Tuesday, May 9, 2023

फिल्मों द्वारा चल रही हैं बड़ी साजिस, हिंदू रहना सावधान...

9  May 2023

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🚩बॉलीवुड के निशाने पर हमेशा हिंदू धर्म रहा है, लगातार हिंदू धर्म का अपमान किया जा रहा है पर अभी तक न सेंसर बोर्ड ने ऐसी कोई फ़िल्म पर रोक लगाई और ना ही कोई सरकार ने ठोस कार्रवाई की ।


🚩कभी हिंदू देवी-देवताओं का अपमान तो कभी साधु-संतों का अपमान तो कभी हिंदू संस्कृति का मजाक तो कभी हिन्दू त्यौहार पर खिल्ली उड़ाना आदि अनेक तरीके फिल्मों, सीरियलों, विज्ञापनों आदि द्वारा हिंदुओं की भावनाओ को आहत किया जा रहा है पर अभी तक इसपर कोई रोक नहीं लगा पाया।

 

🚩सलमान खान ने बिगबॉस में भी हिंदू साधु-संतों का अपमान किया था।


🚩पहली बार नहीं हुआ है जब हिन्दू संस्कृति या प्रतीकों का इस तरह से मजाक उड़ाया गया हो। हिन्दू देवी-देवता, इतिहास और पवित्र पुस्तकें हमेशा से चर्चा का विषय रहीं हैं और इन्हें लेकर न जाने कितनी आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की गई हैं, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है। दरअसल जब हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं या फिर प्रतीकों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की जाती है, तो कोई हिंसक घटना नहीं होती, जिस तरह से पैगंबर के ऊपर टिप्पणी करने पर होती है।


 

🚩क्या आपने सुना है कि किसी हिन्दू ने किसी मुस्लिम को इसीलिए मार डाला क्योंकि उसने राम, कृष्ण या फिर दुर्गा को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी ? नहीं !! मगर आपने ये जरूर सुना होगा कि शार्ली एब्दो में एक बार पैगम्बर मुहम्मद को लेकर कार्टून छापा गया था, जिसके बाद दुनिया भर के मुस्लिम सड़कों पर उतर आए। कई जगह रैलियाँ हुईं। 2011 में और फिर 2015 में, दो बार इसके दफ्तर पर इस्लामी आतंकी हमला हुआ। दूसरे हमले में 12 लोग मारे गए। बता दें कि शार्ली एब्दो फ्रांस से प्रकाशित होने वाली की एक मैगजीन है, जो अपने कार्टूनों के जरिए कटाक्ष और व्यंग्य का पुट लिए सामग्री के लिए जानी जाती है।

 

🚩कथित तौर पर हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी ने 2015 में पैगम्बर मुहम्मद पर कोई टिप्पणी की थी। जिसके बाद ख़बरें आईं कि 1 लाख मुस्लिमों ने सड़क पर उतर कर उन्हें फाँसी पर लटकाने की माँग की। मौलानाओं ने उन पर फतवे जारी किए, उनका सिर कलम करने की बात कही गई और उन्हें सरेआम धमकी दी गई और 18 अक्टूबर 2019 को आखिरकार गला रेत कर उनकी हत्या कर दी गई।

 

🚩मगर हिन्दू धर्म के साथ खिलवाड़ करने वालों के साथ ऐसा नहीं होता। इसलिए हिन्दू धर्म को टारगेट करना अधिक आसान होता है, क्योंकि ये लोग ज्यादा से ज्यादा विरोध प्रदर्शन करते हैं, ट्विटर पर ट्रेंड चलाते हैं, जैसा कि अभी चल रहा है, मगर किसी भी हिंसक घटनाओं को अंजाम नहीं देते हैं।

 

🚩इससे पहले भी दबंग 3 शिवलिंग का अपमान करने को लेकर चर्चा में आ चुका है। बता दें कि शूटिंग आराम से हो, इसके लिए क्रू के लोगों ने वहाँ के शिवलिंग के ऊपर स्टूल रख दिया। और तो और, क्रू के दो मेंबर उसके ऊपर चढ़कर बड़े आराम से प्री-शूटिंग का काम कर रहे थे। इसका फोटो और वीडियो वायरल हो गया। जिसके बाद बात बिगड़ती देख कर सलमान खान ने भावनात्मक अपील करते हुए कहा था कि वो बड़े शिव भक्त हैं और यह स्वीकार भी किया कि शिवलिंग का सम्मान करते हुए उसके ऊपर तखत उन्होंने ही रखवाया था और जब कुछ लोगों ने उसका दुरुपयोग किया तो तत्काल हटवा भी दिया।

 

🚩सलमान खान के नेतृत्व में चल रहे बिगबॉस ने तो सारी हदें पार कर रहा है, जिस तरह से शो दिखा रहे हैं उससे लगता है कि एक सोची समझी साजिश के तहत स्क्रिप्ट लिखी है जिसमें हिंदू धर्म को अंतरराष्ट्रीय लेवल पर बदनाम करना और मुस्लिम समुदाय को अच्छा दिखाना है।

 

🚩सलमान खान ने “बजरंगी भाईजान” फ़िल्म में भी यही किया था। हिंदुओं को दकियानूसी और पाकिस्तानियों को बड़े दिलवाला बताया/दिखाया था।


🚩आश्रम बेब सीरीज द्वारा हिंदू धर्म को नीचा दिखाने का प्रयास किया ।

 

🚩बॉलीवुड के निशाने पर हमेशा हिंदू धर्म रहा है, बॉलीवुड के जरिये हमेशा हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है।


🚩हिंदुस्तानी इस षड्यंत्र को समझ गए हैं और कुछ हिंदुनिष्ठ लोग खुलकर विरोध भी करने लगे है।

 

🚩जनता की मांग है कि सरकार को ऐसी फिल्मों , सीरियलों ओर शो पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए।


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Monday, May 8, 2023

धर्म ही नहीं जमीन भी गँवा रहे हिंदू : पहाड़ों का भी हो रहा धर्मांतरण

8  May 2023

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🚩अपनी पिछली रिपोर्टों में सनातन को समर्पित पहाड़ी कोरबा की जमीनों पर कॉन्ग्रेसी से लेकर ईसाई मिशनरी की गिद्ध दृष्टि के बारे में बता चुके हैं। मदकू द्वीप जैसी जगहों पर ईसाइयत की घुसपैठ से अवगत करा चुके हैं। जमीनी स्थिति इससे भी कहीं अधिक भयावह है। जमीन चाहे सरकारी हो या अनुसूचित जनजाति की मिशनरी कब्जा कर रहे हैं। इन जमीनों पर चर्च से लेकर स्कूल तक चल रहे हैं। कब्रिस्तान हैं। जिन पहाड़ों तक पहुँचना आसान नहीं, क्रॉस गाड़कर उनका भी धर्मांतरण कर दिया गया है। मिशनरी के इस लैंड जिहाद से वे जनजातीय हिंदू भी पीड़ित हैं जो धर्मांतरित होकर ईसाई बन चुके हैं।


🚩यह स्थिति तब है जब छत्तीसगढ़ में विशेष कानून है। राज्य के भू राजस्व कानून की धारा 170 (ख) कहती है कि 2 अक्टूबर 1959 को यदि कोई जमीन अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के किसी व्यक्ति की रही है और बाद में उस पर किसी एसटी या गैर एसटी का कब्जा हुआ हो तो उसे दो साल के भीतर यह सूचना देनी होगी कि वह उस जमीन पर कब्जे में कैसे आया। ऐसा नहीं होने पर उसका कब्जा अवैध माना जाएगा और उसे जमीन खाली करनी होगी। वकील राम प्रकाश पांडेय के अनुसार इस कानून के तहत यदि कोई आदिवासी व्यक्ति जमीन पर कब्जे को लेकर खुद आवेदन नहीं देता है तो यह सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह पटवारी से इस बारे में रिपोर्ट माँगे कि 2 अक्टूबर 1959 को उस जमीन का मालिक कौन था और आज किसका कब्जा है। पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर भी अदालत फैसला सुना सकती है।



🚩कुछ साल पहले राज्य के जशपुर जिले में ही ऐसे करीब 250 मामले सामने आए थे, जिनमें 170 (ख) का उल्लंघन कर एसटी वर्ग की जमीन पर चर्च बनाए गए थे। वकील राम प्रकाश पांडेय ने ऑपइंडिया को बताया, “ये मामले काफी समय से राजनितिक दखल के कारन रेवेन्यू कोर्ट में लंबित पड़े थे। इन मामलों को 2007 में हाई कोर्ट के संज्ञान में लाया गया। हाई कोर्ट ने 6 महीने के भीतर ऐसे सभी मामलों के निपटारे के निर्देश दिए। इसके बाद अधिकांश मामलों में चर्च को जमीन खाली करने के आदेश दिए गए थे। लेकिन दुर्भाग्य से कई साल बीतने के बाद जमीनें खाली नहीं हुई हैं।”


🚩लोयोला स्कूल के प्रिंसिपल रहे आर गीट्स पर प्रशासनिक साँठगाँठ से जमीन खरीदने का है आरोप

राजनीतिक और प्रशासनिक साँठगाँठ से जुड़ा एक और मामला कुनकुरी के लोयोला हायर सेकेंडरी स्कूल का है। 50 के दशक में कुछ सालों तक इस स्कूल के प्रिंसिपल रहे आरएच गीट्स बेल्जियम के नागरिक थे। उन्होंने खुद को कुनकुरी का निवासी बताकर तत्कालीन कलेक्टर की अनुमति से इग्नेश लकड़ा नाम के एक व्यक्ति की जमीन ले ली। आज भी इस जमीन पर मिशनरी संस्था का कब्जा है और उस पर इमारत बनी हुई है, जबकि भारत में कोई विदेशी नागरिक जमीन की खरीदी कर ही नहीं सकता। पांडेय ने ऑपइंडिया को बताया, “इग्नेश लकड़ा ने इस मामले में केस किया था। कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते उसकी मौत हो चुकी है। अब उसके बच्चे इस लड़ाई को लड़ रहे हैं।”


🚩क्लेमेंट लकड़ा जिनकी 10 एकड़ जमीन पर है मिशनरी का कब्जा


🚩ऐसा ही मामला क्लेमेंट लकड़ा का भी है। कुनकुरी के दुलदुला निवासी क्लेमेंट के पिता भादे उर्फ वशील उरांव का धर्मांतरण 1957-58 में हुआ था। उसके बाद उनकी करीब 10 एकड़ जमीन पर मिशनरी ने कब्जा कर लिया। वशील की भी मौत हो चुकी है। क्लेमेंट ने ऑपइंडिया को बताया, “अदालत से हमारे पक्ष में फैसला आ चुका है। लेकिन मिशनरी जमीन खाली नहीं कर रहे। धमकी दे रहे हैं। बेटियों का भविष्य बर्बाद करने की बात कहते हैं।”


🚩मिशनरियों की ताकत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि क्लेमेंट की पत्नी सुषमा लकड़ा सरपंच हैं। बावजूद इस परिवार को प्रताड़ित किया जा रहा है। निराश और हताश क्लेमेंट ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “अब मैं अपने पुराने धर्म में लौट जाना चाहता हूँ।” (क्लेमेंट के मामले पर हम आगे विस्तार से रिपोर्ट करेंगे। इन मामलों से जुड़े सारे कानूनी दस्तावेज भी ऑपइंडिया के पास उपलब्ध हैं)


🚩कुनकुरी के क्रुस टोंगड़ी का विवादित कब्रिस्तान

कुनकुरी में देश का सबसे बड़ा चर्च भी है। रोजरी की महारानी महागिरिजाघर एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च भी बताया जाता है। कुनकुरी शहर के मुख्य मार्ग से जो सड़क इस चर्च के लिए जाती है, उस पर बना गेट भी विवादित है। स्थानीय लोगों का दावा है कि हाई कोर्ट के स्टे के बावजूद सरकारी जमीन पर इस गेट का निर्माण हुआ है।


🚩चर्च के पीछे का इलाका क्रुस टोंगड़ी कहलाता है। यहाँ बहुसंख्यक आबादी धर्मांतरित है। यहाँ भी कब्रिस्तान और रोड कब्जे की जमीन पर बनाए जाने के आरोप हैं। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि कुनकुरी में मिशनरी स्कूल के पीछे जो पहाड़ी हिस्सा है, वहाँ हिंदू नियमित रूप से योग करते थे। एक दिन रातोंरात क्रॉस लगाकर उस जगह का भी धर्मांतरण कर दिया गया। इसी तरहभंडरी पहाड़ पर भी क्रॉस गाड़ दिए गए हैं, जबकि इस जगह पर आसानी से पहुँचना भी संभव नहीं है।


🚩क्रॉस गाड़ उन पहाड़ों का भी हो रहा धर्मांतरण जहाँ पहुँचना आसान नहीं


🚩बाइबिल का हर भाषा में अनुवाद करने के मिशन पर काम कर रही संस्था ‘अनफोल्डिंग वर्ल्ड’ के CEO डेविड रीव्स ने 2021 में बताया था कि भारत में 25 साल में जितने चर्च बने थे, उतने अकेले कोरोना काल में बनाए गए हैं। ऐसा ही एक जशपुर के गिरांग में स्थित है। यह चर्च उस जगह पर बनाई जा रही थी, जहाँ जाने के लिए रास्ता तक नहीं है। विरोध के बाद इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया और यह बंद पड़ा है। भाजयुमो से जुड़े अभिषेक गुप्ता ने ऑपइंडिया को बताया, “ईसाई मिशनरी इसी तरह लैंड जिहाद करती है। जहाँ खाली जगह दिखी ये क्रॉस गाड़ देते हैं। चर्च बना लेते हैं। कुछ समय बाद प्रशासनिक मिलीभगत से वहाँ जाने का रास्ता तैयार हो जाता है और फिर प्रार्थना होने लगती है। बाद में आप जितना विरोध कर लें प्रशासन कब्जा नहीं हटाता।”


🚩कोरोना काल के दौरान गिरांग में हो रहे इस चर्च का निर्माण विरोध के बाद रोकना पड़ा था

छत्तीसगढ़ के एक जिले के इन मामलों से आप पूरे राज्य की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। इससे भी खतरनाक स्थानीय लोगों के मन में ईसाई मिशनरियों का डर है। अपनी रिपोर्टिंग के दौरान हमने पाया कि ज्यादातर लोग कैमरे पर बात नहीं करना चाहते थे। वे कई लोगों को विभिन्न मामलों में फँसाए जाने का हवाला देते हुए कह रहे थे कि खुलकर सामने आने से उनके लिए भी परेशानी खड़ी हो जाएगी। हिंदुओं के भीतर का यह ‘डर’ ईसाई मिशनरियों के फलने-फूलने में ‘खाद’ का काम कर रहा है। स्त्रोत : ओप इंडिया


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Sunday, May 7, 2023

हिंदूवादी सरकार के शासन में हो रहा हैं , हिंदुओ पर अत्याचार...

7 May 2023

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🚩आये दिन वेबसीरीजों के माध्यम से हिन्दू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया जाता है तो कही हिन्दू संतो को बदनाम करने की मूवी बनाई जाती है।


🚩आखिर मौलवियों और पादरियों पर कोई मूवी या वेब सीरीज क्यों नही बनती???


🚩हमेशा हिन्दू संत ही टारगेट में होते है,ये मूवी के माध्यम से हिन्दू संतो को बदनाम करते ...इन्हें पता है हिन्दू भोले होते है, अगर ये किसी मौलवी या पादरी पर ये उंगली उठाते तो इनको परदादा याद आ जाता, इनके घर में मातम होता ।


🚩हिंदू विरोधी वेब सीरीज बनाने के पीछे के षड्यंत्र का पर्दाफाश…

 


🚩बॉलीवुड द्वारा हिंदू विरोधी फ़िल्म बनाने का सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है और समाज को सबसे ज्यादा अगर गुमराह किया हो तो वह बॉलीबुड ने किया है। बॉलीवुड ने समाज को यही दिया कि शादी करती हुई लड़की को मंडप से उठा लेना, बलात्कार, चोरी, डकैती, अधनंगे कपड़े पहनना, मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ देना, लव जिहाद को बढ़ावा देना, भारतीय संस्कृति को हीन बताना, साधु-संतों, देवी देवताओं मदिरों और पंडितों का मजाक उड़ाना ओर पाश्चात्य संस्कृति को महान बताना यही तो ये लोग करते आये हैं।

 

🚩हिंदू विरोधी वेब सीरीज फिल्मे जिस तरह प्रमोट किया जा रहा है उससे लग रहा है कि उसमे कई अरबों रुपये खर्च होते होंगे, इसके पीछे कही न कही राष्ट्र व भारतीय संस्कृति को तोडने वाली ताकते लगी हुई है। क्योंकि “मंदिर, आश्रम, साधू संत” नाम पवित्र शब्द है उस पर करोडों लोग श्रद्धा करते है, वहाँ पर जाकर शांति पाते हैं इसके कारण धर्मांतरण कराने वाली मिशनरी और विदेशी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है क्योंकि साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखने वाले मंदिरों, आश्रमो में जाते है और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते हैं औऱ वे विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते जिसके कारण ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत में धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना ओर जो विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खबरों रूपये का घाटा होता इसके कारण ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की मंदिरों, आश्रमों व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रच रहे हैं और प्रकाश झा, मनोज बाजपेई जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते है असली कारण यही है।

 

🚩देखा जाए तो चर्चो में बलात्कार के हजारों किस्से आ चुके हैं, मदरसों में भी यौन शोषण के कई किस्से आ चुके है पर अभी तक उस पर फ़िल्म कोई न बनाता है और न ही कोई हिम्मत करता है क्योंकि उसके लिए न फंडिंग मिलेगी और उपर से कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जाएगी इसलिए वास्तविक में जहाँ पर गड़बड़ी हो रही है उस पर वे ध्यान नहीं देते है पर हिंदी सहिष्णु है और उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के लिए भारी फंडिंग मिलती है इसके कारण राष्ट्र विरोधी ताकतों के कठपुतली बने डायरेक्टरों रूपी जयचंद हिंदू विरोधी फिल्में बनाते हैं।

 

🚩वास्तविकता तो यह है कि अन गिनित साधु-संतों ने घोर तपस्या की है फिर वे समाज में आकर उनको सही मार्ग दिखाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता, टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं। राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

 

🚩वैसे आपको बता दें कि हिंदू विरोधी फिल्में देखकर श्रद्धालुओं में तो तनिक भी फर्क नही पड़ा है लेकीन आने वाली पीढ़ी को नुकसान होगा उसको रोकने के लिए हिंदू विरोधी फिल्मे बंद करवा चहिए यही जनता की मांग सरकार से हैं।


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Saturday, May 6, 2023

न्यायालय पहले हेट-स्पीच पहले परिभाषित तो करें ...

6  May 2023

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🚩हाल में सुप्रीम कोर्ट ने घृणा-फैलाने वाले वक्तव्यों (‘हेट-स्पीच’) पर सभी राज्यों को आदेश दिया है कि वे ऐसे वक्तव्यों पर स्वयं संज्ञान लेकर प्राथमिकी  दर्ज कराएं। पर कोर्ट ने स्पष्ट नहीं किया कि हेट स्पीच की पहचान या सीमाएं क्या हैं ? ऐसी स्थिति में यह तंत्र को एक और हैंडल थमा देने जैसा है कि जिस किसी व्यक्ति, अखबार, संस्था, आदि को घृणा-फैलाने वाला बताकर दंडित करें। अपने आदेश में ‘रिलीजन’ और ‘सेक्यूलरिजम’ का हवाला देकर कोर्ट ने और भी अनुचित किया। मानो, हेट केवल किसी खास रिलीजन से संबंधित विषय हो! उसे कष्ट उठाकर पहले हेट-स्पीच को परिभाषित करना चाहिए।


🚩क्योंकि यहाँ दशकों से आम दृश्य है कि विशेष समूहों, दलों की ओर से जाति, वर्ग, धर्म, आदि संबंधित कितने भी उत्तेजक भाषण क्यों न हों, उस पर तीनों शासन अंग चुप रहते हैं। जैसे, ब्राह्मणों के विरुद्ध अपशब्द कहना आज एक फैशन है जिस में हमारे सभी राजनीतिक दल शामिल हैं। हमारे देवी-देवताओं को गंदा कहना, किसी महान हिन्दू ग्रंथ को जलाना तक बरोकटोक चलता है। किन्तु अन्य किसी समुदाय या पुस्तक को कुछ कहते ही सभी नाराज होने लगते हैं।


🚩ऐसी चुनी हुई चुप्पियाँ और चुना हुआ आक्रोश दिखाना क्या न्याय है ? क्या इस से सामाजिक सौहार्द बनता है ? सच तो यह है कि वोट-बैंक राजनीति की एक स्थाई तकनीक ही एक के विरुद्ध बोलकर दूसरे को लुभाना रहा है। किन्तु इस पर विधायिका और न्यायपालिका, दोनों ही बैरागी-साधु बन जाते हैं कि उन्हें इस से क्या लेना-देना!



🚩इसी क्रम में भारतीय दंड संहिता 153-ए तथा 295-ए का उपयोग, उपेक्षा, तथा दुरुपयोग भी आता है। पहली धारा धर्म, जाति, भाषा, आदि आधारों पर विभिन्न समुदायों के बीच द्वेष, शत्रुता, दुर्भाव फैलाना दंडनीय बताती है। दूसरी धारा किसी समुदाय की धार्मिक भावना जान-बूझ कर ठेस पहुँचाने, या उसे अपमानित करने को दंडनीय कहती है। लेकिन गत कई दशकों से एक समुदाय विशेष के नेता खुल कर दूसरे समुदाय के देवी-देवताओं, महान ज्ञान-ग्रंथों, आदि का अपमान करते रहे हैं। जिन पर न्यायपाल कभी ध्यान नहीं देते।


🚩आज यू-ट्यूब, सोशल-मीडिया, और इंटरनेट के कारण ऐसे दर्जनों भाषण सुने जा सकते हैं। सांसद, विधायक जैसे बड़े लोग भगवान राम, तथा माता कौशल्या पर गंदी छींटाकशी करते रहे हैं। वे खुले आम एक समुदाय को कायर, लाला, बनिया-बुद्धि का कहते हैं जो केवल पुलिस भरोसे बचा है, जिसे ‘दस मिनट के लिए हटाते’ ही उस की ऐसी-तैसी कर दी जाएगी, आदि। क्या इस पर न्यायाधीशों ने कभी स्वयं संज्ञान लिया? उलटे शिकायत आने पर भी न्यायपाल और कार्यपाल सब कुछ अनसुना और रफा-दफा कर देते हैं। जिस से वस्तुतः वैसी दबंगई को परोक्ष प्रोत्साहन ही मिलता है। इस से एक समुदाय में अपने दबंग होने, और दूसरे में अपने अपमान व नेतृत्वहीनता का दंश होता है।


🚩दूसरी ओर, कुछ मतावलंबियों की मूल किताबों में ही दूसरे मत मानने वालों के विरुद्ध तरह-तरह की घृणित बातें, और उन्हें अपमनानित करने, उन से टैक्स वसूलने, और मार डालने तक के आवाहन लिखे हुए हैं। वे अपनी ऐसी किताबों को दैवी, पवित्र मानते हैं और दूसरों के धर्म, मत, देवी-देवताओं को ‘झूठा’ बताते हैं। तब अपने प्रति वैसी बातों, आवाहनों पर दूसरे समुदायों को आलोचना भी करने का अधिकार है या नहीं? वस्तुतः विडंबना और भी गहरी है कि शासन-सत्ताएं उन्हीं किताबों के पठन-पाठन समेत, संबंधित समुदाय को नियमित रूप से विशेष शैक्षिक स्वतंत्रता एवं अनुदान देती है। इस तरह, दूसरों के विरुद्ध नियमित घृणा फैलाने को किसी समुदाय की ‘शिक्षा’ का अंग मानकर परोक्ष रूप से राजकीय सहायता तक मिलती है। इस पर विचार करने की जिम्मेदारी किस की है? हमारे न्यायपाल, सांसद, तथा कार्यपाल, तीनों ही इस से पल्ला झाड़ते हैं। ऐसी बेपरवाही, भेद-भाव, और मनमानी यहाँ ब्रिटिश राज में भी नहीं थी!


🚩उपर्युक्त सभी बातें राई-रत्ती परखी जा सकती हैं। किन्तु ऐसा नहीं किया जाता। बल्कि इस के लिए प्रमाणिक उदाहरणों के साथ आवेदन देने पर न्यायालय कभी-कभी आवेदक को ही जुर्माना कर देता है! दो साल पहले वासिम रिजवी की याचिका पर यही हुआ था। जब कि किसी ने नहीं बताया कि उस याचिका में कौन सी शिकायत गलत थी! तब यही संदेश गया कि उन शिकायतों को गलत बताना न्यायाधीशों के बस से बाहर था। चूँकि वे ऐसे मामले सुनना नहीं चाहते, इसलिए आवेदक को दंडित कर के सब को चेताया कि चुप रहें।


🚩वस्तुतः, ऐसे दोहरेपन ही तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा करते हैं। उसी की अभिव्यक्ति समय-समय पर किसी क्षुब्ध व्यक्ति के असंयत वक्तव्यों में होती है। आखिर, यदि देश के शासक, न्यायपाल, और विधिनिर्माता किसी समुदाय विशेष के प्रति सदा-बैरागी, और दूसरे के लिए सदा-संवेदनशील रहेंगे, तब कोई तो यह कहेगा ही। एक सेक्यूलर राज्यतंत्र में नियमित दो-नीतियाव्यवहार सदैव स्वीकार नहीं होगा। इसे दमन की धमकी से चुप कराने की कोशिश विपरीत फलदायी होगी।


🚩यह शासन के तीनों अंगों में आई मानसिक गिरावट का भी संकेत है। वह अपनी आँखों के सामने घटते घटनाक्रम का आकलन करने में भी अयोग्य है। कई बार अनेक बड़ी-बड़ी घटनाओं में यह दिखा कि विभिन्न समुदायों के हितों, भावनाओं, धर्म, संस्कृति के प्रति विषम व्यवहार पर हेठी झेलने वाले समूह में असंतोष जमा होता है। उस से आपसी द्वेष बढ़ते, और हिंसा-विध्वंस तक होता है। अंततः वह चुनावी उथल-पुथल में भी व्यक्त होता है। फिर भी, हमारे नेता, बौद्धिक, तथा न्यायपाल वही दोहरापन जारी रखते हैं। कानूनी रूप से भी, और कानून की उपेक्षा करके, दोनों रूपों में।


🚩उन्हें ध्यान देना चाहिए, कि असुविधाजनक सचाइयों को तहखाने में दबाकर लोक-स्मृति से हटा देने की संभावना अब बहुत घट गई है। नए मीडिया ने लगभग सभी सेंसरशिप विफल कर दी है। हर उचित-अनुचित, चाहे वह जिस ने भी कही या की हो, वह बिना खर्च घर-घर पहुँच सकती है। अतः अन्यायपूर्ण, अपमानपूर्ण कथनी-करनी पर दो-टूक समानता बनानी ही होगी। इस से बचने की कीमत समाज में निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ती है। हरेक वर्ग, समूह, जाति, संप्रदाय के सामान्य लोगों को अपने समुदाय के उद्धत/मूर्ख नेताओं की चुनी हुई बयानबाजी और चुनी हुई चुप्पियों के कारण दूसरों के संदेह का शिकार होना पड़ता है। इसे केवल समदर्शी शासन ही रोक सकता है। लोगों को उपदेश या धमकी देकर दोहरापन जारी रखना कोई उपाय नहीं है।


🚩इसलिए, हेट-स्पीच को कड़ाई और निष्पक्षता से पहले परिभाषित करें। ताकि वर्तमान या अतीत, लिखित प्रकाशित या मौखिक, किसी भी बात, किताब, या मत-विश्वास को अपवाद न बताया जा सके। ताकि केवल एक रंग के लोगों को दंडित करने, अथवा, खास रंग के लोगों को सदा छूट रहने का सुभीता न बने। विशेषकर सांसदों, विधायकों, संगठनों, संस्थाओं के द्वेषपूर्ण सांप्रदायिक या जातिवादी बयानों पर अधिक सख्ती व फुर्ती से कार्रवाई हो। तभी समाज के सभी समुदायों में भरोसा पैदा होगा। आम लोग किसी भी समुदाय के नेताओं को सहज न्यायदृष्टि से देखने के लिए तैयार रहते हैं।


🚩अच्छा हो, हमारी संसद सभी वर्गों के विवेकशील प्रतिनिधियों को लेकर समरूप आचार-संहिता और दंड-नीति बनवाएं। जिस से शिक्षा, धर्म, तथा राजनीतिक व्यवहार पर सभी समुदायों को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्राप्त हो। किसी समुदाय को विशेष अधिकार या विशेष वंचना न हो। किसी भी नाम पर विशेषाधिकारों का दावा खारिज हो। सभी निरपवाद रूप से मानें कि ‘‘दूसरों के साथ वह व्यवहार न करें जो अपने लिए नहीं चाहते”। यह व्यवस्था आज न कल करनी ही होगी। शुभस्य शीघ्रम्! - डॉ. शंकर शरण


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Friday, May 5, 2023

मथुरा पहुँचे नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने की माँग, बोले "हिन्दू राष्ट्र बने भारत"

5  May 2023

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🚩भारत एक हिन्दू बाहुल्य देश है, एक हिन्दू कभी किसी अन्य धर्म के लोगों के लिए खतरे का विषय नहीं बन सकता है और ना ही हिन्दुओं से किसी अन्य धर्म के लोगों को कोई खतरा ही हो सकता है, किन्तु यदि भारत को हिन्दू राष्ट्र न घोषित किया गया तो इससे हिन्दुओं को जरुर खतरा हो सकता है।

न्यायमूर्ति एस.आर. सेन जी की बात विचारणीय है । यदि हिन्दू बाहुल्य देश में हिन्दुओं का भरोसा जीतना हो तो मोदी सरकार को शीघ्र ही भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए।


🚩नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोपाल परांजलि ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की वकालत की है। परांजलि ने कहा है कि भारत के हिंदू राष्ट्र बनने से पूरी दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने यह बात सोमवार (1 मई, 2023) को मथुरा में कही।



🚩दरअसल, नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोपाल परांजलि प्रतिनिधि मंडल के साथ मथुरा के गोवर्धन में स्थित मंदिरों के दर्शन करने पहुँचे थे। प्रतिनिधि मंडल में उनके साथ पशुपतिनाथ विकास कोष काठमांडू के प्रमुख सदस्य एवं संहिता शास्त्री अर्जुन प्रसाद वास्तोला एवं 10 अन्य लोग उनके साथ थे।


🚩मंदिरों के दर्शन के बाद उन्होंने श्रीआद्य शंकराचार्य आश्रम जाकर गोवर्धनपुरी के पीठाधीश्वर स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने भारत-नेपाल संबंधों पर चर्चा करते हुए कहा है कि नेपाल सैद्धांतिक रूप से पहले से ही हिंदू राष्ट्र है। ऐसे में यदि भारत को भी हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाएगा तो इससे पूरी दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परांजलि ने आगे कहा है कि भारत के हिंदू राष्ट्र बन जाने के बाद दुनिया भर में रह रहे 178 करोड़ से अधिक हिंदुओं को भी गौरव की अनुभूति होगी और उनका आत्मबल भी बढ़ेगा।


🚩इस दौरान वास्तोला पशुपतिनाथ विकास कोष काठमांडू के प्रमुख सदस्य एवं संहिता शास्त्री अर्जुन प्रसाद वास्तोला ने कहा है कि आज से 2530 साल पहले आद्य शंकराचार्य ने विधर्मियों द्वारा छिन्न-भिन्न की जा चुकी वैदिक सनातन संस्कृति की फिर से स्थपना की थी। अब एक बार फिर शंकराचार्य के विचारों से ही सबका कल्याण होगा।


🚩वास्तोला ने यह भी कहा है कि दुनिया में ईसाई, मुस्लिमों और बौद्धों के भी देश हैं। यहाँ तक कि यहूदियों का भी एक देश है। ऐसे में दुनिया के सबसे अधिक हिन्दू आबादी वाले भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया चाहिए। भारत एक दिव्य देश है। यहाँ हमेशा ही ज्ञान की धारा बहती रही है। इसके हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाने से दुनिया के करोड़ों सनातनियों का आत्मबल मजबूत होगा। साथ ही दुनिया का कल्याण होगा।


🚩पुरे विश्व में एकमात्र भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ हिन्दुओं की बहुलता है, इसे ध्यान में रखा जाए तो भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए । यदि इसका दूसरा पक्ष देखें तो अब से 71 साल पहले 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो साथ ही उसका विभाजन भी किया गया था और एक नया देश पाकिस्तान बनाया गया; चूँकि पाकिस्तान मुस्लिमों की मांग के कारण बनाया गया था इसलिए उसे तुरंत ही इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया, लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित न कर उसे धर्म निरपेक्ष ही बना रहने दिया गया ।


🚩दुनिया मे ईसाईयों के 157 देश है और मुसलानों के 52 देश है जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू ही सनातन धर्म है जबसे सृष्टि का उदगम हुआ तब से है फिर भी एक भी हिन्दू देश नही है।


🚩हिंदुस्तान का अर्थ ही है ऐसा स्थान जहाँ हिन्दुओं का निवास हो तो कायदे से देखा जाए तो हिंदुस्तान में रहने वाला हर शख्स हिन्दू ही है फिर इस देश में हिन्दू राष्ट्र घोषित करने में इतनी देर क्यों ? जनता माननीय श्री नरेद्र मोदी जी से अपील करती हैं कि अल्पसंख्यकों के हक में तो बहुत फैसले ले लिए अब कुछ फैसले हिन्दुओं के हक में भी ले लीजिये ताकि 2024 में आपको वापस हम सब प्रधानमंत्री के पद पर देख पाएं ।

देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है ।


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Thursday, May 4, 2023

भगवान बुद्ध को बदनाम करने के लिए इस तरीके से रचा गया था षड्यंत्र

 भगवान बुद्ध को बदनाम करने के लिए इस तरीके से रचा गया था षड्यंत्र 


4  May 2023

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🚩भगवान बुद्ध का जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्यगणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकटलुंबिनी, नेपाल में हुआ था । लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था ।


🚩कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया । शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया ।


🚩कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन का युवराज था सिद्धार्थ! यौवन में कदम रखते ही विवेक और वैराग्य जाग उठा। युवान पत्नी यशोधरा और नवजात शिशु राहुल की मोह-ममता की रेशमी जंजीर काटकर महाभीनिष्क्रमण (गृहत्याग) किया। एकान्त अरण्य में जाकर गहन ध्यान साधना करके अपने साध्य तत्त्व को प्राप्त कर लिया।



🚩एकान्त में तपश्चर्या और ध्यान साधना से खिले हुए इस आध्यात्मिक कुसुम की मधुर सौरभ लोगों में फैलने लगी। अब सिद्धार्थ भगवान बुद्ध के नाम से जन-समूह में प्रसिद्ध हुए। हजारों हजारों लोग उनके उपदिष्ट मार्ग पर चलने लगे और अपनी अपनी योग्यता के मुताबिक आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ते हुए आत्मिक शांति प्राप्त करने लगे। असंख्य लोग बौद्ध भिक्षुक बनकर भगवान बुद्ध के सान्निध्य में रहने लगे। उनके पीछे चलने वाले अनुयायियों का एक संघ स्थापित हो गया।


🚩चहुँ ओर नाद गूँजने लगे :

बुद्धं शरणं गच्छामि।

धम्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि।


🚩श्रावस्ती नगरी में भगवान बुद्ध का बहुत यश फैला। लोगों में उनकी जय-जयकार होने लगी। लोगों की भीड़-भाड़ से विरक्त होकर बुद्ध नगर से बाहर जेतवन में आम के बगीचे में रहने लगे। नगर के पिपासु जन बड़ी तादाद में वहाँ हररोज निश्चित समय पर पहुँच जाते और उपदेश-प्रवचन सुनते। बड़े-बड़े राजा महाराजा भगवान बुद्ध के सान्निध्य में आने जाने लगे।


🚩समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं। अनादि काल से दैवी सम्पदा के लोग एवं आसुरी सम्पदा के लोग हुआ करते हैं। बुद्ध का फैलता हुआ यश देखकर उनका तेजोद्वेष करने वाले लोग जलने लगे। और जैसा कि संतों के साथ हमेशा से होता आ रहा है ऐसे उन दुष्ट तत्त्वों ने बुद्ध को बदनाम करने के लिए कुप्रचार किया। विभिन्न प्रकार की युक्ति-प्रयुक्तियाँ लड़ाकर बुद्ध के यश को हानि पहुँचे ऐसी बातें समाज में वे लोग फैलाने लगे। उन दुष्टों ने अपने षड्यंत्र में एक वेश्या को समझा-बुझाकर शामिल कर लिया।


🚩वेश्या बन-ठनकर जेतवन में भगवान बुद्ध के निवास-स्थान वाले बगीचे में जाने लगी। धनराशि के साथ दुष्टों का हर प्रकार से सहारा एवं प्रोत्साहन उसे मिल रहा था। रात्रि को वहीं रहकर सुबह नगर में वापिस लौट आती। अपनी सखियों में भी उसने बात फैलाई।


🚩लोग उससे पूछने लगेः “अरी! आजकल तू दिखती नहीं है?कहाँ जा रही है रोज रात को?”

वैश्या बोली “मैं तो रोज रात को जेतवन जाती हूँ। वे बुद्ध दिन में लोगों को उपदेश देते हैं और रात्रि के समय मेरे साथ रंगरलियाँ मनाते हैं। सारी रात वहाँ बिताकर सुबह लौटती हूँ।”


🚩वेश्या ने पूरा स्त्रीचरित्र आजमाकर षड्यंत्र करने वालों का साथ दिया । लोगों में पहले तो हल्की कानाफूसी हुई लेकिन ज्यों-ज्यों बात फैलती गई त्यों-त्यों लोगों में जोरदार विरोध होने लगा। लोग बुद्ध के नाम पर फटकार बरसाने लगे। बुद्ध के भिक्षुक बस्ती में भिक्षा लेने जाते तो लोग उन्हें गालियाँ देने लगे। बुद्ध के संघ के लोग सेवा-प्रवृत्ति में संलग्न थे। उन लोगों के सामने भी उँगली उठाकर लोग बकवास करने लगे।


🚩बुद्ध के शिष्य जरा असावधान रहे थे। कुप्रचार के समय साथ ही साथ सुप्रचार होता तो कुप्रचार का इतना प्रभाव नहीं होता।


🚩शिष्य अगर निष्क्रिय रहकर सोचते रह जाएं कि ‘करेगा सो भरेगा… भगवान उनका नाश करेंगे..’ तो कुप्रचार करने वालों को खुला मैदान मिल जाता है।


🚩संत के सान्निध्य में आने वाले लोग श्रद्धालु, सज्जन, सीधे सादे होते हैं, जबकि दुष्ट प्रवृत्ति करने वाले लोग कुटिलतापूर्वक कुप्रचार करने में कुशल होते हैं। फिर भी जिन संतों के पीछे सजग समाज होता है उन संतों के पीछे उठने वाले कुप्रचार के तूफान समय पाकर शांत हो जाते हैं और उनकी सत्प्रवृत्तियाँ प्रकाशमान हो उठती हैं।


🚩कुप्रचार ने इतना जोर पकड़ा कि बुद्ध के निकटवर्ती लोगों ने ‘त्राहिमाम्’ पुकार लिया। वे समझ गये कि यह व्यवस्थित आयोजन पूर्वक षड्यंत्र किया गया है। बुद्ध स्वयं तो पारमार्थिक सत्य में जागे हुए थे। वे बोलतेः “सब ठीक है, चलने दो। व्यवहारिक सत्य में वाहवाही देख ली। अब निन्दा भी देख लें। क्या फर्क पड़ता है?”


🚩शिष्य कहने लगेः “भन्ते! अब सहा नहीं जाता। संघ के निकटवर्ती भक्त भी अफवाहों के शिकार हो रहे हैं। समाज के लोग अफवाहों की बातों को सत्य मानने लग गये हैं।”

🚩बुद्धः “धैर्य रखो। हम पारमार्थिक सत्य में विश्रांति पाते हैं। यह विरोध की आँधी चली है तो शांत भी हो जाएगी। समय पाकर सत्य ही बाहर आयेगा। आखिर में लोग हमें जानेंगे और मानेंगे।”


🚩कुछ लोगों ने अगवानी का झण्डा उठाया और राज्यसत्ता के समक्ष जोर-शोर से माँग की कि बुद्ध की जाँच करवाई जाये। लोग बातें कर रहे हैं और वेश्या भी कहती है कि बुद्ध रात्रि को मेरे साथ होते हैं और दिन में सत्संग करते हैं।


🚩बुद्ध के बारे में जाँच करने के लिए राजा ने अपने आदमियों को फरमान दिया। अब षड्यंत्र करनेवालों ने सोचा कि इस जाँच करने वाले पंच में अगर सच्चा आदमी आ जाएगा तो अफवाहों का सीना चीरकर सत्य बाहर आ जाएगा। अतः उन्होंने अपने षड्यंत्र को आखिरी पराकाष्ठा पर पहुँचाया। अब ऐसे ठोस सबूत खड़ा करना चाहिए कि बुद्ध की प्रतिभा का अस्त हो जाये।


🚩षडयंत्रकारियों ने वेश्या को दारु पिलाकर जेतवन भेज दिया। पीछे से गुण्डों की टोली वहाँ गई। वेश्या के साथ बलात्कार आदि सब दुष्ट कृत्य करके उसका गला घोंट दिया और लाश को बुद्ध के बगीचे में गाड़कर पलायन हो गये।


🚩लोगों ने राज्यसत्ता के द्वार खटखटाये थे लेकिन सत्तावाले भी कुछ लोग दुष्टों के साथ जुड़े हुए थे। ऐसा थोड़े ही है कि सत्ता में बैठे हुए सब लोग दूध में धोये हुए व्यक्ति होते हैं।


🚩राजा के अधिकारियों के द्वारा जाँच करने पर वेश्या की लाश हाथ लगी। अब दुष्टों ने जोर-शोर से चिल्लाना शुरु कर दिया।


🚩”देखो, हम पहले ही कह रहे थे। वेश्या भी बोल रही थी लेकिन तुम भगतड़े लोग मानते ही नहीं थे। अब देख लिया न? बुद्ध ने सही बात खुल जाने के भय से वेश्या को मरवाकर बगीचे में गड़वा दिया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। लेकिन सत्य कहाँ तक छिप सकता है? मुद्दामाल हाथ लग गया। इस ठोस सबूत से बुद्ध की असलियत सिद्ध हो गई। सत्य बाहर आ गया।”


🚩लेकिन उन मूर्खों को पता नहीं कि तुम्हारा बनाया हुआ कल्पित सत्य बाहर आया, वास्तविक सत्य तो आज ढाई हजार वर्ष के बाद भी वैसा ही चमक रहा है। आज बुद्ध भगवान को लाखों लोग जानते हैं, आदरपूर्वक मानते हैं। उनका तेजोद्वेष करने वाले दुष्ट लोग कौन-से नरकों में जलते होंगे क्या पता!


🚩वर्तमान में जिन संतों के ऊपर आरोप लग रहे हैं उनके भक्त अगर सच्चाई किसी को बताने जाएंगे तो दुष्ट प्रकृति के लोग तो बोलेंगे ही, लेकिन जो हिंदूवादी और राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोग है वे भी यही बोलेंगे की कि बुद्ध तो भगवान थे, आजकल के संत ऐसे ही है, उनको इतने पैसे की क्या जरूत है? लड़कियों से क्यों मिलते हैं..??? ऐसे कपड़े क्यों पहनते हैं..??? आदि आदि…।


🚩पर उनको पता नही है कि पहले ऋषि मुनियों के पास इतनी सम्पत्ति होती थी कि राजकोष में धन कम पड़ जाता था तो ऋषि मुनियों से लोन लिया जाता था और रही कपड़े की बात तो कई भक्तों की भावना होती है तो पहन लेते हैं और लड़कियां दुःखी होती हैं तो उनके मां-बाप लेकर आते हैं तो कोई दुःख होता है तो मिल लेते हैं,उनके घर थोड़े ही बुलाने जाते हैं और भी कई तर्क वितर्क करेगे लेकिन भक्तों को दुःखी नहीं होना चाहिए। सबके बस की बात नही है कि महापुरुषों को पहचान पाये, आप अपने गुरूदेव का प्रचार प्रसार करते रहें, एक दिन ऐसा आएगा कि निंदा करने वाले भी आपके पास आयेंगे और बोलेंगे कि मुझे भी अपने गुरु के पास ले चलो।


🚩विदेशी फंडेड मीडिया ने हिंदू साधु-संतों की झूठी कहानी बनाकर समाज को परोसी, जिससे समाज गुमराह हो गया और सच्चाई न जानकर झूठ को ही सच मान बैठे, कुछ स्वार्थी नेता राष्ट्रविरोधी ताकतों से मिलकर झूठे केस में संतो को जेल भिजवा रहे हैं पर उसका भी देर सवेर खुलासा होगा क्योंकि सत्य को परेशान किया जाता है पराजित कभी नहीं…।


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Wednesday, May 3, 2023

समलैंगिक विवाह की कल्पना मानवता के लिए अभिशाप


3  May 2023

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🚩समलैंगिक विवाह की सोच से शुभ विवाह जैसा पवित्र माँगिलक संस्कार कलंकित होकर मानवता के लिए अमंगलकारक होगा। यह सोच न केवल भारत जैसे राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं व परम्पराओं के लिए अभिशाप होगी बल्कि पारिवारिक, सामाजिक व नौतिक मूल्यों तथा संस्कारों के लिए पतन कारक व मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारी होगी,इसलिए सरकार इस पर रोक लगाए-परमहंस डॉ. अवधेशपुरी जी महाराज (उज्जैन)


🚩समलैंगिक विवाह को वैध करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही हैं।


🚩बता दे की समलैंगिक प्रथा विदेशो में चलती है भारत एक आध्यत्मिक देश है यहाँ अप्राकृतिक संबध बनाना पाप माना जाता है, ये भगवान, शास्त्र विरुद्ध कार्य है जो मनुष्य को ही भयंकर नुकसान पहुँचाता है ।



🚩‘द चिल्ड्रंस सोसायटी’ ने साल 2015 में 14 साल के करीब 19 हजार किशोरों से मिली जानकारी का विश्लेषण किया । संस्था की रिपोर्ट बताती है कि समान लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाले किशोरों और बाकी किशोरों के बीच खुशी के मामले में काफी अंतर था । एक चौथाई से ज्यादा समलैंगिक किशोर अपने जीवन से कम संतुष्ट थे । वहीं सर्वे में शामिल सभी लोगों के बीच यह आंकड़ा महज 10 फीसदी तक था ।


🚩करीब 40 फीसदी किशोरों में अत्यधिक डिप्रेशन के लक्षण पाए गए. रिपोर्ट कहती है कि कि सभी किशोरों में से करीब 15 फीसदी ने पिछले साल खुद को नुकसान पहुंचाया। वहीं समलैंगिक किशोरों में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 50 फीसदी के बराबर थी ।


🚩हिन्दू धर्म में समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है इसे नैतिक पतन का लक्षण माना जाता है । इसलिए यहाँ पकड़े जाने पर समलैंगिकों को हमेशा कठोर सजा दी जाती थी ।


🚩आज धीरे-धीरे कर देश में कुछ लोग इस तरह के एक ही शारीरिक सम्बन्ध की शादियों को स्वीकार करने लगे है । समलैंगिकता को अब कानूनी दर्जा भी मिल सकता है । एक ही सेक्स के दो लोग शादी रचाकर एक साथ रहने के लिए आजाद है, लेकिन ये शादी ना केवल समाज के नियमों को तोड़ती है बल्कि प्रकृति के नियमों का भी उल्लघंन करती है ।


🚩यह प्राकृतिक कानून का उल्लंघन है :- 

शादी दो इंसानों के बीच का संबंध है, जिसे समाज द्वारा जोड़ा जाता है और उसे प्रकृति के नियमों के साथ आगे चलाया जाता है । समाज में शादी का उद्देश्य शारीरिक संबंध बनाकर मानव श्रृखंला को चलाना है । यहीं नेचर का नियम है । जो सदियों से चलता आ रहा है, लेकिन समलैंगिक शादियां मानव श्रृंखला के इस नियम को बाधित करती है ।


🚩अधर में बच्चे का भविष्य:- 

सामान्यतः बच्चों का भविष्य मां-बाप के संरक्षण में पलता है । समलैगिंक विवाह की स्थिति में बच्चों का विकास प्रभावित होता है । वो या तो मां का प्यार पाते हैं या पिता का सहारा । मां-बाप का प्यार उन्हें एक -साथ नहीं मिल पाता जो उनके विकास को प्रभावित करता है । संडे टेलिग्राफ’ अखबार के मुताबिक समलैंगिक शादी उस मूलभूत विचार को बिल्कुल खत्म कर देगा कि हर बच्चे को मां और बाप दोनों चाहिए ।


🚩समलैंगिक जीवन शैली को बढ़ावा देता है:-

एक ही सेक्स में विवाह की कानूनी मान्यता जरूरी है । ये शादियां समाज के नियम के साथ-साथ पारंपरिक शादियों को नुकसान पहुंचाती है । लोगों के सोचने के नजरिए को प्रभावित करती है । बुनियादी नैतिक मूल्यों , पारंपरिक शादी के अवमूल्यन, और सार्वजनिक नैतिकता को कमजोर करता है ।


🚩नागरिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल:-

समलैंगिक कार्यकर्ताओं को एक ही सेक्स में शादी करने का मुद्दा 1960 के दशक में नस्लीय समानता के लिए संघर्ष का मुद्दा बन गया था । एक औरत और एक मर्द के बीच उनके रुप-रंग, लंबाई-चौड़ाई को बिना ध्यान में रखे संबंध बनाया जा सकता है, लेकिन एक ही सेक्स में शादी प्रकृति का विरोध करता है । एक ही लिंग के दो व्यक्तियों, चाहे उनकी जाति का, धन, कद अलग हो संभव नहीं होता ।


🚩बांझपन को बढ़ावा देता है:- 

प्रकृतिक शादियों में महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं, लेकिन समलैंगिक शादियों में दंपत्ति प्रकृतिक तौर पर बांझपन का शिकार होता है ।


🚩सेरोगेसी के बाजार को मिलता है बढ़ावा:-

एक ही लिंग की शादियों में दंपत्ति बच्चा पैदा करने में प्रकृतिक तौर पर असमर्थ होता है । ऐसे में वो सेरोगेसी या किराए की कोख का इस्तेमाल कर अपनी मुराद को पूरा करना का प्रयास करता है । समलैंगिक विवाह के कारण सेरोगेसी के बाजार को बढ़ावा मिलता है ।


🚩भगवान भी होते हैं नाराज

यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है । यह शादी भगवान द्वारा स्थापित प्राकृतिक नैतिक आदेश का उल्लंघन करती है और भगवान नाराज होते हैं ।

🚩समाज पर दबाव:-

समलैंगिक शादियां समाज पर अपनी स्वीकृति के लिए दबाव डालती है । कानूनी मान्यता के कारण समाज को जबरन इन शादियों को मंजूर करना ही होता है । जिन देशों में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिल चुकी है, उन देशों में समलैंगिक शादियों से पैदा हुए बच्चों को शिक्षा देनी ही होती है । अगर कोई व्यक्ति या अधिकारी इसका विरोध करता है तो उसे विरोध का सामना करना पड़ता है ।


🚩मनुष्य को इतने भयंकर नुकसान के कारण ही समलैंगिक संबध बनाना गैरकानूनी था, पर अभी पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण आज भारत के कुछ लोग भी पशुता की ओर जाने लगे है इससे सावधान रहना जरूरी है ।


🚩भारत मे गौमाता की रक्षा के लिए कानून नहीं बना पा रहे हैं और समलैंगिक संबध के लिए कानून बना रहे हैं, कितने दुर्भाग्य की बात है ।


🚩हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सत्य यह है कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं। प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो या स्त्री-स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। आज मनुष्य अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाते हैं। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करते? अगर करेंगे तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🚩समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। ना कि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अंधेरे में हैं, ओरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी?


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