Monday, February 21, 2022

आचार्य बालकृष्ण ने 7 साल पहले बोला था, पर बाबा रामदेव ने ध्यान नहीं दिया

26 मई 2021

azaadbharat.org


योग गुरु बाबा रामदेव ने एलोपैथी दवाई के साइड इफेक्ट के बारे में जबसे बोला है तबसे विवाद छिड़ गया है और उनके ऊपर एफआईआर करके जेल भेजने की मांग की जा रही है।



इस विवाद पर आचार्य बालकृष्ण ने ट्वीट करके बताया कि पूरे देश को Christianity में convert करने के षड्यंत्र के तहत बाबा रामदेव जी को target करके योग एवं आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है। देशवासियों, अब तो गहरी नींद से जागो, नहीं तो आने वाली पीढ़ियां तुम्हें माफ नहीं करेंगी🙏

https://twitter.com/Ach_Balkrishna/status/1396730933508673536?s=19


सात साल पहले क्या बताया था...?


आचार्य बालकृष्ण ने 2013 में जब हिंदू संत आशाराम बापू पर आरोप लगे थे तब बताया था कि भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा रखने वाले हैं, वे समझते हैं कि सच्चाई क्या है, संत श्री आशारामजी बापू के विरुद्ध में षड्यंत्र कितना है। हमें भी सच्चाई और षड्यंत्र को समझने का प्रयास करना चाहिए। आसुरी शक्तियाँ विभिन्न तरह के षड्यंत्र करती हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम संगठनात्मक रूप से एक हों और सनातन वैदिक हिन्दू परम्परा से जुड़ी संस्थाएँ और साधु-महात्मा सब एकजुट होकर षड्यंत्र के विरुद्ध में मैदान में उतरें और उसका काट करें।


जो साधु-संत हैं वे तो कभी भी समाज के अहित का नहीं सोचते हैं परन्तु जब वे समाज का हित करते हैं तो बहुत सारे ऐसे तत्व हैं जिनको वह रास नहीं आता है।आसुरी शक्तियाँ विभिन्न तरह के षड्यंत्र करती हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम संगठनात्मक रूप से एक हों। इसलिए आज समय आ गया है कि हम सभी सुनियोजित ढंग से इनको चुनौती देते हुये इस दुष्प्रचार की काट करें ।

https://youtu.be/45cz6pyH0bU


आपको बता दें कि जब बाबा रामदेव के खिलाफ मीडिया दुष्प्रचार कर रही थी तब आशाराम बापू ने उनका पक्ष लेकर मीडिया को फटकार लगाई थी और बोले थे कि बाबा रामदेव पर झूठे आरोप लगाकर बदनाम किया जा रहा है।

https://www.facebook.com/watch/?v=1396962757371278


जब रामलीला मैदान में बाबा रामदेव पर लाठी चार्ज किया गया था तब बाबा रामदेव का समर्थन किया और आशारामजी बापू ने खुल्लेआम बोला था "सोनिया भारत छोड़ो"

https://youtu.be/qKqrfyu1dnk


इतना ही नहीं जब साध्वी प्रज्ञा को झूठे केस में जेल के अंदर किया गया था और उनको किसी से मिलने नहीं दे रहे थे तब आशारामजी बापू ने तत्कालीन सरकार को चेतावनी दी और साध्वी से मिलकर आये थे  तथा सांत्वना दी थी और निर्दोष बरी होंगे ऐसा बताकर आये थे। मोरारी बापू पर भी जब झूठे आरोप लगे थे तब आशारामजी बापू ने उनका समर्थन किया था और मीडिया को एक्सपोज किया था।


बता दे कि 2004 में जब शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को झूठे केस में जेल के अंदर किया था तब आशारामजी बापू जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए थे, उसके बाद सरकार को रिहा करना पड़ा।

https://youtu.be/DCyyVkkiiR4


आपको बता दें कि जब भी किसी साधु-संत पर आफत आती तब हिंदू संत आशाराम बापू चट्टान की तरह आगे आकर खड़े हो जाते थे, उनके करोड़ों फॉलोअर्स भी उनके समर्थन में खड़े हो जाते थे जिसके कारण सरकार व मीडिया तिलमिला जाती थी। आशारामजी बापू को जेल भेजने का एक कारण ये भी है लेकिन आज बड़ी शर्म की बात है- जिन साधु-संतों व हिंदू संस्कृति और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया उनके पक्ष में आज एक भी साधु-संत नहीं बोल रहे हैं, बाबा रामदेव ने तो बिल्कुल चुप्पी ही साध ली है।


आपको बता दें कि आशाराम बापू ने आदिवासियों में जाकर सनातन धर्म का प्रचार किया उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को नोचने-तोड़नेवाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। धर्मांतरित लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई। करोड़ों लोगों को धर्मान्तरण से बचाया। आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने को नहीं वहाँ 'भोजन करो, भजन करो, दक्षिणा पाओ' गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवन उपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है जिससे ईसाई मिशनरियां पीछे पड़ गईं और आखिर उनपर झूठे आरोप लगाए गए, मीडिया में बदनाम करवाया गया और आखिर जेल भेजवाया गया।


बता दें कि सात साल पहले आचार्य बालकृष्ण ने बताया था कि बापू आशारामजी पर बड़ा षड्यंत्र किया जा रहा है, सब साधु-संतों को साथ देना चाहिए लेकिन बाबा रामदेव भी समर्थन में नहीं आये, जबकि जो आज आर्युवेद का प्रचार रामदेव कर रहे हैं वे प्रचार उनसे कई वर्षों पहले बापू आशारामजी ने गांव-गांव, शहर-शहर जाकर किया था।


अभी समय आ गया है कि सभी साधु-संत व हिन्दू जनता एक होकर जो भी साधु-संत पर षड्यंत्र हो रहे हैं उसका डटकर मुकाबला करें और उन्हें षड्यंत्र से मुक्त करवाएं।


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भगवान बुद्ध ने समाज को जगाया पर उनके खिलाफ ही रचा गया था षड्यंत्र

25 मई 2021 

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भगवान बुद्ध का जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्यगणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकटलुंबिनी, नेपाल में हुआ था । लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था ।



कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया । शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया ।


कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन का युवराज था सिद्धार्थ! यौवन में कदम रखते ही विवेक और वैराग्य जाग उठा। युवान पत्नी यशोधरा और नवजात शिशु राहुल की मोह-ममता की रेशमी जंजीर काटकर महाभीनिष्क्रमण (गृहत्याग) किया। एकान्त अरण्य में जाकर गहन ध्यान साधना करके अपने साध्य तत्त्व को प्राप्त कर लिया।


एकान्त में तपश्चर्या और ध्यान साधना से खिले हुए इस आध्यात्मिक कुसुम की मधुर सौरभ लोगों में फैलने लगी। अब सिद्धार्थ भगवान बुद्ध के नाम से जन-समूह में प्रसिद्ध हुए। हजारों हजारों लोग उनके उपदिष्ट मार्ग पर चलने लगे और अपनी अपनी योग्यता के मुताबिक आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ते हुए आत्मिक शांति प्राप्त करने लगे। असंख्य लोग बौद्ध भिक्षुक बनकर भगवान बुद्ध के सान्निध्य में रहने लगे। उनके पीछे चलने वाले अनुयायियों का एक संघ स्थापित हो गया।


चहुँ ओर नाद गूँजने लगे :

 *बुद्धं शरणं गच्छामि।*

धम्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि।


शरावस्ती नगरी में भगवान बुद्ध का बहुत यश फैला। लोगों में उनकी जय-जयकार होने लगी। लोगों की भीड़-भाड़ से विरक्त होकर बुद्ध नगर से बाहर जेतवन में आम के बगीचे में रहने लगे। नगर के पिपासु जन बड़ी तादाद में वहाँ हररोज निश्चित समय पर पहुँच जाते और उपदेश-प्रवचन सुनते। बड़े-बड़े राजा महाराजा भगवान बुद्ध के सान्निध्य में आने जाने लगे।


समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं। अनादि काल से दैवी सम्पदा के लोग एवं आसुरी सम्पदा के लोग हुआ करते हैं। बुद्ध का फैलता हुआ यश देखकर उनका तेजोद्वेष करने वाले लोग जलने लगे। और जैसा कि संतों के साथ हमेशा से होता आ रहा है ऐसे उन दुष्ट तत्त्वों ने बुद्ध को बदनाम करने के लिए कुप्रचार किया। विभिन्न प्रकार की युक्ति-प्रयुक्तियाँ लड़ाकर बुद्ध के यश को हानि पहुँचे ऐसी बातें समाज में वे लोग फैलाने लगे। उन दुष्टों ने अपने षड्यंत्र में एक वेश्या को समझा-बुझाकर शामिल कर लिया।


वश्या बन-ठनकर जेतवन में भगवान बुद्ध के निवास-स्थान वाले बगीचे में जाने लगी। धनराशि के साथ दुष्टों का हर प्रकार से सहारा एवं प्रोत्साहन उसे मिल रहा था। रात्रि को वहीं रहकर सुबह नगर में वापिस लौट आती। अपनी सखियों में भी उसने बात फैलाई।


लोग उससे पूछने लगेः "अरी! आजकल तू दिखती नहीं है?कहाँ जा रही है रोज रात को?"


"मैं तो रोज रात को जेतवन जाती हूँ। वे बुद्ध दिन में लोगों को उपदेश देते हैं और रात्रि के समय मेरे साथ रंगरलियाँ मनाते हैं। सारी रात वहाँ बिताकर सुबह लौटती हूँ।"


वश्या ने पूरा स्त्रीचरित्र आजमाकर षड्यंत्र करने वालों का साथ दिया । लोगों में पहले तो हल्की कानाफूसी हुई लेकिन ज्यों-ज्यों बात फैलती गई त्यों-त्यों लोगों में जोरदार विरोध होने लगा। लोग बुद्ध के नाम पर फटकार बरसाने लगे। बुद्ध के भिक्षुक बस्ती में भिक्षा लेने जाते तो लोग उन्हें गालियाँ देने लगे। बुद्ध के संघ के लोग सेवा-प्रवृत्ति में संलग्न थे। उन लोगों के सामने भी उँगली उठाकर लोग बकवास करने लगे।


बद्ध के शिष्य जरा असावधान रहे थे। कुप्रचार के समय साथ ही साथ सुप्रचार होता तो कुप्रचार का इतना प्रभाव नहीं होता।


शिष्य अगर निष्क्रिय रहकर सोचते रह जाएं कि 'करेगा सो भरेगा... भगवान उनका नाश करेंगे..' तो कुप्रचार करने वालों को खुला मैदान मिल जाता है।


सत के सान्निध्य में आने वाले लोग श्रद्धालु, सज्जन, सीधे सादे होते हैं, जबकि दुष्ट प्रवृत्ति करने वाले लोग कुटिलतापूर्वक कुप्रचार करने में कुशल होते हैं। फिर भी जिन संतों के पीछे सजग समाज होता है उन संतों के पीछे उठने वाले कुप्रचार के तूफान समय पाकर शांत हो जाते हैं और उनकी सत्प्रवृत्तियाँ प्रकाशमान हो उठती हैं।


कप्रचार ने इतना जोर पकड़ा कि बुद्ध के निकटवर्ती लोगों ने 'त्राहिमाम्' पुकार लिया। वे समझ गये कि यह व्यवस्थित आयोजन पूर्वक षड्यंत्र किया गया है। बुद्ध स्वयं तो पारमार्थिक सत्य में जागे हुए थे। वे बोलतेः "सब ठीक है, चलने दो। व्यवहारिक सत्य में वाहवाही देख ली। अब निन्दा भी देख लें। क्या फर्क पड़ता है?"


शिष्य कहने लगेः "भन्ते! अब सहा नहीं जाता। संघ के निकटवर्ती भक्त भी अफवाहों के शिकार हो रहे हैं। समाज के लोग अफवाहों की बातों को सत्य मानने लग गये हैं।"


बद्धः "धैर्य रखो।

हम पारमार्थिक सत्य में विश्रांति पाते हैं। यह विरोध की आँधी चली है तो शांत भी हो जाएगी। समय पाकर सत्य ही बाहर आयेगा। आखिर में लोग हमें जानेंगे और मानेंगे।"


कछ लोगों ने अगवानी का झण्डा उठाया और राज्यसत्ता के समक्ष जोर-शोर से माँग की कि बुद्ध की जाँच करवाई जाये। लोग बातें कर रहे हैं और वेश्या भी कहती है कि बुद्ध रात्रि को मेरे साथ होते हैं और दिन में सत्संग करते हैं।


बद्ध के बारे में जाँच करने के लिए राजा ने अपने आदमियों को फरमान दिया। अब षड्यंत्र करनेवालों ने सोचा कि इस जाँच करने वाले पंच में अगर सच्चा आदमी आ जाएगा तो अफवाहों का सीना चीरकर सत्य बाहर आ जाएगा। अतः उन्होंने अपने षड्यंत्र को आखिरी पराकाष्ठा पर पहुँचाया। अब ऐसे ठोस सबूत खड़ा करना चाहिए कि बुद्ध की प्रतिभा का अस्त हो जाये।


षडयंत्रकारियों ने वेश्या को दारु पिलाकर जेतवन भेज दिया। पीछे से गुण्डों की टोली वहाँ गई। वेश्या के साथ बलात्कार आदि सब दुष्ट कृत्य करके उसका गला घोंट दिया और लाश को बुद्ध के बगीचे में गाड़कर पलायन हो गये।


लोगों ने राज्यसत्ता के द्वार खटखटाये थे लेकिन सत्तावाले भी कुछ लोग दुष्टों के साथ जुड़े हुए थे। ऐसा थोड़े ही है कि सत्ता में बैठे हुए सब लोग दूध में धोये हुए व्यक्ति होते हैं।


राजा के अधिकारियों के द्वारा जाँच करने पर वेश्या की लाश हाथ लगी। अब दुष्टों ने जोर-शोर से चिल्लाना शुरु कर दिया।


"देखो, हम पहले ही कह रहे थे। वेश्या भी बोल रही थी लेकिन तुम भगतड़े लोग मानते ही नहीं थे। अब देख लिया न? बुद्ध ने सही बात खुल जाने के भय से वेश्या को मरवाकर बगीचे में गड़वा दिया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। लेकिन सत्य कहाँ तक छिप सकता है? मुद्दामाल हाथ लग गया। इस ठोस सबूत से बुद्ध की असलियत सिद्ध हो गई। सत्य बाहर आ गया।"


लकिन उन मूर्खों को पता नहीं कि तुम्हारा बनाया हुआ कल्पित सत्य बाहर आया, वास्तविक सत्य तो आज ढाई हजार वर्ष के बाद भी वैसा ही चमक रहा है। आज बुद्ध भगवान को लाखों लोग जानते हैं, आदरपूर्वक मानते हैं। उनका तेजोद्वेष करने वाले दुष्ट लोग कौन-से नरकों में जलते होंगे क्या पता!


वर्तमान में जिन संतों के ऊपर आरोप लग रहे हैं उनके भक्त अगर सच्चाई किसी को बताने जाएंगे तो दुष्ट प्रकृति के लोग तो बोलेंगे ही, लेकिन जो हिंदूवादी और राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोग है वे भी यही बोलेंगे की कि बुद्ध तो भगवान थे, आजकल के संत ऐसे ही है, उनको इतने पैसे की क्या जरूत है? लड़कियों से क्यों मिलते हैं..??? ऐसे कपड़े क्यों पहनते हैं..??? आदि आदि...।


पर उनको पता नही है कि पहले ऋषि मुनियों के पास इतनी सम्पत्ति होती थी कि राजकोष में धन कम पड़ जाता था तो ऋषि मुनियों से लोन लिया जाता था और रही कपड़े की बात तो कई भक्तों की भावना होती है तो पहन लेते हैं और लड़कियां दुःखी होती हैं तो उनके मां-बाप लेकर आते हैं तो कोई दुःख होता है तो मिल लेते हैं,उनके घर थोड़े ही बुलाने जाते हैं और भी कई तर्क वितर्क करेगे लेकिन भक्तों को दुःखी नहीं होना चाहिए। सबके बस की बात नही है कि महापुरुषों को पहचान पाये, आप अपने गुरूदेव का प्रचार प्रसार करते रहें, एक दिन ऐसा आएगा कि निंदा करने वाले भी आपके पास आयेंगे और बोलेंगे कि मुझे भी अपने गुरु के पास ले चलो।


विदेशी फंडेड मीडिया ने हिंदू साधु-संतों की झूठी कहानी बनाकर समाज को परोसी, जिससे समाज गुमराह हो गया और सच्चाई न जानकर झूठ को ही सच मान बैठे, कुछ स्वार्थी नेता राष्ट्रविरोधी ताकतों से मिलकर झूठे केस में संतो को जेल भिजवा रहे हैं पर उसका भी देर सवेर खुलासा होगा क्योंकि सत्य को परेशान किया जाता है पराजित कभी नहीं...।


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भगतसिंह के प्रेरणास्रोत वीर करतार सिंह की अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति कैसी थी?

24 मई 2021

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भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष करतार सिंह सराभा थे। उनका जन्म 24 मई 1896 में हुआ था।



भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगों के साथ फांसी दे दी। 16 नवम्बर 1915 को करतार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे। 


16 नवम्बर 1915 को साढे़ उन्नीस साल के युवक करतार सिंह सराभा को उनके छह अन्य साथियों - बख्शीश सिंह (ज़िला अमृतसर), हरनाम सिंह (ज़िला स्यालकोट), जगत सिंह (ज़िला लाहौर), सुरैण सिंह व सुरैण- दोनों (ज़िला अमृतसर) व विष्णु गणेश पिंगले (ज़िला पूना, महाराष्ट्र) के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया गया। इनमें से ज़िला अमृतसर के तीनों शहीद एक ही गांव गिलवाली से संबंधित थे। इन शहीदों व इनके अन्य साथियों ने भारत पर काबिज़ ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ 19 फ़रवरी 1915 को ‘गदर’ की शुरुआत की थी। इस ‘गदर’ यानी स्वतंत्रता संग्राम की योजना अमेरिका में 1913 में अस्तित्व में आई ‘गदर पार्टी’ ने बनाई थी और इसके लिए लगभग आठ हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में सुख-सुविधाओं भरी ज़िंदगी छोड़कर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने के लिए समुद्री जहाज़ों द्वारा भारत पहुंचे थे। ‘गदर’ आंदोलन शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं था, यह सशस्त्र विद्रोह था; लेकिन ‘गदर पार्टी’ ने इसे गुप्त रूप न देकर खुलेआम इसकी घोषणा की थी और 'गदर पार्टी' के पत्र ‘गदर’, जो पंजाबी, हिंदी, बंगाली, पश्तो, उर्दू व गुजराती आदि छः भाषाओं में निकलता था- के माध्यम से इसका समूची भारतीय जनता से आह्वान किया था। 


अमेरिका की स्वतंत्र धरती से प्रेरित हो अपनी धरती को स्वतंत्र करवाने का यह शानदार आह्वान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित था और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जिसे अवमानना से ‘गदर’ नाम दिया, उसी ‘गदर’ शब्द को सम्मानजनक रूप देने के लिए अमेरिका में बसे भारतीय देशभक्तों ने अपनी पार्टी और उसके मुखपत्र को ही ‘गदर’ नाम से विभूषित किया। जैसे 1857 के ‘गदर’ यानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बड़ी रोमांचक है, वैसे ही स्वतंत्रता के लिए दूसरा सशस्त्र संग्राम यानी ‘गदर’ भी चाहे असफल रहा लेकिन इसकी कहानी भी कम रोचक नहीं है।


विश्वस्तर पर चले इस आंदोलन में दो सौ से ज़्यादा लोग शहीद हुए, ‘गदर’ व अन्य घटनाओं में 315 से ज़्यादा ने अंडमान जैसी जगहों पर काले पानी की उम्रकैद भुगती और 122 ने कुछ कम लंबी कैद भुगती। सैकड़ों पंजाबियों को गांवों में वर्षों तक नज़रबंदी झेलनी पड़ी। उस आंदोलन में बंगाल से रास बिहारी बोस व शचीन्द्रनाथ सान्याल, महाराष्ट्र से विष्णु गणेश पिंगले व डॉ॰ खानखोजे, दक्षिण भारत से डॉ॰ चेन्चय्या व चंपक रमण पिल्लै तथा भोपाल से बरकतुल्ला आदि ने हिस्सा लेकर उसे एक ओर राष्ट्रीय रूप दिया तो शंघाई, मनीला, सिंगापुर आदि अनेक विदेशी नगरों में हुए विद्रोह ने इसे अंतर्राष्ट्रीय रूप भी दिया। 1857 की भांति ही ‘गदर’ आंदोलन भी सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष संग्राम था जिसमें सभी धर्मों व समुदायों के लोग शामिल थे।


गदर पार्टी आंदोलन की यह विशेषता भी रेखांकित करने लायक है कि विद्रोह की असफलता से गदर पार्टी समाप्त नहीं हुई, बल्कि इसने अपना अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व बचाए रखा व भारत में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर व विदेशों में अलग अस्तित्व बनाए रखकर 'गदर पार्टी' ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। आगे चल कर 1925-26 से पंजाब का युवक विद्रोह, जिसके लोकप्रिय नायक भगत सिंह बने, भी गदर पार्टी व करतार सिंह सराभा से अत्यंत प्रभावित रहा। एक तरह से भगत सिंह का व्यक्तित्व व चिंतन 'गदर पार्टी' की परंपरा को अपनाते हुए उसके अग्रगामी विकास के रूप में निखरा।


करतार सिंह सराभा 'गदर पार्टी' के उसी तरह नायक बने, जैसे बाद में 1925-31 के दौरान भगत सिंह क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक बने। यह अस्वाभाविक नहीं है कि करतार सिंह सराभा ही भगत सिंह के सबसे लोकप्रिय नायक थे, जिनका चित्र वे हमेशा अपनी जेब में रखते थे और ‘नौजवान भारत सभा’ नामक युवा संगठन के माध्यम से वे करतार सिंह सराभा के जीवन को स्लाइड शो द्वारा पंजाब के नवयुवकों में आज़ादी की प्रेरणा जगाने के लिए दिखाते थे। ‘नौजवान भारत सभा’ की हर जनसभा में करतार सिंह सराभा के चित्र को मंच पर रखकर उसे पुष्पांजलि दी जाती थी।


करतार सिंह सराभा, गदर पार्टी आंदोलन के लोकनायक के रूप में अपने बहुत छोटे-से राजनीतिक जीवन के कार्यकलापों के कारण उभरे। कुल दो-तीन साल में ही सराभा ने अपने प्रखर व्यक्तित्व की ऐसी प्रकाशमान किरणें छोड़ीं कि देश युवकों की आत्मा को उसने देशभक्ति के रंग में रंगकर जगमग कर दिया। ऐसे वीर नायक को फांसी देने से न्यायाधीश भी बचना चाहते थे और सराभा को उन्होंने अदालत में दिया बयान हल्का करने का मशविरा और वक्त भी दिया, लेकिन देश के नवयुवकों के लिए प्रेरणास्रोत बननेवाले इस वीर नायक ने बयान हल्का करने की बजाय और सख्त किया और फांसी की सज़ा पाकर खुशी में अपना वज़न बढ़ाते हुए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गया।


भारत के ऐसे महान वीर सपूतों के कारण ही आज हम आज़ादी की सांसें ले रहे हैं लेकिन आज हम ही अपनी आजादी को खतरे में डाल रहे हैं। हम अपनी संस्कृति व संतों का मार्गदर्शन भूल रहे हैं जिसके कारण विधर्मी लोग धर्मांतरण आदि द्वारा भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हमें सावधान रहना होगा।


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लव जिहाद : इस्लामिक अत्याचारों की एक विस्मृत दास्तान

23 मई 2021

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हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरिज्म के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुल्तान देशभक्त आदि पढ़ा-पढ़ा कर इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।



ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है- सिरोंज के माहेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज- यह स्थान विदिशा से ५० मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- अधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हारराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।


200 साल पहले सिरोंज, टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कुटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दी गई कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर माहेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है तो न वहाँ का पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता है। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता है।


दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये- किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर-दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने। - डॉ. विवेक आर्य

https://bit.ly/3fySc5a


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राजा राममोहन राय ने मिशनरियों के धर्मांतरणरूपी षडयंत्र को कैसे रोका?

22 मई 2021

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राजा राममोहन राय अपने काल के प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से थे। वे हिन्दू समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों के विरोध में आवाज़ उठाते थे। वे अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी भाषा के बड़े समर्थक भी थे। इसलिए अंग्रेज उन्हें अपना आदमी समझते थे। सती प्रथा पर प्रतिबन्ध के लिए भी अंग्रेजों ने उन्हें सहयोग दिया था। राममोहन राय ने ग्रीक और हिब्रू भाषा का विस्तृत अध्ययन कर ईसाई मत के इतिहास और मान्यताओं का गहरा अध्ययन भी किया था।



उसी काल में ईसाईयों ने बंगाल के ईसाईकरण की योजना बनाई। यूरोप और अमेरिका से ईसाई मिशनरियों के जत्थे के जत्थे भर-भर कर बंगाल आने लगे। ईसाइयत के प्रचार के लिए ईसाईयों ने ऐसे-ऐसे तरीके अपनाये जो कोई मतान्ध व्यक्ति ही अपना सकता है। ईसाई पादरियों ने बड़ी संख्या में ऐसे साहित्य को प्रकाशित किया जिनमें हिन्दू देवी-देवताओं के विषय में भद्दी-भद्दी टिप्पणियों की भरमार थी और ईसाइयत की भर-भर कर प्रशंसा थी। इस साहित्य को ईसाई पादरी गली-मोहल्लों, हिन्दू मंदिरों-मठों, चौराहों पर खड़े होकर जोर-जोर से पढ़ते। अत्यंत गरीब और पिछड़े हुए हिन्दू, ईसाइयों के विशेष निशाने पर होते थे। अंग्रेजी राज होने के कारण हिन्दू समाज केवल रोष प्रकट करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पाता था।


राजा राममोहन राय पादरियों की इस करतूत से अत्यंत क्षुब्ध हुए। उन्होंने ईसाइयों की ऐसी कुटिल नीतियों का अपनी कलम से विरोध करना आरम्भ कर दिया। जो अंग्रेज उनके कभी प्रगाढ़ साथी थे वे उनके मुखर विरोधी हो गए। राजाजी ने अनेक पुस्तकें ईसाइयत के विरोध में प्रकाशित की थीं। उन्होंने बांग्ला और अंग्रेजी भाषा में द ब्राह्मणीकल मैगज़ीन (The Brahmanical Magazine) के नाम से पत्रिका भी प्रकाशित करनी आरम्भ की थी। इस पत्रिका के पहले अंक में ही उन्होंने ईसाई मिशनरियों के हिन्दुओं और मुसलमानों को ईसाई बनाने के तौर-तरीकों का पर्दाफाश किया था। राजाजी लिखते हैं कि अगर ईसाई मिशनरी में दम हो तो जिन देशों में अंग्रेजों का राज्य नहीं है, जैसे- इस्लामिक तुर्की आदि, वहां इसी विधि से अपना प्रचार करके दिखाए। अंग्रेजी राज में ऐसा करना बड़ा सरल है। एक ताकतवर सत्ता का एक कमजोर प्रजा पर ऐसी गुंडागर्दी करना कौन सा बड़ा कार्य है?


राजाजी ने ईसाइयों के विभिन्न मतों में विभाजित होने और एक-दूसरे का घोर विरोधी होने का विषय भी उठाया। उन्होंने लिखा कि ईसाइयों में ही यूनिटेरियन (Unitarian) और फ्रीथिंकर (Free Thinker) जैसे अनेक समूह हैं जो ट्रिनिटी के सिद्धांत को बाइबिल सिद्धांत ही नहीं मानते जैसा बाकि ईसाई समाज मानता है। रोमन कैथोलिक, प्रोटोस्टेंट, यूनिटेरियन आदि एक दूसरे को कुफ्र और अपना विरोधी बताते हैं। यह कहां की ईसाइयत है?


राजाजी ने ईसाइयों के ट्रिनिटी सिद्धांत (Theory of Trinity) पर भी कटाक्ष किया। इस सिद्धांत के अनुसार एक ईश्वर, एक ईश्वर का दूत और एक पवित्र आत्मा- ये तीन भिन्न-भिन्न सत्ता हैं। जो एक भी है और अलग भी हैं। राजाजी का कहना था कि यह कैसे संभव है कि एक ईश्वर अपना ही सन्देश देने के लिए अपना ही दूत बन जायेगा? अपना ही नौकर बनकर सूली पर चढ़ जायेगा? राजाजी ने इस विषय से सम्बंधित एक व्यंग भी प्रकाशित था। इस व्यंग के अनुसार एक यूरोपियन मिशनरी अपने तीन चीनी शिष्यों से पूछता है कि बाइबिल के अनुसार ईश्वर एक है अथवा अनेक। पहला शिष्य कहता है ईश्वर तीन हैं। दूसरा कहता है कि ईश्वर दो हैं और तीसरा कहता है कि कोई ईश्वर नहीं है। ईसाई मिशनरी उनसे इस उत्तर को समझाने का आग्रह करता है। पहला शिष्य कहता है कि एक ईश्वर, एक ईश्वर का दूत और एक पवित्र आत्मा के आधार पर ईश्वर तीन हुए। दूसरा कहता है कि ईश्वर का दूत अर्थात ईसा मसीह तो सूली पर चढ़ाकर मार दिया गया। इसलिए तीन में से दो रह गए। तीसरा शिष्य कहता है कि ईसाइयों का एक ईश्वर ईसा मसीह था जिसे 1800 वर्ष पहले सूली पर चढ़ाकर मार दिया गया। इसलिए ईसाइयों का अब कोई ईश्वर नहीं है। प्रश्न पूछने वाला ईसाई मिशनरी हक्का बक्का रह गया।


राजाजी ईसाइयों के पाप क्षमा होने के सिद्धांत के भी बड़े आलोचक थे। उनका कहना था कि यह कैसे संभव है कि करोड़ों लोगों द्वारा किया गया पाप अकेले ईसा मसीह भुगत सकता है? पाप करे कोई अन्य और भुगते कोई अन्य। ईसा मसीह ने जब कोई पापकर्म ही नहीं किया तो वह क्यों अन्यों का पाप कर्म भुगते? क्या यह किसी निरपराध को भयंकर सजा देना और पापी को अपराध मुक्त करने के समान नहीं है? पापियों को पाप का दंड न मिलना और किसी अन्य को उसके पापों की सजा मिलना अव्यावहारिक एवं असंभव है। इस खिचड़ी से अच्छा तो हिन्दुओं का कर्मफल का सिद्धांत है कि जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।


राजाजी ने बाइबिल में वर्णित चमत्कार की कहानियों की भी समीक्षा लिखी। बाइबिल में वर्णित चमत्कार की को गपोड़े सिद्ध करते हुए राजाजी लिखते हैं कि जिन काल्पनिक कहानियों से ईसाई मिशनरी हिन्दुओं को प्रभावित करना चाहते हैं, उन कहानियों से कहीं अधिक विश्वसनीय एवं प्रभाववाली कहानियां तो ऋषि अगस्त्य, ऋषि वशिष्ठ , ऋषि गौतम से लेकर श्री राम, श्री कृष्ण और नरसिंह अवतार के विषय में मिलती हैं। आखिर ईसाई मिशनरी ऐसा क्या प्रस्तुत करना चाहते हैं जो हमारे पास पहले से ही नहीं हैं?


राजाजी का वर्षों तक ईसाई पादरियों से संवाद चला। उनके प्रयासों से बंगाल के सैकड़ों कुलीन परिवारों से लेकर निर्धन परिवारों के हिन्दू ईसाई बनने से बच गए। राजाजी की इंग्लैंड में असमय मृत्यु से उनका मिशन अधूरा रह गया। ब्रह्मसमाज के बाद के केशवचन्द्र सेन जैसे नेता ईसाइयत, अंग्रेजियत और आधुनिकता के प्रभाव में आकर हमारी ही संस्कृति के विरोधी बन गए। मगर राजाजी अपनी विद्वता और ज्ञान का सारा श्रेय अपने प्राचीन धर्मग्रंथों जैसे दर्शन-उपनिषद् आदि को ही आजीवन देते रहे।


इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में राजाजी को केवल सती-प्रथा के विरोध में आंदोलन चलानेवाले के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं। मगर उनका हिन्दू समाज की ईसाइयत से रक्षा करनेवाले बुद्धिजीवी के रूप में योगदान को साम्यवादी इतिहासकारों ने जानबूझकर भुला दिया। राजाजी के योगदान को हम सदा स्मरण कर उनसे प्रेरणा लेते रहेंगे।


आज भी ईसाई मिशनरिज पुरजोश से हिंदुस्तान में धर्मांतरण का धंधा चला रहे हैं; उनके आगे जो आ रहे हैं उनकी हत्या करवा दी जाती है अथवा आजीवन कारावास करवा दिया जाता है जैसे कि ओडिशा के स्वामी लक्ष्मणानंदजी की हत्या करवा दी और दारा सिंह व आशाराम बापू को आजीवन कारावास करवा दिया। इसलिए देशवासी सावधान रहें औऱ ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण की आड़ में वोटबैंक बढ़ाकर देश की सत्ता हासिल करने के षडयंत्र को रोकें।


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हमारी न्याय-व्यवस्था का खेल: आतंकवादी, हत्यारों को पेरोल, पत्रकार बरी, संत को जेल !

21 मई 2021

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भारत की न्याय-व्यवस्था में एक कहावत है कि "कानून सबके लिए समान है।" लेकिन ये एक जुमला बनकर रह गया है। आपको बता दें कि आतकंवादी को पेरोल मिल रही है, पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे को पेरोल मिल गई, सबूत होते हुए भी पत्रकार को बरी कर दिया गया लेकिन राष्ट्र व संस्कृति की सेवा करनेवाले एक 85 वर्षीय हिंदू संत 8 साल से जेल में बंद हैं, स्वास्थ्य ठीक नहीं है फिर भी उन्हें एक दिन के लिए भी जमानत नहीं दी जा रही है।



आतंकवादी को पेरोल


खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के मुखिया देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर की रिहाई के लिए आतंकियों ने मिर्धा का अपहरण किया था. इसी मामले में हरनेक को 2004 में गिरफ्तार किया गया और 2017 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जयपुर सेंट्रल जेल में सजा काट रहा है।

गृह विभाग ने नियमित पेरोल पर रिहा 90 बंदियों की पैरोल अवधि को 30 जून तक बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब 57 बंदियों की सूची तैयार की गई है, जिन्हें 90 दिन की विशेष पेरोल दी जाएगी, उसमें 50वाँ नंबर हरनेक सिंह का है।


पर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे को पेरोल


तमिलनाडु सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन को 30 दिन के पेरोल की मंजूरी दी है।  उसकी मां की पेरोल की अर्जी राज्य सरकार ने स्वीकार कर ली। 


सबूत होते हुए भी बरी


तहलका पत्रिका के पूर्व एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल पर उसके सहकर्मी ने नवंबर 2013 में लिफ्ट में रेप का आरोप लगाया था और CCTV में सबूत भी था, लेकिन कुछ दिन बाद उसे जमानत मिल गई और अब 8 साल के बाद रिहा कर दिया गया।


85 वर्षीय संत को केवल जेल


हिंदू संत आशारामजी बापू पर 2013 में छेड़छाड़ का मामला दर्ज हुआ, मीडिया ने रेप-रेप चिल्लाया; जबकि लड़की ने केवल छेड़छाड़ का आरोप लगाया है और मेडिकल रिपोर्ट में भी साफ आया है कि लड़की को टच भी नहीं किया था, दूसरी बात- आशारामजी बापू के आश्रम में फैक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नहीं तो लड़की के झूठे केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो। उनके पास निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं, साजिश के तहत फंसाने के सबूत भी हैं फिर भी उनको आजतक एकदिन की भी जमानत नहीं दी गई- 21वीं सदी का इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है?



आपको बता दें कि बापू आशारामजी ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, आदिवासी व गरीब इलाकों में जाकर उनको सनातन धर्म का ज्ञान देकर व मकान, पैसे व जीवनोपयोगी सामग्री देकर धर्मांतरण पर रोक लगाई; उन्होंने स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व किया था। उन्होंने बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश में 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोले, करोड़ों लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं।


अब हिंदुओं को उनका साथ देना चाहिए, षड्यंत्र का पर्दाफाश करना चाहिए व उन्हें जेल से रिहा होना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जैसे लाखों हिंदुओं की लड़ाई अकेले लड़ रहे थे। अब हमारा कर्तव्य है- उनका साथ दें।


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हिंदू इतिहास से नहीं सीखे !! अभी भी समय है संभलने का...

20 मई 2021

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भारत में मुग़लों और अंग्रेजों ने हजारों साल इसलिए हिंदुस्थान पर राज किया क्योंकि जो राष्ट्रभक्त थे, संस्कृति प्रेमी थे और वे लाखों लोगों के हिस्से की लड़ाई खुद प्राणों को संकट में डालकर लड़ रहे थे लेकिन कुछ लोगों ने निजी स्वार्थ के लिए उनका साथ नहीं दिया जिसके कारण वे लड़ाई में सफल नहीं हो पाए और देश को पूर्ण स्वतंत्र नहीं करवा पाएं जैसे कि पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, सुभाष चंद्र बोस आदि आदि अनेक उदाहरण हैं अगर पूरे हिंदुस्तानी उनका साथ देते तो मुगलों व अंग्रेजो की ताकत ही नहीं थी कि एक दिन भी भारत में रह सके।



आज भी वही हिंदू इतिहास दोहराने जा रहा है हिंदू सोया हुआ है, आज जिस तरह ईसाई मिशनरियां हिंदुस्थान में धर्मांतरण करवा रही हैं और अपना वोट बैंक बढ़ाकर भारत पर सत्ता हासिल करना चाह रही हैं और जिस तरह विदेशी कंपनियों ने भारत में पैर जमाकर अपनी प्रोडक्ट बेंचकर भारत का धन विदेश में ले जा रहे है और देश व देशवासियों को खोखला कर रही है वे किसी को अंदाज भी नहीं है । इन सबको रोकने के लिए एक महापुरुष ने बीड़ा उठाया था पर किसी हिंदू ने साथ नहीं दिया आखरी में मीडिया द्वारा बदनाम करवाया गया और एक झूठे केस बनाकर जेल भिजवाया गया।  यहां तक ही उनकी उम्र 85 वर्ष है और बीमार हालत में भी उनको 8 साल में एकबार भी जमानत तक नहीं दी गई यहां तक कि जो कोर्ट आतंकवादी को बचाने के लिए आधी रात में कोर्ट खोल सकता है वही कोर्ट उनको 8 साल से केवल तारीख पर तारीख देती रहती हैं।


आपको ये सही बता रहे हैं हम आपको बता रहा रहें हैं हिंदू संत अशारामजी बापू के बारे में उन्होंने क्या किया वे आज आपको बताते हैं।


1.ईसाई मिशनरियों को खुली 

चुनौती देकर गरीबों, आदिवासियों में जाकर उनको सनातन धर्म की महिमा बताकर पैसे, मकान, जीवनुपयोगी सामग्री आदि देकर धर्मांतरण रोक देनेवाले संत आशारामजी बापू !


2.लाखों करोड़ों लोगों को अधर्म से 

धर्म की ओर ले जाने वाले संत आशारामजी बापू !


3. बिकाऊ मीडिया को रुपयों के 

पैकेज ना देकर, गरीबों में भंडारा 

करने वाले संत आशारामजी बापू !


4.गरीब इलाकों में 

चलचिकित्सालय चलवाकर 

निःशुल्क दवाईयाँ उपलब्ध 

करवाने वाले संत आशारामजी बापू !


5.लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को सनातन धर्म की महिमा बताकर पुनः हिंदू बनाने वाले संत आशारामजी बापू !


6.कत्लखाने में जाती हजारो गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाने वाले संत आशारामजी बापू !


7. शिकागो विश्व धर्मपरिषद में 

स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने वाले संत आशारामजी बापू !


8.विदेशी कंपनियों द्वारा देश को 

बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से लोगोँ का स्वास्थ्य और पैसा बचाने वाले संत आशारामजी बापू !


9.लाखों "ऋषि प्रसाद" मासिक पत्रिका द्वारा सनातन धर्म का ज्ञान विश्व मानव तक पहुँचाने वाले संत आशारामजी बापू !


10. लाखों करोड़ों विद्यार्थियों को आसन-प्राणयाम योग सिखाकर व सारस्वत मंत्र की दीक्षा देकर, तेजस्वी बनाने वाले संत आशारामजी बापू !


11.पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका, लंदन आदि अनेकों देशों में जाकर 

सनातन हिंदू धर्म का ध्वज 

फहरानेवाले संत आशारामजी बापू !


12.वलेंटाइन डे का विरोध करके 

"मातृ-पितृ पूजन दिवस" 

का प्रारम्भ करने वाले संत आशारामजी बापू !


13. करिसमस डे के दिन क्रिसमस ट्री 

के बजाय, तुलसी पूजन दिवस 

मनाने का संदेश देनेवाले संत आशारामजी बापू !


14.नशा मुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसन-मुक्त करवाने वाले संत आशारामजी बापू !


15.गिरते युवावर्ग को "दिव्य प्रेरणा प्रकाश" जैसी पुस्तकों द्वारा ब्रह्मचर्य की महिमा बताकर संयमी जीवन की ओर अग्रसर करने वाले संत आशारामजी बापू !


16. "महिला उत्थान मंडल" द्वारा महिलाओं का सर्वांगीण विकास करने वाले संत आशारामजी बापू !


17. वदिक शिक्षा पर आधारित 

अनेकों गुरुकुल खुलवाने वाले संत आशारामजी बापू !


18. पिछले 50 वर्षों से लगातार आदिवासियों के बीच मुफ्त भंडारा 

मकान, कपड़े, अनाज व दक्षिणा बाटनें वाले संत आशारामजी बापू !


19. मश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ  के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" 

स्वामी रामदेव, मोरारी बापूजी 

एवं अन्य संतों का साथ देने वाले संत आशारामजी बापू !


20. मश्किल हालातों में प्रशासन के मना करने पर भी निर्दोष "साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर " से जेल में जाकर मिलकर उन्हें सांत्वना देने वाले संत आशारामजी बापू !


21. मश्किल हालातों में, पूरे देश में चल रहे नकारात्मक प्रचार के समय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ देने 

वाले संत आशारामजी बापू !


"पूज्य आशारामजी बापू" जिनके सत्संग सुनने केे लाखों की भीड़ उमड़ती है, वे संत एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र के शिकार हुए हैं।


जिसमें मुख्य रूप से ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित भारतीय बिकाऊ मीडिया भी शामिल है ।


बिकाऊ मीडिया द्वारा दिन-रात अनर्गल आरोप लगाकर इतना कुप्रचार करने के बावजूद भी "पूज्य आशारामजी बापू" के करोड़ो शिष्य अबतक अपने सदगुरुदेव के प्रति अडिग श्रद्धाभाव से टिके हैं। क्यों....???


जिनके श्रीचरणों में लाखों नहीं करोड़ों लोग शीश झुकाते हैं और जो हर समय साधकों से घिरे रहते हैं क्या वे 2000 km दूर किसी भी कन्या को उसके माता पिता के साथ बुलाकर, उसके साथ गलत कर सकते हैं.. ???


यवावस्था में अपनी पत्नी को छोड़कर ईश्वर प्राप्ति के लिए गृह त्याग करनेवाले कारक महापुरुष क्या ऐसा गलत कार्य कर सकते हैं ?


जिनके दर्शन सत्संग से सैकड़ो युवान/युवतियाँ ने संसार विमुख होकर ईश्वर प्राप्ति के लिए सन्यास जीवन स्वीकारा,क्या वे संत स्वयं ऐसा गलत कार्य कर सकते हैं ???


हम आपसे ही पूछते हैं क़ि सच्चे दिल से ज़रा सोचकर देखिये कि 85 वर्ष के वृद्ध महान ब्रह्मज्ञानी संत जो पिछले 50 वर्षों से संस्कृति उत्थान कार्यों में सेवारत हैं।

क्या वे ऐसा गलत कार्य कर सकते हैं.. ???


स्वयं विचारें!!!


यह पोस्ट इस हिंदुस्तान के निष्क्रिय सज्जनों को दिखाने हेतु बनाया गया है !

जो अपने हिंदुस्तान के महापुरुषों के साथ अन्याय होता देखकर भी चुप हैं।


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