सितम्बर 21, 2017
जोधपुर जेल में धर्मगुरु बापू आसारामजी, बिना आरोप सिद्ध हुए चार साल से जेल में बंद हैं और वे हमेशा मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं ।
आपको बता दें कि उनके करोड़ो भक्त गुरुवार को आत्म-साक्षात्कार दिवस मना रहे हैं,अब आपको प्रश्न होगा कि मीडिया ने इतना बता दिया फिर भी उनको उनके करोड़ भक्त क्यों मान रहे हैं..?? आत्म-साक्षात्कार दिवस क्यों मना रहे हैं..??
बापू आसारामजी वास्तव में कौन है..??
Reality of Asaram Bapu |
आइये इन सवालों का निष्पक्ष उत्तर जाने...
बापू आसारामजी का जीवनी :-
धर्मगुरु आशारामजी बापू का बचपन का नाम आसुमल था । उनका जन्म अखंड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में 1 मई 1937 के दिन हुआ था । उनकी माता महँगीबा व पिताजी थाऊमल नगरसेठ थे ।
बालक #आसुमल को देखते ही उनके कुलगुरु ने #भविष्यवाणी की थी कि ‘आगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा ।
बापू का #बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी हैं 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण अथाह सम्पत्ति को छोड़कर बालक आसुमल #परिवार सहित अहमदाबाद आ बसे। उनके पिताजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा । तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया ।
माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थी ।
बालक आसुमल को #बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी । प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था ।
दस वर्ष की नन्ही आयु में बालक आसुमल के पिताजी थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये ।
पिता के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई (तीसरी कक्षा) छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर(गुजरात) में एक परिजन के यहाँ नौकरी करनी पड़ी । 3 साल तक नौकरी के साथ-साथ साधना में भी प्रगति करते रहे ।
3 साल बाद वे वापिस अहमदाबाद आ गए और भाई के साथ शक्कर की दुकान पर बैठने लगे ।
लेकिन उनका मन सांसारिक कार्यो में नही लगता था, ज्यादातर जप-ध्यान में ही समय निकालते थे ।
21 साल की उम्र में घर वाले आसुमल की शादी करना चाहते थे लेकिन उनका मन संसार से विरक्त और भगवान में तल्लीन रहता था । इसलिए वे घर छोड़कर भरुच के अशोक आश्रम चले गए पर घरवालो ने उन्हें ढूंढ कर जबरदस्ती शादी करवा दी ।
लेकिन मोह-ममता का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति की लगन मन में लिए शादी के बाद भी तुरंत पुनः घर छोड़ दिया और आत्म पद की प्राप्ति हेतु जंगलों-बीहडों में घूमते और ईश्वर प्राप्ति के लिए तड़पते रहे ।
नैनीताल के जंगल में योगी ब्रह्मनिष्ठ संत साँर्इं लीलाशाहजी बापू को उन्होंने सद्गुरु के रूप में स्वीकार किया ।
#ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर सद्गुरु लीलाशाहजी बापू का ह्रदय छलक उठा और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में सद्गुरु की कृपा से आत्म-साक्षात्कार हो गया । तब सद्गुरु लीलाशाह जी ने उनका नाम आसुमल से आशारामजी रखा ।
अपने गुरु #लीलाशाहजी बापू की आज्ञा शिरोधार्य कर हिन्दू संत आसारामजी बापू समाधि-अवस्था का सुख छोड़कर तप्त लोगों के हृदय में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये।
सन् 1972 में अहमदाबाद साबरमती के तट पर आश्रम स्थापित किया । भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विश्व शांति के लिए संत आसारामजी बापू ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ।
संत आशारामजी बापू के मार्गदर्शन में देश-विदेश में हजारों ‘बाल संस्कार केन्द्र, विद्यालयों में ‘योग व उच्च संस्कार शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है।
उनके द्वारा व्यसनमुक्ति अभियान, गौ-रक्षा अभियान, पर्यावरण सुरक्षा कार्यक्रम आदि चलते हैं ।
‘#वेलेंटाइन डे जैसे त्यौहारों से भी बचने हेतु हर वर्ष 14 फरवरी को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस'मनाया जा रहा है । क्रिसमस डे की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया ।
हिन्दू संस्कृति पद्धति अनुसार अनेकों गुरुकुलों चलाए जा रहे हैं ।
‘युवाधन सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है तथा ‘युवा सेवा संघ एवं ‘महिला उत्थान मंडल की स्थापना की गयी है । जिनका लाभ लेकर युवक-युवतियाँ अपना सर्वांगीण विकास कर रहे हैं ।
समाज के पिछडे, शोषित, बेरोजगार व बेसहारा लोगों की सहायता के लिए #संत #आसारामजी बापू द्वारा ‘#भजन करो, #भोजन करो, #दक्षिणा पाओ' योजना चलायी जा रही है ।
इसके अंतर्गत उन्हें कहा जाता है कि वे आश्रम में अथवा आश्रम द्वारा संचालित समितियों के केन्द्रों में आकर दिनभर केवल भजन, कीर्तन और ध्यान करें । उन्हें दिन का भोजन और शाम को घर जाते समय 50 रुपये तक की नकद राशि दी जाती है । इसमें भाग लेनेवालों की संख्या बढती ही जा रही है ।
जिससे #ईसाई #मिशनरियों द्वारा धर्मान्तरण में रोक लग रही है और जहाँ लोगों को भोजन की विकट समस्या से निजात मिलती है, वहीं उनका आध्यात्मिक उत्थान भी हो रहा है । इससे बेरोजगार लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने में बहुत मदद मिल रही है ।
संत आसारामजी बापू ने #भारत में 17,000 निःशुल्क बाल संस्कार #केन्द्र, 40 गुरुकुल, 1 डिग्री कॉलेज तथा प्रति वर्ष 4,000 संकीर्तन यात्राएँ, 1,500 सत्संग, 4,68,000 भजन संध्या-कार्यक्रम तथा भारत में प्रति वर्ष 2,200 ‘विद्यार्थी उत्थान शिविर, 25 से 27 #लाख ‘विद्यार्थियों को दिव्य प्रेरणा प्रकाश प्रतियोगिता, 2 लाख 50 हजार ‘युवा संस्कार सभाएँ आदि के माध्यम से पाश्चात्य संस्कृति को भारत में फैलने से रोकते हैं ।
कत्लखाने जाती #गायों को रोककर अनेक गौशालायें खोली गई है ।
इन सबके कारण धर्मान्तरण पर रोक लगी और उनके करोड़ों भक्तों ने बीड़ी, सिगरेट, दारू आदि व्यसन् और विदेशी सामान का #बहिष्कार किया इसलिए वेटिकन सिटी और विदेशी कम्पनियों ने मिलकर मीडिया द्वारा बदनाम करवाया जो सिलसिला अभी भी चालू है । नेताओं को बार-बार वोट मांगने नाक रगड़ना पड़ता था इसलिए उनके करोड़ों फॉलोवर्स को तोड़ने के लिए #जेल भेजा गया है, जबकि अभीतक एक भी आरोप उनपर सिद्ध नही हुआ है ।फिर भी उनको जमानत नही मिल रही है और मीडिया ट्रायल चलाया जा रहा है ।
संत आसारामजी बापू का एक बहुत बड़ा साधक-समुदाय है, जो करीब 6 से 8 करोड़ के बीच में होगा, आज भी उनके भक्तों की श्रद्धा में कमी नही आई है उनके बताये अनुसार गरीबों की सेवा, गायों की सेवा, आदि सभी #निःशुल्क सेवाकार्य सुचारू रूप से चल रहे हैं ।
गौरतलब है कि 54 साल पहले शारदीय नवरात्रि दूज को संत आशारामजी बापू के गुरूजी लीलाशाहजी महाराज ने आत्म-साक्षात्कार (परमात्मा प्राप्ति) कराया था । इसलिए इस दिन को उनके करोड़ो भक्त अनेक सेवाकार्य सहित बड़ी धूम-धाम से मना रहे हैं ।
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