाने में जोधपुर (राजस्थान) में हुई घटना की शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) के परिवार द्वारा Zero FIR दर्ज होती है। आपको लगता है कि भारत देश की पुलिस व्यवस्था इतनी अच्छी है, इतनी मददगार है कि जोधपुर (राजस्थान) की घटना, उत्तर प्रदेश की लड़की और उसकी FIR दर्ज करेगी दिल्ली में??


पिछले 7 सालों से दीपक चौरसिया पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस के लिए गुरुग्राम के एक माता-पिता की चपलें घिस गईं, कई हिन्दू संगठन FIR करवाने के लिए आगे आये पर आज तक पुलिस ने दीपक चौरसिया के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।


ऐसे प्रशासन से ये उम्मीद की जा सकती है कि वो इतनी आसानी से कहीं का केस और कहीं की लड़की की FIR इतनी आसानी से दर्ज कर लेगी??


अच्छा आगे देखिए...


फिर FIR की Video Recording जो Zero FIR में अनिवार्य प्रावधान है वो संदेहास्पद परिस्थितियों में गायब कर दी गई या मिटा दी गई। संबंधित पुलिस अधिकारी भी अपने बयान में इस बात की पुष्टि करती है कि वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी।

वीडियो रिकॉर्डिंग का कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर पेश न होना क्या किसी षड़यंत्र की तरफ इशारा तो नहीं??


आगे बढ़ते हैं- कोर्ट में खुद लड़की, उसकी माँ और उसके पिता ने गवाही दी कि आशारामजी बापू ने 15 अगस्त 2013 की रात को जोधपुर के मणाई गांव में हरिओम कृषि फार्म में अपने कमरे में लड़की को बुलाकर 60 से 90 मिनट तक लड़की के साथ छेड़छाड़ की। लड़की ने अपने बयान में कहा कि मैं जोर से चिल्लाई और रोती रही। उसकी माँ ने अपने बयान में कहा कि वो कमरे के बाहर बैठी थी। लेकिन बाहर बैठी माँ को लड़की के चिल्लाने और रोने की आवाज नहीं आई रात के सन्नाटे में। क्या ऐसा संभव है? 


दूसरी ओर कोर्ट में पेश हुए बचाव पक्ष के 5 गवाहों ने और लड़की के पक्ष के 2 गवाहों ने अपने बयानों में कहा कि आशारामजी बापू ने उस रात पहले सत्संग किया फिर सगाई समारोह के निमित भगवान झूलेलाल की झांकी निकाली गई जो रात 11:45 तक चली; उस समय के कई फोटो भी न्यायालय के सामने 2014 से हैं। मदनसिंह जो वहाँ चौकीदार था, उसने भी गवाही दी कि उस रात बापू अपनी कुटिया में रात 12:00 बजे आये। आखिर क्यों जज साहब ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज किया ???


चारुल अरोड़ा, मेघा शर्मा (लड़की की दोस्त), कुमारी प्रिया सिंह, कुमारी रीना, कुमारी विद्या (वार्डन) ने कोर्ट में गवाही दी कि लड़की 15 अगस्त 2013 को बालिग थी और उसका चाल चलन ठीक नहीं था पर कोर्ट के लिए ये पांचों लड़कियां झूठी थीं और वो अकेली सती सावित्री हो गयी।


राहुल के सचान, महेंद्र चावला ने बापू के खिलाफ गवाही दी पर योगेश भाटी, जिज्ञासा भावसार, अंग्रेज़ सिंह (J&K Police ASI) ने कोर्ट में हुए अपने बयान में कहा कि अमृत प्रजापति, कर्मवीर सिंह (लड़की का पिता), राहुल के सचान, महेंद्र चावला ने योग वेदांत सेवा समिति, अहमदाबाद को Fax करके 50 करोड़ की फिरौती मांगी थी, जिसमें ये भी कहा कि अगर 50 करोड़ नहीं दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और वो कभी बाहर नहीं आ पाएंगे, पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।


शिल्पा अग्रवाल जो कि Psychologist हैं, उन्होंने बापूजी का कई बार इंटरव्यू लिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि बापू का मन, बुद्धि और आत्मा एकाग्र है। उनकी भगवान में गहरी आस्था है और मानवता की सेवा करने की सुदृढ़ इच्छाशक्ति है, वो किसी से दुष्कर्म के विषय में सोच भी नहीं सकते... करने की तो बात ही अलग है। उनकी रिपोर्ट भी कोर्ट के सामने होने के बावजूद उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।


लड़की की उम्र के संबंध में कई ऐसे दस्तावेज बचाव पक्ष द्वारा साबित करवाए गए (जैसे- राशन कार्ड, पोषाहार रजिस्टर प्रति, शिशु पंजीकरण, टीकाकरण रजिस्टर में प्रविष्टियां, सर्वे रजिस्टर आदि) जिनमें लड़की बालिग साबित हो रही है,

उन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करके एक ऐसे ( Matriculation Certificate) सर्टिफिकेट के आधार पर बापू आशारामजी को सजा सुनाई गई जिसमें लड़की के वकील ने खुद 311 की एप्लीकेशन लगाकर कहा था कि हम इसे साबित नहीं करवा पाए हैं।


POCSO Act और Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act 2000 में सजा सुनाना कहाँ का न्याय है?


जिन 3 धाराओं में बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा सुनाई अब उनके बारे में बात करते हैं:

भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 370 (4) जो कि Trafficking of Persons के अपराध से संबंधित है। 9 अगस्त 2013 को लड़की का पिता खुद छुट्टी का आवेदन पत्र देकर लड़की को अपने साथ घर ले जाता है (आवेदन पत्र चार्जशीट में संलग्न है); 9 तारीख के बाद से लड़की अपने माता-पिता की कस्टडी में रही, तब कैसे आसारामजी बापू ने उसका अपहरण या Trafficking किया ???


भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 (2) (f)  जो Relative, Guardian, Teacher द्वारा बलात्कार करने से संबंधित है; पर बलात्कार हुआ ही नहीं है, लड़की ने खुद FIR में बलात्कार का जिक्र नहीं किया और न ही Medical Report  में छेड़छाड़ तक की पुष्टि हुई है। फिर भी आशारामजी बापू सजा के हकदार हैं।


वाह री, न्याय व्यवस्था!

अजब तेरे खेल !!

निर्दोषों को भेजती जेल!

अपराधियों को देती बेल !!


हिन्दू संतों को कानून के दुरुपयोग से प्रताड़ित करना और निचली अदालत में दोषी साबित होना कोई नई बात नहीं। 

साध्वी प्रज्ञा, जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्यजी, स्वामी असीमानंदजी, कर्नल पुरोहित, केशवानन्दजी महाराज को निचली अदालत ने दोषी ही करार दिया था पर वो ऊपरी अदालत से बरी होकर आए।

राष्ट्र, सनातन धर्म व समाज सेवा में 55 वर्षों से रत संत आशारामजी बापू भी निर्दोष बरी होंगे- ऐसी जनता बता रही है।


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कोरोना वायरस खत्म करने का एक अमोघ साधन...

23 अप्रैल 2021

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कोरोना वायरस का प्रकोप हुआ है तबसे मीडिया, सोशल मीडिया में उसीकी खबरें चलाई जाती है। लेकिन क्या कोरोना वायरस से भी अनंतगुना शक्तिशाली ईश्वर नहीं है? कोरोना से सावधानी रखनी जरूरी है लेकिन 24 घन्टे वही खबर दिखाकर लोगों को भयभीत किया जाता है उसकी जगह सृष्टिकर्ता ईश्वर की खबरें दिखाई जाएं और ईश्वर के नाम का गुणगान किया जाए, प्रार्थनाएं की जायें तो बहुत लाभ होगा और कोरोना रूपी राक्षस का भी नाश होगा।



भगवान सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान हैं, समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान आत्मा हैं। उनकी लीला अमोघ है। उनकी शक्ति और उनका पराक्रम अनन्त है।


🚩महर्षि व्यासजी ने 'श्रीमद्भागवत' के माहात्म्य तथा  प्रथम स्कंध के प्रथम अध्याय के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रुप में भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति इस प्रकार से की हैः


सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः।।


'सच्चिदानंद भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक – इन तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।'

(श्रीमद्भागवत मा. 1.1)


★ भगवान की प्रार्थना में कितना बल है ये जान लीजिए...


वह परमात्मा कैसा समर्थ है! वह ‘कर्तुं अकर्तुं अन्यथाकर्तुं समर्थः’ है। असम्भव भी उसके लिए सम्भव है।


1970 की एक घटना अमेरिका के विज्ञान जगत में चिरस्मरणीय रहेगी।

अमेरिका ने 11 अप्रैल, 1970 को अपोलो-13 नामक अंतिरक्षयान चन्द्रमा पर भेजा। दो दिन बाद वह चन्द्रमा पर पहुँचा और जैसे ही कार्यरत हुआ कि उसके प्रथम युनिट ऑडीसी (सी.एस.एम.) के ऑक्सीजन की टंकी में विद्युत तार में स्पार्किंग होने के कारण अचानक विस्फोट हुआ जिससे युनिट में ऑक्सीजन खत्म हो गयी और विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी।


उस युनिट में तीन अंतरिक्षयात्री थेः जेम्स ए. लोवेल, जॉन एल. स्वीगर्ट और फ्रेड वोलेस हेईज। इन अंतरिक्षयात्रियों ने विस्फोट होने पर सी.एस.एम. युनिट की सब प्रणालियाँ बंद कर दीं एवं वे तीनों उस युनिट को छोड़कर एक्वेरियस (एल.एम.) युनिट में चले गये।


अब असीम अंतरिक्ष में केवल एल.एम. युनिट ही उनके लिए लाइफ बोट के समान था। परंतु बाहर की प्रचंड गर्मी से रक्षा करने के लिए उस युनिट में गर्मी रक्षा कवच नहीं था। अतः पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटने में उसका उपयोग कर सकना सम्भव नहीं था।

पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पृथ्वी पर वापस लौटने में अभी चार दिन बाकी थे। इतना लम्बा समय चले उतना ऑक्सीजन एवं पानी का संग्रह नहीं बचा था। इसके अतिरिक्त इस युनिट के अंदर बर्फ की तरह जमा दे ऐसा ठंडा वातावरण एवं अत्यधिक कार्बन डाईऑक्साइड था। जीवन बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

अंतरिक्षयात्री पृथ्वी के नियंत्रणकक्ष के निरंतर सम्पर्क में थे। उन्होंने कहाः “अंतरिक्षयान में धमाका हुआ है… अब हम गये…”

लाखों मील ऊँचाई पर अंतरिक्ष में मानवीय सहायता पहुँचाना सम्भव नहीं था। अंतरिक्षयान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से भी ऊपर था। इस विकट परिस्थिति में सब निःसहाय हो गये। कोई मानवीय ताकत अंतरिक्षयात्रियों को सहायता पहुँचा सके- यह सम्भव नहीं था।

नीचे नियंत्रण कक्ष से कहा गयाः

“अब हम तो कुछ नहीं कर सकते। हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं। जिसके हाथों में यह सारी सृष्टि है उस ईश्वर से हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं... May God help you! We too shall pray to God. God will help you.” और देशवासियों ने भी प्रार्थना की।

युवान अंतरिक्षयात्रियों ने हिम्मत की। उन्होंने ईश्वर के भरोसे पर एक साहस किया। चंद्र पर अवरोहण करने के लिए एल.एम. युनिट के जिस इन्जन का उपयोग करना था उस इन्जन की गति एवं दिशा बदलकर एवं स्वयं गर्मी-रक्षक कवचरहित उस एल.एम. युनिट में बैठकर अपोलो – 13 को पृथ्वी की ओर मोड़ दिया। …और आश्चर्य ! तमाम जीवनघातक जोखिमों से पार होकर अंतरिक्षयान ने सही सलामत 17 अप्रैल, 1970 के दिन प्रशान्त महासागर में सफल अवरोहण किया।


उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बाद में वर्णन करते हुए कहाः “अंतरिक्ष में लाखों मील दूर से एवं एल.एम. जैसे गर्मी-रक्षक कवच से रहित युनिट में बैठकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करना और प्रचण्ड गर्मी से बच जाना, हम तीनों का जीवित रहना असम्भव था… किसी भी मनुष्य का जीवित रहना असम्भव था। यह तो आप सबकी प्रार्थना ने काम किया है एवं अदृश्य सत्ता ने ही हमें जीवनदान दिया है।”

सष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाय लेकिन जब अदृश्य सत्ता किसी की रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है। ऐसे तो कई उदाहरण हैं।


★ प्रार्थना का प्रभाव


सन् 1956 में मद्रास इलाके में अकाल पड़ा। पीने का पानी मिलना भी दुर्लभ हो गया।


वहाँ का तालाब 'रेड स्टोन लेक' भी सूख गया। लोग त्राहिमाम् पुकार उठे। उस समय के मुख्यमंत्री श्री राजगोपालाचारी ने धार्मिक जनता से अपील की कि 'सभी लोग दरिया के किनारे एकत्रित होकर प्रार्थना करें।' सभी समुद्र तट पर एकत्रित हुए। किसी ने जप किया तो किसी ने गीता का पाठ, किसी ने रामायण की चौपाइयाँ गुंजायी तो किसी ने अपनी भावना के अनुसार अपने इष्टदेव से प्रार्थना की। मुख्यमंत्री ने सच्चे हृदय से, गदगद कंठ से वरुणदेव, इन्द्रदेव और सबमें बसे हुए आदिनारायण विष्णुदेव की प्रार्थना की। लोग प्रार्थना करके शाम को घर पहुँचे। वर्षा का मौसम तो कब का बीत चुका था। बारिश का कोई नामोनिशान नहीं दिखाई दे रहा था। 'आकाश मे बादल तो रोज आते और चले जाते हैं।'– ऐसा सोचते-सोचते सब लोग सो गये। रात को दो बजे मूसलाधार बरसात ऐसी बरसी, ऐसी बरसी कि 'रेड स्टोन लेक' पानी से छलक उठा। बारिश तो चलती ही रही। यहाँ तक कि मद्रास सरकार को शहर की सड़कों पर नावें चलानी पड़ीं।


दढ़ विश्वास, शुद्ध भाव, भगवन्नाम, भगवत्प्रार्थना छोटे-से-छोटे व्यक्ति को भी उन्नत करने में सक्षम है।


आज से हमें कोरोना रूपी राक्षस से सावधान रहना है पर भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। हम सर्वसमर्थ ईश्वर का नाम लेंगे, उनकी चर्चा, उनका ध्यान और उनकी प्रार्थना करेंगे तो कोरोना तो दूर होगा, साथ में हमारी चिंताएं, विध्न-बाधायें दूर होंगी और देश में सुंदर वातावरण बनेगा। मीडिया के बंधुओं से भी अपील है कि टीआरपी के लिए कोरोना की अधिक खबरें नहीं चलाकर ईश्वर के सामर्थ्यवाली खबरें चलाकर देश में सुखमय वातावरण बनाने में सहयोग देना चाहिए।


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ईश्वर और हिंदू संस्कृति की उपेक्षा करनेवाले सब समझ गए...

22 अप्रैल 2021

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सनातन हिंदू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है पर हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए अनेक षडयंत्र चले और चल रहे हैं; साथ ही हिंदू संस्कृति, साधु-संत एवं देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया जाने लगा था, दूसरी बात दुनियाभर में काफी लोग नास्तिक बन गए थे और ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते थे। ये लोग अपने को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे और पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने लगे थे, लेकिन वर्तमान समय में कोरोना वायरस ने एक झटके में बता दिया कि सृष्टिकर्ता ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है।



पहले...


■ जब हिन्दू एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहे थे तो दुनिया उनपर हंस रही थी।


■ जब हिन्दू हाथ पैर धोकर घर में घुसते था तो दुनिया उनपर हंसती थी।


■ जब हिन्दू गाय माता आदि पशुओं की पूजा कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू पीपल, तुलसी और जंगलों को पूज रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू मुख्यतः शाकाहार पर बल दे रहे थे तब पूरी दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू योग, प्राणायाम कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिंदू शास्त्र और साधु-संतों के बताये अनुसार चल रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू ध्यान-भजन , पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करते थे तब दुनिया हंसती थी।


लकिन... ???


अब कोई हिंदू पर नही हंस रहा, बल्कि सब यही अपना रहे हैं।


सच ही कहा गया है सनातन हिन्दू धर्म की जो महानता है वह किसी भी पंथ-मजहब में नहीं है। हिंदू धर्म एक जीवन पद्धति भी है; अभी भी इस बात को जितना जल्दी समझ लें तो अच्छा है।


सबकुछ पालनकर्ता परब्रह्म परमात्मा ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है, क्योंकि यही संस्कृति हमारा जीवन उन्नत, बेहतरीन और सुरक्षित रख सकती है बाकी पाश्चात्य संस्कृति में कोई दम नहीं है। वे हमें सिर्फ चिंता, बीमारियां ही दे सकती है। इसलिए हमें अपनी मूल जड़ सनातन संस्कृति की ओर शीघ्र लौटना चाहिए, तभी सुरक्षित रहेंगे।


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