06 मई 2021
azaadbharat.org
हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है, वे 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। बुधवार को उनका अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने पर जोधपुर में महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया गया उसके बाद काफी नागरिक और संगठन उनकी तुरंत रिहाई की मांग करने लगे हैं।
जनता का कहना है कि सेशन कोर्ट का निर्णय अंतिम निर्णय नहीं होता है, निचली अदालत का फैसला ही अंतिम मानकर किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं मान सकते हैं। निचली कोर्ट के निर्णय माननीय हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बदले हैं और आरोपियों को निर्दोष बरी किये हैं। सेशन कोर्ट का ही सही निर्णय माना जाता तो फिर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ही क्यों की गयी?
सशन कोर्ट के फैसले को सही मानकर पिछले 8 साल से ऐसे महान संत को कारावास में रखा है। किसी न किसी कारणवश हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही। इस दौरान इस भीषण महामारी में एक ऐसे संत जिनमें करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास है, अगर उनको कुछ हो जाएगा तो क्या न्यायालय अथवा सरकार जवाब दे पाएगी? और क्या ऐसे महान संत की कमी पूरी कर पाएगी? जब ऊपरी कोर्ट उन्हें निर्दोष रिहा करेगी तो उनका अनमोल समय वापस लौटा पाएगी?
अगर हिंदू संत आशाराम बापू के तथाकथित अपराध को सही माना जा रहा है तो उनके द्वारा पिछले 57 सालों से समाज, देश, व धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए किये जा रहे सेवाकार्यों पर नजर डाली जाए तो उसका पलड़ा कई गुना भारी है। उसको कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है?
मकेश खन्ना के नामवाले ट्वीटर हैन्डल से एक ट्वीट किया गया- उसमें पूछा गया कि क्या सरकारें और न्यायालय केवल हिन्दू साधू संतों पर ही कानून की सख्ती की हेकड़ी झाड़ते फिरते हैं?
जैसी सख्ती आशाराम बापू पर दिखाई, क्या कभी किसी मौलाना या पादरी पर दिखाई? नहीं न, जबकि आशाराम बापू के निर्दोषता के कई सबूत हैं।
पर अल्पसंख्यकों को खुश रखने के लिए हिन्दू हमेशा बली का बकरा बना है।
https://twitter.com/TheMukeshK_/status/1389535875281743879?s=19
हिन्दू युवा वाहिनी ने भी आवाज उठाई
हिन्दू युवा वाहिनी ने अपना एक पत्र जारी करके बताया कि वृद्ध हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू को बुधवार देर रात कोरोना संक्रमण के चलते जेल प्रशासन ने जोधपुर के निचले स्तर के महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया है, जबकि वहाँ AIIMS अस्पताल भी सुचारु रूप से चल रहा है, जो कि हर प्रकार के आधुनिक उपकरणों एवं सुविधाओं से युक्त है। क्या AIIMS अस्पताल सिर्फ राजनेताओं, उनके परिवार और उनकी सिफ़ारिश से आने वाले मरीज़ों के लिए ही बनाए गये हैं? एक मामूली अस्पताल में जोधपुर प्रशासन द्वारा विश्व विख्यात हिन्दू संत को इलाज के लिए रखा जाना किसी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है।
हिन्दू युवा वाहिनी एक सामाजिक एवं धार्मिक संगठन होने के नाते अनुरोध करता है कि इस विकट परिस्थिति में मरीज़ के साथ प्रशासन ज़ोर ज़बरदस्ती ना करे एवं उनके अनुरूप ही उपचार कुशल डॉक्टरों की देख-रेख में AIIMS या उसके समकक्ष आयुर्वेदिक अस्पताल में करवाया जाए।
यदि चिकित्सकों को लगता है कि उनके अंदर कोरोना के गंभीर लक्षण नहीं हैं, तो वयोवृद्ध हिन्दू संत को उनके निजी आश्रम में क्वारंटाइन की व्यवस्था कर के स्वास्थ्य लाभ लेने दिया जाए। इस महामारी के समय में मानवता को सर्वोपरि रखते हुए लाखों लोगों के संत के स्वस्थ होने के लिए जिस भी व्यवस्था की ज़रूरत हो उनको पूरा किया जाए। जैसा कि हिन्दू युवा वाहिनी के संज्ञान में है, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में भी कहा है कि वृद्ध हिन्दू संत का उपचार AIIMS के माध्यम से ही करवाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पूर्णत : पालन होना चाहिए अन्यथा यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना होगी।
आपको बता दें कि बापू आशारामजी को साजिश के तहत फंसाने के कई प्रमाण भी मिले हैं और उनके राष्ट्र, संस्कृति व समाज उत्थान के कार्य को देखते हुए तथा उनकी उम्र का ख्याल रखते हुए उनको जमानत तो मिलनी ही चाहिए- ऐसी जनता की मांग है।
जनता ने ये भी बताया कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को न्याय लेने का हक है। 85 वर्षीय वयोवृद्ध भारतीय संत हैं, उनको भी न्याय लेने का हक है। कोरोना की दूसरी कातिल लहर चल रही है। बापू आशारामजी का स्वास्थ्य भी बिगड़ता रहता है तो उचित इलाज के लिए उनको पेरोल अथवा जमानत मिलनी चाहिए, उसके लिए सरकार और न्यायालय को उचित व्यवस्था करनी चाहिए- यही समय की मांग है।
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