Saturday, December 12, 2020

पराक्रमी वीर जनरल जोरावर सिंह ने तिब्बत व बाल्टिस्तान तक फहराया था भगवा

12 दिसंबर 2020


ये वो पराक्रमी थे जिनको अगर इतिहास में उचित स्थान मिलता तो आज की नई पीढ़ी बहुत कुछ समझती और उनका अनुसरण करती लेकिन न जाने किस मानसिकता और क्या सोच को रख कर किताबों को लिखने वालें तमाम नकली कलमकारों ने ऐसी ऐसी कहानियां गढ़ डाली जो भारत को लूटने वालों को महान और भारत का पुननिर्माण करने निकले योद्धाओं को गुमनाम कर डाला।




उन्ही तमाम पराक्रमियों में से एक महान योद्धा जनरल जोरावर सिंह का आज बलिदान दिवस है। जनरल जोरावर सिंह ने जम्मू के डोगरा सेना के सेनापति के रूप में लद्दाख, बाल्टिस्तान, लेह जीत कर जम्मू राज्य का हिस्सा बनाया। इन्होने तिब्बत क्षेत्र के मानसरोवर और कैलाश ( तीर्थ पुरी ) तथा भारत और नेपाल के संगम स्थल तकलाकोट तक विजय हासिल की। इन्होने भारत की विजय पताका भारत के बाहर तिब्बत और बाल्टिस्तान तक फहरायी।

तोयो ( अब चीन में ) में युद्ध करते हुए गोली लगने से इनका देहांत हुआ और तोयो में आज भी इनकी समाधि मौजूद है। लद्दाख जिस वीर सेनानी के कारण आज भारत में है, उनका नाम है जनरल जोरावर सिंह। 13 अप्रैल, 1786 को इनका जन्म ग्राम अनसरा (जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) में ठाकुर हरजे सिंह के घर में हुआ था। जोरावर सिंह महाराजा गुलाब सिंह की डोगरा सेना में भर्ती हो गये।

राजा ने इनके सैन्य कौशल से प्रभावित होकर कुछ समय में ही इन्हें सेनापति बना दिया। वे अपनी विजय पताका लद्दाख और बाल्टिस्तान तक फहराना चाहते थे। अतः जोरावर सिंह ने सैनिकों को कठिन परिस्थितियों के लिए प्रशिक्षित किया और लेह की ओर कूच कर दिया।

किश्तवाड़ के मेहता बस्तीराम के रूप में इन्हें एक अच्छा सलाहकार मिल गया। सुरू के तट पर वकारसी तथा दोरजी नामग्याल को हराकर जनरल जोरावर सिंह की डोगरा सेना लेह में घुस गयी। इस प्रकार लद्दाख जम्मू राज्य के अधीन हो गया। अब जोरावर ने बाल्टिस्तान पर हमला किया।

लद्दाखी सैनिक भी अब उनके साथ थे। अहमदशाह ने जब देखा कि उसके सैनिक बुरी तरह कट रहे हैं, तो उसे सन्धि करनी पड़ी। जोरावर ने उसके बेटे को गद्दी पर बैठाकर 7,000 रु. वार्षिक जुर्माने का फैसला कराया। अब उन्होंने तिब्बत की ओर कूच किया। हानले और ताशी गांग को पारकर वे आगे बढ़ गये।

अब तक जोरावर सिंह और उनकी विजयी सेना का नाम इतना फैल चुका था कि रूडोक तथा गाटो ने बिना युद्ध किये हथियार डाल दिये। अब ये लोग मानसरोवर के पार तीर्थपुरी पहुँच गये। वहां 8,000 तिब्बती सैनिकों ने परखा में मुकाबला किया, जिसमे तिब्बती पराजित हुए। जोरावर सिंह तिब्बत, भारत तथा नेपाल के संगम स्थल तकलाकोट तक जा पहुँचे। वहाँ का प्रबन्ध उन्होंने मेहता बस्तीराम को सौंपा तथा वापस तीर्थपुरी आ गये।

जोरावर सिंह के पराक्रम की बात सुनकर अंग्रेजों के कान खड़े हो गये। उन्होंने पंजाब के राजा रणजीत सिंह पर उन्हें नियन्त्रित करने का दबाव डाला। निर्णय हुआ कि 10 दिसम्बर, 1841 को तिब्बत को उसका क्षेत्र वापस कर दिया जाये। इसी बीच जनरल छातर की कमान में दस हजार तिब्बती सैनिकों की जनरल जोरावर सिंह के 300 डोगरा सैनिकों से मुठभेड़ हुई। राक्षसताल के पास सभी डोगरा सैनिक बलिदान हो गये।

जोरावर सिंह ने गुलामखान तथा नोनो के नेतृत्व में सैनिक भेजे, पर वे सब भी शहीद हुये। अब वीर जोरावर सिंह स्वयं आगे बढ़े। वे तकलाकोट को युद्ध का केन्द्र बनाना चाहते थे पर तिब्बतियों की विशाल सेना ने 10 दिसम्बर, 1841 को टोयो में इन्हें घेर लिया। दिसम्बर की भीषण बर्फीली ठण्ड में तीन दिन तक घमासान युद्ध चला।

12 दिसम्बर को जोरावर सिंह को गोली लगी और वे घोड़े से गिर पड़े। डोगरा सेना तितर-बितर हो गयी। तिब्बती सैनिकों में जोरावर सिंह का इतना भय था कि उनके शव को स्पर्श करने का भी वे साहस नहीं कर पा रहे थे। बाद में उनके अवशेषों को चुनकर एक स्तूप बना दिया गया। 'सिंह छोतरन' नामक यह खंडित स्तूप आज भी टोयो में देखा जा सकता है। तिब्बती इसकी पूजा करते हैं।

इस प्रकार जोरावर सिंह ने भारत की विजय पताका भारत से बाहर तिब्बत और बाल्टिस्तान तक फहरायी। वह भारत ही नहीं अपितु विश्व के एकमात्र योद्धा हैं जिनके शौर्य व वीरता से प्रभावित होकर शत्रु सेना द्वारा उनकी समाधि बनाई गई हो। उन्होंने लद्दाख को जम्मू रियासत का अंग बताया जो भारत का अभिन्न अंग है।

प्रकार इस वीर सपूत ने 12 दिसंबर 1841 ई. को तिब्बती से लड़ते हुए टोयो नामक स्थान पर वीरगति प्राप्त की। तिब्बतियों ने इनके उनकी समाधि बनाई। उन्होंने कहा कि वे हमारे प्रेरणास्त्रोत हैं।

लुटेरे, आक्रमणकारी, बलात्कारी मुग़लों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जाता है लेकिन ऐसे भारत के वीर सपूतों का इतिहास पढ़ाया नही जाता है, जनता की मांग है कि अब अपने राष्ट्र व सनातन धर्म के योद्धाओं का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए।

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Friday, December 11, 2020

विभाजनकारी विषबेल बढ़ाने की कोशिश...

11 दिसंबर 2020


पिछले कुछ समय से पंजाब में जिस प्रकार की घटनाएं सामने आई हैं उसने पाकिस्तान में बैठे इस्लामी कट्टरपंथियों और जिहादियों के साथ ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ और खालिस्तानी आतंकियों के बीच एक बार फिर से हो रहे विषाक्त संयोजन का पर्दाफाश कर दिया है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पंजाब को पुन: अलगाववाद और आतंकवाद की आग में झोंकने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।




आतंकवादी जाकिर मूसा सहित अन्य कश्मीरी आतंकियों की पंजाब में बढ़ती गतिविधियों से सुरक्षाबल चौकस हैं। पंजाब का हालिया घटनाक्रम और खासकर निरंकारियों पर हमले की घटना 1980-90 दशक के घावों की याद दिला रही है। जरनैल सिंह भिंडरांवाले का उभार, स्वर्ण मंदिर में ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के परिणामस्वरूप दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में सिखों का ‘प्रायोजित’ नरसंहार आज भी अधिकांश भारतीयों के मानस में पीड़ा और दहशत पैदा करता है। यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान भारत की एकता और अखंडता को नष्ट कर उसे दार-उल-इस्लाम में परिवर्तित करने के अपने अधूरे एजेंडे को पूरा करना चाहता है। इसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु उसने खालिस्तान जैसे ¨हसक आंदोलन को पहले जन्म दिया और उसे संरक्षण दे रहा है।

यक्ष प्रश्न है कि जिस पंथ की उत्पत्ति सनातन संस्कृति की रक्षा करने हेतु हुई उसके कुछ लोग क्यों पाकिस्तान के सहयोगी बन रहे हैं ? इस विषबेल की जड़ें 1857 की क्रांति से जुड़ी हैं जिसकी अंग्रेज कभी पुनरावृत्ति नहीं चाहते थे। इसके लिए अंग्रेजों ने ‘बांटो और राज करो’ की विभाजनकारी नीति अपनाई। हिंदू-मुस्लिम विवाद इसमें सबसे सरल रहा और औपनिवेशिक शासकों ने मुस्लिम अलगाव पैदा करने लिए सैयद अहमद खान जैसे नेता चुने।

अंग्रेजों के लिए सबसे मुश्किल काम हिंदुओं और सिखों के बीच कड़वाहट पैदा करना था। इसका कारण स्पष्ट था, क्योंकि सिख पंथ के जन्म से ही पंजाब का हर हिंदू, गुरुओं के प्रति श्रद्धा का भाव रखता था और प्रत्येक सिख स्वयं को हिंदुओं और धर्म का रक्षक मानता था। इस अनोखे संबंध की नींव सिख गुरुओं ने ही रखी थी। इसलिए अंग्रेजों को सिख समाज में वैसा विश्वासपात्र नहीं मिला जैसा उन्हें मुस्लिम समुदाय में सैयद अहमद खान के रूप में प्राप्त हो गया था। तब अंग्रेजों ने आयरलैंड में जन्मे अपने ही एक अधिकारी मैक्स आर्थर मैकॉलीफ का चुनाव किया।

मैकॉलीफ ने पहले 1862 में इंपीरियल सिविल सर्विस (आइसीएस) में प्रवेश लिया और फिर 1864 में उन्हें पंजाब भेज दिया गया। इसी कालखंड में उन्होंने सिख पंथ को अपनाया और भाई काहन सिंह नाभा की सहायता से पवित्र ग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। बाद में, उनकी छह खंडों में आई पुस्तक ‘द सिख रिलीजन-इट्स गुरु, सैक्रेड राइटिंग्स एंड ऑथर’ भी प्रकाशित हुई। भाई काहन सिंह प्रसिद्ध सिख शब्दावलीकार और कोशकार थे। उन्होंने ‘सिंह सभा आंदोलन’ में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मैकॉलीफ की बौद्धिक प्रेरणा से ही 1897-98 में ‘हम हिंदू नहीं’ नाम से प्रकाशन निकाला था जिसमें उल्लिखित विचारधारा के आधार पर पाकिस्तान ने 1970-80 के दशक में खालिस्तान आंदोलन खड़ा किया और आज भी वह उसे अपने एजेंडे के अनुरूप सुलगाता रहता है। करतारपुर गलियारे के पीछे की उसकी मंशा पर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी संदेह जता दिया है।

उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में एक उच्च अंग्रेज अधिकारी का सिख पंथ अपनाना महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। मैकॉलीफ की पुस्तक की प्रस्तावना में इतिहासकार और लेखक खुशवंत सिंह ने लिखा था, ‘मैकॉलीफ की नियुक्ति के पीछे ब्रिटिश शासकों का कुटिल उद्देश्य निहित था। लॉर्ड डलहौजी ने सिख साम्राज्य को हड़पने के बाद पाया कि उस समय हिंदू और सिखों में विभाजन की कोई रेखा ही नहीं थी।’ आगे खुशवंत सिंह ने लिखा, ‘ब्रिटिश प्रशासकों को लगा कि स्थिति उनके अनुकूल तब होगी जब वह खालसा सिखों को उनकी विशिष्ट और अलग पहचान के लिए प्रोत्साहित करेंगे।’ मैकॉलीफ ने भी धीरे-धीरे सिखों को मुख्यधारा से दूर करते हुए अंग्रेजों का विश्वासपात्र सहयोगी बताने का प्रयास किया। उन्होंने ‘द सिख रिलीजन-खंड-1’ में लिखा , ‘एक दिन गुरु तेग बहादुर अपनी जेल की ऊपरी मंजिल पर थे। तब औरंगजेब को लगा कि गुरु दक्षिण दिशा स्थित शाही जनाना (महिलाओं के कक्ष) की ओर देख रहे हैं। औरंगजेब ने उन पर शिष्टाचार के उल्लंघन करने का आरोप लगा दिया। तब गुरु ने कहा-सम्राट औरंगजेब, मैं तुम्हारे निजी कक्ष या फिर तुम्हारी रानियों की ओर नहीं देख रहा था। मैं तो उन यूरोपीय निदेशकों की तलाश में था जो समुद्र पार करके तुम्हारे साम्राज्य को नष्ट करने के लिए यहां आ रहे हैं।’ इसका अर्थ यह बताया गया कि मैकॉलीफ ने भारत पर औपनिवेशिक शासन पर सिख गुरुओं की मुहर लगवाने का प्रयास किया था।

अंग्रेजों की विभाजनकारी रणनीति का परिणाम जल्द ही सामने आ गया। 1 मई 1905 को स्वर्ण मंदिर के तत्कालीन प्रबंधक ने परिसर में ब्राह्मणों के पूजा-पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद वहां से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया गया। पंजाब के अन्य गुरुद्वारों में भी ऐसा ही हुआ। जिस जनरल डायर ने 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार की पटकथा लिखी थी उसे अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने आमंत्रित कर सिरोपा भेंट किया। वर्ष 1901 की जनगणना के अनुसार, तत्कालीन पंजाब में सिखों की जनसंख्या 10 लाख थी। तब जनगणना आयुक्त ने निर्देश दिया कि हिंदुओं से अलग सिखों की गणना की जाए। परिणामस्वरूप, 1911 में सिखों की आबादी एकाएक बढ़कर 30 लाख हो गई। अंग्रेजों ने ब्रिटिश सेना में अलग से खालसा रेजीमेंट का गठन किया जिसमें सैनिकों को ‘पांच ककार’ धारण करने का स्पष्ट निर्देश था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि खालसा और सिख गुरुओं के अन्य शिष्यों के बीच अंतर दिखाया जा सके।

अंग्रेजों द्वारा दी गई पहचान समाज को खंडित करती है और पाकिस्तान सहित देश के शत्रुओं को सहायता देती है। विडंबना है कि भारत में इन विभाजनकारी नीतियों का अनुसरण आज भी किया जा रहा है। सिख गुरुओं द्वारा दिखाया गया मार्ग न केवल भारत को जोड़ता है, बल्कि वैश्विक मानवता में एकता का भी संदेश देता है। स्पष्ट है कि आज इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है कि सिख गुरुओं की परंपराओं, दर्शन और जीवनशैली का अनुसरण किया जाए ताकि उस विभाजनकारी मानसिकता का सामना किया जा सके जिसे अंग्रेजों ने अपने औपनिवेशिक साम्राज्य को स्थापित करने हेतु किया था।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं स्तंभकार हैं)
साभार- दैनिक जागरण


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Thursday, December 10, 2020

जानिए कैसे बना बॉलीबुड हिन्दू विरोधी...

10 सितंबर 2020


सैफ अली खान ने आदिपुरुष के नाम से नई फ़िल्म की घोषणा की है। इस फ़िल्म की घोषणा के साथ सैफ ने यह कहा कि वो रावण के उस प्रारूप के से परिचित करवाएंगे जिससे लोग परिचित नहीं है अर्थात रावण द्वारा माता सीता के अपहरण को उचित ठहराएंगे। बॉलीवुड जिहाद से तो अब तक आप सभी लोग परिचित हो ही चुकें हैं। 1970 के दशक से पुरे 50 साल में हिन्दू विरोधी, हिन्दुओं को नकारात्मक रूप में दिखाना, हिन्दुओं के महान पूर्वजों पर कटाक्ष करना, हिन्दुओं की पूजा पद्धति का परिहास करना, हिन्दुओं की युवा पीढ़ी को नास्तिक और श्रद्धाहीन बनाना इस जिहाद का एजेंडा हैं। इस फ़िल्म का और इस कलाकार की आने वाली फिल्मों का और इस गैंग की अन्य फिल्मों का क्या हश्र करना हैं। यह आप लोग बखूबी जानते हैं।




रावण क्या था और राम जी क्या थे यह हम हिन्दुओं को बॉलीवुड नहीं सिखायेगा? यह जानने के लिए हमारे पास वाल्मीकि रामायण है।

रावण एक विलासी था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थी। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते हैं।

कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।
न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।

अर्थात - मैंने रावण की प्रसुप्तावस्था में शिथिलावस्त्रा स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। जब सब कमरों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से उन्होंने यह निश्चय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकती।

श्री राम जी के बारे में वाल्मीकि रामायण कहती है-

रक्षितास्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता।
वेद वेदांग तत्वज्ञो धनुर्वेद च निष्ठित:।। -वाल्मीकि रामायण सर्ग १/१४

अपने धर्म की रक्षा करने और प्रजा पालने में तत्पर, वेद वेदांग तत्व ज्ञाता, धनुर्वेद में निष्णात थे।

बालकाण्ड में लिखा है-

धर्मज्ञ: सत्यसंधश्च प्रजानां च हितेरत:।
यशस्वी ज्ञान संपन्न: शुचिर्वश्य: समाधिमान्।।१२।।
प्रजापति सम: श्रीमान्धाता रिपुनिषूदन:।
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता।।१३।।
सर्व शास्त्रार्थ तत्वज्ञ: स्मृतिमान् प्रतिभावान्।
सर्वलोक प्रियः साधुरदोनात्मा विचक्षण:।।१५।।
सर्वदाभिगत: सद्भि: समुद्रइव सिन्धुभि:।
आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रिय दर्शन:।।१६।। -बालकाण्ड १/१२,१३,१५,१६

धर्मज्ञ, सत्य प्रतिज्ञा, प्रजा हितरत, यशस्वी, ज्ञान सम्पन्न, शुचि तथा भक्ति तत्पर हैं। शरणागत रक्षक, प्रजापति समान प्रजा पालक, तेजस्वी, सर्वश्रेष्ठ गुणधारक, रिपु विनाशक, सर्व जीवों की रक्षा करने वाले, धर्म के रक्षक, सर्व शास्त्रार्थ के तत्ववेत्ता, स्मृतिमान्, प्रतिभावान् तेजस्वी, सब लोगों के प्रिय, परम साधु, प्रसन्न चित्त, महा पंडित, विद्वानों, विज्ञान वेत्ताओं तथा निर्धनों के रक्षक, विद्वानों की आदर करने वाले जैसे समुद्र में सब नदियों की पहुंच होती है वैसे ही सज्जनों की वहां पहुंच होती है। परम श्रेष्ठ, हंस मुख, दुःख सुख के सहन कर्ता, प्रिय दर्शन, सर्व गुण युक्त और सच्चे आर्य पुरुष थे।

आनुशंस्यतनु कोश: श्रुतंशीलं दम: शम:।
राघव शोभयन्त्येते षङ्गुणा: पुरूषर्षभम्।। -अयोध्याकाण्ड ३३/१२

अहिंसा, दया, वेदादि सकल शास्त्रों में अभ्यास, सत्य स्वभाव, इन्द्रिय दमन करना, शान्त चित्त रहना, यह छ: गुण राघव (रामचन्द्र) को शोभा देते हैं।

जब भरत जी रामचन्द्र जी से चित्रकूट में मिलने आए तब उस समय रामचन्द्र जी ने उनको अथर्व काण्ड ६ मन्त्र १ तथा मनु ७/५० आदि के अनुसार आखेट, द्यूत, मद्यपान, दुराचारादि बातों का निषेध का अनमोल उपदेश दिया हैं, यह बड़े ही मार्मिक एवं प्रशंसा के योग्य हैं।

एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्नीव्रता, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम है। दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।

हिन्दुओं अपने धर्म ग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दो। अन्यथा हिन्दुओं की अज्ञानता का लाभ उठाने वाले हमारे ही महान पूर्वजों के तिरस्कार से पीछे नहीं हटेंगे। डॉ विवेक आर्य

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Wednesday, December 9, 2020

जानिये 25 दिसंबर को तुलसी पूजन करना आवश्यक क्यों है ?

09 दिसंबर 2030


हमारा भारत देश ऋषि-मुनियों का देश रहा है, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में आकर भारतीय दिव्य संस्कृति को खत्म करने के लिये अपनी पश्चिमी संस्कृति को थोपना चाहा, लेकिन भारत में आज भी कई साधु-संत एवं हिन्दूनिष्ठ हैं जो भारत में राष्ट्र विरोधी विदेशी ताकतों से टक्कर लेकर भी समाज उत्थान के लिये हिन्दू संस्कृति को बचाने का दिव्य कार्य कर रहे हैं । https://youtu.be/aTT-MIBPhoE




ईसाई धर्म का त्यौहार 25  दिसम्बर से 1 जनवरी के बीच में मनाया जाता है, जिसमें Festival के नाम पर शराब और कबाब का जश्न मनाना, डांस पार्टी आयोजित करके बेशर्मी का प्रदर्शन करना, पशुओं की हत्या करके उसका मांस खाना, सिगरेट, चरस आदि पीना यह सब किया जाता हैं जो कि भारतीय त्यौहारों के विरुद्ध है । ऐसा करना ऋषि-मुनियों की संतानों को शोभा नहीं देता है ।

रिपोर्ट के अनुसार- 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक
> 14 से 19 वर्ष के बच्चें शराब का जमकर सेवन करते हैं ।
> शराब की खपत तीन गुना बढ़ जाती है ।
>70% तक के किशोर इन पार्टियों में शराब का जमकर सेवन करते हैं ।
>आत्महत्याएं काफी बढ़ जाती हैं।

इन सबसे बचने का और संस्कृति व राष्ट्र को बचाने का अचूक उपाय निकाला है हिन्दू संत आशारामजी बापू ने !

देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से प्राणिमात्र का हित करने के लिए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने वर्ष 2014 से  25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक (7 दिवसीय) "विश्वगुरु भारत कार्यक्रम" का आयोजन चालू करवाया है उसमें तुलसी पूजन, जप-माला पूजन एवं हवन, गौ-गीता-गंगा जागृति यात्रा, राष्ट्र जागृति संकीर्तन यात्रा, व्यसनमुक्ति अभियान, योग प्रशिक्षण शिविर, विद्यार्थी उज्ज्वल भविष्य निर्माण शिविर, सत्संग आदि कार्यक्रमों का आयोजन उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में किया जाता है ।

2014 से 25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन दिवस' मनाना प्रारम्भ हुआ । इस पर्व की लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी ।

पिछले साल भी उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा 25 दिसंबर को देश-विदेश में बड़ी धूम-धाम से तुलसी पूजन मनाया गया था । जिसमें कई हिन्दू संगठनों और आम जनता ने भी लाभ उठाया था ।

ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस साल भी एक महीने से देश-विदेश में क्रिसमस डे की जगह 25 दिसंबर "तुलसी पूजन दिवस" निमित्त घर-घर तुलसी पूजन व वितरण किया जा रहा है ।

हिन्दू संत आशारामजी बापू का कहना है कि तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ता है । मानसिक अवसाद, दुर्व्यसन, आत्महत्या आदि से लोगों की रक्षा होती है और लोगों को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि-विज्ञान का लाभ मिलता है ।

उनका कहना है कि तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र और महत्त्वपूर्ण है । तुलसी को माता कहा गया है । यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है । तुलसी पूजन, सेवन व रोपण से आरोग्य-लाभ, आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी होते हैं ।

विदेशों में भी होता है तुलसी पूजन..!!

मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है । ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन ‘नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से देवल में चढ़ाई गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थी।

विज्ञान भी नतमस्तक..!!

आधुनिक विज्ञान भी तुलसी पर शोध कर इसकी महिमा के आगे नतमस्तक है । आधुनिक रसायनशास्त्रियों के अनुसार ‘तुलसी में रोग के कीटाणुओं को नाश करने की विशिष्ट शक्ति है । रोग-निवारण की दृष्टि से तुलसी महा औषधि है, अमृत है ।'

तुलसी पूजन की शास्त्रों में महिमा-

अनेक व्रतकथाओं, धर्मकथाओं, पुराणों में तुलसी महिमा के अनेकों व्याख्यान हैं । भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की कोई भी पूजा-विधि ‘तुलसी दल' के बिना परिपूर्ण नहीं मानी जाती ।

हिन्दू संत आशारामजी बापू के अनुसार अंग्रेजी नूतन वर्ष को मनाने हेतु शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार में गर्क होने से अपने देशवासी बच जाएं इस उद्देश्य से राष्ट्र जागृति लाने के लिए तथा विधर्मियों द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्रों के प्रति देशवासियों को जागरूक कर भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए व्यसनमुक्ति अभियान तथा राष्ट्रविद्यार्थी उज्ज्वल भविष्य निर्माण शिविर, जागृति संकीर्तन यात्राओं का आयोजन करें तथा देश के संत-महापुरुष एवं गौ, गीता, गंगा की महत्ता के बारे में जागृति लाएं ।

आपको बता दें कि हिन्दू संत आशारामजी बापू जोधपुर जेल में बंद हैं फिर भी उनके बताए अनुसार उनके करोड़ों अनुयायी आज भी समाज उत्थान के सेवाकार्य सुचार रूप से कर रहे हैं ।

हिंदुस्तानी संकल्प लें कि 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाना है । विदेशी कचरा हटाना है । सुसंस्कारों का सिंचन कराना है । भारतीय संस्कृति को अपनाकर, भारत को विश्वगुरू के पद पर आसीन करना है ।

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बलात्कार कानून और पॉक्सो एक्ट कानून का भयंकर दुरुपयोग

आज, जब भी हम 'समाचार पत्र'खोलते है तो हमें महिलाओं पर अत्याचार की हृदय द्रवित करने वाली घटनाएँ पढ़ने को मिलती है। इस से मन बहुत आहत होता है और शायद इसीलिए सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाए है जैसे कि पॉक्सो। इसकी नितांत आवश्यकता भी है।




हकीकत

पर इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है - वर्तमान में पाॅस्को जैसे अन्य महिला संरक्षण कानून के गलत इस्तेमाल से समाज की भारी हानि हो रही है। कुटिल एवम् धूर्त औरतें इसका हथियार की तरह उपयोग करके मनमाना उपयोग कर रही हैं। न्यायालय में फर्जी केसों की बाढ़ लगी है।

फर्जी केसेज़ की बहुतियात

हाल ही में दिल्ली में एक सर्वेक्षण के अनुसार रेप के आधे केस फर्जी होते हैं और बदला लेने की भावना से किए जाते है। जी हाँ, ये सच है जो की मानने के लिए थोड़ा मुश्किल है। 

लेकिन आंकडे बताते है कि कुछ मनचलन महिलाएँ पैसा ऐंठने, बदला लेने या सस्ती प्रसिद्धी पाने हेतु बड़ी-बड़ी हस्तियों पर झूठे,घिनौने आरोप मढ़ देती है।

कई जानी मानी हस्तियां जैसे स्वामी नित्यानंदजी, कृपालू जी महाराज पर झुठा यौन शोषण का केस किया गया जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में फर्जी साबित हुआ। ऐसे ही शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी पर भी लगाया गया हत्या का मामला झूठा साबित हुआ।
 
 आशय
कहने का तात्पर्य है की सम्मानित व्यक्ति पर भी ख़ुद के फायदे के लिए मनगढ़न्त आरोप लगाए जाते है, जिस में जस्टिस गोगोई को भी नहीं छोड़ा गया। इसी तरह Asaram Bapu को भी फंसाया गया है।

ऐसे ही एक संत ने आत्महत्या कर ली क्यूंकि उन्हें फिरौती ना देने पर रेप केस में फंसाने की धमकी मिली थी। कई निर्दोष आदमी, बदनामी होने के कारण आत्महत्या भी कर लेते है।

जनता का सवाल

तो सवाल ये उठता है क्या हमारे देश में नेक इंसान, संत या सर्वसाधारण आदमी सुरक्षित है?

मैं दोषियों को सजा देने के खिलाफ नहीं पर जो असल में निर्दोष है उन्हें झूठा फंसा कर सजा दिलवाना क्या उचित है?

उपाय

इसीलिए पॉक्सो एवम् रेप लॉ में संशोधन जरूरी है ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा ना मिले। वाकई में अगर एक सुदृढ़ समाज का निर्माण करना है तो हमें इन सब बातों का ख्याल रखना होगा जो समाज को कमजोर ना कर सके।

रेणुका हरने
पुणे महाराष्ट्र

महिला सुरक्षा कानून का दुरुपयोग चरम सीमा पर...

 माना कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्र व समाजहित में बलात्कार कानून की अत्यंत आवश्यकता है पर उसका उचित प्रयोग और पालन भी आवश्यक है। परंतु इस कानून में अनेकों अपभ्रंश है जिसे नकारा नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे तथ्य भी सामने आ रहे हैं कि इस कानून का दुरुपयोग कर कई निर्दोष, सामाजिक, प्रतिष्ठासम्पन्न व्यक्तियों या सामान्य नागरिकों पर झूठे आरोप दर्ज करायें जा रहे हैं और आरोप मात्र से बिना किसी सबूत या जांच के जेल भेजने की कार्रवाई भी हो रही है। ऐसे कृत्य में असामाजिक तत्वों की संलिप्तता है जो रंजिशवश, बदले की भावना से या पैसे ऐंठने के लिए किसी निर्दोष पर झूठे आरोप लगाकर बेहिचक जेल की सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं। किसी निर्दोष को फंसाने में इन्हें कोई न शर्म महसूस होती है और न ही आत्मग्लानि होती है। इनका एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना होता है।




बलात्कार कानून के अनियमितता एवं अपभ्रंशता पर स्वयं महिला जज निवेदिता शर्मा ने कहा है कि वर्तमान बलात्कार कानून में झूठे आरोपों में फंसे पुरुषों को भी बचाने का कोई प्रावधान नहीं है। और भी कई  कानून के जानकार, न्यायविद् एवं अधिवक्ताओं का मानना है कि वर्तमान बलात्कार कानून में अनेकों अनियमितताएँ हैं - यह कानून एकतरफा है।

किसी भी राष्ट्र में महिला एवं पुरुष समाज के अभिन्न अंग होते हैं। एक दूसरे के बिना सामाजिक विकास की कल्पना कपोल कल्पित है। महिला एवं पुरुष दोनों की अथक परिश्रम एवं योगदान से स्वस्थ, सुंदर एवं गौरवपूर्ण राष्ट्र का निर्माण होता है। यदि इस प्रकार बलात्कार कानून को एकतरफा बनाया गया है तो उसकी वजह से पुरुष वर्ग के साथ महा अन्याय एवं राष्ट्रीय विघटन की कल्पना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है।  कानून निर्माताओं से इस पहलू पर भूल क्यों हुआ कि जब किसी निर्दोष को बलात्कार कानून का मोहरा बनाया जाएगा तो उसके साथ उसका पूरा परिवार, रिश्तेदार सभी बिखर जाएंगे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी, उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा आदि आदि...

इसी वर्तमान बलात्कार कानून की वजह से भारतीय संस्कृति की गरिमा की रक्षा करने वाले, देशहित में अनेकों महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विश्व सुप्रसिद्ध संत श्री आशाराम जी बापू पर मिथ्या आरोप लगाकर उनको कारावास में डाला गया है जबकि उन्हें मेडिकल रिपोर्ट में क्लीनचिट मिली हुई है एवं उनके निर्दोषिता के अनेक प्रमाणित सबूत न्यायालय में पेश किए गए हैं फिर भी 7+ वर्ष हो गए अभी तक उन्हें उचित न्याय नही दिया जा रहा है न ही जेल से मुक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार स्वामी नित्यानंद जी, कृपालु जी महाराज एवं नामी-अनामी कई निर्दोषों को भी मिथ्या आरोप में कानूनी यातनाएं सहनी पड़ी है। 

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर भी यौन शोषण का आरोप लगा था हालांकि विशेष सेलिब्रिटी एवं राष्ट्रीय गरिमा को देखते हुए साजिश है कहकर उनका केस खारिज कर दिया गया। अब प्रश्न यह है उठता है कि जब कोई जज जैसे विशेष सेलिब्रिटी पर आरोप लगता है तो साजिश है कहकर केस खारिज कर दिया जाता है तो फिर करोड़ों लोगों को धर्म के मार्ग पर प्रशस्त कर व्यसन छुड़ाने वाले उनके जीवन में आशातीत परिवर्तन लाकर सच्चाई के मार्ग पर चलाने वाले निर्दोष संतो के मामले में न्याय व्यवस्था की उत्तरदायित्व रखने वाले अर्थात न्याय व्यवस्था संचालन करने वालों की कदाचित निष्क्रियता आखिर क्यों?

इन सब कारणों का अवलोकन करने से राष्ट्र की गरिमा को सुदृढ़ करने एवं राष्ट्रहितैषी सन्तों की रक्षा करने हेतु एक तथ्य सामने आ रहा है कि वर्तमान एकतरफा बलात्कार कानून पर आवश्यक संशोधन के साथ देश में पुरुष आयोग की स्थापना एकमात्र विकल्प है।

बसन्त कुमार मानिकपुरी 
स्थान - पाली (कोरबा)
छत्तीसगढ़

Tuesday, December 8, 2020

साल 2002 में आज ही गौमूत्र को अमेरिका ने करवा लिया था पेटेंट..

08 दिसंबर 2020


इसको बुद्धिहीनता माना जाय, विडम्बना कही जाय या विदेशी शक्तियों की कोई सोची समझी साजिश.. गाय की रक्षा के मुद्दे को जहाँ तथाकथित आधुनिकता की धारा में बह रहे लोग पिछड़ी सोच वाले उन्मादी बता रहे हैं तो तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड सवाल करती है कि क्या गाय इंसानों से ऊपर हो गयी है ..




वामपंथी विचारधारा के लोग जो बाबरी में पूर्ण आस्था रखते हैं पर श्रीरामजन्मभूमि के नाम से बिदकते हैं उनके लिए तो गौ रक्षा किसी आतंकवाद से कम नहीं है.., इतना ही नहीं, देश पर सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने तो गौ सेवा के साथ मॉब लिंचिंग जैसे शब्द भी जोड़ डाले जिसमें पीड़ित केवल एक पक्ष और पीड़ा देने वाला एक वर्ग घोषित किया गया है ..

भारत के एक तथाकथित शांतिप्रिय समूह के वोट के लिए ये सब कुछ चलता रहा और अगर हिन्दू समाज पर सबसे ज्यादा आघात किया गया तो वो गाय को सामने रख कर ..इस गाय की सेवा, रक्षा करने का आदेश हिंदुओं के शास्त्रों में भी है लेकिन उन पावन ग्रंथों को कपोल कल्पित किताबे बता दिया गया .. 

लेकिन ग्रन्थ और वैज्ञानिकता बार बार कहती रही कि गाय इंसानों के लिए एक ईश्वरीय वरदान के समान है जिसका संरक्षण और संवर्धन जरूरी है। एक स्वस्थ समाज के लिए.. कुछ प्रदेशो में गाय की रक्षा के लिए कानून भी बने पर उसको लगातार चुनौती मिलती रही गौ हत्यारो की तरफ से.. 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इसका जीवंत प्रमाण है और बाकी जिलो में जारी गौ तस्करी भी श्रद्धा और संविधान को सीधी चुनौती मानी जा सकती है ..सवाल ये है कि इंसान के सर्वोपरि होने का क्या ये मतलब है कि वो जिसे चाहे मार कर खा जाए ? क्या धन धान्य से भरी इस श्यामला धरती पर कुछ लोग बिना गौ मांस खाये रह नहीं सकते ?

किस डॉक्टर का वो कौन सा पर्चा है जिसमे गौ मांस जरूरी बताया गया है ..यदि किसी नवजात बच्चे की माँ नहीं है या उसको दूध पिलाने में सक्षम नहीं है तो डॉक्टरों के निर्देश पर उसको गाय का दूध पिला कर पाला जा सकता है .. इसीलिए गाय को मां भी कहा जाता है..

लेकिन दूध ही नहीं गौ मूत्र भी इंसानों के लिए अमृत है इसको आज ही के दिन अमेरिका ने 17 साल पहले ही मान लिया था और 2002 में गौ मूत्र को औषधि के रूप में बनाने के लिए बाकायदा पेटेंट भी करवा लिया था .. भारत मात्र गौ मांस के लोभियों और स्वघोषित सेकुलरों के दबाव में पीछे रह गया था जिन्होंने तथाकथित आधुनिक लोगों के दिमाग मे ये भर दिया था कि गौ रक्षा पुरानी विचारधारा के उन्मादी लोगों का कार्य है ..

अमेरिका ने 8 दिसम्बर 2002 को जिस गौ मूत्र को अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक औषधि मान मात्र 17 साल पहले पहचान कर कर पेटेंट करवाया था, उसको हिंदुओं के शास्त्र, ग्रन्थ और वेद लाखों वर्ष पहले ही लिख कर गए थे..

रामायण में प्रभु श्रीराम के समय से भी पहले गौ रक्षा व गौ सेवा का आदेश वेदों में सनातनियो को मिला है पर वो भारत मे विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित वर्ग के कहने में आ गए और गंवा बैठे अपने ही पुरखों द्वारा मिली हुई अनमोल धरोहर को..

भारत की पारंपरिक जैव संपदा नीम, हल्दी और जामुन के बाद अब गोमूत्र को भी अमरीकी वैज्ञानिकों ने शक्तिवर्धक दवा के स्रोत के रूप में आज ही के दिन अर्थात 2002 को पेटेंट कर लिया था.. ऐसे ही नही वो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बना जो ओलंपिक आदि में सबसे ज्यादा पदक प्राप्त करता है ..

भारत की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार तब वामपंथी सोच व तब विपक्ष से तालमेल बनाती ही रह गयी लेकिन उतनी देर में अपना नफा नुकसान समझते हुए अमेरिका ने इसे पेंटेट कर लिया। वैदिक काल अर्थात प्राचीन समय से ही गोमूत्र को पंच गव्य का हिस्सा माना जाता रहा है और इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक औषधियों के निर्माण में किया जाता था।

पंचगव्य में गाय का दूध, दही, घी, गोबर के साथ गोमूत्र को भी शामिल किया गया है ।अमरीका द्वारा इसे पेटेंट किए जाने से यह बात अब पूरी तरह प्रमाणिक हो चुकी है कि इसमें मनुष्य को दीर्घायु बनाने वाले तत्व मौजूद हैं। गोमूत्र के पहले नीम हल्दी और जामुन को अमरीका मे पेटेंट किए जाने को लेकर देश में तब हिंदूवादी समूहों ने विरोध दर्ज करवाया था क्योंकि गाय के समान हिन्दू नीम को भी देव मान कर उसको जल आदि चढ़ाते थे..

लेकिन उन्हें पुरानी सोच वाला बताया गया और आखिरकार गाय के साथ नीम भी अमेरिका ने पेटेंट करवा कर वामपंथी सोच व गौ हत्यारो की विचारधारा वालों के मंसूबे सफल कर दिए थे .. इसमें कोई आश्चर्य नहीं की कल कोई ये कुतर्क दे कि क्या हवा इंसानों से बढ़ कर है, इसलिए हवा बन्द करो, क्या पानी इंसानों से बढ़ कर है , इसलिए पानी बन्द करो..

ये वही कुतर्क हैं जिनके चलते गाय भारत की धरोहर होते हुए भी भारत के हाथों से निकल कर अमेरिका के पास चली गयी.. भारत मे तो एक शासन में गौ रक्षा की मांग करने वाले सन्तो पर गोलियां बरसा दी गयी थीं जिसके लिए आज तक किसी ने न्याय की या सज़ा की मांग नहीं की थी .. 

8 दिसम्बर को इतिहास द्वारा नीम और गाय के महत्व को याद दिलाते हुए सभी गौ रक्षको व गौ सेवकों को साधुवाद है जिनके संघर्षों के चलते अभी भी थोड़े बहुत गौ वंश बचे हुए हैं और देश मे एक छोटा सा ही सही पर एक वर्ग गाय, नीम आदि को देवतुल्य मान कर बचाये हुए है...।

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