29 October 2023
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भारतीय संस्कृति के साधु-संतों और भगवान के नाम की कितनी ताकत है वे दुनिया के किसी भी पलडु से तोल नही सकते है। हम लोग जो आज घरो में रामायण देख रहे है और उसको देखकर हमारा जीवन उन्नत कर रहे है लेकिन ये रामायण कैसे लिखी गई है और लिखने वाले एक साधारण व्यक्ति से महान कैसे बन गए वे भी आप जनोगों तो सनातन हिंदू संस्कृति पर आपको गर्व होने लगेगा और दुनिया मे इसके जैसे कोई श्रेष्ठ धर्म आपको नही दिखाई देगा।
🚩महर्षि वाल्मीकि जी का परिचय
🚩महर्षि वाल्मीकि की कहानी बडी अर्थपूर्ण है । सत्पुरुषों की संगति में आकर लोगोंकी उन्नति कैसे होती है, महर्षि वाल्मीकि इसका एक महान उदाहरण हैं । नारदमुनि के संपर्क में आकर वे एक महान ऋषि, ब्रम्हर्षि बने, तथा उन्होंने ‘रामायण’ की रचना की, जिसे संपूर्ण विश्व कभी भूल नहीं सकता । पूरे विश्वके महाकाव्यों में से वह एक है । दूसरे देशों के लोग उसे अपनी-अपनी भाषाओं में पढते हैं । रामायण के चिंतन से हमारा जीवन सुधर सकता है । हमें यह महाकाव्य देनेवाले महर्षि वाल्मीकि को हम कभी भूल नहीं सकते । इस महान ऋषि एवं चारण को हमारा कोटि-कोटि प्रणाम ।
🚩महर्षि वाल्मीकि की रामायण संस्कृत भाषाका पहला काव्य है, अत: उसे ‘आदि-काव्य’ अथवा ‘पहला काव्य’ कहा जाता है तथा महर्षि वाल्मीकिको `आदि कवि’ अथवा ‘पहला कवि’ कहा जाता है ।
🚩जिस कवि ने ‘रामायण’ लिखी तथा लव एवं कुशको यह गाना तथा कहानी सिखाई, वे एक महान ऋषि, महर्षि वाल्मीकि थे । यह व्यक्ति महर्षि तथा गायक कवि कैसे बने यह बडी बोधप्रद कहानी है । महर्षि वाल्मीकि की रामायण संस्कृत भाषा में है तथा बहुत सुंदर काव्य है ।
🚩महर्षि वाल्मीकि की रामायण गायी जा सकती है । कोयल की आवाज की तरह वह कानों को भी बडी मीठी (कर्णप्रिय) लगता है । महर्षि वाल्मीकि को काव्य के पेड पर बैठी तथा मीठा गानेवाली कोयल कहा गया है । जो भी रामायण पढते हैं, प्रथम महर्षि वाल्मीकि को प्रणाम कर तदुपरांत महाकाव्य की ओर बढते हैं ।
🚩महर्षि वाल्मीकि और नारद की कथा
🚩महर्षि वाल्मीकि और नारद को लेकर एक पौराणिक कथा है। वाल्मीकि बनने से पूर्व उनका नाम रत्नाकर था और वह परिवार के भरण पोषण के लिए लोगों को लूटा करते थे। एक बार उनकी मुलाकात नारद जी से हो गई। जब वह उन्हें लूटने लगे तो नारदजी ने प्रश्न किया कि, जिन परिवार के लिए वह ये काम कर रहे हैं, क्या वह उनके पापा में भागीदार बनेगे ?
🚩जब रत्नाकर ने यह सुना तो वह अचरज में पड गए और तुरंत अपने परिवार के पास जाकर ये प्रश्न किया। उनको यह जानकर झटका लगा कि कोई भी उनका अपना उनके पाप में हिस्सेदार नहीं बनना चाहता है। इसके बाद उन्होंने नारद जी से क्षमा मांगी और साथ ही राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया। किंतु वाल्मीकि जी राम नाम नहीं बोल पा रहे थे जिस पर उन्होंने उनका ‘मरा मरा’ जपने की सीख दी। यही जाप उनका राम नाम हो गया और वह एक लुटेरे से महर्षि वाल्मीकि हो गए।
बता दें कि ये जब श्री राम ने जनता की बातें सुनकर माता सीता को त्याग दिया था, तब वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रही थीं। उनके पुत्रों लव-कुश के गुरु भी महर्षि वाल्मीकि ही थे।
🚩महाकाव्य रामायणकी रचना
🚩नारदमुनिके जानेके पश्चात महर्षि वाल्मीकि गंगा नदी पर स्नान करने गए । भारद्वाज नाम का शिष्य उनके वस्त्र संभाल रहा था । चलते-चलते वे एक निर्झरके पास आए । निर्झर का पानी बिल्कुल स्वच्छ था । वाल्मीकि ने अपने शिष्यसे कहा, `देखो, कितना स्वच्छ पानी है, जैसे किसी अच्छे मानवका स्वच्छ मन! आज मैं यहीं स्नान करूंगा।’
🚩महर्षि वाल्मीकि पानी में पांव रखने हेतु उचित स्थान देख रहे थे, तभी उन्हें पंछियों की मीठी आवाज सुनाई दी । ऊपर देखने पर उन्हें दो पंछी एक साथ उडते हुए दिखे । उन पंछियों की प्रसन्नता देख कर महर्षि वाल्मीकि अति प्रसन्न हुए । तभी तीर लगने से एक पंछी नीचे गिर गया । वह एक नर पक्षी था । उसकी घायल हालत देखकर उसकी साथी दुखसे चिल्लाने लगी । यह ह्रदयविदारक दृश्य देखकर महर्षि वाल्मीकि का ह्रदय पिघल गया । पंछीपर किसने तीर चलाया यह देखने हेतु उन्होंने इधर-उधर देखा । तीर-कमान के साथ एक आखेटक निकट ही दिखाई दिया । आखेटक ने (शिकारीने) खाने हेतु पंछीपर तीर चलाया था । महर्षि वाल्मीकि बडे क्रोधित हुए । उनका मुंह खुला, और ये शब्द निकल गए : `तुमने एक प्रेमी जोडे में से एककी हत्या की है, तुम खुद अधिक दिनोंतक जीवित नहीं रहोगे !’ दुखमें उनके मुंह से एक श्लोक निकल गया । जिसका अर्थ था, तुम अनंत काल के लंबे साल तक शांति से न रह सकोगे । तुमने एक प्रणयरत पंछी की हत्या की है ।
🚩पंछी का दुख देखकर महर्षि वाल्मीकि ने बडे दुखी होकर आखेटक को (शिकारी को) शाप दिया; किंतु किसीको शाप देने से वे भी दुखी हो गए । उनके साथ चलने वाले भारद्वाज मुनि के पास उन्होंने अपना दुख प्रकट किया । महर्षि वाल्मीकि के मुंहसे श्लोक निकल जाने के कारण उन्हें भी आश्चर्य हुआ था । उनके आश्रम वापिस आने पर तथा उसके पश्चात भी वे श्लोक के विषय में ही सोचते रहे ।
🚩महर्षि वाल्मीकि का मन अभी भी उनके मुंह से निकले श्लोक का ही विचार कर रहा था, कि सृष्टि के देवता भगवान ब्रह्मा स्वयं उनके सामने प्रकट हुए । उन्होंने महर्षि वाल्मीकि से कहा, `हे महान ऋषि, आपके मुंह से जो श्लोक निकला, उसे मैंने ही प्रेरित किया था । अब आप श्लोकों के रूपमें ‘रामायण’ लिखेंगे । नारद मुनिने तुम्हें रामायण की कथा सुनाई है । तुम अपनी आंखों से सब देखोगे । तुम जो भी कहोगे, सच होगा । तुम्हारे शब्द सत्य होंगे । जबतक इस दुनिया में नदियां तथा पर्वत हैं, लोग ‘रामायण’ पढेंगे । ’ भगवान ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा आशीर्वाद दिया और वे अदृश्य हो गए ।
🚩महर्षि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ लिखी । सर्वप्रथम उन्होंने श्रीराम के सुपुत्र लव एवं कुश को श्लोक सिखाए । उनका जन्म महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में हुआ तथा वहीं पर वे बडे हुए।
🚩आपने जाना कि कैसे एक व्यक्ति अपनी आजीविका चलाने के लोए लुटमार करते है और एक साधु देवर्षि नारद मिलते है और भगवान के नाम की दीक्षा लेते है और उस मार्गदर्शन के अनुसार रत्नाकर अपना जीवन बना देते है और महान हो जाते है और आज भी उनकी महर्षि वाल्मीकि बनकर पूरी दुनिया को मार्गदर्शन दे रहे है, धन्य भारतीय संस्कृति और साधु संत।
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