Sunday, November 19, 2023

गोपाष्टमी कब से शुरू हुई ? इस दिन मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए क्या करना चाहिए ?

19 November 2023

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🚩गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी छोटी अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।


🚩उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे,परंतु जब लगातार 7 दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब 8 वें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।


🚩कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?


🚩गोपाष्टमी के दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, 7 परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।


🚩गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।


🚩भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेले जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।


🚩देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवी-देवताओं का निवास बताया गया है ।


🚩गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।

विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन की पूजा का विधान नहीं है ।


🚩गाय माता को प्रतिदिन रोटी देना चाहिए, गाय के गौमूत्र, गोबर,दूध, और घी से कई तरह की बीमारियों से रक्षा होती हैं।


🚩विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन


🚩देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । इसका सेवन हमारे पाप-ताप भी दूर करता है । गाय से हमें बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।

 (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित “गाय” नामक सत्साहित्य से)


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Saturday, November 18, 2023

भगवान श्री राम के जन्म के बारे में अंग्रेज ने 400 साल पहले क्या लिखा था ?

18 November 2023

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🚩अयोध्या में राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है और 22 जनवरी, 2024 को उद्घाटन के साथ ही हिन्दुओं के 500 वर्षों के संघर्ष का परिणाम उनके समक्ष भव्य स्वरूप में उपस्थित होगा। इस संघर्ष के पीछे कई हिन्दुओं का बलिदान है, जिन्होंने इस्लामी आक्रांताओं, अंग्रेजों और फिर सेक्युलर सत्ताधीशों के सामने सीना ठोक कर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी। आज उन बलिदानों को याद करने का समय है, साथ ही यह याद रखना भी जरूरी है कि कैसे एक मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित करने के लिए इस्लामी आक्रांताओं ने पूरा इतिहास ही अपने हिसाब से बदल डाला।


🚩उनके जाने के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने इसका बीड़ा उठाया और ये साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में कभी राम मंदिर था ही नहीं। ऐसे वामपंथी इतिहासकारों को सुप्रीम कोर्ट तक की फटकार मिली। आज फिर से समय है इतिहास को देखने का, जो हमें भूलना नहीं है। आइए, चलते हैं 17वीं शताब्दी में और जानते हैं कि कैसे अयोध्या सदियों से भगवान श्रीराम की भूमि रही है। वामपंथी इतिहासकार तो रामायण और रामचरितमानस तक को नहीं मानते, लेकिन अंग्रेजों के लिखे पर वो क्या कहेंगे?


🚩अगस्त 1608 में विलियम फिंच नामक एक अंग्रेज़ यात्री भारत आया था। सूरत में वो कैप्टन हॉकिंस के साथ पहुँचा था। बड़ी बात ये है कि वो जब 1608-11 में अयोध्या पहुँचा तो उसने अपने सफरनामे में लिखा है कि कैसे यहाँ के लोग भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं और प्राचीन काल से ही ये नगर उनसे जुड़ा हुआ है। बता दें कि सर विलियम हॉकिंस ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के प्रतिनिधि थे। 24 अगस्त, 1608 को जो अंग्रेजों का पहला जहाज सूरत में उतरा था, उसका नाम ‘हेक्टर’ था और विलियम हॉकिंस ही उसके कैप्टन थे।


🚩विलियम हॉकिंग्स ने ही तत्कालीन बादशाह जहाँगीर को पत्र लिख कर भारत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति माँगी थी। वो अपने साथ इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जेम्स प्रथम का एक पत्र जहाँगीर के लिए लेकर आए थे। उन्हीं के साथ आए विलियम फिंच ने आगरा और अन्य शहरों में रह कर यहाँ के रीति-रिवाज को समझा और मुगलों के काम करने की प्रक्रिया को जाना। उस समय भारत में पुर्तगाली अक्सर कारोबार करते थे और इंग्लैंग को उनके विरोध का सामना करना पड़ा।


🚩खम्भात के सूबेदार से विलियम फिंच ने अनुमति ले ली कि वो अपना माल सूरत में उतार सकता है। बाद में उसके बीमार पड़ने के कारण ही विलियम हॉकिंस को अकेले मुग़ल दरबार में जाना पड़ा था। अंग्रेजों को कपड़ों का व्यापार करने की अनुमति मिली थी। विलियम हॉकिंस को तुर्की भाषा आती थी और इस कारण मुगलों से बातचीत में उन्हें कोई समस्या नहीं हुई। हालाँकि, तब जहाँगीर के करीबी मुक़र्रब खान (जो बाद में कन्वर्ट होकर रोमन कैथोलिक बन गया था) ने पुर्तगालियों के इशारे पर अंग्रेजों के काम में अड़ंगा लगाया।


🚩हालाँकि, जहाँगीर को विलियम हॉकिंग्स काफी पसंद आए थे और उसने उन्हें अपने दरबार में रहने का ऑफर दिया। उनके लिए न सिर्फ मासिक वेतन तय किया गया, बल्कि 400 घोड़े भी उनके कमांड में दिए थे । बावजूद इसके भी हॉकिंस को मनपसंद अनुमति नहीं मिली और उन्हें वापस जाना पड़ा। बाद में अंग्रेजों की नौसेना ने लाल सागर में भारत का कारोबार रोका और फिर मुगलों के साथ उनकी डील हुई। फिर सन् 1615 में सर थॉमस रो , जहाँगीर के साथ तोहफे लेकर अजमेर पहुँचे।


🚩ये तो थी अंग्रेजों के सूरत और जहाँगीर के दरबार में पहुँचने की कहानी। अब बात करते हैं कि विलियम फिंच ने अयोध्या के बारे में क्या लिखा था, आइए देखें उसी के शब्दों में...


🚩 “अयोध्या यहाँ 50 ईसापूर्व से स्थित है। ये एक प्राचीन नगर है। ये एक पवित्र राजा का स्थल है। हालाँकि, अभी इसके अवशेष ही बचे हैं। यहाँ 4 लाख वर्ष पूर्व बने रामचंद्र के महलों और घरों के खँडहर अभी तक हैं। भारतीय उन्हें भगवान मानते हैं, जिन्होंने दुनिया का तमाशा देखने के लिए शरीर धारण किया था।”


🚩विलियम फिंच आगे लिखता है कि वहाँ कई ब्राह्मण रहते हैं, जिनके पास वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के नाम-पता की सूची दर्ज है। उसने ये जिक्र भी किया है कि पवित्र सरयू नदी में स्नान करने के लिए वहाँ हिन्दू आते हैं। वो लिखता है कि हिन्दू ( तत्कालीन समय के ) बताते हैं कि इस पवित्र स्नान की प्रक्रिया 4 लाख वर्षों से चली आ रही है। उसने नदी से 2 कोस की दूरी पर स्थित गुफाओं का जिक्र भी किया है, जो काफी संकरी हैं ।


🚩बाबरी ढाँचा तो आपको याद होगा? इसे कारसेवकों ने 1992 में ध्वस्त कर दिया था। इस ढाँचे की तस्वीरें आपने देखी होंगी। जबकि उस ज़माने की अधिकतर संरचनाएँ आर्किटेक्चर के मामले में समृद्ध हुआ करती थीं। पर बाबरी ढाँचा को देख कर ऐसा लगता था जैसे बाबर के सेनापति मीर बाक़ी ने आनन-फानन में सिर्फ जमीन हथियाने की मंशा से इसे बनवा दिया होगा।इसका प्रारूप बड़ा ही बचकाना नज़र आता था। राम मंदिर को ध्वस्त कर उसके ही मलबे से इसे तैयार किया गया था।


🚩अब विलियम फिंच को तो छोड़िए, यहाँ तक कि आइना-ए-अकबरी में भी भगवान विष्णु के 10 अवतारों का जिक्र है और इसमें भी लिखा है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। विलियम फिंच ने श्रद्धालुओं की सूची और उनका विवरण रखने वाले ब्राह्मणों का जिक्र किया है। इन्हें हम पंडा कहते हैं। पंडा बड़े धार्मिक स्थलों पर होते ही होते हैं। आज भी आप देवघर चले जाइए, वहाँ पंडों के पास सारे डिटेल्स होंगे आपके पूर्वजों के अगर वो वहाँ जाते रहे होंगे। ये सिर्फ एक उदाहरण है।


🚩‘अर्ली ट्रेवल्स टू इंडिया 1583-1619’ नामक पुस्तक में विलियन फिंच का लिखा हुआ उसका सफरनामा दर्ज है। राम मंदिर के वकील CS वैद्यनाथन ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसका जिक्र किया था। इस पुस्तक को इतिहासकार विलियम फॉस्टर ने लिखा था। विलियम फिंच के बारे में बता दें कि अंग्रेजी में कश्मीर के बारे में लिखने वाले पहले यात्रियों में उसका नाम आता है। पंजाब, पूर्वी तुर्किस्तान और पश्चिमी चीन को जोड़ने वाले व्यापारिक रूट के बारे में भी उसने काफी कुछ लिखा है।


🚩उसने काले बारूद की तरह दिखने वाले चावलों का भी जिक्र किया है। विलियम फिंच ने लिखा है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपने साथ ऐसे चावल के कुछ दाने प्रसाद के रूप में लेकर जाते हैं। उनका मानना है कि ये हमेशा से चलता आ रहा है। उसने रामचंद्र के खँडहरों में बड़ी मात्रा में सोना होने का दावा भी किया है। उसने ये भी लिखा है कि व्यापारिक दृष्टिकोण से भी अयोध्या समृद्ध है। साफ़ है, ये कारोबार का भी बड़ा स्थल था।


🚩बकौल विलियम फिंच, अयोध्या में घोड़े के सींग बहुतायत में मिलते थे और उनका इस्तेमाल कर के ढाल बनाई जाती थी। साथ ही तरह-तरह के पीने के प्याले बनाने में भी उनका इस्तेमाल किया जाता था। उसने कुछ भारतीयों के हवाले से लिखा है कि इनमें से कुछ सींग काफी दुर्लभ हैं, यहाँ तक कि आभूषणों की तुलना भी उनसे नहीं हो सकती। इसका अर्थ है कि अयोध्या एक महत्वपूर्ण जगह हुआ करती थी, आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए भी और आर्थिक गतिविधियों के लिए भी।


🚩इन सबके बावजूद 500 से भी अधिक वर्षों तक हिन्दुओं को अपने आराध्य देव के जगह पर अपना अधिकार साबित करने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी, बलिदान देने पड़े और दूसरे पक्ष की क्रूरता का सामना भी करना पड़ा।


🚩आज हम दिवाली पर जगमगाती अयोध्या देख रहे हैं, खुश हो रहे हैं, पर याद रहे कि इसके पीछे का बलिदान और इसका इतिहास भूलने की गलती कभी न होने पाए ।


वामपंथी इतिहासकारों को अब जब तथ्यों के साथ जवाब दिया जा रहा है और वो झूठे साबित हो रहे हैं। इसलिए हमें भी तथ्यों से लैस रहना है।

        - अनुपम कुमार सिंह


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Thursday, November 16, 2023

वैज्ञानिक रहस्य : छठ पूजा क्यों की जाती हैं ? क्या लाभ होता है ? विधि क्या है ?

17 November 2023

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🚩भारत देश की अनगिनत विशेषताएं हैं । उनमें से एक है, ‘पर्व’ । यहां प्रतिदिन, प्रतिमास कोई-न-कोई पर्व अवश्य ही मनाया जाता है । इसके लिए विशेषतः ‘कार्तिक मास’ सबसे अधिक प्रसिद्ध है ।


🚩हमारी परंपराओं की जड़े बहुत गहरी हैं, क्योंकि उन सभी का मूल स्त्रोत पुराणों में एवं प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथो में, हमारे ऋषि-मुनियों के उपदेश में मिलता है । यथा- ‘सूर्यषष्ठी’ अर्थात् छठ महोत्सव । सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी।


🚩छठ व्रत में सर्वतोभावेन भगवान् सूर्यदेव की पूजा की जाती है । जिन्हें आरोग्यका रक्षक माना जाता है । ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत’ यह वचन प्रसिद्ध है । इसे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है । इससे हमें यह ज्ञात होता है कि, हमारे ऋषि-मुनि कितने उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे ।


🚩आइए, इस पावन पर्व पर भगवान् सूर्यदेव के साथ-साथ हमारे पूर्वज एवं उन ऋषि -मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक शरणागत भाव से कोटि-कोटि नमन करते हुए प्रार्थना करें कि, उन्होंने अपने जीवन में अनगिणत प्रयोग करके, जो सत्य एवं सर्वोत्तम ज्ञान हमें दिया है, उनके बताए मार्ग पर चलकर हमें अपने जीवन को सार्थक करने एवं अन्यों को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का बल वे हमें प्रदान करें । छठपर्व बिहार एवं झारखंड में सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय धार्मिक अनुष्ठान के रूप में जाना जाता है । इस अनुष्ठान को वर्ष में दो बार-चैत्र तथा कार्तिक मास में संपन्न किया जाता है । दोनों ही मासों में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पण करते हैं और सप्तमी तिथि को प्रातःकाल उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पण किया जाता है । छठपर्व का सबसे अधिक महत्त्व छठ पूजा की पवित्रता में है ।


🚩छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है।


🚩छठ पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।


🚩अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपरावर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है।


🚩ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।


🚩छठव्रत में व्रती को 4 दिन एवं रात्रि स्वयं को कायिक, वाचिक तथा मानसिक रूप से पवित्र रखना होता है, तभी इसका फल मिलता है उदा. वाक्संयम रखना पडता है । वाक्संयम में सत्य, प्रिय, मधुर, हित, मित एवं मांगल्यवाणी अंतर्भूत होती है । यह 4 दिन एवं रात्रि व्रती को केवल साधनारत रहना पड़ता है । वैसे तो यह पर्व विशेष रूप से स्त्रिायों द्वारा ही मनाया जाता है, किंतु पुरुष भी इस पर्व को बडे उत्साह से मनाते हैं ।


🚩चतुर्थी तिथि को व्रती स्नान करके सात्त्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे बिहार की स्थानीय भाषा में ‘नहायखाय’के नामसे जाना जाता है । पंचमी तिथि को पूरे दिन व्रत रखकर संध्या को प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसे ‘खरना’ अथवा ‘लोहंडा’ कहते हैं ।


🚩षष्ठी तिथि के दिन संध्याकाल में नदी अथवा जलाशय के तट पर व्रती महिलाएं एवं पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पकवान एवं उस ऋतु में उपलब्ध को बांस के सूप में सजाकर सूर्य को दोनों हाथों से अर्घ्य अर्पित करते हैं । सप्तमी तिथि को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसी दिन इस व्रत की समाप्ति भी होती है और व्रती भोजन करते हैं ।


🚩किसी भी व्रत, पर्व, त्यौहार तथा उत्सव मनाने के पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य ही रहता है । छठपर्व मनाने के पीछे भी अनेकानेक पौराणिक तथा लोककथाएं हैं साथ में एक लंबा इतिहास भी है । भारत में सूर्योपासना की परंपरा वैदिककाल से ही रही है ।


🚩वैदिक साहित्य में सूर्य को सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव माना गया है । संध्योपासनारूप नित्य अवश्यकरणीय कर्म में मुख्यरूप से भगवान् सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । महाभारत में भी सूर्योपासना का सविस्तार वर्णन मिलता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृतिदेवी का छठा अंश होने के कारण इस देवीका नाम ‘षष्ठी’देवी भी है । स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक स्वामी का (स्कंद) पालन-पोषन छह कृत्तिकाओं ने मिलकर किया था, इस कारण यह छह कृत्तिकाएं अपने शिशु की रक्षा करें इस भाव से उन सभी का एकत्रित पूजन किया जाता है ।


🚩एक कारण के अनुसार सुकन्या-च्यवन ऋषि की कथा कही जाती है । एक कथानुसार राजा प्रियव्रत की कथा कही जाती है, एक अन्य कथा अनुसार मगधसम्राट जरासंध के किसी पूर्वज राजा को कुष्ठरोग हो गया था । उन्हें कुष्ठरोग से मुक्त करने के लिए शाकलद्वीपी ब्राह्मण मगध में बुलाए गए तथा सूर्योपासना के माध्यम से उनके कुष्ठरोग को दूर करने में वे सफल हुए । सूर्य की उपासना से कुष्ठ-जैसे कठिनतम रोग दूर होते देख मगध के नागरिक अत्यंत प्रभावित हुए और तब से वे भी श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने लगे ।


🚩यह कहा जाता है कि, ‘मग’ लोग सूर्यउपासक थे । सूर्य की रश्मियों से चिकित्सा करने में वे बहुत ही निष्णात (प्रवीण) थे । उनके द्वारा राजा को कुष्ठरोग से मुक्ति देने से राजा ने उन्हें अपने राज्य में बसने को कहा । ‘मग’ ब्राह्मणोंसे आवृत्त होनेके कारण यह क्षेत्र ‘मगध’ कहलाया । तभी से पूरी निष्ठा, श्रद्धा, भक्ति तथा नियमपूर्वक 4 दिवसीय सूर्योपासना के रूप में छठपर्व की परंपरा प्रचलित हुई एवं उत्तरोत्तर समृद्ध ही होती गई।


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Wednesday, November 15, 2023

बिरसा मुंडा का असली इतिहास क्या है, देश के लिए क्या किया था ?

16 November 2023

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🚩हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सही इतिहास को स्थान ही नहीं दिया गया है। हमारे भारत में ऐसे महान क्रांतिकारी वीर हुए कि आपको भी अपने पूर्वजों पर गर्व होने लगेगा।


🚩बिरसा मुंडा का परिचय…….


🚩सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू गांव में हुआ था। वे ‘बिरसा भगवान’ के नाम से लोकप्रिय थे। बिरसा का जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियों की परंपरा के अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया। इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे। वे बांस से बनी एक छोटी-सी झोंपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे।


🚩बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। बिरसा का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन-यापन कर रहा था। गरीबी के कारण ही बिरसा को उनके मामा के पास भेज दिया गया, जहां वे एक विद्यालय में जाने लगे। विद्यालय के संचालक बिरसा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बिरसा को जर्मन मिशन पाठशाला में पढ़ने की सलाह दी। वहां पढ़ने के लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था। अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।


हिंदुत्व की प्रेरणा……


🚩सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसा ने जर्मन मिशन में बिताया। इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरी की सदस्यता त्याग दी , और ईसाई धर्म छोड़ दिया था और फिर वे भगवान विष्णु के भक्त आनंद पांडे के संपर्क में आये। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। बिरसा ने आनंद पांडेजी से हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण की। आनंद पांडेजी के सत्संग से उनकी रुचि भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के रहस्यों को जानने की ओर हो गयी। धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ उन्होंने रामायण, महाभारत, हितोपदेश,भगवद्गीता आदि धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया। इसके बाद वे सत्य की खोज के लिए एकांत स्थान पर कठोर साधना करने लगे। लगभग 4 वर्ष के एकांतवास के बाद जब बिरसा प्रकट हुए तो, वे एक हिंदु महात्मा की तरह पीला वस्त्र, लकड़ी की खड़ाऊं और यज्ञोपवीत धारण करने लगे थे।


🚩ईसाई मिशनरियों का विरोध……


🚩बिरसा ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दिया और ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले वनवासी बंधुओं को उन्होंने समझाया कि ‘ईसाई धर्म हमारा अपना धर्म नहीं है। यह अंग्रेजों का धर्म है। वे हमारे देश पर शासन करते हैं, इसलिए ईसाई हमारे हिंदू धर्म का विरोध और ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं। ईसाई धर्म अपनाने से हम अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ परंपरा से विमुख होते जा रहे हैं। अब हमें जागना चाहिए।’

उनके विचारों से प्रभावित होकर बहुत-से वनवासी उनके पास आने लगे और उनके शिष्य बन गए।


🚩वन अधिकारी, वनवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे उनके सभी अधिकार समाप्त कर दिए गए हों। वनवासियों ने इसका विरोध किया और अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने पुराने पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग की। इस याचिका पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। बिरसा मुंडा ने वनवासी किसानों को साथ लेकर स्थानीय अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध याचिका दायर की। इस याचिका का भी कोई परिणाम नहीं निकला।


🚩वनवासियों का संगठन……


🚩बिरसा के विचारों का वनवासी बंधुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनते गए। बिरसा उन्हें प्रवचन सुनाते और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देते। इस प्रकार उन्होंने वनवासियों का संगठन बना लिया। बिरसा के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता को देखकर अंग्रेज मिशनरी चिंतित हो उठे। उन्हें डर था कि बिरसा द्वारा बनाया गया वनवासियों का यह संगठन आगे चलकर ईसाई मिशनरियों और अंग्रेजी शासन के लिए संकट बन सकता है। अतः बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया।


🚩अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प…


🚩बिरसा की चमत्कारी शक्ति और उनकी सेवाभावना के कारण वनवासी उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे थे। अतः उनकी गिरफ्तारी से सारे वनांचल में असंतोष फैल गया।


🚩वनवासियों ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर पुलिस थाने का घेराव किया और उनको निर्दोष बताते हुए उन्हें छोड़ने की मांग की। अंग्रेजी सरकार ने वनवासी मुंडाओं पर भी राजद्रोह का आरोप लगाकर उन पर मुकदमा चला दिया। बिरसा को 2 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी और फिर हजारीबाग की जेल में भेज दिया गया। बिरसा का अपराध यह था कि उन्होंने वनवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु संगठित किया था। जेल जाने के बाद बिरसा के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और बढ़ गयी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड फेंकने का संकल्प लिया।


🚩दो वर्ष की सजा पूरी करने के बाद बिरसा को जेल से मुक्त कर दिया गया। उनकी मुक्ति का समाचार पाकर हजारों की संख्या में वनवासी उनके पास आये। बिरसा ने उनके साथ गुप्त सभाएं कीं और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए उन्हें संगठित किया। अपने साथियों को उन्होंने शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाड़ी की धार तेज करने जैसे कार्यों में लगाकर उन्हें सशस्त्र क्रान्ति की तैयारी करने का निर्देश दिया। सन 1899 में इस क्रांति का श्रीगणेश किया गया। बिरसा के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने रांची से लेकर चाईबासा तक की पुलिस चौकियों को घेर लिया और ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेज अधिकारियों पर तीरों की बौछार शुरू कर दी। रांची में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही। घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलवा ली।


🚩राष्ट्र हेतु सर्वस्व अर्पण…


🚩अब बिरसा के नेतृत्व में वनवासियों ने अंग्रेज सेना से सीधी लड़ाई छेड़ दी। अंग्रेजों के पास बंदूक, बम आदि आधुनिक हथियार थे, जबकि वनवासी क्रांतिकारियों के पास उनके साधारण हथियार तीर-कमान आदि ही थे। बिरसा और उनके अनुयायियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंत में बिरसा के लगभग चार सौ अनुयायी मारे गए। इस घटना के कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने मौका पाकर बिरसा को जंगल से गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जंजीरों में जकड़कर रांची जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं। बिरसा हंसते-हंसते सब कुछ सहते रहे और अंत में 9 जून 1900 को कारावास में उनका देहावसान हो गया।


🚩इस तरह बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी दिशा देकर भारतीयों, विशेषकर वनवासियों में हिन्दू धर्म के प्रति भक्ति, स्वदेश के प्रति प्रेम की भावना जाग्रत की।


🚩बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। उन्होंने वनवासियों को संगठित कर उन्हें अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए तैयार किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए धर्मांतरण करने वाले ईसाई मिशनरियों का विरोध किया। ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओं को उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी दी और अंग्रेजों के षड्यन्त्र के प्रति सचेत किया। आज भी झारखण्ड, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के वनवासी लोग बिरसा को भगवान के रूप में पूजते हैं। अपने पच्चीस वर्ष के अल्प जीवनकाल में ही उन्होंने वनवासियों में स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है। धर्मांतरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का संचालन करने वाले महान सेनानायक थे- ‘बिरसा मुंडा’।


🚩आज भी भारत में वेटिकन सिटी के इशारे पर भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा पुरजोश से धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन जनता को बिरसा मुंडा के पथ पर चलना चाहिए। हिन्दू संस्कृति को तोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों ने भारत में धर्मान्तरण रूपी जो जाल बिछाया है,इसमें भोले-भाले हिन्दू फंस जाते हैं और कोई हिन्दूनिष्ठ , संत उनका विरोध करते है,तो उनकी हत्या करवा दी जाती है या मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस बनाकर जेल में भिजवाया जाता है।


🚩हिन्दुस्तानियों को इन षड्यंत्रों को समझने और बिरसा मुंडा के पथ पर चलने की बहुत जरूरत है।


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Tuesday, November 14, 2023

मीडिया ने संत आसाराम बापू की इस बड़ी खबर को गायब क्यों कर दिया ?

15 November 2023

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🚩टीआरपी और पैसे की अंधीदौड़ में ज्यादातर मीडिया कई बार झूठी खबरें दिखा देती है और सही खबरें छुपा देती है। जूसके कारण आज मीडिया ने विश्वसनीयता खो गई है।


🚩शुभ दीपावली के पावन पर्व पर एक तरफ हम मिठाई खाते हैं, नये कपड़े पहनते हैं, खुशियां मनाते हैं, लेकिन उन गरीबों का क्या जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कैसे दीपावली मनायेंगे? गरीब भी अच्छी दिवाली मना जा सके इस निमित्त हिंदू संत आशाराम बापू के अनुयाइयों ने देशभर में आदिवासी क्षेत्रों में जाकर मिठाई, कपड़े, खजूर, चप्पल, बर्तन आदि जीवनोपयोगी सामग्री एवं नगद पैसे आदि और हलवा, पुलाव आदि का भंडारा किया, इस अभियान में लाखों आदिवासी लोग लाभांवित हुए, साथ में सनातन धर्म की महिमा भी बताई गई।


🚩इस अभियान से आदिवासीयों ने भी दीपावली धूमधाम से मनाई और दूसरा कि जो मिशनरियां धर्मांतरण करवाती थी उनका धंधा चौपट हो गया और आदिवासियों की सनातन हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ़ी, लेकिन दुःख की बात है कि जो मीडिया चिल्ला चिल्लाकर हिंदू संत आशाराम बापू के खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर बदनाम कर रही थी उसने यह खबर कहीं भी दिखाई ही नहीं।


🚩आपको बता दें कि बापू आशारामजी पिछले 60 वर्षों से समाज उत्थान के कार्य कर रहे हैं । उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़ने वाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। कत्लखाने जा रही हजारों गायों को कटने से बचाया, कई गौशालाओं की स्थापना एवं सुचारू रूप से चलने की व्यवस्था करवाई। लाखों लोगों को धर्मान्तरण से बचाया व धर्मान्तरित लाखों हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई । गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो दक्षिणा पाओ" अभियान चलाया, गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवन उपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है ।

 

🚩प्राकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ पर भी बापू आशारामजी के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन, पानी, भंडारे, कम्बल, कपड़े आदि का वितरण करवाए व स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं) होते हैं । इसके अलावा महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनीयों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।


🚩परिवार में सुख-शांति व परस्पर सद्भाव से जीना सिखाया, पारिवारिक झगड़ों से मुक्ति दिलायी, महिलाओं के मार्गदर्शन व सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की तथा नारी उत्थान हेतु कई अभियान चलाये। बापू आसारामजी ने बाल व युवा पीढ़ी में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के सिंचन हेतु हजारों बाल संस्कार केन्द्रों, युवा सेवा संघों व गुरुकुलों की स्थापना की, आज की युवापीढ़ी को माता पिता का सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन के बदले में मातृ-पितृ पूजन दिवस मानना सिखाया। 25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान की एक नई पहल की। केमिकल रंगों से बचा कर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल की, जिससे पानी व स्वास्थ्य की रक्षा हो। व्यसन मुक्ति के अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों, युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये जाते हैं । World's Religions Parliament, शिकागो अमेरिका में स्वामी विवेकानन्दजी (1898) के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे बापू आसारामजी, जिन्होंने 1993 में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का धर्म ध्वज लहराया। इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म - जाति - मत - पंथ - सम्प्रदाय - राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं।

यहां तक कि कांग्रेस की सरकार में कोई हिंदुत्व की बात नही कर रहा था उस समय खुल्लेआम लाखों आदिवासियों की घर वापसी करवाई थी, करोड़ों लोगों में सनातन हिंदू धर्म के प्रति आस्था जगाई थी, स्वदेशी उत्पाद खरीदने की अपील की थी, करोड़ों लोगों को दुर्व्यसनों से मुक्त करवाए, इन सभी के कारण उनपर झूठा आरोप लगाकर जेल भिजवाया गया।


🚩मीडिया ने हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा देश व धर्म के हित में हो रहे अनेक सेवाकार्यों को नहीं दिखाया, पर उनके खिलाफ अनेक झूठी, मनगढ़ंत कहानियां बनाकर देश, विदेश की जनता को गुमराह किया और संतश्री की पावन छवि को धूमिल करने का भरपूर प्रयास किया।


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Monday, November 13, 2023

भाई दूज के दिन भाई को यमपाश से कैसे छुड़ाये ?

14 November 2023

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🚩भाई दूज महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है । दीपावली के तीसरे दिन आने वाला भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है। 

🚩भाईदूज का इतिहास

🚩यमराज, यमुना, तापी और शनि ये भगवान सूर्य की संताने कही जाती हैं। किसी कारण से यमराज अपनी बहन यमुना से वर्षों दूर रहे। एक बार यमराज के मन में हुआ कि 'बहन यमुना को देखे हुए बहुत वर्ष हो गये हैं।' अतः उन्होंने अपने दूतों को आज्ञा दीः "जाओ जा कर जाँच करो कि यमुना आजकल कहाँ स्थित है।"


🚩यमदूत विचरण करते-करते धरती पर आये तो सही किंतु उन्हें कहीं यमुना जी का पता नहीं लगा। फिर यमराज स्वयं विचरण करते हुए मथुरा आये और विश्रामघाट पर बने हुए यमुना के महल में पहुँचे।


🚩बहुत वर्षों के बाद अपने भाई को पाकर बहन यमुना ने बड़े प्रेम से यमराज का स्वागत-सत्कार किया और यमराज ने भी उसकी सेवा सुश्रुषा के लिए याचना करते हुए कहाः "बहन ! तू क्या चाहती है? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए।"


🚩यमुना जी ने कहाः ''भैया ! आज नववर्ष की द्वितीया है। आज के दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और जो कोई भाई बहन से स्नेह से मिले, ऐसे भाई को यमपुरी के पाश से मुक्त करने का वचन को तुम दे सकते हो।"


🚩यमराज प्रसन्न हुए और बोलेः "बहन ! ऐसा ही होगा।"


पौराणिक दृष्टि से आज भी लोग बहन यमुना और भाई यम के इस शुभ प्रसंग का स्मरण करके आशीर्वाद पाते हैं व यम के पाश से छूटने का संकल्प करते हैं।


🚩यह पर्व भाई-बहन के स्नेह का द्योतक है। कोई बहन नहीं चाहती कि उसका भाई दीन-हीन, तुच्छ हो, सामान्य जीवन जीने वाला हो, ज्ञानरहित, प्रभावरहित हो। इस दिन भाई को अपने घर पाकर बहन अत्यन्त प्रसन्न होती है अथवा किसी कारण से भाई नहीं आ पाता तो स्वयं उसके घर चली जाती है।


🚩बहन भाई को इस शुभ भाव से तिलक करती है कि 'मेरा भैया त्रिनेत्र बने। बहन तिलक करके अपने भाई को प्रेम से भोजन कराती है और बदले में भाई उसको वस्त्र-अलंकार, दक्षिणादि देता है। बहन निश्चिंत होती है कि 'मैं अकेली नहीं हूँ.... मेरे साथ मेरा भैया है।'


🚩दीपावली के तीसरे आने वाला भाईदूज का यह पर्व, भाई की बहन के संरक्षण की याद दिलाने वाला और बहन द्वारा भाई के लिए शुभ कामनाएँ करने का पर्व है।


🚩इस दिन बहन को चाहिए कि अपने भाई की दीर्घायु के लिए यमराज से अर्चना करे और इन अष्ट चिरंजीवीयों के नामों का स्मरण करेः मार्कण्डेय, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और परशुराम। 'मेरा भाई चिरंजीवी हो' ऐसी उनसे प्रार्थना करे तथा मार्कण्डेय जी से इस प्रकार प्रार्थना करेः

मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पजीवितः।

चिरंजीवी यथा त्वं तथा मे भ्रातारं कुरुः।।


🚩'हे महाभाग मार्कण्डेय ! आप सात कल्पों के अन्त तक जीने वाले चिरंजीवी हैं। जैसे आप चिरंजीवी हैं, वैसे मेरा भाई भी दीर्घायु हो।' (पद्मपुराण)


🚩इस प्रकार भाई के लिए मंगल कामना करने का तथा भाई-बहन के पवित्र स्नेह का पर्व है भाईदूज।

(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "पर्वो का पुंज दीपावली")


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Sunday, November 12, 2023

दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष कौन मनाते हैं ? बलि प्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें ? जानिए.....

13 November 2023

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🚩दीपावली पूरे देश में मनाई जाती है, इसके हर जगह अलग अलग महत्व है। लेकिन, गुजरात में दीपावली को नए साल का प्रतीक माना गया है। दीपवाली के दिन साल का आखिरी दिन होता है, इसके अगले दिन से गुजराती नववर्ष की शुरुआत हो जाती है। हिंदू कैलेडर के हिसाब से देखा जाए, तो यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पड़वा या प्रतिपदा को आता है। चंद्र चक्र पर आधारित भारतीय कैलेंडर के अनुसार गुजरात में कार्तिक महीना साल का पहला महीना होता है, और यही गुजराती नववर्ष का पहला दिन होता है। इसी कारण इस दिन को वित्तीय नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। 


🚩दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है। 'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते है-

यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।

हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।


🚩'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'


🚩अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।


🚩आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।


🚩बलि प्रतिपदा:-


🚩कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा । उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।


🚩गोवर्धनपूजन


🚩इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादि से उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,

_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_

_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_


🚩इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से प्रार्थना की है,

_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।_

_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु_


🚩इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।


🚩बता दें की दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ धार्मिक उत्सव व व्रत’ एवं संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पत्रिका ऋषि प्रसाद से)


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