सावधान : विधर्मियों के द्वारा हिन्दुओं को आपस में बाँटने की साजिश को नाकाम करना होगा
सनातन धर्म के संतों ने जब-जब व्यापकरूप से समाज को जगाने का प्रयास किया है, तब-तब उनको #विधर्मी #ताकतों के द्वारा #बदनाम करने के लिए षड्यंत्र किये गये हैं, जिनमें वे कभी-कभी हिन्दू संतों को भी मोहरा बनाकर #हिन्दू संतों के खिलाफ #दुष्प्रचार करने में सफल हो जाते हैं । यह हिन्दुओं की दुर्बलता है कि वे विधर्मियों के चक्कर में आकर अपने ही संतों की निंदा सुनकर विधर्मियों की हाँ में हाँ करने लग जाते हैं और उनकी हिन्दू धर्म को नष्ट करने की गहरी साजिश को समझ नहीं पाते । इसे हिन्दुओं का भोलापन भी कह सकते हैं । कुछ तो इतने भोले हैं कि जब किसी बड़े संत पर षड्यंत्रकारी आरोप लगाते हैं तो खुश होते हैं कि ‘अब हम बड़े हो जायेंगे’ और वे नं. 1 बनने की कवायद करने लग जाते हैं । उनको पता नहीं कि वे भी आगे चलकर षड्यंत्रकारियों के शिकार होंगे । ऐसे लोग भी विधर्मियों के षड्यंत्रों से अपनी संस्कृति की रक्षा करने के बदले उनके पिट्ठू बन जाते हैं ।
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स्वामी #विवेकानंदजी जब अमेरिका में #सनातन धर्म की #महिमा गाकर #भारत का #गौरव बढ़ा रहे थे तब वहाँ कुछ हिन्दुओं ने ही उनकी निंदा करना, कुप्रचार करनेवालों को सहयोग देना शुरू कर दिया, जिनमें मुख्य थे वीरचंद गांधी और प्रतापचन्द्र मजूमदार । प्रतापचन्द्र मजूमदार ईसाई मिशनरियों की कठपुतली बन गया । ‘विवेकानंदजी एक विषयलम्पट साधु, विलासी युवान और हमेशा जवान लड़कियों के बीच रहनेवाला चरित्रहीन पुरुष है’ - ऐसा अमेरिका के प्रसिद्ध अखबारों में लिखने लगा । इन दुष्प्रचारकों ने विवेकानंदजी के भक्त की नौकरानी का विवेकानंदजी के द्वारा यौन-शोषण किया गया ऐसी #मनगढ़ंत कहानी भी छाप दी । जिस भवन में स्वामी विवेकानंदजी का प्रवचन होता उसके सामने वे लोग एक अर्धनग्न लड़की के साथ विवेकानंदजी के फोटो के पोस्टर भी लगा देते थे । फिर भी स्वामी विवेकानंदजी के अमेरिकन भक्तों की श्रद्धा वे हिला न सके । तब #प्रतापचन्द्र मजूमदार भारत आया और उनकी #निंदा करने लगा । विवेकानंदजी पर ठगी, अनेक स्त्रियों का चरित्रभंग करने के आरोप लगाने लगा । ‘स्वामी विवेकानंदजी भारत के सनातन धर्म के किसी भी मत के साधु ही नहीं हैं’ - ऐसा दुष्प्रचार करने लगा ।
विधर्मियों द्वारा षड़्यंत्रों के तहत लगवाये गये ऐसे अनेक आरोपों को झेलते हुए भी स्वामी #विवेकानंदजी #सनातन धर्म का प्रचार करते रहे । उन्हें आज समस्त #विश्व के लोग एक महापुरुष के रूप में आदर से देखते हैं लेकिन मजूमदार किस नरक में सड़ता होगा हमें पता नहीं ।
आरोप लगनेमात्र से यदि महात्मा कलंकित हो जाते तो वर्तमानकालीन शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी, कृपालुजी महाराज, स्वामी केशवानंदजी आदि तथा पूर्वकालीन संत जैसे स्वामी विवेकानंदजी, नरसिंह मेहता, संत एकनाथजी आदि पर भी कई दुष्टों ने आरोप लगाये थे । आरोप लगानेवालों ने तो भगवान को भी नहीं बख्शा था । भगवान श्रीकृष्ण पर भी स्यमंतक मणि चुराने का आरोप और अन्य कई प्रकार के आरोप लगाये गये थे । भगवान श्रीरामचन्द्रजी पर भी आरोप लगा था कि बालि को उन्होंने युद्धधर्म की नीति का उल्लंघन करके मारा था और महान पतिव्रता नारी सीता देवी पर भी एक धोबी ने चरित्रभ्रष्ट होने का आरोप लगाया था । इससे क्या उनकी भगवत्ता कलंकित हो गयी ? महात्मा बुद्ध पर भी तत्कालीन दुष्ट अधर्मियों ने आरोप लगाये थे तो क्या इससे उनकी महानता कलंकित हो गयी ?
#जीवन्मुक्त #महापुरुषों के व्यवहार में #भिन्नता होने पर भी वे सब #ज्ञाननिष्ठा में पूर्ण होते हैं । वेदव्यासजी के पुत्र शुकदेवजी बड़े त्यागी थे लेकिन उनको ज्ञान लेने के लिए गृहस्थी महापुरुष राजा जनक के पास जाना पड़ा । #रामकृष्ण परमहंस त्यागी परमहंस थे लेकिन उनके शिष्य #विवेकानंदजी देश-विदेश में #धर्म-प्रचार के लिए भ्रमण करते थे, पुरुष और स्त्री दोनों को शिक्षा-दीक्षा देते थे इसलिए वे महान संत नहीं थे यह कहना उचित नहीं है । राजा जनक, महात्मा बुद्ध, आद्य शंकराचार्यजी आदि अनेक संतों-महापुरुषों ने स्त्रियों के उद्धार के द्वारा समाज का उद्धार करने के लिए स्त्रियों को शिक्षा-दीक्षा दी ।
कुछ संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त नासमझ लोग शास्त्रों का गलत अर्थघटन करके समाज में भ्रांतियाँ फैलाते हैं कि ‘स्त्री का गुरु तो पति ही है, अतः अन्य गुरु का निषेध अपने-आप हो जाता है ।’ उन लोगों को शास्त्र के दृष्टांतों से ही बता सकते हैं कि उनकी मान्यता गलत है । #भगवान शंकर ने अपनी पत्नी #पार्वती को #वामदेव ऋषि से दीक्षा दिलायी थी । शबरी के गुरु उसके पति नहीं थे, भगवान श्रीराम भी नहीं थे, एक महापुरुष #मतंग ऋषि शबरी के गुरु थे । #मीराबाई के गुरु उनके पति नहीं थे, भगवान कृष्ण को भी मीरा ने गुरु नहीं बनाया, संत #रैदासजी को गुरु बनाया । सहजोबाई ने पति को गुरु नहीं बनाया, संत चरनदासजी को गुरु बनाया और वे कहती हैं :
राम तजूँ पै गुरु न बिसारुँ ।गुरु के सम हरि कूँ न निहारुँ ।।
कुछ तथाकथित निगुरे लेखक शास्त्रों का मनमाना अर्थ लगाकर लोगों को यहाँ तक कह डालते हैं कि श्रीकृष्ण या शिवजी को ही गुरु मान लो । भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा नहीं कहा कि उनको ही गुरु बना लो । जीवित महापुरुष सांदीपनि मुनि को गुरु बनानेवाले श्रीकृष्ण गीता के चौथे अध्याय के 34वें श्लोक में कहते हैं :
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ।।
‘उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ । उनको भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म-तत्त्व को भलीभाँति जाननेवाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे ।’
वैदिक साहित्य के उपनिषद्, गीता या अन्य किसी भी ग्रंथ में निगुरे रहने का उपदेश नहीं दिया गया । श्रुति कहती है :
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ।
‘उस जिज्ञासु को परमात्मा का वास्तविक तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में समिधा लेकर श्रद्धा और विनय भाव के सहित ऐसे सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए जो वेदों के रहस्य को भलीभाँति जानते हों और परब्रह्म-परमात्मा में स्थित हों ।’ (मुण्डकोपनिषद् : 1.2.12)
ऐसी सनातन धर्म की दिव्य परम्परा को नष्ट करने का स्वप्न देखनेवाले लोगों से सावधान होना बहुत जरूरी है ।
भगवान #विट्ठल ने अपने भक्त #नामदेव के लिए स्वयं गुरु न बनकर उन्हें ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष विसोबा खेचर से दीक्षा लेने को कहा था । यही नहीं स्वयं आद्यशक्ति माँ काली ने $रामकृष्ण परमहंसजी को स्वयं दीक्षा न देकर उन्हें गुरु #तोतापुरीजी की शरण में जाने को कहा था । और तो और, स्वयं भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण ने भी गुरु बनाये थे ।
अतः भ्रांतियाँ फैलानेवालों को कुछ बोलने या लिखने से पहले सोचना चाहिए । अपनी अल्पबुद्धि का परिचय नहीं देना चाहिए । डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे तटस्थ न्यायविदों ने जो बात कही है कि #‘‘संत आसाराम जी बापू के #खिलाफ किया गया #केस पूरी तरह #बोगस है ।’’ और यह भी कहा कि ‘‘हिन्दू-विरोधी एवं #राष्ट्रविरोधी ताकतों के गहरे #षड्यंत्रों को और हिन्दू संतों को बदनाम करने के उनके (विधर्मियों के) गुप्त हथकंडों को सीधे व भोले-भाले हिन्दू नहीं देख पा रहे हैं ।’’ इन बातों की कद्र करके अपनी हिन्दू संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए । एक ईसाई या मौलवी से कोई गलत काम हो जाता है, न्यायालय में सिद्ध भी हो जाता है तो भी दूसरा ईसाई या मौलवी उसको दोषी नहीं कहता क्योंकि अपने धर्म का है । हिन्दू संस्कृति ये नहीं कहती कि तुम दोषी को दोषी न कहो लेकिन इतना जरूर कहती है कि निर्दोष पर दोषारोपण करने के पहले सच्चाई जानने का प्रयास तो करो । हिन्दू संस्कृति के दुश्मन, हिन्दुत्व के लिए पूरा जीवन अर्पण करनेवाले किसी संत को षड्यंत्र करके फँसाने का प्रयास करते हैं और दूसरे कुछ हिन्दू, जो अपने को हिन्दुत्व के रक्षक मानते हैं, बिना सत्य की गहराई में गये उन संत पर टिप्पणी करने लगते हैं यह कितने खेद की बात है !
डॉ. डेविड फ्रॉली कहते हैं : ‘‘भारत को अपने लक्ष्य तक पहुँचना है और वह लक्ष्य है अपनी #आध्यात्मिक संस्कृति का #पुनरुद्धार । इसमें न केवल भारत का अपितु मानवता का कल्याण निहित है । यह तभी सम्भव है जब भारत के बुद्धिजीवी आधुनिकता का मोह त्यागकर अपने धर्म और अध्यात्म की कटु आलोचना से विरत होंगे ।’’ (पृष्ठ 14, ‘उत्तिष्ठ कौन्तेय’)
अतः सावधान रहने की आवश्यकता है । #विधर्मियों के #हिन्दुओं को आपस में #बाँटने की #साजिश को समझना चाहिए । - वरिष्ठ पत्रकार श्री अरुण रामतीर्थकर
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