28 अप्रैल 2021
azaadbharat.org
आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में चेचक, हैजा, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उनपर टीका, दवाईयां खोज कर निकालीं। इससे इन महामारियों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की ये कहानियां सुनने के पश्चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमें देवता-धर्म जैसी संकल्पना पिछड़ी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।
अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे हैं, अन्यथा आगामी काल में नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-19) नामक एक वायरस के कारण मानव द्वारा की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथड़े उड़ गए हैं।
मानव अपने द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण में जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई उपाय भी तो नहीं है।
यह प्रकृति ईश्वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्वर, विश्व का चालक है। यद्यपि हम ईश्वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्व का यह संकट दूर करने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण तो निश्चितरूप से जा सकते हैं। ईश्वर के सूक्ष्म अर्थात आखों से दिखाई न पड़नेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त करने के लिए प्रयास करें।
मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !
आज विश्व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार ही हैं। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वे प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने सामाजिक ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।
समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वे धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है।
कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।
https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually
कोरोना महामारी से हम बच जाएं और आगे ऐसी आपदाएं न आयें इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नहीं तो आने वाले समय में भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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