Thursday, November 29, 2018

जानिए ईसाई मिशनरीयां ईसाई बनाने के लिए किस तरह करते हैं षड्यंत्र

29 नवम्बर 2018

🚩गैर ईसाईयों को ईसाई बनाने के लिए मिशनरियां किस तरह के षड्यंत्रों का प्रयोग करती हैं वह विचारणीय है । क्या आपने कभी सुना है कि कुछ मुस्लिम इसाई बने हैं? आखिर हिन्दू ही इतना आसान टारगेट क्यों है ? कुछ समय पहले झारखण्ड सरकार ने No Conversion ( धर्मान्तरण रोकने का कानून) बनाया तो समस्त ईसाइयों ने इसका जबर्दस्त विरोध किया ।

🚩जानिए इनके कुछ छल कपट जो पूर्व में अपनाए गए थे और आज भी अपनाए जा रहे हैं:-

🚩1- उत्तरी सेंटिनल द्वीप के मूल निवासियों ने 27 वर्षीय अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाउ को मार दिया था । जांच में स्पष्ट हुआ कि चाउ ने हर एक भारतीय नियम, कानून और अधिनियम की अवहेलना की । ऐसा नहीं है कि चाउ पहली बार अंडमान निकोबार आया था । वह सितंबर 2016 से लेकर अपनी मौत से पहले तीन बार पोर्ट ब्लेयर आ चुका था ।

🚩आखिर चाउ कौन था? किस मानसिकता और किस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने अपनी जान दांव पर लगा दी ? जहां एक तरफ भारत में चाउ के वास्तविक उद्देश्य पर पर्दा डालने का संगठित प्रयास हो रहा है वहीं ‘इंटरनेशनल क्रिश्चियन कन्सर्न’ नामक ईसाई संगठन और अधिकांश विदेशी मीडिया ने सच्चाई उजागर करते हुए चाउ का वर्णन ईसाई मिशनरी/प्रचारक के रूप में किया है । दर्दनाक मौत से पहले चाउ ने अपने माता-पिता के नाम छोड़े पत्र में लिखा, ‘आप लोगों को लगता होगा कि मैं सनक गया हूं, किंतु उन्हें (सेंटिनल द्वीपवासी) जीसस के बारे में बताना आवश्यक है । उन लोगों से मेरा मिलना व्यर्थ नहीं है । मैं चाहता हूं कि वे लोग भी अपनी भाषा में प्रभु की आराधना करें । यदि मेरी मौत हो जाए तो आप इन लोगों से या प्रभु से नाराज मत होना । मैं आप सभी से प्यार करता हूं और मेरी प्रार्थना है कि आप दुनिया में ईसा मसीह से अधिक किसी और से प्यार न करें।’ 13 पन्नों की यह चिट्ठी चाउ ने अपनी मदद करने वाले मछुआरों को सौंपी थी ।
Learn how to make Christian missionaries Christian: Conspiracy

🚩2-  जिसे आज हम झारखंड कहते वह उस समय बिहार का हिस्सा था । आदिवासियों में एक अफवाह फैलाई गई कि आदिवासी हिन्दू नहीं इसाई हैं । उस समय कार्तिक उरांव, जो वनवासियों के समुदाय से थे एवं कांग्रेस में इंदिरा गांधी के समकक्ष नेता थे, ने इसका बहुत ही कड़ा और कारगर विरोध किया । उन्होंने कहा कि पहले सरकार इस बात को निश्चित करे कि बाहर से कौन आया था ? यदि हम यहाँ के मूलवासी हैं तो फिर हम ईसाई कैसे हुए क्योंकि ईसाई पन्थ तो भारत से नहीं निकला । और यदि हम बाहर से आए ईसाईयत को लेकर, तो फिर आर्य यहाँ के मूलवासी हुए । और यदि हम ही बाहर से आए तो फिर ईसा के जन्म से हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे समुदाय में निषादराज, गुह, शबरी, कणप्पा आदि कैसे हुए ? उन्होंने यह कहा कि हम सदैव हिन्दू थे, हैं और रहेंगे ।

🚩उसके बाद कार्तिक उरांव ने बिना किसी पूर्व सूचना एवं तैयारी के भारत के भिन्न-भिन्न कोनों से वनवासियों के पाहन, वृद्ध तथा टाना भगतों को बुलाया और यह कहा कि आप अपने जन्मोत्सव, विवाह आदि में जो लोकगीत गाते हैं उन्हें हमें बताईए । और फिर वहां सैकड़ों गीत गाये गए और सारे गीतों में यही वर्णन मिला कि यशोदा जी बालकृष्ण को पालना झुला रही हैं, सीता माता राम जी को पुष्पवाटिका में निहार रही हैं, कौशल्या जी राम जी को दूध पिला रही हैं, कृष्ण जी रुक्मिणी से परिहास कर रहे हैं, आदि आदि । साथ ही यह भी कहा कि हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा, विजयादशमी, रामनवमी, रक्षाबन्धन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली आदि बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।

🚩फिर कार्तिक उरांव ने कहा कि यहाँ यदि एक भी व्यक्ति यह गीत गा दे कि मरियम ईसा को पालना झुला रही हैं और यह गीत हमारे परम्परा में प्राचीन काल से है तो मैं भी ईसाई बन जाऊंगा । उन्होंने यह भी कहा कि मैं वनवासियों के उरांव समुदाय से हूँ । हनुमानजी हमारे आदिगुरु हैं और उन्होंने हमें राम नाम की दीक्षा दी थी । ओ राम , ओ राम कहते कहते हम उरांव के नाम से जाने गए । हम हिन्दू ही पैदा हुए और हिन्दू ही मरेंगे । 

🚩3 - "जेमो केन्याटा" केन्या की जनता के बीच राष्ट्रपिता का दर्जा रखते हैं । उन्होंने कहा था, 
जब केन्या में ईसाई मिशनरियां आर्इं उस समय हमारी धरती हमारे पास थी और उनकी बाइबिल उनके पास । 
उन्होंने हम से कहा – “आँख बंद कर प्रार्थना करो ।” 
जब हमारी आंखें खुलीं तो हमने देखा कि उनकी बाइबिल हमारे पास थी और हमारी धरती उनके पास।

🚩4-- छत्तीसगढ़ - एक मिशनरी के हाथ में 2 मूर्तियाँ । एक भगवान कृष्ण की, दूसरी यीशु की । ईसाई मिशनरी (प्रचारक) गाँव वालों को कहता है कि देखो जिसका भगवान सच्चा होगा वह पानी में तैर जाएगा। यीशू की मूर्ति तैरती हैं ( क्योंकि वह लकड़ी की बनी थी) और श्रीकृष्ण की मूर्ति पानी में डूब जाती है (क्योंकि वह POP या मिट्टी की बनी थी)। ये ट्रिक कई गाँवों में आजमाई गई । एक गाँव में एक युवक ने कहा कि हमारे यहाँ तो अग्नि परीक्षा होती है तो मिशनरी बहाना बनाकर निकल जाते हैं ।
🚩5 - इसाई चमत्कारिक प्रेरक/ प्रचारक – पाल दिनाकरण – प्रार्थना के पैक बेचते हैं ।
पॉल दिनाकरण प्रार्थना की ताकत से भक्तों को शारीरिक तकलीफों व दूसरी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं । पॉल बाबा अपने भक्तों को इश्योरेंस या प्रीपेड कार्ड की तरह प्रेयर पैकेज बेचते हैं । यानी, वे जिसके लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं, उससे मोटी रकम भी वसूलते हैं । मसलन 3000 रुपये में आप अपने बच्चों व परिवार के लिए प्रार्थना करवा सकते हैं । पॉल दिनाकरण जो कि एक इसाई प्रेरक हैं उनकी संपत्ति 5000 करोड़ से ज्यादा है,बिशप के.पी.योहन्नान की संपत्ति 7000 करोड़ है, ब्रदर थान्कू (कोट्टायम , करेला ) की संपत्ति 6000 हज़ार करोड़ से अधिक है ।

🚩6 - .अभी कुछ साल पहले मदर टेरेसा का बीटिफिकेशन हुआ था अर्थात मदर टेरेसा को सन्त घोषित किया गया। जिसके लिए राईगंज के पास की रहनेवाली किन्हीं मोनिका बेसरा से जुड़े 'चमत्कार' का विवरण पेश किया गया था । गौरतलब है कि 'चमत्कार' की घटना की प्रामाणिकता को लेकर सिस्टर्स आफ चैरिटी के लोगाें ने लम्बा चौड़ा 450 पेज का विवरण वैटिकन को भेजा था । यह प्रचारित किया गया था कि मोनिका के ट्यूमर पर जैसे ही मदर टेरेसा के लॉकेट का स्पर्श हुआ, वह फोड़ा छूमन्तर हुआ । दूसरी तरफ खुद मोनिका बेसरा के पति सैकिया मूर्म ने खुद 'चमत्कार' की घटना पर यकीन नहीं किया था और मीडियाकर्मियों को बताया था कि किस तरह मोनिका का लम्बा इलाज चला था । दूसरे राईगंज के सिविल अस्पताल के डाक्टरों ने भी बताया था कि किस तरह मोनिका बेसरा का लम्बा इलाज उन्होंने उसके ट्यूमर ठीक होने के लिए किया ।

🚩भारत की सनातन परंपरा सदियों से भय, लालच और धोखे का शिकार रही है । देश में अधिकांश चर्चों और ईसाई मिशनरियों की विकृत ‘सेवा’ उसी गुप्त एजेंडे का हिस्सा है जिसकी नींव 15वीं शताब्दी में गोवा में पुर्तगालियों के आगमन और 1647 में ब्रितानी चैपलेन ने मद्रास पहुंचने पर रखी थीं । 1813 में चर्च के दवाब में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया चार्टर में विवादित धारा जोड़ी, जिसके बाद ब्रिटिश पादरियों और ईसाई मिशनरियों का भारत में ईसाईयत के प्रचार-प्रसार का मार्ग साफ हो गया । तभी से भारतीय समाज के भीतर मतांतरण का खेल जारी है । आज भी स्वतंत्र भारत के कई क्षेत्रों में खुलेआम कथित आत्मा का कुत्सित व्यापार-विदेशी वित्तपोषित स्वयंसेवी संगठनों के समर्थन और वामपंथियों सहित स्वयंभू सेक्युलरिस्टों की शह पर धड़ल्ले से चल रहा है ।

🚩स्वतंत्रता से पूर्व नगालैंड और मिजोरम-दोनों आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र थे । 1941 में नगालैंड की कुल आबादी में जहां गिनती के केवल नौ ईसाई (लगभग शून्य प्रतिशत) थे और मिजोरम में ईसाइयों की संख्या केवल .03 प्रतिशत थी, वह यकायक 1951 में बढ़कर क्रमश: 46 और 90 प्रतिशत हो गई । 2011 की जनगणना के अनुसार, दोनों प्रांतों की कुल जनसंख्या में ईसाई क्रमश: 88 और 87 प्रतिशत हैं । मेघालय की भी यही स्थिति है । अब इतनी वृहद मात्रा में मतांतरण के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए गए होंगे, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है । क्या यह सत्य नहीं कि इसी जनसांख्यिकीय स्थिति के कारण इन इलाकों में चर्च का अत्यधिक प्रभाव है और वहां का एक वर्ग भारत की मुख्यधारा से कटा हुआ है?

🚩ईसाई दयालुता केवल तभी तक है जब तक कोई व्यक्ति ईसाई नहीं बनता । यदि इन्हें लोगों की भूख, गरीबी और बीमारी की ही चिन्ता होती तो अफ्रीका महाद्वीप के उन देशों में जाते जहाँ 95% जनसंख्या ईसाई है । आज जरूरत है कि प्रत्येक भारतीय महर्षि दयानन्द कृत सत्यार्थ प्रकाश पढ़े और विधर्मियों के छल कपट को समझे । यदि हम आज नहीं जागे तो कल तक बहुत देर हो जाएगी और हमारा अस्तित्व खतरे में आ जाएगा । 

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