24 मई 2021
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भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष करतार सिंह सराभा थे। उनका जन्म 24 मई 1896 में हुआ था।
भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगों के साथ फांसी दे दी। 16 नवम्बर 1915 को करतार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
16 नवम्बर 1915 को साढे़ उन्नीस साल के युवक करतार सिंह सराभा को उनके छह अन्य साथियों - बख्शीश सिंह (ज़िला अमृतसर), हरनाम सिंह (ज़िला स्यालकोट), जगत सिंह (ज़िला लाहौर), सुरैण सिंह व सुरैण- दोनों (ज़िला अमृतसर) व विष्णु गणेश पिंगले (ज़िला पूना, महाराष्ट्र) के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया गया। इनमें से ज़िला अमृतसर के तीनों शहीद एक ही गांव गिलवाली से संबंधित थे। इन शहीदों व इनके अन्य साथियों ने भारत पर काबिज़ ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ 19 फ़रवरी 1915 को ‘गदर’ की शुरुआत की थी। इस ‘गदर’ यानी स्वतंत्रता संग्राम की योजना अमेरिका में 1913 में अस्तित्व में आई ‘गदर पार्टी’ ने बनाई थी और इसके लिए लगभग आठ हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में सुख-सुविधाओं भरी ज़िंदगी छोड़कर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने के लिए समुद्री जहाज़ों द्वारा भारत पहुंचे थे। ‘गदर’ आंदोलन शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं था, यह सशस्त्र विद्रोह था; लेकिन ‘गदर पार्टी’ ने इसे गुप्त रूप न देकर खुलेआम इसकी घोषणा की थी और 'गदर पार्टी' के पत्र ‘गदर’, जो पंजाबी, हिंदी, बंगाली, पश्तो, उर्दू व गुजराती आदि छः भाषाओं में निकलता था- के माध्यम से इसका समूची भारतीय जनता से आह्वान किया था।
अमेरिका की स्वतंत्र धरती से प्रेरित हो अपनी धरती को स्वतंत्र करवाने का यह शानदार आह्वान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित था और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जिसे अवमानना से ‘गदर’ नाम दिया, उसी ‘गदर’ शब्द को सम्मानजनक रूप देने के लिए अमेरिका में बसे भारतीय देशभक्तों ने अपनी पार्टी और उसके मुखपत्र को ही ‘गदर’ नाम से विभूषित किया। जैसे 1857 के ‘गदर’ यानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बड़ी रोमांचक है, वैसे ही स्वतंत्रता के लिए दूसरा सशस्त्र संग्राम यानी ‘गदर’ भी चाहे असफल रहा लेकिन इसकी कहानी भी कम रोचक नहीं है।
विश्वस्तर पर चले इस आंदोलन में दो सौ से ज़्यादा लोग शहीद हुए, ‘गदर’ व अन्य घटनाओं में 315 से ज़्यादा ने अंडमान जैसी जगहों पर काले पानी की उम्रकैद भुगती और 122 ने कुछ कम लंबी कैद भुगती। सैकड़ों पंजाबियों को गांवों में वर्षों तक नज़रबंदी झेलनी पड़ी। उस आंदोलन में बंगाल से रास बिहारी बोस व शचीन्द्रनाथ सान्याल, महाराष्ट्र से विष्णु गणेश पिंगले व डॉ॰ खानखोजे, दक्षिण भारत से डॉ॰ चेन्चय्या व चंपक रमण पिल्लै तथा भोपाल से बरकतुल्ला आदि ने हिस्सा लेकर उसे एक ओर राष्ट्रीय रूप दिया तो शंघाई, मनीला, सिंगापुर आदि अनेक विदेशी नगरों में हुए विद्रोह ने इसे अंतर्राष्ट्रीय रूप भी दिया। 1857 की भांति ही ‘गदर’ आंदोलन भी सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष संग्राम था जिसमें सभी धर्मों व समुदायों के लोग शामिल थे।
गदर पार्टी आंदोलन की यह विशेषता भी रेखांकित करने लायक है कि विद्रोह की असफलता से गदर पार्टी समाप्त नहीं हुई, बल्कि इसने अपना अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व बचाए रखा व भारत में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर व विदेशों में अलग अस्तित्व बनाए रखकर 'गदर पार्टी' ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। आगे चल कर 1925-26 से पंजाब का युवक विद्रोह, जिसके लोकप्रिय नायक भगत सिंह बने, भी गदर पार्टी व करतार सिंह सराभा से अत्यंत प्रभावित रहा। एक तरह से भगत सिंह का व्यक्तित्व व चिंतन 'गदर पार्टी' की परंपरा को अपनाते हुए उसके अग्रगामी विकास के रूप में निखरा।
करतार सिंह सराभा 'गदर पार्टी' के उसी तरह नायक बने, जैसे बाद में 1925-31 के दौरान भगत सिंह क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक बने। यह अस्वाभाविक नहीं है कि करतार सिंह सराभा ही भगत सिंह के सबसे लोकप्रिय नायक थे, जिनका चित्र वे हमेशा अपनी जेब में रखते थे और ‘नौजवान भारत सभा’ नामक युवा संगठन के माध्यम से वे करतार सिंह सराभा के जीवन को स्लाइड शो द्वारा पंजाब के नवयुवकों में आज़ादी की प्रेरणा जगाने के लिए दिखाते थे। ‘नौजवान भारत सभा’ की हर जनसभा में करतार सिंह सराभा के चित्र को मंच पर रखकर उसे पुष्पांजलि दी जाती थी।
करतार सिंह सराभा, गदर पार्टी आंदोलन के लोकनायक के रूप में अपने बहुत छोटे-से राजनीतिक जीवन के कार्यकलापों के कारण उभरे। कुल दो-तीन साल में ही सराभा ने अपने प्रखर व्यक्तित्व की ऐसी प्रकाशमान किरणें छोड़ीं कि देश युवकों की आत्मा को उसने देशभक्ति के रंग में रंगकर जगमग कर दिया। ऐसे वीर नायक को फांसी देने से न्यायाधीश भी बचना चाहते थे और सराभा को उन्होंने अदालत में दिया बयान हल्का करने का मशविरा और वक्त भी दिया, लेकिन देश के नवयुवकों के लिए प्रेरणास्रोत बननेवाले इस वीर नायक ने बयान हल्का करने की बजाय और सख्त किया और फांसी की सज़ा पाकर खुशी में अपना वज़न बढ़ाते हुए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गया।
भारत के ऐसे महान वीर सपूतों के कारण ही आज हम आज़ादी की सांसें ले रहे हैं लेकिन आज हम ही अपनी आजादी को खतरे में डाल रहे हैं। हम अपनी संस्कृति व संतों का मार्गदर्शन भूल रहे हैं जिसके कारण विधर्मी लोग धर्मांतरण आदि द्वारा भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हमें सावधान रहना होगा।
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