09 अप्रैल 2021
azaadbharat.org
आम आदमी पार्टी के नेता अमानुल्ला खान ने 3 अप्रैल 2021 को एक ट्वीट किया। उन के शब्द हैं, “हमारे नबी की शान में गुस्ताखी हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं, इस नफरती कीड़े की जुबान और गर्दन दोनों काटकर इसे सख़्त से सख़्त सजा देनी चाहिए। लेकिन हिन्दुस्तान का कानून हमें इसकी इजाजत नहीं देता, हमें देश के संविधान पर भरोसा है और मैं चाहता हूँ कि दिल्ली पुलिस इसका संज्ञान ले।” उन्होंने किसी का नाम नहीं लिखा, पर उनके ट्वीट के साथ किसी कार्यक्रम की तस्वीर थी। जिस से लगता है कि वे कहीं किसी के द्वारा कही बात पर नाराज थे।
अच्छा हो कि दिल्ली पुलिस ही नहीं, देश के सभी लोग यह भी संज्ञान लें कि भारतीय कानून न केवल किसी की गर्दन काटने, बल्कि सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें कहना भी अनुचित मानता है। अमानुल्ला हिंसक धमकियाँ देते हुए भी कानून-पाबंद बन रहे हैं।
लकिन अधिक महत्व का विचारणीय बिन्दु अन्य है। जिस पर हमारी न्यायपालिका, संसद, तमाम राजनीतिक दलों को भी ध्यान देना चाहिए कि क्या इस्लाम और उन के प्रोफेट का ही सम्मान होना चाहिए? खुद इस्लाम दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं, अवतारों, पैगम्बरों, श्रद्धा-स्थलों, श्रद्धा-प्रतीकों के प्रति क्या रुख रखता है? वह मुसलमानों को सिखाता क्या है?
निस्संदेह, इस्लाम दूसरे धर्मों को ‘कुफ्र’, और उन्हें मानने वालों को ‘काफिर’ कहकर अंतहीन घृणा और हिंसा सिखाता है। यह केवल किताबी हुक्म नहीं, बल्कि उस के अनुयायी व्यवहार में गत चौदह सौ सालों से यही कर भी रहे हैं। मक्का से लेकर ढाका तक, और कौंस्टेंटीनोपुल से लेकर कोलंबो, और बाली तक यही उन का इतिहास और वर्तमान है।
अमानुल्ला खान नोट करें – धर्मों, विश्वासों, श्रद्धा-प्रतीकों, श्रद्धा-स्थलों का सम्मान बराबरी से ही हो सकता है! क्या मथुरा, काशी, भोजशाला में जाकर उन्होंने देखा है कि हिन्दू सभ्यता के सब से महान श्रद्धा प्रतीकों भगवान शिव, भगवान कृष्ण, और देवी सरस्वती के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ इस्लाम के अनुयायियों ने क्या किया – और आज भी क्या कर रहे हैं? क्या अमानुल्ला को मालूम नहीं कि नाइजीरिया, सूडान से लेकर पाकिस्तान, बँगलादेश तक गैर-मुसलमानों के साथ इस्लाम के आम अनुयायी क्या कर रहे हैं?
विविध धर्मों का सम्मान केवल बराबरी से हो सकता है। इसलिए, अमानुल्ला खान को सबसे पहले अपने मजहब के गिरहबान में झाँक कर देखना चाहिए कि वह दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, मंदिरों, चर्च, सिनागॉग, गुरुद्वारे, मठ, और अनुयायियों के प्रति क्या सीख देता और व्यवहार रखता है?
ताकि वे किसी ‘भटके हुए’, ‘मुट्ठी भर मुसलमानों’ वाला बहाना न बनाएं, इसलिए मूल स्त्रोत कुरान को ही उलट कर देखें। सब से प्रमाणिक अंग्रेजी पाठ (मुहम्मद पिकथॉल) या हिन्दी पाठ (मकतबा अल-हसनात) से ही मिलान कर के देखें कि कुरान गैर-मुसलमानों या काफिरों और उन के देवी-देवताओं को क्या कहता है।
वस्तुतः कुरान ही काफिर को परिभाषित करता है कि जो अल्लाह और उन के प्रोफेट मुहम्मद को स्वीकार न करे, वह काफिर है। जिस के प्रति कुरान अत्यंत नकारात्मक भाव रखता एवं प्रेरित करता है। कुरान (2:216) ने मूर्तिपूजा को हत्या से भी गर्हित पाप बताया है। कुरान में मूर्तिपूजकों को ‘जानवर’, ‘अंधे’, ‘बहरे’, ‘गूँगे’, (2:171) और ‘गंदे’ (22:30), ‘बंदर’, ‘सुअर’ (5:60) आदि की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार, हिन्दू, बौद्ध, जैन, आदि लोगों को सर्वाधिक घृणित मानना सिखाता है। विश्व के सबसे प्राचीन, सम्मानित और लगभग पौने 2 अरब लोगों के धर्मों के प्रति यह कैसा सम्मान है? इस के बदले अमानुल्ला खान किस आधार पर इस्लाम के लिए सम्मान की माँग करते हैं?
नोट करें, कुरान में वे बातें कोई अपवाद या इक्की-दुक्की नहीं। उसमें आधी से अधिक सामग्री काफिरों पर ही केंद्रित है। जिसमें काफिरों के प्रति एक भी अच्छी बात नहीं। काफिर से घृणा की जाती है (98:6, 40:35); काफिर का गला काटा जा सकता है (47:4); मार डाला जा सकता है (9:5); काफिर को भरमाया जा सकता है (6:25); काफिर के खिलाफ षड्यंत्र किया जा सकता है (86:15); काफिर को आतंकित किया जा सकता है (8:12); काफिर को अपमानित किया जा सकता है (9:29); काफिर को दोस्त नहीं बनाया जा सकता (3:28); काफिरों से दोस्ती करने पर मुसलमान को अल्लाह दंड देगा (4-144); जब मुसलमान मजबूत हों तो काफिरों से कदापि शान्ति-सुलह न करें (47: 35); आदि।
करान में दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं को झूठा कहा गया है। उस के शब्दों में, “एकमात्र अल्लाह सच है, और दूसरे पुकारे जाने वाले देवी-देवता झूठ हैं।” (22:62) इसी प्रकार, “मुसलमान सत्य पर चल रहे हैं और काफिर झूठ पर।” (47:3) यही नहीं, अल्लाह के सिवा अन्य देवी-देवताओं को ताना दिया गया है कि उन्हें बुला कर देख लो,े क्या कर सकते हैं तुम्हारे लिए (7: 194-195)
करान अन्य धर्मों के देवी-देवताओं को निकृष्ट, व्यर्थ बताता है, “जो न किसी को लाभ पहुँचा सकते हैं, न हानि” (25:55) कुरान के अनुसार जो अल्लाह को न मानकर झूठे ईश्वर मानते हैं, वे झूठे ईश्वर अपने अनुयायियों को प्रकाश से अँधेरे की ओर ले जाते हैं (2:257) वे जहन्नुम की आग में जाएंगे और वही रहेंगे। आगे, “मुसलमानों का संरक्षक अल्लाह है, काफिरों का कोई संरक्षक नहीं है।” (47:11)
वस्तुतः, कुरान दूसरे धर्म मानने वालों को भी हर तरह की कटु बातें और अपशब्द कहता है। जैसे, “अल्लाह काफिरों का दुश्मन है” (2:98) कुरान के अनुसार, “जो हमारी आयतों को नहीं मानते, वे बहरे, गूँगे और अँधे हैं।” (6:39) इस बात को दुहराया भी गया है। कुरान में अल्लाह कहते हैं, कि “हम ने बिलकुल साफ संकेत (आयतें) भेजी हैं, और केवल बदमाश ही उस से इंकार करेंगे।” (2:99) उनकी खुली घोषणा है कि “काफिरों के लिए दुःखदायी यातना तय है।” (2:104) साथ ही, “अल्लाह का संदेशवाहक सभी रिलीजनों पर भारी पड़ेगा, चाहे मूर्तिपूजक इसे कितना भी नापसंद क्यों न करें।” (9:33) दरअसल, काफिरों के प्रति घृणा और हिंसा के आवाहन कुरान और प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी (सीरा) में निरंतर दुहराई गई बात, सिग्नेचर-ट्यून जैसी है। अल्लाह खुद कहता है कि कुरान ‘चेतावनी’ और ‘मेरी धमकी’ है (50:45)
तो जनाब अमानुल्ला खान, इसे देखते हुए काफिरों का क्या कर्तव्य बनता है? अपने को कोसने वालों को, अपने घोषित दुश्मन को कोई कैसे सम्मान दे सकता है? यदि सीरा और हदीस को मिलाकर पूरा आंकलन किया जाए, तो इस्लाम का एकमात्र लक्ष्य है – जैसे भी हो काफिरों का खात्मा। इतने तीखेपन से कि मुसलमानों को अपने सगे-संबंधियों तक से दुराव रखने के लिए कहा गया है। धमकी के साथ।
करान में साफ निर्देश है, ‘‘ओ मुसलमानों! अपने पिता या भाई को भी गैर समझो, अगर वे अल्लाह पर ईमान के बजाए कुफ्र पसंद करते हों। तुम्हारे पिता, भाई, पत्नी, सगे-संबंधी, संपत्ति, व्यापार, घर – अगर ये तुम्हें अल्लाह और उन के प्रोफेट, तथा अल्लाह के लिए लड़ने (जिहाद) से ज्यादा प्यारे हों, तो बस इन्तजार करो अल्लाह तुम्हारा हिसाब करेगा।’’ (9: 23,24)
सो, अमानुल्ला खान अच्छी तरह सोचें, कि धर्मों का मान-सम्मान एकतरफा नहीं हो सकता। आज नहीं तो कल, तमाम ईमामों, अयातुल्लाओं, और उलेमा को दुनिया भर की मस्जिदों से खुली घोषणा करनी होगी कि कुरान में दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, और उन्हें पूजने वालों को जो अपशब्द कहे गए हैं, वे अब खारिज, कैंसिल हैं। मुसलमानों को उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते, तो एकतरफा इस्लाम को आदर की माँग करने का हक नहीं रखते! - डॉ. शंकर शरण
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