Monday, March 27, 2023

कैथोलिक चर्च के पादरी बेनेडिक्ट एंटो पर कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म का आरोप

27  March 2023

http://azaadbharat.org


🚩कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक  नन सिस्टर मैरी चांडी  ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी।


🚩कैथलिक चर्च कि दया, शांति और कल्याण कि असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता कि पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो कि  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । लेकिन फिर भी महान हिन्दूधर्म के मंदिरो एवं पवित्र हिन्दू धर्मगुरुओं को ही मीडिया और तथाकथित सेक्युलर बदनाम करते है ।


🚩पादरी ने 80 महिलाओं के साथ किया यौन शौषण 



🚩तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में एक पादरी को सोमवार (20 मार्च 2023) सुबह उसके नागरकोइल फार्महाउस से यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पादरी का नाम बेनेडिक्ट एंटो (Benedict Anto) है। नर्सिंग कॉलेज की छात्रा की शिकायत के आधार पर कन्याकुमारी पुलिस ने बेनेडिक्ट एंटो के खिलाफ मामला दर्ज किया था। वह पिछले कुछ दिनों से फरार चल रहा था। एंटो सोशल मीडिया पर अपनी अश्लील फोटो और वीडियो वायरल होने के बाद से चर्चा में है।


🚩सिरो मलंकारा कैथोलिक चर्च के पादरी पर कई महिलाओं के साथ अवैध संबंध का भी आरोप है। बताया जा रहा है कि एंटो के 16 से 50 उम्र की 80 महिलाओं के साथ करीब 200 आपत्तिजनक वीडियो सामने आए हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कन्याकुमारी जिले की साइबर पुलिस ने एक नर्सिंग कॉलेज की छात्रा द्वारा पादरी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। लगभग एक हफ्ते पहले से पादरी की अश्लील वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। छात्रा ने अपनी शिकायत में बताया था कि पादरी बेनेडिक्ट एंटो उसे ऑनलाइन परेशान कर रहा था। जब भी वह चर्च में जाती थी, एंटो उसे गलत तरीके से छूता था।


🚩कुछ दिन बाद एंटो ने उसकी माँ से उसका मोबाइल नंबर ले लिया। फिर वह उस पर वीडियो कॉल और व्हाट्सएप चैट करने का दबाव बनाने लगा। इसके बाद उसने उसे ऑनलाइन परेशान करना शुरू कर दिया।


🚩जब छात्रा को पता चला कि एंटो उसकी तरह दूसरी लड़कियों को भी परेशान कर रहा है, तो उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया। हालाँकि, एंटो के अलावा कुछ और लोगों ने उसे धमकाना शुरू कर दिया। उसने अपनी शिकायत में तीन और लोगों का नाम भी लिया है। शिकायत के आधार पर साइबर पुलिस ने एंटो और अन्य लोगों पर आईटी एक्ट, महिला उत्पीड़न और धमकी देने संबंधी धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया और उसकी तलाश में जुट गए।


🚩30 वर्षीय पादरी कन्याकुमारी जिले में नागरकोइल के पास मार्तंडम का रहने वाला है। वह विभिन्न राजनीतिक समूहों से जुड़ा हुआ है, जिसमें से एक नाम तमिलर काची सीमान (NTK) है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों में से एक में वह एनटीके नेता सीमन उर्फ सेबेस्टियन, जो श्रीलंका के आतंकी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का समर्थक है उसके साथ नजर आ रहा है।


🚩बेनेडिक्ट एंटो के फेसबुक प्रोफाइल से पता चलता है कि वह सीमन का समर्थक है। उसने अपने घर में सीमन के साथ फोटो भी लगाई हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि वह मेक्कामंडपम पिलंकलाई में आरसी चर्च में पादरी है।


🚩13 मार्च 2023 को सोशल मीडिया पर बेनेडिक्ट एंटो की एक वीडियो खूब वायरल हुआ, जिसमें वह एक लड़की को किस (चुम्मा लगाते ) करते हुए नजर आ रहा है। वहीं, पादरी ने कुछ दिन पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि कुछ लोगों ने उस पर हमला किया और उसका लैपटॉप व मोबाइल छीन लिया।


🚩विश्व में कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीडऩ के मामले सामने आ चुके हैं। अकेले 2001-10 के कालखंड में 3 हजार पादरियों पर यौन उत्पीडऩ और कुकर्म के आरोप लग चुके हैं जिनमें अधिकतर मामले 50 साल या उससे अधिक पुराने हैं। रोमन कैथोलिक चर्च एक कठोर सामाजिक संस्था है जो हमेशा अपने विचार और विमर्श को गुप्त रखती है। अपनी नीतियां स्वयं बनाती है और मजहबी दायित्व कि पूर्ति कठोरता से करवाती है। 


🚩जब-जब हिन्दू साधु-संतों से जुड़े मामले प्रकाश में आए तब-तब अधिकतर को समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी सुर्खियों के साथ श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है और कई दिनों तक यह न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो का मुख्य मुद्दा भी बना रहता है। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, संत आशाराम बापू, स्वामी नित्यानंद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानन्द आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

🚩ऐसा क्यों है कि जब भी हिन्दू साधु-संतों से जुड़ी तथाकथित आपराधिक खबरें सामने आती हैं वे एकाएक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं किन्तु अन्य मजहबों से संबंधित मामलों में सन्नाटा पसरा मिलता है? क्या मीडिया भी पादरी, मौलवी के अपराधो के साथ रहती है? उनकी अपराधिक खबरे छुपाने के पैसे मिलते है???


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, March 26, 2023

श्री राम राज्याभिषेक महोत्सव पर जानिए रामराज्य की विशेषताएँ क्या थी ? जो आज भी आदर्श है....

26 March 2023

http://azaadbharat.org


🚩एक ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना तथा धरा पर उसका अवतरण, जहाँ हर ओर धर्ममय वातारण और तत्जन्य सुख-समृद्धि का वातारवण हो, प्रारंभ से ही मानवमन की लालसा रही है। अवध के सिंहासन पर राज्याभिषेक के बाद राम के शासन को  महर्षि वाल्मीकिजी ने एक ऐसा ही आदर्श राज्य बताया है। इसे उन्होंने रामराज्य की संज्ञा दी है।


🚩किसी भी देश में राजा अथवा शासक को राज्य की खुशहाली का जिम्मेदार माना जाता रहा है। इसके विपरीत यदि राज्य में कहीं कोई बदहाली है तो इसका उत्तरदायी भी राजा ही रहता है। 'यथा राजा तथा प्रजा' अर्थात जैसा राजा वैसी प्रजा, यह उक्ति लोक में प्रसिद्ध भी है। किंतु संभवत: अभी तक कोई राजा इतना अच्छा नहीं हुआ कि उसके राज्य में सारी प्रजा पूर्णत: प्रसन्न और संतुष्ट हो, राज्य में चारों ओर खुशहाली हो। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो संभवत: एकमात्र राम के शासन में रहा राज्य आदर्श राज्य कहा गया है। रामराज्य का अर्थ ही हो गया, एक आदर्श राज्य, सुशासित राज्य। रामकथा में रामराज्य का प्रत्यय अत्यंत महत्वपूर्ण है। रामकथा की लोकप्रियता और सर्वस्वीकृति का एक महत्वपूर्ण कारण रामराज्य की अवधारणा भी है। राम सचेत शासक तो थे ही, पर मुख्य बात यह है कि स्वयं अपने चरित्र के माध्यम से उन्होंने परिवार, समाज एवं देश का अच्छा सदस्य बनने की प्रेरणा भी अपनी प्रजा को दी थी।


🚩रामायण में रामराज्य का उल्लेख



🚩वाल्मीकीय रामायण में तीन स्थानों पर रामराज्य का उल्लेख है। सर्वप्रथम इसका वर्णन बालकांड (सर्ग १) में मिलता है। यहाँ नारद वाल्मीकि को संक्षेप में रामकथा सुनाते हैं जो राम के जन्म से लेकर अयोध्या वापसी पर राम के राज्याभिषेक तक चलती है। इस तरह यह कथा भूत से लेकर वर्तमान तक की है। फिर आगे छह श्लोकों में नारद भविष्य की कथा बताते हैं कि अब जो राम अयोध्या पर राज्य करेंगे, वह राम-राज्य कैसा होगा। यहाँ संक्षेप में रामराज्य की विशेषताएँ बताई गई हैं। दूसरी बार वाल्मीकि युद्धकांड (सर्ग १२८) में रामराज्य का वर्णन करते हैं जिसमें रामराज्य कैसा था, यह बताया गया है। अंत में उत्तरकांड (सर्ग ४१) में भरत के मुख से पुन: रामराज्य का वर्णन सुनने मिलता है। उल्लेखनीय है कि रामराज्य को लेकर तीनों वर्णनों में अधिकांश तथ्य समान हैं। परवर्ती रामकाव्यों, जैसे अध्यात्मरामायण और मानस आदि में यह वर्णन वाल्मीकि रामायण के समान ही है। हाँ, आधुनिक युग में 'रामराज्य' के नाम से बलदेवप्रसाद मिश्र, हरिशंकर शर्मा एवं सुरेशचंद्र शर्मा द्वारा तीन कृतियाँ रची गई हैं। ये तीनों ही रामायण की विचार-धारा के साथ गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित हैं। यहाँ भारतीय धर्म और संस्कृति का आदर्शरूप चित्रित किया गया है।                       


🚩रामराज्य की छह प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काल में सभी सुखी है, सभी कर्तव्यपरायण हैं, सभी दीर्घायु है, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जा सकता है।


🚩सभी सुखी-

रामराज्य की बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ सभी प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, हृष्ट-पुष्ट है। सुख या संतुष्टि तन-मन दोनों की होती है। शरीर के स्वस्थ होने का अर्थ है कि वह रोगव्याधि से, जो हमें दुख देते हैं, मुक्त हैं। स्वस्थ शरीर सुख का बड़ा कारण होता है। मन के विभिन्न प्रकार के विकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, असंतोष आदि भी हमारी प्रसन्नता में बाधक होते हैं। ये मानवीय संबंधों में तरह-तरह की कटुता और विकृतियों को भी जन्म देते हैं जिससे समाज और व्यक्ति दोनों ही प्रभावित होते हैं। रामराज्य में सभी के सुखी होने का तात्पर्य है कि किसी को किसी प्रकार का दु:ख नहीं है। वस्तुत: यहाँ कोई किसी को दु:ख पहुँचाता नहीं है। स्पष्ट है कि समाज में ऐसी स्थिति की कामना हर मनुष्य करता है। वाल्मीकि के शब्दों में निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति (वा.रा.यु.कां.१२८.१०१) अर्थात रामराज्य में रोग और शोक से रहित थे तथा सर्वे मुदितमेवासीत् अर्थात सभी प्रसन्न रहते थे। इस समय की स्थिति सतयुग के समान थी (वही, बा.कां.१.९३)।


🚩तुलसीदास की रामराज्य में सर्वसुखी होने को दर्शाने वाली प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं-दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि व्यापा।।(मानस,उ.कां.२१.१) यहाँ व्यक्ति स्वयं तो सुखी है ही दूसरों से भी उसके प्रेम संबंध है। सभी मनुष्य परस्पर प्रेम से रहते हैं। सब नर करहिं परस्पर प्रीति। (बा.कां २१.१) यहाँ तक कि हाथी और सिंह जैसे पशु भी परस्पर प्रेम से रहते हैं। रहहिं एक संग गज पंचानन। रामराज्य में सुखसंपदा इतनी है कि बरनि न सकइ फनीस शारदा। अर्थात शेषनाग और सरस्वती भी उसका वर्णन करने में समर्थ नहीं है। पर्वत स्वयं मणियों की खानें प्रगट करते हैं और समुद्र लहरों के द्वारा डारहिं रत्न

तटहिं नर लहहिं अर्थात किनारों पर रत्न डाल देते हैं जिसे लोग पा लेते हैं। वृक्ष माँगने से ही मधु टपका देते हैं और गौएँ मनचाहा दूध देती हैं। धरती सदा हरी भरी रहती है। यहाँ कोई दरिद्र, दुखी और दीन नहीं है। नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।  

   

🚩सभी कर्तव्यपरायण-

किसी भी राज्य में खुशहाली तभी आती है जब सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करें। यदि 'मैं' अर्थात हर व्यक्ति अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने लगे तो किसी भी समाज में रामराज्य आने में समय नहीं लगेगा। श्रेष्ठ सामाजिकता एवं नैतिकता यही है। रामायण-काल में हमारे देश में व्यक्तियों के कर्तव्य निर्धारित करने के लिये वर्णाश्रम व्यवस्था रही है। हमारे देश की प्राचीन व्यवस्था में भी व्यक्ति के वर्ण और आश्रमिक स्थिति के अनुसार अपने कर्तव्यों के पालन पर बल दिया गया है। इस व्यवस्था की आदर्श स्थिति यह है कि सभी व्यक्ति अपने-अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कार्य करें। वाल्मीकि लिखते हैं-ब्राह्मणा: क्षत्रिया: वैश्या: शूद्रा: लोभविवर्जिता:।...अर्थात रामराज्य में चारों वर्ण के लोग लोभरहित होकर अपने-अपने वर्णाश्रमानुसार कर्म करते हुए संतुष्ट रहते थे (वा.रा.यु.कां.१२८.१०४)।


🚩रामराज्य की इस व्यवस्था के विषय में वाल्मीकि के समान तुलसी भी कहते हैं-

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।। (मानस,उ.कां.२०)

अन्य स्थान पर तुलसी कहते हैं-चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।। अर्थात लोक श्रुति और नीति के अनुसार अपने अपने धर्म में रत रहते थे। यहाँ उल्लेखनीय है आज हमें प्राचीन वर्णव्यस्था में अनेक दोष दिखाई देते हैं। यह हमें अमानवीय लगती है किंतु हमें स्मरण रखना चाहिये कि वर्ण जन्म के आधार पर नहीं कर्म के उसकी प्रकृति के आधार पर तय होते थे। किसी भी देश का कल्याण तभी संभव है जब उस देश का शासक दार्शनिक हो। इससे स्पष्ट है कि मनुष्य की प्रकृति के अनुसार उसका वर्ण निर्धारित होना चाहिये। जब वर्ण जन्म के आधार पर होता तभी इस व्यवस्था में विकृति आती है।


🚩पूर्ण आयु-

रामराज्य में सभी पूर्ण आयु प्राप्त करते थे। पूर्ण आयु प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु शोकप्रद नहीं होती। मृत्यु का दु:ख परिजनों के लिये तब अत्यंत कष्टकारी होता है जब वह अकाल आती है। किसी भी पिता के लिये पुत्र की अर्थी को कंधा देना अपने मरण से अधिक पीड़ादायक होता है। रामराज्य की विशेषता है कि इसमें न पुत्र की मृत्यु होगी न स्त्रियाँ विधवा होगी। वाल्मीकि कहते हैं-राम राज्य में विधवाओं का विलाप नहीं सुनाई देता था। बूढ़ों को बालकों के अन्त्येष्टि संस्कार नहीं करने पड़ते थे न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि (वा.रा.यु.कां.१२८.९९)।


🚩रामायण के अनुसार रामराज्य में अकालमृत्यु होने पर उसका कारण ढूँढा जाता था तथा फिर उसका निवारण भी किया जाता था। इस संदर्भ में शंबूक-वध का प्रसंग दृष्टव्य है। शंबूकवध यद्यपि आलोच्य रहा है, किंतु एक बात ध्यातव्य है कि अच्छे शासक को अकालमृत्यु का कारण ढूँढ कर उसका निवारण करना चाहिये। अकालमृत्यु का एक कारण अन्य जंतुओं का उत्पात भी होता है। रामराज्य में सर्प आदि दुष्ट जंतुओं का भय नहीं था और रोगों की आशंका भी नहीं थी (वा.रा.यु.कां.१२८.९८)।

तुलसी ने इस संदर्भ में रामराज्य का कितना सुंदर चित्र खींचा है-

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं काउ अबुध न लच्छन हीना।। (मानस,उ.कां.२१.३)


🚩दाम्पत्य प्रेम-

किसी भी समाज में पति-पत्नी के बीच परस्पर प्रेम, सौहार्द्र और विश्वास परिवार की और साथ ही समाज की खुशहाली का मुख्य कारण होता है। रामराज्य में स्त्रियाँ तो पतिव्रता थी ही, पुरुष भी एकपत्नीव्रती थे।

एकनारि व्रतरत सब झारी।

ते मन बचन क्रम पति हितकारी।।

स्वयं राम तथा शेष तीनों भाइयों के एकपत्नीव्रती होने का उदाहरण प्रजा के सामने था।


🚩प्रकृति की उदारता-

मनुष्य प्रकृति से बँधा है। उससे अलग वह नहीं रह सकता। बल्कि कहा जाये तो उसे प्रकृति की दया की नितांत आवश्यकता होती है। रामराज्य में प्रकृति भी मनुष्य पर मेहरबान थी। वहाँ दुर्भिक्ष का भय नहीं था। आग और पानी भी नुकसान नहीं पहुँचाते थे। सभी नगर धनधान्य संपन्न थे। यहाँ वृक्षों की जड़ें मजबूत होती थीं। वृक्ष सदा फूलों फलों से लदे रहते थे। मेघ आवश्यकतानुसार बरसते थे। वायु मंदगति से सुखद स्पर्श देते हुए चलती थी।

नित्यमूला नित्यफलास्तरवतत्र पुष्पिता:।

कामवर्शी च पर्जन्य: सुखस्पर्शश्च मारुत:।। (वा.रा.यु.कां.१२८.१०३)।


🚩अध्यात्मरामायणकार कहते हैं-राघवे शासति भुवं लोकनाथे रमापतौ। वसुधा शस्यसम्पन्ना फलवन्तश्च भूरुहा: (अ.रा.उ.कां ४.२१) अर्थात त्रिलोकीनाथ लक्ष्मीपति राघव के राज्य में धरती धन-धान्य से सम्पन्न थी और वृक्ष हमेशा फलों से लदे दिखाई देते थे। मानस में तुलसीदास रामराज्य में उदार प्रकृति का वर्णन इन शब्दों

में करते हैं- फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। वनों में वृक्ष सदा फूलते और फलते हैं। सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा।। अर्थात शीतल मंद सुगंधित पवन बहती रहती है और भौंरे पुष्पों का रस लेकर गुंजार करते जाते हैं।


🚩नैतिक उत्कृष्टता-

नैतिकता ही समाज को मजबूती और श्रेष्ठता प्रदान करती है। वाल्मीकि के अनुसार रामराज्य में चोर-लुटेरों का भय नहीं था। नानर्थं कश्चिदस्पृशत् अर्थात अनर्थकारी काम कोई करता ही नहीं था (वा.रा.यु.कां.१२८.९९)। सारी प्रजा धर्म में तत्पर रहती थी। कोई झूठ नहीं बोलता था। (वही, १०५) उदारता, परोपकारिता, अचौर्य, और विप्रों की सेवा करना यह गुण सभी व्यक्तियों में होना आवश्यक है। तुलसी के शब्दों में- 

सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी।।


🚩नैतिक उत्कृष्टता के लिये ज्ञान का होना आवश्यक है। रामराज्य में सभी ज्ञानी थे इसीलिये दंभरहित कृतज्ञ और अकपट की भावना मन में रखते थे।

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी । नर अरु नारि चतुर सब गुनी।।

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतज्ञ नहिं कपट सयानी।। (मानस,उ.कां.२१.४)

रामनाम की गूँज-किसी भी शासक का चरित्र दृढ़ हो एवं उसके कार्य प्रजा के अनुकूल हो तो स्वाभाविक ही प्रजा उसका नामजप करती है। रामराज्य में प्रजा केवल राम की ही चर्चा होती थी। सारा जगत राममय हो रहा था। रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथा (वा.रा.यु.कां.१२८.१०२)।

पुरी के लोग कहते थे कि हमारे लिये चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें (वही, उ.कां.४१.२१)।

मानस में तुलसी ने प्रजा को रामभक्ति में रत बताया है-

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परमगति के अधिकारी।।

तो ऐसा था रामराज्य। राम ने इस तरह स्थापित किया था अपने साम्राज्य में आदर्श का प्रतिरूप। - डॉ. शोभा निगम



🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, March 25, 2023

नवरात्रि रहस्य: भारत इकलौती संस्कृति जिसने देवी पूजा को सँभाल कर रखा

25 March 2023

http://azaadbharat.org


🚩नवरात्रि अर्थात मातृ शक्ति की सृजनशीलता का पर्व, पारम्परिक रूप से देवी की पूजा करने वाली संस्कृतियाँ इस बात से पूरी तरह अवगत थीं कि अस्तित्व में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे कभी समझा नहीं जा सकता। आप उसका आनंद उठा सकते हैं, उसकी सुंदरता का उत्सव मना सकते हैं, मगर कभी उसे समझ नहीं सकते। कहा जाता है कि जीवन एक रहस्य है, ये रहस्य इसलिए भी है कि हमें परिणाम तो दिखता है लेकिन कारण लुप्त है। शायद जीवन हमेशा रहस्य ही रहे, जब तक हम खुद इस खोज के साधक न हो। सनातन सदैव धर्म और अध्यात्म की इसी सतत खोज की परम्परा का वाहक है।


🚩या देवी सर्वभूतेषु…. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: … सनातन परम्परा जिनकी रगों में बहता है, ऐसे आदि गुणों के वाहक हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ और रामनवमी को इसका समापन होता है। यह त्योहार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह “गुड़ी पड़वा” के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव “उगादी” से शुरू होता है।



🚩एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीनों में चार बार नवरात्र आते हैं, लेकिन चैत्र और आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलने वाले नवरात्र ही ज्यादा लोकप्रिय हैं। यह समय, आदि देवी माँ भगवती की आराधना और स्त्री शक्ति की सृजनशीलता का उत्सव मनाने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। नवरात्र वह समय है, जब दोनों ऋतुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियाँ सतत ऊर्जा के रूप में मानवता का कल्याण करती हैं। बात करें धर्म ग्रंथों, पुराणों की तो उसमें चैत्र नवरात्र का समय सृजन और स्त्री शक्ति के उत्सव का समय है। इसका एक कारण यह भी है कि प्रकृति में इस समय हर तरफ नए जीवन और एक नई उम्मीद का बीज अंकुरित होने लगता है। ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जनमानस में भी एक नई उर्जा का संचार हो रहा होता है। लहलहाती फसलों से उम्मीदें जुड़ी होती हैं।


🚩नवरात्रि क्या है ? मनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? क्यों है ये आदि सनातन परम्परा का वाहक? कुछ तो होगा इस उत्सव धर्मिता के पीछे का रहस्य? आइए इन सब पर बातें करते हैं। पहली बात सनातन परम्परा में जीवन का रहस्य यही है कि गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह शामिल होना, जीवन के हर क्षण का उत्सव मनाना।


🚩नवरात्रि का उत्सव ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-शक्ति यानी स्त्रैण के तीन आयामों की प्रतीक हैं। वे धरती, सूर्य और चंद्रमा या तमस (जड़ता), रजस (सक्रियता या जोश) और सत्व (परे जाना, ज्ञान, शुद्धता) की प्रतीक हैं।


🚩तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का मतलब है सक्रियता और जोश। सत्व एक तरह से सीमाओं को तोडक़र विलीन होना है, पिघलकर समा जाना है। इन तीन खगोलीय पिंडों से हमारे शरीर की रचना का बहुत गहरा संबंध है- पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा। इन तीन गुणों को इन तीन पिंडों से भी जोड़ कर देखा जाता है। धरती माँ को तमस माना गया है, सूर्य रजस है और चंद्रमा सत्व। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस से जुड़े होते हैं। इसके बाद के दिन रजस से, और नवरात्रि के अंतिम दिन सत्व से जुड़े होते हैं।


🚩जो लोग शक्ति, अमरता, क्षमता या सृजन की इच्छा रखते हैं, वे स्त्रैण के उन रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें तमस कहा जाता है, जैसे काली या धरती माँ अर्थात सृजन का आदिस्रोत प्रकृति। सद्गुरु कहते हैं, जो लोग धन-दौलत, जोश, उत्साह, जीवन और भौतिक दुनिया की तमाम दूसरी सौगातों की इच्छा करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से स्त्रैण के उस रूप की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे लक्ष्मी या सूर्य के रूप में जाना जाता है। जो लोग ज्ञान, बोध चाहते हैं और नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाना चाहते हैं, वे स्त्रैण के सत्व रूप की आराधना करते हैं। सरस्वती या चंद्रमा उस शक्ति के प्रतीक हैं।


🚩तमस धरती की प्रकृति है जो सबको जन्म देने वाली है। हम जो समय गर्भ में बिताते हैं, वह समय तामसी प्रकृति का होता है। उस समय हम लगभग निष्क्रिय स्थिति में होते हुए भी विकसित हो रहे होते हैं। इसलिए तमस धरती और मनुष्यता के जन्म की प्रकृति है। हम सब सृजन के इस आयाम का अनुभव कर सकते हैं। हमारा पूरा जीवन इस पृथ्वी की देन है। सनातन में पृथ्वी के इस आयाम से एकाकार होने को महत्वपूर्ण साधना के रूप में विकसित किया गया है। वैसे भी हम सब पृथ्वी के एक अंश हैं। प्रकृति जब चाहती है, एक शरीर के रूप में अपने गर्भ में सृजन कर हमें नया जीवन दे देती है और जब वह चाहती है, उस शरीर को वापस खाक कर अपने भीतर समा लेती है।

🚩सद्गुरु कहते हैं, नवरात्री के अवसर पर इन तीनों आयामों में आप खुद को जिस तरह से शामिल करेंगे, वह आपके जीवन को एक नई दिशा देगा। अगर आप खुद को तमस की ओर ले जाते हैं, तो आप एक तरीके से शक्तिशाली होंगे। अगर आप रजस पर ध्यान देते हैं, तो आप दूसरी तरह से शक्तिशाली होंगे। लेकिन अगर आप सत्व की ओर जाते हैं, तो आप बिल्कुल अलग रूप में शक्तिशाली होंगे। लेकिन यदि आप इन सब के परे चले जाते हैं, तो बात शक्ति की नहीं रह जाएगी, फिर आप मोक्ष की ओर बढ़ेंगे।


🚩कहते हैं, जो पूर्ण जड़ता है, वह एक सक्रिय रजस बन सकता है। रजस पुन: जड़ता बन जाता है। यह परे भी जा सकता है और वापस उसी तमस की ओर भी जा सकता है। दुर्गा से लक्ष्मी, लक्ष्मी से दुर्गा, सरस्वती कभी नहीं हो पाई। इसका मतलब है कि हम जीवन और मृत्यु के चक्र में फँसे हैं। उनसे परे जाना अभी बाकी है।


🚩यह सिर्फ प्रतीकात्मक ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी सत्य है। इंसान के रूप में में हम धरती से निकलते हैं और सक्रिय होते हैं। कुछ समय बाद, हम फिर से जड़ता की स्थिति में चले जाते हैं। सिर्फ व्यक्ति के रूप में हमारे साथ ऐसा नहीं होता, बल्कि तारामंडलों और पूरे ब्रह्मांड के साथ ऐसा हो रहा है। ब्रह्मांड जड़ता की स्थिति से निकल कर सक्रिय होता है और फिर जड़ता की अवस्था में चला जाता है। ध्यान रहे, बस हमारे अंदर इस चक्र को तोड़ने की क्षमता है। इंसान के जीवन और खुशहाली के लिए देवी के पहले दो आयामों की जरूरत होती है। तीसरा परे जाने की इच्छा है। कहते हैं, अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन तक कभी नहीं पहुँच सकते।


🚩सनातन परम्परा में ही स्त्री शक्ति को सर्वाधिक महत्व हासिल है। स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन रूप है। स्त्री सृजन का पर्याय है। सिर्फ भारत में ही नहीं, अपितु यूरोप, अरेबिया और अफ्रीका के बड़े हिस्सों में भी कभी स्त्री शक्ति की पूजा होती थी। वहाँ देवियाँ होती थीं। दुर्भाग्यवश, पश्चिम में मूर्तिपूजा और एक से ज्यादा देवों की पूजा के सभी नामोनिशान मिटाने के लिए देवी मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया गया। दुनिया के बाकी हिस्सों में भी यही हुआ।


🚩धर्म न्यायालयों और धर्मयुद्धों का मुख्य मकसद मूर्ति पूजा की संस्कृति को मिटाना था। मूर्तिपूजा का मतलब देवी पूजा ही था। जो लोग देवी पूजा करते थे, उन्हें कुछ हद तक तंत्र-मंत्र विद्या में महारत हासिल थी। कामरूप कामाख्या मंदिर आज भी अपने तंत्र साधना के लिए ही विख्यात है। चूँकि, वे तंत्र-मंत्र जानते थे, इसलिए स्वाभाविक था कि आम लोग उनके तरीके समझ नहीं पाते थे। कहते हैं, उन संस्कृतियों में हमेशा से यह समझ थी कि अस्तित्व में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे साधारण लोग आसानी से नहीं समझ सकते और इसमें कोई बुराई नहीं है। कोई भी उसे समझे बिना भी उसके लाभ उठा सकते हैं, जो हर किसी चीज के लिए हमेशा से सच रहा है।


🚩मगर जब एकेश्वरवादी मज़हब यहूदी, इसाई और इस्लाम अपना दायरा फैलाने लगे, तो उन्होंने इसे एक संगठित तरीके से उखाड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने सभी देवी मंदिरों को तोड़ कर मिट्टी में मिला दिया।


🚩दुनिया में हर कहीं पूजा का सबसे बुनियादी रूप देवी पूजा या कहें स्त्री शक्ति की पूजा ही रही है। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है जिसने अब भी उसे संभाल कर रखा है। सनातन परम्परा ने स्त्री शक्ति की पूजा को जारी रखा है। इसी संस्कृति ने हमें अपनी जरूरतों के मुताबिक अपनी देवियाँ खुद गढ़ने की आजादी भी दी। प्राण प्रतिष्ठा के विज्ञान ने हर गाँव को अपनी विशिष्ट स्थानीय जरूरतों के अनुसार अपना मंदिर बनाने में समर्थ बनाया। अगम शास्त्र में इसकी पूरी विधि है। धर्म को ज़्यादा संजीदगी से सहेजा है तो वह भारत का दक्षिण का हिस्सा है। दक्षिण भारत के हर गाँव में आपको आज भी अम्मन (अम्मा) या देवी के मंदिर मिल जाएँगे। इसके अलावा शिव की नगरी काशी, विंध्याचल से लेकर शायद ही भारत का ऐसा कोई क्षेत्र हो जहाँ देवी आराध्य न हो।


🚩बेशक, आजकल पुरुष शक्ति समाज में सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि हमने अपने जीवन में गुजर-बसर की प्रक्रिया को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। आज सौंदर्य या नृत्य-संगीत, प्रेम, दिव्यता या ध्यान की बजाय अर्थशास्त्र हमारे जीवन की प्रेरक शक्ति बन गया है। जब अर्थशास्त्र हावी हो जाता है और जीवन के गूढ़ तथा सूक्ष्म पहलुओं को अनदेखा कर दिया जाता है, तो पौरुष कुदरती तौर पर प्रभावी हो जाता है। अगर स्त्री शक्ति नष्ट हो गई, तो जीवन की सभी करुणामयी, सौम्य, सहज और पोषणकारी प्रवृत्तियाँ लुप्त हो जाएँगी। (हालाँकि, स्त्रीत्व को इन चार शब्दों में समेटा नहीं जा सकता।) जीवन की अग्नि हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी। यह बहुत बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा।

🚩आज जब हम अपनी परम्परा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं तो ऐसे समय में उसके संरक्षण और संवहन की जिम्मेदारी उन सब पर है जिनकी रगों में आज भी सनातन संस्कृति बह रही है। आज जब हम आधुनिक वामपंथी शिक्षा की वजह से नकार की जड़ता के शिकार हो चुके हैं। इसी शिक्षा का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह भी है कि हम अपनी तर्कशक्ति पर खरा न उतरने वाली हर चीज को नष्ट कर देना चाहते हैं। जबकि हमारी तर्क की सीमा सनातन की सीमा नहीं बल्कि हमारी खुद के अज्ञान की सीमा है।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, March 24, 2023

मौलाना तौकीर ने कहा - हम इस्लामी देश माँगें तो’ अब पढ़ लीजिए क्या हाल है इस्लामी देशो का

 24  March 2023

http://azaadbharat.org

🚩2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।


🚩उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते।



🚩जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।


🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।


🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं।


🚩उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया ।दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।


🚩इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं।


🚩इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।


🚩जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं।


🚩चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है।


🚩ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है। जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं,असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है।


🚩शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।

🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है।


🚩जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।


🚩आप स्वयं इस शोध का आकलन कीजिये। क्योंकि समझदार को इशारा ही बहुत होता है। ऐसा होने राष्ट्र सुरक्षित रहेगा?


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, March 23, 2023

आस्था,विश्वास,मान-मन्नत का पर्व गणगौर

23  March 2023

http://azaadbharat.org


🚩यह पर्व राजा धनियार व रणुबाई (रथ) के गृहस्थ प्रेम और भगवान शिव-माता पार्वती के पूजन से जुड़ा है।


🚩जवारे बोने के साथ होती है पर्व की शुरुआत


🚩चैत्र कृष्ण एकादशी को माता की बाड़ी में जवारे बोने के साथ गणगौर पर्व की शुरुआत होती हैं।


🚩गणगौरी तीज से पर्व की छटा 24 मार्च चैत्र शुक्ल सुदी तीज को माता की बाड़ी में जवारों का दर्शन-पूजन करने सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हैं। माता की मुख्य बाड़ी से ज्वारों को श्रृंगारित काष्ठ प्रतिमाओं में रखकर चल समारोह के साथ घर लाया जाता हैं। इसके बाद गणगौर माता के गीत गूंजने लगते हैं।



🚩रात में डांडिया नृत्य,मटकी नृत्य, भक्ति गीत, लोकगीत के साथ पर्व मनाया जाता हैं।


🚩माँ रणुबाई और धनियार राजा का भव्य नृत्य होता है, जिससे देखने  के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता हैं।


🚩गणगौर विशेष रूप से राजस्थान और  मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ के भागों में  धूमधाम से मनाया जाता है। कुँवारी लड़कियां अपने भावी पति और विवाहित स्त्रियां अपने पतियों की सम्रद्धि के लिए ये पूजा अर्चना करती हैं।


🚩होलिका दहन के दुसरे दिन से प्रारम्भ होने वाला ये त्यौहार पूरे 16 दिनों तक है। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए अपने पीहर और ससुराल के अच्छे भविष्य की कामना करती हैं। अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करते हुए कई गीत गाती हैं जिसमे अपने परिजनों का नाम लिया जाता है।


🚩चैत्र माह की तीज को मनाया जाने वाला यह महापर्व एक महोत्सव रूप में संपूर्ण मध्यप्रदेश निमाड़-मालवांचल में अपनी अनूठी छटा बिखेरता है। इसके साथ ही चैत्र माह में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में महाकाली, महागौरी एवं महासरस्वती अलग-अलग रूपों में नवरात्रि में पूजा की जाती हैं।


🚩पारिवारिक व सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है गणगौर का त्योहार। चैत्र गणगौर पर्व गणगौर दशमी से अथवा एकादशी से प्रारंभ होता है, जहां माता की बाड़ी यानी जवारे बोए जाने वाला स्थान पर नित्य आठ दिनों तक गीत गाए जाते हैं। यह गीत कन्याओं, महिलाओं, पुरुषों, बालकों के लिए शिक्षाप्रद होते हैं।


🚩सर्वप्रथम होलिका दहन के स्थान से होली की जली राख से बिना थापे बने कंडे (खड़े) एवं पांच कंकर की गौरा माता घर लाते हैं। यह तभी निश्चित कर लिया जाता है कि कितने रथ तैयार होंगे।


🚩उसी अनुरूप छोटी-छोटी टोकरियों (कुरकई) में चार देवियों के स्वरूप चार में गेहूं के जवारे एवं बच्चों के स्वरूप छोटे-छोटे दीपकों में सरावले बोए जाते हैं। एक बड़े टोकने में मूलई राजा बोए जाते हैं।


🚩चारों देवियों एवं सरावले व मूलई राजा के जवारों का नित्य अति शुद्धता पूर्व पूजन एवं सिंचन जिस कमरे में किया जाता है उसे माता की कोठरी कहते हैं। इसी माताजी की वाड़ी में प्रतिदिन शाम को कई स्त्रियां धार्मिक भावना से चारों माता के विष्णु राजा की पत्नी लक्ष्मी, ब्रह्माजी की सइतबाई, शंकरजी की गउरबाई एवं चंद्रमाजी की रोयेणबाई के गीत मंगल गान के रूप में गाए जाते हैं।


🚩तंबोल यानी गुड़, चने, जुवार, मक्के की धानी, मूंगफली) बांटी जाती है।


🚩फिर गणगौर का प्रसिद्ध गीत गाते हैं -


🚩पीयर को पेलो जड़ाव की टीकी,

मेण की पाटी पड़ाड़ वो चंदा...

कसी भरी लाऊं यमुना को पाणी...

हारी रणुबाई का अंगणा म ताड़ को झाड़।

ताड़ को झाड़ ओम म्हारी

देवि को र्यवास।

रनूबाई रनू बाई, खोलो किवाड़ी...।

पूजन थाल लई उभी दरवाजा

पूजण वाली काई काई मांग...


🚩अपने परिवार की सुख-समृद्धि हेतु भक्त इस तरह से विनती कर वरदान मांग लेते हैं। माता के विसर्जन से पूर्व जो लोग माता के रथ लाते हैं, अपने घर सुंदर रथ श्रृंगार कर वाड़ी पूजन के पश्चात घर ले जाते हैं।


🚩सायंकाल सभी रथों को खुशी प्रकट करने हेतु झालरिया गीत गाए जाते हैं। नौवें दिन माता की मान-मनौती वाले परिवार रथ बौड़ाकर या पंचायत द्वारा माता को पावणी (अतिथि) लाते हैं।


🚩कुल मिलाकर यह संदेश दिया जाता है कि बहन, बेटी को नवमें दिन ससुराल नहीं भेजना चाहिए। दसवें दिन पुनः सपरिवार भोजन प्रसादी आयोजन होता है।


🚩माता का बुचका यानी जिसमें माताजी की समस्त श्रृंगार सामग्री, प्रसाद, भोग एवं आवश्यक वस्तुएं श्रीफल आदि बांध कर पीली चुनरी ओढ़ाकर हंसी-खुशी विदा किया जाता है। यही परंपरा सतत चली आ रही है।


🚩आप सभी को गणगौर पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं...


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, March 22, 2023

चेटीचंड पर्व : मरख बादशाह मिटाना चाहता था हिंदु धर्म, सिंधी समाज ने चटाई धूल

22 March 2023   🚩सनातनी हिन्दू आक्रमणकारियों से हमेंशा प्रताड़ित किया गया है पर समय समय पर उनको करारा जवाब भी दिया है, आज भी हिंदुओं के खिलाफ अनेक षडयंत्र रचे जा रहे हैं पर हिंदुओं को जैसे उत्तर देना चाहिए वे सिंधी भाइयों ने युक्ति बताई है, यहाँ आपको भी बता रहे है।   🚩सिंध समाज पर भी एक ऐसी विकट आपदा आ पड़ी थी   🚩आपको बता दें कि सिंध स्थित हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने हेतु वहाँ के नवाब मरखशाह ने फरमान जारी किया । उसका जवाब देने के लिए हिन्दुओं ने आठ दिन की मोहलत माँगी । अपने धर्म की रक्षा हेतु हिन्दुओं ने सृष्टिकर्त्ता भगवान की शरण ग्रहण की तथा ‘कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि…’ अर्थात् ‘या तो अपना कार्य सिद्ध करेंगे अथवा मर जायेंगे’ के निश्चय के साथ हिन्दुओं का अपार जनसमूह सागर तट पर उमड़ पड़ा । सब तीन दिन तक भूख-प्यास सहते हुए प्रार्थना करते रहे।
🚩आये हुए सभी लोग किनारे पर एकटक देखते-देखते पुकारते- ‘हे सर्वेश्वर ! तुम अब रक्षा करो। मरख बादशाह तो धर्मांध है और उसका मूर्ख वजीर ‘आहा’, दोनों तुले हैं कि हिन्दू धर्म को नष्ट करना है। लेकिन प्रभु ! हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा तो अवतार बंद हो जायेंगे। मानवता की महानता उजागर करने वाले रीति रिवाज सब चले जायेंगे। आप ही धर्म की रक्षा के लिए युग-युग में अवतरित होते हो। किसी भी रूप में अवतरित होकर प्रभु हमारी रक्षा करो। रक्षमाम् ! रक्षमाम् !! तब अथाह सागर में से प्रकाशपुंज प्रगट हुआ । उस प्रकाशपुंज में निराकार परमात्मा अपना साकार रूप प्रगट करते हुए बोले : ‘‘हिन्दू भक्तजनों ! तुम सभी अब अपने घर लौट जाओ । तुम्हारा संकट दूर हो इसके लिए मैं शीघ्र ही नसरपुर में अवतरित हो रहा हूँ । फिर मैं सभी को धर्म की सच्ची राह दिखाऊँगा ।’’   🚩सप्ताह भर के अंदर ही संवत् 1117 के चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने अवतार लिया और हिन्दू जनता को दुष्ट मरख के आतंक से मुक्त किया । उन्हीं भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाया जाता है ।   🚩प्रार्थना से सबकुछ संभव है। सिंधी भाइयों की सामुहिक पुकार पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए झूलेलाल जी का अवतरण, मद्रास के भीषण अकाल में श्री राजगोपालाचार्य द्वारा करायी गयी सामूहिक प्रार्थना के फलस्वरूप मूसलधार वर्षा होने लगी।   🚩किसी ने सही कहा है…. ” जब और सहारे छिन जाते, न किनारा मिलता है । तूफान में टूटी किश्ती का, भगवान सहारा होता है ।”   🚩झूलेलाल जी का वरुण अवतार यह खबर देता है कि कोई तुम्हारे को धनबल, सत्ताबल अथवा डंडे के बल से अपने धर्म से गिराना चाहता हो तो आप ‘धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।’ सिर देना लेकिन धर्म नहीं छोड़ना।   🚩चेटीचंड महोत्सव मानव – जाति को संदेश देता है कि क्रूर व्यक्तियों से दबो नहीं , डरो नहीं , अपने अंतरात्मा परमात्मा की सत्ता को जागृत करो ।   🚩सिंधी भाई जुल्मी आतताईयों के आगे झुके नहीं वरन धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने अपनी अंतर चेतना का भगवान झूलेलालजी के रूप में अवतरण करा दिया । इसलिए यह उत्सव हमें पुरुषार्थी और साहसी बनकर अपने धर्म में अडीग रहने रहने की प्रेरणा देता हैं।   🔺 Follow on   🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/   🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg   🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg   🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan   🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg   🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, March 21, 2023

कल है आपका नूतन वर्ष, इतना जरुर करें...

 21  March 2023

http://azaadbharat.org


🚩चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं । भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है । इस साल 22 मार्च को नूतनवर्ष प्रारंभ होगा ।


🚩अंग्रेजी नूतन वर्ष में शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार करते हैं लेकिन भारतीय नूतन वर्ष संयम, हर्षोल्लास से मनाया जाता है । जिससे देश में सुख, सौहार्द्र, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो जाता है ।



🚩इस साल 22 मार्च को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है ।


🚩हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं ।


🚩कैसे मनाएं नववर्ष ?


🚩1 – भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें । संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें ।


🚩2 – नववर्षारंभ पर पुरुष धोती-कुर्ता/ पजामा, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साड़ी पहनें ।


🚩3 – मस्तक पर तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩4 – सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩5 – सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


🚩6 – हिन्दू नववर्षारंभ दिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें ।


🚩7 –  भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाएं और दूसरों को खिलाएं ।


🚩8 – मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फहराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो व्यक्ति गुजरता है उसकी  ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।  पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।


🚩9 – भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।


🚩10 – भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।


🚩11 – अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहराएं ।


🚩12 – ई-मेल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें ।


🚩13 – नूतन वर्ष से जुड़े एतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स लगाकर भी प्रचार कर सकते हैं ।


🚩14  – सभी तरह के राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं ।


🚩15 – नववर्ष संबंधित पेम्पलेट बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं ।


🚩सभी भारतवासियों को प्रार्थना हैं कि रैली के द्वारा कलेक्टर, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को भी भारतीय नववर्ष को सरकार के द्वारा सामूहिक रूप में मनाने हेतु ज्ञापन दें और व्यक्तिगत रूप में भी पत्र लिखें ।


🚩सैकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वो को बड़ी विशालता से जरूर मनाए ।


🚩चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । -ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।


🚩मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी ।


🚩यश, कीर्ति ,विजय, सुख समृद्धि हेतु घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका लगाएं ।


🚩हमारे शास्त्रो में झंडा या पताका लगाने का विधान है । पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है । जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकरात्मक उर्जा दूर चली जाती है ।


🚩हिन्दू समाज में अगर सभी घरों में स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा फहरेगा तो हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर-दूर तक फैलेगा।


🚩‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाये और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।


🚩आप सभी भारतवासी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.!!



🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ