14 September 2018
आतंकवादियों ने इसी दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिन्दू नेता टिकालाल की हत्या की थी ।
कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद की पहली बलि सिद्ध हुए । वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 28 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ । अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सके ।
जानिए क्यों आवश्यक है जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना -
Kashmiri Hindu sacrifice must be rediscovered, Kashmir needs: Mahajan |
जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना समय की मांग है ! इससे वहां चल रहे संघर्ष को कश्मीर घाटी तक ही (राज्य के कुल भूभाग में से 4 प्रतिशत भूभाग) सीमित रखने में सफलता मिलनेवाली है । इससे वहां के राष्ट्रवादी प्रदेश जम्मू एवं लडाख को सशक्त करने में सहायता मिलेगी। इससे केंद्रशासन को कश्मीर घाटी से विस्थापित हिन्दुओं के साथ ही सभी प्रकार के नेताओं से सीधा संपर्क कर, कश्मीर की समस्या का समाधान ढूंढने में बहुत सहायता होगी ।
1. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलीनीकरण करने के संदर्भ में ‘अमृतसर अनुबंध’ का स्थानीय लोगोंद्वारा विरोध :- वर्ष 1947 में लगभग 12 राज्यों को छोडकर अनेक राज्यों ने स्वयं के राज्य को भारत के साथ जोडने हेतु अनुबंध किए । राजा के द्वारा अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित किए गए राज्यों में से जम्मू-कश्मीर भी एक राज्य था । उस समय सब से प्रगतिशील राज्यों में माने जानेवाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर को अन्य राज्यों की भांति जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से जोड़ने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए । महाराज हरिसिंह उसके भी बहुत समय पहले जम्मू-कश्मीर का भारत में विलीनीकरण करने हेतु सहमत थे; परंतु महाराज हरिसिंह एवं उनके प्रधानमंत्री मेहर चंदद्वारा भेजे गए पत्र का नेहरू द्वारा कोई उत्तर ही न दिए जाने से यह विलीनीकरण करने में विलंब हुआ !
राजा हरिसिंह ने स्वतंत्र भारत के साथ अनुबंध करने के पूर्व अर्थात 16 मार्च 1946 को महाराजा गुलाबसिंह एवं तत्कालीन भारतीय ब्रिटिश शासन में अमृतसर अनुबंध हुआ । यह अनुबंध तो एक प्रकार से विक्रय का ही अनुबंध था । यह अनुबंध कश्मीरी लोगों का अनादर था । उसके कारण यह अनुबंध ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन का मुख्य विषय बन गया था। (इसका संदर्भ जम्मू-कश्मीर स्वायत्त समिति के अप्रैल 1999 के ब्यौरे में आता है।)
प्रा. हरि ओम महाजन
2. अमृतसर अनुबंध का अर्थ जम्मू में स्थित सत्ताकेंद्र को मुसलमान बहुसंख्यक कश्मीर में स्थानांतरित करने का षडयंत्र : जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत के साथ जोड़नेवाले इस अनुबंध का अर्थ था जम्मू में स्थित सत्ताकेंद्र का कश्मीर में स्थानांतरण करना, तब से मुख्यमंत्री कार्यालय, साथ ही गृह, वित्त, राजस्व एवं शिक्षा आदि अन्य बड़े मंत्रीपद, महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक तथा अर्धप्रशासनिक पदों पर कश्मीर में स्थित सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व स्थापित हुआ । उसके पश्चात के समय में केंद्रशासन ने जम्मू प्रदेश में स्थित राजनीतिक शक्तियों का कश्मीर में हस्तांतर करने में बहुत सहायता की।
3. जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से तोड़नेवाली धारा 370 एवं 35 A : केवल इतना ही नहीं, अपितु अक्टूबर 1949 में धारा 370 एवं 35 A के अंतर्गत कश्मीर को विशेष राज्य की श्रेणी दी गई । धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर भारत के संवैधानिक प्रारूप से अलग हो गया और इस राज्य को अपना अलग संविधान एवं अपना अलग ध्वज रखने का अधिकार प्राप्त हुआ । धारा ‘35 A’ के कारण देश के अन्य नागरिक जम्मू-कश्मीर की नागरिकता लेने के अधिकार से वंचित हो गए, साथ ही इसके कारण जम्मू-कश्मीर में स्थित युवतियों को अन्य राज्य में स्थित युवकों के साथ विवाह करने हेतु बाधा उत्पन्न हुई ।
जम्मू-कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिस राज्य को असीमित संवैधानिक, कार्यकारी एवं आर्थिक अधिकार प्राप्त हैं । केंद्र से मिलनेवाली धनराशि के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार प्राप्त हैं ।
4.जम्मू कश्मीर राज्य को देश के अन्य अल्प आयवाले समूह में निहित राज्यों की तुलना में केंद्रशासन से बडा अनुदान :- वर्ष 2001 से 2016 की अवधि में देश के अन्य राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों को मिलनेवाले अनुदानों में से 10 प्रतिशत अनुदान केवल जम्मू-कश्मीर राज्य को मिला है । ये आंकड़े किसी को संभवतः अविश्वसनीय लग सकते हैं; परंतु यह वास्तविकता है । जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या देश की जनसंख्या की मात्रा में केवल 1 प्रतिशत होनेपर भी इस राज्य को इतना बड़ा अनुदान मिला है ।
इसके विपरीत इस अवधि में देश की जनसंख्या की तुलना में 13 प्रतिशत जनसंख्यावाले उत्तर प्रदेश राज्य को केंद्रीय अनुदान में से केवल 8.2 प्रतिशत अनुदान मिला है । 1 करोड़ 25 लाख जनसंख्यावाले जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए प्रतिव्यक्ति अनुदान 91 सहस्र (हजार) 300 रुपए था, तो उत्तर प्रदेश राज्य के लिए यही अनुदान 4 सहस्र 300 रुपए है । विशेष श्रेणी प्राप्त 11 राज्यों को मिलनेवाले अनुदान के रूप में इस अवधि में जम्मू-कश्मीर राज्य को 1 लाख 14 करोड़ रुपए का अनुदान मिला है । यह अनुदान इन 11 विशेष श्रेणी प्राप्त राज्यों को मिलनेवाले कुल अनुदान से भी 25 प्रतिशत अधिक है । इस विषय में दैनिक ‘द हिंदू’ के 24 जुलाई 2016 के अंक में विस्तृत ब्यौरा प्रकाशित हुआ है ।
वर्ष 2006 में जम्मू-कश्मीर को प्रतिव्यक्ति अनुदान 9 हजार 754 रुपए मिल गया । इसके विपरीत बिहार राज्य को प्रतिव्यक्ति 876 रुपए ही मिले । इसका अर्थ बिहार को जम्मू-कश्मीर की तुलना में १० प्रतिशत अल्प अनुदान मिला है ।
दैनिक हिंदुस्थान टाईम्स में 16 अगस्त 2008 को प्रकाशित वीर सिंघवी द्वारा लिखे गए लेख में दी गई जानकारी के अनुसार ‘‘बिहार एवं अन्य राज्यों को प्राप्त अनुदान विशेष रूप से ऋण के रूप में था, इसके विपरीत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त 90 प्रतिशत अनुदान सीधा अनुदान था । जम्मू-कश्मीर राज्य का सभी पंचवर्षीय व्यय भारतीय करदाताओं के करों में से होतो है, साथ ही दिल्ली का केंद्रशासन बीच-बीच में धनराशि की आपूर्ति करता है । वर्ष 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह शासनद्वारा विकास के नामपर 5 अरब रुपए दिए गए थे ।"
5. अयोग्य पुरानी नीतियों के कारण होनेवाली हानि को टालने हेतु जम्मू-कश्मीर राज्य की पुनर्रचना की जानी आवश्यक :- देश के दक्षिण एवं उत्तर भाग की नीतियों का निर्धारण करनेवाले तथा समस्याओं का समाधान ढूंढनेवाले विचारकों को देश के 70 वर्ष पुराने कश्मीर की नीतिपर पुनर्विचार करना आवश्यक है, क्योंकि इन पुरानी नीतियों के कारण एक ओर से कश्मीर की समस्या यथास्थिति बनी हुई है तथा दूसरी ओर जम्मू एवं लडाख प्रदेश के लोग कश्मीर एवं केंद्रशासन इन दोनों से बहुत दूर हो गए हैं ।
इसलिए केवल धार्मिकता के आधार पर नहीं, अपितु प्रादेशिकता के आधार पर जम्मू-कश्मीर की पुनर्रचना कर जम्मू को अलग राज्य की श्रेणी एवं लडाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश की श्रेणी दी जानी चाहिए । इससे जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान ढूंढने में बहुत सहायता मिलेगी !
- प्रा. हरि ओम महाजन, पूर्व विभागप्रमुख, सामाजिकशास्त्र शाखा, जम्मू एवं काश्मीर विश्वविद्यालय (संदर्भ : संकेतस्थल ‘SwarajyaMag.com’)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
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