06 अप्रैल 2021
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किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं। वे जिस समय प्रगट होते हैं उस समय के जन-समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा मार्गदर्शक होता है। उत्तर भारत में तपस्यामय जीवन बिताकर पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू नयी शक्ति, नयी ज्योति एवं अंतर की दिव्य प्रेरणा प्राप्त कर, लोगों को सच्चा मार्ग बताने, गरीब एवं दुःखी लोगों को ऊँचा उठाने तथा सतशिष्यों एवं जिज्ञासुओं को ज्ञानामृत पिलाने के लिए कई वर्षों के बाद सिंध देश में आये।
पज्य संत श्री लीलाशाहजी बापू ने धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक हर क्षेत्र में उन्होंने कार्य शुरू किया। वे मानो स्वयं एक चलती-फिरती संस्था थे, जिनके द्वारा अनेक कार्य होते थे।
चन्द्र लोक में कुछ नही बनेगा
एक बार गुजरात के मेहसाणा से पाटन ट्रेन में लीलाशाहजी के साथ डॉ. शोभसिंह नामक एक सज्जन 'टाइम्स आफ इन्डिया' अखबार पढ़कर खुश होते-होते लीलाशाहजी बापू से कहने लगेः 'बापू ! बापू ! देखो, आज वैज्ञानिकों ने कितनी सारी प्रगति कर ली है ! वैज्ञानिक रॉकेट में बैठकर चन्द्रलोक तक घूम आये, वहाँ से मिट्टी भी ले आये। अब वे लोग एक वर्ष में वहाँ हॉटल बनानेवाले हैं, जिससे धनवान लोग वहाँ छुट्टियों में रह सकेंगे।"
लीलाशाहजी बापू ने एक मिनट अन्तरात्मा के ध्यान में डुबकी लगाकर कहाः *"अभी कुछ नहीं होने वाला है। होटल-वोटल कुछ नहीं बनेगा। सब चुप होकर बैठ जायेंगे।"
आज उस बात को लगभग सैकंडो वर्ष हो गये हैं। करोड़ों डॉलर खर्च हो गये, फिर भी आज तक चन्द्रलोक पर कोई हॉटल नहीं बना, दुनिया जानती है।
उस समय विश्व के तमाम समाचारपत्रों में पहले पृष्ठ पर समाचार छपे थे कि "वैज्ञानिक चन्द्रलोक तक पहुँच गये हैं। वहाँ जीवन की संभावना है और अब एकाध वर्ष में वहाँ होटल बनेगा।' परन्तु वहाँ चन्द्रलोक पर होटल तो क्या आज तक कुछ भी नहीं बना, यह आप सभी जानते ही हो।
कसा होगा उन महापुरुषों का चित्त ! चलती ट्रेन में ही अन्तर्मुख होकर ऐसा सत्य संदेश सुना दिया कि जो आज तक सत्य साबित हो रहा है। धन्य है भारत और धन्य है भारत के आत्मारामी संत!
नीम का पेड चला
सिंध में किसी जमीन की बात में हिन्दू और मुसलमानों का झगड़ा चल रहा था। उस जमीन पर नीम का एक पेड़ खड़ा था, जिससे उस जमीन की सीमा-निर्धारण के बारे में कुछ विवाद था। हिन्दू और मुसलमान कोर्ट-कचहरी के धक्के खा-खाकर थके। आखिर दोनों पक्षों ने यह तय किया कि यह धार्मिक स्थान है। दोनों पक्षों में से जिस पक्ष का कोई पीर-फकीर उस स्थान पर अपना कोई विशेष तेज, बल या चमत्कार दिखा दे, वह जमीन उसी पक्ष की हो जायेगी।
पज्य लीलाशाहजी बापू का नाम पहले ‘लीलाराम’ था। हिंदू लोग पूज्य लीलारामजी के पास पहुँचे और बोले: “हमारे तो आप ही एकमात्र संत हैं। हमसे जो हो सकता था वह हमने किया, परन्तु असफल रहे। अब समग्र हिन्दू समाज की प्रतिष्ठा आपश्री के चरणों में है ।
पज्य लीलारामजी उनकी बात मानकर उस स्थान पर जाकर भूमि पर दोनों घुटनों के बीच सिर नीचा किये हुए शांत भाव से बैठ गये।
मसलमान लोगों ने उन्हें ऐसी सरल और सहज अवस्था में बैठे हुए देखा तो समझ लिया कि ये लोग इस साधु को व्यर्थ में ही लाये हैं। यह साधु क्या करेगा …? जीत हमारी होगी।
पहले मुस्लिम लोगों द्वारा आमंत्रित पीर-फकीरों ने जादू-मंत्र, टोने-टोटके आदि किये। ‘अला बाँधूँ बला बाँधूँ… पृथ्वी बाँधूँ…तेज बाँधूँ… वायू बाँधूँ… आकाश बाँधूँ… फूऽऽऽ‘ आदि-आदि किया पर कुछ हुआ नही फिर पूज्य लीलाराम जी की बारी आई।
जब लोगों ने पूज्य लीलारामजी से आग्रह किया तो उन्होंने धीरे से अपना सिर ऊपर की ओर उठाया। सामने ही नीम का पेड़ खड़ा था। उस पर दृष्टि डालकर गर्जना करते हुए आदेशात्मक भाव से बोल उठे : “ऐ नीम ! इधर क्या खड़ा है ? जा उधर हटकर खड़ा रह।”
बस उनका कहना ही था कि नीम का पेड ‘सर्रर्र… सर्रर्र…’ करता हुआ दूर जाकर पूर्ववत् खड़ा हो गया।
लोग तो यह देखकर आवाक रह गये ! आज तक किसी ने ऐसा चमत्कार नहीं देखा था। अब विपक्षी लोग भी उनके पैरों पड़ने लगे। वे भी समझ गये कि ये कोई सिद्ध महापुरुष हैं।
व हिन्दुओं से बोले : “ये आपके ही पीर नहीं हैं बल्कि आपके और हमारे सबके पीर हैं। अब से ये ‘लीलाराम’ नहीं किंतु ‘लीलाशाह’ हैं। तब से लोग उनका ‘लीलाराम’ नाम भूल ही गये और उन्हें ‘लीलाशाह’ नाम से ही पुकारने लगे। लोगों ने उनके जीवन में ऐसे-ऐसे और भी कई चमत्कार देखे।
ऐसे उनके द्वारा अनेकों चमत्कार हुआ, लीलाशाहजी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म व समाज की सेवा में लगा दिया।
हमारे भारत देश मे ऐसे अनेकों महान संत हो गए और अभी है पर हमें उनकी महत्ता पता नही है इसलिए आज हम दुःखी, चिंतित, परेशान हैं। जिस दिन हम सच्चे संतों के मार्गदर्शन के अनुसार जीवनं गे उसदिन हम विश्व मे सबसे उन्नत होंगे।
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