Saturday, February 12, 2022

वायरस को रोकने का रामबाण इलाज- "अग्निहोत्र"; अमेरिका जैसे अनेक देशों ने स्वीकारा👍

 29 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


वदकाल से भारत में यज्ञकर्म किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में यज्ञ-यागों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ होते हैं- यह अब विज्ञान द्वारा सिद्ध हो रहा है।



इसमें एक सहज सरल और प्रतिदिन किया जानेवाला यज्ञ है- ‘अग्निहोत्र’! हिन्दू धर्म द्वारा मानवजाति को दी हुई यह एक अमूल्य देन है। अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है। इतना ही नहीं, उसे करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है। साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।


अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है।


अग्निहोत्र के कारण निर्मित होनेवाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक कीटाणुओं के बढ़ने पर प्रतिबंध लगता है तथा उनका अस्तित्व नष्ट करने में सहायता होती है। इसलिए वर्तमान में जगभर में उत्पात मचानेवाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है। इस पार्श्‍वभूमि पर सभी हिन्दू बंधु सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘कोरोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन देने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें।


अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दानधर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है। सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है। इसका खर्च भी अत्यल्प है। अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, प्रत्युत पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी।


‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं । उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं ।


फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक द्वारा हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और कीटाणु कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोध-निबंध प्रकाशित हुआ था।

‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ नामक संस्था के निवृत्त वरिष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्म कीटाणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है; प्रदूषित हवा के घातक सल्फर डाईऑक्साईड का परिमाण दस गुना कम होता है; पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है; अग्निहोत्र की भभूति (भस्म) कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है; पानी के कीटाणु और क्षार का परिमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है। 

इसलिए अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र को स्वीकार किया है ।उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है। स्त्रोत : हिंदु जन जागृति


अपनी संस्कृति को हम भूल गए हैं इसलिए आज हमें घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है, नहीं तो आज अगर घर-घर हवन होता, तुलसी, पीपल आदि होते, देशी गाय होती, महापुरुषों के अनुसार अपना रहन-सहन बनाया होता तो कोरोना जैसे भयंकर वायरस हमें छू भी नहीं सकते थे!!

हमारी संस्कृति इतनी महान है, बस! अब शीघ्र उसपर लौटने की आवश्यकता है, नहीं तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

No comments:

Post a Comment