Tuesday, November 28, 2023

केरल के मदरसे में अप्राकृतिक दुष्कर्म के मामले में तीन मौलवी गिरफ्तार

 29 November 2023

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🚩कुछ मीडिया वालों का एक ही लक्ष्य रहता है, ईसाई धर्मगुरु हो या मुस्लिम धर्मगुरु उनके ऊपर कोई आरोप लगता है अथवा अपराध सिद्ध भी हो जाये तो उसको इस तरीके से दिखाएंगे की जैसे कोई हिन्दू साधु-संत हैं,क्योंकि उनका उद्देश्य है हिन्दू संस्कृति के आधार स्तम्भ साधु-संतों को बदनाम करके हिन्दू धर्म को नीचा दिखाना।और कुछ भोले हिन्दू उनकी बातों में आ भी जाते हैं । बिकाऊ मीडिया की बात को सच मानकर अपने धर्मगुरुओं को गलत बोलने लग जाते हैं।


🚩मुस्लिमपरस्ती में कुछ मीडिया वाले इस कदर मदमस्त हैं कि उन्हें कहीं कोई अपराधी मुस्लिम समुदाय या कई बार ईसाई भी दिख जाए तो ये पूरा गिरोह चटपट येन-केन प्रकारेण दर्शकों/पाठकों के सामने मामले को ऐसा स्पिन देने की कोशिश में लग जाएगा कि समुदाय विशेष का अपराध भी ढक जाए और कोई निरपराध समुदाय या व्यक्ति , खासतौर पर हिन्दू धर्म प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सवालों के घेरे में भी आ जाए। इसलिए ऐसी बिकाऊ मीडिया से सावधान रहें।


 🚩केरल के मामले में मीडिया ने चुप्पी साधी है क्योंकि दुष्कर्म के आरोप में पकड़ा जाने वाला व्यक्ति मुस्लिम समुदाय का मौलवी है।


🚩आपको बता दें कि केरल में मौलानाओं के हाथों बच्चों के यौन शोषण और कुकर्म के दो चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। पहली घटना में, तीन मदरसा शिक्षकों को, जिनमें से एक उत्तर प्रदेश का है, नेदुमंगड पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वहीं दूसरा मामला भी यौन शोषण का ही है। दरअसल, अधिकारियों ने बताया कि नाबालिग छात्रों पर यौन उत्पीड़न के मामले में 18 नवंबर, 2023 को ही मदरसा शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया गया था।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पहले मामले में आरोपितों की पहचान कडक्कल कांजीराथुम्मुडु बिस्मी भवन के 24 वर्षीय एल सिद्दीकी, करीबा ऑडिटोरियम के पास जैस्मीन विला के 28 वर्षीय एस मुहम्मद शमीर और उत्तर प्रदेश के खीरी जिले के गणेशपुर के 30 वर्षीय मुहम्मद रसलाल हक के रूप में हुई। तीनों पर आरोप है कि मदरसे में किशोरों के साथ अप्राकृतिक सेक्स किया। 


🚩इस मामले में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई। दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए किशोर न्याय अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और प्रासंगिक भारतीय दंड संहिता की धाराएँ लागू की गईं।


🚩रिपोर्ट के अनुसार, तीनों आरोपित पिछले एक साल से नेदुमंगड (Nedumangad) में एक मदरसा चला रहे थे। वहीं शिकायत के बाद कट्टक्कडा के पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) एन शिबू, नेदुमंगड स्टेशन हाउस अधिकारी (एसएचओ) ए सुनील, उप-निरीक्षक (एसआई) सुरेश कुमार, सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई), जिला पुलिस अधीक्षक किरण नारायणन ने अपराधियों की गिरफ्तारी को सुनिश्चित किया।


🚩दरअसल, वरिष्ठ सिविल पुलिस अधिकारी (एससीपीओ) सी बीजू, दीपा और सिविल पुलिस अधिकारी (सीपीओ) अजीत मोहन को सीडब्ल्यूसी से आरोपितों के खिलाफ उनके भयानक अपराधों के बारे में पीड़ितों द्वारा की गई शिकायत की सूचना मिली, जो दीनी तालीम के लिए मदरसे में आए थे। फ़िलहाल,अब तीनों आरोपितों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद रिमांड पर भेज दिया गया है।


🚩इस बीच, वाज़िकादावु पुलिस ने 22 नवंबर, 2023 को मलप्पुरम में पुथुक्कादावु मुहम्मद शाकिर नामक एक मौलवी को भी गिरफ्तार किया है, जिसे शाकिर बाक्वावी ममपाद के नाम से भी जाना जाता है, उस पर भी एक साल तक एक बच्चे से छेड़छाड़ करने का आरोप था।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित ने 21 नवंबर, 2023 को अपने मदरसा शिक्षक के दुर्व्यवहार के बारे में बताया और शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में वाज़िकादावु पुलिस स्टेशन के हाउस ऑफिसर, मनोज परायट्टा ने बताया, “हमें मंगलवार को शाकिर के खिलाफ शिकायत मिली। लड़के ने अपने शिक्षक शाकिर के दुर्व्यवहार के बारे में पुलिस को बताया। और हमने बिना देर किए आरोपित को उसके घर से पकड़ लिया था।”


🚩हालाँकि, यौन उत्पीड़न के इस मामले में मदरसे के शिक्षक द्वारा करीब एक साल से बच्चे का यह उत्पीड़न चल रहा था। मदरसे के शिक्षकों ने पीड़ितों के द्वारा इस मामले के बारे में खुलासा करने पर भयंकर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। इसके अलावा, जाँच दल इस एंगल से भी जाँच कर रही है कि और कितने समय से इन आरोपितों ने मदरसे के कितने और बच्चों को शिकार बनाया। 


🚩बता दें कि इस्लामिक प्रचारक यौन उत्पीड़न के आरोपित मुहम्मद शाकिर के फेसबुक पेज पर 23,000 से अधिक फेसबुक फॉलोअर्स और 8,000 से अधिक यूट्यूब सब्सक्राइबर्स है। उसके ज़्यादातर वीडियो इस्लामिक प्रचार से जुड़े हैं।


🚩सुदर्शन न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके जी ने कई बार बताया है, कि अधिकतर मीडिया को ईसाई मिशनरियों की वेटिकन सिटी और मुस्लिम देश जैसे अरब, दुबई आदि से फंडिग होती है, जिससे वे हिन्दू संस्कृति तोड़ने के लिए हिन्दुओं के आस्था के केंद्र और निर्दोष हिन्दू साधु-संतों के प्रति भारत की जनता के मन में नफरत पैदा करने का काम करते हैं । वे हिन्दुओं के मन में ये डालने का प्रयास करते हैं कि आपके धर्मगुरु तो अपराधी हैं। आप हिन्दू धर्म छोड़कर हमारे धर्म में आ जाओ । ये उनकी थ्योरी है, जबकि वे मौलवी और ईसाई पादरियों के कुकर्म नहीं बताते ।


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Monday, November 27, 2023

पाकिस्तान ने शारदा पीठ की दीवार तोड़ी, हिंगलाज माता के मंदिर को भी किया ध्वस्त

28 November 2023

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🚩पाकिस्तान में लगातार एक के बाद एक हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सेना ने Pok स्थित पौराणिक धर्मस्थल शारदा पीठ की जमीन पर वहाँ कॉफी हाउस बनाकर जबरन कब्जा कर लिया है। वहीं कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ द्वारा हिंगलाज माता मंदिर को भी नुकसान पहुँचाया गया है।


🚩दरअसल, थारपारकर जिले के अधिकारियों ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीठी शहर में स्थित इस मंदिर को तोड़ने के लिए एक अदालती आदेश का हवाला दिया। बताया जा रहा है कि इसे ध्वस्त करने में पाकिस्तान का पूरा प्रशासन शामिल रहा। जबकि यह मंदिर यूनेस्को (UNESCO) की संरक्षण लिस्ट में आता है। 


🚩हालाँकि, पाकिस्तान में हिन्दू मंदिरों को तोड़ना या हिंदुओं पर हमले की यह पहली घटना नहीं है, लेकिन इस बार कोर्ट के आदेश का सहारा लेकर जिस तरह से हिंगलाज माता मंदिर को ध्वस्त किया गया है। यह गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों की श्रृंखला में एक और डराने वाली घटना है। 


🚩CNN न्यूज-18 की रिपोर्ट केअनुसार, LOC के पास हिंदुओं के जिस धार्मिक स्थल शारदा पीठ मंदिर को तोड़ा गया,उसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुरक्षा के आदेश के बावजूद तोड़ा गया। दरअसल, यहाँ पाकिस्तानी सेना द्वारा मंदिर के करीब एक कॉफी हाऊस बनाया जा रहा है, जिसका उद्घाटन इसी साल नवंबर में होना है। ऐसे में यहाँ पाकिस्तानी सेना ने शारदा पीठ की जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया है।


🚩हालाँकि, यहाँ के स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी सेना की इस तानाशाही के खिलाफ विरोध भी किया और कब्जा हटाने पर भी जोर दिया, लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने स्थानीय सीविल सोसाइटी के सदस्यों को ही उल्टा प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बता दें कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें टार्गेट करके हिंसा, हत्या और उनकी जमीनों को कब्जा तक शामिल है। 


🚩पाकिस्तान में पहले भी तोड़े गए हैं कई हिन्दू मंदिर...


🚩मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूनेस्को साइट होने के बावजूद भी जब शारदा पीठ ध्वस्त होने से नहीं बच पाया तो यह विश्व भर के लिए चिंता का विषय है। इससे पहले जुलाई में भी पाकिस्तान में एक मंदिर को तोड़ दिया गया था। तब कराची में मरीमाता का मंदिर जमींदोज कर दिया गया था। इस मंदिर को तब ध्वस्त किया गया था जब पूरे इलाके में लाइट नहीं थी। बाहरी दीवार और गेट को छोड़कर अंदर का पूरा ढाँचा ही ढहा  दिया गया था।


🚩बता दें पाकिस्तान में मंदिरों का यह विध्वंस धरोहरों के अंतरराष्ट्रीय संरक्षण के प्रयासों का खंडन करता है और क्षेत्र में सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा के बारे में सवाल उठाता है। ये घटनाएँ पाकिस्तान जैसे देश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे उत्पीड़न को उजागर करती हैं।


🚩बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90% हिंदू देश छोड़ चुके हैं। 95% हिंदू मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं और उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जे कर लिए गए हैं। हिंदुओं की नाबालिग लड़कियों से शादी कर लेते हैं या उनके साथ जबरदस्ती का व्यवहार करते हैं ।


🚩पिछले 12 सालों में 14,000 हिंदू लड़कियों का अपहरण किया गया है।


🚩पाकिस्तान वहाँ के हिंदुओं के लिए नर्क से कम नहीं है। हिंदू समुदाय की लड़कियों का अपहरण और उनका इस्लाम में धर्मांतरण रोजमर्रा की बात हो गई है। इससे तंग आकर हिंदू समुदाय के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान छोड़ना चाहते हैं,पर जाएं कहाँ !!

हालाँकि, भारत का वीजा नहीं मिलने के कारण हिंदू समुदाय के कई लोगों द्वारा आत्महत्याएं भी कर ली गई।


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Sunday, November 26, 2023

गुरु नानक देव में ऐसा क्या था जो इतने पूज्यनीय बन गए ?

27 November 2023

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🚩पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में 15 अप्रैल, 1469 को एक किसान के घर गुरु नानकजी का जन्म हुआ। यह स्थान लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है। अब यह ‘नानकाना साहब’ कहलाता है। तलवंडी का नाम आगे चलकर गुरु नानक देव जी के नाम पर ननकाना पड़ गया। गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता देवी था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। वे कृषि और साधारण व्यापार करते थे और गाँव के पटवारी भी थे। गुरु नानक देव जी की बाल्यावस्था गाँव में व्यतीत हुई। बाल्यावस्था से ही उनमें असाधारणता और विलक्षण प्रतिभा थी। उनके साथी जब खेल-कूद में अपना समय व्यतीत करते तो वे नेत्र बन्द कर आत्म-चिन्तन में निमग्न हो जाते थे। इनकी इस प्रवृत्ति से उनके पिता कालू चिन्तित रहते थे।


🚩आरंभिक जीवन


🚩सात वर्ष की आयु में वे पढ़ने के लिए गोपाल अध्यापक के पास भेजे गये। एक दिन जब वे पढ़ाई से विरक्त हो, अन्तर्मुख होकर आत्म-चिन्तन में निमग्न थे, अध्यापक ने पूछा- पढ़ क्यों नहीं रहे हो ? गुरु नानक देव जी का उत्तर था- मैं सारी विद्याएँ और वेद-शास्त्र जानता हूँ। गुरु नानक देव जी ने कहा- मुझे तो सांसारिक पढ़ाई की अपेक्षा परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी प्रतीत होती है, यह कहकर निम्नलिखित वाणी का उच्चारण किया- मोह को जलाकर (उसे) घिसकर स्याही बनाओ, बुद्धि को ही श्रेष्ठ काग़ज़ बनाओ, प्रेम की क़लम बनाओ और चित्त को लेखक। गुरु से पूछ कर विचारपूर्वक लिखो (कि उस परमात्मा का) न तो अन्त है और न सीमा है।


🚩इस पर अध्यापक जी आश्चर्यान्वित हो गये और उन्होंने गुरु नानक देव जी को पहुँचा हुआ फ़क़ीर समझकर कहा- तुम्हारी जो इच्छा हो सो करो। इसके पश्चात् गुरु नानक देव जी ने स्कूल छोड़ दिया। वे अपना अधिकांश समय मनन, ध्यानासन, ध्यान एवं सत्संग में व्यतीत करने लगे। गुरु नानक देव जी से सम्बन्धित सभी जन्म साखियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं, कि उन्होंने विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-महत्माओं का सत्संग किया था। उनमें से बहुत से ऐसे थे, जो धर्मशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। अन्त: साक्ष्य के आधार पर यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि गुरु नानक देव जी ने फ़ारसी का भी अध्ययन किया था। ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ में गुरु नानक देव जी द्वारा कुछ पद ऐसे रचे गये हैं, जिनमें फ़ारसी शब्दों का आधिक्य है।


🚩बचपन


🚩गुरु नानक देव जी की अन्तमुंखी-प्रवृत्ति तथा विरक्ति-भावना से उनके पिता कालू चिन्तित रहा करते थे। गुरु नानक देव जी को विक्षिप्त समझकर कालू ने उन्हें भैंसे चराने का काम दिया। भैंसे चराते-चराते गुरु नानक देव जी सो गये। भैंसें एक किसान के खेत में चली गयीं और उन्होंने उसकी फ़सल चर डाली। किसान ने इसका उलाहना दिया,किन्तु जब उसका खेत देखा गया, तो सभी आश्चर्य में पड़े गये। फ़सल का एक पौधा भी नहीं चरा गया था। 9 वर्ष की अवस्था में उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। यज्ञोपवीत के अवसर पर उन्होंने पण्डित से कहा – दया कपास हो, सन्तोष सूत हो, संयम गाँठ हो, (और) सत्य उस जनेउ की पूरन हो। यही जीव के लिए (आध्यात्मिक) जनेऊ है। ऐ पाण्डे यदि इस प्रकार का जनेऊ तुम्हारे पास हो, तो मेरे गले में पहना दो, यह जनेऊ न तो टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न यह जलता है और न यह खोता ही है।


🚩विवाह


🚩सन 1485 ई. में गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी, मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी है। 28 वर्ष की अवस्था में उनके बड़े पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। 31 वर्ष की अवस्था में उनके द्वितीय पुत्र लक्ष्मीदास अथवा लक्ष्मीचन्द उत्पन्न हुए। गुरु नानक देव जी के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा, किन्तु उनके सारे प्रयास निष्फल सिद्ध हुए। घोड़े के व्यापार के निमित्त दिये हुए रुपयों को गुरु नानक देव जी ने साधुसेवा में लगा दिया और अपने पिताजी से कहा कि यही सच्चा व्यापार है। नवम्बर, सन् 1504 ई. में उनके बहनोई जयराम (उनकी बड़ी बहिन नानकी के पति) ने गुरु नानक देव जी को अपने पास सुल्तानपुर बुला लिया। नवम्बर, 1504 ई. से अक्टूबर 1507 ई. तक वे सुल्तानपुर में ही रहें अपने बहनोई जयराम के प्रयास से वे सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत ख़ाँ के यहाँ मादी रख लिये गये। उन्होंने अपना कार्य अत्यन्त ईमानदारी से पूरा किया। वहाँ की जनता तथा वहाँ के शासक दौलत ख़ाँ नानकजी के कार्य से बहुत सन्तुष्ट हुए। वे अपनी आय का अधिकांश भाग ग़रीबों और साधुओं को दे देते थे। कभी-कभी वे पूरी रात परमात्मा के भजन में व्यतीत कर देते थे। मरदाना तलवण्डी से आकर यहीं गुरु नानक देव जी का सेवक बन गया था और अन्त तक उनके साथ रहा। गुरु नानक देव जी अपने पद गाते थे और मरदाना रवाब बजाता था। गुरु नानक देव जी नित्य प्रात: बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। कहते हैं कि एक दिन वे स्नान करने के पश्चात् वन में अन्तर्धान हो गये। उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ, मैंने तुम्हें आनन्दित किया है। जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेगें, वे भी आनन्दित होगें। जाओ नाम में रहो, दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो और दूसरों से भी नाम स्मरण कराओं। इस घटना के पश्चात् वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर मूला को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। मरदाना उनकी यात्रा में बराबर उनके साथ रहा।


🚩यात्राए


🚩गुरु नानक देव जी की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा) अक्तूबर , 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारिका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया। उन्होंने बहुतों का हृदय परिवर्तन किया। ठगों को साधु बनाया, वेश्याओं का अन्त:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकाण्डियों को बाह्याडम्बरों से निकालकर रागात्मिकता भक्ति में लगाया, अहंकारियों का अहंकार दूर कर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया। यात्रा से लौटकर वे दो वर्ष तक अपने माता-पिता के साथ रहे।


🚩उनकी दूसरी ‘उदासी’ 1517 ई. से 1518 ई. तक यानी एक वर्ष की रही। इसमें उन्होंने ऐमनाबाद, सियालकोट, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और अन्त में वे करतारपुर पहुँचे।


🚩तीसरी ‘उदासी’ 1518 ई. से 1521 ई. तक लगभग तीन वर्ष की रही। इसमें उन्होंने रियासत बहावलपुर, साधुबेला (सिन्धु), मक्का, मदीना, बग़दाद, बल्ख बुखारा, क़ाबुल, कन्धार, ऐमानाबाद आदि स्थानों की यात्रा की। 1521 ई. में ऐमराबाद पर बाबर का आक्रमण गुरु नानक देव जी ने स्वयं अपनी आँखों से देखा था। अपनी यात्राओं को समाप्त कर वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे।


🚩व्यक्तित्व


🚩गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति और क्रिया-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। लोगों पर उनके विचारों का असाधारण प्रभाव पड़ा। उनमें सभी गुण मौजूद थे। पैगंबर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्मसुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबंधु आदि सभी गुण जैसे एक व्यक्ति में सिमटकर आ गए थे। उनकी रचना ‘जपुजी’ का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है।


🚩रचनाएँ और शिक्षाएँ


🚩’श्री गुरु-ग्रन्थ साहब’ में उनकी रचनाएँ ‘महला 1’ के नाम से संकलित हैं। गुरु नानक देव जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान, सत्य, कर्त्ता, निर्भय, निर्वर, अयोनि, स्वयंभू है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति-पूजा आदि निरर्थक है। बाह्य साधनों से उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। आन्तरिक साधना ही उसकी प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। गुरु-कृपा, परमात्मा कृपा एवं शुभ कर्मों का आचरण इस साधना के अंग हैं। नाम-स्मरण उसका सर्वोपरि तत्त्व है, और ‘नाम’ गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक देव जी की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में यत्र-तत्र तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति की मनोहर झाँकी मिलती है, जिसमें उनकी असाधारण देश-भक्ति और राष्ट्र-प्रेम परिलक्षित होता है। उन्होंने हिंन्दूओं-मुसलमानों दोनों की प्रचलित रूढ़ियों एवं कुसंस्कारों की तीव्र भर्त्सना की है और उन्हें सच्चे हिन्दू अथवा सच्चे मुसलमान बनने की विधि बतायी है। सन्त-साहित्य में गुरु नानक ही एक ऐसे व्यक्ति हैं; जिन्होंने स्त्रियों की निन्दा नहीं की, अपितु उनकी महत्ता स्वीकार की है। गुरुनानक देव जी ने अपने अनु‍यायियों को जीवन की दस शिक्षाएँ दी-


🚩ईश्वर एक है।

सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।

ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।

ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।

ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।

बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ।

सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा माँगनी चाहिए।

मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।

भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।


🚩भक्त कवि गुरु नानक देव जी


🚩पंजाब में मुसलमान बहुत दिनों से बसे थे, जिससे वहाँ उनके कट्टर ‘एकेश्वरवाद’ का संस्कार धीरे – धीरे प्रबल हो रहा था। लोग बहुत से देवी देवताओं की उपासना की अपेक्षा एक ईश्वर की उपासना को महत्व और सभ्यता का चिह्न समझने लगे थे। शास्त्रों के पठन पाठन का क्रम मुसलमानों के प्रभाव से प्राय: उठ गया था, जिससे धर्म और उपासना के गूढ़ तत्व को समझने की शक्ति नहीं रह गई थी। अत: जहाँ बहुत से लोग जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाते थे, वहाँ कुछ लोग शौक़ से भी मुसलमान बनते थे। ऐसी दशा में कबीर द्वारा प्रवर्तित ‘निर्गुण संत मत’ एक बड़ा भारी सहारा समझ पड़ा।


🚩निर्गुण उपासना


🚩गुरुनानक देव जी आरंभ से ही भक्त थे, अत: उनका ऐसे मत की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था, जिसकी उपासना का स्वरूप हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान रूप से ग्राह्य हो। उन्होंने घर बार छोड़ बहुत दूर दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए। कबीरदास के समान वे भी कुछ विशेष पढ़े लिखे न थे। भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् 1661) ग्रंथसाहब में किया गया है। ये भजन कुछ तो पंजाबी भाषा में हैं और कुछ देश की सामान्य काव्य भाषा हिन्दी में हैं। यह हिन्दी कहीं तो देश की काव्यभाषा या ब्रजभाषा है, कहीं खड़ी बोली जिसमें इधर उधर पंजाबी के रूप भी आ गए हैं, जैसे चल्या, रह्या। भक्त या विनय के सीधे सादे भाव सीधी सादी भाषा में कहे गए हैं, कबीर के समान अशिक्षितों पर प्रभाव डालने के लिए टेढ़े मेढ़े रूपकों में नहीं। इससे इनकी प्रकृति की सरलता और अहंभावशून्यता का परिचय मिलता है। संसार की अनित्यता, भगवद्भक्ति और संत स्वभाव के संबंध में उन्होंने कहा हैं –


🚩इस दम दा मैनूँ कीबे भरोसा, आया आया, न आया न आया।

यह संसार रैन दा सुपना, कहीं देखा, कहीं नाहि दिखाया।

सोच विचार करे मत मन मैं, जिसने ढूँढा उसने पाया।

नानक भक्तन दे पद परसे निसदिन राम चरन चित लाया


🚩जो नर दु:ख में दु:ख नहिं मानै।

सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै

नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।

हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना

आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरास।

काम, क्रोध जेहि परसे नाहि न तेहिं घट ब्रह्म निवासा

गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगुति पिछानी।

नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी।


🚩शरीर का निर्वाण


🚩गुरु नानक देव जी की देह पंचतत्वों में सन् 1539 ई. में लीन हुई। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में ‘ज्योति’ में लीन हो गए। गुरु नानक देव जी आंतरिक साधना को सर्वव्यापी परमात्मा की प्राप्ति का एकमात्र साधन मानते थे। वे रूढ़ियों के कट्टर विरोधी थे। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु-सभी के गुण समेटे हुए थे।


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Saturday, November 25, 2023

मिडिया ने इन तीन बड़ी खबरों को जनता को क्यों नहीं बताया ?

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26 November 2023

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🚩इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया की समाज में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है । मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ भी कहा गया है क्योंकि इसकी जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है, लेकिन आज पैसे और टीआरपी की अंधी दौड़ में एक तरफा झूठी खबरों को दिखाकर अपनी विश्वसनीयता खो रही है। इसके कारण आज समाज का हर वर्ग मीडिया की आलोचना जरूर करता है।


🚩दिपावली पर ऐसी तीन खबरे है जो जनता को बताना इसलिए जरूरी था की मिडिया ने उनके खिलाफ महीनो तक झूठी खबरें चलाई थी जब उनके कार्य की प्रशंसा वाली खबरें सामने होते हुए भी जनता को नही बताई इससे साफ होता है की मिडिया झूठी खबरें ही परोसती है? अथवा पैसा के लालच वाली ही खबरे चलाती है? अथवा केवल टीआरपी वाली खबरें ही चलाती है?


🚩आइए आज आपको तीन बड़ी खबरें बताते है जो मीडिया ने कही नही दिखाई।


🚩पहली खबर


🚩दिपावली पर्व पर सभी देशवासी अपने परिजनों के साथ दिवाली की खुशियां मना रहे थे लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो गरीब और आदिवासियों के बीच जाकर दीवाली मना रहे थे उनके घर जाकर मिठाई, बर्तन, कपड़े, पैसे और जीवन उपयोगी सामग्री का वितरण कर रहे थे और यह एक जगह पर नही लेकिन देश के सैंकड़ों जगह पर ये महान सेवा कार्य चल रहा था और ये कार्य ओर कोई नही बल्कि हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू के संस्था और उनके अनुयायी कर रहे थे जो जेल जाने से पहले संत आशाराम बापू 60 साल तक यही सेवाकार्य कर रहे थे। देशभर में इस सेवाकार्य में लाखों गरीब और आदिवासी लाभाविन्त हुए लेकिन मीडिया ने इस खबर को कही नही दिखाई।


🚩दुसरी खबर


🚩दीपावली पर्व पर संत श्री आशारामजी आश्रम मोटेरा अहमदाबाद में 12 नवंबर से 18 नवंबर 2023 तक बच्चों को दिव्य संस्कार देने के लिए 7 दिवसीय एक विद्यार्थी शिविर का आयोजन किया था; उसमें हजारों बच्चे आए थे और उन बच्चो को योग, प्राणायाम, ध्यान, माता सरस्वती के मंत्रजप, सात्विक भोजन करवाया जाता है और उनको उच्च संस्कार दिए जाते हैं जिससे राष्ट्र और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बने। लेकिन इस खबर को भी नही दिखाया गया।


🚩तीसरी खबर


🚩संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी के मार्गदर्शन के अनुसार आश्रम, समितियाँ, युवा सेवा संघ, महिला मंडल एवं उनके असंख्य शिष्यों द्वारा उनके निर्देशानुसार गोपाष्टमी पर्व पर हर साल देशभर में विशाल स्तर पर मनाया जाता है ।


🚩इस साल भी आश्रम, समितियों, युवा सेवा संघ, महिला उत्थान मंडल एवं बापू आसारामजी के असंख्य शिष्यों द्वारा गोपाष्टमी पर्व पर गौशालाओं के अलावा गाँव-गाँव जाकर गायों का पूजन करके पुष्टिवर्धक लड्डू खिलाया गया और अनुदान दिया गया और गौ-रक्षा यात्राएँ निकालकर लोगों को गौ-रक्षा एवं गौसेवा के लिए प्रेरित किया गया ।


🚩बापू आसारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी ने कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर भारतभर में अनेक गौशालाएं खोली हैं और वहां हजारों ऐसी गायें हैं जो दूध नहीं देती हैं फिर भी उनका पालन-पोषण व्‍यवस्थित ढंग से किया जाता है ।


🚩मीडिया ने संत आशाराम बापू के खिलाफ अनेक झूठी कहानियां बनाकर दिखाई, लेकिन गरीबों, आदिवासियों, बच्चों और गौमाता के लिए इतने बड़े सेवाकार्य चल हुए लेकिन उससे संबंधित एक लाइन भी मीडिया में नहीं दिखाई दी इसलिए जनता मीडिया को बिकाऊ मीडिया कहने लगी है।


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Friday, November 24, 2023

सिख के नौवें गुरु ने हिंदू धर्म बचाने के लिए जो कार्य किया कभी नही भूल पाएंगे

25 November 2023

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🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर अनेक अत्याचार हुए। धर्मान्धों के आतंक से ऋषि कश्यप की धरती अपवित्र हुई थी, लेकिन यह पहली बार नही था जब धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में ऐसा हो रहा था।


🚩मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल के दौरान कश्मीरी हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा था।


🚩जो कश्मीरी हिंदु मना करता उसे मार दिया जाता, महिलाओं का बलात्कार कर दिया जाता, घरों को आग लगा दिया जाता था। तब एक व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था, वो थे "त्याग मल।"


🚩यह त्याग मल और कोई नहीं बल्कि सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी थे। तब गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश कटा लिया था लेकिन शीश कभी झुकने नहीं दिया।


🚩गुरु तेग बहादुर का जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में करतारपुर की जंग के दौरान मुग़लों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाने की वजह से उन्हें 'तेग बहादुर' का नाम मिला था। 1664 में वो सिखों के नौवें गुरु के रूप में चुने गए।


🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩गुरु तेग बहादुर जी ने उन्हें अपनी गिहबानी में ले लिया। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी हिंदुओं के लिए पूरा सुरक्षा चक्र बनाया था। इसी बात से औरंगजेब तिलमिला उठा। गुरु तेग बहादुर अपने 3 शिष्यों के साथ जुलाई 1675 में आनंदपुर से दिल्ली जा रहे थे, तभी उनके शिष्यों सहित उन्हें मुग़ल सेना ने गिरफ्तार कर लिया था।


🚩गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 4 महीनों तक अलग-अलग कारावास में बंदी बनाकर रखा, जिसके बाद 2 नवंबर 1675 में उन्हें दिल्ली में औरंगजेब के समक्ष लाया गया। औरंगजेब ने उन्हें भरी सभा में लोभ-लालच देकर मुसलमान बनने को कहा जिसे गुरु तेग बहादुर ने अपने साहस का परिचय देते हुए साफ ठुकरा दिया।


🚩औरंगजेब ने इसके बाद उन्हें "इस्लाम और मौत" में से एक को चुनने को कहा जिसके बाद भी गुरु तेग़ बहादुर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए।


🚩इन सब के बाद गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए उनके 3 कश्मीरी हिंदु शिष्यों के सर धड़ से अलग कर दिए गए, गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए, दूसरे भाई दयाल दास को खौलते तेल की कढ़ाई में जिंदा फेंकवा दिया वहीं तीसरे भाई सति दास को ज़िंदा जला दिया गया। इन सब के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया।


🚩जब यह सब देखने के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने 24 नवंबर को उनका सर कलम करने का आदेश दिया। दिल्ली में ही मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर के सर को कलम किया गया।


🚩"हिन्द दी चादर" के नाम से प्रख्यात गुरु तेग बहादुर जी का शीश जिस जगह गिरा था, आज वहाँ उनके नाम पर "शीशगंज गुरुद्वारा" के नाम से गुरुद्वारा स्थित है।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए, अपने कश्मीरी हिंदु भाइयों के लिए बलिदान देने वाले वो शख़्स जो करतारपुर के संघर्ष के बाद त्याग मल से तेग बहादुर बने, ऐसे ही अनगिनत बलिदानों से आज भारत टिका हुआ है।


🚩भारत की मिट्टी को आक्रांताओं को से बचाने के लिए ना जाने कितनों ने अपने रक्त से इसको सींचा है। इसका सम्मान कीजिए, इस पर गर्व कीजिए कि आपके पूर्वजों ने किसी आक्रान्ता के सामने गर्दन नहीं झुकाया, किसी आक्रांता के सामने आपके लोगों ने मरना स्वीकार किया लेकिन खुद को बेचना नहीं।


🚩गुरु श्री तेग बहादुर जी के बलिदान पर देश और इस देश के सभी लोग उनके सदैव ऋणी रहेंगे ।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारत के महान वीर योद्धाओ ने अपने जीवन में अनेकों संघर्ष किए , यहां तक कि अपने जीवन की राष्ट्र की रक्षा के लिए आहुति भी दी,ऐसे महान वीर योद्धाओ को हमे याद रखना चाहिए और हमे भी धर्म और देश की रक्षा संघर्ष करना चाहिए।


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Thursday, November 23, 2023

चांदी के वर्क वाली मिठाई या अन्य मिठाई एवं चॉकलेट खाने से पहले सच जान ले.......

24 November 2023

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🚩हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती हैं, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं।


🚩देशभर में दीपावली की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है।

कुछ साल पहले मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि मिठाई व पान ही नहीं सेब जैसे फल को आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह मांसाहार की श्रेणी में आता है।


🚩उनका कहना है कि यह वर्क जिंदा बैलों का कत्ल कर उनकी आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों गौवंशीय पशुओं की हत्या की जाती है।


🚩उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में चांदी, एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।


🚩बैल की आंत पीटते रहने से फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।


🚩मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशु हत्या, गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'पांच साल पहले इंडियन एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क मांसाहार है, और अपने कैटरर को विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।



🚩चॉकलेट का अधिक सेवनः हृदयरोग को आमंत्रण


🚩क्या आप जानते हैं कि चॉकलेट में कई ऐसी चीजें भी हैं जो शरीर को धीरे-धीरे रोगी बना सकती है ? प्राप्त जानकारी के अनुसार चॉकलेट का सेवन मधुमेह एवं हृदयरोग को उत्पन्न होने में सहाय करता है तथा शारीरिक चुस्ती को भी कम कर देता है। यदि यह कह दिया जाये कि चॉकलेट एक मीठा जहर है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


🚩कुछ चॉकलेटों में इथाइल एमीन नामक कार्बनिक यौगिक होता है जो शरीर में पहुँचकर रक्तवाहिनियों की आंतरिक सतह पर स्थित तंत्रिकाओं को उदीप्त करता है। इससे हृदयरोग पैदा होते हैं।


🚩हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि चॉकलेट के सेवन से तंत्रिकाएँ उदीप्त होने से डी.एन.ए. जीन्स सक्रिय होते हैं जिससे हृदय की धड़कने बढ़ जाती हैं। चॉकलेट के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले रसायन पूरी तरह पच जाने तक अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। अधिकांश चॉकलेटों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली निकेल धातु हृदयरोगों को बढ़ाती है।


🚩इसके अलावा चॉकलेट के अधिक प्रयोग से दाँतों में कीड़ा लगना, पायरिया, दाँतों का टेढ़ा होना, मुख में छाले होना, स्वरभंग, गले में सूजन व जलन, पेट में कीड़े होना, मूत्र में जलन आदि अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।

वैसे भी शरीर स्वास्थ्य एवं आहार के नियमों के आधार पर किसी व्यक्ति को चॉकलेट की कोई आवश्यकता नहीं है।


🚩'मिठाई की दुकान अर्थात् यमदूत का घर'


🚩आचार्य सुश्रुत ने कहा हैः 'भैंस का दूध पचने में अति भारी, अतिशय अभिष्यंदी होने से रसवाही स्रोतों को कफ से अवरूद्ध करने वाला एवं जठराग्नि का नाश करने वाला है !' यदि भैंस का दूध इतना नुकसान कर सकता है तो उसका मावा जठराग्नि का कितना भयंकर नाश करता होगा? मावे के लिए शास्त्र में किलाटक शब्द का उपयोग किया गया है, जो भारी होने के कारण भूख मिटा देता है।


🚩जब मावा, पीयूष, छेना (तक्रपिंड), क्षीरशाक, दही आदि से मिठाई बनाने के लिए उनमें शक्कर मिलायी जाती है, तब तो वे और भी ज्यादा कफ करने वाले, पचने में भारी एवं अभिष्यंदी बन जाते हैं। पाचन में अत्यंत भारी ऐसी मिठाइयाँ खाने से कब्जियत एवं मंदाग्नि होती हैं जो सब रोगों का मूल है। इसका योग्य उपचार न किया जाय तो ज्वर आता है एवं ज्वर को दबाया जाय अथवा गलत चिकित्सा हो जाय तो रक्तपित्त, रक्तवात, त्वचा के रोग, पांडुरोग, रक्त का कैंसर, मधुमेह, कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदयरोग आदि रोग होते हैं। कफ बढ़ने से खाँसी, दमा, क्षयरोग जैसे रोग होते हैं। मंदाग्नि होने से सातवीं धातु (वीर्य)  कैसे बन सकती है? अतः अंत में नपुंसकता आ जाती है!


🚩आज का विज्ञान भी कहता है कि 'बौद्धिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए दिन के दौरान भोजन में केवल 40 से 50 ग्राम वसा (चरबी) पर्याप्त है और कठिन श्रम करने वाले के लिए 90 ग्राम। इतनी वसा तो सामान्य भोजन में लिये जाने वाले घी, तेल, मक्खन, गेहूँ, चावल, दूध आदि में ही मिल जाती है। इसके अलावा मिठाई खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। धमनियों की जकड़न बढ़ती है, नाड़ियाँ मोटी होती जाती हैं। दूसरी ओर रक्त में चरबी की मात्रा बढ़ती है और वह इन नाड़ियों में जाती है। जब तक नाड़ियों में कोमलता होती है तब तक वे फैलकर इस चरबी को जाने के लिए रास्ता देती है। परंतु जब वे कड़क हो जाती हैं, उनकी फैलने की सीमा पूरी हो जाती है तब वह चरबी वहीं रुक जाती है और हृदयरोग को जन्म देती है।'


🚩मिठाई में अनेक प्रकार की दूसरी ऐसी चीजें भी मिलायी जाती हैं, जो घृणा उत्पन्न करें। शक्कर अथवा बूरे में कॉस्टिक सोडा अथवा चोंक का चूरा भी मिलाया जाता है जिसके सेवन से आँतों में छाले पड़ जाते हैं। प्रत्येक मिठाई में प्रायः कृत्रिम (एनेलिन) रंग मिलाये जाते हैं जिसके कारण कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।


🚩जलेबी में कृत्रिम पीला रंग (मेटालीन यलो) मिलाया जाता है, जो हानिकारक है। लोग उसमें टॉफी, खराब मैदा अथवा घटिया किस्म का गुड़ भी मिलाते हैं। उसे जिन आयस्टोन एवं पेराफील से ढका जाता है, वे भी हानिकारक हैं। उसी प्रकार मिठाईयों को मोहक दिखाने वाले चाँदी के वर्क एल्यूमीनियम फॉइल में से बने होते हैं एवं उनमें जो केसर डाला जाता है, वह तो केसर के बदले भुट्टे के रेशे में मुर्गी का खून भी हो सकता है !!


🚩आधुनिक विदेशी मिठाईयों में पीपरमेंट, गोले, चॉकलेट, बिस्कुट, लालीपॉप, केक, टॉफी, जेम्स, जेलीज, ब्रेड आदि में घटिया किस्म का मैदा, सफेद खड़ी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, बाजरी अथवा अन्य अनाज का बिगड़ा हुआ आटा मिलाया जाता है। अच्छे केक में भी अण्डे का पाउडर मिलाकर बनावटी मक्खन, घटिया किस्म के शक्कर एवं जहरीले सुगंधित पदार्थ मिलाये जाते हैं। नानखटाई में इमली के बीज के आटे का उपयोग होता है। कन्फेक्शनरी में फ्रेंच चॉक, ग्लकोज का बिगड़ा हुआ सीरप एवं सामान्य रंग अथवा एसेन्स मिलाये जाते हैं। बिस्कुट बनाने के उपयोग में आने वाले आकर्षक जहरी रंग हानिकारक होते हैं।


🚩इस प्रकार, ऐसी मिठाइयाँ वस्तुतः मिठाई न होते हुए बल, बुद्धि और स्वास्थ्यनाशक, रोगकारक एवं तमस बढ़ानेवाली साबित होती है।


🚩मिठाइयों का शौक कुप्रवृत्तियों का कारण एवं परिणाम है। डॉ. ब्लोच लिखते हैं कि मिठाई का शौक जल्दी कुप्रवृत्तियों की ओर प्रेरित करता है। जो बालक मिठाई के ज्यादा शौकीन होते हैं उनके पतन की ज्यादा संभावना रहती है और वे दूसरे बालकों की अपेक्षा हस्तमैथुन जैसे कुकर्मों की ओर जल्दी खिंच जाते हैं।


🚩स्वामी विवेकानंद ने भी कहा हैः

''मिठाई (कंदोई) की दुकान साक्षात यमदूत का घर है।''


🚩जैसे, खमीर लाकर बनाये गये इडली-डोसे आदि खाने में तो स्वादिष्ट लगते हैं परंतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं, इसी प्रकार मावे एवं दूध को फाड़कर बने पनीर से बनायी गयी मिठाइयाँ लगती तो मीठी हैं पर होती हैं जहर के समान। मिठाई खाने से लीवर और आँतों की भयंकर असाध्य बीमारियाँ होती हैं। अतः ऐसी मिठाइयों से आप भी बचें, औरों को भी बचायें।


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Wednesday, November 22, 2023

पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए....

23 November 2023

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🚩भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।


🚩 इस साल यह व्रत 23 नवम्बर 2023 से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा ।


🚩इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता हैं।


🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।


🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।


🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।


🚩 भीष्मपंचक व्रत कथा:-


🚩कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।


🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है…


🚩महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे। तक भगवान कृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।


🚩भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ?


🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए ।


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।



🚩‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)


🚩अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ… – ऐसी प्रार्थना करें ।


🚩इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।


🚩इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।


🚩पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।


🚩इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।


🚩जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।


🚩जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।


🚩 इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :-उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll


🚩‘हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l’ (साभार : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)


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