27 फरवरी 2019
*ट्रेन में एक हिंदू और कुछ मुसलमान के बीच हुई चर्चा का लेखरूप संकलन*
*ट्रेन में इमरान खान द्वारा भारत से पाकिस्तान के लिए सुधरने का मौका मांगे जाने पर चर्चा आरम्भ हुई । तो एक बुजुर्ग ने कहा- पाकिस्तान कमजोर है भारत मजबूत है । दोनों में कोई मैच नहीं । इसलिये भारत को पाकिस्तान पर हमला नहीं करना चाहिए । पाकिस्तान कंगाल है । उसको खोने के लिए कुछ नहीं है । भारत मजबूत है । भारत आगे बढ़ रहा है । भारत को युद्ध से परहेज करना चाहिए । ऐसा करने से भारत विकास करेगा । एक 75 साल के बुजुर्ग मुसलमान से अपना तजुर्बा मेरे सामने रखा ।*
*मैंने झट टोका और कहा कि माना कि पाकिस्तान कंगाल है, कमजोर है, उसको खोने के लिए कुछ नहीं है । भारत का विकास रुकेगा युद्ध करने से । किन्तु युद्ध न करने से पाकिस्तान के कारण हमारा विकास नहीं रुक रहा है ऐसा तो नहीं है । भारत का विकास तो रुका हुआ है ही 70 वर्षों से पाकिस्तान के कारण । तो फिर क्यों न पाकिस्तान को एक बार में खतम ही कर दिया जाय? जितना पैसा 1947 से आजतक भारत ने केवल कश्मीर में खर्च कर दिया है उतना पैसा हमारा बच गया होता तो आज हम अमेरिका के बराबरी पर खड़े होते । हमारी अर्थव्यस्था का आकार अमेरिका के बराबर हो गया होता । हम दुनियाँ की बहुत बड़ी ताकत होते । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और रशिया के समानांतर भारत दुनियाँ की सबसे बड़ी शक्ति होता । हम बहुत तेज गति से आगे बढ़ गए होते । किन्तु हमारी यह हानि केवल पाकिस्तान के कारण ही हुई । यदि पाकिस्तान न होता तो हम बहुत बड़ी ऊँचाई छू चुके होते । विकास के शिखर पर होते ।*
*तब बुजुर्ग भी निरुत्तर और उसके साथ बैठे 50 वर्ष वाले दो मुसलमान भी निरुत्तर हो गए । उनकी हामी भरती हुई मूँछ विहीन हिलती दाढ़ी देखकर मैंने उनके सुल्फ़ी बहावी अन्तरात्मा को लक्षित करना उचित समझा । मैं बात आगे बढ़ाना चाह ही रहा था कि एक सीनियर पचास वर्षीय मुसलमान ने कहा कि पाकिस्तान के आवाम में भारत के प्रति प्रेम है । और वो भारत के साथ मिलकर जीना चाहते हैं । तो 75 वर्षीय बुजुर्ग ने फिर कहा कि पाकिस्तान की असली समस्या इस्लाम नहीं है । पाकिस्तान की असली समस्या सिया सुन्नी विवाद है । बस उनका इतना कहना था कि मुझे उनका मुद्दा लपकने का स्वर्णिम अवसर पुनः मिल गया । मैं पाकिस्तान की आवाम के भारत प्रेम पर कुछ बात करने के मूड में नहीं था । इस अल तकिया को मैंने इग्नोर किया । मैंने उनको कहा कि सिया, सुन्नी और अहमदिया मुसलमानों में इस्लाम की दो बातों के बारे में कोई मतभेद नहीं है । और वो दो बातें हैं मोहम्मद साहब और कुरान । मतभेद केवल इतना ही है कि सिया अली को अपना खलीफा मानता है और सुन्नी अबु बकर को । तो अहमदिया मोहम्मद साहब के साथ साथ दूसरे तीसरे और अन्य पैगम्बर की बात भी मानता है । मोहम्मद साहब का विरोध वह भी नहीं करता । और न ही किसी खलीफा का विरोध करता है अहमदिया ।*
*पचास वर्षीय क्लीन शेव मुसलमान ने मेरी प्रशंसा करते हुए कहा कि आपको इस्लाम का बहुत नॉलेज है । फिर मैंने उसको कहा कि अब आप पाकिस्तान की गाथा सुनिए । पाकिस्तान की सेना का मतलब है रशिया । और कश्मीर की हुर्रियत का भी मतलब है रशिया । हुर्रियत को वार्ता का पक्षकार नहीं बनाने का मतलब है रशिया को पक्षकार नहीं बनाना । अबतक हुर्रियत के बहाने रशिया भारत पाक वार्ता में पक्षकार बनता आया था जिसे मोदी सरकार ने कभी वार्ता में सम्मिलित न करने का निर्णय लिया ।*
*रशिया के इशारे पर ही पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर में 1948 में घुसपैठ किया । हमें आजाद होते ही तुरंत लड़ाई लड़नी पड़ी । और हमने बहुत कुछ गँवाया । क्योंकि तब हमें अपना जो धन अपनी विपन्न जनता पर खर्च करना चाहिए था वह हमें युद्ध में गँवाना पड़ गया । और इस हानि का प्रत्यक्ष कारण पाकिस्तान बना । दो तिहाई कश्मीर हमारे नासमझ चालबाज प्रधानमंत्री नेहरू के कारण हाथ से चला गया । तिब्बत बिना युद्ध के गँवाया नेहरू की मूर्खता के कारण ।*
*1962 में चाईना से हमें युद्ध करना पड़ा । लद्दाख का बहुत बड़ा भूभाग हमारे हाथ से चाईना के कब्जे में गया । तब चीन ने कश्मीर के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार पाने के कारण पाकिस्तान के निकट आया । चाईना ने पीओके का कुछ हिस्सा पाकिस्तान से लीज पर ले लिया । पाकिस्तान ने चाईना से 2 मार्च 1963 को समझौता करके गिलगिट बाल्टिस्तान इत्यादि क्षेत्र चाईना को सौंप दिया । बदले में 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध की सारी सुविधा चाईना ने पाकिस्तान को उपलब्ध करा दिया । नकद धन से लेकर रणनीति से लेकर हथियार तक सब कुछ चाईना ने दिया ।*
*1971 के युद्ध के समय भी चाईना पाकिस्तान के पीछे खड़ा था । किन्तु पाकिस्तान की सेना पर रशिया का दबदबा बना रहा । आईएसआई पर रशिया का दबदबा बना रहा । राजनीतिक स्तर पर चाईना ने व्यापारिक लेनदेन जारी रखा । राजनीति जहाँ आर्मी से सहमति बना लेती थी वहाँ चाईना अपनी भूमिका निभा लेता था । शेष रशिया की रणनीतिक पैठ पाकिस्तान में लगातार बनी रही । पाकिस्तान में सेना की बगावत का मतलब था रशिया की बगावत । रशिया यद्यपि भारत का मित्र बना हुआ था तब भी उसको हथियार बेचकर अपना देश चलाना था । अन्य महादेशों के कम्युनिष्ट शासन वाले देश रशिया के ग्राहक थे । और लोकतंत्र वाले देश अमेरिका के ग्राहक थे । भारत अकेला लोकतंत्र वाला देश था जहाँ रशिया के इशारे पर कांग्रेस ने समाजवादी लोकतंत्र भारत को घोषित कर दिया गया था । यह समाजवाद कुछ और नहीं भारत के रशिया का सबसे बड़ा हथियार खरीददार होने का लक्षण था । रशिया भारत के द्वारा खरीदे गए हथियारों से पोषित होता था । 1971 से भारत का कोई युद्ध किसी से हुआ नहीं । 80 के बाद रशिया डांवाडोल होने लग गया । हथियारों की खपत घटने लगी । परिणामस्वरुप रशिया बिखर गया ।*
*जब रशिया कमजोर होने लगा तो अमेरिका ने अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए रणनीतिक महत्व के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने की योजना बनाया । अफगानिस्तान में डॉ नजीबुल्लाह के रूप में शासन में रशिया ही बैठा था । अफगानिस्तान का तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ नजीबुल्लाह लेनिनवादी कम्युनिष्ट था । अमेरिका ने अपने पैसे से अल कायदा और तालिबान खड़ा किया पाकिस्तान की राजनीतिक दलों की सहायता से । आज का आईएसआईएस भी इन्ही दोनों का बाय प्रोडक्ट है । डॉ नजीबुल्लाह की तालिबान द्वारा अमेरिका ने हत्या करवाया । तालिबान की सहायता से अमेरिका ने डॉ बुरहानुद्दीन रब्बानी को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाया । आज अमेरिका का आर्मी बेस पीओके में भी है और अफगानिस्तान में भी । अब प्रश्न उठता है कि ये लड़ाईयाँ पाकिस्तान लड़ रहा था या इस्लाम लड़ रहा था, दिन की लड़ाई थी यह या जिहाद था यह या अमेरिका और रशिया के हाथों की कठपुतली बनकर पाकिस्तान कठपुतली की तरह नाच रहा था ?*
*अब तीनों हैरान थे । तीनों बड़े गंभीर होकर सुन रहे थे मेरा भाषण । आसपास के हिन्दू यात्री जमा होकर चर्चा में रुचि लेने लग गए थे । मैंने चर्चा जारी रखा । और पूछा कि जब मुसलमान अपनी लड़ाई लड़ने की स्थिति में था ही नहीं । वह दूसरों के इशारे पर खिलौना बना हुआ था फिर भारत का मुसलमान ताली किसके लिए बजा रहा था और अब भी बजा रहा है? अमेरिका के लिए या रशिया के लिए या फिर चाईना के लिए । मैंने पूछा कि आपको पता है कि सीरिया में क्या हुआ? उनको कुछ ज्ञान होगा भी तो शायद उनलोगों ने कुछ कहा नहीं । मैंने कहा कि अमेरिका से पैसा और हथियार लेकर विद्रोही लड़ाई लड़ रहे थे वहाँ । सीरिया की सरकार ने रशिया से सहयोग माँगा । रशिया ने उसपर बमबार्डिंग शुरू किया । अमेरिका हताहत होने लगा । तो रशिया और अमेरिका में तनाव उत्पन्न हुआ । तनाव बढ़ता चला गया । लगा कि विश्वयुद्ध हो जाएगा । किन्तु स्थिति की नाजुकता को देखकर दोनो ही सम्भले । अब भारत के मुसलमानों को लगता है कि लड़ाई आईएसआईएस लड़ रहा है । लेकिन मुसलमानों को वहाँ भी रशिया और अमेरिका ने ही उलझाया हुआ था ।*
*मुसलमान कहीं भी युद्ध की स्थिति में है ही नहीं । क्योंकि टर्की, ईरान और पाकिस्तान मात्र तीन इस्लामिक देशों के पास ही पाँच लाख से अधिक स्ट्रेंथ की सेना है । बाकी किसी के पास कोई खास ताकत नहीं है । सऊदी अरब में 1970 में विद्रोहियों ने मक्का पर कब्जा कर लिया था । तब सऊदी अरब चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया । मक्का को मुक्त कराने के लिए सऊदी अरब को अमेरिका की सहायता लेनी पड़ी । युद्ध के खर्चे के बदले में अमेरिका ने सऊदी अरब का तेल तो ले ही लिया । साथ ही सुरक्षा का भार भी हाथ में ले लिया । सऊदी अरब समेत किसी भी इस्लामिक देश के पास कोई खास एयरफोर्स नहीं है । किसी भी इस्लामिक देश के पास बहुत ताकतवर नेवी नहीं है । सऊदी अरब का एयरपोर्ट भी अमेरिका ने बनाया है । और सुरक्षा का सारा मामला अमेरिका ने अपने पास रखा हुआ है । ऐसे में इस्लाम का केंद्रबिंदु सऊदी अरब ही जब पूरी तरह आजाद नहीं है तो फिर मुसलमान कहाँ से आजाद हो जाएगा । और फिर भारत का मुसलमान किस की ओर देखकर उछल रहा है ?*
*जब यूएई समेत कोई भी इस्लामिक देश अमेरिका के विरुद्ध एक कदम नहीं उठा सकता फिर भारत के मुसलमानों को अपने सोचने का तरीका बदलना होगा । मैंने उनको कहा कि इराक तो सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद पूरी तरह अमेरिका के कब्जे में है । वहाँ की सेना भी सरकार भी सब अमेरिका चलाता है । वहाँ का तेल भी अमेरिका का ही है । ईरान भी कुछ विशेष तीर मारने की स्थिति में नहीं है । एक-एक इस्लामिक देश अमेरिका या रसिया के सीधे-सीधे गुलाम हैं । प्रथम विश्वयुद्ध हुआ तब कमजोर होकर बिखर रहे ओटोमैन एम्पायर पर कब्जे की नीयत से । तब का ओटोमैन एम्पायर का मतलब था इस्लामिक साम्राज्य । खलीफा की ताकत घटने से साम्राज्य ध्वस्त हो रहा था । उसके बिखर रहे टुकड़ों पर ऑस्ट्रिया, इटली, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रशिया, जापान सब कब्जा करना चाह रहे थे । और इसी टसल में प्रथम विश्व युद्ध हुआ । युद्ध का कारण लेकिन झूठ गढ़कर यूरोप द्वारा दुनियाँ को बताया गया । ईस्लामिक देशों पर कब्जे की लड़ाई प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी चलता रहा । इस्लामिक देशों में तेल निकल जाने के बाद लड़ाई ने दूसरा मोड़ ले लिया ।*
*वहाँ के शासकों को अय्याशी कराके अमेरिका और यूरोप ने अपना कब्जा का खेल जारी रखा । यूरोप कालांतर में अपेक्षाकृत कमजोर हुआ तो उनका प्रभाव घटा । किन्तु अमेरिका का खेल आजतक जारी है । रशिया भी प्रयत्नशील है प्रभाव जमाने के लिए किन्तु उसकी घटी हुई आर्थिक ताकत उसके प्रभावी होने में आड़े आने लगी है । किन्तु इस्लामिक देश आज भी इनके इशारे पर ही उछल कूद कर रहे हैं । आज भी उनकी स्थिति कहीं भी अपने दम पर जिहाद चला लेने की नहीं हैं ।*
*मैंने उनको आगे कहा कि आपको मालूम है कि सऊदी अरब ने नरेंद्र मोदी को अक्षरधाम मंदिर बनाने के लिए सऊदी अरब में जमीन क्यों दिया? जबकि सऊदी अरब मक्का वाला देश है । हज का स्थान है वहाँ । इस्लाम का सेंटर है । तब भी उसने मंदिर के लिए अपने देश में जगह क्यों दिया? क्योंकि उसको भारत एक भविष्य का साथी दिख रहा है जो अमेरिकन कब्जे से उसको बाहर निकलने में शायद भविष्य में मदद कर सकेगा । इस तरह सऊदी अरब का इस्लाम भारत को तारणहार के रूप में देखता है किंतु भारत का मुसलमान आज भी पाकिस्तान के लिए तालियाँ बजा रहा है । मैंने उनको पूछा कि जब भारत के संबंध किसी भी इस्लामिक देश के साथ खराब नहीं हैं फिर पाकिस्तान से भारत की दुश्मनी का कारण क्या है? कारण एक ही है कि रशिया का हथियार और अमेरिका का हथियार बिकना चाहिए । इस उद्देश्य से रशिया पाकिस्तान की सेना और आईएसआई का उपयोग भारत के खिलाफ करता रहा है । ऐसे में किस इस्लाम की ओर देख रहा है भारत का मुसलमान? पाकिस्तान की ओर देखकर भारत का मुसलमान यदि भटकता है आये दिन तो एक बार पाकिस्तान को नष्ट कर देना ही उचित होगा जिससे भारत के मुसलमानों को भटकने का अवसर न मिल पाए । इतना सुनते ही उनका अल तकिया बंद । सभी मौन ।* *~मुरारी शरण शुक्ल*
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