11 मार्च 2021
azaadbharat.org
यरोपीय देश हिन्दू धर्म की महानता को उजागर कर रहे हैं, पर यदि हमारे भारत देश में ऐसे होता, तो सेक्युलरवादी इस पर बवाल खड़ा कर इसका विरोध करते !
भगवान शिव की पूजा धार्मिक नजरिए से महत्वपूर्ण तो है ही, विज्ञान में भी इसकी अहमियत है। ऑस्ट्रियन मूल के अमेरिकन भौतिकी वैज्ञानिक और दार्शनिक फ्रिटजॉफ कैपरा ने शिवजी के स्वरूप नटराज के तांडव नृत्य को परमाणु की उत्पत्ति और विनाश से जोड़ा है। कैपरा ने 1972 में प्रकाशित अपनी किताब ‘मेन करेंट्स ऑफ मॉडर्न थॉट’ में ‘द डांस ऑफ शिव’ लेख में शिवजी के नृत्य और परमाणु के बीच समानता की चर्चा की थी। इसके बाद 8 जून 2004 को जेनेवा स्थित सर्न के यूरोपियन सेंटर फॉर रिसर्च इन पार्टिकल फिजिक्स में तांडव नृत्य करती नटराज की 2 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस मूर्ति को सर्न के साथ भारत के लंबे सहयोग का जश्न मनाने के लिए दिया गया था।
1●) शिव के तांडव में विज्ञान
शिवजी के नृत्य के दो रूप हैं। एक है लास्य, जिसे नृत्य का कोमल रूप कहा जाता है। दूसरा तांडव है, जो विनाश को दर्शाता है। भगवान शिव के नृत्य की अवस्थाएं सृजन और विनाश, दोनों को समझाती हैं। शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।
यरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न लेबोरेटरी के बाहर नटराज की मूर्ति रखी हुई है। नटराज की मूर्ति और ब्रह्मांडीय नृत्य के बारे में कैपरा ने बताया है कि वैज्ञानिक उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हुए कॉस्मिक डांस का प्रारूप तैयार कर रहे हैं। कॉस्मिक डांस यानी भगवान शिव का तांडव नृत्य, जो विनाश और सृजन दोनों का प्रतीक है।
तांडव करते हुए नटराज के पीछे बना चक्र ब्रह्मांड का प्रतीक है। उनके दाएं हाथ का डमरू नए परमाणु की उत्पत्ति और बाएं हाथ में अग्नि पुराने परमाणुओं के विनाश की ओर संकेत करती है। इससे ये समझा जा सकता है कि, अभय मुद्रा में भगवान का दूसरा दायां हाथ हमारी सुरक्षा, जबकि वरद मुद्रा में उठा दूसरा बायां हाथ हमारी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करता है।
2●) पूजन सामग्री : जल, दूध, दही, शहद और फूल
उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली पूजन सामग्री पर शोध किया है। शोध में दावा किया है कि न्यूक्लियर रिएक्टर और शिवलिंग में समानता होती है। ज्योतिर्लिंग से ज्यादा मात्रा में ऊर्जा निकलती है। उस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है।
सस्थान के वरिष्ठ धर्म वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र जोशी के अनुसार न्यूक्लियर में आग के पदार्थ कार्डिएक ग्लाएकोसाइट्स कैल्शियम ऑक्सीलेट, फैटी एसिड, यूरेकिन, टॉक्सिन पाए जाते हैं। इनसे पैदा होने वाली गर्मी को संतुलित करने के लिए ही शिव पूजा में मदार के फूल और बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं, जो कि न्यूक्लियर ऊर्जा को संतुलित रखते हैं।
धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैभव जोशी के अनुसार दूध में फैट, प्रोटीन, लैक्टिक एसिड, दही में विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और शहद में फ्रक्टोस, ग्लूकोज जैसे डाईसेक्राइड, ट्राईसेक्राइड, प्रोटीन, एंजाइम्स होते हैं वही दूध, दही और शहद शिवलिंग पर कवच बनाए रखते हैं। इसके साथ ही शिव मंत्रों से निकलने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्मांड में बढ़ाने का काम करती है। धर्म और विज्ञान पर अध्ययन करने वाली इस संस्था ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली चीजों की प्रकृति और उनमें पाए जाने वाले तत्वों की वैज्ञानिक व्याख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
3●) बिल्वपत्र से नियंत्रित होती है गर्मी
बिल्वपत्र से गर्मी नियंत्रित होती है। इसमें टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन होते हैं। इससे बिल्वपत्र की तासीर बहुत शीतल होती है। तपिश से बचने के लिए इसका उपयोग फायदेमंद होता है। बिल्वपत्र का औषधीय उपयोग करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। पेट के कीड़े खत्म होते हैं और शरीर की गर्मी नियंत्रित होती है।
4●) शिव के रूद्राक्ष में छुपा विज्ञान
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में बताया गया है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी के आंसुओं से हुई है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार रूद्राक्ष में पाए जाने वाले गुण मनुष्य के नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं।
रद्राक्ष में केमो फॉर्मेकोलॉजिकल नाम का गुण पाया जाता है। इस गुण से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। इससे दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। रुद्राक्ष में आयरन, फॉस्फोरस, एल्युमीनियम, कैल्शियम, सोडियम और पोटैशियम गुण पर्याप्त मात्रा में होते हैं। रुद्राक्ष के ये गुण शरीर के नर्वस सिस्टम को
रखते हैं। स्त्रोत : दैनिक भास्कर
हमारी भारतीय संस्कृति की कितनी महिमा है और हमारे भगवान कितने महान हैं, वे विदेश के लोग भी जानने लगे हैं। लेकिन कुछ भारतवासी अभीतक समझ नहीं पा रहे हैं, अभी समय आ गया है कि हमारी संस्कृति की महिमा समझकर उसका अनुसरण एवं प्रचार-प्रसार करें।
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