Tuesday, August 20, 2019

क्या मुसलमानों के लिए धर्म पहले और देश बाद में है?

20अगस्त 2019
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🚩भारत देश के अधिकतर मुसलमान धर्म को पहले, देश को बाद में मानते हैं। ये मानसिकता देश के लिए भविष्य में बड़ा खतरा हो सकती है।
🚩देश की राजधानी दिल्ली में जामा मस्जिद के शाही ईमाम बुखारी पर 65 वारंट है उसमें कई तो गैर जमानती वारंट है पर पुलिस उसको गिरफ्तार नहीं कर रही। इन्हें देश से कोई मतलब नहीं है, निजी स्वार्थ के लिए कोई भी जुर्म कर देना है। ऊपर से पुलिस बोल रही है कि अगर बुखारी को गिरफ्तार किया तो दंगे भड़क सकते हैं। अब बताओ क्या वो देश के संविधान से ऊपर है, देश से ऊपर है। और इससे दूसरे मुस्लिमों में क्या सन्देश जाएगा! ये देश की कानून व्यवस्था के साथ खेलने में क्यों हिचकिचाएंगे!

🚩पुलवामा हमले के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि पाकिस्तान के हर आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। भारत ने परमाणु बम दिवाली के लिए नहीं रखे। इस पर जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहती है कि पाकिस्तान ने भी परमाणु बम ईद के लिए नहीं रखे है। देश लीजिए कितनी विकृत मानसिकता है इनकी। जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं।
🚩18 जून 2017 को ICC Champions Trophy के फाइनल में पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने भारतीय क्रिकेट टीम को हराया तो देश के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में आतिशबाजी की गई। कुछ मुस्लिम ये भी बोले कि भारतीय टीम हारी तो दुख हुआ पर कौम के जीतने की खुशी हुई। क्या ऐसी मानसिकता देश की अस्मिता के लिए खतरा नहीं है।
🚩अकबरुद्दीन ओवैसी कहता है कि पुलिस हटा लो तो हम देख लेंगे हिन्दुओं को। हिन्दू कायर है, सबको काट डालेंगे। कितना ज़हर है इनके अंदर। देश में अराजकता फैलाने वाला बयान देने वाले मुस्लिमों की सूची लम्बी है। अफसोस इस चीज का है कि ना ही सरकार, ना ही न्याय व्यवस्था ऐसे मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं कर रही।
🚩रामपुर, उत्तर प्रदेश के सांसद आज़म खान पर जब मनी लॉन्ड्रिंग करने पर केस दर्ज होता है तो वो बोलता है कि हमारे पूर्वज पाकिस्तान नहीं गए तो इसकी सजा हमें दी जा रही है। इसे कहते है पहले चोरी, फिर सीना जोरी। पहले जुर्म किया, फिर बाद में बचने और देश को भड़काने के लिए उसे बंटवारे और धर्म से जोड़ दिया। मतलब इनको देश के संविधान की धज्जियां उड़ाने का भी कोई अफसोस नहीं। ये तो बेशर्मी की इंतहा है।
🚩एक मीडिया चैनल पर चलती डिबेट में एक मौलवी एक महिला को थप्पड़ मार देता है, ये है असहनशीलता की पराकाष्ठा। मतलब इन्हें कानूनी कार्यवाही का भी कोई डर नहीं है। ये महिलाओं को पैर की जूती समझते हैं, इज्जत तो दूर की बात, हलाला के नाम पर औरतों का शोषण करते हैं। तीन तलाक की कुप्रथा से तत्कालीन केंद्र सरकार ने तो मुस्लिम औरतों को कानून बनाकर बचा लिया है पर दूसरी सरकार आने पर फिर से फिर से तीन तलाक को वैध कराने की धमकी भी मिल रही है।
🚩मुस्लिम देश के संविधान को, कानून को नहीं मानते। इन्होंने तो अपने लिए अलग से शरई अदालतों की मांग तक कर रखी है। अब बताओ क्या किसी धर्म विशेष के लिए अलग से अदालत सम्भव है! और देश के संविधान का अपमान करना, उसके खिलाफ मांग करना क्या देश से गद्दारी नहीं है।
🚩जब पुलिस देश में कुछ मस्जिदों में रेड मारती है तो उनमें तलवारें, बंदूकें मिलती हैं। ऐसे लोग क्या देश और उसकी कानून व्यवस्था का सम्मान करेंगे! जहाँ पर नमाज़ पढ़ते हैं, वहीं हथियार भी रखते हैं। इसका मतलब मस्जिदों में इनको गृहयुद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है ताकि समय आने पर हिन्दुओं और दूसरे धर्म के लोगों का खात्मा कर सके। कुछ होंगे अच्छे मुसलमान भी है पर गृहयुद्ध की स्तिथि में उनको भी मुस्लिमों का साथ देना होगा। हिन्दू और दूसरे धर्मों के लोग इससे अनभिज्ञ है और इस स्तिथि के लिए तैयार भी नहीं है। उल्टा हिन्दुओं को तो जाति पाति में तोड़ने के षड़यंत्र होते रहते हैं। क्या देश की कानून व्यवस्था के लिए ये खतरा नहीं है!
🚩कुछ मदरसों में देश विरोधी गतिविधियां चलती है, देश के खिलाफ भड़काया जाता है। क्या ऐसी शिक्षा से मुस्लिम युवा देश के खिलाफ खड़े नहीं होंगे! वे भारत को अपना दुश्मन ही मानेंगे। तो बताओ क्या भविष्य होगा देश का!
🚩अब समय आ गया है हिन्दू जाग्रत हो क्योंकि अगर अब हिन्दू एक नहीं हुए तो उनके सामने हिन्दुत्व का विनाश हो जाएगा और वो कुछ नहीं कर सकेंगे। कानून व्यवस्था को उचित कदम उठाने होंगे। सरकार को भी वोटबैंक की चिंता छोड़ देशहित को ऊपर रखकर उचित निर्णय लेने होंगे। देश में समान नागरिकता कानून बनाना होगा।
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Monday, August 19, 2019

नासा ने स्वीकार किया : संस्कृत सबसे वैज्ञानिक भाषा है - केंद्रीय मंत्री


19 अगस्त 2019

संस्कृत भाषा की सर्वोत्तम शब्द-विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुए इसका अध्ययन आरंभ कराया है और भविष्य में भाषा-क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है । अतः अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाने वाले कुछ महाशय जो संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें कुँए से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता का एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए ।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने शनिवार को यह टास्क आईआईटी और एनआईटी के निदेशकों और चेयरमैन को दिया कि; वे साबित करें कि, संस्कृत सबसे वैज्ञानिक भाषा है !

नई देहली : देश के प्रमुख संस्थान आईआईटी और एनआईटी के सामने अब एक नया टास्क है . . उन्हें साबित करना है कि, संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है ! केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने शनिवार को यह टास्क आईआईटी और एनआईटी के निदेशकों और चेयरमैन को दिया कि, वे साबित करें कि, संस्कृत सबसे वैज्ञानिक भाषा है !

इग्नू में आयोजित ज्ञानोत्सव 2076 समारोह में मंत्री ने कहा, ‘हम संस्कृत की काबिलियत सिद्ध नहीं कर पाए, इसीलिए हम पर सवाल उठाए जाते हैं ! मैं आईआईटी और एनआईटी के कुलपतियों और कुलाधिपतियों से आग्रह करता हूं कि, हमें इसे साबित करना चाहिए !’  उन्होंने आलोचकों को चुनौती देते हुए कहा कि; वे उन्हें बताएं कि, संस्कृत से ज्यादा वैज्ञानिक भाषा कौन सी है ?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

उन्होंने कहा, ‘नासा ने इस बात को स्वीकार किया है कि, संस्कृत सबसे वैज्ञानिक भाषा है, जिसमें शब्द उसी तरह लिखे जाते हैं, जिस तरह बोले जाते हैं। अगर बोलनेवाले कंप्यूटर की बात करें तो संस्कृत उनके लिए ज्यादा उपयोगी होगी ! अगर नासा संस्कृत को ज्यादा वैज्ञानिक भाषा मान सकती है तो आपको क्या दिक्कत है ?’

उन्होंने कहा कि, संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है ! अगर आप संस्कृत से पुरानी किसी भाषा के बारे में जानते हैं तो हमें बताएं। उन्होंने दावा किया कि, हिंदू ग्रंथों में गुरुत्वाकर्षण बल की चर्चा इसाक न्यूटन से हजारों वर्ष पहले की गई है !

मंत्री ने दावा किया कि, ऋषि प्रणव ने सबसे पहले एटम और मॉलीक्यूल का आविष्कार किया। रोचक बात यह है कि, मंत्री ने आईआईटी-मुंबई में दावा किया था कि, चरक ऋषि ने सबसे पहले एटम और मॉलीक्यूल की खोज की थी ! स्त्रोत : झी न्यूज

आपको बता दे कि देववाणी संस्कृत में 1700 धातुएं, 70 प्रत्यय और 80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी संख्या 27 लाख 20 हजार होती है । यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है । संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा और वैज्ञानिक भाषा भी है । इसके सकारात्मक तरंगों के कारण ही ज्यादातर श्लोक संस्कृत में हैं । आज दुनिया मे जितनी भाषाएँ है संस्कृत से ही उनका उद्गम हुआ है ।

बता दें कि देववाणी संस्कृत मनुष्य की आत्मचेतना को जागृत करने वाली, सात्विकता में वृद्धि , बुद्धि व आत्मबलप्रदान करने वाली सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है । अन्य सभी भाषाओ में त्रुटि होती है पर इस भाषा में कोई त्रुटि नहीं है । इसके उच्चारण की शुद्धता को इतना सुरक्षित रखा गया कि सहस्त्र वर्षों से लेकर आज तक वैदिक मन्त्रों की ध्वनियों व मात्राओं में कोई पाठभेद नहीं हुआ और ऐसा सिर्फ हम ही नहीं कह रहे बल्कि विश्व के आधुनिक विद्वानों और भाषाविदों ने भी एक स्वर में संस्कृत को पूर्णवैज्ञानिक एवं सर्वश्रेष्ठ माना है । 

संस्कृत भाषा ही एक मात्र साधन हैं, जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं ।  इसका अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएं ग्रहण करने में सहायता मिलती है । वैदिक ग्रंथों की बात छोड़ भी दी जाए तो भी संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरंतर होती आ रही है । संस्कृत केवल एक भाषा मात्र नहीं है, अपितु एक विचार भी है । संस्कृत एक भाषा मात्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति है और संस्कार भी है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है और वसुधैव कुटुंबकम की भावना भी है ।

केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की बुद्धिशक्ति का विकास के साथ साथ बच्चे सुसंस्कारी बने ।

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Sunday, August 18, 2019

जानिए भगवान श्री राम के पूर्वज कौन थे और आज कौनसी पीढ़ी चल रही है ?

18 अगस्त 2019
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🚩कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवान श्री राम के वंशज के बारे में सबूत मांगा था। श्री राम के वंशज आज भी मौजूदा है इस लेख के माध्यम से जानिए आज उनके वंशज कौन है।
🚩राम के पुत्र लव और कुश की वंशावली-
राम के दो जुड़वा पुत्र लव और कुश थे। दोनों का ही वंश आगे चला। वर्तमान में दोनों के ही वंश के लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। लव और कुश के कुल के लोग जो भारत में आज भी निवास करते हैं।
🚩- ब्रह्माजी के कई पुत्र थे जिनमें से 10 प्रमुख हैं- मरीचि, अंगिरस्, अत्रि, भृगु, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्सय, ऋतु, दक्ष, स्वायंभुव मनु।

🚩- मरीचि की पत्नि दक्ष- कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्निनयां थी- कला और उर्णा। कला से उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। इन्होंने दक्ष की 13 पुत्रियों से विवाह किया था।
🚩- कश्यप पत्नी अदिति से देवता और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई। अदिति के 10 पुत्र थे, विवस्वान्, इंद्र, धाता, भग, पूषा, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा, अंशु, वरुण, सविता। कहीं कहीं पर यह नाम इस तरह पाए जाते हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।
🚩- कश्यप के बड़े पुत्र विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।
🚩- वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी। (पुत्री इला का विवाह बुध से हुआ जिसका पुत्र पुरुरवा चंद्रवंशी था)।
- रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है:- ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के विवस्वान् और विवस्वान् के वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।
🚩- इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
🚩- भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।
🚩- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। वाल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।
🚩कुश की निम्नलिखित वंशावली भी मिलती है जिसकी हम पुष्टि नहीं करते हैं, क्योंकि अलग अलग ग्रंथों में यह अलग अलग मिलती है। कारण यह कि कुश से राजा सवाई भवानी सिंह के बीच जिन राजाओं का उल्लेख मिलता है उनके भाई भी थे जिनके अन्य वंश चले हैं इस तरह संपूर्ण देश में राम के वंश का एक ऐसे नेटवर्क फैला है जिसकी संपूर्ण वंशावली को यहां देना असंभव है।
🚩कुश की एक यह वंशावली-
राम के जुड़वा पुत्र लव और कुश हुए। कुश के अतिथि हुए, अतिधि के निषध हुए, निषध के नल हुए, नल के नभस, नभस के पुण्डरीक, पुण्डरीक के क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वा के देवानीक, देवानीक के अहीनगर, अहीनर के रुरु, रुरु के पारियात्र, पारियात्रा के दल, दल के छल (शल), शल के उक्थ, उक्थ के वज्रनाभ, वज्रनाभ के शंखनाभ, शंखनाभ के व्यथिताश्व, व्यथिताश्व से विश्वसह, विश्वसह से हिरण्यनाभ, हिरण्यनाभ से पुष्य, पुष्य से ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि से सुदर्शन, सुदर्शन से अग्निवर्णा, अग्निवर्णा से शीघ्र, शीघ्र से मुरु, मरु से प्रसुश्रुत, प्रसुश्रुत से सुगवि, सुगवि से अमर्ष, अमर्ष से महास्वन, महास्वन से बृहदबल, बृहदबल से बृहत्क्षण (अभिमन्यु द्वारा मारा गया था), वृहत्क्षण से गुरुक्षेप, गुरक्षेप से वत्स, वत्स से वत्सव्यूह, वत्सव्यूह से प्रतिव्योम, प्रतिव्योम से दिवाकर, दिवाकर से सहदेव, सहदेव से बृहदश्व, वृहदश्व से भानुरथ, भानुरथ से सुप्रतीक, सुप्रतीक से मरुदेव, मरुदेव से सुनक्षत्र, सुनक्षत्र से किन्नर, किन्नर से अंतरिक्ष, अंतरिक्ष से सुवर्ण, सुवर्ण से अमित्रजित्, अमित्रजित् से वृहद्राज, वृहद्राज से धर्मी, धर्मी से कृतन्जय, कृतन्जय से रणन्जय, रणन्जय से संजय, संजय से शुद्धोदन, शुद्धोदन से शाक्य, शाक्य (गौतम बुद्ध) से राहुल, राहुल से प्रसेनजित, प्रसेनजित् से क्षुद्रक, क्षुद्रक से कुंडक, कुंडक से सुरथ, सुरथ से सुमित्र, सुमित्र के भाई कुरुम से कुरुम से कच्छ, कच्छ से बुधसेन।
🚩बुधसेन से क्रमश: धर्मसेन, भजसेन, लोकसेन, लक्ष्मीसेन, रजसेन, रविसेन, करमसेन, कीर्तिसेन, महासेन, धर्मसेन, अमरसेन, अजसेन, अमृतसेन, इंद्रसेन, रजसेन, बिजयमई, स्योमई, देवमई, रिधिमई, रेवमई, सिद्धिमई, त्रिशंकुमई, श्याममई, महीमई, धर्ममई, कर्ममई, राममई, सूरतमई, शीशमई, सुरमई, शंकरमई, किशनमई, जसमई, गोतम, नल, ढोली, लछमनराम, राजाभाण, वजधाम (वज्रदानम), मधुब्रह्म, मंगलराम, क्रिमराम, मूलदेव, अनंगपाल, श्रीपाल (सूर्यपाल), सावन्तपाल, भीमपाल, गंगपाल, महंतपाल, महेंद्रपाल, राजपाल, पद्मपाल, आनन्दपाल, वंशपाल, विजयपाल, कामपाल, दीर्घपाल (ब्रह्मापल), विशनपाल, धुंधपाल, किशनपाल, निहंगपाल, भीमपाल, अजयपाल, स्वपाल (अश्वपाल), श्यामपाल, अंगपाल, पुहूपपाल, वसन्तपाल, हस्तिपाल, कामपाल, चंद्रपाल, गोविन्दपाल, उदयपाल, चंगपाल, रंगपाल, पुष्पपाल, हरिपाल, अमरपाल, छत्रपाल, महीपाल, धोरपाल, मुंगवपाल, पद्मपाल, रुद्रपाल, विशनपाल, विनयपाल, अच्छपाल (अक्षयपाल), भैंरूपाल, सहजपा,, देवपाल, त्रिलोचनपाल (बिलोचनपाल), विरोचनपाल, रसिकपाल, श्रीपाल (सरसपाल), सुरतपाल, सगुणपाल, अतिपाल, गजपाल (जनपाल), जोगेद्रपाल, भौजपाल (मजुपाल), रतनपाल, श्यामपा,, हरिचंदपाल, किशनपाल, बीरचन्दपाल, तिलोकपाल, धनपाल, मुनिकपाल, नखपाल (नयपाल), प्रतापपाल, धर्मपाल, भूपाल, देशपाल (पृथ्वीपाल), परमपाल, इंद्रपाल, गिरिपाल, रेवन्तपाल, मेहपाल (महिपाल), करणपाल, सुरंगपाल (श्रंगपाल), उग्रपाल, स्योपाल (शिवपाल), मानपाल, परशुपाल (विष्णुपाल), विरचिपाल (रतनपाल), गुणपाल, किशोरपाल (बुद्धपाल), सुरपाल, गंभीरपाल, तेजपाल, सिद्धिपाल (सिंहपाल), गुणपाल, ज्ञानपाल (तक गढ़ ग्यारियर राज किया), काहिनदेव, देवानीक, इसैसिंह (तक बांस बरेली में राज फिर ढूंढाड़ में आए), सोढ़देव, दूलहराय, काकिल, हणू (आमेर के टीकै बैठ्या), जान्हड़देव, पंजबन, मलेसी, बीजलदेव, राजदेव, कील्हणदेव, कुंतल, जीणसी (बाद में जोड़े गए), उदयकरण, नरसिंह, वणबीर, उद्धरण, चंद्रसेन, पृथ्वीराज सिंह (इस बीच पूणमल, भीम, आसकरण और राजसिंह भी गद्दी पर बैठे), भारमल, भगवन्तदास, मानसिंह, जगतसिंह (कंवर), महासिंह (आमेर में राजा नहीं हुए), भावसिंह गद्दी पर बैठे, महासिंह (मिर्जा राजा), रामसिंह प्रथम, किशनसिंह (कंवर, राजा नहीं हुए), कुंअर, विशनसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई ईश्वरसिंह, सवाई मोधोसिंह, सवाई पृथ्वीसिंह, सवाई प्रतापसिंह, सवाई जगतसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई जयसिंह तृतीय, सवाई रामसिंह द्वितीय, सवाई माधोसिंह द्वितीय, सवाई मानसिंह द्वितीय, सवाई भवानी सिंह (वर्तमान में गद्दी पर विराजमान हैं)
🚩अन्य तथ्य:
राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।
🚩राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।
🚩कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।
🚩इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं।
तो यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसोदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है। जयपूर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज है। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे।
🚩इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्में महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और माननसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ। लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।
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🚩मुसलमान भी राम के वंशज हैं?
हालांकि ऐसे कई राजा और महाराजा हैं जिनके पूर्वज श्रीराम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाह वंश से ताल्लुक रखते हैं। मुगल काल में इन सभी को धर्म परिवर्तन करना पड़ा लेकिन ये सभी आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं।
🚩इसी तरह मेवात में दहंगल गोत्र के लोग भगवान राम के वंशज हैं और छिरकलोत गोत्र के मुस्लिम यदुवंशी माने जाते हैं। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि जगहों पर ऐसे कई मुस्लिम गांव या समूह हैं जो राम के वंश से संबंध रखते हैं। डीएनए शोधाधुसार उत्तर प्रदेश के 65 प्रतिशत मुस्लिम ब्राह्मण बाकी राजपूत, कायस्थ, खत्री, वैश्य और दलित वंश से ताल्लुक रखते हैं। लेखक : राजेश पंडित
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Saturday, August 17, 2019

कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ उसको जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे

17 अगस्त 2019
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🚩धारा 370 हटने और वहाँ कोई हिंसा न हो, शांति बनी रहे उसके लिए कर्फ्यू लगाने पर  कुछ देशविरोधी नेता एवं तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सवाल उठाने लगे कि कश्मीरीयों के साथ अत्याचार हो रहा है,लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है न जाने कितने-कितने बहाने बनाकर केंद्र सरकार को कोष रहे हैं पर कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ उसकी कोई बात नहीं करता है, उनके साथ जो अत्याचार हुआ उसपर कोई बात नहीं कर रहा है।

🚩आइये आपको कश्मीरी पंडितों की दास्ताँ बताते हैं कि उनपर कितने अत्याचार हुए...।
20 जनवरी 1990 को कश्‍मीर की मस्जिदों से कश्‍मीरी पंडितों को काफिर करार दिया गया। मस्जिदों से लाउडस्‍पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, 'कश्‍मीरी पंडित या तो इस्लाम धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें ।' यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि कश्‍मीरी पंडितों के घरों को पहचाना जा सके और उन्‍हें या तो इस्‍लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्‍हें मार दिया जाए।
🚩14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुए आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया।

🚩टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई। फिर 13 फरवरी को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या के साथ ही मुस्लिम आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था। उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की मुसलमान आतंकियों ने हत्या की।
🚩1989 के बाद कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के साथ हुए नरसंहार से कश्मीरी पंडित और सिख भी वहां से पलायन कर गए। कश्मीर में वर्ष 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़कर चले गए। उस समय हुए नरसंहार में हजारों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। मुस्लिम आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मारकर उनकी हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में बड़ी संख्या में महिलाओं और लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए।
🚩कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। मुस्लिम आतंकी संघटन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।
🚩घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई थी। कश्मीर में आतंकवाद के चलते लगभग 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक क्षेत्र में हिन्दुओं और शियाओं की तादाद बहुत होती थी परंतु वर्तमान में वहां हिन्दू तो एक भी नहीं बचा और शिया समय-समय पर पलायन करके भारत में आते रहे जिनके आने का क्रम अभी भी जारी है ।
🚩विस्थापित कश्मीरी पंडितों का एक संघटन है ‘पनुन कश्मीर’ ! इसकी स्थापना सन 1990 के दिसंबर माह में की गई थी। इस संघटन की मांग है कि, कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए। पनुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। परंतु 1989 से 1995 के बीच नरसंहार का एक ऐसा दौर चला कि, पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पड़ा ।
🚩आंकड़ों के अनुसार, इस नरसंहार में 6,000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 7,50,000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1,500 मंदिर नष्ट कर दिए गए। कश्मीरी पंडितों के 600 गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59,442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त हैं !
🚩डर की वजह से वापस लौटने से कतराते!!
आज भी कश्‍मीरी पंडितों के अंदर का डर उन्‍हें वापस लौटने से रोक देता है। #कश्‍मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने से पहले अपने घरों को कौड़‍ियों के दाम पर बेचा था। 30 वर्षों में कीमतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं। आज अगर वह वापस आना भी चाहें तो नहीं आ सकते क्‍योंकि न तो उनका घर है और न ही घाटी में उनकी जमीन बची है।
🚩कश्मीरी पंडितों की आज की स्थिति-
आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही शरणार्थी की तरह रह रहे हैं।  पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला । उनके लिए तो मीडिया भी नहीं है जो उनके साथ हुए अत्याचार को बताये । पढ़े लिखे कश्मीरी पंडित आज भिखारियों की तरह पिछले 30 सालो से टेंट में रह रहे है । उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं, पीने के लिए पानी तक की समस्या है। भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमों (310 मारे गए हिन्दुओं को भूलकर) की बात करते हैं, लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितों की बात करने वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू हैं। 20,000 कश्मीरी हिन्दू तो केवल धूप की गर्मी सहन न कर पाने के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदि थे ।
🚩बता दें कि आतंकवादी बुरहान वानी के मरने पर कश्मीर में हिंसा होने लगी और कर्फ़्यू लगी थी। हालत सामान्य करने के लिए 3 महीने लगे थे । आज कुछ दिन शांति बनाए रखने के लिए कर्फ्यू लगाया तो बिलबिलाने लगे, इतने साल से कश्मीर पंडित अत्याचार सहन कर रहे उसपर सब चुप हैं।
🚩आपको बता दें कि प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू संस्कृति का गढ़ रहा है। यहाँ पर भगवान शिव और सती पार्वती रहते थे । यहाँ झील में देवताओं का वास था, वहाँ एक राक्षस भी रहने लगा, जो देवताओं को सताने लगा, जिसका वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर अंत कर दिया, ऋषि कश्यप द्वारा उस असुर को मारने से उस जगह का नाम कश्यपमर पड़ा, जो आगे चलकर #कश्मीर नाम से जाना जाने लगा ।
🚩यह कश्मीर भारत का था है और रहेगा उसके लिए जो भी भारत सरकार कर रही है उसको सहयोग करना चाहिए न कि विरोध करके उनका मनोबल गिराकर देश तोड़ने में सहभागी होना चाहिए।
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