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आजकल जितनी तेजी से भारत में कानूनों के मायने बदल जाते हैं उतनी तेजी से तो शायद आप टेलिविज़न में चैनल भी नहीं बदल पाते होंगे । जी हाँ आजकल हमारे देश के कानूनों में बहुत ही शीघ्रता से परिवर्तन होता नजर आता है ।
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और वो भी बात अगर किसी हिन्दू संत या हिन्दू धर्म के किसी प्रतिनिधि की हो तो फिर कहना ही क्या?
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वर्तमान की स्थिति देखकर लगता है कि कानून के नियम नेता-अभिनेता एवं अमीर और पत्रकारों के लिए अलग और किसी हिंदुनिष्ठ या हिन्दू साधु-संत के लिए अलग-अलग होते हैं । किसी हिन्दू धर्म के संत या हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करने वालों पर मात्र एक आरोप लगने की देर होती है और उनकी गिरफ्तारी हो जाती है तथा मीडिया की झूठी कहानियों की पट्टियां भी शुरू हो जाती है, लेकिन वहीं अगर कोई नेता-अभिनेता या पत्रकार अथवा किसी अन्य धर्म के धर्म गुरु हों तो उनके द्वारा किये गए दुष्कृत्यों पर मीडिया और पुलिस मूकदर्शक बन बैठ जाते हैं और न्यायलय से उन्हें जमानत भी तुरंत दे दी जाती है ।
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ऐसे कई केस हमने देखे तरुण तेजपाल, दीपक चौरसिया, सलमान खान, लालू यादव, विजय माल्या इन सबके आरोप सिद्ध होने पर भी जमानत मिल गयी और अभी फ्रैंको मुल्लकल का केस भी हमने देखा जिसमें संगीन आरोपों के बावजूद उसे रिहा किया गया । ऐसा ही एक केस जो अभी देखने को मिला वो था इंडिया टुडे के एंकर गौरव सावंत का, जिसमें उनपर पत्रकार विद्या कृष्णन ने यौन शोषण का आरोप लगाया ।
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Laws vary for journalists and Hindus? |
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आपको दें कि विद्या कृष्णन जोकि The Hindu में फॉर्मर हेल्थ एडिटर हैं, उन्होंने इंडिया टुडे के एग्जीक्यूटिव एडिटर गौरव सावंत पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं । अभी हाल ही में शुरू हुए #MeToo अभियान के तहत कई ऐसे लोगों ने भी अपनी अवाज उठायी है जिनके साथ वर्षों पहले दुष्कृत्य हुआ और वे उस समय न बता पाए हों, उनमें से ही एक हैं विद्या कृष्णन ।
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विद्या कृष्णन ने आरोप लगाया है कि अबसे 15 साल पहले 2003 जब उन्हें उनका पहला assignement मिला था मिलिट्री बेस कैम्प की रिपोर्टिंग का, तब की ये घटना है । लेकिन उस समय क्योंकि गौरव सावंत के काफी नाम था वो अपने साथ हुई घटना के बारे में लोगों को नहीं बता पाईं, लेकिन अब #MeToo अभियान के तहत उन्होंने अपने साथ हुई घटना को लोगों के साथ साझा किया ।
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अब यहाँ सवाल ये उठता है कि गौरव सावंत पर आरोप लगने के बावजूद उसपर कार्यवाही क्यों नहीं कि जा रही है ? क्या सिर्फ इसलिए कि वो एक पत्रकार हैं ? या उन्होंने अभी से ही एक मोटी रकम दे दी है ? और तो और सत्यवादी होने का दावा करने वाली बिकाऊ मीडिया भी इस बारे में कोई न्यूज़ नहीं दिखा रही है, क्या ये गलत नहीं है ?
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एक ओर तो हिन्दू वादी लोगों तथा हिन्दू संतों व प्रतिनिधियों के लिए नए-नए कानून लाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर पत्रकारों, नेताओं तथा अभिनेताओं को VIP ट्रीटमेंट दिया जाता है । क्यों हर बार लोगों के साथ साथ कानून के मायने भी बदल दिए जाते हैं ? अपने इसी आचार-व्यवहार के कारण न्यायालय से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है । अगर न्यायालय ने अपनी नीति नहीं बदली तो जल्द ही वे दिन भी आएंगे जब लोगों को न्यायालय की अवहेलना करते देर नहीं लगेगी ।
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विनोबा जी ने कहा था कि'#भारत का अपना एक न्याय था और बाहर से आया हुआ एक न्याय । भारत का न्याय था पंच परमेश्वर द्वारा न्याय । आजकल अपने यहाँ जो बाहर का चलता है । यह इंपोर्टेड (आयातित) न्याय है । उसे'एक्सपोर्ट' कर देना चाहिए (बाहर भेज देना चाहिए।)'
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कुछ लोगों के मामले में आज जिस प्रकार न्यायपालिका अपना काम कर रही है वो आम लोगों के मन में उसकी प्रतिष्ठा को तो कम करता ही है, निष्पक्ष न्याय को लेकर आशंका और अविश्वास को भी बल देता है। अगर समय रहते हम नहीं सँभले तो इसके दूरगामी परिणाम निश्चित तौर पर बहुत घातक होंगे । अतः समय रहते सरकार व न्यायपालिका को सावधान हो जाना चाहिए ।
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