Monday, February 21, 2022

पटा पूरी तरह से हिंदुत्व व मानवता विरोधी बन चुकी है?

01 जून 2021

azaadbharat.org


भारत मे बिना मांगे सलाह देनेवालों की भरमार है। इसी तरह के बेकार सलाह देनेवालों मे मानवाधिकार और पशु अधिकार संबंधी संस्थाएं हैं। मानवाधिकारवालों को केवल आतंकवादियों और नक्सलियों के अधिकार की चिंता है तो पशु अधिकारवालों को गाय से दूध लेना अत्याचार दिखाई देता है।

इसी तरह की एक विदेशी संस्था है PETA (People for the Ethical Treatment of Animals ) जो पशुओं के नाम पर मोटा पैसा बनाती है। यह मूलतः अमेरिका की संस्था है जो भारत में सनातनधर्म-विरोधी एजेंडा चलाती है। 



दश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी अमूल (Amul) ने जानवरों के अधिकारों की रक्षा करनेवाले संगठन पेटा (PETA) के सुझाव पर सवाल उठाए हैं। PETA ने अमूल (Amul) को सुझाव दिया था कि उसे प्लांट बेस्ड डेयरी प्रोडक्ट पर स्विच कर जाना चाहिए।

अभी PETA ने भारत की प्रसिद्ध दूध उत्पाद बेचनेवाली कम्पनी अमूल को लिखा है कि वह गाय/ भैंस के दूध के स्थान पर VEGAN MILK ( सोयाबीन आदि से बना दूध जैसा द्रव) को बेचे।


ऐसी संस्थाएँ, भारत के संदर्भ में, हिन्दू लोगों की आस्था पर हमले करने, कृषकों की आय खत्म करने और बनावटी ज्ञान देने की साजिश करती ही नजर आती हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा कोई भी ढंग का कार्य नहीं किया जा रहा। त्योहारों पर इनके हर कैम्पेन में हिन्दूघृणा टपकती दिखती है। इनका एजेंडा वेटिकनपोषित संस्थाओं के एजेंडे से बिलकुल भी भिन्न नहीं है। 


🚩दध लग्जरी नहीं, आवश्यकता है। ऐसे में पेटा जब ‘वीगन दूध’ की बातें कर रही है तो वो यह भूल जाता है कि करोड़ों किसानों के रोजगार के साथ-साथ गरीबों के जीवन से खेलने की बातें कर रही है। सवाल यह है कि पेटावालों को ‘वीगन दूध’ की याद क्यों आती है? 


आप अगर वीगन मिल्क का मूल्य देखने जाएँगे तो आपको पता चलेगा कि एक लीटर ‘वीगन मिल्क’ का दाम 290 से लेकर ₹400 तक है। अब कोई यह समझाए कि गाँव में ₹30-35/लीटर और शहरों में ₹45-60/लीटर खरीदनेवाले लोग लगभग दस-गुणा मूल्य चुका कर किस बजट के हिसाब से दूध खरीदेंगे? भारत में हर व्यक्ति को वैसे भी दूध नहीं मिल पाता; जिनको मिल रहा है, उनमें से भी एक बहुत बड़ा हिस्सा उसे बच्चों के पोषण हेतु उपयोग में लाते हैं। 


दसरा कि शास्त्रों ने व वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि देशी गाय का दूध अमृत के समान है व अनेक रोगों का स्वतः सिद्ध उपचार है । देशी गाय का दूध सेवन करने से किशोर-किशोरियों की शरीर की लम्बाई व पुष्टता उचित मात्रा में विकसित होती है, हड्डियाँ भी मजबूत बनती हैं एवं बुद्धि का विलक्षण विकास होता है। तो इस दूध से वंचित करना मानवता के खिलाफ है।


कवल प्रोपगेंडा 

PETA को 2020 में लगभग 66.3 मिलियन डॉलर मिले जो भारतीय रुपयों में ₹4,77,36,00,000 (477 करोड़ से अधिक) होते हैं। इसमें से ₹459 करोड़ ($63.8 मिलियन) इन्हें दान से मिले। 

जुलाई 2020 में रक्षाबंधन पर PETA ने चमड़ामुक्त राखी के प्रचार पर करोड़ों खर्च किए। ध्यान रखें- बकरीद पर ये कुछ नहीं बोलती है। 

सूचना स्रोत -

https://dopolitics.in/peta-budget-propaganda-salary-expenses-animal-rights-fake-ngo/


आपको जानकर हैरानी होगी कि इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है।


वर्जीनिया डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड कंज्यूमर सर्विसेज (VDACS) की रिपोर्ट के मुताबिक PETA ने पिछले 2019 में 1,593 कुत्तों, बिल्लियों और अन्य पालतू जानवरों को मार दिया था। वहीं 2018 में 1771 जानवरों की हत्या कर दी गई। इसी तरह 2017 में 1809, 2016 में 1411 और 2015 में 1456 जानवरों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1998 से लेकर 2019 तक PETA ने 41539 जानवरों की हत्या कर दी।


PETA यानी पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स। यह संस्था खुद को पशुओं के अधिकार का संरक्षक कहती है। लेकिन इस मुखौटे के पीछे कई चेहरे छिपे हैं। हिंदुओं से घृणा करनेवाली यह संस्था जानवरों की निर्ममता से हत्या भी करती है। दीपावली पर ज्ञान देती है कि पटाखे नहीं फोड़ें नहीं तो पशु-पक्षी डर जाते हैं, लेकिन यही पेटा बकरीद पर पूरी विधि बताती है कि पशु हत्या कैसे करनी चाहिए।


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