Tuesday, February 16, 2021

हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं?

16 फरवरी 2021


हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?




यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।

वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-

1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा

हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।

2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-

मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।

ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।

3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।

4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-

हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।

5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-

हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे?  इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।

आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि  द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या  किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, February 15, 2021

माँ सरस्वती का प्रकटस्थल पर आज भी कब्जा किया हुआ है, पढ़ी जाती है नमाज

15 फरवरी 2021


इस्लामी आक्रमणकारियों ने जिस प्रकार से अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि, मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को बलपूर्वक ले लिया था , उसी प्रकार का प्रयत्न वे धार (मध्यप्रदेश) की भोजशाला के विषय में कर रहे हैं । भोजशाला, अर्थात विद्या की देवी सरस्वती का प्रकटस्थल ! अपने अनेक प्रकार की विद्याओं का जनक भारतीय विश्वविद्यालय ! महापराक्रमी राजा भोज की तपोभूमि ! इस सरस्वतीदेवी के मंदिर में आज प्रत्येक शुक्रवार को ‘नमाज’ पढ़ी जाती है । हजारों वर्ष से चल रहा इस भोजशाला मुक्ति का संघर्ष आज भी जारी है । अधर्मी शासन मतों की तुष्टीकरण राजनीति से प्रेरित होकर हिन्दुओं के आस्था केंद्रों की उपेक्षा कर रहा है ।




सरस्वती देवी की प्रकटस्थली, अर्थात वाग्देवी मंदिर का इतिहास:

‘पूर्वकाल में मालवा राज्यके (वर्तमान मध्यप्रदेश के) परमार वंश में महापराक्रमी और महाज्ञानी राजा भोज (शासनकाल वर्ष 1010 से 1065) हुए । इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सरस्वती देवी ने उन्हें दर्शन दिए थे ।  तत्पश्चात, राजा भोज ने सुप्रसिद्ध मूर्तिकार मनथल द्वारा संगमरमर पत्थर से देवी की शांतमुद्रा में मनमोहक मूर्ति बनवाई । राजा भोज को जिस स्थानपर वाग्देवी के अनेक समय दर्शन हुए थे, उसी स्थानपर इस मूर्ति की स्थापना की गई।

केवल सरस्वती देवी प्रकटस्थली नहीं, अपितु भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय !

राजा भोज ने ‘सरस्वतीदेवी की उपासना’, ‘हिन्दू जीवनदर्शन’ एवं ‘संस्कृत प्रसार’के लिए वर्ष 1034 में धार में भोजशाला का निर्माण किया । इस भोजशाला में भारतका सबसे बडा विश्वविद्यालय और विश्व  प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र बना । इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के 1 हजार 400 विद्वानों ने अध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद चिकित्सा, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन इत्यादि विषयों का ज्ञान प्राप्त किया था । इसके अतिरिक्त इस विद्यालय में वायुयान, जलयान, चित्रकशास्त्र (कैमरा), स्वयंचलित यंत्र इत्यादि विषयों में भी सफल प्रयोग किए गए थे । एक हजार वर्षपूर्व राजा भोजके किए हुए कार्य को भारतीय शासकों ने दुर्लक्षित किया था, किंतु आज भी विश्व उसे आश्चर्यभरी दृष्टिसे देख रहा है । इस विषय में संसार के 28 विश्वविद्यालयों में अध्ययन और प्रयोग किए जा रहे हैं ।

राजा भोज के राज्य की अखंडता पर कपट से आघात करनेवाला कमाल मौलाना’

राजा भोज के असामान्य कर्तृत्व के कारण उनके राज्यपर आक्रमण करने का साहस किसी को नहीं होता था । उनकी मृत्यु के लगभग 200 वर्ष पश्चात, इस राज्य की अखंडता पर पहला आघात किया सूफी संत के रूप में घूमनेवाले कमाल मौलाना ने ! वर्ष 1269 में मालवा में आए इस मौलाना ने यहां 36 वर्ष रहकर राज्य के तथा यहां के सर्व गुप्त मार्गों की जानकारी एकत्र की । इस काल में उसने इस्लाम का प्रचार, तंत्र-मंत्र, जादूटोना, गंडा-डोरा का योजनाबद्ध प्रयोग कर सैकडों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया । इस स्थिति का अनुचित लाभ उठाते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा राज्य पर आक्रमण कर दिया ।

वाग्देवी की मूर्ति का अंगभंग करनेवाला अलाउद्दीन खिलजी 

अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1305 में मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया । यह आक्रमण रोकने के लिए राजा महलकदेव और सेनापति गोगादेव जी-जान से लड़े । भोजशाला के आचार्यों और विद्यार्थियों ने भी खिलजी की सेना का प्रतिकार किया । किंतु, इस युद्ध में वे पराजित हुए । खिलजी ने 1200 विद्वानों को बंदी बनाकर इनके समक्ष प्रस्ताव रखा -‘इस्लाम धर्म अपना लो’ अथवा ‘मृत्यु’के लिए तैयार हो जाओ । उसने, मुसलमान बनना अस्वीकार करनेवालों की हत्या कर उनके शवों को भोजशाला के यज्ञकुंड में फेंक दिया तथा जिन लोगों ने मृत्युसे भयभीत होकर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया, ऐसे कुछ मुट्ठी भर लोगों को विष्ठा स्वच्छ करने के कार्य में लगा दिया । खिलजी ने भोजशाला सहित हिन्दुओं के अनेक मानबिंदु स्थानों को उद्ध्वस्त किया । उसने वाग्देवी की मूर्ति का भी अंग-भंग किया तथा मालवा राज्य में इस्लामी शासन आरंभ किया ।

श्री सरस्वती मंदिर के कुछ भाग का मस्जिद में रूपांतर

खिलजी के पश्चात गोरी ने वर्ष 1401 में मालवा राज्य को अपना राज्य घोषित किया तथा सरस्वती मंदिर का कुछ भाग मस्जिद में रूपांतरित कर दिया ।

भोजशाला को मस्जिद में बनाने के लिए उसे खंडित करने का प्रयत्न

गोरी के पश्चात महमूदशाह खिलजी ने वर्ष 1514 में भोजशाला को खंडित कर वहां मस्जिद बनाने का प्रयत्न किया । महमूदशाह के इस कुकृत्य का राजपूत सरदार मेदनीराय ने प्रबल प्रत्युत्तर दिया । इस प्रत्युत्तर की विशेषता यह थी कि महमूदशाह को चुनौती देने के लिए सरदार मेदनीराय ने मालवा राज्य के वनवासियों को प्रेरित किया । धर्मयुद्ध की प्रेरणा से संगठित वनवासियों की सहायता से मेदनीराय ने महमूदशाह के हजारों सैनिकों को मार डाला तथा 900 सैनिकों को बंदी बना लिया । अंततः, इस पराजय से भयभीत महमूदशाह ने गुजरात पलायन किया ।

महमूदशाह तो भाग गया; किंतु कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष पश्चात उसने अपने शासनकाल में, भोजशाला की बाहरी भूमिपर अवैध अधिकार कर वहां पर उसकी कब्र बना दी । यह कब्र आज भी हिन्दुओं के लिए सिरदर्द बनी हुई है । आज इस कब्र के आधारपर देवी सरस्वती के मंदिर को कमाल मौलाना की मस्जिद बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।  प्रत्यक्ष में वर्ष 1310 में कमाल मौलाना की मृत्यु के पश्चात उसे कर्णावती (अहमदाबाद), गुजरात में दफना दिया गया ।

हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर मंदिर को मस्जिद में रूपांतरित

सैकड़ों वर्ष से आरंभ भोजशाला पर आक्रमण के इतिहास में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, 12.5.1997 को एक नया मोड़ आया, जब कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक अध्यादेश जारी कर अपना हिन्दूद्वेष प्रकट किया । इस अध्यादेश के अनुसार भोजशालाकी सर्व प्रतिमाओं को हटा दिया गया । वहां हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया । दिग्विजय सिंह का हिन्दूद्वेष इतने पर ही नहीं थमा, उन्होंने भोजशाला को मस्जिद होने की मान्यता दे डाली । उन्होंने, भोजशाला की रक्षा हेतु पराक्रमी हिन्दू राजाओं के और सैनिकों के बलिदान का अनादर करते हुए भोजशाला मुसलमानों को दे डाली । भोजशाला में नमाज पढने की अनुमति देकर उसे भ्रष्ट भी किया गया । इस अध्यादेश से पूर्व भोजशाला में हिन्दुओं की पूजा-अर्चनापर प्रतिबंध था; परंतु प्रवेश की अनुमति थी । यह अनुमति भी इस अध्यादेशद्वारा समाप्त कर दी गई । हिन्दुओं को वर्ष में केवल एक दिन वसंत पंचमीपर विविध प्रतिबंधात्मक नियमों के साथ भोजशाला में प्रवेश की अनुमति दी गई ।

वर्ष 2002 में तो हिन्दुओं को वर्ष में एक दिन दी गई भोजशाला प्रवेश की अनुमति में भी बाधा डाली गई । इस वर्ष की वसंत पंचमी समीप आनेपर कमाल मौलाना के जन्मदिन को निमित्त बनाकर भोजशाला में नमाज, कव्वाली और लंगर का आयोजन किया गया । तत्कालीन कांग्रेसी शासनने भी हिन्दुओंपर पहलेसे अधिक कडा नियम बनाकर धर्मांधों को  प्रोत्साहित किया । इस परिवर्तित नियम के अनुसार वसंत पंचमी के दिन हिन्दुओं को दिनके 1 बजेतक ही पूजा-अर्चना करने की तथा मंदिर में अकेले प्रवेश करने की अनुमति दी गई । सबके लिए एक ढोलक, एक ध्वनिक्षेपक और ध्वज भी एक होगा । दोपहर 2 बजे के पश्चात मुसलमानोंका कव्वाली और लंगर का कार्यक्रम आरंभ होगा, यह आदेश प्रशासन ने जारी किया ।

संघर्ष करनेवाले हिन्दुओं पर किए गए अगणित अत्याचार

हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन करनेवाले प्रशासनिक आदेशको अमान्य कर हजारों हिन्दू भोजशाला में पूजा करने आए । उस दिन राजकीय अवकाश होनेके कारण हिन्दुओंको अपनी न्यायोचित मांगोंके लिए भी कोई मंच उपलब्ध नहीं था । हिन्दूद्वेषी शासकोंके आदेशसे पुलिस कर्मियोंने यज्ञ करने भोजशालामें जानेवाले युगलोंको रोका, गालियां दी तथा महिलाओंके हाथसे पूजाकी थाली छीनकर फेंक दी । हिन्दुओंको धक्के मारकर पीछे ढकेला तथा बिना कोई पूर्वसूचना दिए श्रद्धालुओंपर लाठी प्रहार किया । यह सब सहकर भी हिन्दुओंने कठोर विरोध करते हुए भोजशालामें यज्ञ और सरस्वतीदेवीकी महाआरती पूर्ण की । हिन्दुओंके इस सफल कृत्यसे क्रुद्ध कांग्रेसी राज्यशासनने देवीकी पूजा करनेके अपराधमें 40 कार्यकर्ताओं पर पुलिसकी दैनंदिनीमें असत्य आरोप प्रविष्ट किए । शासनकी इस दमननीतिका प्रत्युत्तर देनेके लिए हजारों लोगोंने धार जनपदके सर्व पुलिस थानोंका घेराव कर अपने आपको बंदी बनवाया । तत्पश्चात, सत्याग्रहके रूपमें प्रत्येक मंगलवारको भोजशालाके बाहर मार्गमें आकर ‘सरस्वती वंदना’ और ‘हनुमान चालीसा पढना’ प्रारंभ किया गया ।

संगठन खड़ा करनेवाले धर्माभिमानी हिन्दू

कांग्रेसी शासन की दमननीति का अनुभव करनेवाले हिन्दुओं ने किसी भी परिस्थितिमें वर्ष 2003 तक भोजशाला हिन्दुओंके लिए मुक्त करनेके उद्देश्यसे व्यापक जनजागरण कर ‘धर्मरक्षक संगम’ सभा आयोजित करनेका निश्चय किया । इन सभाओंको व्यापक जन समर्थन मिलता देखकर घबराए दिग्विजय सिंह शासनने ‘धर्मरक्षक संगम’ को विफल बनानेके लिए प्रयत्न आरंभ कर दिए । कांग्रेसी शासनने अत्यंत निम्नस्तरपर जाकर निम्नानुसार दुष्टताका हथकंडा अपनाकर हिन्दुओंके संगठनमें बाधाएं उपस्थित करनेका प्रयत्न किया।

1 शासन ने, इस कार्यक्रम के प्रचार के लिए चिपकाए गए 20 हजार भित्ति-पत्रकोंको पुलिसकर्मियोंके हाथों फडवा दिया अथवा उनपर कोलतार पोतवा दिया ।

2. वसंत पंचमी समीप आनेपर ही राज्य शासनने ‘ग्राम संपर्क  अभियान’ आरंभ कर उसमें 19 हजार हिन्दू राजकीय सेवकों को नियुक्त किया ।

3. ‘धर्मरक्षक संगमके कार्यक्रममें उपद्रव एवं बमविस्फोट होंगे’,यह भय फैलाकर लोगों को कार्यक्रम में जाने से रोका ।

4. वसंत पंचमीके केवल पांच दिन पूर्व धारस्थित सर्व धर्मशाला, पाठशाला, ‘लॉज’ और बसगाडियोंको अधिगृहीत कर लिया गया तथा निजी वाहनवालोंको धमकाया ।

5. गांवोंमें 5 हजार सैनिकोंका पथसंचलन (परेड) करवाकर भयका वातावरण उत्पन्न किया ।

6. वसंत पंचमीके दिन राज्यशासनने 16 केंद्रोंमें 32 विभागोंसे संबंधित जनसमस्याओंका निवारण करनेके लिए शिविरोंका आयोजन किया । इस शिविरमें प्रस्तुत की गई सभी समस्याओंका निवारण तुरंत किया, जिन्हें पहले करनेमें अनेक फेरे मारने पडते थे । इसी प्रकार, इस शिविरमें हजारों लोगोंको निःशुल्क भोजन दिया ।

कांग्रेसी शासन के उपर्युक्त हिंदुद्रोही षड्यंत्र को विफल करते हुए 1 लाख से अधिक हिन्दू धर्माभिमानी ‘धर्मरक्षा संगम’में उपस्थित हुए थे । इस सभामें शासनको चेतावनी दी गई कि वह भोजशालाको हिन्दुओंके लिए प्रतिबंधमुक्त करे । इस आंदोलनकी तीव्रता देखकर तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक मंत्री श्री. जगमोहनने भोजशालाको प्रतिबंधमुक्त करनेके लिए मध्यप्रदेशके मुख्यमंत्रीको पत्र लिखा था । तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंहने इस पत्र को कूड़े के डिब्बे में फेकते हुए भोजशालाको कमाल मौलानाकी मस्जिद घोषित कर वहां पूजा करने जानेवाले हिन्दुओंको कारागृहमें डाल दिया तथा उन्हें जानसे मारनेकी धमकी भी दी । यह शासन इतनेपर ही नहीं रुका; उसने पुलिसबलका प्रयोग कर हिन्दुओंका दमन आरंभ कर दिया । इन सर्व अत्याचारोंमें भी अडिग रहकर हिन्दुओंने संगठित होकर जो संघर्ष किया, उसके परिणामस्वरूप 698 वर्ष पश्चात 8.4.2003 को प्रतिदिन दर्शन और प्रत्येक मंगलवारको केवल अक्षत-पुष्पके साथ भोजशालामें प्रवेशको स्वीकृति दी गई । भोजशाला सरस्वती देवीका मंदिर है, यह शासनने स्वीकार किया । वर्षमें केवल वसंतपंचमीपर कुछ प्रतिबंधोंके साथ पूजा करनेकी अनुमति दी गई । दूसरी ओर मुसलमानोंको प्रति शुक्रवार नमाज पढनेकी अनुमति दी गई, जो आजतक चल रही है ।

हिन्दुओं के वसंत पंचमी के उत्सव में नमाज पढ़ने की अनुमति

वर्ष 2003 के पश्चात थोडी-थोडी स्वीकृत मांगोंको मानकर हिन्दू भोजशालामें दर्शनके लिए जाने लगे थे । वर्षमें एक ही दिन वसंत पंचमीको उन्हें वास्तविक अर्थोंमें भोजशालामें विधि-विधानसे पूजा-अर्चना करनेकी अनुमति थी । वर्ष 2006 में शुक्रवारको ही वसंत पंचमी आनेके कारण हिन्दुओंने राज्यशासनसे मांग की कि आजके दिन यहां नमाज न पढने दी जाए, केवल हिन्दुओंको पूजाकी अनुमति मिले, जिसे शासनने अमान्य कर दिया । भारतीय जनता पार्टीके मुख्यमंत्री शिवराज सिंहने मुसलमानोंको संतुष्ट रखनेके लिए तथा अपने दलकी धर्मनिरपेक्ष छवि बनानेके लिए भोजशालाकी यज्ञाग्नि बुझाकर मुसलमानोंको नमाज पढनेकी अनुमति दी । भाजपा नेताओंने हिन्दुओंको फुसलाकर भोजशाला खाली करवाई । दूसरी ओर संत और उपस्थित हिन्दुओंपर गोलियां बरसा कर उन्हें वहांसे भगा दिया गया । इस मार-पीटमें 74 हिन्दू गंभीर रूपसे घायल हुए । हिन्दुओंको पीटनेके साथ-साथ 164 हिन्दुओंपर हत्याके प्रयत्न करनेका अपराध भी प्रविष्ट कर दिया । वहीं, मुसलमानोंको पुलिसके वाहनोंमें बैठाकर वहां नमाज पढनेके लिए सब प्रकारसे सहायता की ।

सरस्वती देवीको बंदीगृहमें रखनेवाले भाजपाके मुख्यमंत्री !

वर्ष 2006 के पश्चात पुनः वर्ष 2011 में भाजपा शासनका हिन्दूद्वेषी रूप दिखा । राजा भोजकी जन्मशताब्दीपर धारके हिन्दुओंने सरस्वती देवीकी भव्य पालकी यात्रा आयोजित की थी । ‘लंदनके संग्रहालयमें रखी वाग्देवीकी मूर्तिको लाकर भोजशालामें स्थापित करूंगा’, ऐसी गर्जना करनेवाले; किंतु सत्तामदसे उन्मत्त भाजपाने मंदिरमें स्थापित वाग्देवीकी नवीन मूर्तिका अधिग्रहण कर बंदीगृहमें डाल दिया; पालकी यात्राके समारोहपर प्रतिबंध लगा दिया एवं इस समारोहका आयोजन करनेवाले कार्यकर्ताओंको भी कारागृहमें डाल दिया । इन कुकृत्योंका जब हिन्दुओंने तीव्र विरोध किया, तब यह मूर्ति हिन्दुओंको हस्तांतरित कर कार्यकर्ताओं को कारागृह से मुक्त किया गया ।

षड्यंत्र में सम्मिलित न होने वाले हिन्दुत्ववादियों को यातनाएं

वर्ष 2012 में भाजपा शासनने पुनः वसंत पंचमीके पूर्व वाग्देवीकी मूर्तिको बंदीगृहमें डालकर सरस्वती जन्मोत्सवपर प्रतिबंध लगा दिया । शासनके इस कृत्यका असमर्थन करनेवाले संघ कार्यकर्ताओंके परिजनोंकी दुर्दशा की गई । तब मूर्तिको कारागृहसे मुक्त करनेके तथा जन्मोत्सवके लक्ष्यसे प्रेरित हिन्दुओंने आमरण अनशन प्रारंभ किया । लोकतंत्रद्वारा स्वीकृत अनशनसमान शांतिपूर्ण मार्गसे होनेवाले आंदोलनको भी शासनने कुचल दिया । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति https://www.hindujagruti.org/hindi/news/1140.html

हिंदुस्तान में भी हिंदुओं को अपने मदिरों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है बड़ी शर्म की बात है, सरकार को चाहिए कि हिंदुओं को अपने मंदिरों को वापिस कर देना चाहिए।

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, February 13, 2021

मातृ-पितृ पूजन का इतिहास एवं माँ-बाप की महिमा, कैसे करें मातृ-पितृ पूजन?

13 फरवरी 2021


एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनों पुत्रों में होड़ लगी कि, कौन बड़ा?
निर्णय लेने के लिए दोनों गय़े शिव-पार्वती के पास। शिव-पार्वती ने कहाः जो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बड़प्पन माना जाएगा।




कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर निकल गये पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणपति जी चुपके-से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया। जो ध्यान करते हैं, शांत बैठते हैं उन्हें अंतर्यामी परमात्मा सत्प्रेरणा देते हैं। अतः किसी कठिनाई के समय घबराना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का ध्यान करके थोड़ी देर शांत बैठो तो आपको जल्द ही उस समस्या का समाधान मिल जायेगा।
फिर गणपति जी आये शिव-पार्वती के पास। माता-पिता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर बिठाया, पत्र-पुष्प से उनके श्रीचरणों की पूजा की और प्रदक्षिणा करने लगे। एक चक्कर पूरा हुआ तो प्रणाम किया.... दूसरा चक्कर लगाकर प्रणाम किया.... इस प्रकार माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर ली।
शिव-पार्वती ने पूछाः वत्स! ये प्रदक्षिणाएँ क्यों की?
गणपतिजीः सर्वतीर्थमयी माता... सर्वदेवमयो पिता... सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है, यह शास्त्रवचन है। पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। पिता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ कर लीं हैं। तब से गणपति जी प्रथम पूज्य हो गये।
शिव-पुराण में आता हैः
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।।
"जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है।"
"प्रेम दिवस जरूर मनायें लेकिन प्रेम दिवस में संयम और सच्चा विकास लाना चाहिए।" वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन मनाना चाहिए। बता दे कि साल 2006 से वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू किया था आज करोडों लोगों द्वारा मनाया जा रहा हैं।

14 फरवरी को माता-पिता के पूजन की विधिः

माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बिठायें।
आसने स्थापिते ह्यत्र पूजार्थं भवरोरिह।
भवन्तौ संस्थितौ तातौ पूर्यतां मे मनोरथः।।

अर्थात् ʹहे मेरे माता पिता ! आपके पूजन के लिए यह आसन मैंने स्थापित किया है। इसे आप ग्रहण करें और मेरा मनोरथ पूर्ण करें।ʹ

बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें। तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प एवं अक्षत रखें तथा फूलमाला पहनायें। अब माता-पिता की सात परिक्रमा करें। इससे उऩ्हें पृथ्वी परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को झुककर विधिवत् प्रणाम करें।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात् जो माता पिता और गुरु जनों को प्रणाम करता है और उऩकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं। (मनुस्मृतिः 2.121)

आरतीः बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरु में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ़ संकल्प करें।

दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोઽस्तु ते।।
(आरती की तर्ज -  ૐ जय जगदीश हरे....)
ૐ जय जय मात-पिता, प्रभु गुरु जी मात-पिता।
सदभाव देख तुम्हारा-2, मस्तक झुक जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
कितने कष्ट उठाये हमको जनम दिया, मइया पाला-बड़ा किया।
सुख देती, दुःख सहती-2, पालनहारी माँ।। ૐ जय जय मात-पिता...
अनुशासित कर आपने उन्नत हमें किया, पिता आपने जो है दिया।
कैसे ऋण चुकाऊँ -2, कुछ न समझ आता।। ૐ जय जय मात-पिता..
सर्वतीर्थमयी माता सर्व देवमय पिता, ૐ सर्वदेवमय पिता।
जो कोई इनको पूजे-2, पूजित हो जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
मात-पिता की पूजा गणेश जी ने की, श्रीगणेश जी ने की।
सर्वप्रथम गणपति को-2, ही पूजा जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
बलिहारी सदगुरु की मारग दिखा दिया, सच्चा मारग दिखा दिया।
मातृ-पितृ पूजन कर – 2, जग जय जय गाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
मात-पिता प्रभु गुरु की आरती जो गाता, है प्रेम सहित गाता।
वो संयमी हो जाता, सदाचारी हो जाता, भव से तर जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
लफंगे-लफंगियों की नकल छोड़, गुरु सा संयमी होता, गणेश सा संयमी होता।
स्वयं आत्मसुख पाता-2, औरों को पवाता।। ૐ जय जय मात-पिता..

इस समय माता-पिता अपने बच्चों को सिर पर हाथ रखकर स्नेहमय आशीष बरसायें एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें- "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो। तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरु की भक्ति से महक उठे। तुम्हारे कर्मों में धर्म, सज्जनता और कुशलता आये। तुम त्रिलोचन बनो – तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी, विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो। तुम पुरुषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे।ʹ
आयुष्माण भव – ʹतुम दीर्घायु बनोʹ। श्रद्धावान भव – ʹतुम श्रद्धावान बनो।ʹ विद्यावान भव ʹतुम विद्यावान बनो।ʹ ब्रह्मविद् भव - ʹतुम ब्रह्मवेत्ता बनो।ʹ

यही है असली प्रेम दिवस ! ईस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें कि ʹमैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी। उन्हें रोज प्रणाम करूँगा/करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उऩकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी।

बच्चे बच्चियाँ माता-पिता को मधुर प्रसाद खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें।


शास्त्र-वचनामृत

यन्मातापितरौ वृत्तं तनये कुरुतः सदा।
न सुप्रतिकरं तत्तु मात्रा पित्रा च यत्कृतम्।।
'माता और पिता पुत्र के प्रति जो सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं, उपकार करते हैं, उसका प्रत्युपकार सहज ही नहीं चुकाया जा सकता है।'
(वाल्मीकि रामायणः 2.111.9)
माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा।
'माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक है और पिता आकाश से भी ऊँचे (श्रेष्ठ) हैं।'
(महाभारत, वनपर्वणि, आरण्येव पर्वः 313.60)
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
'जो माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम करता है और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।'
(मनुस्मृतिः 2.121)
मातापित्रोस्तु यः पादौ नित्यं प्रक्षालयेत् सुतः।
तस्य भागीरथीस्नानं अहन्यहनि जायते।।
'जो पुत्र प्रतिदिन माता और पिता के चरण पखारता है, उसका नित्यप्रति गंगा-स्नान हो जाता है।' (पद्म पुराण, भूमि खंडः 62.74)

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, February 12, 2021

Love Isn’t In the Air

Love Isn’t In the Air

Author - Harsh Vardhan

Traditional festivities of the 14th Feb have come undone for me, especially after seeing what comes after – people are either floating giddily on imaginary clouds or drowning in tears from heartbreak. Either way, they end up disoriented. Part of the reason it has spread so deep into our culture is it gives leeway to pursue someone romantically without offending them.




Valentine’s day isn’t a day of love – it is just a day to act frivolously. And we become light-headed and spend on things that have nothing to do with love. The custom of exchanging cards and gifting confectionery in the name of love has made it so far into popular culture that nobody can escape it. I am not saying this loosely, if you account for the time and money spent on this vain festival you will surely think twice. Don’t you think buying expensive gifts or spending hours at a salon to be intimate with someone is a bit manipulative? Yet, this is what the day of love is about – impression of love not expression of love. People go against the grain and spend excessively to win over others while they really are just trying to impress them. This attempt to outdo and invoke envy in others is not out of love but to prove themselves desirable.
I might sound dissident of love and passion but I am far from that. I urge you to read this piece in full. I believe wooing someone is noble and expression of love is a sweet thing but anointing a day for this is unreasonable. I can understand why someone may [search for love](https://www.indiatvnews.live/4574455.html).  What I disapprove is the societal pressure to be in love on this very day – the Valentine’s Day. Youngsters are especially on jitters if they don’t have a partner. Those who do, often flaunt their partner as a trophy. It is not a matter of pride that you found yourself a date – it is not an achievement. Is it nice to have someone to share your deepest feelings with? Of course, but it is not a measure of your accomplishments. You don’t get to a higher rung on the social ladder by winning a date for Valentine.
The show and dance around love is what I take issue with. Girls feel like they should dress erotically while boys feel they should do something grand all the while ignoring their real feelings. People go out on a shopping frenzy out of a fear to conform with the perpetuated traditions associated with this day. We shouldn’t need an excuse to feel love and grace. If we can feel freely then we should express our feelings freely. For example, why give flowers to someone because of Valentine’s day? To me it is the opposite of being romantic. You should give flowers to your wife whenever you feel inclined – it could be on a day that she picked you up from work or on a day when you just want to cheer her up. Expression of love shouldn’t be planned – it  should be unscripted and personal.
And as I think hard, I find there is no need to call a day to celebrate love. Love isn’t something that needs to be organized. One is perfectly capable of being in love when their heart desires. It is celebrated at different moments in our life. Aren’t marriage ceremonies a celebration of love?
Valentine’s Day, as depicted in the popular media, is nothing but a puff of smoke – it is not real. Thousands of crores worth ridiculous Valentine paraphernalia is sold in the celebration of LOVE. An emotion so sacred comes to mean so little on this day is astounding to me. 
I hope readers can see my case for not celebrating Valentine’s day. It perpetuates the myth of romance, makes everyone gooey and behave silly. True love makes people act altruistically, helps them see beyond themselves and makes them selfless. Love is not just the amorous affair that is promulgated by the media on Valentine’s Day. True love is sincere, honest and personal. Love of a mother for her child. Love of a sister to her brother. Love of a man to his wife. They are all forms of love that are well-meaning and heartfelt and you don’t need to set aside a day on the calendar to celebrate any of those.

वेलेंटाइन डे पर मातृ-पितृ पूजन दिवस से कैसे होगा समाज का उत्थान?

12 फरवरी 2021


सदियों से भारत वर्ष में मातृ देवो भव! पितृ देवो भव! आचार्य देवो भव! का उद्घोष होता आया है। हमारी सनातन संस्कृति की नींव बहुत गहरी है। इसकी सुवास से सारा विश्व आन्दोलित हो सकता है। किन्तु आज देश में पाश्चात्य अंधानुकरण इस कदर फैल चुका है की युवा पीढ़ी को भौतिकवाद के सिवा कुछ सूझता ही नहीं।




फैशनपरस्ती करना, फिल्मों में क्लबों में जाना, पार्टी- डांस करना, नशाखोरी करना, मनमानी में पैसे बर्बाद करना इतने तक ही नई पीढी का जीवन सीमित हो चुका है। हमारा समाज इससे प्रभावित हो रहा है। आज कितने घरों में माता- पिता या बुजुर्गों का आदर होता है? कितने घरों में नवजवान अपने परिवार और समाज के प्रति दायित्व को समझते हैं? इस पर विचार करें तो आप को हमारी सामाजिक स्थिति पर खेद होगा।

आजकल ज्यादातर घरों में माता-पिता को नजर अंदाज किया जाता है। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे घरखर्च के लिए निश्चित राशि देते हैं, व्याधियाँ होते हुए भी नाती-पोतों को संभालते हैं। यहाँ तक कि नौजवान घर के दैनिक कार्यों की जिम्मेदारी भी अपने बुज़ुर्गों पर डाल नौकरी-धंधे पर निकल जाते हैं। क्या यह उनकी उपेक्षा नही है? उनका शोषण नहीं?

इसी कड़ी में 14 फरवरी को वैलेंटाईन-डे का उत्सव मनाना भी मैं अपने ज्येष्ठों की उपेक्षा समझती हूँ। इस तथाकथित उत्सव के प्रभाव में समाज और खंडित होता जा रहा है। ऐसे उच्छृंखल एवं उत्तेजक पर्व को मनाने से क्या हमारी संताने हमसे दूर नही जा रही? युवा पीढ़ी के इस नैतिक पतन के बाद क्या दया, प्रेम, आदर और कर्तव्यनिष्ठता के दैविक भाव उनमें पनप सकेंगे?

समाज को सही मायने में ऊर्ध्वगामी करने के प्रकल्प संतो के ही होते हैं। उनके उपदेश और आदर्श जीवनशैली हमारे प्रेरणास्त्रोत हैं। जो समाज से कुछ न लेकर भी उसकी मंगलकामना करते हैं, दीनों को आश्रय देते हैं और युवाओं को उत्साह वे ही हमारे सामाजिक-संरचना के आधार हैं। फिर उनकी अनसुनी करके, उन्हे ही कष्ट दे कर हमारा समाज कैसे ऊपर उठ सकता है। अपने पूज्यों की बात हमे माननी चाहिए। ऐसे ही एक संतात्मा श्री आशारामजी बापू ने वैलेन्टाईन-डे के प्रभाव से समाज को मुक्त करने के लिए मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का आव्हाह्न किया। उनका यह लोक-मांगल्य का संकल्प आज एक विश्वयापी अभियान बन चुका है। देश-विदेश के अधिनायक, नेता और नागरिक इसका समर्थन करते हैं। आप  mppd.ashram.org की वेबसाईट पर जाकर अनेकों प्रमाण देख सकते हैं।

आप सभी पाठकों से मैं भी यह निवेदन करती हूँ कि 14 फरवरी को राष्ट्रहित एवं समाज-हित की दृष्टि से आप भी अपने परिवार में मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाएँ और अपने बड़ो का आशिर्वाद प्राप्त करें। आईये अपनी संस्कृति के बल से विश्वपटल पर भारत को अग्रणी बनाएँ। लेखक – रेणुका हरने

भारत में वैलेंटाइन डे की गंदगी अपने व्यापार का स्तर बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कम्पनियां लेकर आई हैं और वो ही कम्पनियां मीडिया में पैसा देकर वैलेंटाइन डे का खूब प्रचार प्रसार करवाती हैं । जिसके कारण उनका व्यापार लाखों नहीं, करोड़ों नहीं, अरबों नहीं लेकिन खरबों में हो जाता है, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया जनवरी से ही वैलेंटाइन डे यानि पश्चिमी संस्कृति का प्रचार करने लगता है, जिसके कारण विदेशी कम्पनियों के गिफ्ट, गर्भनिरोधक सामग्री, नशीले पदार्थ आदि 10 गुना बिकते हैं और उन्हें खरबों रुपये का फायदा होता है ।

वैलेंटाइन डे से युवाओं का अत्यधिक पतन हो रहा है इसलिए अब तो ऐसा समय आ गया है कि वैलेंटाइन डे की जगह लोगों ने अभी से 14 फरवरी के दिन "मातृ-पितृ पूजन दिवस" निमित्त मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम शुरू कर दिया है ।

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, February 11, 2021

मातृ-पितृ पूजन दिवस क्यों मनाना चाहिए? वैज्ञानिकों ने क्या कहाँ?

11 फरवरी 2021


माता-पिता ने हमसे अधिक वर्ष दुनिया में गुजारे हैं, उनका अनुभव हमसे अधिक है और सदगुरु ने जो महान अनुभव किया है उसकी तो हमारे छोटे अनुभव से तुलना ही नहीं हो सकती। इन तीनों के आदर से उनका अनुभव हमें सहज में ही मिलता है। अतः जो भी व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है, उस सज्जन को माता-पिता और सदगुरु का आदर पूजन आज्ञापालन तो करना चाहिए, चाहिए और चाहिए ही !




14 फरवरी को ʹवेलेंटाइन डेʹ मनाकर युवक-युवतियाँ प्रेमी-प्रेमिका के संबंध में फँसते हैं। वासना के कारण उनका ओज-तेज दिन दहाड़े नीचे के केन्द्रों में आकर नष्ट होता है। उस दिन ʹमातृ-पितृ पूजनʹ काम-विकार की बुराई व दुश्चरित्रता की दलदल से ऊपर उठाकर उज्जवल भविष्य, सच्चरित्रा, सदाचारी जीवन की ओर ले जायेगा।

अनादिकाल से महापुरुषों ने अपने जीवन में माता-पिता और सदगुरु का आदर-सम्मान किया है।

कोई हिन्दू, ईसाई, मुसलमान, यहूदी नहीं चाहते कि हमारे बच्चे विकारों में खोखले हो जायें, माता-पिता व समाज की अवज्ञा करके विकारी और स्वार्थी जीवन जीकर तुच्छ हो जायें और बुढ़ापे में कराहते रहें। बच्चे माता-पिता व गुरुजन का सम्मान करें तो उनके हृदय से विशेष मंगलकारी आशीर्वाद उभरेगा, जो देश के इन भावी कर्णधारों को ʹवेलेन्टाइन डेʹ जैसे विकारों से बचाकर गणेश जी की नाईं इऩ्द्रिय-संयम व आत्मसामर्थ्य विकसित करने में मददरूप होगा।

माता, पिता एवं गुरुजनों का आदर करना हमारी संस्कृति की शोभा है। माता-पिता इतना आग्रह नहीं रखते कि संतानें उनका सम्मान-पूजन करें परंतु बुद्धिमान, शिष्ट संतानें माता-पिता का आदर पूजन करके उनके शुभ संकल्पमय आशीर्वाद से लाभ उठाती हैं।

14 विकसित और विकासशील देशों के बच्चों व युवाओं में किये गये सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हुआ है कि भारतीय बच्चे, युवक सबसे अधिक सुखी और स्नेही पाये गये। लंदन व न्यूयार्क में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका एक बड़ा कारण है-भारतीय लोगों का पारिवारिक स्नेह एवं निष्ठा है ! भारतीय युवाओं ने कहा कि ʹउनकि जीवन में प्रसन्नता लाने तथा समस्याओं को सुलझाने में उनके माता-पिता का सर्वाधिक योगदान है।ʹ

भारत में माता-पिता हर प्रकार से अपने बच्चों का पोषण करते हैं और माता-पिताओं का पोषण संतजनों से होता है। माता-पिता, बच्चे-युवक सभी को पोषित करने वाला हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है।

आधुनिक वैज्ञानिकों का मत

माता-पिता के पूजने से अच्छी पढाई का क्या संबंध-ऐसा सोचने वालों को अमेरिका की ʹयूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनियाʹ के सर्जन व क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सू किम और ʹचिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनियाʹ के एटर्नी एवं इमिग्रेशन स्पेशलिस्ट जेन किम के शोधपत्र के निष्कर्ष पर ध्यान देना चाहिए।

अमेरिका में एशियन मूल के विद्यार्थी क्यों पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हैं ? इस विषय पर शोध करते हुए उऩ्होंने यह पाया कि वे अपने बड़ों का आदर करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं तथा उज्जवल भविष्य-निर्माण के लिए गम्भीरता से श्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए अध्ययन करते हैं।

भारतीय संस्कृति के शास्त्रों और संतों में श्रद्धा न रखने वालों को भी अब उनकी इस बात को स्वीकार करके पाश्चात्य विद्यार्थियों को सिखाना पड़ता है कि माता-पिता का आदर करने वाले विद्यार्थी पढ़ाई में श्रेष्ठ परिणाम पा सकते हैं।

जो विद्यार्थी माता-पिता का आदर करेंगे वे ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाकर अपना चरित्र भ्रष्ट नहीं कर सकते। संयम से उनके ब्रह्मचर्य की रक्षा होने से उनकी बुद्धिशक्ति विकसित होगी, जिससे उनकी पढ़ाई के परिणाम अच्छे आयेंगे। स्त्रोत : संत श्री आशारामजी बापू के प्रवचन से

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, February 8, 2021

छः राज्यों के मुख्यमंत्री बोले 14 फरवरी को मनाओ मातृ-पितृ पूजन दिवस

08 फरवरी 2021


 देश के कई राज्यों की सरकार जान चुकी है कि वेलेंटाइन डे से समाज और देश को अत्यधिक नुकसान हो रहा है उसे रोकने का विकल्प जरूरी है इसलिए 2006 से 14 फरवरी का दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने का विकल्प रखा गया है अब उसे और अधिक व्यापक बनाना होगा इसलिए वर्तमान में देश के कई मुख्यमंत्रियों, राज्यपाल एवं मंत्रियों ने इसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की और इसे व्यापक रूप से मनाने की घोषणा भी कर रहे हैं।




मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने पत्र द्वारा बताया कि मुझे यह जानकर खुशी है कि श्री योग वेदांत सेवा समिति, 14 फरवरी का दिन 'मातृ-पितृ की पूजन दिवस' के रूप में मना रहे हैं।

उन्होंने आगे बताया कि पिछले कुछ दशकों से समाज एवं समाज की सामाजिक संरचना काफी हद तक बदल गयी है । इसलिए, युवा पीढ़ी में भारतीय संस्कृति के मूल्यों और आदर्शों को विकसित करना आवश्यक है। प्रशंसनीय है कि श्री योग वेदांत सेवा समिति छात्रों के चरित्र निर्माण की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल है।

योगी जी ने यह भी कहा कि मुझे उम्मीद है कि यह कार्यक्रम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहेगा । मेरी शुभकामनाएं इस कार्य के लिए हैं।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने संदेश द्वारा दी शुभकामनाएं..

हिमाचल के मुख्यमंत्री श्री जय राम ठाकुर ने बताया कि मुझे यह जानकर खुशी है कि श्री योग वेदांत सेवा समिति ने 14 फरवरी का दिन माता-पिता की पूजा दिवस के रूप में मनाया और इस अवसर को यादगार बनाने के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर हुए मातृ-पितृ पूजन के आयोजन का एक संकलन भी समिति के द्वारा साथ में लाया जा रहा है। हमें बचपन से बच्चों में नैतिक मूल्यों के संस्कार भरने चाहिए और प्राचीन भारत की परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्कृति के बारे में उन्हें जागृत करना चाहिए ताकि वे अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्मान और परंपराओं का पालन करना सीख सकें । मेरा मानना ​​है कि संस्कृति और रीति-रिवाज हमारे समाज का अभिन्न अंग है और इसे हर तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए।

आपको बता दें कि असम के मुख्यमंत्री श्री सर्वानंद सोनोवाल जी एवं गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी जी ने भी 14 फ़रवरी को मातृ-पितृ पूजन की भारी प्रशंसा की है और वैलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन मनाने की अपील की है। आपको बता दें कि इन सभी ने पिछले साल पत्र लिखकर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की थी।

झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने संदेश के माध्यम से बताया कि मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि अखिल भारतीय योग वेदांत सेवा समिति, अहमदाबाद के मार्गदर्शन में युवा सेवा संघ, बाल संस्कार विभाग, रांची द्वारा गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी 14 फरवरी, 2021 को मातृ-पितृ पूजन दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

वर्तमान समय में पाश्चात्य सभ्यता की चका - चौंध में हमारे बच्चे अपने अपने माता-पिता, गुरुजनों एवं बड़ों के प्रति आदर करना छोड़ते जा रहे हैं, बच्चों में असंतोष बढ़ रहा है, हर तरफ निराशा का वातावरण बन गया है। वर्तमान परिवेश में मातृ-पितृ पूजन दिवस का आयोजन करना एक सराहनीय कदम है।
   
 मैं मातृ-पितृ पूजन दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की सफलता की कामना करता हूँ, तथा सभी बच्चों एवं युवाओं को शुभकामना देता हूँ।

 राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने बताया कि मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि अखिल भारतीय श्री योग वेदांत सेवा समिति , अहमदाबाद के सौजन्य से पिछले 15 वर्षों से 14 फरवरी को " मातृ - पितृ पूजन दिवस " का आयोजन किया जा रहा है । मानव के जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त माता - पिता का त्याग और समर्पण अपने आप में महत्वपूर्ण है । छत्तीसगढ़ में भी वर्ष 2012 से माता , पिता और गुरुजनों के प्रति सम्मान की भावना जगाने के लिए 14 फरवरी को ऐसे आयोजन किए जा रहे हैं। आशा है इस दिवस पर पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों से संबद्ध कार्यक्रम नई पीढ़ी में माता - पिता के उपकारों के प्रति चिंतन के साथ सामाजिक समरसता का संचार करने की दृष्टि से प्रेरणादायक सिद्ध होंगे । मैं मातृ - पितृ पूजन दिवस कार्यक्रम की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।

गुजरात के उपमुख्यमंत्री ने मातृ-पितृ पूजन की सरहाना की

गुजरात के उपमुख्यमंत्री श्री नितिन पटेल ने संदेश द्वारा बताया कि श्री योग वेदांत सेवा समिति द्वारा 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जा रहा इसको सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।

आगे बताया कि विद्यार्थियों में सुसंस्कार का सिंचन हो इसलिए अधिक से अधिक स्कूलों-कॉलेजों में मातृ-पितृ पूजन होना चाहिए। यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक हो यही शुभकामनाएं करता हूँ।

गौरतलब है कि 14 फरवरी को युवक-युवतियों द्वारा वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा था जिसके कारण उन्हें अत्यधिक हानि हो रही थी इसलिए सन 2006 से हिन्दू संत आसाराम बापू ने 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की घोषणा की, तबसे लेकर आजतक घरों, स्कूलों, कॉलेजों, गांवों, नगरों, शहरों आदि में विश्वव्यापी अभियान चलाये जा रहे हैं जिसके कारण विदेशी कम्पनियों को खरबों का नुकसान भी हुआ है लेकिन इसका सबसे अधिक फायदा हमारी युवा पीढ़ी को हुआ, युवक-युवतियों की जो हानि हो रही थी उससे वे बच गए और माता-पिता को सम्मान देना शुरू कर दिया, जिसके कारण घरों की खोई हुई खुशहाली भी लौट आयी।

समस्त देशवासियों को 14 फरवरी के दिन वैलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाना चाहिए।

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ