Saturday, February 12, 2022

अपनी मृत्यु डरावनी लगती है, बाकी की मौत का उत्सव मनाता है मनुष्य...

30 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


मौत के स्वाद के चटखारे लेता मनुष्य कहता है कि मुझे बकरे का, भैंसे का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजे बच्चे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सींका हुआ आदि-आदि दीजिये। न जाने कितने, बल्कि अनगिनत स्वाद हैं- मौत के!



क्योंकि मौत पशु-पक्षी की और स्वाद हमारा।


सवाद का कारोबार बन गई मौत। 


मर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पॉल्ट्री फार्म्स। 

नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"। स्लॉटर हाऊस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली-गली में खुले नॉनवेज रेस्टॉरेंट मौत के कारोबार नहीं तो और क्या हैं? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नहीं है।


जो हमारी तरह बोल नहीं सकते, अभिव्यक्त नहीं कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं?

या उनकी आहें नहीं निकलतीं?


डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते हैं- बेटा कभी किसी का दिल नहीं दुखाना! किसी की आहें मत लेना! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आने चाहिए!


बच्चों में झूठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ में वो हड्डी दिखाई नहीं देती, जो इससे पहले एक शरीर थी जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...!!

जिसे काटा गया होगा! 

जो कराहा होगा! 

जो तड़पा होगा!

जिसकी आहें निकली होंगी!

जिसने बद्दुआ भी दी होगी!


 कसे मान लिया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे?


क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं? क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है?


आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए ईश्वर के अवतार से कम नहीं है। 


जब से इस वायरस का कहर बरपा है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे हैं। पक्षी चहचहा रहे हैं। उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार-सा नज़र आया है। पेड़-पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो! धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो।


सष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोड़-करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने हमें हमारी औकात बता दी। घर में घुसके मारा है और मार रहा है। और उसका हमसब कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे कि हमें बचा ले।


धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, क्रिसमस पर पशुओं की हत्या करते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो। 


किसे ठग रहे हो? अल्लाह को?  जीसस को? भगवान को? या खुद को?


मंगलवार को नानवेज नहीं खाता ...!!!

आज शनिवार है इसलिए नहीं...!!!

अभी रोज़े चल रहे हैं ...!!!

नवरात्रि में तो सवाल ही नहीं उठता...!!!


झूठ पर झूठ...फिर कुतर्क सुनो...फल सब्जियों में भी तो जान होती है ...? ...तो सुनो, फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं, ना ही वो किसी प्राणी को जन्म देती हैं। 

इसीलिए उनका भोजन उचित है जो ईश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया है।


ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हें दी ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको! लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।


आज कोरोना के रूप में मौत हमारे सामने खड़ी है। तुम्हीं कहते थे कि हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमें लौटायेगी। मौतें दी हैं प्रकृति को, तो मौतें ही लौट रही हैं।

बढो...!!! आलिंगन करो मौत का....!!!


यह संकेत है- ईश्वर का। 

प्रकृति के साथ रहो।

प्रकृति के होकर रहो।

वर्ना... ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियों को धरती से हमेशा के लिए विलुप्त कर चुके हैं। उन्हें एक क्षण भी नहीं लगेगा।


ईश्वर के बनाये हुए वेद के सिद्धांतों पर चलो, अन्यथा इससे भी भयंकर सजा के लिए तैयार रहना। ईश्वर सर्वसमर्थ है प्राण दे सकता है तो ले भी सकता है; इसलिए उनकी शरण जाओ और उनके अनुसार चलो- यही आखिरी उपाय है।


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