26 मार्च 2021
azaadbharat.org
होली नज़दीक है तो होलिका दहन की बात भी होगी। प्रह्लाद की याद भी लोगों को आएगी, जिन्हें नहीं याद आया उन्हें इस कहानी में छुपे किसी तथाकथित नारीविरोधी मानसिकता की याद दिला दी जायेगी। कभी-कभी होलिका को उत्तर प्रदेश का घोषित कर के इसमें दलित विरोध और आर्यों के हमले का मिथक भी गढ़ा जाता है। ऐसे में सवाल है कि प्रह्लाद को किस क्षेत्र का माना जाता है? आखिर किस इलाक़े को पौराणिक रूप से हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यप का क्षेत्र समझा जाता था?
वो इलाक़ा होता था कश्यप-पुर जिसे आज मुल्तान (पाकिस्तान का एक शहर) नाम से जाना जाता है। ये कभी प्रह्लाद की राजधानी थी। यहीं कभी प्रहलादपुरी का मंदिर हुआ करता था जिसे नरसिंह के लिए बनवाया गया था। कथित रूप से ये एक चबूतरे पर बना कई खंभों वाला मंदिर था। अन्य कई मंदिरों की तरह इसे भी इस्लामिक हमलावरों ने तोड़ दिया था। जैसी कि इस्लामिक परंपरा है, इसके अवशेष और इस से जुड़ी यादें मिटाने के लिए इसके पास भी हज़रत बहाउल हक़ ज़कारिया का मकबरा बना दिया गया। डॉ. ए.एन. खान के हिसाब से जब ये इलाक़ा दोबारा सिक्खों के अधिकार में आया तो 1810 के दशक में यहाँ फिर से मंदिर बना।
मगर जब एलेग्जेंडर बर्निस इस इलाक़े में 1831 में आए तो उन्होंने वर्णन किया कि ये मंदिर फिर से टूटे-फूटे हाल में है और इसकी छत नहीं है। कुछ साल बाद जब 1849 में अंग्रेजों ने मूल राज पर आक्रमण किया तो ब्रिटिश गोला किले के बारूद के भण्डार पर जा गिरा और पूरा किला बुरी तरह नष्ट हो गया था। बहाउद्दीन ज़कारिया और उसके बेटों के मकबरे और मंदिर के अलावा लगभग सब जल गया था। इन दोनों को एक साथ देखने पर आप ये भी समझ सकते हैं कि कैसे पहले एक इलाक़े का सर्वे किया जाता है, फिर बाद में कभी दस साल बाद हमला होता है। डॉक्यूमेंटेशन, यानि लिखित में होना आगे के लिए मदद करता है।
एलेग्जेंडर कन्निंगहम ने 1853 में इस मंदिर के बारे में लिखा था कि ये एक ईंटों के चबूतरे पर काफी नक्काशीदार लकड़ी के खम्भों वाला मंदिर था। इसके बाद महंत बावलराम दास ने जनता से जुटाए 11,000 रुपए से इसे 1861 में फिर से बनवाया। उसके बाद 1872 में प्रहलादपुरी के महंत ने ठाकुर फ़तेह चंद टकसालिया और मुल्तान के अन्य हिन्दुओं की मदद से फिर से बनवाया। सन 1881 में इसके गुम्बद और बगल के मस्जिद के गुम्बद की ऊँचाई को लेकर दो समुदायों में विवाद हुआ जिसके बाद दंगे भड़क उठे।
दंगे रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कुछ नहीं किया। इस तरह इलाके के 22 मंदिर उस दंगे की भेंट चढ़ गए। मगर मुल्तान के हिन्दुओं ने ये मंदिर फिर से बनवा दिया। ऐसा ही 1947 तक चलता रहा जब इस्लाम के नाम पर बँटवारे में पाकिस्तान हथियाए जाने के बाद ज्यादातर हिन्दुओं को वहाँ से भागना पड़ा। बाबा नारायण दास बत्रा वहाँ से आते समय भगवान नरसिंह का विग्रह ले आए। अब वो विग्रह हरिद्वार में है।
टटी-फूटी, जीर्णावस्था में मंदिर वहाँ बचा रहा। सन 1992 के दंगे में ये मंदिर पूरी तरह तोड़ दिया गया। अब वहाँ मंदिर का सिर्फ अवशेष बचा है।
सन् 2006 में बहाउद्दीन ज़कारिया के उर्स के मौके पर सरकारी मंत्रियों ने इस मंदिर के अवशेष में वजू की जगह बनाने की इजाजत दे दी। वजू मतलब जहाँ नमाज पढ़ने से पहले नमाज़ी हाथ-पाँव धो कर कुल्ला कर सकें। इसपर कुछ एन.जी.ओ. ने आपत्ति दर्ज करवाई और कोर्ट से वहाँ वजू की जगह बनाने पर स्टे ले लिया। अदालती मामला होने के कारण यहाँ फ़िलहाल कोई कुल्ला नहीं करता, पाँव नहीं धोता, वजू नहीं कर रहा। वो सब करने के लिए बल्कि उस से ज्यादा करने के लिए तो पूरा हिन्दुओं का धर्म ही है ना! इतनी छोटी जगह क्यों ली जाए उसके लिए भला?
बाकी, जब गर्व से कहना हो कि हम सदियों में नहीं हारे, हज़ारों साल से नष्ट नहीं हुए तो अब क्या होंगे ? या ऐसा ही कोई और मुंगेरीलाल का सपना आये, तो ये मंदिर जरूर देखिएगा। हो सकता है सेकुलर नींद से जागने का मन कर जाए।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1373103249079734273?s=19
इस्लामिक आक्रमणकारीयों ने भारत मे आकर हजारों-लाखों मदिरों तोड़े, उसकी जगह मस्जिदें बनवा लिया और आज बड़े-बड़े मन्दिर सरकारी नियंत्रण में है वे अपनी मनमानी से उसमें से धन खर्च करते हैं, ऑफिसर भ्रष्टाचार करते हैं, हिंदुओं के पैसे से हिंदुओं के विकास के लिए उन पैसे का उपयोग नहीं हो रहा है बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए किया जाता है पहले भी हिंदू समाज सो रहा था आज भी वही हाल है इसलिए हर जगह लुटा जा रहा है अब समय है जगने का नहीं तो देरी हो जाएगी फिर कुछ हाथ नहीं आएगा।
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