दीपावली में क्या करने से अकाल मुत्यु टलती है, लक्ष्मीप्राप्ति कैसे करे?, क्या करने से मंत्र सिद्धि होती है? जानिए इनसब के बारे में...
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Five days to celebrate the festival of joy |
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हमारी #सनातन संस्कृति में व्रत, त्यौहार और #उत्सव अपना #विशेष महत्व रखते हैं। सनातन धर्म में पर्व और #त्यौहारों का इतना #बाहूल्य है कि यहाँ के लोगो में 'सात वार नौ #त्यौहार' की कहावत प्रचलित हो गयी। इन पर्वों तथा #त्यौहारों के रूप में हमारे ऋषियों ने #जीवन को सरस और #उल्लासपूर्ण बनाने की #सुन्दर व्यवस्था की है। प्रत्येक पर्व और #त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है, जो विशेष विचार तथा #उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किया गया है।
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ये #पर्व और #त्यौहार चाहे किसी भी श्रेणी के हों तथा उनका बाह्य रूप भले भिन्न-भिन्न हो, परन्तु उन्हें स्थापित करने के पीछे हमारे ऋषियों का उद्देश्य था – #समाज को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर लाना।
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उत्तरायण, शिवरात्री, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्री, दशहरा आदि #त्योहारों को मनाते-मनाते आ जाती हैं पर्वों की #हारमाला-दीपावली। #पर्वों के इस पुंज में 5 दिन मुख्य हैं- #धनतेरस, #काली चौदस, #दीपावली, #नूतन वर्ष और #भाईदूज। #धनतेरस से लेकर #भाईदूज तक के ये 5 दिन आनंद उत्सव मनाने के दिन हैं।
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शरीर को रगड़-रगड़ कर स्नान करना, नये वस्त्र पहनना, मिठाइयाँ खाना, नूतन वर्ष का अभिनंदन देना-लेना। भाईयों के लिए बहनों में प्रेम और बहनों के प्रति भाइयों द्वारा अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करना – ऐसे मनाये जाने वाले 5 दिनों के #उत्सवों के नाम है '#दीपावली पर्व।'
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#धनतेरसः #धन्वंतरि महाराज खारे-खारे सागर में से औषधियों के द्वारा #शारीरिक स्वास्थ्य-संपदा से #समृद्ध हो सके, ऐसी स्मृति देता हुआ जो पर्व है, वही है #धनतेरस। यह पर्व #धन्वंतरि द्वारा प्रणीत आरोग्यता के सिद्धान्तों को अपने जीवन में अपना कर सदैव #स्वस्थ और प्रसन्न रहने का संकेत देता है।
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#धनतेरस – #धनतेरस के दिन संध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दिया लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हें इस मंत्र से #दीपदान करना चाहिए । इससे अकाल मृत्यु नहीं होती ।
#मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)
यमराज को दो दीपक दान करने चाहिए तथा #तुलसी के आगे #दीपक रखना चाहिए, इससे दरिद्रता मिटती है ।
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#काली चौदसः #धनतेरस के पश्चात आती है 'नरक चतुर्दशी (काली चौदस)'। भगवान #श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका। उन्होंने #16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया। नरकासुर प्रतीक है – वासनाओं के समूह और अहंकार का। जैसे, #श्रीकृष्ण ने उन #कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने चित्त में विद्यमान नरकासुररूपी अहंकार और वासनाओं के समूह को #श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो, ताकि आपका अहं यमपुरी पहुँच जाय और आपकी असंख्य वृत्तियाँ श्री #कृष्ण के अधीन हो जायें। ऐसा स्मरण कराता हुआ पर्व है #नरक चतुर्दशी।
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#नरक चतुर्दशी (काली चौदस) के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर #तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है। 'सनत्कुमार संहिता' एवं 'धर्मसिंधु' ग्रंथ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है।
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#काली चौदस और #दीपावली की रात जप-तप के लिए बहुत उत्तम मुहूर्त माना गया है। #नरक चतुर्दशी की रात्रि में मंत्रजप करने से #मंत्र सिद्ध होता है।
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इस #रात्रि में #सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है।
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#दीपावलीः फिर आता है आता है #दीपों का #त्यौहार – दीपावली। दीपावली की रात्री को सरस्वती जी और #लक्ष्मी जी का #पूजन किया जाता है।
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#लक्ष्मीप्राप्ति की साधना
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#दीपावली के दिन घर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें। हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके #घर में #सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होगी।
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#मिट्टी के कोरे दीयों में कभी भी तेल-घी नहीं डालना चाहिए। दीये 6 घंटे पानी में भिगोकर रखें, फिर इस्तेमाल करें। नासमझ लोग कोरे दीयों में घी डालकर बिगाड़ करते हैं।
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#लक्ष्मीप्राप्ति की साधना का एक अत्यंत सरल और केवल तीन दिन का प्रयोगः #दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् #भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में अगरबत्ती या धूप (केमिकल वाली नहीं-गोबर से बनी) करके #दीपक जलाकर, शरीर पर #पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर #केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रातः काल निम्न मंत्र की मालायें जपें।
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#ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद् महै।
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।
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अशोक के वृक्ष और नीम के पत्ते में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है। प्रवेशद्वार के ऊपर #नीम, #आम, अशोक आदि के पत्ते को #तोरण (#बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है।
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#नूतन वर्षः #दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और #नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।
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#दीपावली की रात्री में #वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए #शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए #नववर्ष के प्रभात में भगवान, अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को #प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में जाकर #नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है '#नूतन वर्ष।'
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#भाईदूजः उसके बाद आता है #भाईदूज का पर्व। दीपावली के #पर्व का पाँचनाँ दिन। #भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है।
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हमारा मन एक #कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह चिदघन चैतन्य सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। किसी की बहन को देखकर यदि मन दुर्भाव आया हो तो #भाईदूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन माने और बहन भी पति के सिवाये 'सब पुरुष मेरे भाई हैं' यह भावना #विकसित करे और भाई का कल्याण हो – ऐसा #संकल्प करे। भाई भी बहन की उन्नति का संकल्प करे। इस प्रकार #भाई-बहन के परस्पर प्रेम और उन्नति की भावना को बढ़ाने का #अवसर देने वाला #पर्व है '#भाईदूज'।
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जिसके #जीवन में #उत्सव नहीं है, उसके जीवन में #विकास भी नहीं है। जिसके जीवन में उत्सव नहीं, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के करीब भी नहीं है।
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#भारतीय #संस्कृति के #निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टिवाले रहे होंगे ! महीने में अथवा वर्ष में एक-दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य के द्वारा करवाया जाये तो उससे मनुष्य का विकास संभव नहीं है। परंतु #मनुष्य यदा कदा अपना विवेक जगाकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, #स्वास्थ्य और #स्नेह का गुण विकसित करे तो उसका #जीवन विकसित हो सकता है।
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अभी कोई भी ऐसा #धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे #उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग #ध्यानमग्न हो जाते हों, भाव-समाधिस्थ हो जाते हों, #कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे, स्तंभ के बगैर #पंडाल नहीं रह सकता, वैसे ही #उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में खूब-खूब अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। #सनातन #धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो #काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के #आयोजन द्वारा हो रहा है।
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पाँच पर्वों के #पुंज इस #दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ-साथ हम उसके #आध्यात्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज #ऋषि मुनियों का रहा है।
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इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने #भगवान, #ऋषि-मुनियों के, संतों के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकार मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों – यही इस #दीपमालाओं के पर्व #दीपावली का संदेश है।
( स्तोत्र : संत श्री #आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "#पर्वो का पुंज दीपावली" से )
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