Thursday, February 24, 2022

अमेरिका में वर्ल्ड पार्लियामेंट में दो संतों ने सनातन धर्म का लहराया है परचम

04 जुलाई 2021

azaadbharat.org


सवामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में 11 सितंबर 1893 को आयोजित विश्व धर्म परिषद में जो भाषण दिया था उसकी प्रतिध्वनि युगों-युगों तक सुनाई देती रहेगी।

https://youtu.be/wmswegtRqus



हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने के लिए वर्ल्ड रिलीजियस पार्लियामेंट (विश्व धर्मपरिषद) शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 को हिंदू संत आशारामजी बापू ने किया था।


लकिन दुर्भाग्य है कि जिन संतों को "भारत रत्न" की उपाधि से अलंकृत करना चाहिए उन्हें ईसाई मिशनरियों के इशारे पर राजनीति के तहत झूठे आरोपों द्वारा जेल में भेजा जाता है और विदेशी फण्ड से चलनेवाली भारतीय मीडिया द्वारा उन्हें बदनाम कराया जाता है।


सवामी विवेकानंद ने जब हिंदुओं की घरवापसी शुरू की और पादरियों का विरोध शुरू किया तब ईसाई मिशनरियों की कठपुतली बने वीरचंद गांधी द्वारा अखबारों में उनके लिए गन्दा-गंदा लिखा गया। स्वामी विवेकानंदजी पर स्त्री लंपट, चरित्रहीन, विलासी युवान- इस तरह के अनेक आरोप लगाए गए। उनके हयाती काल में उन्हें इतना परेशान किया गया, उनका इतना कुप्रचार किया गया कि उनके गुरुजी की समाधि के लिये एक गज जमीन तक उन्हें नहीं मिली थी। पर अब पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंदजी व उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का जय-जयकार करती है।


जब वे धरती से चले गए, अर्थात् इतिहास के पन्नों पर जब उनकी महिमा आयी तब लोग उनको इतना आदर - सम्मान देते हैं पर उनके हयाती काल में उनके साथ दुष्टों ने कैसा व्यवहार किया...!!


सावधान!! क्या हम भी ऐसा व्यवहार हयात संतों के साथ तो नहीं कर रहे...??


बता दें कि आज भी यही सिलसिला चल रहा है। मल्टीनेशनल कंपनियों को भारी घाटा होने के कारण ही आशारामजी बापू षड़यंत्र के तहत फंसाये गए हैं; क्योंकि उनके 8 करोड़ भक्त बीड़ी, सिगरेट, दारू, चाय, कॉफी, सॉफ्ट कोल्डड्रिंक आदि नहीं पीते हैं, वेलेंटाइन डे आदि नहीं मनाते जिससे विदेशी कंपनियों को अरबों-खरबों का घाटा हो रहा था। उन्होंने लाखों हिन्दुओं की घरवापसी कराई, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की शिक्षा दी और आदिवासी क्षेत्रों में जाकर मकान, पैसे, जीवन उपयोगी सामग्री वितरित की इसलिए ईसाई मिशनरियों ने और विदेशी कंपनियों ने मिलकर मीडिया में बदनाम करवाया और राजनीतिकारों से मिलकर झूठे केस में फंसाया।


फकीरी स्वभाव के संत आशारामजी बापू 8 वर्ष से कष्टदायी जेल में हैं। इसके बावजूद उन्होंने समता का साथ नहीं छोड़ा है। 8-10 करोड़ साधकों का बल होने के बाद भी कभी उसका दुरुपयोग नहीं किया, हमेशा शांति का संदेश देके शासन-प्रशासन को सहयोग दिया। जेल में रहकर भी हमेशा अपने भक्तों को समता, धीरज और अहिंसा का संदेश भेजते रहे। जहर उगलनेवाले टीवी चैनलों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। बापू नहीं चाहते कि उनके भक्त उनके लिए कष्ट सहें, कानून को हाथ में लेकर कोई भी गलत कदम उठायें। वे हमेशा कहते रहते हैं: ‘‘सबका मंगल, सबका भला हो।’’ वे स्वयं कष्ट सहकर मुस्कराते हैं और अपने साधकों को कहते हैं:

"मुस्कुराकर गम का जहर जिनको पीना आ गया।

यह हकीकत है कि जहाँ में उनको जीना आ गया।।’’

बापू हर परिस्थिति में सम रहने का जो उपदेश देते हैं, वह उनके स्वयं के जीवन में, व्यवहार में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।


आज हर वह व्यक्ति पीड़ित है, जिसे अपने देश, धर्म और संस्कृति तथा इनके रक्षक संतों से प्यार है। आज दुःखद बात यह है कि देश के इतने बड़े संत, जिन्होंने विश्व धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद के बाद भारत का प्रतिनिधित्व किया और भारतीय संस्कृति की महानता का डंका बजाया तथा पूरे विश्व को प्रेम और भाईचारा सिखाया, उनको 8 वर्ष से जेल में रखा गया है। इसे अन्याय की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?


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